قُلۡ أَنفِقُواْ طَوۡعًا أَوۡ كَرۡهٗا لَّن يُتَقَبَّلَ مِنكُمۡ إِنَّكُمۡ كُنتُمۡ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ
आप (मुनाफ़िक़ों से) कह दें कि तुम स्वेच्छा दान करो अथवा अनिच्छा, तुमसे कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा। क्योंकि तुम अवज्ञाकारी हो।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari