وَإِن يَمۡسَسۡكَ ٱللَّهُ بِضُرّٖ فَلَا كَاشِفَ لَهُۥٓ إِلَّا هُوَۖ وَإِن يَمۡسَسۡكَ بِخَيۡرٖ فَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
यदि अललाह तुम्हें कोई हानि पहुँचाये, तो उसके सिवा कोई नहीं, जो उसे दूर कर दे और यदि तुम्हें कोई लाभ पहुँचाये, तो वही जो चाहे, कर सकता है।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari