Surah Aal-e-Imran - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
الٓمٓ
अलिफ़, लाम, मीम।
Surah Aal-e-Imran, Verse 1
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡحَيُّ ٱلۡقَيُّومُ
अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं, वह जीवित, नित्य स्थायी है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 2
نَزَّلَ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَأَنزَلَ ٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَ
उसीने आपपर सत्य के साथ पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जो इससे पहले की पुस्तकों के लिए प्रमाणकारी है और उसीने तौरात तथा इंजील उतारी है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 3
مِن قَبۡلُ هُدٗى لِّلنَّاسِ وَأَنزَلَ ٱلۡفُرۡقَانَۗ إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٞ ذُو ٱنتِقَامٍ
इससे पूर्व, लोगों के मार्गदर्शन के लिए और फ़ुर्क़ान उतारा है[1] तथा जिन्होंने अल्लाह की आयतों को अस्वीकार किया, उन्हीं के लिए कड़ी यातना है और अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 4
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَخۡفَىٰ عَلَيۡهِ شَيۡءٞ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِي ٱلسَّمَآءِ
निःसंदेह अल्लाह से आकाशों तथा धरती की कोई चीज़ छुपी नहीं है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 5
هُوَ ٱلَّذِي يُصَوِّرُكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡحَامِ كَيۡفَ يَشَآءُۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
वही तुम्हारा रूप आकार गर्भाषयों में जैसे चाहता है, बनाता है। कोई पूज्य नहीं, परन्तु वही प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ।
Surah Aal-e-Imran, Verse 6
هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ مِنۡهُ ءَايَٰتٞ مُّحۡكَمَٰتٌ هُنَّ أُمُّ ٱلۡكِتَٰبِ وَأُخَرُ مُتَشَٰبِهَٰتٞۖ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمۡ زَيۡغٞ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَٰبَهَ مِنۡهُ ٱبۡتِغَآءَ ٱلۡفِتۡنَةِ وَٱبۡتِغَآءَ تَأۡوِيلِهِۦۖ وَمَا يَعۡلَمُ تَأۡوِيلَهُۥٓ إِلَّا ٱللَّهُۗ وَٱلرَّـٰسِخُونَ فِي ٱلۡعِلۡمِ يَقُولُونَ ءَامَنَّا بِهِۦ كُلّٞ مِّنۡ عِندِ رَبِّنَاۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّآ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
उसीने आपपर[1] ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुह़कम[2] (सुदृढ़) हैं, जो पुस्तक का मूल आधार हैं तथा कुछ दूसरी मुतशाबिह[3] (संदिग्ध) हैं। तो जिनके दिलों में कुटिलता है, वे उपद्रव की खोज तथा मनमाना अर्थ करने के लिए, संदिग्ध के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि उनका वास्तविक अर्थ, अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता तथा जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं कि सब, हमारे पालनहार के पास से है और बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 7
رَبَّنَا لَا تُزِغۡ قُلُوبَنَا بَعۡدَ إِذۡ هَدَيۡتَنَا وَهَبۡ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحۡمَةًۚ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡوَهَّابُ
(तथा कहते हैः) हे हमारे पालनहार! हमारे दिलों को, हमें मार्गदर्शन देने के पश्चात् कुटिल न कर, वास्तव में, तू बहुत बड़ा दाता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 8
رَبَّنَآ إِنَّكَ جَامِعُ ٱلنَّاسِ لِيَوۡمٖ لَّا رَيۡبَ فِيهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُخۡلِفُ ٱلۡمِيعَادَ
हे मारे पालनहार! तू उस दिन सबको एकत्र करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नहीं। निःसंदेह अल्लाह अपने निर्धारित समय का विरुध्द नहीं करता।
Surah Aal-e-Imran, Verse 9
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمۡ وَقُودُ ٱلنَّارِ
निश्चय जो क़ाफ़िर हो गये, उनके धन तथा उनकी संतान अल्लाह (की यातना) से (बचाने में) उनके कुछ काम नहीं आयेगी तथा वही अग्नि के ईंधन बनेंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 10
كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمۡۗ وَٱللَّهُ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
जैसे फ़िरऔनियों तथा उनके पहले लोगों की दशा हुई, उन्होंने हमारी निशानियों को मिथ्या कहा, तो अल्लाह ने उनके पापों के कारण उनको धर लिया तथा अल्लाह कड़ा दण्ड देने वाला है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 11
قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ سَتُغۡلَبُونَ وَتُحۡشَرُونَ إِلَىٰ جَهَنَّمَۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ
(हे नबी!) काफ़िरों से कह दो कि तुम शीघ्र ही प्रास्त कर दिये जाओगे तथा नरक की ओर एकत्र किये जाओगे और वह बहुत बुरा ठिकाना[1] है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 12
قَدۡ كَانَ لَكُمۡ ءَايَةٞ فِي فِئَتَيۡنِ ٱلۡتَقَتَاۖ فِئَةٞ تُقَٰتِلُ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَأُخۡرَىٰ كَافِرَةٞ يَرَوۡنَهُم مِّثۡلَيۡهِمۡ رَأۡيَ ٱلۡعَيۡنِۚ وَٱللَّهُ يُؤَيِّدُ بِنَصۡرِهِۦ مَن يَشَآءُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبۡرَةٗ لِّأُوْلِي ٱلۡأَبۡصَٰرِ
वास्तव में, तुम्हारे लिए उन दो दलों में, जो (बद्र में) सम्मुख हो गये, एक निशानी थी; एक अल्लाह की राह में युध्द कर रहा था तथा दूसरा काफ़िर था, वे (अर्थात काफ़िर गिरोह के लोग) अपनी आँखों से देख रहे थे कि ये (मुसलमान) तो दुगने लग रहे हैं तथा अल्लाह अपनी सहायता द्वारा जिसे चाहे, समर्थन देता है। निःसंदेह इसमें समझ-बूझ वालों के लिए बड़ी शिक्षा[1] है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 13
زُيِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ ٱلشَّهَوَٰتِ مِنَ ٱلنِّسَآءِ وَٱلۡبَنِينَ وَٱلۡقَنَٰطِيرِ ٱلۡمُقَنطَرَةِ مِنَ ٱلذَّهَبِ وَٱلۡفِضَّةِ وَٱلۡخَيۡلِ ٱلۡمُسَوَّمَةِ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ وَٱلۡحَرۡثِۗ ذَٰلِكَ مَتَٰعُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَٱللَّهُ عِندَهُۥ حُسۡنُ ٱلۡمَـَٔابِ
लोगों के लिए उनके मनको मोहने वाली चीज़ें, जैसे स्त्रियाँ, संतान, सोने चाँदी के ढेर, निशान लगे घोड़े, पशुओं तथा खेती शोभनीय बना दी गई हैं। ये सब सांसारिक जीवन के उपभोग्य हैं और उत्तम आवास अल्लाह के पास है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 14
۞قُلۡ أَؤُنَبِّئُكُم بِخَيۡرٖ مِّن ذَٰلِكُمۡۖ لِلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ عِندَ رَبِّهِمۡ جَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا وَأَزۡوَٰجٞ مُّطَهَّرَةٞ وَرِضۡوَٰنٞ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِٱلۡعِبَادِ
(हे नबी!) कह दोः क्या मैं तुम्हें इससे उत्तम चीज़ बता दूँ? उनके लिए जो डरें, उनके पालनहार के पास ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें बह रही हैं। वे उनमें सदावासी होंगे और निर्मल पत्नियाँ होंगी तथा अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी और अल्लाह अपने भक्तों को देख रहा है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 15
ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَآ إِنَّنَآ ءَامَنَّا فَٱغۡفِرۡ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ
जो (ये) प्रार्थना करते हैं कि हमारे पालनहार! हम ईमान लाये, अतः हमारे पाप क्षमा कर दे और हमें नरक की यातना से बचा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 16
ٱلصَّـٰبِرِينَ وَٱلصَّـٰدِقِينَ وَٱلۡقَٰنِتِينَ وَٱلۡمُنفِقِينَ وَٱلۡمُسۡتَغۡفِرِينَ بِٱلۡأَسۡحَارِ
जो सहनशील हैं, सत्यवादी हैं, आज्ञाकारी हैं, दानशील तथा भोरों में अल्लाह से क्षमा याचना करने वाले हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 17
شَهِدَ ٱللَّهُ أَنَّهُۥ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ وَأُوْلُواْ ٱلۡعِلۡمِ قَآئِمَۢا بِٱلۡقِسۡطِۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
अल्लाह साक्षी है, जो न्याय के साथ क़ायम है कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है, इसी प्रकार फ़रिश्ते और ज्ञानी लोग भी (साक्षी हैं) कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह प्रभुत्वशाली, तत्वज्ञ है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 18
إِنَّ ٱلدِّينَ عِندَ ٱللَّهِ ٱلۡإِسۡلَٰمُۗ وَمَا ٱخۡتَلَفَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُ بَغۡيَۢا بَيۡنَهُمۡۗ وَمَن يَكۡفُرۡ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ
निःसंदेह (वास्तविक) धर्म अल्लाह के पास इस्लाम ही है और अह्ले किताब ने जो विभेद किया, तो अपने पास ज्ञान आने के पश्चात् आपस में द्वेष के कारण किया तथा जो अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र (अस्वीकार) करेगा, तो निश्चय अल्लाह शीघ्र ह़िसाब लेने वाला है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 19
فَإِنۡ حَآجُّوكَ فَقُلۡ أَسۡلَمۡتُ وَجۡهِيَ لِلَّهِ وَمَنِ ٱتَّبَعَنِۗ وَقُل لِّلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡأُمِّيِّـۧنَ ءَأَسۡلَمۡتُمۡۚ فَإِنۡ أَسۡلَمُواْ فَقَدِ ٱهۡتَدَواْۖ وَّإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا عَلَيۡكَ ٱلۡبَلَٰغُۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِٱلۡعِبَادِ
फिर यदि वे आपसे विवाद करें, तो कह दें कि मैं स्वयं तथा जिसने मेरा अनुसरण किया अल्लाह के आज्ञाकारी हो गये तथा अह्ले किताब और उम्मियों (अर्थात जिनके पास कोई किताब नहीं आयी) से कहो कि क्या तुम भी आज्ञाकारी हो गये? यदि वे आज्ञाकारी हो गये, तो मार्गदर्शन पा गये और यदि विमुख हो गये, तो आपका दायित्व (संदेश) पहुँचा[1] देना है तथा अल्लाह भक्तों को देख रहा है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 20
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقۡتُلُونَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ بِغَيۡرِ حَقّٖ وَيَقۡتُلُونَ ٱلَّذِينَ يَأۡمُرُونَ بِٱلۡقِسۡطِ مِنَ ٱلنَّاسِ فَبَشِّرۡهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ
जो लोग अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र करते हों तथा नबियों को अवैध वध करते हों, तथा उन लोगों का वध करते हों, जो न्याय का आदेश देते हैं, तो उन्हें दुःखदायी यातना[1] की शुभ सूचना सुना दो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 21
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ حَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ
यही हैं, जिनके कर्म संसार तथा परलोक में अकारथ गये और उनका कोई सहायक नहीं होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 22
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يُدۡعَوۡنَ إِلَىٰ كِتَٰبِ ٱللَّهِ لِيَحۡكُمَ بَيۡنَهُمۡ ثُمَّ يَتَوَلَّىٰ فَرِيقٞ مِّنۡهُمۡ وَهُم مُّعۡرِضُونَ
(हे नबी!) क्या आपने उनकी[1] दशा नहीं देखी, जिन्हें पुस्तक का कुछ भाग दिया गया? वे अल्लाह की पुस्तक की ओर बुलाये जा रहे हैं, ताकि उनके बीच निर्णय[2] करे, तो उनका एक गिरोह मुँह फेर रहा है और वे हैं ही मुँह फेरने वाले।
Surah Aal-e-Imran, Verse 23
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُواْ لَن تَمَسَّنَا ٱلنَّارُ إِلَّآ أَيَّامٗا مَّعۡدُودَٰتٖۖ وَغَرَّهُمۡ فِي دِينِهِم مَّا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ
उनकी ये दशा इसलिए है कि उन्होंने कहा कि नरक की अग्नि हमें गिनती के कुछ दिन ही छुएगी तथा उन्हें अपने धर्म में उनकी मिथ्या बनायी हुई बातों ने धोखे में डाल रखा है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 24
فَكَيۡفَ إِذَا جَمَعۡنَٰهُمۡ لِيَوۡمٖ لَّا رَيۡبَ فِيهِ وَوُفِّيَتۡ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ
तो उनकी क्या दशा होगी, जब हम उन्हें उस दिन एकत्र करेंगे, जिस (के आने) में कोई संदेह नहीं तथा प्रत्येक प्राणी को उसके किये का भरपूर प्रतिफल दिया जायेगा और किसी के साथ कोई अत्याचार नहीं किया जायेगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 25
قُلِ ٱللَّهُمَّ مَٰلِكَ ٱلۡمُلۡكِ تُؤۡتِي ٱلۡمُلۡكَ مَن تَشَآءُ وَتَنزِعُ ٱلۡمُلۡكَ مِمَّن تَشَآءُ وَتُعِزُّ مَن تَشَآءُ وَتُذِلُّ مَن تَشَآءُۖ بِيَدِكَ ٱلۡخَيۡرُۖ إِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
(हे नबी!) कहोः हे अल्लाह! राज्य के[1] अधिपति (स्वामी)! तू जिसे चाहे, राज्य दे और जिससे चाहे, राज्य छीन ले तथा जिसे चाहे, सम्मान दे और जिसे चाहे, अपमान दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निःसंदेह तू जो चाहे, कर सकता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 26
تُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَتُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِۖ وَتُخۡرِجُ ٱلۡحَيَّ مِنَ ٱلۡمَيِّتِ وَتُخۡرِجُ ٱلۡمَيِّتَ مِنَ ٱلۡحَيِّۖ وَتَرۡزُقُ مَن تَشَآءُ بِغَيۡرِ حِسَابٖ
तू रात को दिन में प्रविष्ट कर देता है तथा दिन को रात में प्रविष्ट कर[1] देता है और जीव को निर्जीव से निकालता है तथा निर्जीव को जीव से निकालता है और जिसे चाहे अगणित आजीविका प्रदान करता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 27
لَّا يَتَّخِذِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلۡكَٰفِرِينَ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ فَلَيۡسَ مِنَ ٱللَّهِ فِي شَيۡءٍ إِلَّآ أَن تَتَّقُواْ مِنۡهُمۡ تُقَىٰةٗۗ وَيُحَذِّرُكُمُ ٱللَّهُ نَفۡسَهُۥۗ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلۡمَصِيرُ
मोमिनों को चाहिए कि वो ईमान वालों के विरुध्द काफ़िरों को अपना सहायक मित्र न बनायें और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई संबंध नहीं। परन्तु उनसे बचने के लिए[1] और अल्लाह तुम्हें स्वयं अपने से डरा रहा है और अल्लाह ही की ओर जाना है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 28
قُلۡ إِن تُخۡفُواْ مَا فِي صُدُورِكُمۡ أَوۡ تُبۡدُوهُ يَعۡلَمۡهُ ٱللَّهُۗ وَيَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
(हे नबी!) कह दो कि जो तुम्हारे मन में है, उसे मन ही में रखो या व्यक्त करो, अल्लाह उसे जानता है तथा जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह सबको जानता है और अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 29
يَوۡمَ تَجِدُ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ مِنۡ خَيۡرٖ مُّحۡضَرٗا وَمَا عَمِلَتۡ مِن سُوٓءٖ تَوَدُّ لَوۡ أَنَّ بَيۡنَهَا وَبَيۡنَهُۥٓ أَمَدَۢا بَعِيدٗاۗ وَيُحَذِّرُكُمُ ٱللَّهُ نَفۡسَهُۥۗ وَٱللَّهُ رَءُوفُۢ بِٱلۡعِبَادِ
जिस दिन प्रत्येक प्राणी ने जो सुकर्म किया है, उसे उपस्थित पायेगा तथा जिसने कुकर्म किया है, वह कामना करेगा कि उसके तथा उसके कुकर्मों के बीच बड़ी दूरी होती तथा अल्लाह तुम्हें स्वयं से डराता[1] है और अल्लाह अपने भक्तों के लिए अति करुणामय है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 30
قُلۡ إِن كُنتُمۡ تُحِبُّونَ ٱللَّهَ فَٱتَّبِعُونِي يُحۡبِبۡكُمُ ٱللَّهُ وَيَغۡفِرۡ لَكُمۡ ذُنُوبَكُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
(हे नबी!) कह दोः यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह तुमसे प्रेम[1] करेगा तथा तुम्हारे पाप क्षमा कर देगा और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 31
قُلۡ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَۖ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡكَٰفِرِينَ
(हे नबी!) कह दोः अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो। फिर भी यदि वे विमुख हों, तो निःसंदेह अल्लाह काफ़िरों से प्रेम नहीं करता।
Surah Aal-e-Imran, Verse 32
۞إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰٓ ءَادَمَ وَنُوحٗا وَءَالَ إِبۡرَٰهِيمَ وَءَالَ عِمۡرَٰنَ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ
वस्तुतः, अल्लाह ने आदम, नूह़, इब्राहीम की संतान तथा इमरान की संतान को संसार वासियों में चुन लिया था।
Surah Aal-e-Imran, Verse 33
ذُرِّيَّةَۢ بَعۡضُهَا مِنۢ بَعۡضٖۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
ये एक-दूसरे की संतान हैं और अल्लाह सब सुनता और जानता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 34
إِذۡ قَالَتِ ٱمۡرَأَتُ عِمۡرَٰنَ رَبِّ إِنِّي نَذَرۡتُ لَكَ مَا فِي بَطۡنِي مُحَرَّرٗا فَتَقَبَّلۡ مِنِّيٓۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
जब इमरान की पत्नी[1] ने कहाः हे मेरे पालनहार! जो मेरे गर्भ में है, मैंने तेरे[3] लिए उसे मुक्त करने की मनौती मान ली है। तू इसे मुझसे स्वीकार कर ले। वास्तव में, तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 35
فَلَمَّا وَضَعَتۡهَا قَالَتۡ رَبِّ إِنِّي وَضَعۡتُهَآ أُنثَىٰ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا وَضَعَتۡ وَلَيۡسَ ٱلذَّكَرُ كَٱلۡأُنثَىٰۖ وَإِنِّي سَمَّيۡتُهَا مَرۡيَمَ وَإِنِّيٓ أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ ٱلرَّجِيمِ
फिर जब उसने बालिका जनी, तो (संताप से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे तो बालिका हो गयी, हालाँकि जो उसने जना, उसका अल्लाह को भली-भाँति ज्ञान था -और नर नारी के समान नहीं होता- और मैंने उसका नाम मर्यम रखा है और मैं उसे तथा उसकी संतान को धिक्कारे हुए शैतान से तेरी शरण में देती हूँ।
Surah Aal-e-Imran, Verse 36
فَتَقَبَّلَهَا رَبُّهَا بِقَبُولٍ حَسَنٖ وَأَنۢبَتَهَا نَبَاتًا حَسَنٗا وَكَفَّلَهَا زَكَرِيَّاۖ كُلَّمَا دَخَلَ عَلَيۡهَا زَكَرِيَّا ٱلۡمِحۡرَابَ وَجَدَ عِندَهَا رِزۡقٗاۖ قَالَ يَٰمَرۡيَمُ أَنَّىٰ لَكِ هَٰذَاۖ قَالَتۡ هُوَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ إِنَّ ٱللَّهَ يَرۡزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيۡرِ حِسَابٍ
तो तेरे पालनहार ने उसे भली-भाँति स्वीकार कर लिया तथा उसका अच्छा प्रतिपालन किया और ज़करिय्या को उसका संरक्षक बनाया। ज़करिय्या जबभी उसके मेह़राब (उपासना कोष्ट) में जाता, तो उसके पास कुछ खाद्य पदार्थ पाता, वह कहता कि हे मर्यम! ये कहाँ से (आया) है? वह कहतीः ये अल्लाह के पास से (आया) है। वास्तव में, अल्लाह जिसे चाहता है, अगणित जीविका प्रदा करता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 37
هُنَالِكَ دَعَا زَكَرِيَّا رَبَّهُۥۖ قَالَ رَبِّ هَبۡ لِي مِن لَّدُنكَ ذُرِّيَّةٗ طَيِّبَةًۖ إِنَّكَ سَمِيعُ ٱلدُّعَآءِ
तब ज़करिय्या ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे अपनी ओर से सदाचारी संतान प्रदान कर। निःसंदेह तू प्रार्थना सुनने वाला है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 38
فَنَادَتۡهُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ وَهُوَ قَآئِمٞ يُصَلِّي فِي ٱلۡمِحۡرَابِ أَنَّ ٱللَّهَ يُبَشِّرُكَ بِيَحۡيَىٰ مُصَدِّقَۢا بِكَلِمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَسَيِّدٗا وَحَصُورٗا وَنَبِيّٗا مِّنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
तो फ़रिश्तों ने उसे पुकारा- जब वह मेह़राब में खड़ा नमाज़ पढ़ रहा था- कि अल्लाह तुझे 'यह़्या' की शुभ सूचना दे रहा है, जो अल्लाह के शब्द (ईसा) का पुष्टि करने वाला, प्रमुख तथा संयमी और सदाचारियों में से एक नबी होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 39
قَالَ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَٰمٞ وَقَدۡ بَلَغَنِيَ ٱلۡكِبَرُ وَٱمۡرَأَتِي عَاقِرٞۖ قَالَ كَذَٰلِكَ ٱللَّهُ يَفۡعَلُ مَا يَشَآءُ
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरे कोई पुत्र कहाँ से होगा, जबकि मैं बूढ़ा हो गया हूँ और मेरी पत्नी बाँझ[1] है? उसने कहाः अल्लाह इसी प्रकार जो चाहता है, कर देता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 40
قَالَ رَبِّ ٱجۡعَل لِّيٓ ءَايَةٗۖ قَالَ ءَايَتُكَ أَلَّا تُكَلِّمَ ٱلنَّاسَ ثَلَٰثَةَ أَيَّامٍ إِلَّا رَمۡزٗاۗ وَٱذۡكُر رَّبَّكَ كَثِيرٗا وَسَبِّحۡ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِبۡكَٰرِ
उसने कहाः मेरे पालनहार! मेरे लिए कोई लक्षण बना दे। उसने कहाः तेरा लक्षण ये होगा कि तीन दिन तक लोगों से बात नहीं कर सकेगा, परन्तु संकेत से तथा अपने पालनहार का बहुत स्मरण करता रह और संध्या-प्राता उसी की पवित्रता का वर्णन कर।
Surah Aal-e-Imran, Verse 41
وَإِذۡ قَالَتِ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَٰمَرۡيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰكِ وَطَهَّرَكِ وَٱصۡطَفَىٰكِ عَلَىٰ نِسَآءِ ٱلۡعَٰلَمِينَ
और (याद करो) जब फरिश्तों ने मर्यम से कहाः हे मर्यम! तुझे अल्लाह ने चुन लिया तथा पवित्रता प्रदान की और संसार की स्त्रियों पर तुझे चुन लिया।
Surah Aal-e-Imran, Verse 42
يَٰمَرۡيَمُ ٱقۡنُتِي لِرَبِّكِ وَٱسۡجُدِي وَٱرۡكَعِي مَعَ ٱلرَّـٰكِعِينَ
हे मर्यम! अपने पालनहार की आज्ञाकारी रहो, सज्दा करो तथा रुकूअ करने वालों के साथ रुकूअ करती रहो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 43
ذَٰلِكَ مِنۡ أَنۢبَآءِ ٱلۡغَيۡبِ نُوحِيهِ إِلَيۡكَۚ وَمَا كُنتَ لَدَيۡهِمۡ إِذۡ يُلۡقُونَ أَقۡلَٰمَهُمۡ أَيُّهُمۡ يَكۡفُلُ مَرۡيَمَ وَمَا كُنتَ لَدَيۡهِمۡ إِذۡ يَخۡتَصِمُونَ
ये ग़ैब (परोक्ष) की सूचनायें हैं, जिन्हें हम आपकी ओर प्रकाशना कर रहे हैं और आप उनके पास उपस्थित नहीं थे, जब वे अपनी लेखनियाँ[1] फेंक रहे थे कि कौन मर्यम का अभिरक्षण करेगा और न उनके पास उपस्थित थे, जब वे झगड़ रहे थे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 44
إِذۡ قَالَتِ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَٰمَرۡيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٖ مِّنۡهُ ٱسۡمُهُ ٱلۡمَسِيحُ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَ وَجِيهٗا فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَمِنَ ٱلۡمُقَرَّبِينَ
जब फ़रिश्तों ने कहाः हे मर्यम! अल्लाह तुझे अपने एक शब्द[1] की शुभ सूचना दे रहा है, जिसका नाम मसीह़ ईसा पुत्र मर्यम होगा। वह लोक-प्रलोक में प्रमुख तथा (मेरे) समीपवर्तियों में होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 45
وَيُكَلِّمُ ٱلنَّاسَ فِي ٱلۡمَهۡدِ وَكَهۡلٗا وَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
वह लोगों से गोद में तथा अधेड़ आयु में बातें करेगा और सदाचारियों में होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 46
قَالَتۡ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي وَلَدٞ وَلَمۡ يَمۡسَسۡنِي بَشَرٞۖ قَالَ كَذَٰلِكِ ٱللَّهُ يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ إِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ
मर्यम ने (आश्चर्य से) कहाः मेरे पालनहार! मुझे पुत्र कहाँ से होगा, मुझे तो किसी पुरुष ने हाथ भी नहीं लगाया है? उसने[1] कहाः इसी प्रकार अल्लाह जो चाहता है, उत्पन्न कर देता है। जब वह किसी काम के करने का निर्णय कर लेता है, तो उसके लिए कहता है किः "हो जा", तो वह हो जाता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 47
وَيُعَلِّمُهُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَ
और अल्लाह उसे पुस्तक तथा प्रबोध और तौरात तथा इंजील की शिक्षा देगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 48
وَرَسُولًا إِلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ أَنِّي قَدۡ جِئۡتُكُم بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ أَنِّيٓ أَخۡلُقُ لَكُم مِّنَ ٱلطِّينِ كَهَيۡـَٔةِ ٱلطَّيۡرِ فَأَنفُخُ فِيهِ فَيَكُونُ طَيۡرَۢا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۖ وَأُبۡرِئُ ٱلۡأَكۡمَهَ وَٱلۡأَبۡرَصَ وَأُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۖ وَأُنَبِّئُكُم بِمَا تَأۡكُلُونَ وَمَا تَدَّخِرُونَ فِي بُيُوتِكُمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
और फिर वह बनी इस्राईल का एक रसूल होगा (और कहेगाः) कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से निशानी लाया हूँ। मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के आकार के समान बनाऊँगा, फिर उसमें फूँक दूँगा, तो वह अल्लाह की अनुमति से पक्षी बन जायेगा और अल्लाह की अनुमति से जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को स्वस्थ कर दूँगा और मुर्दों को जीवित कर दूँगा तथा जो कुछ तुम खाते तथा अपने घरों में संचित करते हो, उसे तुम्हें बता दूँगा। निःसंदेह, इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानियाँ हैं, यदि तुम ईमान वाले हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 49
وَمُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيَّ مِنَ ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَلِأُحِلَّ لَكُم بَعۡضَ ٱلَّذِي حُرِّمَ عَلَيۡكُمۡۚ وَجِئۡتُكُم بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ
तथा मैं उसकी सिध्दि करने वाला हूँ, जो मुझसे पहले की है 'तौरात'। तुम्हारे लिए कुछ चीज़ों को ह़लाला (वैध) करने वाला हूँ, जो तुमपर ह़राम (अवैध) की गयी हैं तथा मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की निशानी लेकर आया हूँ। अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरे आज्ञाकारी हो जाओ।
Surah Aal-e-Imran, Verse 50
إِنَّ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُوهُۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ
वास्तव में, अल्लाह मेरा और तुम सबका पालनहार है। अतः उसी की इबादत (वंदना) करो। यही सीधी डगर है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 51
۞فَلَمَّآ أَحَسَّ عِيسَىٰ مِنۡهُمُ ٱلۡكُفۡرَ قَالَ مَنۡ أَنصَارِيٓ إِلَى ٱللَّهِۖ قَالَ ٱلۡحَوَارِيُّونَ نَحۡنُ أَنصَارُ ٱللَّهِ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَٱشۡهَدۡ بِأَنَّا مُسۡلِمُونَ
तथा जब ईसा ने उनसे कुफ़्र का संवेदन किया, तो कहाः अल्लाह के धर्म की सहायता में कौन मेरा साथ देगा? तो ह़वारियों (सहचरों) ने कहाः हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाये, तुम इसके साक्षी रहो कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 52
رَبَّنَآ ءَامَنَّا بِمَآ أَنزَلۡتَ وَٱتَّبَعۡنَا ٱلرَّسُولَ فَٱكۡتُبۡنَا مَعَ ٱلشَّـٰهِدِينَ
हे हमारे पालनहार! जो कुछ तूने उतारा है, हम उसपर ईमान लाये तथा तेरे रसूल का अनुसरण किया, अतः हमें भी साक्षियों में अंकित कर ले।
Surah Aal-e-Imran, Verse 53
وَمَكَرُواْ وَمَكَرَ ٱللَّهُۖ وَٱللَّهُ خَيۡرُ ٱلۡمَٰكِرِينَ
तथा उन्होंने षड्यंत्र[1] रचा और हमने भी षड्यंत्र रचा तथा अल्लाह षड्यंत्र रचने वालों में सबसे अच्छा है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 54
إِذۡ قَالَ ٱللَّهُ يَٰعِيسَىٰٓ إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَجَاعِلُ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوكَ فَوۡقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِۖ ثُمَّ إِلَيَّ مَرۡجِعُكُمۡ فَأَحۡكُمُ بَيۡنَكُمۡ فِيمَا كُنتُمۡ فِيهِ تَخۡتَلِفُونَ
जब अल्लाह ने कहाः हे ईसा! मैं तुझे पूर्णतः लेने वाला तथा अपनी ओर उठाने वाला हूँ तथा तुझे काफ़िरों से पवित्र (मुक्त) करने वाला हूँ तथा तेरे अनुयायियों को प्रलय के दिन तक काफ़िरों के ऊपर[1] करने वाला हूँ। फिर तुम्हारा लौटना मेरी ही ओर है। तो मैं तुम्हारे बीच उस विषय में निर्णय कर दूँगा, जिसमें तुम विभेद कर रहे हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 55
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَأُعَذِّبُهُمۡ عَذَابٗا شَدِيدٗا فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ
फिर जो काफ़िर हो गये, उन्हें लोक-प्रलोक में कड़ी यातना दूँगा तथा उनका कोई सहायक न होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 56
وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ فَيُوَفِّيهِمۡ أُجُورَهُمۡۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِينَ
तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये, तो उन्हें उनका भरपूर प्रतिफल दूँगा तथा अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
Surah Aal-e-Imran, Verse 57
ذَٰلِكَ نَتۡلُوهُ عَلَيۡكَ مِنَ ٱلۡأٓيَٰتِ وَٱلذِّكۡرِ ٱلۡحَكِيمِ
(हे नबी!) ये हमारी आयतें और तत्वज्ञता की शिक्षा है, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 58
إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ عِندَ ٱللَّهِ كَمَثَلِ ءَادَمَۖ خَلَقَهُۥ مِن تُرَابٖ ثُمَّ قَالَ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ
वस्तुतः अल्लाह के पास ईसा की मिसाल ऐसी ही है[1], जैसे आदम की। उसे (अर्थात, आदम को) मिट्टी से उत्पन्न किया, फिर उससे कहाः "हो जा" तो वह हो गया।
Surah Aal-e-Imran, Verse 59
ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُن مِّنَ ٱلۡمُمۡتَرِينَ
ये आपके पालनहार की ओर से सत्य[1] है, अतः आप संदेह करने वालों में न हों।
Surah Aal-e-Imran, Verse 60
فَمَنۡ حَآجَّكَ فِيهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ فَقُلۡ تَعَالَوۡاْ نَدۡعُ أَبۡنَآءَنَا وَأَبۡنَآءَكُمۡ وَنِسَآءَنَا وَنِسَآءَكُمۡ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمۡ ثُمَّ نَبۡتَهِلۡ فَنَجۡعَل لَّعۡنَتَ ٱللَّهِ عَلَى ٱلۡكَٰذِبِينَ
फिर आपके पास ज्ञान आ जाने के पश्चात् कोई आपसे ईसा के विषय में विवाद करे, तो कहो कि आओ, हम अपने पुत्रों तथा तुम्हारे पुत्रों और अपनी स्त्रियों तथा तुम्हारी स्त्रियों को बुलाते हैं और स्वयं को भी, फिर अल्लाह से सविनय प्रार्थना करें कि अल्लाह की धिक्कार मिथ्यावादियों पर[1] हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 61
إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡقَصَصُ ٱلۡحَقُّۚ وَمَا مِنۡ إِلَٰهٍ إِلَّا ٱللَّهُۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
वास्तव में, यही सत्य वर्णन है तथा अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं। निश्चय अल्लाह ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 62
فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِٱلۡمُفۡسِدِينَ
फिर भी यदि वे मुँह[1] फेरें, तो निःसंदेह अल्लाह उपद्रवियों को भली-भाँति जानता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 63
قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ تَعَالَوۡاْ إِلَىٰ كَلِمَةٖ سَوَآءِۭ بَيۡنَنَا وَبَيۡنَكُمۡ أَلَّا نَعۡبُدَ إِلَّا ٱللَّهَ وَلَا نُشۡرِكَ بِهِۦ شَيۡـٔٗا وَلَا يَتَّخِذَ بَعۡضُنَا بَعۡضًا أَرۡبَابٗا مِّن دُونِ ٱللَّهِۚ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَقُولُواْ ٱشۡهَدُواْ بِأَنَّا مُسۡلِمُونَ
(हे नबी!) कहो कि हे अह्ले किताब! एक ऐसी बात की ओर आ जाओ, जो हमारे तथा तुम्हारे बीच समान रूप से मान्य है कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करें और किसी को उसका साझी न बनायें तथा हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह के सिवा पालनहार न बनाये। फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि तुम साक्षी रहो कि हम (अल्लाह के)[1] आज्ञाकारी हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 64
يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تُحَآجُّونَ فِيٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَمَآ أُنزِلَتِ ٱلتَّوۡرَىٰةُ وَٱلۡإِنجِيلُ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِهِۦٓۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
हे अह्ले किताब! तुम इब्राहीम के बारे में विवाद[1] क्यों करते हो, जबकि तौरात तथा इंजील इब्राहीम के पश्चात् उतारी गई हैं? क्या तुम समझ नहीं रखते
Surah Aal-e-Imran, Verse 65
هَـٰٓأَنتُمۡ هَـٰٓؤُلَآءِ حَٰجَجۡتُمۡ فِيمَا لَكُم بِهِۦ عِلۡمٞ فَلِمَ تُحَآجُّونَ فِيمَا لَيۡسَ لَكُم بِهِۦ عِلۡمٞۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ
और फिर तुम्हीं ने उस विषय में विवाद किया, जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान[1] था, तो उस विषय में क्यों विवाद कर रहे हो, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान[2] नहीं था? तथा अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
Surah Aal-e-Imran, Verse 66
مَا كَانَ إِبۡرَٰهِيمُ يَهُودِيّٗا وَلَا نَصۡرَانِيّٗا وَلَٰكِن كَانَ حَنِيفٗا مُّسۡلِمٗا وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ
इब्राहीम न यहूदी था, न नस्रानी (ईसाई)। परन्तु वह एकेश्वरवादी, मुस्लिम 'आज्ञाकारी' था तथा वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
Surah Aal-e-Imran, Verse 67
إِنَّ أَوۡلَى ٱلنَّاسِ بِإِبۡرَٰهِيمَ لَلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ وَهَٰذَا ٱلنَّبِيُّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۗ وَٱللَّهُ وَلِيُّ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
वास्तव में, इब्राहीम से सबसे अधिक समीप तो वह लोग हैं, जिन्होंने उसका अनुसरण किया तथा ये नबी[1] और जो ईमान लाये और अल्लाह ईमान वालों का संरक्षकभमित्र है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 68
وَدَّت طَّآئِفَةٞ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ لَوۡ يُضِلُّونَكُمۡ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡ وَمَا يَشۡعُرُونَ
अह्ले किताब में से एक गिरोह की कामना है कि तुम्हें कुपथ कर दे। जबकि वे स्वयं को कुपथ कर रहे हैं, परन्तु वे समझते नहीं हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 69
يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَأَنتُمۡ تَشۡهَدُونَ
हे अह्ले किताब! तुम अल्लाह की आयतों[1] के साथ कुफ़्र क्यों कर रहे हो, जबकि तुम साक्षी[2] हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 70
يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَلۡبِسُونَ ٱلۡحَقَّ بِٱلۡبَٰطِلِ وَتَكۡتُمُونَ ٱلۡحَقَّ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ
हे अह्ले किताब! क्यों सत्य को असत्य के साथ मिलाकर संदिग्ध कर देते हो और सत्य को छुपाते हो, जबकि तुम जानते हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 71
وَقَالَت طَّآئِفَةٞ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ ءَامِنُواْ بِٱلَّذِيٓ أُنزِلَ عَلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَجۡهَ ٱلنَّهَارِ وَٱكۡفُرُوٓاْ ءَاخِرَهُۥ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ
अह्ले किताब के एक समुदाय ने कहा कि दिन के आरंभ में उसपर ईमान ले आओ, जो ईमान वालों पर उतारा गया है और उसके अन्त (अर्थातः संध्या-समय) कुफ़्र कर दो, संभवतः वे फिर[1] जायें।
Surah Aal-e-Imran, Verse 72
وَلَا تُؤۡمِنُوٓاْ إِلَّا لِمَن تَبِعَ دِينَكُمۡ قُلۡ إِنَّ ٱلۡهُدَىٰ هُدَى ٱللَّهِ أَن يُؤۡتَىٰٓ أَحَدٞ مِّثۡلَ مَآ أُوتِيتُمۡ أَوۡ يُحَآجُّوكُمۡ عِندَ رَبِّكُمۡۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡفَضۡلَ بِيَدِ ٱللَّهِ يُؤۡتِيهِ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ
और केवल उसी की मानो, जो तुम्हारे (धर्म) का अनुसरण करे। (हे नबी!) कह दो कि मार्गदर्शन तो वही है, जो अल्लाह का मार्गदर्शन है। (और ये भी न मानो कि) जो (धर्म) तुम्हें दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जायेगा अथवा वे तुमसे तुम्हारे पालनहार के पास विवाद कर सकेंगे। आप कह दें कि प्रदान अल्लाह के हाथ में है, वह जिसे चाहे, देता है और अल्लाह विशाल ज्ञानी है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 73
يَخۡتَصُّ بِرَحۡمَتِهِۦ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ
वह जिसे चाहे, अपनी दया के साथ विशेष कर देता है तथा अल्लाह बड़ा दानशील है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 74
۞وَمِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ مَنۡ إِن تَأۡمَنۡهُ بِقِنطَارٖ يُؤَدِّهِۦٓ إِلَيۡكَ وَمِنۡهُم مَّنۡ إِن تَأۡمَنۡهُ بِدِينَارٖ لَّا يُؤَدِّهِۦٓ إِلَيۡكَ إِلَّا مَا دُمۡتَ عَلَيۡهِ قَآئِمٗاۗ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُواْ لَيۡسَ عَلَيۡنَا فِي ٱلۡأُمِّيِّـۧنَ سَبِيلٞ وَيَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
तथा अह्ले किताब में से वो भी है, जिसके पास चाँदी-सोने का ढेर धरोहर रख दो, तो उसे तुम्हें चुका देगा तथा उनमें वो भी है, जिसके पास एक दीनार[1] भी धरोहर रख दो, तो तुम्हें नहीं चुकायेगा, परन्तु जब सदा उसके सिर पर सवार रहो। ये (बात) इसलिए है कि उन्होंने कहा कि उम्मियों के बारे में हमपर कोई दोष[2] नहीं तथा अल्लाह पर जानते हुए झूठ बोलते हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 75
بَلَىٰۚ مَنۡ أَوۡفَىٰ بِعَهۡدِهِۦ وَٱتَّقَىٰ فَإِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُتَّقِينَ
क्यों नहीं, जिसने अपना वचन पूरा किया और (अल्लाह से) डरा, तो वास्तव में अल्लाह डरने वालों से प्रेम करता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 76
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَشۡتَرُونَ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ وَأَيۡمَٰنِهِمۡ ثَمَنٗا قَلِيلًا أُوْلَـٰٓئِكَ لَا خَلَٰقَ لَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ وَلَا يَنظُرُ إِلَيۡهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ
निःसंदेह जो अल्लाह के[1] वचन तथा अपनी शपथों के बदले तनिक मूल्य खरीदते हैं, उन्हीं का आख़िरत (परलोक) में कोई भाग नहीं, न प्रलय के दिन अल्लाह उनसे बात करेगा और न उनकी ओर देखेगा और न उन्हें पवित्र करेगा तथा उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 77
وَإِنَّ مِنۡهُمۡ لَفَرِيقٗا يَلۡوُۥنَ أَلۡسِنَتَهُم بِٱلۡكِتَٰبِ لِتَحۡسَبُوهُ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَمَا هُوَ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَيَقُولُونَ هُوَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ وَمَا هُوَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ وَيَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
और बेशक उनमें से एक गिरोह[1] ऐसा है, जो अपनी ज़बानों को किताब पढ़ते समय मरोड़ते हैं, ताकि तुम उसे पुस्तक में से समझो, जबकि वह पुस्तक में से नहीं है और कहते हैं कि वह अल्लाह के पास से है, जबकि वह अल्लाह के पास से नहीं है और अल्लाह पर जानते हुए झूठ बोलते हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 78
مَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُؤۡتِيَهُ ٱللَّهُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحُكۡمَ وَٱلنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُولَ لِلنَّاسِ كُونُواْ عِبَادٗا لِّي مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَٰكِن كُونُواْ رَبَّـٰنِيِّـۧنَ بِمَا كُنتُمۡ تُعَلِّمُونَ ٱلۡكِتَٰبَ وَبِمَا كُنتُمۡ تَدۡرُسُونَ
किसी पुरुष जिसे अल्लाह ने पुस्तक, निर्णय शक्ति और नुबुव्वत दी हो, उसके लिए योग्य नहीं कि लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे दास बन जाओ[1], अपितु (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ। इस कारण कि तुम पुस्तक की शिक्षा देते हो तथा इस कारण कि उसका अध्ययन स्वयं भी करते रहते हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 79
وَلَا يَأۡمُرَكُمۡ أَن تَتَّخِذُواْ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ أَرۡبَابًاۚ أَيَأۡمُرُكُم بِٱلۡكُفۡرِ بَعۡدَ إِذۡ أَنتُم مُّسۡلِمُونَ
तथा वह तुम्हें कभी आदेश नहीं देगा कि फ़रिश्तों तथा नबियों को अपना पालनहार[1] (पूज्य) बना लो। क्या तुम्हें कुफ़्र करने का आदेश देगा, जबकि तुम अल्लाह के आज्ञाकारी हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 80
وَإِذۡ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَٰقَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ لَمَآ ءَاتَيۡتُكُم مِّن كِتَٰبٖ وَحِكۡمَةٖ ثُمَّ جَآءَكُمۡ رَسُولٞ مُّصَدِّقٞ لِّمَا مَعَكُمۡ لَتُؤۡمِنُنَّ بِهِۦ وَلَتَنصُرُنَّهُۥۚ قَالَ ءَأَقۡرَرۡتُمۡ وَأَخَذۡتُمۡ عَلَىٰ ذَٰلِكُمۡ إِصۡرِيۖ قَالُوٓاْ أَقۡرَرۡنَاۚ قَالَ فَٱشۡهَدُواْ وَأَنَا۠ مَعَكُم مِّنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ
तथा (याद करो) जब अल्लाह ने नबियों से वचन लिया कि जबभी मैं तुम्हें कोई पुस्तक और प्रबोध (तत्वदर्शिता) दूँ, फिर तुम्हारे पास कोई रसूल उसे प्रमाणित करते हुए आये, जो तुम्हारे पास है, तो तुम अवश्य उसपर ईमान लाना और उसका समर्थन करना। (अल्लाह) ने कहाः क्या तुमने स्वीकार किया और इसपर मेरे वचन का भार उठाया? तो सबने कहाः हमने स्वीकार कर लिया। अल्लाह ने कहाः तुम साक्षी रहो और मैं भी तुम्हारे[1] साथ साक्षियों में से हूँ।
Surah Aal-e-Imran, Verse 81
فَمَن تَوَلَّىٰ بَعۡدَ ذَٰلِكَ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡفَٰسِقُونَ
फिर जिसने इसके[1] पश्चात् मुँह फेर लिया, तो वही अवज्ञाकारी है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 82
أَفَغَيۡرَ دِينِ ٱللَّهِ يَبۡغُونَ وَلَهُۥٓ أَسۡلَمَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ طَوۡعٗا وَكَرۡهٗا وَإِلَيۡهِ يُرۡجَعُونَ
तो क्या वे अल्लाह के धर्म (इस्लाम) के सिवा (कोई दूसरा धर्म) खोज रहे हैं? जबकि जो आकाशों तथा धरती में है, स्वेच्छा तथा अनिच्छा उसी के आज्ञाकारी[1] हैं तथा सब उसी की ओर फेरे[2] जायेंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 83
قُلۡ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ عَلَيۡنَا وَمَآ أُنزِلَ عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَمَآ أُوتِيَ مُوسَىٰ وَعِيسَىٰ وَٱلنَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمۡ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّنۡهُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ
(हे नबी!) आप कहें कि हम अल्लाह पर तथा जो हमपर उतारा गया और जो इब्राहीम, इस्माईल, इस्ह़ाक़, याक़ूब एवं (उनकी) संतानों पर उतारा गया तथा जो मूसा, ईसा तथा अन्य नबियों को उनके पालनहार की ओर से प्रदान किया गया है, (उनपर) ईमान लाये। हम उन (नबियों) में किसी के बीच कोई अंतर नहीं[1] करते और हम उसी (अल्लाह) के आज्ञाकारी हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 84
وَمَن يَبۡتَغِ غَيۡرَ ٱلۡإِسۡلَٰمِ دِينٗا فَلَن يُقۡبَلَ مِنۡهُ وَهُوَ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
और जो भी इस्लाम के सिवा (किसी और धर्म) को चाहेगा, तो उसे उससे कदापि स्वीकार नहीं किया जायेगा और वे प्रलोक में क्षतिग्रस्तों में होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 85
كَيۡفَ يَهۡدِي ٱللَّهُ قَوۡمٗا كَفَرُواْ بَعۡدَ إِيمَٰنِهِمۡ وَشَهِدُوٓاْ أَنَّ ٱلرَّسُولَ حَقّٞ وَجَآءَهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُۚ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
अल्लाह ऐसी जाति को कैसे मार्गदर्शन देगा, जो अपने ईमान के पश्चात् काफ़िर हो गये और साक्षी रहे कि ये रसूल सत्य हैं तथा उनके पास खुले तर्क आ गये? और अल्लाह अत्याचारियों को मार्गदर्शन नहीं देता।
Surah Aal-e-Imran, Verse 86
أُوْلَـٰٓئِكَ جَزَآؤُهُمۡ أَنَّ عَلَيۡهِمۡ لَعۡنَةَ ٱللَّهِ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِينَ
इन्हीं का प्रतिकार (बदला) ये है कि उनपर अल्लाह तथा फ़रिश्तों और सब लोगों की धिक्कार होगी।
Surah Aal-e-Imran, Verse 87
خَٰلِدِينَ فِيهَا لَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ
वे उसमें सदावासी होंगे, उनसे यातना कम नहीं की जायेगी और न उन्हें अवकाश दिया जायेगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 88
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ مِنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ وَأَصۡلَحُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
परन्तु जिन्होंने इसके पश्चात् तौबा (क्षमा याचना) कर ली तथा सुधार कर लिया, तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील दयावान् है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 89
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بَعۡدَ إِيمَٰنِهِمۡ ثُمَّ ٱزۡدَادُواْ كُفۡرٗا لَّن تُقۡبَلَ تَوۡبَتُهُمۡ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلضَّآلُّونَ
वास्तव में, जो अपने ईमान लाने के पश्चात् काफ़िर हो गये, फिर कुफ़्र में बढ़ते गये, तो उनकी तौबा (क्षमा याचना) कदापि[1] स्वीकार नहीं की जायेगी तथा वही कुपथ हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 90
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَمَاتُواْ وَهُمۡ كُفَّارٞ فَلَن يُقۡبَلَ مِنۡ أَحَدِهِم مِّلۡءُ ٱلۡأَرۡضِ ذَهَبٗا وَلَوِ ٱفۡتَدَىٰ بِهِۦٓۗ أُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ
निश्चय जो काफ़िर हो गये तथा काफ़िर रहते हुए मर गये, तो उनसे धरती भर सोना भी स्वीकार नहीं किया जायेगा, यद्यपि उसके द्वारा अर्थदणड दे। उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है और उनका कोई सहायक न होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 91
لَن تَنَالُواْ ٱلۡبِرَّ حَتَّىٰ تُنفِقُواْ مِمَّا تُحِبُّونَۚ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيۡءٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِيمٞ
तुम पुण्य[1] नहीं पा सकोगे, जब तक उसमें से दान न करो, जिससे मोह रखते हो तथा तुम जो भी दान करोगे, वास्तव में, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 92
۞كُلُّ ٱلطَّعَامِ كَانَ حِلّٗا لِّبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ إِلَّا مَا حَرَّمَ إِسۡرَـٰٓءِيلُ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦ مِن قَبۡلِ أَن تُنَزَّلَ ٱلتَّوۡرَىٰةُۚ قُلۡ فَأۡتُواْ بِٱلتَّوۡرَىٰةِ فَٱتۡلُوهَآ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
प्रत्येक खाद्य पदार्थ बनी इस्राईल[1] के लिए ह़लाल (वैध) थे, परन्तु जिसे इस्राईल ने अपने ऊपर ह़राम (अवैध) कर लिया, इससे पहले कि तौरात उतारी जाये। (हे नबी!) कहो कि तौरात लाओ तथा उसे पढ़ो, यदि तुम सत्यवादि हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 93
فَمَنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ مِنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
फिर इसके पश्चात् जो अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगायें, तो वही वास्तव, में अत्याचारी हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 94
قُلۡ صَدَقَ ٱللَّهُۗ فَٱتَّبِعُواْ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِيمَ حَنِيفٗاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ
उनसे कह दो, अललाह सच्चा है, इसलिए तुम एकेश्वरवादी इब्राहीम के धर्म पर चलो तथा वह मिश्रणवादियों में से नहीं था।
Surah Aal-e-Imran, Verse 95
إِنَّ أَوَّلَ بَيۡتٖ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِي بِبَكَّةَ مُبَارَكٗا وَهُدٗى لِّلۡعَٰلَمِينَ
