هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن طِينٖ ثُمَّ قَضَىٰٓ أَجَلٗاۖ وَأَجَلٞ مُّسَمًّى عِندَهُۥۖ ثُمَّ أَنتُمۡ تَمۡتَرُونَ
वही है, जिसने तुम्हें मिट्टी से उत्पन्न[1] किया, फिर (तुम्हारे जीवन की) अवधि निर्धारित कर दी और एक निर्धारित अवधि (प्रलय का समय) उसके पास[2] है, फिर भी तुम संदेह करते हो।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari