وَمَا كَانَ لِنَفۡسٍ أَن تُؤۡمِنَ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَيَجۡعَلُ ٱلرِّجۡسَ عَلَى ٱلَّذِينَ لَا يَعۡقِلُونَ
किसी प्राणी के लिए ये संभव नहीं है कि अल्लाह की अनुमति[1] के बिना ईमान लाये और वह (अल्लाह) मलीनता उनपर डाल देता है, जो बुध्दि का प्रयोग नहीं करते।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari