يُرِيدُونَ أَن يُطۡفِـُٔواْ نُورَ ٱللَّهِ بِأَفۡوَٰهِهِمۡ وَيَأۡبَى ٱللَّهُ إِلَّآ أَن يُتِمَّ نُورَهُۥ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡكَٰفِرُونَ
वे चाहते हैं कि अल्लाह के प्रकाश को अपनी फूकों से बुझा[1] दें और अल्लाह अपने प्रकाश को पूरा किये बिना नहीं रहेगा, यद्यपि काफ़िरों को बुरा लगे।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari