وَكَأَيِّن مِّن قَرۡيَةٍ أَمۡلَيۡتُ لَهَا وَهِيَ ظَالِمَةٞ ثُمَّ أَخَذۡتُهَا وَإِلَيَّ ٱلۡمَصِيرُ
और बहुत-सी बस्तियाँ हैं, जिन्हें हमने अवसर दिया, जबकि वो अत्याचारी थीं, फिर मैंने उन्हें पकड़ लिया और मेरी ही ओर (सबको) वापस आना है।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari