مَا نُنَزِّلُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ إِلَّا بِٱلۡحَقِّ وَمَا كَانُوٓاْ إِذٗا مُّنظَرِينَ
(हालॉकि) हम फरिश्तों को खुल्लम खुल्ला (जिस अज़ाब के साथ) फैसले ही के लिए भेजा करते हैं और (अगर फरिश्ते नाज़िल हो जाए तो) फिर उनको (जान बचाने की) मोहलत भी न मिले
Author: Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi