Surah Al-Baqara - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
الٓمٓ
अलिफ़, लाम, मीम।
Surah Al-Baqara, Verse 1
ذَٰلِكَ ٱلۡكِتَٰبُ لَا رَيۡبَۛ فِيهِۛ هُدٗى لِّلۡمُتَّقِينَ
ये पुस्तक है, जिसमें कोई संशय (संदेह) नहीं, उन्हें सीधी डगर दिखाने के लिए है, जो (अल्लाह से) डरते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 2
ٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡغَيۡبِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ
जो ग़ैब (परोक्ष)[1] पर ईमान (विश्वास) रखते हैं तथा नमाज़ की स्थापना करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से दान करते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 3
وَٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَ وَبِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ يُوقِنُونَ
तथा जो आप (हे नबी!) पर उतारी गयी (पुस्तक क़ुर्आन) तथा आपसे पूर्व उतारी गयी (पुस्तकों)[1] पर ईमान रखते हैं तथा आख़िरत (परलोक)[2] पर भी विश्वास रखते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 4
أُوْلَـٰٓئِكَ عَلَىٰ هُدٗى مِّن رَّبِّهِمۡۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ
वही अपने पालनहार की बताई सीधी डगर पर हैं तथा वही सफल होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 5
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡهِمۡ ءَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ
वास्तव[1] में, जो काफ़िर (विश्वासहीन) हो गये, (हे नबी!) उन्हें आप सावधान करें या न करें, वे ईमान नहीं लायेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 6
خَتَمَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَعَلَىٰ سَمۡعِهِمۡۖ وَعَلَىٰٓ أَبۡصَٰرِهِمۡ غِشَٰوَةٞۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ
अल्लाह ने उनके दिलों तथा कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आंखों पर पर्दे पड़े हैं तथा उन्हीं के लिए घोर यातना है।
Surah Al-Baqara, Verse 7
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَقُولُ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَمَا هُم بِمُؤۡمِنِينَ
और[1] कुछ लोग कहते हैं कि हम अल्लाह तथा आख़िरत (परलोक) पर ईमान ले आये, जबकि वे ईमान नहीं रखते।
Surah Al-Baqara, Verse 8
يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَمَا يَخۡدَعُونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡ وَمَا يَشۡعُرُونَ
वे अल्लाह तथा जो ईमान लाये, उन्हें धोखा देते हैं। जबकि वे स्वयं अपने-आप को धोखा देते हैं, परन्तु वे इसे समझते नहीं।
Surah Al-Baqara, Verse 9
فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ فَزَادَهُمُ ٱللَّهُ مَرَضٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمُۢ بِمَا كَانُواْ يَكۡذِبُونَ
उनके दिलों में रोग (दुविधा) है, जिसे अल्लाह ने और अधिक कर दिया और उनके लिए झूठ बोलने के कारण दुखदायी यातना है।
Surah Al-Baqara, Verse 10
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ لَا تُفۡسِدُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ قَالُوٓاْ إِنَّمَا نَحۡنُ مُصۡلِحُونَ
और जब उनसे कहा जाता है कि धरती में उपद्रव न करो, तो कहते हैं कि हम तो केवल सुधार करने वाले हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 11
أَلَآ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡمُفۡسِدُونَ وَلَٰكِن لَّا يَشۡعُرُونَ
सावधान! वही लोग उपद्रवी हैं, परन्तु उन्हें इसका बोध नहीं।
Surah Al-Baqara, Verse 12
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ ءَامِنُواْ كَمَآ ءَامَنَ ٱلنَّاسُ قَالُوٓاْ أَنُؤۡمِنُ كَمَآ ءَامَنَ ٱلسُّفَهَآءُۗ أَلَآ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلسُّفَهَآءُ وَلَٰكِن لَّا يَعۡلَمُونَ
और[1] जब उनसे कहा जाता है कि जैसे और लोग ईमान लाये, तुमभी ईमान लाओ, तो कहते हैं कि क्या मूर्खों के समान हमभी विश्वास कर लें? सावधान! वही मूर्ख हैं, परन्तु वे जानते नहीं।
Surah Al-Baqara, Verse 13
وَإِذَا لَقُواْ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوۡاْ إِلَىٰ شَيَٰطِينِهِمۡ قَالُوٓاْ إِنَّا مَعَكُمۡ إِنَّمَا نَحۡنُ مُسۡتَهۡزِءُونَ
तथा जब वे ईमान वालों से मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाये और जब अकेले में अपने शैतानों (प्रमुखों) के साथ होते हैं, तो कहते हैं कि हम तुम्हारे साथ हैं। हम तो मात्र परिहास कर रहे हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 14
ٱللَّهُ يَسۡتَهۡزِئُ بِهِمۡ وَيَمُدُّهُمۡ فِي طُغۡيَٰنِهِمۡ يَعۡمَهُونَ
अल्लाह उनसे परिहास कर रहा है तथा उन्हें, उनके कुकर्मों में बहकने का अवसर दे रहा है।
Surah Al-Baqara, Verse 15
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلضَّلَٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ فَمَا رَبِحَت تِّجَٰرَتُهُمۡ وَمَا كَانُواْ مُهۡتَدِينَ
ये वे लोग हैं, जिन्होंने सीधी डगर (सुपथ) के बदले गुमराही (कुपथ) खरीद ली। परन्तु उनके व्यापार में लाभ नहीं हुआ और न उन्होंने सीधी डगर पायी।
Surah Al-Baqara, Verse 16
مَثَلُهُمۡ كَمَثَلِ ٱلَّذِي ٱسۡتَوۡقَدَ نَارٗا فَلَمَّآ أَضَآءَتۡ مَا حَوۡلَهُۥ ذَهَبَ ٱللَّهُ بِنُورِهِمۡ وَتَرَكَهُمۡ فِي ظُلُمَٰتٖ لَّا يُبۡصِرُونَ
उनकी[1] दशा उनके जैसी है, जिन्होंने अग्नि सुलगायी और जब उनके आस-पास उजाला हो गया, तो अल्लाह ने उनका उजाला छीन लिया तथा उन्हें ऐसे अन्धेरों में छोड़ दिया, जिनमें उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता।
Surah Al-Baqara, Verse 17
صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡيٞ فَهُمۡ لَا يَرۡجِعُونَ
वे गूँगे, बहरे, अंधे हैं। अतः अब वे लौटने वाले नहीं।
Surah Al-Baqara, Verse 18
أَوۡ كَصَيِّبٖ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ فِيهِ ظُلُمَٰتٞ وَرَعۡدٞ وَبَرۡقٞ يَجۡعَلُونَ أَصَٰبِعَهُمۡ فِيٓ ءَاذَانِهِم مِّنَ ٱلصَّوَٰعِقِ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِۚ وَٱللَّهُ مُحِيطُۢ بِٱلۡكَٰفِرِينَ
अथवा[1] (उनकी दशा) आकाश की वर्षा के समान है, जिसमें अंधेरे और कड़क तथा विद्धुत हो, वे कड़क के कारण, मृत्यु के भय से, अपने कानों में उंगलियाँ डाल लेते हैं और अल्लाह, काफ़िरों को अपने नियंत्रण में लिए हुए है।
Surah Al-Baqara, Verse 19
يَكَادُ ٱلۡبَرۡقُ يَخۡطَفُ أَبۡصَٰرَهُمۡۖ كُلَّمَآ أَضَآءَ لَهُم مَّشَوۡاْ فِيهِ وَإِذَآ أَظۡلَمَ عَلَيۡهِمۡ قَامُواْۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَذَهَبَ بِسَمۡعِهِمۡ وَأَبۡصَٰرِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
विद्धुत उनकी आँखों को उचक लेने के समीप हो जाती है। जब उनके लिए चमकती है, तो उसके उजाले में चलने लगते हैं और जब अंधेरा हो जाता है, तो खड़े हो जाते हैं और यदि अल्लाह चाहे, तो उनके कानों को बहरा और उनकी आँखों का अंधा कर दे। निश्चय अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Al-Baqara, Verse 20
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱعۡبُدُواْ رَبَّكُمُ ٱلَّذِي خَلَقَكُمۡ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ
हे लोगो! केवल अपने उस पालनहार की इबादत (वंदना) करो, जिसने तुम्हें तथा तुमसे पहले वाले लोगों को पैदा किया, इसी में तुम्हारा बचाव[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 21
ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ فِرَٰشٗا وَٱلسَّمَآءَ بِنَآءٗ وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجَ بِهِۦ مِنَ ٱلثَّمَرَٰتِ رِزۡقٗا لَّكُمۡۖ فَلَا تَجۡعَلُواْ لِلَّهِ أَندَادٗا وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ
जिसने धरती को तुम्हारे लिए बिछौना तथा गगन को छत बनाया और आकाश से जल बरसाया, फिर उससे तुम्हारे लिए प्रत्येक प्रकार के खाद्य पदार्थ उपजाये, अतः, जानते हुए[1] भी उसके साझी न बनाओ।
Surah Al-Baqara, Verse 22
وَإِن كُنتُمۡ فِي رَيۡبٖ مِّمَّا نَزَّلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا فَأۡتُواْ بِسُورَةٖ مِّن مِّثۡلِهِۦ وَٱدۡعُواْ شُهَدَآءَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
और यदि तुम्हें उसमें कुछ संदेह हो, जो (अथवा क़ुर्आन) हमने अपने भक्त पर उतारा है, तो उसके समान कोई सूरह ले आओ? और अपने समर्थकों को भी, जो अल्लाह के सिवा हों, बुला लो, यदि तुम सच्चे[1] हो।
Surah Al-Baqara, Verse 23
فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُواْ وَلَن تَفۡعَلُواْ فَٱتَّقُواْ ٱلنَّارَ ٱلَّتِي وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلۡحِجَارَةُۖ أُعِدَّتۡ لِلۡكَٰفِرِينَ
और यदि ये न कर सको तथा कर भी नहीं सकोगे, तो उस अग्नि (नरक) से बचो, जिसका ईंधन मानव तथा पत्थर होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 24
وَبَشِّرِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ أَنَّ لَهُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ كُلَّمَا رُزِقُواْ مِنۡهَا مِن ثَمَرَةٖ رِّزۡقٗا قَالُواْ هَٰذَا ٱلَّذِي رُزِقۡنَا مِن قَبۡلُۖ وَأُتُواْ بِهِۦ مُتَشَٰبِهٗاۖ وَلَهُمۡ فِيهَآ أَزۡوَٰجٞ مُّطَهَّرَةٞۖ وَهُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
(हे नबी!) उन लोगों को शुभ सूचना दो, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये कि उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें बह रही होंगी। जब उनका कोई भी फल उन्हें दिया जायेगा, तो कहेंगेः ये तो वही है, जो इससे पहले हमें दिया गया और उन्हें समरूप फल दिये जायेंगे तथा उनके लिए उनमें निर्मल पत्नियाँ होंगी और वे उनमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 25
۞إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَسۡتَحۡيِۦٓ أَن يَضۡرِبَ مَثَلٗا مَّا بَعُوضَةٗ فَمَا فَوۡقَهَاۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ فَيَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۖ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَيَقُولُونَ مَاذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَٰذَا مَثَلٗاۘ يُضِلُّ بِهِۦ كَثِيرٗا وَيَهۡدِي بِهِۦ كَثِيرٗاۚ وَمَا يُضِلُّ بِهِۦٓ إِلَّا ٱلۡفَٰسِقِينَ
अल्लाह,[1] मच्छर अथवा उससे तुच्छ चीज़ से उपमा (मिसाल) देने से नहीं लज्जाता। जो ईमान लाये, वे जानते हैं कि ये उनके पालनहार की ओर से उचित है और जो काफ़िर (विश्वासहीन) हो गये, वे कहते हैं कि अल्लाह ने इससे उपमा देकर क्या निश्चय किया है? अल्लाह इससे बहुतों को गुमराह (कुपथ) करता है और बहुतों को मार्गदर्शन देता है तथा जो अवज्ञाकारी हैं, उन्हीं को कुपथ करता है।
Surah Al-Baqara, Verse 26
ٱلَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهۡدَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مِيثَٰقِهِۦ وَيَقۡطَعُونَ مَآ أَمَرَ ٱللَّهُ بِهِۦٓ أَن يُوصَلَ وَيُفۡسِدُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
जो अल्लाह से पक्का वचन करने के बाद उसे भंग कर देते हैं तथा जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया, उसे तोड़ते हैं और धरती में उपद्रव करते हैं, वही लोग क्षति में पड़ेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 27
كَيۡفَ تَكۡفُرُونَ بِٱللَّهِ وَكُنتُمۡ أَمۡوَٰتٗا فَأَحۡيَٰكُمۡۖ ثُمَّ يُمِيتُكُمۡ ثُمَّ يُحۡيِيكُمۡ ثُمَّ إِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ
तुम अल्लाह का इन्कार कैसे करते हो? जबकि पहले तुम निर्जीव थे, फिर उसने तुम्हें जीवन दिया, फिर तुम्हें मौत देगा, फिर तुम्हें (परलोक में) जीवन प्रदान करेगा, फिर तुम उसी की ओर लौटाये[1] जाओगे
Surah Al-Baqara, Verse 28
هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ لَكُم مَّا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰٓ إِلَى ٱلسَّمَآءِ فَسَوَّىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَٰوَٰتٖۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ
वही है, जिसने धरती में जो भी है, सबको तुम्हारे लिए उत्पन्न किया, फिर आकाश की ओर आकृष्ट हुआ, तो बराबर सात आकाश बना दिये और वह प्रत्येक चीज़ का जानकार है।
Surah Al-Baqara, Verse 29
وَإِذۡ قَالَ رَبُّكَ لِلۡمَلَـٰٓئِكَةِ إِنِّي جَاعِلٞ فِي ٱلۡأَرۡضِ خَلِيفَةٗۖ قَالُوٓاْ أَتَجۡعَلُ فِيهَا مَن يُفۡسِدُ فِيهَا وَيَسۡفِكُ ٱلدِّمَآءَ وَنَحۡنُ نُسَبِّحُ بِحَمۡدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَۖ قَالَ إِنِّيٓ أَعۡلَمُ مَا لَا تَعۡلَمُونَ
और (हे नबी! याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं धरती में एक ख़लीफ़ा[1] बनाने जा रहा हूँ। वे बोलेः क्या तू उसमें उसे बनायेग, जो उसमें उपद्रव करेगा तथा रक्त बहायेगा? जबकि हम तेरी प्रशंसा के साथ तेरे गुण और पवित्रता का गान करते हैं! (अल्लाह) ने कहाः जो मैं जानता हूँ, वह तुम नहीं जानते।
Surah Al-Baqara, Verse 30
وَعَلَّمَ ءَادَمَ ٱلۡأَسۡمَآءَ كُلَّهَا ثُمَّ عَرَضَهُمۡ عَلَى ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ فَقَالَ أَنۢبِـُٔونِي بِأَسۡمَآءِ هَـٰٓؤُلَآءِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
और उसने आदम[1] को सभी नाम सिखा दिये, फिर उन्हें फ़रिश्तों के समक्ष प्रस्तुत किया और कहाः मुझे इनके नाम बताओ, यदि तुम सच्चे हो
Surah Al-Baqara, Verse 31
قَالُواْ سُبۡحَٰنَكَ لَا عِلۡمَ لَنَآ إِلَّا مَا عَلَّمۡتَنَآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَلِيمُ ٱلۡحَكِيمُ
सबने कहाः तू पवित्र है। हम तो उतना ही जानते हैं, जितना तूने हमें सिखाया है। वास्तव में, तू अति ज्ञानी तत्वज्ञ[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 32
قَالَ يَـٰٓـَٔادَمُ أَنۢبِئۡهُم بِأَسۡمَآئِهِمۡۖ فَلَمَّآ أَنۢبَأَهُم بِأَسۡمَآئِهِمۡ قَالَ أَلَمۡ أَقُل لَّكُمۡ إِنِّيٓ أَعۡلَمُ غَيۡبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَأَعۡلَمُ مَا تُبۡدُونَ وَمَا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ
(अल्लाह ने) कहाः हे आदम! इन्हें इनके नाम बताओ और आदम ने जब उनके नाम बता दिये, तो (अल्लाह ने) कहाःक्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि मैं आकाशों तथा धरती की क्षिप्त बातों को जानता हूँ तथा तुम जो बोलते और मन में रखते हो, सब जानता हूँ
Surah Al-Baqara, Verse 33
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَـٰٓئِكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِأٓدَمَ فَسَجَدُوٓاْ إِلَّآ إِبۡلِيسَ أَبَىٰ وَٱسۡتَكۡبَرَ وَكَانَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
और जब हमने फ़रिश्तों से कहाः आदम को सज्दा करो, तो इब्लीस के सिवा सबने सज्दा किया, उसने इन्कार तथा अभिमान किया और काफ़िरों में से हो गया।
Surah Al-Baqara, Verse 34
وَقُلۡنَا يَـٰٓـَٔادَمُ ٱسۡكُنۡ أَنتَ وَزَوۡجُكَ ٱلۡجَنَّةَ وَكُلَا مِنۡهَا رَغَدًا حَيۡثُ شِئۡتُمَا وَلَا تَقۡرَبَا هَٰذِهِ ٱلشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
और हमने कहाः हे आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी स्वर्ग में रहो तथा इसमें से जिस स्थान से चाहो, मनमानी खाओ और इस वृक्ष के समीप न जाना, अन्यथा अत्याचारियों में से हो जाओगे।
Surah Al-Baqara, Verse 35
فَأَزَلَّهُمَا ٱلشَّيۡطَٰنُ عَنۡهَا فَأَخۡرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِۖ وَقُلۡنَا ٱهۡبِطُواْ بَعۡضُكُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوّٞۖ وَلَكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُسۡتَقَرّٞ وَمَتَٰعٌ إِلَىٰ حِينٖ
तो शैतान ने दोनों को उससे भटका दिया और जिस (सुख) में थे, उससे उन्हें निकाल दिया और हमने कहाः तुम सब उससे उतरो, तुम एक-दूसरे के शत्रु हो और तुम्हारे लिए धरती में रहना तथा एक निश्चित अवधि[1] तक उपभोग्य है।
Surah Al-Baqara, Verse 36
فَتَلَقَّىٰٓ ءَادَمُ مِن رَّبِّهِۦ كَلِمَٰتٖ فَتَابَ عَلَيۡهِۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ
फिर आदम ने अपने पालनहार से कुछ शब्द सीखे, तो उसने उसे क्षमा कर दिया। वह बड़ा क्षमी दयावान्[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 37
قُلۡنَا ٱهۡبِطُواْ مِنۡهَا جَمِيعٗاۖ فَإِمَّا يَأۡتِيَنَّكُم مِّنِّي هُدٗى فَمَن تَبِعَ هُدَايَ فَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
हमने कहाः इससे सब उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरा मार्गदर्शन आये, तो जो मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण करेंगे, उनके लिए कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 38
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
तथा जो अस्वीकार करेंगे और हमारी आयतों को मिथ्या कहेंगे, तो वही नारकी हैं और वही उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 39
يَٰبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِيَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ وَأَوۡفُواْ بِعَهۡدِيٓ أُوفِ بِعَهۡدِكُمۡ وَإِيَّـٰيَ فَٱرۡهَبُونِ
हे बनी इस्राईल![1] मेरे उस पुरस्कार को याद करो, जो मैंने तुमपर किया तथा मुझसे किया गया वचन पूरा करो, मैं तुम्हें अपना दिया वचन पूरा करूँगा तथा मुझी से डरो।
Surah Al-Baqara, Verse 40
وَءَامِنُواْ بِمَآ أَنزَلۡتُ مُصَدِّقٗا لِّمَا مَعَكُمۡ وَلَا تَكُونُوٓاْ أَوَّلَ كَافِرِۭ بِهِۦۖ وَلَا تَشۡتَرُواْ بِـَٔايَٰتِي ثَمَنٗا قَلِيلٗا وَإِيَّـٰيَ فَٱتَّقُونِ
तथा उस (क़ुर्आन) पर ईमान लाओ, जो मैंने उतारा है, वह उसका प्रमाणकारी है, जो तुम्हारे पास[1] है और तुम, सबसे पहले इसके निवर्ती न बन जाओ तथा मेरी आयतों को तनिक मूल्य पर न बेचो और केवल मुझी से डरो।
Surah Al-Baqara, Verse 41
وَلَا تَلۡبِسُواْ ٱلۡحَقَّ بِٱلۡبَٰطِلِ وَتَكۡتُمُواْ ٱلۡحَقَّ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ
तथा सत्य को असत्य से न मिलाओ और न सत्य को जानते हुए छुपाओ।
Surah Al-Baqara, Verse 42
وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱرۡكَعُواْ مَعَ ٱلرَّـٰكِعِينَ
तथा नमाज़ की स्थापना करो और ज़कात दो तथा झुकने वालों के साथ झुको (रुकू करो)
Surah Al-Baqara, Verse 43
۞أَتَأۡمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلۡبِرِّ وَتَنسَوۡنَ أَنفُسَكُمۡ وَأَنتُمۡ تَتۡلُونَ ٱلۡكِتَٰبَۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
क्या तुम, लोगों को सदाचार का आदेश देते हो और अपने-आपको भूल जाते हो? जबकि तुम पुस्तक (तौरात) का अध्ययन करते हो! क्या तुम समझ नहीं रखते
Surah Al-Baqara, Verse 44
وَٱسۡتَعِينُواْ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ وَإِنَّهَا لَكَبِيرَةٌ إِلَّا عَلَى ٱلۡخَٰشِعِينَ
तथा धैर्य और नमाज़ का सहारा लो, निश्चय नमाज़ भारी है, परन्तु विनीतों पर (भारी नहीं)।
Surah Al-Baqara, Verse 45
ٱلَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَٰقُواْ رَبِّهِمۡ وَأَنَّهُمۡ إِلَيۡهِ رَٰجِعُونَ
जो समझते हैं कि उन्हें अपने पालनहार से मिलना है और उन्हें फिर उसी की ओर (अपने कर्मों का फल भोगने के लिए) जाना है।
Surah Al-Baqara, Verse 46
يَٰبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِيَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ وَأَنِّي فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ
हे बनी इस्राईल! मेरे उस पुरस्कार को याद करो, जो मैंने तुमपर किया और ये कि तुम्हें संसार वासियों पर प्रधानता दी थी।
Surah Al-Baqara, Verse 47
وَٱتَّقُواْ يَوۡمٗا لَّا تَجۡزِي نَفۡسٌ عَن نَّفۡسٖ شَيۡـٔٗا وَلَا يُقۡبَلُ مِنۡهَا شَفَٰعَةٞ وَلَا يُؤۡخَذُ مِنۡهَا عَدۡلٞ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ
तथा उस दिन से डरो, जिस दिन कोई किसी के कुछ काम नहीं आयेगा और न उसकी कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) मानी जायेगी और न उससे कोई अर्थदण्ड लिया जायेगा और न उन्हें कोई सहायता मिल सकेगी।
Surah Al-Baqara, Verse 48
وَإِذۡ نَجَّيۡنَٰكُم مِّنۡ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ يَسُومُونَكُمۡ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ يُذَبِّحُونَ أَبۡنَآءَكُمۡ وَيَسۡتَحۡيُونَ نِسَآءَكُمۡۚ وَفِي ذَٰلِكُم بَلَآءٞ مِّن رَّبِّكُمۡ عَظِيمٞ
तथा (वह समय याद करो) जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों[1] से मुक्ति दिलाई। वे तुम्हें कड़ी यातना दे रहे थे; वे तुम्हारे पुत्रों को वध कर रहे थे तथा तुम्हारी नारियों को जीवित रहने देते थे। इसमें तुम्हारे पालनहार की ओर से कड़ी परीक्षा थी।
Surah Al-Baqara, Verse 49
وَإِذۡ فَرَقۡنَا بِكُمُ ٱلۡبَحۡرَ فَأَنجَيۡنَٰكُمۡ وَأَغۡرَقۡنَآ ءَالَ فِرۡعَوۡنَ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ
तथा (याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए सागर को फाड़ दिया, फिर तुम्हें बचा लिया और तुम्हारे देखते-देखते फ़िरऔनियों को डुबो दिया।
Surah Al-Baqara, Verse 50
وَإِذۡ وَٰعَدۡنَا مُوسَىٰٓ أَرۡبَعِينَ لَيۡلَةٗ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَٰلِمُونَ
तथा (याद करो) जब हमने मूसा को (तौरात प्रदान करने के लिए) चालीस रात्रि का वचन दिया, फिर उनके पीछे तुमने बछड़े को (पूज्य) बना लिया और तुम अत्याचारी थे।
Surah Al-Baqara, Verse 51
ثُمَّ عَفَوۡنَا عَنكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
फिर हमने इसके पश्चात् तुम्हें क्षमा कर दिया, ताकि तुम कृतज्ञ बनो।
Surah Al-Baqara, Verse 52
وَإِذۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡفُرۡقَانَ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ
तथा (याद करो) जब हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) तथा फ़ुर्क़ान[1] प्रदान किया, ताकि तुम सीधी डगर पा सको।
Surah Al-Baqara, Verse 53
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ يَٰقَوۡمِ إِنَّكُمۡ ظَلَمۡتُمۡ أَنفُسَكُم بِٱتِّخَاذِكُمُ ٱلۡعِجۡلَ فَتُوبُوٓاْ إِلَىٰ بَارِئِكُمۡ فَٱقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ ذَٰلِكُمۡ خَيۡرٞ لَّكُمۡ عِندَ بَارِئِكُمۡ فَتَابَ عَلَيۡكُمۡۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ
तथा (याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति से कहाः तुमने बछड़े को पूज्य बनाकर अपने ऊपर अत्याचार किया है, अतः तुम अपने उत्पत्तिकार के आगे क्षमा याचना करो, वो ये कि आपस में एक-दूसरे[1] को वध करो। इसी में तुम्हारे उत्पत्तिकार के समीप तुम्हारी भलाई है। फिर उसने तुम्हारी तौबा स्वीकार कर ली। वास्तव में, वह बड़ा क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 54
وَإِذۡ قُلۡتُمۡ يَٰمُوسَىٰ لَن نُّؤۡمِنَ لَكَ حَتَّىٰ نَرَى ٱللَّهَ جَهۡرَةٗ فَأَخَذَتۡكُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ
तथा (याद करो) जब तुमने मूसा से कहाः हम तुम्हारा विश्वास नहीं करेंगे, जब तक हम अल्लाह को आँखों से देख नहीं लेंगे, फिर तुम्हारे देखते-देखते तुम्हें कड़क ने धर लिया (जिससे सब निर्जीव हो कर गिर गये)।
Surah Al-Baqara, Verse 55
ثُمَّ بَعَثۡنَٰكُم مِّنۢ بَعۡدِ مَوۡتِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
फिर (निर्जीव होने के पश्चात्) हमने तुम्हें जीवित कर दिया, ताकि तुम हमारा उपकार मानो।
Surah Al-Baqara, Verse 56
وَظَلَّلۡنَا عَلَيۡكُمُ ٱلۡغَمَامَ وَأَنزَلۡنَا عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَنَّ وَٱلسَّلۡوَىٰۖ كُلُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا رَزَقۡنَٰكُمۡۚ وَمَا ظَلَمُونَا وَلَٰكِن كَانُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ
और हमने तुमपर बादलों की छाँव[1] की तथा तुमपर 'मन्न'[2] और 'सलवा' उतारा, तो उन स्वच्छ चीज़ों में से, जो हमने तुम्हें प्रदान की हैं, खाओ और उन्होंने हमपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर ही अत्याचार कर रहे थे।
Surah Al-Baqara, Verse 57
وَإِذۡ قُلۡنَا ٱدۡخُلُواْ هَٰذِهِ ٱلۡقَرۡيَةَ فَكُلُواْ مِنۡهَا حَيۡثُ شِئۡتُمۡ رَغَدٗا وَٱدۡخُلُواْ ٱلۡبَابَ سُجَّدٗا وَقُولُواْ حِطَّةٞ نَّغۡفِرۡ لَكُمۡ خَطَٰيَٰكُمۡۚ وَسَنَزِيدُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
और (याद करो) जब हमने कहा कि इस बस्ती[1] में प्रवेश करो, फिर इसमें से जहाँ से चाहो, मनमानी खाओ और उसके द्वार में सज्दा करते (सिर झुकाये) हुए प्रवेश करो और क्षमा-क्षमा कहते जाओ, हम तुम्हारे पापों को क्षमा कर देंगे तथा सुकर्मियों को अधिक प्रदान करेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 58
فَبَدَّلَ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ قَوۡلًا غَيۡرَ ٱلَّذِي قِيلَ لَهُمۡ فَأَنزَلۡنَا عَلَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ رِجۡزٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِ بِمَا كَانُواْ يَفۡسُقُونَ
फिर इन अत्याचारियों ने जो बात इनसे कही गयी थी, उसे दूसरी बात से बदल दिया। तो हमने इन अत्याचारियों पर आकाश से इनकी अवज्ञा के कारण प्रकोप उतार दिया।
Surah Al-Baqara, Verse 59
۞وَإِذِ ٱسۡتَسۡقَىٰ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦ فَقُلۡنَا ٱضۡرِب بِّعَصَاكَ ٱلۡحَجَرَۖ فَٱنفَجَرَتۡ مِنۡهُ ٱثۡنَتَا عَشۡرَةَ عَيۡنٗاۖ قَدۡ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسٖ مَّشۡرَبَهُمۡۖ كُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ مِن رِّزۡقِ ٱللَّهِ وَلَا تَعۡثَوۡاْ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُفۡسِدِينَ
तथा (याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति के लिए जल की प्रार्थना की, तो हमने कहाः अपनी लाठी पत्थर पर मारो। तो उससे बारह[1] सोते फूट पड़े और प्रत्येक परिवार ने अपने पीने के स्थान को पहचान लिया। अल्लाह का दिया खाओ और पिओ और धरती में उपद्रव करते न फिरो।
Surah Al-Baqara, Verse 60
وَإِذۡ قُلۡتُمۡ يَٰمُوسَىٰ لَن نَّصۡبِرَ عَلَىٰ طَعَامٖ وَٰحِدٖ فَٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُخۡرِجۡ لَنَا مِمَّا تُنۢبِتُ ٱلۡأَرۡضُ مِنۢ بَقۡلِهَا وَقِثَّآئِهَا وَفُومِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَاۖ قَالَ أَتَسۡتَبۡدِلُونَ ٱلَّذِي هُوَ أَدۡنَىٰ بِٱلَّذِي هُوَ خَيۡرٌۚ ٱهۡبِطُواْ مِصۡرٗا فَإِنَّ لَكُم مَّا سَأَلۡتُمۡۗ وَضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلذِّلَّةُ وَٱلۡمَسۡكَنَةُ وَبَآءُو بِغَضَبٖ مِّنَ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانُواْ يَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقۡتُلُونَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ يَعۡتَدُونَ
तथा (याद करो) जब तुमने कहाः हे मूसा! हम एक प्रकार का खाना सहन नहीं करेंगे। तुम अपने पालनहार से प्रार्थना करो कि हमारे लिए धरती की उपज; साग, ककड़ी, लहसुन, प्याज़, दाल आदि निकाले। (मूसा ने) कहाः क्या तुम उत्तम के बदले तुच्छ मांगते हो? तो किसी नगर में उतर पड़ो, जो तुमने मांगा है, वहाँ वह मिलेगा! और उनपर अपमान तथा दरिद्रता थोप दी गयी और वे अल्लाह के प्रकोप के साथ फिरे। ये इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र कर रहे थे और नबियों की अकारण हत्या कर रहे थे। ये इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की तथा (धर्म की) सीमा का उल्लंघन किया।
Surah Al-Baqara, Verse 61
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِينَ هَادُواْ وَٱلنَّصَٰرَىٰ وَٱلصَّـٰبِـِٔينَ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
वस्तुतः, जो ईमान लाये तथा जो यहूदी हुए और नसारा (ईसाई) तथा साबी, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा और सत्कर्म करेगा, उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उन्हें कोई डर नहीं होगा और न ही वे उदासीन होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 62
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُواْ مَآ ءَاتَيۡنَٰكُم بِقُوَّةٖ وَٱذۡكُرُواْ مَا فِيهِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ
और (याद करो) जब हमने तूर (पर्वत) को तुम्हारे ऊपर करके तुमसे वचन लिया कि जो हमने तुम्हें दिया है, उसे दृढ़ता से पकड़ लो और उसमें जो (आदेश-निर्देश) हैं, उन्हें याद रखो; ताकि तुम यातना से बच सको।
Surah Al-Baqara, Verse 63
ثُمَّ تَوَلَّيۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَۖ فَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ لَكُنتُم مِّنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
फिर उसके बाद तुम मुकर गये, तो यदि तुमपर अल्लाह की अनुग्रह और दया न होती, तो तुम क्षतिग्रस्तों में हो जाते।
Surah Al-Baqara, Verse 64
وَلَقَدۡ عَلِمۡتُمُ ٱلَّذِينَ ٱعۡتَدَوۡاْ مِنكُمۡ فِي ٱلسَّبۡتِ فَقُلۡنَا لَهُمۡ كُونُواْ قِرَدَةً خَٰسِـِٔينَ
और तुम उन्हें जानते ही हो, जिन्होंने शनिवार के बारे में (धर्म की) सीमा का उल्लंघन किया, तो हमने कहा कि तुम तिरस्कृत बंदर[1] हो जाओ।
Surah Al-Baqara, Verse 65
فَجَعَلۡنَٰهَا نَكَٰلٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهَا وَمَا خَلۡفَهَا وَمَوۡعِظَةٗ لِّلۡمُتَّقِينَ
फिर हमने उसे, उस समय के तथा बाद के लोगों के लिए चेतावनी और अल्लाह से डरने वालों के लिए शिक्षा बना दिया।
Surah Al-Baqara, Verse 66
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِۦٓ إِنَّ ٱللَّهَ يَأۡمُرُكُمۡ أَن تَذۡبَحُواْ بَقَرَةٗۖ قَالُوٓاْ أَتَتَّخِذُنَا هُزُوٗاۖ قَالَ أَعُوذُ بِٱللَّهِ أَنۡ أَكُونَ مِنَ ٱلۡجَٰهِلِينَ
तथा (याद करो) जब मूसा ने अपनी जाति से कहाः अल्लाह तुम्हें एक गाय वध करने का आदेश देता है। उन्होंने कहाः क्या तुम हमसे उपहास कर रहे हो? (मूसा ने) कहाः मैं अल्लाह की शरण माँगता हूँ कि मूर्खों में से हो जाऊँ।
Surah Al-Baqara, Verse 67
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا هِيَۚ قَالَ إِنَّهُۥ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٞ لَّا فَارِضٞ وَلَا بِكۡرٌ عَوَانُۢ بَيۡنَ ذَٰلِكَۖ فَٱفۡعَلُواْ مَا تُؤۡمَرُونَ
वह बोले कि अपने पालनहार से हमारे लिए निवेदन करो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो? (मूसा ने) कहाः वह (अर्थातःअल्लाह) कहता है कि वह न बूढ़ी हो और न बछिया हो, इसके बीच आयु की हो। अतः जो आदेश तुम्हें दिया जा रहा है, उसे पूरा करो।
Surah Al-Baqara, Verse 68
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا لَوۡنُهَاۚ قَالَ إِنَّهُۥ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٞ صَفۡرَآءُ فَاقِعٞ لَّوۡنُهَا تَسُرُّ ٱلنَّـٰظِرِينَ
वे बोले कि अपने पालनहार से हमारे लिए निवेदन करो कि हमें उसका रंग बता दे। (मूसा ने) कहाः वह कहता है कि पीले गहरे रंग की गाय हो, जो देखने वालों को प्रसन्न कर दे।
Surah Al-Baqara, Verse 69
قَالُواْ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّن لَّنَا مَا هِيَ إِنَّ ٱلۡبَقَرَ تَشَٰبَهَ عَلَيۡنَا وَإِنَّآ إِن شَآءَ ٱللَّهُ لَمُهۡتَدُونَ
वे बोले कि अपने पालनहार से हमारे लिए निवेदन करो कि हमें बताये कि वह किस प्रकार की हो? वास्तव में, हम गाय के बारे में दुविधा में पड़ गये हैं और यदि अल्लाह ने चाहा तो हम (उस गाय का) पता लगा लेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 70
قَالَ إِنَّهُۥ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٞ لَّا ذَلُولٞ تُثِيرُ ٱلۡأَرۡضَ وَلَا تَسۡقِي ٱلۡحَرۡثَ مُسَلَّمَةٞ لَّا شِيَةَ فِيهَاۚ قَالُواْ ٱلۡـَٰٔنَ جِئۡتَ بِٱلۡحَقِّۚ فَذَبَحُوهَا وَمَا كَادُواْ يَفۡعَلُونَ
मूसा बोलेः वह कहता है कि वह ऐसी गाय हो, जो सेवा कार्य न करती हो, न खेत (भूमि) जोतती हो और न खेत सींचती हो, वह स्वस्थ हो और उसमें कोई धब्बा न हो। वे बोलेः अब तुमने उचित बात बताई है। फिर उन्होंने उसे वध कर दिया। जबकि वे समीप थे कि ये काम न करें।
Surah Al-Baqara, Verse 71
وَإِذۡ قَتَلۡتُمۡ نَفۡسٗا فَٱدَّـٰرَ ٰٔتُمۡ فِيهَاۖ وَٱللَّهُ مُخۡرِجٞ مَّا كُنتُمۡ تَكۡتُمُونَ
और (याद करो) जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी तथा एक-दूसरे पर (दोष) थोपने लगे और अल्लाह को उसे व्यक्त करना था, जिसे तुम छुपा रहे थे।
Surah Al-Baqara, Verse 72
فَقُلۡنَا ٱضۡرِبُوهُ بِبَعۡضِهَاۚ كَذَٰلِكَ يُحۡيِ ٱللَّهُ ٱلۡمَوۡتَىٰ وَيُرِيكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ
अतः हमने कहा कि उसे (निहत व्यक्ति के शव को) उस (गाय) के किसी भाग से मारो।[1] इसी प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करेगा और वह तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है; ताकि तुम समझो।
Surah Al-Baqara, Verse 73
ثُمَّ قَسَتۡ قُلُوبُكُم مِّنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ فَهِيَ كَٱلۡحِجَارَةِ أَوۡ أَشَدُّ قَسۡوَةٗۚ وَإِنَّ مِنَ ٱلۡحِجَارَةِ لَمَا يَتَفَجَّرُ مِنۡهُ ٱلۡأَنۡهَٰرُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا يَشَّقَّقُ فَيَخۡرُجُ مِنۡهُ ٱلۡمَآءُۚ وَإِنَّ مِنۡهَا لَمَا يَهۡبِطُ مِنۡ خَشۡيَةِ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ
फिर ये (निशानियाँ देखने) के बाद तुम्हारे दिल पत्थरों के समान या उनसे भी अधिक कठोर हो गये; क्योंकि पत्थरों में कुछ ऐसे होते हैं, जिनसे नहरें फूट पड़ती हैं और कुछ फट जाते हैं और उनसे पानी निकल आता है और कुछ अल्लाह के डर से गिर पड़ते हैं और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से निश्चेत नहीं है।
Surah Al-Baqara, Verse 74
۞أَفَتَطۡمَعُونَ أَن يُؤۡمِنُواْ لَكُمۡ وَقَدۡ كَانَ فَرِيقٞ مِّنۡهُمۡ يَسۡمَعُونَ كَلَٰمَ ٱللَّهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُۥ مِنۢ بَعۡدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
क्या तुम आशा रखते हो कि (यहूदी) तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें एक गिरोह ऐसा था, जो अल्लाह की वाणी (तौरात) को सुनता था और समझ जाने के बाद जान-बूझ कर उसमें परिवर्तण कर देता था
Surah Al-Baqara, Verse 75
وَإِذَا لَقُواْ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَا بَعۡضُهُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٖ قَالُوٓاْ أَتُحَدِّثُونَهُم بِمَا فَتَحَ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمۡ لِيُحَآجُّوكُم بِهِۦ عِندَ رَبِّكُمۡۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
तथा जब वे ईमान वालों से मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम भी ईमान लाये और जब एकान्त में आपस में एक-दूसरे से मिलते हैं, तो कहते हैं कि तुम उन्हें वो बातें क्यों बताते हो, जो अल्लाह ने तुमपर खोली[1] हैं? इसलिए कि प्रलय के दिन तुम्हारे पालनहार के पास इसे तुम्हारे विरुध्द प्रमाण बनायें? क्या तुम समझते नहीं हो
Surah Al-Baqara, Verse 76
أَوَلَا يَعۡلَمُونَ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعۡلِنُونَ
क्या वे नहीं जानते कि वे जो कुछ छुपाते तथा व्यक्त करते हैं, वो सब अल्लाह जानता है
Surah Al-Baqara, Verse 77
وَمِنۡهُمۡ أُمِّيُّونَ لَا يَعۡلَمُونَ ٱلۡكِتَٰبَ إِلَّآ أَمَانِيَّ وَإِنۡ هُمۡ إِلَّا يَظُنُّونَ
तथा उनमें कुछ अनपढ़ हैं, वे पुस्तक (तौरात) का ज्ञान नहीं रखते, परन्तु निराधार कामनायें करते तथा केवल अनुमान लगाते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 78
فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ يَكۡتُبُونَ ٱلۡكِتَٰبَ بِأَيۡدِيهِمۡ ثُمَّ يَقُولُونَ هَٰذَا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ لِيَشۡتَرُواْ بِهِۦ ثَمَنٗا قَلِيلٗاۖ فَوَيۡلٞ لَّهُم مِّمَّا كَتَبَتۡ أَيۡدِيهِمۡ وَوَيۡلٞ لَّهُم مِّمَّا يَكۡسِبُونَ
तो विनाश है उनके लिए[1] जो अपने हाथों से पुस्तक लिखते हैं, फिर कहते हैं कि ये अल्लाह की ओर से है, ताकि उसके द्वारा तनिक मूल्य खरीदें! तो विनाश है उनके अपने हाथों के लेख के कारण! और विनाश है उनकी कमाई के कारण
Surah Al-Baqara, Verse 79
وَقَالُواْ لَن تَمَسَّنَا ٱلنَّارُ إِلَّآ أَيَّامٗا مَّعۡدُودَةٗۚ قُلۡ أَتَّخَذۡتُمۡ عِندَ ٱللَّهِ عَهۡدٗا فَلَن يُخۡلِفَ ٱللَّهُ عَهۡدَهُۥٓۖ أَمۡ تَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ
तथा उन्होंने कहा कि हमें नरक की अग्नि गिनती के कुछ दिनों के सिवा स्पर्श नहीं करेगी। (हे नबी!) उनसे कहो कि क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले लिया है कि अल्लाह अपना वचन भंग नहीं करेगा? बल्कि तुम अल्लाह के बारे में ऐसी बातें करते हो, जिनका तुम्हें ज्ञान नहीं।
Surah Al-Baqara, Verse 80
بَلَىٰۚ مَن كَسَبَ سَيِّئَةٗ وَأَحَٰطَتۡ بِهِۦ خَطِيٓـَٔتُهُۥ فَأُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
क्यों[1] नहीं, जो भी बुराई कमायेगा तथा उसका पाप उसे घेर लेगा, तो वही नारकीय हैं और वही उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 81
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلۡجَنَّةِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
तथा जो ईमान लायें और सत्कर्म करें, वही स्वर्गीय हैं और वे उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 82
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ لَا تَعۡبُدُونَ إِلَّا ٱللَّهَ وَبِٱلۡوَٰلِدَيۡنِ إِحۡسَانٗا وَذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَقُولُواْ لِلنَّاسِ حُسۡنٗا وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ ثُمَّ تَوَلَّيۡتُمۡ إِلَّا قَلِيلٗا مِّنكُمۡ وَأَنتُم مُّعۡرِضُونَ
और (याद करो) जब हमने बनी इस्राईल से दृढ़ वचन लिया कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) नहीं करोगे तथा माता-पिता के साथ उपकार करोगे और समीपवर्ती संबंधियों, अनाथों, दीन-दुखियों के साथ और लोगों से भली बात बोलोगे तथा नमाज़ की स्थापना करोगे और ज़कात दोगे, फिर तुममें से थोड़े के सिवा सबने मुँह फेर लिया और तुम (अभी भी) मुँह फेरे हुए हो।
Surah Al-Baqara, Verse 83
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَكُمۡ لَا تَسۡفِكُونَ دِمَآءَكُمۡ وَلَا تُخۡرِجُونَ أَنفُسَكُم مِّن دِيَٰرِكُمۡ ثُمَّ أَقۡرَرۡتُمۡ وَأَنتُمۡ تَشۡهَدُونَ
तथा (याद करो) जब हमने तुमसे दृढ़ वचन लिया कि आपस में रक्तपात नहीं करोगे और न अपनों को अपने घरों से निकालोगे। फिर तुमने स्वीकार किया और तुम उसके साक्षी हो।
Surah Al-Baqara, Verse 84
ثُمَّ أَنتُمۡ هَـٰٓؤُلَآءِ تَقۡتُلُونَ أَنفُسَكُمۡ وَتُخۡرِجُونَ فَرِيقٗا مِّنكُم مِّن دِيَٰرِهِمۡ تَظَٰهَرُونَ عَلَيۡهِم بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَٰنِ وَإِن يَأۡتُوكُمۡ أُسَٰرَىٰ تُفَٰدُوهُمۡ وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَيۡكُمۡ إِخۡرَاجُهُمۡۚ أَفَتُؤۡمِنُونَ بِبَعۡضِ ٱلۡكِتَٰبِ وَتَكۡفُرُونَ بِبَعۡضٖۚ فَمَا جَزَآءُ مَن يَفۡعَلُ ذَٰلِكَ مِنكُمۡ إِلَّا خِزۡيٞ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يُرَدُّونَ إِلَىٰٓ أَشَدِّ ٱلۡعَذَابِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ
फिर[1] तुम वही हो, जो अपनों की हत्या कर रहे हो तथा अपनों में से एक गिरोह को उनके घरों से निकाल रहे हो और पाप तथा अत्याचार के साथ उनके विरुध्द सहायता करते हो और यदि वे बंदी होकर तुम्हारे पास आयें, तो उनका अर्थदण्ड चुकाते हो, जबकि उन्हें निकालना ही तुमपर ह़राम (अवैध) था, तो क्या तुम पुस्तक के कुछ भाग पर ईमान रखते हो और कुछ का इन्कार करते हो? फिर तुममें से जो ऐसा करते हों, तो उनका दण्ड क्या है, इसके सिवा कि सांसारिक जीवन में अपमान तथा प्रलय के दिन अति कड़ी यातना की ओर फेरे जायें? और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से निश्चेत नहीं है
Surah Al-Baqara, Verse 85
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا بِٱلۡأٓخِرَةِۖ فَلَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ
उन्होंने ही आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन ख़रीद लिया। अतः उनसे यातना मंद नहीं की जायेगी और न उनकी सहायता की जायेगी।
Surah Al-Baqara, Verse 86
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ وَقَفَّيۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِۦ بِٱلرُّسُلِۖ وَءَاتَيۡنَا عِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ ٱلۡبَيِّنَٰتِ وَأَيَّدۡنَٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ أَفَكُلَّمَا جَآءَكُمۡ رَسُولُۢ بِمَا لَا تَهۡوَىٰٓ أَنفُسُكُمُ ٱسۡتَكۡبَرۡتُمۡ فَفَرِيقٗا كَذَّبۡتُمۡ وَفَرِيقٗا تَقۡتُلُونَ
तथा हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की और उसके पश्चात् निरन्तर रसूल भेजे और हमने मर्यम के पुत्र ईसा को खुली निशानियाँ दीं और रूह़ुल क़ुदुस[1] द्वारा उसे समर्थन दिया, तो क्या जब भी कोई रसूल तुम्हारी अपनी मनमानी के विरुध्द कोई बात तुम्हारे पास लेकर आया, तो तुम अकड़ गये, अतः कुछ नबियों को झुठला दिया और कुछ की हत्या करने लगे
Surah Al-Baqara, Verse 87
وَقَالُواْ قُلُوبُنَا غُلۡفُۢۚ بَل لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفۡرِهِمۡ فَقَلِيلٗا مَّا يُؤۡمِنُونَ
तथा उन्होंने कहा कि हमारे दिल तो बंद[1] हैं। बल्कि उनके कुफ़्र (इन्कार) के कारण अल्लाह ने उन्हें धिक्कार दिया है। इसीलिए उनमें से बहुत थोड़े ही ईमान लाते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 88
وَلَمَّا جَآءَهُمۡ كِتَٰبٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقٞ لِّمَا مَعَهُمۡ وَكَانُواْ مِن قَبۡلُ يَسۡتَفۡتِحُونَ عَلَى ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَلَمَّا جَآءَهُم مَّا عَرَفُواْ كَفَرُواْ بِهِۦۚ فَلَعۡنَةُ ٱللَّهِ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ
और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक पुस्तक (क़ुर्आन) आ गयी, जो उनके साथ की पुस्तक का प्रमाणकारी है, जबकि इससे पूर्व वे स्वयं काफ़िरों पर विजय की प्रार्थना कर रहे थे, तो जब उनके पास वह चीज़ आ गयी, जिसे वे पहचान भी गये, फिर भी उसका इन्कार कर[1] दिया, तो काफ़िरों पर अल्लाह की धिक्कार है।
Surah Al-Baqara, Verse 89
بِئۡسَمَا ٱشۡتَرَوۡاْ بِهِۦٓ أَنفُسَهُمۡ أَن يَكۡفُرُواْ بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ بَغۡيًا أَن يُنَزِّلَ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۖ فَبَآءُو بِغَضَبٍ عَلَىٰ غَضَبٖۚ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٞ مُّهِينٞ
अल्लाह की उतारी हुई (पुस्तक)[1] का इन्कार करके बुरे बदले पर इन्होंने अपने प्राणों को बेच दिया, इस द्वेष के कारण कि अल्लाह ने अपना प्रदान (प्रकाशना), अपने जिस भक्त[1] पर चाहा, उतार दिया। अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी बन गये और ऐसे काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना है।
Surah Al-Baqara, Verse 90
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ ءَامِنُواْ بِمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ نُؤۡمِنُ بِمَآ أُنزِلَ عَلَيۡنَا وَيَكۡفُرُونَ بِمَا وَرَآءَهُۥ وَهُوَ ٱلۡحَقُّ مُصَدِّقٗا لِّمَا مَعَهُمۡۗ قُلۡ فَلِمَ تَقۡتُلُونَ أَنۢبِيَآءَ ٱللَّهِ مِن قَبۡلُ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने जो उतारा[1] है, उसपर ईमन लाओ, तो कहते हैं: हम तो उसीपर ईमान रखते हैं, जो हमपर उतरा है और इसके सिवा जो कुछ है, उसका इन्कार करते हैं। जबकि वह सत्य है और उसका प्रमाण्कारी है, जो उनके पास है। कहो कि फिर इससे पूर्व अल्लाह के नबियों की हत्या क्यों करते थे, यदि तुम ईमान वाले थे तो
Surah Al-Baqara, Verse 91
۞وَلَقَدۡ جَآءَكُم مُّوسَىٰ بِٱلۡبَيِّنَٰتِ ثُمَّ ٱتَّخَذۡتُمُ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِهِۦ وَأَنتُمۡ ظَٰلِمُونَ
तथा मूसा तुम्हारे पास खुली निशानियाँ लेकर आये। फिर तुमने अत्याचार करते हुए बछड़े को पूज्य बना लिया।
Surah Al-Baqara, Verse 92
وَإِذۡ أَخَذۡنَا مِيثَٰقَكُمۡ وَرَفَعۡنَا فَوۡقَكُمُ ٱلطُّورَ خُذُواْ مَآ ءَاتَيۡنَٰكُم بِقُوَّةٖ وَٱسۡمَعُواْۖ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَعَصَيۡنَا وَأُشۡرِبُواْ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلۡعِجۡلَ بِكُفۡرِهِمۡۚ قُلۡ بِئۡسَمَا يَأۡمُرُكُم بِهِۦٓ إِيمَٰنُكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
फिर उस दृढ़ वचन को याद करो, जो हमने तुम्हारे ऊपर तूर (पर्वत) को उठाकर लिया। (हमने कहाः) पकड़ लो, जो हमने दिया है तुम्हें दृढ़ता से और सुनो। तो उन्होंने कहाः हमने सुना और अवज्ञा की। और उनके दिलों में बछड़े का प्रेम पिला दिया गया, उनकी अवज्ञा के कारण। (हे नबी!) आप कह दीजियेः बुरा है वह जिसका आदेश दे रहा है तुम्हें तुम्हारा ईमान, यदि तुम ईमान वाले हो।
Surah Al-Baqara, Verse 93
قُلۡ إِن كَانَتۡ لَكُمُ ٱلدَّارُ ٱلۡأٓخِرَةُ عِندَ ٱللَّهِ خَالِصَةٗ مِّن دُونِ ٱلنَّاسِ فَتَمَنَّوُاْ ٱلۡمَوۡتَ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
(हे नबी!) आप कह दीजियेः यदि तुम्हारे लिये विशेष है परलोक का घर सारे लोगों को छोड़कर, तो तुम कामना करो मौत की, यदि तुम सत्यवादी हो।
Surah Al-Baqara, Verse 94
وَلَن يَتَمَنَّوۡهُ أَبَدَۢا بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلظَّـٰلِمِينَ
और वे कदापि उसकी कामना नहीं करेंगे, उनके कर्तूतों के कारण और अल्लाह अत्याचारियों से अधिक सूचित है।
Surah Al-Baqara, Verse 95
وَلَتَجِدَنَّهُمۡ أَحۡرَصَ ٱلنَّاسِ عَلَىٰ حَيَوٰةٖ وَمِنَ ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُواْۚ يَوَدُّ أَحَدُهُمۡ لَوۡ يُعَمَّرُ أَلۡفَ سَنَةٖ وَمَا هُوَ بِمُزَحۡزِحِهِۦ مِنَ ٱلۡعَذَابِ أَن يُعَمَّرَۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا يَعۡمَلُونَ
तुम इन्हें, सबसे बढ़कर जीने का लोभी पाओगे और मिश्रणवादियों से (भी)। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे एक-एक हज़ार वर्ष की आयु मिल जाये। ह़ालाँकि ये (लम्बी) आयु भी उसे यातना से बचा नहीं सकती और अल्लाह देखने वाला है जो वे कर रहे हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 96
قُلۡ مَن كَانَ عَدُوّٗا لِّـجِبۡرِيلَ فَإِنَّهُۥ نَزَّلَهُۥ عَلَىٰ قَلۡبِكَ بِإِذۡنِ ٱللَّهِ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَهُدٗى وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُؤۡمِنِينَ
(हे नबी!)[1] कह दो कि जो व्यक्ति जिब्रील का शत्रु है, (तो रहे)। उसने तो अल्लाह की अनुमति से इस संदेश (क़ुर्आन) को आपके दिल पर उतारा है, जो इससे पूर्व की सभी पुस्तकों का प्रमाणकारी तथा ईमान वालों के लिए मार्गदर्शन एवं (सफलता) का शुभ समाचार है।
Surah Al-Baqara, Verse 97
مَن كَانَ عَدُوّٗا لِّلَّهِ وَمَلَـٰٓئِكَتِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَجِبۡرِيلَ وَمِيكَىٰلَ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَدُوّٞ لِّلۡكَٰفِرِينَ
जो अल्लाह तथा उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिब्रील तथा मीकाईल का शत्रु हो, तो अल्लाह (उन) काफ़िरों का शत्रु है।
Surah Al-Baqara, Verse 98
وَلَقَدۡ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖۖ وَمَا يَكۡفُرُ بِهَآ إِلَّا ٱلۡفَٰسِقُونَ
और (हे नबी!) हमने आप पर खुली आयतें उतारी हैं और इनका इन्कार केवल वही लोग[1] करेंगे, जो कुकर्मी हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 99
أَوَكُلَّمَا عَٰهَدُواْ عَهۡدٗا نَّبَذَهُۥ فَرِيقٞ مِّنۡهُمۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ
क्या ऐसा नहीं हुआ है कि जब कभी उन्होंने कोई वचन दिया, तो उनके एक गिरोह ने उसे भंग कर दिया? बल्कि इनमें बहुतेरे ऐसे हैं, जो ईमान नहीं रखते।
Surah Al-Baqara, Verse 100
وَلَمَّا جَآءَهُمۡ رَسُولٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ مُصَدِّقٞ لِّمَا مَعَهُمۡ نَبَذَ فَرِيقٞ مِّنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ كِتَٰبَ ٱللَّهِ وَرَآءَ ظُهُورِهِمۡ كَأَنَّهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
तथा जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल, उस पुस्तक का समर्थन करते हुए, जो उनके पास है, आ गया,[1] तो उनके एक समुदाय ने जिनहें पुस्तक दी गयी, अल्लाह की पुस्तक को ऐसे पीछे डाल दिया, जैसे वे कुछ जानते ही न हों।
Surah Al-Baqara, Verse 101
وَٱتَّبَعُواْ مَا تَتۡلُواْ ٱلشَّيَٰطِينُ عَلَىٰ مُلۡكِ سُلَيۡمَٰنَۖ وَمَا كَفَرَ سُلَيۡمَٰنُ وَلَٰكِنَّ ٱلشَّيَٰطِينَ كَفَرُواْ يُعَلِّمُونَ ٱلنَّاسَ ٱلسِّحۡرَ وَمَآ أُنزِلَ عَلَى ٱلۡمَلَكَيۡنِ بِبَابِلَ هَٰرُوتَ وَمَٰرُوتَۚ وَمَا يُعَلِّمَانِ مِنۡ أَحَدٍ حَتَّىٰ يَقُولَآ إِنَّمَا نَحۡنُ فِتۡنَةٞ فَلَا تَكۡفُرۡۖ فَيَتَعَلَّمُونَ مِنۡهُمَا مَا يُفَرِّقُونَ بِهِۦ بَيۡنَ ٱلۡمَرۡءِ وَزَوۡجِهِۦۚ وَمَا هُم بِضَآرِّينَ بِهِۦ مِنۡ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَيَتَعَلَّمُونَ مَا يَضُرُّهُمۡ وَلَا يَنفَعُهُمۡۚ وَلَقَدۡ عَلِمُواْ لَمَنِ ٱشۡتَرَىٰهُ مَا لَهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِنۡ خَلَٰقٖۚ وَلَبِئۡسَ مَا شَرَوۡاْ بِهِۦٓ أَنفُسَهُمۡۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ
तथा सुलैमान के राज्य में शैतान जो मिथ्या बातें बना रहे थे, उनका अनुसरण करने लगे। जबकि सुलैमान ने कभी कुफ़्र (जादू) नहीं किया, परन्तु कुफ़्र तो शैतानों ने किया, जो लोगों को जादू सिखा रहे थे तथा वे उन बातों का (अनुसरण करने लगे) जो बाबिल (नगर) के दो फ़रिश्तों; हारूत और मारूत पर उतारी गयीं, जबकि वे दोनों किसी को जादू नहीं सिखाते, जब तक ये न कह देते कि हम केवल एक परीक्षा हैं, अतः, तू कुफ़्र में न पड़। फिर भी वे उन दोनों से वो चीज़ सीखते, जिसके द्वारा वे पति और पत्नी के बीच जुदाई डाल दें और वे अल्लाह की अनुमति बिना इसके द्वारा किसी को कोई हानि नहीं पहुँचा सकते थे, परन्तु फिर भी ऐसी बातें सीखते थे, जो उनके लिए हानिकारक हों और लाभकारी न हों और वे भली-भाँति जानते थे कि जो इसका ख़रीदार बना, परलोक में उसका कोई भाग नहीं तथा कितना बुरा उपभोग्य है, जिसके बदले वे अपने प्राणों का सौदा कर रहे हैं[1], यदि वे जानते होते
Surah Al-Baqara, Verse 102
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ ءَامَنُواْ وَٱتَّقَوۡاْ لَمَثُوبَةٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِ خَيۡرٞۚ لَّوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ
और यदि वे ईमान लाते और अल्लाह से डरते, तो अल्लाह के पास इसका जो प्रतिकार (बदला) मिलता, वह उनके लिए उत्तम होता, यदि वे जानते होते।
Surah Al-Baqara, Verse 103
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَقُولُواْ رَٰعِنَا وَقُولُواْ ٱنظُرۡنَا وَٱسۡمَعُواْۗ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٞ
हे ईमान वालो! तुम 'राइना'[1] न कहो, 'उन्ज़ुरना' कहो और ध्यान से बात सुनो तथा काफ़िरों के लिए दुखदायी यातना है।
Surah Al-Baqara, Verse 104
مَّا يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ وَلَا ٱلۡمُشۡرِكِينَ أَن يُنَزَّلَ عَلَيۡكُم مِّنۡ خَيۡرٖ مِّن رَّبِّكُمۡۚ وَٱللَّهُ يَخۡتَصُّ بِرَحۡمَتِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ
अह्ले किताब में से जो काफ़िर हो गये तथा जो मिश्रणवादी हो गये, वे नहीं चाहते कि तुम्हारे पालनहार की ओर से तुमपर कोई भलाई उतारी जाये और अल्लाह जिसपर चाहे, अपनी विशेष दया करता है और अल्लाह बड़ा दानशील है।
Surah Al-Baqara, Verse 105
۞مَا نَنسَخۡ مِنۡ ءَايَةٍ أَوۡ نُنسِهَا نَأۡتِ بِخَيۡرٖ مِّنۡهَآ أَوۡ مِثۡلِهَآۗ أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ
हम अपनी कोई आयत निरस्त कर देते अथवा भुला देते हैं, तो उससे उत्तम अथवा उसके समान लाते हैं। क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह जो चाहे[1], कर सकता है
Surah Al-Baqara, Verse 106
أَلَمۡ تَعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَمَا لَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ مِن وَلِيّٖ وَلَا نَصِيرٍ
क्या तुम ये नहीं जानते कि आकाशों तथा धरती का राज्य अल्लाह ही के लिए है और उसके सिवा तुम्हारा कोई रक्षक और सहायक नहीं है
Surah Al-Baqara, Verse 107
أَمۡ تُرِيدُونَ أَن تَسۡـَٔلُواْ رَسُولَكُمۡ كَمَا سُئِلَ مُوسَىٰ مِن قَبۡلُۗ وَمَن يَتَبَدَّلِ ٱلۡكُفۡرَ بِٱلۡإِيمَٰنِ فَقَدۡ ضَلَّ سَوَآءَ ٱلسَّبِيلِ
क्या तुम चाहते हो कि अपने रसुल से उसी प्रकार प्रश्न करो, जैसे मूसा से प्रश्न किये जाते रहे? और जो व्यक्ति ईमान की नीति को कुफ़्र से बदल लेगा, तो वह सीधी डगर से विचलित हो गया।
Surah Al-Baqara, Verse 108
وَدَّ كَثِيرٞ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ لَوۡ يَرُدُّونَكُم مِّنۢ بَعۡدِ إِيمَٰنِكُمۡ كُفَّارًا حَسَدٗا مِّنۡ عِندِ أَنفُسِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ ٱلۡحَقُّۖ فَٱعۡفُواْ وَٱصۡفَحُواْ حَتَّىٰ يَأۡتِيَ ٱللَّهُ بِأَمۡرِهِۦٓۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
अहले किताब में से बहुत-से चाहते हैं कि तुम्हारे ईमान लाने के पश्चात् अपने द्वेष के कारण तुम्हें कुफ़्र की ओर फेंक दें। जबकि सत्य उनके लिए उजागर हो गया। फिर भी तुम क्षमा से काम लो और जाने दो। यहाँ तक कि अल्लाह अपना निर्णय कर दे। निश्चय अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Al-Baqara, Verse 109
وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَۚ وَمَا تُقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُم مِّنۡ خَيۡرٖ تَجِدُوهُ عِندَ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ
तथा तुम नमाज़ की स्थापना करो और ज़कात दो और जो भी भलाई अपने लिए किये रहोगे, उसे अल्लाह के यहाँ पाओगे। तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह उसे देख रहा है।
Surah Al-Baqara, Verse 110
وَقَالُواْ لَن يَدۡخُلَ ٱلۡجَنَّةَ إِلَّا مَن كَانَ هُودًا أَوۡ نَصَٰرَىٰۗ تِلۡكَ أَمَانِيُّهُمۡۗ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
तथा उन्होंने कहा कि कोई स्वर्ग में कदापि नहीं जायेगा, जब तक यहूदी अथवा नसारा[1] (ईसाई) न हो। ये उनकी कामनायें हैं। उनसे कहो कि यदि तुम सत्यवादी हो, तो कोई प्रमाण प्रस्तुत करो।
Surah Al-Baqara, Verse 111
بَلَىٰۚ مَنۡ أَسۡلَمَ وَجۡهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنٞ فَلَهُۥٓ أَجۡرُهُۥ عِندَ رَبِّهِۦ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
क्यों नहीं?[1] जो भी स्वयं को अल्लाह की आज्ञा पालन के लिए समर्पित कर देगा तथा सदाचारी होगा, तो उसके पालनहार के पास उसका प्रतिफल है और उनपर कोई भय नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 112
وَقَالَتِ ٱلۡيَهُودُ لَيۡسَتِ ٱلنَّصَٰرَىٰ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَقَالَتِ ٱلنَّصَٰرَىٰ لَيۡسَتِ ٱلۡيَهُودُ عَلَىٰ شَيۡءٖ وَهُمۡ يَتۡلُونَ ٱلۡكِتَٰبَۗ كَذَٰلِكَ قَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَ مِثۡلَ قَوۡلِهِمۡۚ فَٱللَّهُ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ فِيمَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ
तथा यहूदियों ने कहा कि ईसाईयों के पास कुछ नहीं और ईसाईयों ने कहा कि यहूदियों के पास कुछ नहीं है। जबकि वे धर्म पुस्तक[1] पढ़ते हैं। इसी जैसी बात उन्होंने भी कही, जिनके पास धर्म पुस्तक का कोई ज्ञान[2] नहीं। ये जिस विषय में विभेद कर रहे हैं, उसका निर्णय अल्लाह प्रलय के दिन उनके बीच कर देगा।
Surah Al-Baqara, Verse 113
وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن مَّنَعَ مَسَٰجِدَ ٱللَّهِ أَن يُذۡكَرَ فِيهَا ٱسۡمُهُۥ وَسَعَىٰ فِي خَرَابِهَآۚ أُوْلَـٰٓئِكَ مَا كَانَ لَهُمۡ أَن يَدۡخُلُوهَآ إِلَّا خَآئِفِينَۚ لَهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا خِزۡيٞ وَلَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٞ
और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह की मस्जिदों में उसके नाम का वर्णन करने से रोके और उन्हें उजाड़ने का प्रयत्न करे?[1] उन्हीं के लिए योग्य है कि उसमें डरते हुए प्रवेश करें, उन्हीं के लिए संसार में अपमान है और उन्हीं के लिए आख़िरत (परलोक) में घोर यातना है।
Surah Al-Baqara, Verse 114
وَلِلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ فَأَيۡنَمَا تُوَلُّواْ فَثَمَّ وَجۡهُ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ
तथा पूर्व और पश्चिम अल्लाह ही के हैं; तुम जिधर भी मुख करो[1], उधर ही अल्लाह का मुख है और अल्लाह विशाल अति ज्ञानी है।
Surah Al-Baqara, Verse 115
وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱللَّهُ وَلَدٗاۗ سُبۡحَٰنَهُۥۖ بَل لَّهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ كُلّٞ لَّهُۥ قَٰنِتُونَ
तथा उन्होंने कहा[1] कि अल्लाह ने कोई संतान बना ली। वह इससे पवित्र है। आकाशों तथा धरती में जो भी है, वह उसी का है और सब उसी के आज्ञाकारी हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 116
بَدِيعُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَإِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ
वह आकाशों तथा धरती का अविष्कारक है। जब वह किसी बात का निर्णय कर लेता है, तो उसके लिए बस ये आदेश देता है कि "हो जा।" और वह हो जाती है।
Surah Al-Baqara, Verse 117
وَقَالَ ٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَ لَوۡلَا يُكَلِّمُنَا ٱللَّهُ أَوۡ تَأۡتِينَآ ءَايَةٞۗ كَذَٰلِكَ قَالَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِم مِّثۡلَ قَوۡلِهِمۡۘ تَشَٰبَهَتۡ قُلُوبُهُمۡۗ قَدۡ بَيَّنَّا ٱلۡأٓيَٰتِ لِقَوۡمٖ يُوقِنُونَ
तथा उन्होंने कहा जो ज्ञान[1] नहीं रखते कि अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता या हमारे पास कोई आयत क्यों नहीं आती? इसी प्रकार की बात इनसे पूर्व के लोगों ने कही थी। इनके दिल एक समान हो गये। हमने उनके लिए निशानियाँ उजागर कर दी हैं, जो विश्वास रखते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 118
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ بِٱلۡحَقِّ بَشِيرٗا وَنَذِيرٗاۖ وَلَا تُسۡـَٔلُ عَنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلۡجَحِيمِ
(हे नबी!) हमने आपको सत्य के साथ शुभ सूचना देने तथा सावधान[1] करने वाला बनाकर भेजा है और आपसे नारकियों के विषय में प्रश्न नहीं किया जायेगा।
Surah Al-Baqara, Verse 119
وَلَن تَرۡضَىٰ عَنكَ ٱلۡيَهُودُ وَلَا ٱلنَّصَٰرَىٰ حَتَّىٰ تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمۡۗ قُلۡ إِنَّ هُدَى ٱللَّهِ هُوَ ٱلۡهُدَىٰۗ وَلَئِنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَآءَهُم بَعۡدَ ٱلَّذِي جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ مَا لَكَ مِنَ ٱللَّهِ مِن وَلِيّٖ وَلَا نَصِيرٍ
(हे नबी!) आपसे यहूदी तथा ईसाई सहमत (प्रसन्न) नहीं होंगे, जब तक आप उनकी रीति पर न चलें। कह दो कि सीधी डगर वही है, जो अल्लाह ने बताई है और यदि आपने उनकी आकांक्षाओं का अनुसरण किया, इसके पश्चात कि आपके पास ज्ञान आ गया, तो अल्लाह (की पकड़) से आपका कोई रक्षक और सहायक नहीं होगा।
Surah Al-Baqara, Verse 120
ٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَتۡلُونَهُۥ حَقَّ تِلَاوَتِهِۦٓ أُوْلَـٰٓئِكَ يُؤۡمِنُونَ بِهِۦۗ وَمَن يَكۡفُرۡ بِهِۦ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
और हमने जिन्हें पुस्तक प्रदान की है और उसे वैसे पढ़ते हैं, जैसे पढ़ना चाहिये, वही उसपर ईमान रखते हैं और जो उसे नकारते हैं, वही क्षतिग्रस्तों में से हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 121
يَٰبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتِيَ ٱلَّتِيٓ أَنۡعَمۡتُ عَلَيۡكُمۡ وَأَنِّي فَضَّلۡتُكُمۡ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ
हे बनी इस्राईल! मेरे उस पुरस्कार को याद करो, जो मैंने तुमपर किया है और ये कि तुम्हें (अपने युग के) संसार-वसियों पर प्रधानता दी थी।
Surah Al-Baqara, Verse 122
وَٱتَّقُواْ يَوۡمٗا لَّا تَجۡزِي نَفۡسٌ عَن نَّفۡسٖ شَيۡـٔٗا وَلَا يُقۡبَلُ مِنۡهَا عَدۡلٞ وَلَا تَنفَعُهَا شَفَٰعَةٞ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ
तथा उस दिन से डरो, जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के कुछ काम नहीं आयेगा और न उससे कोई अर्थदण्ड स्वीकार किया जायेगा और न उसे कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) लाभ पहुँचायेगी और न उनकी कोई सहायता की जायेगी।
Surah Al-Baqara, Verse 123
۞وَإِذِ ٱبۡتَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِـۧمَ رَبُّهُۥ بِكَلِمَٰتٖ فَأَتَمَّهُنَّۖ قَالَ إِنِّي جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامٗاۖ قَالَ وَمِن ذُرِّيَّتِيۖ قَالَ لَا يَنَالُ عَهۡدِي ٱلظَّـٰلِمِينَ
और (याद करो) जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों से परीक्षा ली और वह उसमें पूरा उतरा, तो उसने कहा कि मैं तुम्हें सब इन्सानों का इमाम (धर्मगुरु) बनाने वाला हूँ। (इब्राहीम ने) कहाः तथा मेरी संतान से भी। (अल्लाह ने कहाः) मेरा वचन उनके लिए नहीं, जो अत्याचारी[1] हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 124
وَإِذۡ جَعَلۡنَا ٱلۡبَيۡتَ مَثَابَةٗ لِّلنَّاسِ وَأَمۡنٗا وَٱتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبۡرَٰهِـۧمَ مُصَلّٗىۖ وَعَهِدۡنَآ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ أَن طَهِّرَا بَيۡتِيَ لِلطَّآئِفِينَ وَٱلۡعَٰكِفِينَ وَٱلرُّكَّعِ ٱلسُّجُودِ
और (याद करो) जब हमने इस घर (अर्थातःकाबा) को लोगों के लिए बार-बार आने का केंद्र तथा शांति स्थल निर्धारित कर दिया तथा ये आदेश दे दिया कि 'मक़ामे इब्राहीम' को नमाज़ का स्थान[1] बना लो तथा इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) तथा एतिकाफ़[2] करने वालों और सज्दा तथा रुकू करने वालों के लिए पवित्र रखो।
Surah Al-Baqara, Verse 125
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ رَبِّ ٱجۡعَلۡ هَٰذَا بَلَدًا ءَامِنٗا وَٱرۡزُقۡ أَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلثَّمَرَٰتِ مَنۡ ءَامَنَ مِنۡهُم بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۚ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُۥ قَلِيلٗا ثُمَّ أَضۡطَرُّهُۥٓ إِلَىٰ عَذَابِ ٱلنَّارِۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
और (याद करो) जब इब्राहीम ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस छेत्र को शांति का नगर बना दे तथा इसके वासियों को, जो उनमें से अल्लाह और अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखे, विभिन्न प्रकार की उपज (फलों) से आजीविका प्रदान कर। (अल्लाह ने) कहाः तथा जो काफ़िर है, उसे भी मैं थोड़ा लाभ दूंगा, फिर उसे नरक की यातना की ओर बाध्य कर दूँगा और वह बहुत बुरा स्थान है।
Surah Al-Baqara, Verse 126
وَإِذۡ يَرۡفَعُ إِبۡرَٰهِـۧمُ ٱلۡقَوَاعِدَ مِنَ ٱلۡبَيۡتِ وَإِسۡمَٰعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلۡ مِنَّآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
और (याद करो) जब इब्राहीम और इस्माईल इस घर की नींव ऊँची कर रहे थे तथा प्रार्थना कर रहे थेः हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 127
رَبَّنَا وَٱجۡعَلۡنَا مُسۡلِمَيۡنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَآ أُمَّةٗ مُّسۡلِمَةٗ لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبۡ عَلَيۡنَآۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ
हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज्ज की) विधियाँ बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में, तू अति क्षमी, दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 128
رَبَّنَا وَٱبۡعَثۡ فِيهِمۡ رَسُولٗا مِّنۡهُمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَيُزَكِّيهِمۡۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक रसूल भेज, जो उन्हें तेरी आयतें सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 129
وَمَن يَرۡغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبۡرَٰهِـۧمَ إِلَّا مَن سَفِهَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَقَدِ ٱصۡطَفَيۡنَٰهُ فِي ٱلدُّنۡيَاۖ وَإِنَّهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ لَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
तथा कौन होगा, जो ईब्राहीम के धर्म से विमुख हो जाये, परन्तु वही जो स्वयं को मूर्ख बना ले? जबकि हमने उसे संसार में चुन[1] लिया तथा आख़िरत (परलोक) में उसकी गणना सदाचारियों में होगी।
Surah Al-Baqara, Verse 130
إِذۡ قَالَ لَهُۥ رَبُّهُۥٓ أَسۡلِمۡۖ قَالَ أَسۡلَمۡتُ لِرَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ
तथा (याद करो) जब उसके पालनहार ने उससे कहाः मेरा आज्ञाकारी हो जा। तो उसने तुरन्त कहाः मैं विश्व के पालनहार का आज्ञाकारी हो गया।
Surah Al-Baqara, Verse 131
وَوَصَّىٰ بِهَآ إِبۡرَٰهِـۧمُ بَنِيهِ وَيَعۡقُوبُ يَٰبَنِيَّ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰ لَكُمُ ٱلدِّينَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسۡلِمُونَ
तथा इब्राहीम ने अपने पुत्रों को तथा याक़ूब ने, इसी बात पर बल दिया कि हे मेरे पुत्रो! अल्लाह ने तुम्हारे लिए ये धर्म (इस्लाम) निर्वाचित कर दिया है। अतः मरते समय तक तुम इसी पर स्थिर रहना।
Surah Al-Baqara, Verse 132
أَمۡ كُنتُمۡ شُهَدَآءَ إِذۡ حَضَرَ يَعۡقُوبَ ٱلۡمَوۡتُ إِذۡ قَالَ لِبَنِيهِ مَا تَعۡبُدُونَ مِنۢ بَعۡدِيۖ قَالُواْ نَعۡبُدُ إِلَٰهَكَ وَإِلَٰهَ ءَابَآئِكَ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ إِلَٰهٗا وَٰحِدٗا وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ
क्या तुम याक़ूब के मरने के समय उपस्थित थे; जब याक़ूब ने अपने पुत्रों से कहाः मेरी मृत्यु के पश्चात् तुम किसकी इबादत (वंदना) करोगे? उन्होंने कहाः हम तेरे तथा तेरे पिता इब्राहीम और इस्माईल तथा इस्ह़ाक़ के एकमात्र पूज्य की इबादत (वंदना) करेंगे और उसी के आज्ञाकारी रहेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 133
تِلۡكَ أُمَّةٞ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
ये एक समुदाय था, जो जा चुका। उन्होंने जो कर्म किये, वे उनके लिए हैं तथा जो तुमने किये, वे तुम्हारे लिए और उनके किये का प्रश्न तुमसे नहीं किया जायेगा।
Surah Al-Baqara, Verse 134
وَقَالُواْ كُونُواْ هُودًا أَوۡ نَصَٰرَىٰ تَهۡتَدُواْۗ قُلۡ بَلۡ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِـۧمَ حَنِيفٗاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ
और वे कहते हैं कि यहूदी हो जाओ अथवा ईसाई हो जाओ, तुम्हें मार्गदर्शन मिल जायेगा। आप कह दें, नहीं! हम तो एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म पर हैं और वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
Surah Al-Baqara, Verse 135
قُولُوٓاْ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡنَا وَمَآ أُنزِلَ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَمَآ أُوتِيَ مُوسَىٰ وَعِيسَىٰ وَمَآ أُوتِيَ ٱلنَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمۡ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّنۡهُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ
(हे मुसलमानो!) तुम सब कहो कि हम अल्लाह पर ईमान लाये तथा उसपर जो (क़ुर्आन) हमारी ओर उतारा गया और उसपर जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान की ओर उतारा गया और जो मूसा तथा ईसा को दिया गया तथा जो दूसरे नबियों को, उनके पालनहार की ओर से दिया गया। हम इनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम उसी के आज्ञाकारी हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 136
فَإِنۡ ءَامَنُواْ بِمِثۡلِ مَآ ءَامَنتُم بِهِۦ فَقَدِ ٱهۡتَدَواْۖ وَّإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا هُمۡ فِي شِقَاقٖۖ فَسَيَكۡفِيكَهُمُ ٱللَّهُۚ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
तो यदि वे तुम्हारे ही समान ईमान ले आयें, तो वे मार्गदर्शन पा लेंगे और यदि विमुख हों, तो वे विरोध में लीन हैं। उनके विरुध्द तुम्हारे लिए अल्लाह बस है और वह सब सुनने वाला और जानने वाला है।
Surah Al-Baqara, Verse 137
صِبۡغَةَ ٱللَّهِ وَمَنۡ أَحۡسَنُ مِنَ ٱللَّهِ صِبۡغَةٗۖ وَنَحۡنُ لَهُۥ عَٰبِدُونَ
तुम सब अल्लाह के रंग[1] (स्वभाविक धर्म) को ग्रहण कर लो और अल्लाह के रंग से अच्छा किसका रंग होगा? हम तो उसी की इबादत (वंदना) करते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 138
قُلۡ أَتُحَآجُّونَنَا فِي ٱللَّهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمۡ وَلَنَآ أَعۡمَٰلُنَا وَلَكُمۡ أَعۡمَٰلُكُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُخۡلِصُونَ
(हे नबी!) कह दो कि क्या तुम हमसे अल्लाह के (एक होने के) विषय में झगड़ते हो, जबकि वही हमारा तथा तुम्हारा पालनहार है?[1] फिर हमारे लिए हमारा कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारा कर्म है और हम तो बस उसी की इबादत (वंदना) करने वाले हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 139
أَمۡ تَقُولُونَ إِنَّ إِبۡرَٰهِـۧمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطَ كَانُواْ هُودًا أَوۡ نَصَٰرَىٰۗ قُلۡ ءَأَنتُمۡ أَعۡلَمُ أَمِ ٱللَّهُۗ وَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَتَمَ شَهَٰدَةً عِندَهُۥ مِنَ ٱللَّهِۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ
(हे अह्ले किताब!) क्या तुम कहते हो कि इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान यहूदी या ईसाई थी? उनसे कह दो कि तुम अधिक जानते हो अथवा अल्लाह? और उससे बड़ा अत्याचारी कौन होगा, जिसके पास अल्लाह का साक्ष्य हो और उसे छुपा दे? और अल्लाह तुम्हारे करतूतों से अचेत तो नहीं है[1]।
Surah Al-Baqara, Verse 140
تِلۡكَ أُمَّةٞ قَدۡ خَلَتۡۖ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَلَكُم مَّا كَسَبۡتُمۡۖ وَلَا تُسۡـَٔلُونَ عَمَّا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
ये एक समुदाय था, जो जा चुका। उनके लिए उनका कर्म है तथा तुम्हारे लिए तुम्हारा कर्म है। तुमसे उनके कर्मों के बारे में प्रश्न नहीं किया जायेगा[1]।
Surah Al-Baqara, Verse 141
۞سَيَقُولُ ٱلسُّفَهَآءُ مِنَ ٱلنَّاسِ مَا وَلَّىٰهُمۡ عَن قِبۡلَتِهِمُ ٱلَّتِي كَانُواْ عَلَيۡهَاۚ قُل لِّلَّهِ ٱلۡمَشۡرِقُ وَٱلۡمَغۡرِبُۚ يَهۡدِي مَن يَشَآءُ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ
शीघ्र ही मूर्ख लोग कहेंगे कि उन्हें जिस क़िबले[1] पर वे थे, उससे किस बात ने फेर दिया? (हे नबी!) उन्हें बता दो कि पूर्व और पश्चिम सब अल्लाह के हैं। वह जिसे चाहे, सीधी राह पर लगा देता है।
Surah Al-Baqara, Verse 142
وَكَذَٰلِكَ جَعَلۡنَٰكُمۡ أُمَّةٗ وَسَطٗا لِّتَكُونُواْ شُهَدَآءَ عَلَى ٱلنَّاسِ وَيَكُونَ ٱلرَّسُولُ عَلَيۡكُمۡ شَهِيدٗاۗ وَمَا جَعَلۡنَا ٱلۡقِبۡلَةَ ٱلَّتِي كُنتَ عَلَيۡهَآ إِلَّا لِنَعۡلَمَ مَن يَتَّبِعُ ٱلرَّسُولَ مِمَّن يَنقَلِبُ عَلَىٰ عَقِبَيۡهِۚ وَإِن كَانَتۡ لَكَبِيرَةً إِلَّا عَلَى ٱلَّذِينَ هَدَى ٱللَّهُۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُضِيعَ إِيمَٰنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِٱلنَّاسِ لَرَءُوفٞ رَّحِيمٞ
और इसी प्रकार हमने तुम्हें मध्यवर्ती उम्मत (समुदाय) बना दिया; ताकि तुम, सबपर साक्षी[1] बनो और रसूल तुमपर साक्षी हों और हमने वह क़िबला जिसपर तुम थे, इसीलिए बनाया था, ताकि ये बात खोल दें कि कौन (अपने धर्म से) फिर जाता है और ये बात बड़ी भारी थी, परन्तु उनके लिए नहीं, जिन्हें अल्लाह ने मार्गदर्शन दे दिया है और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम्हारे ईमान (अर्थात बैतुल मक़्दिस की दिशा में नमाज़ पढ़ने) को व्यर्थ कर दे[2], वास्तव में अल्लाह लोगों के लिए अत्यंत करुणामय तथा दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 143
قَدۡ نَرَىٰ تَقَلُّبَ وَجۡهِكَ فِي ٱلسَّمَآءِۖ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبۡلَةٗ تَرۡضَىٰهَاۚ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَيۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥۗ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ لَيَعۡلَمُونَ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا يَعۡمَلُونَ
(हे नबी!) हम आपके मुख को बार-बार आकाश की ओर फिरते देख रहे हैं। तो हम अवश्य आपको उस क़िबले (काबा) की ओर फेर देंगे, जिससे आप प्रसन्न हो जायें। तो (अब) अपने मुख मस्जिदे ह़राम की ओर फेर लो[1] तथा (हे मुसलमानों!) तुम भी जहाँ रहो, उसी की ओर मुख किया करो और निश्चय अह्ले किताब जानते हैं कि ये उनके पालनहार की ओर से सत्य है[2] और अल्लाह उनके कर्मों से असूचित नहीं है।
Surah Al-Baqara, Verse 144
وَلَئِنۡ أَتَيۡتَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ بِكُلِّ ءَايَةٖ مَّا تَبِعُواْ قِبۡلَتَكَۚ وَمَآ أَنتَ بِتَابِعٖ قِبۡلَتَهُمۡۚ وَمَا بَعۡضُهُم بِتَابِعٖ قِبۡلَةَ بَعۡضٖۚ وَلَئِنِ ٱتَّبَعۡتَ أَهۡوَآءَهُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ إِنَّكَ إِذٗا لَّمِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
और यदि आप अह्ले किताब के पास प्रत्येक प्रकार की निशानी ला दें, तब भी वे आपके क़िबले का अनुसरण नहीं करेंगे और न आप उनके क़िबले का अनुसरण करेंगे और न उनमें से कोई दूसरे के क़िबले का अनुसरण करेगा और यदि ज्ञान आने के पश्चात् आपने उनकी आकांक्षाओं का अनुसरण किया, तो आप अत्याचारियों में से हो जायेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 145
ٱلَّذِينَ ءَاتَيۡنَٰهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ يَعۡرِفُونَهُۥ كَمَا يَعۡرِفُونَ أَبۡنَآءَهُمۡۖ وَإِنَّ فَرِيقٗا مِّنۡهُمۡ لَيَكۡتُمُونَ ٱلۡحَقَّ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
जिन्हें हमने पुस्तक दी है, वे आपको ऐसे ही[1] पहचानते हैं, जैसे अपने पुत्रों को पहचानते हैं और उनका एक समुदाय जानते हुए भी सत्य को छुपा रहा है।
Surah Al-Baqara, Verse 146
ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡمُمۡتَرِينَ
सत्य वही है, जो आपके पालनहार की ओर से उतारा गया। अतः, आप कदापि संदेह करने वालों में न हों।
Surah Al-Baqara, Verse 147
وَلِكُلّٖ وِجۡهَةٌ هُوَ مُوَلِّيهَاۖ فَٱسۡتَبِقُواْ ٱلۡخَيۡرَٰتِۚ أَيۡنَ مَا تَكُونُواْ يَأۡتِ بِكُمُ ٱللَّهُ جَمِيعًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
प्रत्येक के लिए एक दिशा है, जिसकी ओर वह मुख कर हा है। अतः तुम भलाईयों में अग्रसर बनो। तुम जहाँ भी रहोगे, अल्लाह तुम सभी को (प्रलय के दिन) ले आयेगा। निश्चय अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Al-Baqara, Verse 148
وَمِنۡ حَيۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۖ وَإِنَّهُۥ لَلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ
और आप जहाँ भी निकलें, अपना मुख मस्जिदे ह़राम की ओर फेरें। निःसंदेह ये आपके पालनहार की ओर से सत्य (आदेश) है और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से असूचित नहीं है।
Surah Al-Baqara, Verse 149
وَمِنۡ حَيۡثُ خَرَجۡتَ فَوَلِّ وَجۡهَكَ شَطۡرَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَحَيۡثُ مَا كُنتُمۡ فَوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ شَطۡرَهُۥ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَيۡكُمۡ حُجَّةٌ إِلَّا ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡهُمۡ فَلَا تَخۡشَوۡهُمۡ وَٱخۡشَوۡنِي وَلِأُتِمَّ نِعۡمَتِي عَلَيۡكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ
और आप जहाँ से भी निकलें, अपना मुख मस्जिदे ह़राम की ओर फेरें और (हे मुसलमानों!) तुम जहाँ भी रहो, अपने मुखों को उसी की ओर फेरो; ताकि उन्हें तुम्हारे विरुध्द किसी विवाद का अवसर न मिले, मगर उन लोगों के अतिरिक्त, जो अत्याचार करें। अतः उनसे न डरो। मुझी से डरो और ताकि मैं तुमपर अपना पुरस्कार (धर्म विधान) पूरा कर दूँ और ताकि तुम सीधी डगर पाओ।
Surah Al-Baqara, Verse 150
كَمَآ أَرۡسَلۡنَا فِيكُمۡ رَسُولٗا مِّنكُمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِنَا وَيُزَكِّيكُمۡ وَيُعَلِّمُكُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَيُعَلِّمُكُم مَّا لَمۡ تَكُونُواْ تَعۡلَمُونَ
जिस प्रकार हमने तुम्हारे लिए तुम्हीं में से एक रसूल भेजा, जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता तथा तुम्हें शुध्द आज्ञाकारी बनाता है और तुम्हें पुस्तक (कुर्आन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) सिखाता है तथा तुम्हें वो बातें सिखाता है, जो तुम नहीं जानते थे।
Surah Al-Baqara, Verse 151
فَٱذۡكُرُونِيٓ أَذۡكُرۡكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لِي وَلَا تَكۡفُرُونِ
अतः, मुझे याद करो[1], मैं तुम्हें याद करूँगा[2] और मेरे आभारी रहो और मेरे कृतघ्न न बनो।
Surah Al-Baqara, Verse 152
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱسۡتَعِينُواْ بِٱلصَّبۡرِ وَٱلصَّلَوٰةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
हे ईमान वालो! धैर्य तथा नमाज़ का सहारा लो, निश्चय अल्लाह धैर्यवानों के साथ है।
Surah Al-Baqara, Verse 153
وَلَا تَقُولُواْ لِمَن يُقۡتَلُ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَمۡوَٰتُۢۚ بَلۡ أَحۡيَآءٞ وَلَٰكِن لَّا تَشۡعُرُونَ
तथा जो अल्लाह की राह में मारे जायें, उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित हैं, परन्तु तुम (उनके जीवन की दशा) नहीं समझते।
Surah Al-Baqara, Verse 154
وَلَنَبۡلُوَنَّكُم بِشَيۡءٖ مِّنَ ٱلۡخَوۡفِ وَٱلۡجُوعِ وَنَقۡصٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡوَٰلِ وَٱلۡأَنفُسِ وَٱلثَّمَرَٰتِۗ وَبَشِّرِ ٱلصَّـٰبِرِينَ
तथा हम अवश्य कुछ भय, भूक तथा धनों और प्राणों तथा खाद्य पदार्थों की कमी से तुम्हारी परीक्षा करेंगे और धैर्यवानों को शुभ समाचार सुना दो।
Surah Al-Baqara, Verse 155
ٱلَّذِينَ إِذَآ أَصَٰبَتۡهُم مُّصِيبَةٞ قَالُوٓاْ إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّآ إِلَيۡهِ رَٰجِعُونَ
जिनपर कोई आपदा आ पड़े, तो कहते हैं कि हम अल्लाह के हैं और हमें उसी के पास फिर कर जाना है।
Surah Al-Baqara, Verse 156
أُوْلَـٰٓئِكَ عَلَيۡهِمۡ صَلَوَٰتٞ مِّن رَّبِّهِمۡ وَرَحۡمَةٞۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُهۡتَدُونَ
इन्हीं पर इनके पालनहार की कृपायें तथा दया हैं और यही सीधी राह पाने वाले हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 157
۞إِنَّ ٱلصَّفَا وَٱلۡمَرۡوَةَ مِن شَعَآئِرِ ٱللَّهِۖ فَمَنۡ حَجَّ ٱلۡبَيۡتَ أَوِ ٱعۡتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَاۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيۡرٗا فَإِنَّ ٱللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ
बेशक सफ़ा तथा मरवा पहाड़ी[1] अल्लाह (के धर्म) की निशानियों में से हैं। अतः जो अल्लाह के घर का ह़ज या उमरह करे, तो उसपर कोई दोष नहीं कि उन दोनों का फेरा लगाये और जो स्वेच्छा से भलाई करे, तो निःसंदेह अल्लाह उसका गुणग्राही अति ज्ञानी है।
Surah Al-Baqara, Verse 158
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡتُمُونَ مَآ أَنزَلۡنَا مِنَ ٱلۡبَيِّنَٰتِ وَٱلۡهُدَىٰ مِنۢ بَعۡدِ مَا بَيَّنَّـٰهُ لِلنَّاسِ فِي ٱلۡكِتَٰبِ أُوْلَـٰٓئِكَ يَلۡعَنُهُمُ ٱللَّهُ وَيَلۡعَنُهُمُ ٱللَّـٰعِنُونَ
तथा जो हमारी उतारी हुई आयतों (अन्तिम नबी के गुणों) तथा मार्गदर्शन को, इसके पश्चात् कि हमने पुस्तक[1] में उसे लोगों के लिए उजागर कर दिया है, छुपाते हैं, उन्हीं को अल्लाह धिक्कारता है[2] तथा सब धिक्कारने वाले धिक्कारते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 159
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ وَأَصۡلَحُواْ وَبَيَّنُواْ فَأُوْلَـٰٓئِكَ أَتُوبُ عَلَيۡهِمۡ وَأَنَا ٱلتَّوَّابُ ٱلرَّحِيمُ
जिन लोगों ने तौबा (क्षमा याचना) कर ली और सुधार कर लिया और उजागर कर दिया, तो मैं उनकी तौबा स्वीकार कर लूँगा तथा मैं अत्यंत क्षमाशील, दयावान् हूँ।
Surah Al-Baqara, Verse 160
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَمَاتُواْ وَهُمۡ كُفَّارٌ أُوْلَـٰٓئِكَ عَلَيۡهِمۡ لَعۡنَةُ ٱللَّهِ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِينَ
वास्तव में, जो काफ़िर (अविश्वासी) हो गये और इसी दशा में मरे, तो वही हैं, जिनपर अल्लाह तथा फ़रिश्तों और सब लोगों की धिक्कार है।
Surah Al-Baqara, Verse 161
خَٰلِدِينَ فِيهَا لَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ
वह इस (धिक्कार) में सदावासी होंगे, उनसे यातना मंद नहीं की जायेगी और न उनको अवकाश दिया जायेगा।
Surah Al-Baqara, Verse 162
وَإِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۖ لَّآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلرَّحۡمَٰنُ ٱلرَّحِيمُ
और तुम्हारा पूज्य एक ही[1] पूज्य है, उस अत्यंत दयालु, दयावान के सिवा कोई पूज्य नहीं।
Surah Al-Baqara, Verse 163
إِنَّ فِي خَلۡقِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَٱلۡفُلۡكِ ٱلَّتِي تَجۡرِي فِي ٱلۡبَحۡرِ بِمَا يَنفَعُ ٱلنَّاسَ وَمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مِن مَّآءٖ فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَآبَّةٖ وَتَصۡرِيفِ ٱلرِّيَٰحِ وَٱلسَّحَابِ ٱلۡمُسَخَّرِ بَيۡنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ
बेशक आकाशों तथा धरती की रचना में, रात तथा दिन के एक-दूसरे के पीछे निरन्तर आने-जाने में, उन नावों में, जो मानव के लाभ के साधनों को लिए, सागरों में चलती-फिरती हैं और वर्षा के उस पानी में, जिसे अल्लाह आकाश से बरसाता है, फिर धरती को उसके द्वारा, उसके मरण् (सूखने) के पश्चात् जीवित करता है और उसमें प्रत्येक जीवों को फैलाता है तथा वायुओं को फेरने में और उन बादलों में, जो आकाश और धरती के बीच उसकी आज्ञा[1] के अधीन रहते हैं, (इन सब चीज़ों में) अगणित निशानियाँ (लक्ष्ण) हैं, उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 164
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَتَّخِذُ مِن دُونِ ٱللَّهِ أَندَادٗا يُحِبُّونَهُمۡ كَحُبِّ ٱللَّهِۖ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَشَدُّ حُبّٗا لِّلَّهِۗ وَلَوۡ يَرَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ إِذۡ يَرَوۡنَ ٱلۡعَذَابَ أَنَّ ٱلۡقُوَّةَ لِلَّهِ جَمِيعٗا وَأَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعَذَابِ
कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अल्लाह के सिवा दूसरों को उसका साझी बनाते हैं और उनसे, अल्लाह से प्रेम करने जैसा प्रेम करते हैं तथा जो ईमान लाये, वे अल्लाह से सर्वाधिक प्रेम करते हैं और क्या ही अच्छा होता, यदि ये अत्याचारी यातना देखने के समय[1] जो बात जानेंगे, इसी समय[2] जानते कि सब शक्ति तथा अधिकार अल्लाह ही को है और अल्लाह का दण्ड भी बहुत कड़ा है, (तो अल्लाह के सिवा दूसरे की पूजा अराधना नहीं करते।)
Surah Al-Baqara, Verse 165
إِذۡ تَبَرَّأَ ٱلَّذِينَ ٱتُّبِعُواْ مِنَ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُواْ وَرَأَوُاْ ٱلۡعَذَابَ وَتَقَطَّعَتۡ بِهِمُ ٱلۡأَسۡبَابُ
जब ये दशा[1] होगी कि जिनका अनुसरण किया गया[2], वे अपने अनुयायियों से विरक्त हो जायेंगे और उनके आपस के सभी सम्बंध[3] टूट जायेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 166
وَقَالَ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُواْ لَوۡ أَنَّ لَنَا كَرَّةٗ فَنَتَبَرَّأَ مِنۡهُمۡ كَمَا تَبَرَّءُواْ مِنَّاۗ كَذَٰلِكَ يُرِيهِمُ ٱللَّهُ أَعۡمَٰلَهُمۡ حَسَرَٰتٍ عَلَيۡهِمۡۖ وَمَا هُم بِخَٰرِجِينَ مِنَ ٱلنَّارِ
तथा जो अनुयायी होंगे, वे ये कामना करेंगे कि एक बार और हम संसार में जाते, तो इनसे ऐसे ही विरक्त हो जाते, जैसे ये हमसे विरक्त हो गये हैं! ऐसे ही अल्लाह उनके कर्मों को उनके लिए संताप बनाकर दिखाएगा और वे अग्नि से निकल नहीं सकेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 167
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ كُلُواْ مِمَّا فِي ٱلۡأَرۡضِ حَلَٰلٗا طَيِّبٗا وَلَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَٰتِ ٱلشَّيۡطَٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوّٞ مُّبِينٌ
हे लोगो! धरती में जो ह़लाल (वैध) स्वच्छ चीज़ें हैं, उन्हें खाओ और शैतान की बताई राहों पर न चलो[1], वह तुम्हारा खुला शत्रु है।
Surah Al-Baqara, Verse 168
إِنَّمَا يَأۡمُرُكُم بِٱلسُّوٓءِ وَٱلۡفَحۡشَآءِ وَأَن تَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ مَا لَا تَعۡلَمُونَ
वह तुम्हें बुराई तथा निर्लज्जा का आदेश देता है और ये कि अल्लाह पर उस चीज़ का आरोप[1] धरो, जिसे तुम नहीं जानते हो।
Surah Al-Baqara, Verse 169
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ ٱتَّبِعُواْ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ قَالُواْ بَلۡ نَتَّبِعُ مَآ أَلۡفَيۡنَا عَلَيۡهِ ءَابَآءَنَآۚ أَوَلَوۡ كَانَ ءَابَآؤُهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ شَيۡـٔٗا وَلَا يَهۡتَدُونَ
और जब उनसे[1] कहा जाता है कि जो (क़ुर्आन) अल्लाह ने उतारा है, उसपर चलो, तो कहते हैं कि हम तो उसी रीति पर चलेंगे, जिसपर अपने पूर्वजों को पाया है। क्या यदि उनके पूर्वज कुछ न समझते रहे तथा कुपथ पर रहे हों, (तब भी वे उन्हीं का अनुसरण करते रहेंगे)
Surah Al-Baqara, Verse 170
وَمَثَلُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ كَمَثَلِ ٱلَّذِي يَنۡعِقُ بِمَا لَا يَسۡمَعُ إِلَّا دُعَآءٗ وَنِدَآءٗۚ صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡيٞ فَهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ
उनकी दशा जो काफ़िर हो गये, उसके समान है, जो उसे (अर्थात पशु को) पुकारता है, जो हाँक-पुकार के सिवा कुछ[1] नहीं सुनता, ये (काफ़िर) बहरे, गोंगे तथा अंधे हैं। इसलिए कुछ नहीं समझते।
Surah Al-Baqara, Verse 171
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُلُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا رَزَقۡنَٰكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لِلَّهِ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ
हे ईमान वालो! उन स्वच्छ चीज़ों में से खाओ, जो हमने तुम्हें दी हैं तथा अल्लाह की कृतज्ञता का वर्णन करो, यदि तुम केवल उसी की इबादत (वंदना) करते हो।
Surah Al-Baqara, Verse 172
إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَيۡتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ بِهِۦ لِغَيۡرِ ٱللَّهِۖ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَيۡرَ بَاغٖ وَلَا عَادٖ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
(अल्लाह) ने तुमपर मुर्दार[1] तथा (बहता) रक्त और सुअर का माँस तथा जिसपर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम पुकारा गया हो, उन्हें ह़राम (निषेध) कर दिया है। फिर भी जो विवश हो जाये, जबकि वह नियम न तोड़ रहा हो और आवश्यक्ता की सीमा का उल्लंघन न कर रहा हो, तो उसपर कोई दोष नहीं। अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 173
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡتُمُونَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَيَشۡتَرُونَ بِهِۦ ثَمَنٗا قَلِيلًا أُوْلَـٰٓئِكَ مَا يَأۡكُلُونَ فِي بُطُونِهِمۡ إِلَّا ٱلنَّارَ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٌ
वास्तव में, जो लोग अल्लाह की उतारी पुस्तक (की बातों) को छुपा रहे हैं और उनके बदले तनिक मूल्य प्राप्त कर लेते हैं, वे अपने उदर में केवल अग्नि भर रहे हैं तथा अल्लाह उनसे बात नहीं करेगा और न उन्हें विशुध्द करेगा और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
Surah Al-Baqara, Verse 174
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلضَّلَٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡعَذَابَ بِٱلۡمَغۡفِرَةِۚ فَمَآ أَصۡبَرَهُمۡ عَلَى ٱلنَّارِ
यही वे लोग हैं, जिन्होंने सुपथ (मार्गदर्शन) के बदले कुपथ खरीद लिया है तथा क्षमा के बदले यातना। तो नरक की अग्नि पर वे कितने सहनशील हैं
Surah Al-Baqara, Verse 175
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ نَزَّلَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخۡتَلَفُواْ فِي ٱلۡكِتَٰبِ لَفِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ
इस यातना के अधिकारी वे इसलिए हुए कि अल्लाह ने पुस्तक सत्य के साथ उतारी और जो पुस्तक में विभेद कर बैठे, वे वास्तव में, विरोध में बहुत दुर निकल गये।
Surah Al-Baqara, Verse 176
۞لَّيۡسَ ٱلۡبِرَّ أَن تُوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ قِبَلَ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَلَٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ وَٱلۡكِتَٰبِ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ وَءَاتَى ٱلۡمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِۦ ذَوِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِيلِ وَٱلسَّآئِلِينَ وَفِي ٱلرِّقَابِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُوفُونَ بِعَهۡدِهِمۡ إِذَا عَٰهَدُواْۖ وَٱلصَّـٰبِرِينَ فِي ٱلۡبَأۡسَآءِ وَٱلضَّرَّآءِ وَحِينَ ٱلۡبَأۡسِۗ أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ صَدَقُواْۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ
भलाई ये नहीं है कि तुम अपना मुख पूर्व अथवा पश्चिम की ओर फेर लो! भला कर्म तो उसका है, जो अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लाया तथा फ़रिश्तों, सब पुस्तकों, नबियों पर (भी ईमान लाया), धन का मोह रखते हुए, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों, यात्रियों तथा याचकों (काफ़िरों) को और दास मुक्ति के लिए दिया, नमाज़ की स्थापना की, ज़कात दी, अपने वचन को, जब भी वचन दिया, पूरा करते रहे एवं निर्धनता और रोग तथा युध्द की स्थिति में धैर्यवान रहे। यही लोग सच्चे हैं तथा यही (अल्लाह से) डरते[1] हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 177
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِصَاصُ فِي ٱلۡقَتۡلَىۖ ٱلۡحُرُّ بِٱلۡحُرِّ وَٱلۡعَبۡدُ بِٱلۡعَبۡدِ وَٱلۡأُنثَىٰ بِٱلۡأُنثَىٰۚ فَمَنۡ عُفِيَ لَهُۥ مِنۡ أَخِيهِ شَيۡءٞ فَٱتِّبَاعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَأَدَآءٌ إِلَيۡهِ بِإِحۡسَٰنٖۗ ذَٰلِكَ تَخۡفِيفٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَرَحۡمَةٞۗ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ بَعۡدَ ذَٰلِكَ فَلَهُۥ عَذَابٌ أَلِيمٞ
हे ईमान वालो! तुमपर निहत व्यक्तियों के बारे में क़िसास (बराबरी का बदला) अनिवार्य[1] कर दिया गया है। स्वतंत्र का बदला स्वतंत्र से लिया जायेगा, दास का दास से और नारी का नारी से। जिस अपराधी के लिए उसके भाई की ओर से कुछ क्षमा कर[2] दिया जाये, तो उसे सामान्य नियम का अनुसरण (अनुपालन) करना चाहिये। निहत व्यक्ति के वारिस को भलाई के साथ दियत (अर्थदण्ड) चुका देना चाहिये। ये तुम्हारे पालनहार की ओर से सुविधा तथा दया है। इसपर भी जो अत्याचार[3] करे, तो उसके लिए दुःखदायी यातना है।
Surah Al-Baqara, Verse 178
وَلَكُمۡ فِي ٱلۡقِصَاصِ حَيَوٰةٞ يَـٰٓأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ
और हे समझ वालो! तुम्हारे लिए क़िसास (के नियम में) जीवन है, ताकि तुम रक्तपात से बचो।
Surah Al-Baqara, Verse 179
كُتِبَ عَلَيۡكُمۡ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ إِن تَرَكَ خَيۡرًا ٱلۡوَصِيَّةُ لِلۡوَٰلِدَيۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِينَ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِينَ
और जब तुममें से किसी के निधन का समय हो और वह धन छोड़ रहा हो, तो उसपर माता-पिता और समीपवर्तियों के लिए साधारण नियमानुसार वसिय्यत (उत्तरदान) करना अनिवार्य कर दिया गया है। ये आज्ञाकारियों के लिए सुनिश्चित[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 180
فَمَنۢ بَدَّلَهُۥ بَعۡدَ مَا سَمِعَهُۥ فَإِنَّمَآ إِثۡمُهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ يُبَدِّلُونَهُۥٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
फिर जिसने वसिय्यत सुनने के पश्चात उसे बदल दिया, तो उसका पाप उनपर है, जो उसे बदलेंगे और अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 181
فَمَنۡ خَافَ مِن مُّوصٖ جَنَفًا أَوۡ إِثۡمٗا فَأَصۡلَحَ بَيۡنَهُمۡ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
फिर जिसे डर हो कि वसिय्यत करने वाले ने पक्षपात या अत्याचार किया है, फिर उसने उनके बीच सुधार करा दिया, तो उसपर कोई पाप नहीं। निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील तथा दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 182
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ
हे ईमान वालो! तुमपर रोज़े[1] उसी प्रकार अनिवार्य कर दिये गये हैं, जैसे तुमसे पूर्व के लोगों पर अनिवार्य किये गये, ताकि तुम अल्लाह से डरो।
Surah Al-Baqara, Verse 183
أَيَّامٗا مَّعۡدُودَٰتٖۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٖ فَعِدَّةٞ مِّنۡ أَيَّامٍ أُخَرَۚ وَعَلَى ٱلَّذِينَ يُطِيقُونَهُۥ فِدۡيَةٞ طَعَامُ مِسۡكِينٖۖ فَمَن تَطَوَّعَ خَيۡرٗا فَهُوَ خَيۡرٞ لَّهُۥۚ وَأَن تَصُومُواْ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ
वह गिनती के कुछ दिन हैं। फिर यदि तुममें से कोई रोगी अथवा यात्रा पर हो, तो ये गिनती, दूसरे दिनों से पूरी करे और जो उस रोज़े को सहन न कर सके[1], वह फ़िद्या (प्रायश्चित्त) दे, जो एक निर्धन को खाना खिलाना है और जो स्वेच्छा भलाई करे, वह उसके लिए अच्छी बात है। यदी तुम समझो, तो तुम्हारे लिए रोज़ा रखना ही अच्छा है।
Surah Al-Baqara, Verse 184
شَهۡرُ رَمَضَانَ ٱلَّذِيٓ أُنزِلَ فِيهِ ٱلۡقُرۡءَانُ هُدٗى لِّلنَّاسِ وَبَيِّنَٰتٖ مِّنَ ٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡفُرۡقَانِۚ فَمَن شَهِدَ مِنكُمُ ٱلشَّهۡرَ فَلۡيَصُمۡهُۖ وَمَن كَانَ مَرِيضًا أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٖ فَعِدَّةٞ مِّنۡ أَيَّامٍ أُخَرَۗ يُرِيدُ ٱللَّهُ بِكُمُ ٱلۡيُسۡرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ ٱلۡعُسۡرَ وَلِتُكۡمِلُواْ ٱلۡعِدَّةَ وَلِتُكَبِّرُواْ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا هَدَىٰكُمۡ وَلَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
रमज़ान का महीना वह है, जिसमें क़ुर्आन उतारा गया, जो सब मानव के लिए मार्गदर्शन है तथा मार्गदर्शन और सत्योसत्य के बीच अन्तर करने के खुले प्रमाण रखता है। अतः जो व्यक्ति इस महीने में उपस्थित[1] हो, वह उसका रोज़ा रखे, फिर यदि तुममें से कोई रोगी[2] अथवा यात्रा[3] पर हो, तो उसे दूसरे दिनों में गिनती पुरी करनी चाहिए। अल्लाह तुम्हारे लिए सुविधा चाहता है, तंगी (असुविधा) नहीं चाहता और चाहता है कि तुम गिनती पूरी करो तथा इस बातपर अल्लाह की महिमा का वर्णन करो कि उसने तुम्हें मार्गदर्शन दिया और (इस प्रकार) तुम उसके कृतज्ञ[4] बन सको।
Surah Al-Baqara, Verse 185
وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌۖ أُجِيبُ دَعۡوَةَ ٱلدَّاعِ إِذَا دَعَانِۖ فَلۡيَسۡتَجِيبُواْ لِي وَلۡيُؤۡمِنُواْ بِي لَعَلَّهُمۡ يَرۡشُدُونَ
(हे नबी!) जब मेरे भक्त मेरे विषय में आपसे प्रश्न करें, तो उन्हें बता दें कि निश्चय मैं समीप हूँ। मैं प्रार्थी की प्रार्थना का उत्तर देता हूँ। अतः, उन्हें भी चाहिये कि मेरे आज्ञाकारी बनें तथा मुझपर ईमान (विश्वास) रखें, ताकि वे सीधी राह पायें।
Surah Al-Baqara, Verse 186
أُحِلَّ لَكُمۡ لَيۡلَةَ ٱلصِّيَامِ ٱلرَّفَثُ إِلَىٰ نِسَآئِكُمۡۚ هُنَّ لِبَاسٞ لَّكُمۡ وَأَنتُمۡ لِبَاسٞ لَّهُنَّۗ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ كُنتُمۡ تَخۡتَانُونَ أَنفُسَكُمۡ فَتَابَ عَلَيۡكُمۡ وَعَفَا عَنكُمۡۖ فَٱلۡـَٰٔنَ بَٰشِرُوهُنَّ وَٱبۡتَغُواْ مَا كَتَبَ ٱللَّهُ لَكُمۡۚ وَكُلُواْ وَٱشۡرَبُواْ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَكُمُ ٱلۡخَيۡطُ ٱلۡأَبۡيَضُ مِنَ ٱلۡخَيۡطِ ٱلۡأَسۡوَدِ مِنَ ٱلۡفَجۡرِۖ ثُمَّ أَتِمُّواْ ٱلصِّيَامَ إِلَى ٱلَّيۡلِۚ وَلَا تُبَٰشِرُوهُنَّ وَأَنتُمۡ عَٰكِفُونَ فِي ٱلۡمَسَٰجِدِۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَقۡرَبُوهَاۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ ءَايَٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ
तुम्हारे लिए रोज़े की रात में अपनी स्त्रियों से सहवास ह़लाल (उचित) कर दिया गया है। वे तुम्हारा वस्त्र[1] हैं तथा तुम उनका वस्त्र हो, अल्लाह को ज्ञान हो गया है कि तुम अपना उपभोग[2] कर रहे थे। उसने तुम्हारी तौबा (क्षमा याचना) स्वीकार कर ली तथा तुम्हें क्षमा कर दिया। अब उनसे (रात्रि में) सहवास करो और अल्लाह के (अपने भाग्य में) लिखे की खोज करो और रात्रि में खाओ तथा पिओ, यहाँ तक की भोर की सफेद धारी रात की काली धारी से उजागर हो[3] जाये, फिर रोज़े को रात्रि (सूर्यास्त) तक पूरा करो और उनसे सहवास न करो, जब मस्जिदों में ऐतिकाफ़ (एकान्तवास) में रहो। ये अल्लाह की सीमायें हैं, इनके समीप भी न जाओ। इसी प्रकार अल्लाह लोगों के लिए अपनी आयतों को उजागर करता है, ताकि वे (उनके उल्लंघन से) बचें।
Surah Al-Baqara, Verse 187
وَلَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَكُم بَيۡنَكُم بِٱلۡبَٰطِلِ وَتُدۡلُواْ بِهَآ إِلَى ٱلۡحُكَّامِ لِتَأۡكُلُواْ فَرِيقٗا مِّنۡ أَمۡوَٰلِ ٱلنَّاسِ بِٱلۡإِثۡمِ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ
तथा आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ और न अधिकारियों के पास उसे इस धेय से ले जाओ कि लोगों के धन का कोई भाग, जान-बूझ कर पाप[1] द्वारा खा जाओ।
Surah Al-Baqara, Verse 188
۞يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡأَهِلَّةِۖ قُلۡ هِيَ مَوَٰقِيتُ لِلنَّاسِ وَٱلۡحَجِّۗ وَلَيۡسَ ٱلۡبِرُّ بِأَن تَأۡتُواْ ٱلۡبُيُوتَ مِن ظُهُورِهَا وَلَٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَأۡتُواْ ٱلۡبُيُوتَ مِنۡ أَبۡوَٰبِهَاۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ
(हे नबी!) लोग आपसे चंद्रमा के (घटने-बढ़ने) के विषय में प्रश्न करते हैं? तो आप कह दें, इससे लोगों को तिथियों के निर्धारण तथा ह़ज के समय का ज्ञान होता है और ये कोई भलाई नहीं है कि घरों में उनके पीछे से प्रवेश करो, परन्तु भलाई तो अल्लाह की अवज्ञा से बचने में है। घरों में उनके द्वारों से आओ तथा अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम[1] सफल हो जाओ।
Surah Al-Baqara, Verse 189
وَقَٰتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ يُقَٰتِلُونَكُمۡ وَلَا تَعۡتَدُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡمُعۡتَدِينَ
तथा अल्लाह की राह में, उनसे युध्द करो, जो तुमसे युध्द करते हों और अत्याचार न करो, अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
Surah Al-Baqara, Verse 190
وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَيۡثُ ثَقِفۡتُمُوهُمۡ وَأَخۡرِجُوهُم مِّنۡ حَيۡثُ أَخۡرَجُوكُمۡۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَشَدُّ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۚ وَلَا تُقَٰتِلُوهُمۡ عِندَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ حَتَّىٰ يُقَٰتِلُوكُمۡ فِيهِۖ فَإِن قَٰتَلُوكُمۡ فَٱقۡتُلُوهُمۡۗ كَذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡكَٰفِرِينَ
और उन्हें हत करो, जहाँ पाओ और उन्हें निकालो, जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना[1] (उपद्रव), हत करने से भी बुरा है और उनसे मस्जिदे ह़राम के पास युध्द न करो, जब तक वे तुमसे वहाँ युध्द[2] न करें। परन्तु, यदि वे तुमसे युध्द करें, तो उनकी हत्या करो, यही काफ़िरों का बदला है।
Surah Al-Baqara, Verse 191
فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
फिर यदि वे (आक्रमण करने से) रुक जायें, तो अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 192
وَقَٰتِلُوهُمۡ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتۡنَةٞ وَيَكُونَ ٱلدِّينُ لِلَّهِۖ فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَلَا عُدۡوَٰنَ إِلَّا عَلَى ٱلظَّـٰلِمِينَ
तथा उनसे युध्द करो, यहाँ तक कि फ़ितना न रह जाये और धर्म केवल अल्लाह के लिए रह जाये, फिर यदि वे रुक जायें, तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी और पर अत्याचार नहीं करना चाहिए।
Surah Al-Baqara, Verse 193
ٱلشَّهۡرُ ٱلۡحَرَامُ بِٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ وَٱلۡحُرُمَٰتُ قِصَاصٞۚ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَٱعۡتَدُواْ عَلَيۡهِ بِمِثۡلِ مَا ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُتَّقِينَ
सम्मानित[1] मास, सम्मानित मास के बदले है और सम्मानित विषयों में बराबरी है। अतः, जो तुमपर अतिक्रमण (अत्याचार) करे, तो तुम भी उसपर उसी के समान (अतिक्रमण) करो तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो और जान लो कि अल्लाह आज्ञाकारियों के साथ है।
Surah Al-Baqara, Verse 194
وَأَنفِقُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَلَا تُلۡقُواْ بِأَيۡدِيكُمۡ إِلَى ٱلتَّهۡلُكَةِ وَأَحۡسِنُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
तथा अल्लाह की राह (जिहाद) में धन ख़र्च करो और अपने-आपको विनाश में न डालो तथा उपकार करो, निश्चय अल्लाह उपकारियों से प्रेम करता है।
Surah Al-Baqara, Verse 195
وَأَتِمُّواْ ٱلۡحَجَّ وَٱلۡعُمۡرَةَ لِلَّهِۚ فَإِنۡ أُحۡصِرۡتُمۡ فَمَا ٱسۡتَيۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡيِۖ وَلَا تَحۡلِقُواْ رُءُوسَكُمۡ حَتَّىٰ يَبۡلُغَ ٱلۡهَدۡيُ مَحِلَّهُۥۚ فَمَن كَانَ مِنكُم مَّرِيضًا أَوۡ بِهِۦٓ أَذٗى مِّن رَّأۡسِهِۦ فَفِدۡيَةٞ مِّن صِيَامٍ أَوۡ صَدَقَةٍ أَوۡ نُسُكٖۚ فَإِذَآ أَمِنتُمۡ فَمَن تَمَتَّعَ بِٱلۡعُمۡرَةِ إِلَى ٱلۡحَجِّ فَمَا ٱسۡتَيۡسَرَ مِنَ ٱلۡهَدۡيِۚ فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ ثَلَٰثَةِ أَيَّامٖ فِي ٱلۡحَجِّ وَسَبۡعَةٍ إِذَا رَجَعۡتُمۡۗ تِلۡكَ عَشَرَةٞ كَامِلَةٞۗ ذَٰلِكَ لِمَن لَّمۡ يَكُنۡ أَهۡلُهُۥ حَاضِرِي ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
तथा ह़ज और उमरह अल्लाह के लिए पूरा करो और यदि रोक दिये जाओ[1], तो जो क़ुर्बानी सुलभ हो (कर दो) और अपने सिर न मुँडाओ, जब तक कि क़ुर्बानी अपने स्थान तक न पहुँच[2] जाये, यदि तुममें से कोई व्यक्ति रोगी हो या उसके सिर में कोई पीड़ा हो (और सिर मुँडा ले), तो उसके बदले में रोज़ा रखना या दान[3] देना या क़ुर्बानी देना है और जब तुम निर्भय (शान्त) रहो, तो जो उमरे से ह़ज तक लाभान्वित[4] हो, वह जो क़ुर्बानी सुलभ हो, उसे करे और जिसे उपलब्ध न हो, वह तीन रोज़े ह़ज के दिनों में रखे और सात, जब रखे, जब तुम (घर) वापस आओ। ये पूरे दस हुए। ये उसके लिए है, जो मस्जिदे ह़राम का निवासी न हो और अल्लाह से डरो तथा जान लो कि अल्लाह की यातना बहुत कड़ी है।
Surah Al-Baqara, Verse 196
ٱلۡحَجُّ أَشۡهُرٞ مَّعۡلُومَٰتٞۚ فَمَن فَرَضَ فِيهِنَّ ٱلۡحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِي ٱلۡحَجِّۗ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ يَعۡلَمۡهُ ٱللَّهُۗ وَتَزَوَّدُواْ فَإِنَّ خَيۡرَ ٱلزَّادِ ٱلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُونِ يَـٰٓأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ
ह़ज के महीने प्रसिध्द हैं, जो व्यक्ति इनमें ह़ज का निश्चय कर ले, तो (ह़ज के बीच) काम वासना तथा अवज्ञा और झगड़े की बातें न करे तथा तुम जो भी अच्छे कर्म करोगे, उसका ज्ञान अल्लाह को हो जायेगा और अपने लिए पाथेय बना लो, उत्तम पाथेय अल्लाह की आज्ञाकारिता है तथा हे समझ वालो! मुझी से डरो।
Surah Al-Baqara, Verse 197
لَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَبۡتَغُواْ فَضۡلٗا مِّن رَّبِّكُمۡۚ فَإِذَآ أَفَضۡتُم مِّنۡ عَرَفَٰتٖ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ عِندَ ٱلۡمَشۡعَرِ ٱلۡحَرَامِۖ وَٱذۡكُرُوهُ كَمَا هَدَىٰكُمۡ وَإِن كُنتُم مِّن قَبۡلِهِۦ لَمِنَ ٱلضَّآلِّينَ
तथा तुमपर कोई दोष[1] नहीं कि अपने पालनहार के अनुग्रह की खोज करो, फिर जब तुम अरफ़ात[2] से चलो, तो मश्अरे ह़राम (मुज़दलिफ़ह) के पास अल्लाह का स्मरण करो, जिस प्रकार अल्लाह ने तुम्हें बताया है। यद्यपि इससे पहले तुम कुपथों में से थे।
Surah Al-Baqara, Verse 198
ثُمَّ أَفِيضُواْ مِنۡ حَيۡثُ أَفَاضَ ٱلنَّاسُ وَٱسۡتَغۡفِرُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
फिर तुम[1] भी वहीं से फिरो, जहाँ से लोग फिरते हैं तथा अल्लाह से क्षमा माँगो। निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 199
فَإِذَا قَضَيۡتُم مَّنَٰسِكَكُمۡ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَذِكۡرِكُمۡ ءَابَآءَكُمۡ أَوۡ أَشَدَّ ذِكۡرٗاۗ فَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَقُولُ رَبَّنَآ ءَاتِنَا فِي ٱلدُّنۡيَا وَمَا لَهُۥ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِنۡ خَلَٰقٖ
और जब तुम अपने ह़ज के मनासिक (कर्म) पूरे कर लो, तो जिस प्रकार पहले अपने पूर्वजों की चर्चा करते रहे, उसी प्रकार बल्कि उससे भी अधिक अल्लाह का स्मरण[1] करो। उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो ये कहते हैं कि हे हमारे पालनहार! (हमें जो देना है,) संसार ही में दे दे। अतः ऐसे व्यक्ति के लिए परलोक में कोई भाग नहीं है।
Surah Al-Baqara, Verse 200
وَمِنۡهُم مَّن يَقُولُ رَبَّنَآ ءَاتِنَا فِي ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٗ وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِ حَسَنَةٗ وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ
तथा उनमें से कुछ ऐसे हैं, जो ये कहते हैं कि हमारे पालनहार! हमें संसार में भलाई दे तथा परलोक में भी भलाई दे और हमें नरक की यातना से सुरक्षित रख।
Surah Al-Baqara, Verse 201
أُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ نَصِيبٞ مِّمَّا كَسَبُواْۚ وَٱللَّهُ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ
इन्हीं को इनकी कमाई के कारण भाग मिलेगा और अल्लाह शीघ्र ह़िसाब चुकाने बाला है।
Surah Al-Baqara, Verse 202
۞وَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ فِيٓ أَيَّامٖ مَّعۡدُودَٰتٖۚ فَمَن تَعَجَّلَ فِي يَوۡمَيۡنِ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِ وَمَن تَأَخَّرَ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِۖ لِمَنِ ٱتَّقَىٰۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّكُمۡ إِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ
तथा इन गिनती[1] के कुछ दिनों में अल्लाह को स्मरण (याद) करो, फिर जो व्यक्ति शीघ्रता से दो ही दिन में (मिना से) चल[2] दे, उसपर कोई दोष नहीं और जो विलम्ब[3] करे, उसपर भी कोई दोष नहीं, उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह से डरा तथा तुम अल्लाह से डरते रहो और ये समझ लो कि तुम उसी के पास प्रलय के दिन एकत्र किए जाओगो।
Surah Al-Baqara, Verse 203
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يُعۡجِبُكَ قَوۡلُهُۥ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَيُشۡهِدُ ٱللَّهَ عَلَىٰ مَا فِي قَلۡبِهِۦ وَهُوَ أَلَدُّ ٱلۡخِصَامِ
(हे नबी!) लोगों[1] में ऐसा व्यक्ति भी है, जिसकी बात आपको सांसारिक विषय में भाती है तथा जो कुछ उसके दिल में है, वह उसपर अल्लाह को साक्षी बनाता है, जबकि बह बड़ा झगड़ालू है।
Surah Al-Baqara, Verse 204
وَإِذَا تَوَلَّىٰ سَعَىٰ فِي ٱلۡأَرۡضِ لِيُفۡسِدَ فِيهَا وَيُهۡلِكَ ٱلۡحَرۡثَ وَٱلنَّسۡلَۚ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلۡفَسَادَ
तथा जब वह आपके पास से जाता है, तो धरती में उपद्रव मचाने का प्रयास करता है और खेती तथा पशुओं का विनाश करता है और अल्लाह उपद्रव से प्रेम नहीं करता।
Surah Al-Baqara, Verse 205
وَإِذَا قِيلَ لَهُ ٱتَّقِ ٱللَّهَ أَخَذَتۡهُ ٱلۡعِزَّةُ بِٱلۡإِثۡمِۚ فَحَسۡبُهُۥ جَهَنَّمُۖ وَلَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ
तथा जब उससे कहा जाता है कि अल्लाह से डर, तो अभिमान उसे पाप पर उभार देता है। अतः उसके (दण्ड) के लिए नरक काफ़ी है और वह बहुत बुरा बिछौना है।
Surah Al-Baqara, Verse 206
وَمِنَ ٱلنَّاسِ مَن يَشۡرِي نَفۡسَهُ ٱبۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ رَءُوفُۢ بِٱلۡعِبَادِ
तथा लोगों में ऐसा व्यक्ति भी है, जो अल्लाह की प्रसन्नता की खोज में अपना प्राण बेच[1] देता है और अल्लाह अपने भक्तों के लिए अति करुणामय है।
Surah Al-Baqara, Verse 207
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱدۡخُلُواْ فِي ٱلسِّلۡمِ كَآفَّةٗ وَلَا تَتَّبِعُواْ خُطُوَٰتِ ٱلشَّيۡطَٰنِۚ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوّٞ مُّبِينٞ
हे ईमान वालो! तुम सर्वथा इस्लाम में प्रवेश[1] कर जाओ और शैतान की राहों पर मत चलो, निश्चय वह तुम्हारा खुला शत्रु है।
Surah Al-Baqara, Verse 208
فَإِن زَلَلۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡكُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ فَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
फिर यदि तुम खुले तर्कों (दलीलों)[1] के आने के पश्चात विचलित हो गये, तो जान लो कि अल्लाह प्रभुत्वशाली तथा तत्वज्ञ[2] है।
Surah Al-Baqara, Verse 209
هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّآ أَن يَأۡتِيَهُمُ ٱللَّهُ فِي ظُلَلٖ مِّنَ ٱلۡغَمَامِ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ وَقُضِيَ ٱلۡأَمۡرُۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ
क्या (इन खुले तर्कों के आ जाने के पश्चात्) वे इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि उनके समक्ष अल्लाह तथा फ़रिश्ते बादलों के छत्र में आ जायें और निर्णय ही कर दिया जाये? और सभी विषय अल्लाह ही की ओर फेरे[1] जायेंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 210
سَلۡ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ كَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُم مِّنۡ ءَايَةِۭ بَيِّنَةٖۗ وَمَن يُبَدِّلۡ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
बनी इस्राईल से पूछो कि हमने उन्हें कितनी खुली निशानियाँ दीं? इसपर भी जिसने अल्लाह की अनुकम्पा को, उसके अपने पास आ जाने के पश्चात् बदल दिया, तो अल्लाह की यातना भी बहुत कड़ी है।
Surah Al-Baqara, Verse 211
زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا وَيَسۡخَرُونَ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۘ وَٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ فَوۡقَهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ وَٱللَّهُ يَرۡزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيۡرِ حِسَابٖ
काफ़िरों के लिए सांसारिक जीवन शोभनीय (मनोहर) बना दिया गया है तथा जो ईमान लाये ये उनका उपहास[1] करते हैं और प्रलय के दिन अल्लाह के आज्ञाकारी उनसे उच्च स्थान[1] पर रहेंगे तथा अल्लाह जिसे चाहे, अगणित आजीविका प्रदान करता है।
Surah Al-Baqara, Verse 212
كَانَ ٱلنَّاسُ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ فَبَعَثَ ٱللَّهُ ٱلنَّبِيِّـۧنَ مُبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ وَأَنزَلَ مَعَهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ لِيَحۡكُمَ بَيۡنَ ٱلنَّاسِ فِيمَا ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِۚ وَمَا ٱخۡتَلَفَ فِيهِ إِلَّا ٱلَّذِينَ أُوتُوهُ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ بَغۡيَۢا بَيۡنَهُمۡۖ فَهَدَى ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لِمَا ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِ مِنَ ٱلۡحَقِّ بِإِذۡنِهِۦۗ وَٱللَّهُ يَهۡدِي مَن يَشَآءُ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٍ
(आरंभ में) सभी मानव एक ही (स्वाभाविक) सत्धर्म पर थे। (फिर विभेद हुआ) तो अल्लाह ने नबियों को शुभ समाचार सुनाने[1] और (अवज्ञा) से सचेत करने के लिए भेजा और उनपर सत्य के साथ पुस्तक उतारी, ताकि वे जिन बातों में विभेद कर रहे हैं, उनका निर्णय कर दे। और आपकी दुराग्रह के कारण उन्होंने ही विभेद किया, जिन्हें (विभेद निवारण के लिए) ये पुस्तक दी गयी। (अल्बत्ता) जो ईमान लाये, अल्लाह ने उस विभेद में उन्हें अपनी अनुमति से सत्पथ दर्शा दिया और अल्लाह जिसे चाहे, सत्पथ दर्शा देता है।
Surah Al-Baqara, Verse 213
أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا يَأۡتِكُم مَّثَلُ ٱلَّذِينَ خَلَوۡاْ مِن قَبۡلِكُمۖ مَّسَّتۡهُمُ ٱلۡبَأۡسَآءُ وَٱلضَّرَّآءُ وَزُلۡزِلُواْ حَتَّىٰ يَقُولَ ٱلرَّسُولُ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ مَتَىٰ نَصۡرُ ٱللَّهِۗ أَلَآ إِنَّ نَصۡرَ ٱللَّهِ قَرِيبٞ
क्या तुमने समझ रखा है कि यूँ ही स्वर्ग में प्रवेश कर जाओगे, ह़ालाँकि अभी तक तुम्हारी वह दशा नहीं हुई, जो तुमसे पूर्व के ईमान वालों की हुई? उन्हें तंगियों तथा आपदाओं ने घेर लिया और वे झंझोड़ दिये गये, यहाँ तक कि रसूल और जो उसपर ईमान लाये, गुहारने लगे कि अल्लाह की सहायता कब आयेगी? (उस समय कहा गयाः)सुन लो! अल्लाह की सहायता समीप[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 214
يَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا يُنفِقُونَۖ قُلۡ مَآ أَنفَقۡتُم مِّنۡ خَيۡرٖ فَلِلۡوَٰلِدَيۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِينَ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِيلِۗ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِيمٞ
(हे नबी!) वे आपसे प्रश्न करते हैं कि कैसे व्यय (ख़र्च) करें? उनसे कह दीजिये कि जो भी धन तुम ख़र्च करो, तो अपने माता-पिता, समीपवर्तियों, अनाथों, निर्धनों तथा यात्रियों (को दो)। तथा जो भी भलाई तुम करते हो, उसे अल्लाह भलि-भाँति जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 215
كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ وَهُوَ كُرۡهٞ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰٓ أَن تَكۡرَهُواْ شَيۡـٔٗا وَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۖ وَعَسَىٰٓ أَن تُحِبُّواْ شَيۡـٔٗا وَهُوَ شَرّٞ لَّكُمۡۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ
(हे ईमान वालो!) तुमपर युध्द करना अनिवार्य कर दिया गया है, ह़लाँकि वह तुम्हें अप्रिय है। हो सकता है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वही तुम्हारे लिए अच्छी हो और इसी प्रकार सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। अल्लाह जानता है और तुम नहीं[1] जानते।
Surah Al-Baqara, Verse 216
يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ قِتَالٖ فِيهِۖ قُلۡ قِتَالٞ فِيهِ كَبِيرٞۚ وَصَدٌّ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَكُفۡرُۢ بِهِۦ وَٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَإِخۡرَاجُ أَهۡلِهِۦ مِنۡهُ أَكۡبَرُ عِندَ ٱللَّهِۚ وَٱلۡفِتۡنَةُ أَكۡبَرُ مِنَ ٱلۡقَتۡلِۗ وَلَا يَزَالُونَ يُقَٰتِلُونَكُمۡ حَتَّىٰ يَرُدُّوكُمۡ عَن دِينِكُمۡ إِنِ ٱسۡتَطَٰعُواْۚ وَمَن يَرۡتَدِدۡ مِنكُمۡ عَن دِينِهِۦ فَيَمُتۡ وَهُوَ كَافِرٞ فَأُوْلَـٰٓئِكَ حَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
(हे नबी!) वे[1] आपसे प्रश्न करते हैं कि सम्मानित मास में युध्द करना कैसा है? आप उनसे कह दें कि उसमें युध्द करना घोर पाप है, परन्तु अल्लाह की राह से रोकना, उसका इन्कार करना, मस्जिदे ह़राम से रोकना और उसके निवासियों को उससे निकालना, अल्लाह के समीप उससे भी घोर पाप है तथा फ़ितना (सत्धर्म से विचलाना) हत्या से भी भारी है। और वे तो तुमसे युध्द करते ही जायेंगे, यहाँ तक कि उनके बस में हो, तो तुम्हें तुम्हारे धर्म से फेर दें और तुममें से जो व्यक्ति अपने धर्म (इस्लाम) से फिर जायेगा, फिर कुफ़्र पर ही उसकी मौत होगी, ऐसों का किया-कराया, संसार तथा परलोक में व्यर्थ हो जायेगा तथा वही नारकी हैं और वे उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 217
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ وَجَٰهَدُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰٓئِكَ يَرۡجُونَ رَحۡمَتَ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
(इसके विपरीत) जो लोग ईमान लाये, हिजरत[1] की तथा अल्लाह की राह में जिहाद किया, वास्तव में, वही अल्लाह की दया की आशा रखते हैं तथा अल्लाह अति क्षमाशील और बहुत दयालु है।
Surah Al-Baqara, Verse 218
۞يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡخَمۡرِ وَٱلۡمَيۡسِرِۖ قُلۡ فِيهِمَآ إِثۡمٞ كَبِيرٞ وَمَنَٰفِعُ لِلنَّاسِ وَإِثۡمُهُمَآ أَكۡبَرُ مِن نَّفۡعِهِمَاۗ وَيَسۡـَٔلُونَكَ مَاذَا يُنفِقُونَۖ قُلِ ٱلۡعَفۡوَۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ
(हे नबी!) वे आपसे मदिरा और जुआ के विषय में प्रश्न करते हैं। आप बता दें कि इन दोनों में बड़ा पाप है तथा लोगों का कुछ लाभ भी है; परन्तु उनका पाप उनके लाभ से अधिक[1] बड़ा है। तथा वे आपसे प्रश्न करते हैं कि अल्लाह की राह में क्या ख़र्च करें? उनसे कह दीजिये कि जो अपनी आवश्यक्ता से अधिक हो। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों (धर्मादेशों) को उजागर करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो।
Surah Al-Baqara, Verse 219
فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۗ وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡيَتَٰمَىٰۖ قُلۡ إِصۡلَاحٞ لَّهُمۡ خَيۡرٞۖ وَإِن تُخَالِطُوهُمۡ فَإِخۡوَٰنُكُمۡۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ ٱلۡمُفۡسِدَ مِنَ ٱلۡمُصۡلِحِۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَأَعۡنَتَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ
दुनिया और आख़रित दोनो में और वे आपसे अनाथों के विषय में प्रश्ण करते हैं। उनसे कह दीजिए कि जिस बात में उनका सुधार हो वही सबसे अच्छी है। यदि तुम उनसे मिलकर रहो, तो वे तुम्हारे भाई ही हैं और अल्लाह जानता है कि कौन सुधारने और कौन बिगाड़ने वाला है और यदि अल्लाह चाहता, तो तुमपर सख्ती[1] कर देता। वास्तव में, अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।
Surah Al-Baqara, Verse 220
وَلَا تَنكِحُواْ ٱلۡمُشۡرِكَٰتِ حَتَّىٰ يُؤۡمِنَّۚ وَلَأَمَةٞ مُّؤۡمِنَةٌ خَيۡرٞ مِّن مُّشۡرِكَةٖ وَلَوۡ أَعۡجَبَتۡكُمۡۗ وَلَا تُنكِحُواْ ٱلۡمُشۡرِكِينَ حَتَّىٰ يُؤۡمِنُواْۚ وَلَعَبۡدٞ مُّؤۡمِنٌ خَيۡرٞ مِّن مُّشۡرِكٖ وَلَوۡ أَعۡجَبَكُمۡۗ أُوْلَـٰٓئِكَ يَدۡعُونَ إِلَى ٱلنَّارِۖ وَٱللَّهُ يَدۡعُوٓاْ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ وَٱلۡمَغۡفِرَةِ بِإِذۡنِهِۦۖ وَيُبَيِّنُ ءَايَٰتِهِۦ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ
तथा मुश्रिक[1] स्त्रियों से तुम विवाह न करो, जब तक वे ईमान न लायें और ईमान वाली दासी मुश्रिक स्त्री से उत्तम है, यद्यपि वह तुम्हारे मन को भा रही हो और अपनी स्त्रियों का निकाह़ मुश्रिकों से न करो, जब तक वे ईमान न लायें और ईमान वाला दास मुश्रिक से उत्तम है, यद्यपि वह तुम्हें भा रहा हो। वे तुम्हें अग्नि की ओर बुलाते हैं तथा अल्लाह स्वर्ग और क्षमा की ओर बुला रहा है और (अल्लाह) सभी मानव के लिए अपनी आयतें (आदेश) उजागर कर रहा है, ताकि वह शिक्षा ग्रहन करें।
Surah Al-Baqara, Verse 221
وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡمَحِيضِۖ قُلۡ هُوَ أَذٗى فَٱعۡتَزِلُواْ ٱلنِّسَآءَ فِي ٱلۡمَحِيضِ وَلَا تَقۡرَبُوهُنَّ حَتَّىٰ يَطۡهُرۡنَۖ فَإِذَا تَطَهَّرۡنَ فَأۡتُوهُنَّ مِنۡ حَيۡثُ أَمَرَكُمُ ٱللَّهُۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلتَّوَّـٰبِينَ وَيُحِبُّ ٱلۡمُتَطَهِّرِينَ
तथा वे आपसे मासिक धर्म के विषय में प्रश्न करते हैं। तो कह दें कि वह मलीनता है और उनके समीप भी न[1] जाओ, जब तक पवित्र न हो जायें। फिर जब वे भली भाँति स्वच्छ[2] हो जायें, तो उनके पास उसी प्रकार जाओ, जैसे अल्लाह ने तुम्हें आदेश[3] दिया है। निश्चय अल्लाह तौबा करने वालों तथा पवित्र रहने वालों से प्रेम करता है।
Surah Al-Baqara, Verse 222
نِسَآؤُكُمۡ حَرۡثٞ لَّكُمۡ فَأۡتُواْ حَرۡثَكُمۡ أَنَّىٰ شِئۡتُمۡۖ وَقَدِّمُواْ لِأَنفُسِكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّكُم مُّلَٰقُوهُۗ وَبَشِّرِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
तुम्हारी पत्नियाँ तुम्हारे लिए खेतियाँ[1] हैं। तुम्हें अनुमति है कि जैसे चाहो, अपनी खेतियों में जाओ; परन्तु भविष्य के लिए भी सत्कर्म करो तथा अल्लाह से डरते रहो और विश्वास रखो कि तुम्हें उससे मिलना है और ईमान वालों को शुभ सूचना सुना दो।
Surah Al-Baqara, Verse 223
وَلَا تَجۡعَلُواْ ٱللَّهَ عُرۡضَةٗ لِّأَيۡمَٰنِكُمۡ أَن تَبَرُّواْ وَتَتَّقُواْ وَتُصۡلِحُواْ بَيۡنَ ٱلنَّاسِۚ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
तथा अल्लाह के नाम पर, अपनी शपथों को उपकार तथा सदाचार और लोगों में मिलाप कराने के लिए रोक[1] न बनाओ और अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 224
لَّا يُؤَاخِذُكُمُ ٱللَّهُ بِٱللَّغۡوِ فِيٓ أَيۡمَٰنِكُمۡ وَلَٰكِن يُؤَاخِذُكُم بِمَا كَسَبَتۡ قُلُوبُكُمۡۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٞ
अल्लाह तम्हारी निरर्थक शपथों पर तुम्हें नहीं पकड़ेगा, परन्तु जो शपथ अपने दिलों के संकल्प से लोगे, उनपर पकड़ेगा और अल्लाह अति क्षमाशील, सहनशील है।
Surah Al-Baqara, Verse 225
لِّلَّذِينَ يُؤۡلُونَ مِن نِّسَآئِهِمۡ تَرَبُّصُ أَرۡبَعَةِ أَشۡهُرٖۖ فَإِن فَآءُو فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
तथा जो लोग अपनी पत्नियों से संभोग न करने की शपथ लेते हों, वे चार महीने प्रतीक्षा करें। फिर[1] यदि (इस बीच) अपनी शपथ से फिर जायें, तो अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Al-Baqara, Verse 226
وَإِنۡ عَزَمُواْ ٱلطَّلَٰقَ فَإِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
और यदि उन्होंने तलाक़ का संकल्प ले लिया हो, तो निःसंदेह अल्लाह सब कुछ सुनता और जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 227
وَٱلۡمُطَلَّقَٰتُ يَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ ثَلَٰثَةَ قُرُوٓءٖۚ وَلَا يَحِلُّ لَهُنَّ أَن يَكۡتُمۡنَ مَا خَلَقَ ٱللَّهُ فِيٓ أَرۡحَامِهِنَّ إِن كُنَّ يُؤۡمِنَّ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۚ وَبُعُولَتُهُنَّ أَحَقُّ بِرَدِّهِنَّ فِي ذَٰلِكَ إِنۡ أَرَادُوٓاْ إِصۡلَٰحٗاۚ وَلَهُنَّ مِثۡلُ ٱلَّذِي عَلَيۡهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ وَلِلرِّجَالِ عَلَيۡهِنَّ دَرَجَةٞۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
तथा जिन स्त्रियों को तलाक़ दी गयी हो, वे तीन बार रजवती होने तक अपने आपको विवाह से रोके रखें। उनके लिए ह़लाल (वैध) नहीं है कि अल्लाह ने जो उनके गर्भाशयों में पैदा किया[1] है, उसे छुपायें, यदि वे अल्लाह तथा आख़िरत (परलोक) पर ईमान रखती हों तथा उनके पति इस अवधि में अपनी पत्नियों को लौटा लेने के अधिकारी[2] हैं, यदि वे मिलाप[3] चाहते हों तथा सामान्य नियमानुसार स्त्रियों[4] के लिए वैसे ही अधिकार हैं, जैसे पुरुषों के उनके ऊपर हैं। फिर भी पुरुषों को स्त्रियों पर एक प्रधानता प्राप्त है और अल्लाह अति प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।
Surah Al-Baqara, Verse 228
ٱلطَّلَٰقُ مَرَّتَانِۖ فَإِمۡسَاكُۢ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ تَسۡرِيحُۢ بِإِحۡسَٰنٖۗ وَلَا يَحِلُّ لَكُمۡ أَن تَأۡخُذُواْ مِمَّآ ءَاتَيۡتُمُوهُنَّ شَيۡـًٔا إِلَّآ أَن يَخَافَآ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَا فِيمَا ٱفۡتَدَتۡ بِهِۦۗ تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ فَلَا تَعۡتَدُوهَاۚ وَمَن يَتَعَدَّ حُدُودَ ٱللَّهِ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
तलाक़ दो बार है; फिर नियमानुसार स्त्री को रोक लिया जाये या भली-भाँति विदा कर दिया जाये और तुम्हारे लिए ये ह़लाल (वैध) नहीं है कि उन्हें जो कुछ तुमने दिया है, उसमें से कुछ वापिस लो। फिर यदि तुम्हें ये भय[1] हो कि पति पत्नि अल्लाह की निर्धारित सीमाओं को स्थापित न रख सकेंगे, तो उन दोनों पर कोई दोष नहीं कि पत्नि अपने पति को कुछ देकर मुक्ति[2] करा ले। ये अल्लाह की सीमायें हैं, इनका उल्लंघन न करो और जो अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करेंगे, वही अत्याचारी हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 229
فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُۥ مِنۢ بَعۡدُ حَتَّىٰ تَنكِحَ زَوۡجًا غَيۡرَهُۥۗ فَإِن طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَآ أَن يَتَرَاجَعَآ إِن ظَنَّآ أَن يُقِيمَا حُدُودَ ٱللَّهِۗ وَتِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِ يُبَيِّنُهَا لِقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ
फिर यदि उसे (तीसरी बार) तलाक़ दे दी, तो वह स्त्री उसके लिए ह़लाल (वैध) नहीं होगी, जब तक दूसरे पति से विवाह न कर ले। अब यदि दूसरा पति (संभोग के पश्चात्) उसे तलाक दे दे, तब प्रथम पति से (निर्धारित अवधि पूरी करके) फिर विवाह कर सकती है, यदि वे दोनों समझते हों कि अल्लाह की सीमाओं को स्थापित रख[1] सकेंगे और ये अल्लाह की सीमायें हैं, जिन्हें उन लोगों के लिए उजागर कर रहा है, जो ज्ञान रखते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 230
وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمۡسِكُوهُنَّ بِمَعۡرُوفٍ أَوۡ سَرِّحُوهُنَّ بِمَعۡرُوفٖۚ وَلَا تُمۡسِكُوهُنَّ ضِرَارٗا لِّتَعۡتَدُواْۚ وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ فَقَدۡ ظَلَمَ نَفۡسَهُۥۚ وَلَا تَتَّخِذُوٓاْ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ هُزُوٗاۚ وَٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ وَمَآ أَنزَلَ عَلَيۡكُم مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَٱلۡحِكۡمَةِ يَعِظُكُم بِهِۦۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ
और यदि स्त्रियों को (एक या दो) तलाक़ दे दो और उनकी निर्धारित अवधि (इद्दत) पूरी होने लगे, तो नियमानुसार उन्हें रोक लो अथवा नियमानुसार विदा कर दो। उन्हें हानि पहुँचाने के लिए न रोको, ताकि उनपर अत्याचार करो और जो कोई ऐसा करेगा, वह स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करेगा तथा अल्लाह की आयतों (आदेशों) को उपहास न बनाओ और अपने ऊपर अल्लाह के उपकार तथा पुस्तक (क़ुर्आन) एवं ह़िक्मत (सुन्नत) को याद करो, जिन्हें उसने तुमपर उतारा है और उनके द्वारा तुम्हें शिक्षा दे रहा है तथा अल्लाह से डरो और विश्वास रखो कि अल्लाह सब कुछ जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 231
وَإِذَا طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَبَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعۡضُلُوهُنَّ أَن يَنكِحۡنَ أَزۡوَٰجَهُنَّ إِذَا تَرَٰضَوۡاْ بَيۡنَهُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ ذَٰلِكَ يُوعَظُ بِهِۦ مَن كَانَ مِنكُمۡ يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۗ ذَٰلِكُمۡ أَزۡكَىٰ لَكُمۡ وَأَطۡهَرُۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ
और जब तुम अपनी पत्नियों को (तीन से कम) तलाक़ दो और वे अपनी निश्चित अवधि (इद्दत) पूरी कर लें, तो (स्त्रियों के संरक्षको!) उन्हें अपने पतियों से विवाह करने से न रोको, जबकि सामान्य नियमानुसार वे आपस में विवाह करने पर सहमत हों, ये तुममें से उसे निर्देश दिया जा रहा है, जो अल्लाह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान (विश्वास) रखता है, यही तुम्हारे लिए अधिक स्वच्छ तथा पवित्र है और अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते।
Surah Al-Baqara, Verse 232
۞وَٱلۡوَٰلِدَٰتُ يُرۡضِعۡنَ أَوۡلَٰدَهُنَّ حَوۡلَيۡنِ كَامِلَيۡنِۖ لِمَنۡ أَرَادَ أَن يُتِمَّ ٱلرَّضَاعَةَۚ وَعَلَى ٱلۡمَوۡلُودِ لَهُۥ رِزۡقُهُنَّ وَكِسۡوَتُهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ لَا تُكَلَّفُ نَفۡسٌ إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَا تُضَآرَّ وَٰلِدَةُۢ بِوَلَدِهَا وَلَا مَوۡلُودٞ لَّهُۥ بِوَلَدِهِۦۚ وَعَلَى ٱلۡوَارِثِ مِثۡلُ ذَٰلِكَۗ فَإِنۡ أَرَادَا فِصَالًا عَن تَرَاضٖ مِّنۡهُمَا وَتَشَاوُرٖ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَاۗ وَإِنۡ أَرَدتُّمۡ أَن تَسۡتَرۡضِعُوٓاْ أَوۡلَٰدَكُمۡ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ إِذَا سَلَّمۡتُم مَّآ ءَاتَيۡتُم بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ
और मातायें अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष दूध पिलायें और पिता को नियमानुसार उन्हें खाना-कपड़ा देना है, किसी पर उसकी सकत से अधिक भार नहीं डाला जायेगा; न माता को उसके बच्चे के कारण हानि पहुँचाई जाये और न पिता को उसके बच्चे के कारण। और इसी प्रकार उस (पिता) के वारिस (उत्तराधिकारी) पर (खाना कपड़ा देने का) भार है। फिर यदि दोनों आपस की सहमति तथा प्रामर्श से (दो वर्ष से पहले) दूध छुड़ाना चाहें, तो दोनों पर कोई दोष नहीं और यदि (तुम्हारा विचार किसी अन्य स्त्री से) दूध पिलवाने का हो, तो इसमें भी तुमपर कोई दोष नहीं, जबकि जो कुछ नियमानुसार उसे देना है, उसे चुका दो तथा अल्लाह से डरते रहो और जान लो कि तुम जो कुछ करते हो, उसे अल्लाह देख रहा[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 233
وَٱلَّذِينَ يُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَيَذَرُونَ أَزۡوَٰجٗا يَتَرَبَّصۡنَ بِأَنفُسِهِنَّ أَرۡبَعَةَ أَشۡهُرٖ وَعَشۡرٗاۖ فَإِذَا بَلَغۡنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِيمَا فَعَلۡنَ فِيٓ أَنفُسِهِنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
और तुममें से जो मर जायें और अपने पीछे पत्नियाँ छोड़ जायें, तो वे स्वयं को चार महीने दस दिन रोके रखें।[1] फिर जब उनकी अवधि पूरी हो जाये, तो वे सामान्य नियमानुसार अपने विषय में जो भी करें, उसमें तुमपर कोई दोष[2] नहीं तथा अल्लाह तुम्हारे कर्मों से सूचित है।
Surah Al-Baqara, Verse 234
وَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِيمَا عَرَّضۡتُم بِهِۦ مِنۡ خِطۡبَةِ ٱلنِّسَآءِ أَوۡ أَكۡنَنتُمۡ فِيٓ أَنفُسِكُمۡۚ عَلِمَ ٱللَّهُ أَنَّكُمۡ سَتَذۡكُرُونَهُنَّ وَلَٰكِن لَّا تُوَاعِدُوهُنَّ سِرًّا إِلَّآ أَن تَقُولُواْ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗاۚ وَلَا تَعۡزِمُواْ عُقۡدَةَ ٱلنِّكَاحِ حَتَّىٰ يَبۡلُغَ ٱلۡكِتَٰبُ أَجَلَهُۥۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا فِيٓ أَنفُسِكُمۡ فَٱحۡذَرُوهُۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٞ
इस अवधि में यदि तुम (उन) स्त्रियों को विवाह का संकेत दो अथवा अपने मन में छुपाये रखो, तो तुमपर कोई दोष नहीं। अल्लाह जानता है कि उनका विचार तुम्हारे मन में आयेगा, परन्तु उन्हें गुप्त रूप से विवाह का वचन न दो। परन्तु ये कि नियमानुसार[1] कोई बात कहो तथा विवाह के बंधन का निश्चय उस समय तक न करो, जब तक निर्धारित अवधि पूरी न हो जाये[2] तथा जान लो कि जो कुछ तुम्हारे मन में है, उसे अल्लाह जानता है। अतः उससे डरते रहो और जान लो कि अल्लाह क्षमाशील, सहनशील है।
Surah Al-Baqara, Verse 235
لَّا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ إِن طَلَّقۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ مَا لَمۡ تَمَسُّوهُنَّ أَوۡ تَفۡرِضُواْ لَهُنَّ فَرِيضَةٗۚ وَمَتِّعُوهُنَّ عَلَى ٱلۡمُوسِعِ قَدَرُهُۥ وَعَلَى ٱلۡمُقۡتِرِ قَدَرُهُۥ مَتَٰعَۢا بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُحۡسِنِينَ
और तुमपर कोई दोष नहीं, यदि तुम स्त्रियों को संभोग करने तथा महर (विवाह उपहार) निर्धारित करने से पहले तलाक़ दे दो, (अल्बत्ता) उन्हें नियमानुसार कुछ दो; धनी पर अपनी शक्ति के अनुसार तथा निर्धन पर अपनी शक्ति के अनुसार देना है। ये उपकारियों पर आवश्यक है।
Surah Al-Baqara, Verse 236
وَإِن طَلَّقۡتُمُوهُنَّ مِن قَبۡلِ أَن تَمَسُّوهُنَّ وَقَدۡ فَرَضۡتُمۡ لَهُنَّ فَرِيضَةٗ فَنِصۡفُ مَا فَرَضۡتُمۡ إِلَّآ أَن يَعۡفُونَ أَوۡ يَعۡفُوَاْ ٱلَّذِي بِيَدِهِۦ عُقۡدَةُ ٱلنِّكَاحِۚ وَأَن تَعۡفُوٓاْ أَقۡرَبُ لِلتَّقۡوَىٰۚ وَلَا تَنسَوُاْ ٱلۡفَضۡلَ بَيۡنَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ
और यदि तुम उनहें, उनसे संभोग करने से पहले तलाक़ दो, इस स्थिति में कि तुमने उनके लिए महर (विवाह उपहार) निर्धारित किया है, तो निर्धारित महर का आधा देना अनिवार्य है। ये और बात है कि वे क्षमा कर दें अथवा वे क्षमा कर दें जिनके हाथ में विवाह का बंधन[1] है और क्षमा कर देना संयम से अधिक समीप है और आपस में उपकार को न भूलो। तुम जो कुछ कर रहे हो, अल्लाह सब देख रहा है।
Surah Al-Baqara, Verse 237
حَٰفِظُواْ عَلَى ٱلصَّلَوَٰتِ وَٱلصَّلَوٰةِ ٱلۡوُسۡطَىٰ وَقُومُواْ لِلَّهِ قَٰنِتِينَ
नमाज़ों का, विशेष रूप से माध्यमिक नमाज़ (अस्र) का ध्यान रखो[1] तथा अल्लाह के लिए विनय पूर्वक खड़े रहो।
Surah Al-Baqara, Verse 238
فَإِنۡ خِفۡتُمۡ فَرِجَالًا أَوۡ رُكۡبَانٗاۖ فَإِذَآ أَمِنتُمۡ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُم مَّا لَمۡ تَكُونُواْ تَعۡلَمُونَ
और यदि तुम्हें भय[1] हो, तो पैदल या सवार (जैसे सम्भव हो) नमाज़ पढ़ो, फिर जब निश्चिंत हो जाओ, तो अल्लाह ने तुम्हें जैसे सिखाया है, जिसे पहले तुम नहीं जानते थे, वैसे अल्लाह को याद करो।
Surah Al-Baqara, Verse 239
وَٱلَّذِينَ يُتَوَفَّوۡنَ مِنكُمۡ وَيَذَرُونَ أَزۡوَٰجٗا وَصِيَّةٗ لِّأَزۡوَٰجِهِم مَّتَٰعًا إِلَى ٱلۡحَوۡلِ غَيۡرَ إِخۡرَاجٖۚ فَإِنۡ خَرَجۡنَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِي مَا فَعَلۡنَ فِيٓ أَنفُسِهِنَّ مِن مَّعۡرُوفٖۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٞ
और जो तुममें से मर जायें तथा पत्नियाँ छोड़ जायें, वे अपनी पत्नियों के लिए एक वर्ष तक, उनहें खर्च देने तथा (घर से) न निकालने की वसिय्यत कर जायें, यदि वे स्वयं निकल जायें[1] तथा सामान्य नियमानुसार अपने विषय में कुछ भी करें, तो तुमपर कोई दोष नहीं। अल्लाह प्रभावशाली तत्वज्ञ है।
Surah Al-Baqara, Verse 240
وَلِلۡمُطَلَّقَٰتِ مَتَٰعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِينَ
तथा जिन स्त्रियों को तलाक़ दी गयी हो, तो उन्हें भी उचित रूप से सामग्री मिलनी चाहिए। ये आज्ञाकारियों पर आवश्यक है।
Surah Al-Baqara, Verse 241
كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ
इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को उजागर कर देता है, ताकि तुम समझो।
Surah Al-Baqara, Verse 242
۞أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ خَرَجُواْ مِن دِيَٰرِهِمۡ وَهُمۡ أُلُوفٌ حَذَرَ ٱلۡمَوۡتِ فَقَالَ لَهُمُ ٱللَّهُ مُوتُواْ ثُمَّ أَحۡيَٰهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلنَّاسِ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَ ٱلنَّاسِ لَا يَشۡكُرُونَ
क्या आपने उनकी दशा पर विचार नहीं किया, जो अपने घरों से मौत के भय से निकल गये[1], जबकि उनकी संख्या हज़ारों में थी, तो अल्लाह ने उनसे कहा कि मर जाओ, फिर उन्हें जीवित कर दिया। वास्तव में, अल्लाह लोगों के लिए बड़ा उपकारी है, परन्तु अधिकांश लोग कृतज्ञता नहीं करते।
Surah Al-Baqara, Verse 243
وَقَٰتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
और तुम अल्लाह (के धर्म के समर्थन) के लिए युध्द करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 244
مَّن ذَا ٱلَّذِي يُقۡرِضُ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنٗا فَيُضَٰعِفَهُۥ لَهُۥٓ أَضۡعَافٗا كَثِيرَةٗۚ وَٱللَّهُ يَقۡبِضُ وَيَبۡصُۜطُ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ
कौन है, जो अल्लाह को अच्छा उधार[1] देता है, ताकि अल्लाह उसे उसके लिए कई गुना अधिक कर दे? और अल्लाह ही थोड़ा और अधिक करता है और उसी की ओर तुम सब फेरे जाओगे।
Surah Al-Baqara, Verse 245
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلۡمَلَإِ مِنۢ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ مِنۢ بَعۡدِ مُوسَىٰٓ إِذۡ قَالُواْ لِنَبِيّٖ لَّهُمُ ٱبۡعَثۡ لَنَا مَلِكٗا نُّقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۖ قَالَ هَلۡ عَسَيۡتُمۡ إِن كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِتَالُ أَلَّا تُقَٰتِلُواْۖ قَالُواْ وَمَا لَنَآ أَلَّا نُقَٰتِلَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَقَدۡ أُخۡرِجۡنَا مِن دِيَٰرِنَا وَأَبۡنَآئِنَاۖ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقِتَالُ تَوَلَّوۡاْ إِلَّا قَلِيلٗا مِّنۡهُمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلظَّـٰلِمِينَ
(हे नबी!) क्या आपने बनी इस्राईल के प्रमुखों के विषय पर विचार नहीं किया, जो मूसा के बाद सामने आया? जब उसने अपने नबी से कहाः हमारे लिए एक राजा बना दो। हम अल्लाह की राह में युध्द करेंगे, (नबी ने) कहाः ऐसा तो नहीं होगा कि तुम्हें युध्द का आदेश दे दिया जाये तो अवज्ञा कर जाओ? उन्होंने कहाः ऐसा नहीं हो सकता कि हम अल्लाह की राह में युध्द न करें। जबकि हम अपने घरों और अपने पुत्रों से निकाल दिये गये हैं। परन्तु, जब उन्हें युध्द का आदेश दे दिया गया, तो उनमें से थोड़े के सिवा सब फिर गये। और अल्लाह अत्याचारियों को भली भाँति जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 246
وَقَالَ لَهُمۡ نَبِيُّهُمۡ إِنَّ ٱللَّهَ قَدۡ بَعَثَ لَكُمۡ طَالُوتَ مَلِكٗاۚ قَالُوٓاْ أَنَّىٰ يَكُونُ لَهُ ٱلۡمُلۡكُ عَلَيۡنَا وَنَحۡنُ أَحَقُّ بِٱلۡمُلۡكِ مِنۡهُ وَلَمۡ يُؤۡتَ سَعَةٗ مِّنَ ٱلۡمَالِۚ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰهُ عَلَيۡكُمۡ وَزَادَهُۥ بَسۡطَةٗ فِي ٱلۡعِلۡمِ وَٱلۡجِسۡمِۖ وَٱللَّهُ يُؤۡتِي مُلۡكَهُۥ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ
तथा उनके नबी ने कहाः अल्लाह ने 'तालूत' को तुम्हारा राजा बना दिया है। वे कहने लगेः 'तालूत' हमारा राजा कैसे हो सकता है? हम उससे अधिक राज्य का अधिकार रखते हैं, वह तो बड़ा धनी भी नहीं है। (नबी ने) कहाः अल्लाह ने उसे तुमपर निर्वाचित किया है और उसे अधिक ज्ञान तथा शारीरिक बल प्रदान किया है और अल्लाह जिसे चाहे, अपना राज्य प्रदान करे तथा अल्लाह ही विशाल, अति ज्ञानी[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 247
وَقَالَ لَهُمۡ نَبِيُّهُمۡ إِنَّ ءَايَةَ مُلۡكِهِۦٓ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلتَّابُوتُ فِيهِ سَكِينَةٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَبَقِيَّةٞ مِّمَّا تَرَكَ ءَالُ مُوسَىٰ وَءَالُ هَٰرُونَ تَحۡمِلُهُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
तथा उनके नबी ने उनसे कहाः उसके राज्य का लक्षण ये है कि वह ताबूत तुम्हारे पास आयेगा, जिसमें तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हारे लिए संतोष तथा मूसा और हारून के घराने के छोड़े हुए अवशेष हैं, उसे फ़रिश्ते उठाये हुए होंगे। निश्चय यदि तुम ईमान वाले हो, तो इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी[1] (लक्षण) है।
Surah Al-Baqara, Verse 248
فَلَمَّا فَصَلَ طَالُوتُ بِٱلۡجُنُودِ قَالَ إِنَّ ٱللَّهَ مُبۡتَلِيكُم بِنَهَرٖ فَمَن شَرِبَ مِنۡهُ فَلَيۡسَ مِنِّي وَمَن لَّمۡ يَطۡعَمۡهُ فَإِنَّهُۥ مِنِّيٓ إِلَّا مَنِ ٱغۡتَرَفَ غُرۡفَةَۢ بِيَدِهِۦۚ فَشَرِبُواْ مِنۡهُ إِلَّا قَلِيلٗا مِّنۡهُمۡۚ فَلَمَّا جَاوَزَهُۥ هُوَ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥ قَالُواْ لَا طَاقَةَ لَنَا ٱلۡيَوۡمَ بِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦۚ قَالَ ٱلَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُم مُّلَٰقُواْ ٱللَّهِ كَم مِّن فِئَةٖ قَلِيلَةٍ غَلَبَتۡ فِئَةٗ كَثِيرَةَۢ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
फिर जब तालूत सेना लेकर चला, तो उसने कहाः निश्चय अल्लाह एक नहर द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेने वाला है। जो उसमें से पियेगा वह मेरा साथ नहीं देगा और जो उसे नहीं चखेगा, वह मेरा साथ देगा, परन्तु जो अपने हाथ से चुल्लू भर पी ले, (तो कोई दोष नहीं)। तो थोड़े के सिवा सबने उसमें से पी लिया। फिर जब उस (तालूत) ने और जो उसके साथ ईमान लाये, उसे (नहर को) पार किया, तो कहाः आज हममें (शत्रु) जालूत और उसकी सेना से युध्द करने की शक्ति नहीं। (परन्तु) जो समझ रहे थे कि उन्हें अल्लाह से मिलना है, उन्होंने कहाः बहुत-से छोटे दल, अल्लाह की अनुमति से, भारी दलों पर विजय प्राप्त कर चुके हैं और अल्लाह सहनशीलों के साथ है।
Surah Al-Baqara, Verse 249
وَلَمَّا بَرَزُواْ لِجَالُوتَ وَجُنُودِهِۦ قَالُواْ رَبَّنَآ أَفۡرِغۡ عَلَيۡنَا صَبۡرٗا وَثَبِّتۡ أَقۡدَامَنَا وَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ
और जब वे, जालूत और उसकी सेना के सम्मुख हुए, तो प्रार्थना कीः हे हमारे पालनहार! हमें धैर्य प्रदान कर तथा हमारे चरणों को (रणक्षेत्र में) स्थिर कर दे और काफ़िरों पर हमारी सहायता कर।
Surah Al-Baqara, Verse 250
فَهَزَمُوهُم بِإِذۡنِ ٱللَّهِ وَقَتَلَ دَاوُۥدُ جَالُوتَ وَءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَعَلَّمَهُۥ مِمَّا يَشَآءُۗ وَلَوۡلَا دَفۡعُ ٱللَّهِ ٱلنَّاسَ بَعۡضَهُم بِبَعۡضٖ لَّفَسَدَتِ ٱلۡأَرۡضُ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ ذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ
तो उन्होंने अल्लाह की अनुमति से उन्हें पराजित कर दिया और दावूद ने जालूत को वध कर दिया तथा अल्लाह ने उसे (दावूद[1] को) राज्य और ह़िक्मत (नुबूवत) प्रदान की तथा उसे जो ज्ञान चाहा, दिया और यदि अल्लाह कुछ लोगों की कुछ लोगों द्वारा रक्षा न करता, तो धरती की व्यवस्था बिगड़ जाती, परन्तु संसार वासियों पर अल्लाह बड़ा दयाशील है।
Surah Al-Baqara, Verse 251
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۚ وَإِنَّكَ لَمِنَ ٱلۡمُرۡسَلِينَ
(हे नबी!) ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम आपको सुना रहे हैं तथा वास्तव में, आप रसूलों में से हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 252
۞تِلۡكَ ٱلرُّسُلُ فَضَّلۡنَا بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۘ مِّنۡهُم مَّن كَلَّمَ ٱللَّهُۖ وَرَفَعَ بَعۡضَهُمۡ دَرَجَٰتٖۚ وَءَاتَيۡنَا عِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ ٱلۡبَيِّنَٰتِ وَأَيَّدۡنَٰهُ بِرُوحِ ٱلۡقُدُسِۗ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلَ ٱلَّذِينَ مِنۢ بَعۡدِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ وَلَٰكِنِ ٱخۡتَلَفُواْ فَمِنۡهُم مَّنۡ ءَامَنَ وَمِنۡهُم مَّن كَفَرَۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ مَا ٱقۡتَتَلُواْ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَفۡعَلُ مَا يُرِيدُ
वो रसूल हैं। उनहें हमने एक-दूसरे पर प्रधानता दी है। उनमें से कुछ ने अल्लाह से बात की और कुछ को कई श्रेणियाँ ऊँचा किया तथा मर्यम के पुत्र ईसा को खुली निशानियाँ दीं और रूह़ुलक़ुदुस[1] द्वारा उसे समर्थन दिया और यदि अल्लाह चाहता, तो इन रसूलों के पश्चात् खुली निशानियाँ आ जाने पर लोग आपस में न लड़ते, परन्तु उन्होंने विभेद किया, तो उनमें से कोई ईमान लाया और किसी ने कुफ़्र किया और यदि अल्लाह चाहता, तो वे नहीं लड़ते, परन्तु अल्लाह जो चाहता है, करता है।
Surah Al-Baqara, Verse 253
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَنفِقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَ يَوۡمٞ لَّا بَيۡعٞ فِيهِ وَلَا خُلَّةٞ وَلَا شَفَٰعَةٞۗ وَٱلۡكَٰفِرُونَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
हे ईमान वालो! हमने तुम्हें जो कुछ दिया है, उसमें से दान करो, उस दिन (अर्थातः प्रलय) के आने से पहले, जिसमें न कोई सौदा होगा, न कोई मैत्री और न ही कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) काम आएगी तथा काफ़िर लोग[1] ही अत्याचारी[2] हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 254
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡحَيُّ ٱلۡقَيُّومُۚ لَا تَأۡخُذُهُۥ سِنَةٞ وَلَا نَوۡمٞۚ لَّهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ مَن ذَا ٱلَّذِي يَشۡفَعُ عِندَهُۥٓ إِلَّا بِإِذۡنِهِۦۚ يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيۡءٖ مِّنۡ عِلۡمِهِۦٓ إِلَّا بِمَا شَآءَۚ وَسِعَ كُرۡسِيُّهُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَۖ وَلَا يَـُٔودُهُۥ حِفۡظُهُمَاۚ وَهُوَ ٱلۡعَلِيُّ ٱلۡعَظِيمُ
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह जीवित[1] तथा नित्य स्थायी है, उसे ऊँघ तथा निद्रा नहीं आती। आकाश और धरती में जो कुछ है, सब उसी का[2] है। कौन है, जो उसके पास उसकी अनुमति के बिना अनुशंसा (सिफ़ारिश) कर सके? जो कुछ उनके समक्ष और जो कुछ उनसे ओझल है, सब जानता है। उसके ज्ञान में से वही जान सकते हैं, जिसे वह चाहे। उसकी कुर्सी आकाश तथा धरती को समोये हुए है। उन दोनों की रक्षा उसे नहीं थकाती। वही सर्वोच्च[3], महान है।
Surah Al-Baqara, Verse 255
لَآ إِكۡرَاهَ فِي ٱلدِّينِۖ قَد تَّبَيَّنَ ٱلرُّشۡدُ مِنَ ٱلۡغَيِّۚ فَمَن يَكۡفُرۡ بِٱلطَّـٰغُوتِ وَيُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱسۡتَمۡسَكَ بِٱلۡعُرۡوَةِ ٱلۡوُثۡقَىٰ لَا ٱنفِصَامَ لَهَاۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
धर्म में बल प्रयोग नहीं। सुपथ, कुपथ से अलग हो चुका है। अतः, अब जो ताग़ूत (अर्थात अल्लाह के सिवा पूज्यों) को नकार दे तथा अल्लाह पर ईमान लाये, तो उसने दृढ़ कड़ा (सहारा) पकड़ लिया, जो कभी खण्डित नहीं हो सकता तथा अल्लाह सब कुछ सुनता-जानता[1] है।
Surah Al-Baqara, Verse 256
ٱللَّهُ وَلِيُّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ يُخۡرِجُهُم مِّنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَوۡلِيَآؤُهُمُ ٱلطَّـٰغُوتُ يُخۡرِجُونَهُم مِّنَ ٱلنُّورِ إِلَى ٱلظُّلُمَٰتِۗ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
अल्लाह उनका सहायक है, जो ईमान लाये। वह उनहें अंधेरों से निकालता है और प्रकाश में लाता है और जो काफ़िर (विश्वासहीन) हैं, उनके सहायक ताग़ूत (उनके मिथ्या पूज्य) हैं। जो उन्हें प्रकाश से अंधेरों की और ले जाते हैं। यही नारकी हैं, जो उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 257
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِي حَآجَّ إِبۡرَٰهِـۧمَ فِي رَبِّهِۦٓ أَنۡ ءَاتَىٰهُ ٱللَّهُ ٱلۡمُلۡكَ إِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ رَبِّيَ ٱلَّذِي يُحۡيِۦ وَيُمِيتُ قَالَ أَنَا۠ أُحۡيِۦ وَأُمِيتُۖ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ فَإِنَّ ٱللَّهَ يَأۡتِي بِٱلشَّمۡسِ مِنَ ٱلۡمَشۡرِقِ فَأۡتِ بِهَا مِنَ ٱلۡمَغۡرِبِ فَبُهِتَ ٱلَّذِي كَفَرَۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
(हे नबी!) क्या आपने उस व्यक्ति की दशा पर विचार नहीं किया, जिसने इब्राहीम से उसके पालनहार के विषय में विवाद किया, इसलिए कि अल्लाह ने उसे राज्य दिया था? जब इब्राहीम ने कहाः मेरा पालनहार वो है, जो जीवित करता तथा मारता है, तो उसने कहाः मैं भी जीवित[1] करता तथा मारता हूँ। इब्राहीम ने कहाः अल्लाह सूर्य को पूर्व से लाता है, तू उसे पश्चिम से ले आ! (ये सुनकर) काफ़िर चकित रह गया और अल्लाह अत्याचारियों को मार्गदर्शन नहीं देता।
Surah Al-Baqara, Verse 258
أَوۡ كَٱلَّذِي مَرَّ عَلَىٰ قَرۡيَةٖ وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَىٰ عُرُوشِهَا قَالَ أَنَّىٰ يُحۡيِۦ هَٰذِهِ ٱللَّهُ بَعۡدَ مَوۡتِهَاۖ فَأَمَاتَهُ ٱللَّهُ مِاْئَةَ عَامٖ ثُمَّ بَعَثَهُۥۖ قَالَ كَمۡ لَبِثۡتَۖ قَالَ لَبِثۡتُ يَوۡمًا أَوۡ بَعۡضَ يَوۡمٖۖ قَالَ بَل لَّبِثۡتَ مِاْئَةَ عَامٖ فَٱنظُرۡ إِلَىٰ طَعَامِكَ وَشَرَابِكَ لَمۡ يَتَسَنَّهۡۖ وَٱنظُرۡ إِلَىٰ حِمَارِكَ وَلِنَجۡعَلَكَ ءَايَةٗ لِّلنَّاسِۖ وَٱنظُرۡ إِلَى ٱلۡعِظَامِ كَيۡفَ نُنشِزُهَا ثُمَّ نَكۡسُوهَا لَحۡمٗاۚ فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُۥ قَالَ أَعۡلَمُ أَنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
अथवा उस व्यक्ति के प्रकार, जो एक ऐसी नगरी से गुज़रा, जो अपनी छतों सहित ध्वस्त पड़ी थी? उसने कहाः अल्लाह इसके ध्वस्त हो जाने के पश्चात् इसे कैसे जीवित (आबाद) करेगा? फिर अल्लाह ने उसे सौ वर्ष तक मौत दे दी। फिर उसे जीवित किया और कहाः तुम कितनी अवधि तक मुर्दा पड़े रहे? उसने कहाः एक दिन अथवा दिन के कुछ क्षण। (अल्लाह ने) कहाः बल्कि तुम सौ वर्ष तक पड़े रहे। अपने खाने पीने को देखो कि तनिक परिवर्तन नहीं हुआ है तथा अपने गधे की ओर देखो, ताकी हम तुम्हें लोगों के लिए एक निशानी (चिन्ह) बना दें तथा (गधे की) अस्थियों को देखो कि हम उन्हें कैसे खड़ा करते हैं और उनपर कैसे माँस चढ़ाते हैं? इस प्रकार जब उसके समक्ष बातें उजागर हो गयीं, तो वह[1] पुकार उठा कि मझे (प्रत्यक्ष) ज्ञान हो गया कि अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Al-Baqara, Verse 259
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِـۧمُ رَبِّ أَرِنِي كَيۡفَ تُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰۖ قَالَ أَوَلَمۡ تُؤۡمِنۖ قَالَ بَلَىٰ وَلَٰكِن لِّيَطۡمَئِنَّ قَلۡبِيۖ قَالَ فَخُذۡ أَرۡبَعَةٗ مِّنَ ٱلطَّيۡرِ فَصُرۡهُنَّ إِلَيۡكَ ثُمَّ ٱجۡعَلۡ عَلَىٰ كُلِّ جَبَلٖ مِّنۡهُنَّ جُزۡءٗا ثُمَّ ٱدۡعُهُنَّ يَأۡتِينَكَ سَعۡيٗاۚ وَٱعۡلَمۡ أَنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ
तथा (याद करो) जब इब्राहीम ने कहाः हे मेरे पालनहार! मुझे दिखा दे कि तू मुर्दों को कैसे जीवित कर देता है? (अल्लाह ने) कहाः क्या तुम ईमान नहीं लाये? उसने कहाः क्यों नहीं? परन्तु ताकि मेरे दिल को संतोष हो जाये। अल्लाह ने कहाः चार पक्षी ले आओ और उनहें अपने से परचा लो। (फिर उन्हें वध करके) उनका एक-एक अंश (भाग) पर्वत पर रख दो। फिर उन्हें पुकारो। वे तुम्हारे पास दौड़े चले आयेंगे और ये जान ले कि अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।
Surah Al-Baqara, Verse 260
مَّثَلُ ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنۢبَتَتۡ سَبۡعَ سَنَابِلَ فِي كُلِّ سُنۢبُلَةٖ مِّاْئَةُ حَبَّةٖۗ وَٱللَّهُ يُضَٰعِفُ لِمَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٌ
जो अल्लाह की राह में अपना धन दान करते हैं, उस (दान) की दशा उस एक दाने जैसी है, जिसने सात बालियाँ उगायी हों। (उसकी) प्रत्येक बाली में सौ दाने हों और अल्लाह जिसे चाहे और भी अधिक देता है तथा अल्लाह विशाल[1], ज्ञानी है।
Surah Al-Baqara, Verse 261
ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ثُمَّ لَا يُتۡبِعُونَ مَآ أَنفَقُواْ مَنّٗا وَلَآ أَذٗى لَّهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
जो अपना धन अल्लाह की राह में दान करते हैं, फिर दान करने के पश्चात् उपकार नहीं जताते और न (जिसे दिया हो उसे) दुःख देते हैं, उन्हीं के लिए उनके पालनहार के पास उनका प्रतिकार (बदला) है और उनपर कोई डर नहीं होगा और न ही वे उदासीन[1] होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 262
۞قَوۡلٞ مَّعۡرُوفٞ وَمَغۡفِرَةٌ خَيۡرٞ مِّن صَدَقَةٖ يَتۡبَعُهَآ أَذٗىۗ وَٱللَّهُ غَنِيٌّ حَلِيمٞ
भली बात बोलना तथा क्षमा, उस दान से उत्तम है, जिसके पश्चात् दुःख दिया जाये तथा अल्लाह निस्पृह, सहनशील है।
Surah Al-Baqara, Verse 263
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُبۡطِلُواْ صَدَقَٰتِكُم بِٱلۡمَنِّ وَٱلۡأَذَىٰ كَٱلَّذِي يُنفِقُ مَالَهُۥ رِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَلَا يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۖ فَمَثَلُهُۥ كَمَثَلِ صَفۡوَانٍ عَلَيۡهِ تُرَابٞ فَأَصَابَهُۥ وَابِلٞ فَتَرَكَهُۥ صَلۡدٗاۖ لَّا يَقۡدِرُونَ عَلَىٰ شَيۡءٖ مِّمَّا كَسَبُواْۗ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
हे ईमान वालो! उस व्यक्ति के समान उपकार जताकर तथा दुःख देकर, अपने दानों को व्यर्थ न करो, जो लोगों को दिखाने के लिए दान करता है और अल्लाह तथा अन्तिम दिन (परलोक) पर ईमान नहीं रखता। उसका उदाहरण उस चटेल पत्थर जैसा है, जिसपर मिट्टी पड़ी हो और उसपर घोर वर्षा हो जाये और उस (पत्थर) को चटेल छोड़ दे। वे अपनी कमाई का कुछ भी न पा सकेंगे और अल्लाह काफ़िरों को सीधी डगर नहीं दिखाता।
Surah Al-Baqara, Verse 264
وَمَثَلُ ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمُ ٱبۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِ وَتَثۡبِيتٗا مِّنۡ أَنفُسِهِمۡ كَمَثَلِ جَنَّةِۭ بِرَبۡوَةٍ أَصَابَهَا وَابِلٞ فَـَٔاتَتۡ أُكُلَهَا ضِعۡفَيۡنِ فَإِن لَّمۡ يُصِبۡهَا وَابِلٞ فَطَلّٞۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ
तथा उनकी उपमा, जो अपना धन अल्लाह की प्रसन्नता की इच्छा में अपने मन की स्थिरता के साथ दान करते हैं, उस बाग़ (उद्यान) जैसी है, जो पृथ्वी तल के किसी ऊँचे भाग पर हो, उसपर घोर वर्षा हुई, तो दोगुना फल लाया और यदि घोर वर्षा नहीं हुई, तो (उसके लिए) फुहार ही बस[1] हो तथा तुम जो कुछ कर रहे हो, उसे अल्लाह देख रहा है।
Surah Al-Baqara, Verse 265
أَيَوَدُّ أَحَدُكُمۡ أَن تَكُونَ لَهُۥ جَنَّةٞ مِّن نَّخِيلٖ وَأَعۡنَابٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ لَهُۥ فِيهَا مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ وَأَصَابَهُ ٱلۡكِبَرُ وَلَهُۥ ذُرِّيَّةٞ ضُعَفَآءُ فَأَصَابَهَآ إِعۡصَارٞ فِيهِ نَارٞ فَٱحۡتَرَقَتۡۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَتَفَكَّرُونَ
क्या तुममें से कोई चाहेगा कि उसके खजूर तथा अँगूरों के बाग़ हों, जिनमें नहरें बह रही हों, उनमें उसके लिए प्रत्येक प्रकार के फल हों तथा वह बूढ़ा हो गया हो और उसके निर्बल बच्चे हों, फिर वह बगोल के आघात से जिसमें आग हो, झुलस जाये।[1] इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए आयतें उजागर करता है, ताकि तुम सोच विचार करो।
Surah Al-Baqara, Verse 266
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَنفِقُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا كَسَبۡتُمۡ وَمِمَّآ أَخۡرَجۡنَا لَكُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِۖ وَلَا تَيَمَّمُواْ ٱلۡخَبِيثَ مِنۡهُ تُنفِقُونَ وَلَسۡتُم بِـَٔاخِذِيهِ إِلَّآ أَن تُغۡمِضُواْ فِيهِۚ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ
हे ईमान वालो! उन स्वच्छ चीजों में से, जो तुमने कमाई हैं तथा उन चीज़ों में से, जो हमने तुम्हारे लिए धरती से उपजायी हैं, दान करो तथा उसमें से उस चीज़ को दान करने का निश्चय न करो, जिसे तुम स्वयं न ले सको, परन्तु ये कि अनदेखी कर जाओ तथा जान लो कि अल्लाह निःस्पृह, प्रशंसित है।
Surah Al-Baqara, Verse 267
ٱلشَّيۡطَٰنُ يَعِدُكُمُ ٱلۡفَقۡرَ وَيَأۡمُرُكُم بِٱلۡفَحۡشَآءِۖ وَٱللَّهُ يَعِدُكُم مَّغۡفِرَةٗ مِّنۡهُ وَفَضۡلٗاۗ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ
शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है तथा निर्लज्जा की प्रेरणा देता है तथा अल्लाह तुम्हें अपनी क्षमा और अधिक देने का वचन देता है तथा अल्लाह विशाल ज्ञानी है।
Surah Al-Baqara, Verse 268
يُؤۡتِي ٱلۡحِكۡمَةَ مَن يَشَآءُۚ وَمَن يُؤۡتَ ٱلۡحِكۡمَةَ فَقَدۡ أُوتِيَ خَيۡرٗا كَثِيرٗاۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّآ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
वह जिसे चाहे, प्रबोध (धर्म की समझ) प्रदान करता है और जिसे प्रबोध प्रदान कर दिया गया, उसे बड़ा कल्याण मिल गया और समझ वाले ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
Surah Al-Baqara, Verse 269
وَمَآ أَنفَقۡتُم مِّن نَّفَقَةٍ أَوۡ نَذَرۡتُم مِّن نَّذۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُهُۥۗ وَمَا لِلظَّـٰلِمِينَ مِنۡ أَنصَارٍ
तथा तुम जो भी दान करो अथवा मनौती[1] मानो, अल्लाह उसे जानता है तथा अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा।
Surah Al-Baqara, Verse 270
إِن تُبۡدُواْ ٱلصَّدَقَٰتِ فَنِعِمَّا هِيَۖ وَإِن تُخۡفُوهَا وَتُؤۡتُوهَا ٱلۡفُقَرَآءَ فَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۚ وَيُكَفِّرُ عَنكُم مِّن سَيِّـَٔاتِكُمۡۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
यदि तुम खुले दान करो, तो वह भी अच्छा है तथा यदी छुपाकर करो और कंगालों को दो, तो वह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा[1] है। ये तुमसे तुम्हारे पापों को दूर कर देगा तथा तुम जो कुछ कर रहे हो, उससे अल्लाह सूचित है।
Surah Al-Baqara, Verse 271
۞لَّيۡسَ عَلَيۡكَ هُدَىٰهُمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَهۡدِي مَن يَشَآءُۗ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَلِأَنفُسِكُمۡۚ وَمَا تُنفِقُونَ إِلَّا ٱبۡتِغَآءَ وَجۡهِ ٱللَّهِۚ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَيۡرٖ يُوَفَّ إِلَيۡكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تُظۡلَمُونَ
उन्हें सीधी डगर पर लगा देना, आपका दायित्व नहीं, परन्तु अल्लाह जिसे चाहे, सीधी डगर पर लगा देता है तथा तुम जो भी दान देते हो, तो अपने लाभ के लिए देते हो तथा तुम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ही देते हो तथा तुम जो भी दान दोगे, तुम्हें उसका भर पूर प्रतिफल (बदला) दिया जायेगा और तुमपर अत्याचार[1] नहीं किया जायेगा।
Surah Al-Baqara, Verse 272
لِلۡفُقَرَآءِ ٱلَّذِينَ أُحۡصِرُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ لَا يَسۡتَطِيعُونَ ضَرۡبٗا فِي ٱلۡأَرۡضِ يَحۡسَبُهُمُ ٱلۡجَاهِلُ أَغۡنِيَآءَ مِنَ ٱلتَّعَفُّفِ تَعۡرِفُهُم بِسِيمَٰهُمۡ لَا يَسۡـَٔلُونَ ٱلنَّاسَ إِلۡحَافٗاۗ وَمَا تُنفِقُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِيمٌ
दान उन निर्धनों (कंगालों) के लिए है, जो अल्लाह की राह में ऐसे घिर गये हों कि धरती में दौड़-भाग न कर[1] सकते हों, उन्हें अज्ञान लोग न माँगने के कारण धनी समझते हैं, वे लोगों के पीछे पड़ कर नहीं माँगते। तुम उन्हें उनके लक्षणों से पहचान लोगे तथा जो भी धन तुम दान करोगे, निःसंदेह अल्लाह उसे भलि-भाँति जानने वाला है।
Surah Al-Baqara, Verse 273
ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُم بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ فَلَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
जो लोग अपना धन रात-दिन खुले-छुपे दान करते हैं, तो उन्हीं के लिए उनके पालनहार के पास, उनका प्रतिफल (बदला) है और उन्हें कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 274
ٱلَّذِينَ يَأۡكُلُونَ ٱلرِّبَوٰاْ لَا يَقُومُونَ إِلَّا كَمَا يَقُومُ ٱلَّذِي يَتَخَبَّطُهُ ٱلشَّيۡطَٰنُ مِنَ ٱلۡمَسِّۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُوٓاْ إِنَّمَا ٱلۡبَيۡعُ مِثۡلُ ٱلرِّبَوٰاْۗ وَأَحَلَّ ٱللَّهُ ٱلۡبَيۡعَ وَحَرَّمَ ٱلرِّبَوٰاْۚ فَمَن جَآءَهُۥ مَوۡعِظَةٞ مِّن رَّبِّهِۦ فَٱنتَهَىٰ فَلَهُۥ مَا سَلَفَ وَأَمۡرُهُۥٓ إِلَى ٱللَّهِۖ وَمَنۡ عَادَ فَأُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
जो लोग ब्याज खाते हैं, ऐसे उठेंगे जैसे वह उठता है, जिसे शैतान ने छूकर उनमत्त कर दिया हो। उनकी ये दशा इस कारण होगी कि उन्होंने कहा कि व्यापार भी तो ब्याज ही जैसा है, जबकि अल्लाह ने व्यापार को ह़लाल (वैध) , तथा ब्याज को ह़राम (अवैध) कर[1] दिया है। अब जिसके पास उसके पालनहार की ओर से निर्देश आ गया और इस कारण उससे रुक गया, तो जो कुछ पहले लिया, वह उसी का हो गया तथा उसका मामला अल्लाह के ह़वाले है और जो (लोग) फिर वही करें, तो वही नारकी हैं, जो उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 275
يَمۡحَقُ ٱللَّهُ ٱلرِّبَوٰاْ وَيُرۡبِي ٱلصَّدَقَٰتِۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِيمٍ
अल्लाह ब्याज को मिटाता है और दानों को बढ़ाता है और अल्लाह किसी कृतघ्न, घोर पापी से प्रेम नहीं करता।
Surah Al-Baqara, Verse 276
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ وَأَقَامُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَوُاْ ٱلزَّكَوٰةَ لَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ وَلَا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
वास्तव में, जो ईमान लाये, सदाचार किये, नमाज़ की स्थाप्ना करते रहे और ज़कात देते रहे, उन्हीं के लिए उनके पालनहार के पास उनका प्रतिफल है और उन्हें कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।
Surah Al-Baqara, Verse 277
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَذَرُواْ مَا بَقِيَ مِنَ ٱلرِّبَوٰٓاْ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
हे ईमान वालो! अल्लाह से डरो और जो ब्याज शेष रह गया है, उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमान रखने वाले हो तो।
Surah Al-Baqara, Verse 278
فَإِن لَّمۡ تَفۡعَلُواْ فَأۡذَنُواْ بِحَرۡبٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَإِن تُبۡتُمۡ فَلَكُمۡ رُءُوسُ أَمۡوَٰلِكُمۡ لَا تَظۡلِمُونَ وَلَا تُظۡلَمُونَ
और यदि तुमने ऐसा नहीं किया, तो अल्लाह तथा उसके रसूल से युध्द के लिए तैयार हो जाओ और यदि तुम तौबा (क्षमा याचना) कर लो, तो तुम्हारे लिए तुम्हारा मूलधन है। न तुम अत्याचार करो[1], न तुमपर अत्याचार किया जाये।
Surah Al-Baqara, Verse 279
وَإِن كَانَ ذُو عُسۡرَةٖ فَنَظِرَةٌ إِلَىٰ مَيۡسَرَةٖۚ وَأَن تَصَدَّقُواْ خَيۡرٞ لَّكُمۡ إِن كُنتُمۡ تَعۡلَمُونَ
और यदि तुम्हारा ऋणि असुविधा में हो, तो उसे सुविधा तक अवसर दो और अगर क्षमा कर दो, (अर्थात दान कर दो) तो ये तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है, यदि तुम समझो तो।
Surah Al-Baqara, Verse 280
وَٱتَّقُواْ يَوۡمٗا تُرۡجَعُونَ فِيهِ إِلَى ٱللَّهِۖ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ
तथा उस दिन से डरो, जिसमें तुम अल्लाह की ओर फेरे जाओगे, फिर प्रत्येक प्राणी को उसकी कमाई का भरपूर प्रतिकार दिया जायेगा तथा किसी पर अत्याचार न होगा।
Surah Al-Baqara, Verse 281
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا تَدَايَنتُم بِدَيۡنٍ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗى فَٱكۡتُبُوهُۚ وَلۡيَكۡتُب بَّيۡنَكُمۡ كَاتِبُۢ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَلَا يَأۡبَ كَاتِبٌ أَن يَكۡتُبَ كَمَا عَلَّمَهُ ٱللَّهُۚ فَلۡيَكۡتُبۡ وَلۡيُمۡلِلِ ٱلَّذِي عَلَيۡهِ ٱلۡحَقُّ وَلۡيَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥ وَلَا يَبۡخَسۡ مِنۡهُ شَيۡـٔٗاۚ فَإِن كَانَ ٱلَّذِي عَلَيۡهِ ٱلۡحَقُّ سَفِيهًا أَوۡ ضَعِيفًا أَوۡ لَا يَسۡتَطِيعُ أَن يُمِلَّ هُوَ فَلۡيُمۡلِلۡ وَلِيُّهُۥ بِٱلۡعَدۡلِۚ وَٱسۡتَشۡهِدُواْ شَهِيدَيۡنِ مِن رِّجَالِكُمۡۖ فَإِن لَّمۡ يَكُونَا رَجُلَيۡنِ فَرَجُلٞ وَٱمۡرَأَتَانِ مِمَّن تَرۡضَوۡنَ مِنَ ٱلشُّهَدَآءِ أَن تَضِلَّ إِحۡدَىٰهُمَا فَتُذَكِّرَ إِحۡدَىٰهُمَا ٱلۡأُخۡرَىٰۚ وَلَا يَأۡبَ ٱلشُّهَدَآءُ إِذَا مَا دُعُواْۚ وَلَا تَسۡـَٔمُوٓاْ أَن تَكۡتُبُوهُ صَغِيرًا أَوۡ كَبِيرًا إِلَىٰٓ أَجَلِهِۦۚ ذَٰلِكُمۡ أَقۡسَطُ عِندَ ٱللَّهِ وَأَقۡوَمُ لِلشَّهَٰدَةِ وَأَدۡنَىٰٓ أَلَّا تَرۡتَابُوٓاْ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَٰرَةً حَاضِرَةٗ تُدِيرُونَهَا بَيۡنَكُمۡ فَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَلَّا تَكۡتُبُوهَاۗ وَأَشۡهِدُوٓاْ إِذَا تَبَايَعۡتُمۡۚ وَلَا يُضَآرَّ كَاتِبٞ وَلَا شَهِيدٞۚ وَإِن تَفۡعَلُواْ فَإِنَّهُۥ فُسُوقُۢ بِكُمۡۗ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۖ وَيُعَلِّمُكُمُ ٱللَّهُۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ
हे ईमान वालो! जब तुम आपस में किसी निश्चित अवधि तक के लिए उधार लेन-देन करो, तो उसे लिख लिया करो, तुम्हारे बीच न्याय के साथ कोई लेखक लिखे, जिसे अल्लाह ने लिखने की योग्यता दी है, वह लिखने से इन्कार न करे तथा वह लिखवाये, जिसपर उधार है और अपने पालनहार अल्लाह से डरे और उसमें से कुछ कम न करे। यदि जिसपर उधार है, वह निर्बोध अथवा निर्बल हो अथवा लिखवा न सकता हो, तो उसका संरक्षक न्याय के साथ लिखवाये तथा अपने में से दो पुरुषों को साक्षी (गवाह) बना लो। यदि दो पुरुष न हों, तो एक पुरुष तथा दो स्त्रियों को, उन साक्षियों में से, जिन्हें साक्षी बनाना पसन्द करो। ताकि दोनों (स्त्रियों) में से एक भूल जाये, तो दूसरी याद दिला दे तथा जब साक्षी बुलाये जायें, तो इन्कार न करें तथा विषय छोटा हो या बड़ा, उसकी अवधि सहित लिखवाने में आलस्य न करो, ये अल्लाह के समीप अधिक न्याय है तथा साक्ष्य के लिए अधिक सहायक और इससे अधिक समीप है कि संदेह न करो। परन्तु यदि तुम व्यापारिक लेन-देन हाथों-हाथ (नगद करते हो), तो तुमपर कोई दोष नहीं कि उसे न लिखो तथा जब आपस में लेन-देन करो, तो साक्षी बना लो और लेखक तथा साक्षी को हानि न पहुँचाई जाये और यदि ऐसा करोगो, तो तुम्हारी अवज्ञा ही होगी तथा अल्लाह से डरो और अल्लाह तुम्हें सिखा रहा है और निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 282
۞وَإِن كُنتُمۡ عَلَىٰ سَفَرٖ وَلَمۡ تَجِدُواْ كَاتِبٗا فَرِهَٰنٞ مَّقۡبُوضَةٞۖ فَإِنۡ أَمِنَ بَعۡضُكُم بَعۡضٗا فَلۡيُؤَدِّ ٱلَّذِي ٱؤۡتُمِنَ أَمَٰنَتَهُۥ وَلۡيَتَّقِ ٱللَّهَ رَبَّهُۥۗ وَلَا تَكۡتُمُواْ ٱلشَّهَٰدَةَۚ وَمَن يَكۡتُمۡهَا فَإِنَّهُۥٓ ءَاثِمٞ قَلۡبُهُۥۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ عَلِيمٞ
और यदि तुम यात्रा में रहो तथा लिखने के लिए किसी को न पाओ, तो धरोहर रख दो और यदि तुममें परस्पर एक-दूसरे पर भरोसा हो, (तो धरोहर की भी आवश्यक्ता नहीं,) जिसपर अमानत (उधार) है, वह उसे चुका दे तथा अल्लाह (अपने पालनहार) से डरे और साक्ष्य न छुपाओ और जो उसे छुपायेगा, उसका दिल पापी है तथा तुम जो करते हो, अल्लाह सब जानता है।
Surah Al-Baqara, Verse 283
لِّلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَإِن تُبۡدُواْ مَا فِيٓ أَنفُسِكُمۡ أَوۡ تُخۡفُوهُ يُحَاسِبۡكُم بِهِ ٱللَّهُۖ فَيَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ
आकाशों तथा धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह का है और जो तुम्हारे मन में है, उसे बोलो अथवा मन ही में रखो, अल्लाह तुमसे उसका ह़िसाब लेगा। फिर जिसे चाहे, क्षमा कर देगा और जिसे चाहे, दण्ड देगा और अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Al-Baqara, Verse 284
ءَامَنَ ٱلرَّسُولُ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِ مِن رَّبِّهِۦ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَۚ كُلٌّ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَمَلَـٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّن رُّسُلِهِۦۚ وَقَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَاۖ غُفۡرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيۡكَ ٱلۡمَصِيرُ
रसूल उस चीज़ पर ईमान लाया, जो उसके लिए अल्लाह की ओर से उतारी गई तथा सब ईमान वाले उसपर ईमान लाये। वे सब अल्लाह तथा उसके फ़रिश्तों और उसकी सब पुस्तकों एवं रसूलों पर ईमान लाये। (वे कहते हैः) हम उसके रसूलों में से किसी के बीच अन्तर नहीं करते। हमने सुना और हम आज्ञाकारी हो गये। हे हमारे पालनहार! हमें क्षमा कर दे और हमें तेरे ही पास[1] आना है।
Surah Al-Baqara, Verse 285
لَا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ لَهَا مَا كَسَبَتۡ وَعَلَيۡهَا مَا ٱكۡتَسَبَتۡۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذۡنَآ إِن نَّسِينَآ أَوۡ أَخۡطَأۡنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تَحۡمِلۡ عَلَيۡنَآ إِصۡرٗا كَمَا حَمَلۡتَهُۥ عَلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِنَاۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلۡنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِۦۖ وَٱعۡفُ عَنَّا وَٱغۡفِرۡ لَنَا وَٱرۡحَمۡنَآۚ أَنتَ مَوۡلَىٰنَا فَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ
अल्लाह किसी प्राणी पर उसकी सकत से अधिक (दायित्व का) भार नहीं रखता। जो सदाचार करेगा, उसका लाभ उसी को मिलेगा और जो दुराचार करेगा, उसकी हानि भी उसी को होगी। हे हमारे पालनहार! यदि हम भूल चूक जायें, तो हमें न पकड़। हे हमारे पालनहार! हमारे ऊपर इतना बोझ न डाल, जितना हमसे पहले के लोगों पर डाला गया। हे हमारे पालनहार! हमारे पापों की अनदेखी कर दे, हमें क्षमा कर दे तथा हमपर दया कर। तू ही हमारा स्वामी है तथा काफ़िरों के विरुध्द हमारी सहायता कर।
Surah Al-Baqara, Verse 286