Surah An-Nisa Verse 128 - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
Surah An-Nisaوَإِنِ ٱمۡرَأَةٌ خَافَتۡ مِنۢ بَعۡلِهَا نُشُوزًا أَوۡ إِعۡرَاضٗا فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَآ أَن يُصۡلِحَا بَيۡنَهُمَا صُلۡحٗاۚ وَٱلصُّلۡحُ خَيۡرٞۗ وَأُحۡضِرَتِ ٱلۡأَنفُسُ ٱلشُّحَّۚ وَإِن تُحۡسِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا
और यदि किसी स्त्री को अपने पति से दुर्व्यवहार अथवा विमुख होने की शंका हो, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि आपस में कोई संधि कर लें और संधि कर लेना ही अच्छा[1] है। लोभ तो सभी में होता है। यदि तुम एक-दूसरे के साथ उपकार करो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निःसंदेह तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उससे सूचित है।