كُلّٗا نُّمِدُّ هَـٰٓؤُلَآءِ وَهَـٰٓؤُلَآءِ مِنۡ عَطَآءِ رَبِّكَۚ وَمَا كَانَ عَطَآءُ رَبِّكَ مَحۡظُورًا
(ऐ रसूल) उनको (ग़रज़ सबको) हम ही तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) बख़्शिस से मदद देते हैं और तुम्हारे परवरदिगार की बख़्शिस तो (आम है) किसी पर बन्द नहीं
Author: Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi