ٱلَّذِينَ يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡغَيۡبِ وَيُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ
जो ग़ैब (परोक्ष)[1] पर ईमान (विश्वास) रखते हैं तथा नमाज़ की स्थापना करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से दान करते हैं।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari