Surah Fussilat Verse 44 - Hindi Translation by Muhammad Farooq Khan And Muhammad Ahmed
Surah Fussilatوَلَوۡ جَعَلۡنَٰهُ قُرۡءَانًا أَعۡجَمِيّٗا لَّقَالُواْ لَوۡلَا فُصِّلَتۡ ءَايَٰتُهُۥٓۖ ءَا۬عۡجَمِيّٞ وَعَرَبِيّٞۗ قُلۡ هُوَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْ هُدٗى وَشِفَآءٞۚ وَٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ فِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٞ وَهُوَ عَلَيۡهِمۡ عَمًىۚ أُوْلَـٰٓئِكَ يُنَادَوۡنَ مِن مَّكَانِۭ بَعِيدٖ
यदि हम उसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते तो वे कहते कि "उसकी आयतें क्यों नहीं (हमारी भाषा में) खोलकर बयान की गई? यह क्या कि वाणी तो ग़ैर अरबी है और व्यक्ति अरबी?" कहो, "वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए मार्गदर्शन और आरोग्य है, किन्तु जो लोग ईमान नहीं ला रहे है उनके कानों में बोझ है और वह (क़ुरआन) उनके लिए अन्धापन (सिद्ध हो रहा) है, वे ऐसे है जिनको किसी दूर के स्थान से पुकारा जा रहा हो।