Surah Al-Hujraat Verse 11 - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi
Surah Al-Hujraatيَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَسۡخَرۡ قَوۡمٞ مِّن قَوۡمٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُونُواْ خَيۡرٗا مِّنۡهُمۡ وَلَا نِسَآءٞ مِّن نِّسَآءٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُنَّ خَيۡرٗا مِّنۡهُنَّۖ وَلَا تَلۡمِزُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ وَلَا تَنَابَزُواْ بِٱلۡأَلۡقَٰبِۖ بِئۡسَ ٱلِٱسۡمُ ٱلۡفُسُوقُ بَعۡدَ ٱلۡإِيمَٰنِۚ وَمَن لَّمۡ يَتُبۡ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
ऐ ईमानदारों (तुम किसी क़ौम का) कोई मर्द ( दूसरी क़ौम के मर्दों की हँसी न उड़ाये मुमकिन है कि वह लोग (ख़ुदा के नज़दीक) उनसे अच्छे हों और न औरते औरतों से (तमसख़ुर करें) क्या अजब है कि वह उनसे अच्छी हों और तुम आपस में एक दूसरे को मिलने न दो न एक दूसरे का बुरा नाम धरो ईमान लाने के बाद बदकारी (का) नाम ही बुरा है और जो लोग बाज़ न आएँ तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं