Surah Al-Baqara Verse 164 - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
Surah Al-Baqaraإِنَّ فِي خَلۡقِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَٱلۡفُلۡكِ ٱلَّتِي تَجۡرِي فِي ٱلۡبَحۡرِ بِمَا يَنفَعُ ٱلنَّاسَ وَمَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مِن مَّآءٖ فَأَحۡيَا بِهِ ٱلۡأَرۡضَ بَعۡدَ مَوۡتِهَا وَبَثَّ فِيهَا مِن كُلِّ دَآبَّةٖ وَتَصۡرِيفِ ٱلرِّيَٰحِ وَٱلسَّحَابِ ٱلۡمُسَخَّرِ بَيۡنَ ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَعۡقِلُونَ
बेशक आकाशों तथा धरती की रचना में, रात तथा दिन के एक-दूसरे के पीछे निरन्तर आने-जाने में, उन नावों में, जो मानव के लाभ के साधनों को लिए, सागरों में चलती-फिरती हैं और वर्षा के उस पानी में, जिसे अल्लाह आकाश से बरसाता है, फिर धरती को उसके द्वारा, उसके मरण् (सूखने) के पश्चात् जीवित करता है और उसमें प्रत्येक जीवों को फैलाता है तथा वायुओं को फेरने में और उन बादलों में, जो आकाश और धरती के बीच उसकी आज्ञा[1] के अधीन रहते हैं, (इन सब चीज़ों में) अगणित निशानियाँ (लक्ष्ण) हैं, उन लोगों के लिए, जो समझ-बूझ रखते हैं।