Surah Al-Baqara Verse 229 - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
Surah Al-Baqaraٱلطَّلَٰقُ مَرَّتَانِۖ فَإِمۡسَاكُۢ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ تَسۡرِيحُۢ بِإِحۡسَٰنٖۗ وَلَا يَحِلُّ لَكُمۡ أَن تَأۡخُذُواْ مِمَّآ ءَاتَيۡتُمُوهُنَّ شَيۡـًٔا إِلَّآ أَن يَخَافَآ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَا فِيمَا ٱفۡتَدَتۡ بِهِۦۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَعۡتَدُوهَاۚ وَمَن يَتَعَدَّ حُدُودَ ٱللَّهِ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
तलाक़ दो बार है; फिर नियमानुसार स्त्री को रोक लिया जाये या भली-भाँति विदा कर दिया जाये और तुम्हारे लिए ये ह़लाल (वैध) नहीं है कि उन्हें जो कुछ तुमने दिया है, उसमें से कुछ वापिस लो। फिर यदि तुम्हें ये भय[1] हो कि पति पत्नि अल्लाह की निर्धारित सीमाओं को स्थापित न रख सकेंगे, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि पत्नि अपने पति को कुछ देकर मुक्ति[2] करा ले। ये अल्लाह की सीमायें हैं, इनका उल्लंघन न करो और जो अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करेंगे, वही अत्याचारी हैं।