Surah Al-Kahf Verse 82 - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi
Surah Al-Kahfوَأَمَّا ٱلۡجِدَارُ فَكَانَ لِغُلَٰمَيۡنِ يَتِيمَيۡنِ فِي ٱلۡمَدِينَةِ وَكَانَ تَحۡتَهُۥ كَنزٞ لَّهُمَا وَكَانَ أَبُوهُمَا صَٰلِحٗا فَأَرَادَ رَبُّكَ أَن يَبۡلُغَآ أَشُدَّهُمَا وَيَسۡتَخۡرِجَا كَنزَهُمَا رَحۡمَةٗ مِّن رَّبِّكَۚ وَمَا فَعَلۡتُهُۥ عَنۡ أَمۡرِيۚ ذَٰلِكَ تَأۡوِيلُ مَا لَمۡ تَسۡطِع عَّلَيۡهِ صَبۡرٗا
और वह जो दीवार थी (जिसे मैंने खड़ा कर दिया) तो वह शहर के दो यतीम लड़कों की थी और उसके नीचे उन्हीं दोनों लड़कों का ख़ज़ाना (गड़ा हुआ था) और उन लड़कों का बाप एक नेक आदमी था तो तुम्हारे परवरदिगार ने चाहा कि दोनों लड़के अपनी जवानी को पहुँचे तो तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से अपना ख़ज़ाने निकाल ले और मैंने (जो कुछ किया) कुछ अपने एख्तियार से नहीं किया (बल्कि खुदा के हुक्म से) ये हक़ीक़त है उन वाक़यात की जिन पर आपसे सब्र न हो सका