निःसंदेह पहला घर, जो मानव के लिए (अल्लाह की वंदना का केंद्र) बनाया गया, वह वही है, जो मक्का में है, जो शुभ तथा संसार वासियों के लिए मार्गदर्शन है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 96
فِيهِ ءَايَٰتُۢ بَيِّنَٰتٞ مَّقَامُ إِبۡرَٰهِيمَۖ وَمَن دَخَلَهُۥ كَانَ ءَامِنٗاۗ وَلِلَّهِ عَلَى ٱلنَّاسِ حِجُّ ٱلۡبَيۡتِ مَنِ ٱسۡتَطَاعَ إِلَيۡهِ سَبِيلٗاۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ عَنِ ٱلۡعَٰلَمِينَ
उसमें खुली निशानियाँ हैं, (जिनमें) मक़ामे[1] इब्राहीम है तथा जो कोई उस (की सीमा) में प्रवेश कर गया, तो वह शांत (सुरक्षित) हो गया। तथा अल्लाह के लिए लोगों पर इस घर का ह़ज अनिवार्य है, जो उसतक राह पा सकता हो तथा जो कुफ़्र करेगा, तो अल्लाह संसार वासियों से निस्पृह है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 97
قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَٱللَّهُ شَهِيدٌ عَلَىٰ مَا تَعۡمَلُونَ
(हे नबी!) आप कह दें कि हे अह्ले किताब! ये क्या है कि तुम अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र कर रहे हो, जबकि अल्लाह तुम्हारे कर्मों का साक्षी है
Surah Aal-e-Imran, Verse 98
قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ مَنۡ ءَامَنَ تَبۡغُونَهَا عِوَجٗا وَأَنتُمۡ شُهَدَآءُۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ
हे अह्ले किताब! किस लिए लोगों को, जो ईमान लाना चाहें, अल्लाह की राह से रोक रहे हो, उसे उलझाना चाहते हो, जबकि तुम साक्षी[1] हो और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से असूचित नहीं है
Surah Aal-e-Imran, Verse 99
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن تُطِيعُواْ فَرِيقٗا مِّنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ يَرُدُّوكُم بَعۡدَ إِيمَٰنِكُمۡ كَٰفِرِينَ
हे ईमान वालो! यदि तुम अह्ले किताब के किसी गिरोह की बात मानोगे, तो वह तुम्हारे ईमान के पश्चात् फिर तुम्हें काफ़िर बना देंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 100
وَكَيۡفَ تَكۡفُرُونَ وَأَنتُمۡ تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ وَفِيكُمۡ رَسُولُهُۥۗ وَمَن يَعۡتَصِم بِٱللَّهِ فَقَدۡ هُدِيَ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ
तथा तुम कुफ़्र कैसे करोगे, जबकि तुम्हारे सामने अललाह की आयतें पढ़ी जा रही हैं और तुममें उसके रसूल[1] मौजूद हैं? और जिसने अल्लाह को[2] थाम लिया, तो उसे सुपथ दिखा दिया गया।
Surah Aal-e-Imran, Verse 101
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِۦ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسۡلِمُونَ
हे ईमान वालो! अल्लाह से ऐसे डरो, जो वास्तव में, उससे डरना हो तथा तुम्हारी मौत इस्लाम पर रहते हुए ही आनी चीहि।
Surah Aal-e-Imran, Verse 102
وَٱعۡتَصِمُواْ بِحَبۡلِ ٱللَّهِ جَمِيعٗا وَلَا تَفَرَّقُواْۚ وَٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ كُنتُمۡ أَعۡدَآءٗ فَأَلَّفَ بَيۡنَ قُلُوبِكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم بِنِعۡمَتِهِۦٓ إِخۡوَٰنٗا وَكُنتُمۡ عَلَىٰ شَفَا حُفۡرَةٖ مِّنَ ٱلنَّارِ فَأَنقَذَكُم مِّنۡهَاۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ
तथा अल्लाह की रस्सी[1] को सब मिलकर दृढ़ता से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो तथा अपने ऊपर अललाह के पुरस्कार को याद करो, जब तुम एक-दूसरे के शत्रु थे, तो तुम्हारे दिलों को जोड़ दिया और तुम उसके पुरस्कार के कारण भाई-भाई हो गए तथा तुम अग्नि के गड़हे के किनारे पर थे, तो तुम्हें उससे निकाल दिया। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें उजागर करता है, ताकि तुम मार्गदर्शन पा जाओ।
Surah Aal-e-Imran, Verse 103
وَلۡتَكُن مِّنكُمۡ أُمَّةٞ يَدۡعُونَ إِلَى ٱلۡخَيۡرِ وَيَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِۚ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ
तथा तुममें एक समुदाय ऐसा अवश्य होना चाहिए, जो भली बातों[1] की ओर बुलाये, भलाई का आदेश देता रहे, बुराई[2] से रोकता रहे और वही सफल होंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 104
وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ تَفَرَّقُواْ وَٱخۡتَلَفُواْ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُۚ وَأُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ
तथा उनके[1] समान न हो जाओ, जो खुली निशानियाँ आने के पश्चात्, विभेद तथा आपसी विरोध में पड़ गये और उन्हीं के लिए घोर यातना है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 105
يَوۡمَ تَبۡيَضُّ وُجُوهٞ وَتَسۡوَدُّ وُجُوهٞۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسۡوَدَّتۡ وُجُوهُهُمۡ أَكَفَرۡتُم بَعۡدَ إِيمَٰنِكُمۡ فَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ
जिस दिन बहुत-से मुख उजले तथा बहुत-से मुख काले होंगे। फिर जिनके मुख काले होंगे (उनसे कहा जायेगाः) क्या तुमने अपने ईमान के पश्चात् कुफ़्र कर लिया था? तो अपने कुफ़्र करने का दण्ड चखो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 106
وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱبۡيَضَّتۡ وُجُوهُهُمۡ فَفِي رَحۡمَةِ ٱللَّهِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
तथा जिनके मुख उजले होंगे, वे अल्लाह की दया (स्वर्ग) में रहेंगे। व उसमें सदावासी होंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 107
تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۗ وَمَا ٱللَّهُ يُرِيدُ ظُلۡمٗا لِّلۡعَٰلَمِينَ
ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम आपको ह़क़ के साथ सुना रहे हैं तथा अल्लाह संसार वासियों पर अत्याचार नहीं करना चाहता।
Surah Aal-e-Imran, Verse 108
وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ
तथा अल्लाह ही का है, जो आकाशों में और जो धरती में है तथा अल्लाह ही की ओर सब विषय फेरे जायेंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 109
كُنتُمۡ خَيۡرَ أُمَّةٍ أُخۡرِجَتۡ لِلنَّاسِ تَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَتَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَتُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِۗ وَلَوۡ ءَامَنَ أَهۡلُ ٱلۡكِتَٰبِ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۚ مِّنۡهُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَأَكۡثَرُهُمُ ٱلۡفَٰسِقُونَ
तुम, सबसे अच्छी उम्मत हो, जिसे सब लोगों के लिए उत्पन्न किया गया है कि तुम भलाई का आदेश देते हो तथा बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान (विश्वास) रखते[1] हो। यदि अह्ले किताब ईमान लाते, तो उनके लिए अच्छा होता। उनमें कुछ ईमान वाले हैं और अधिक्तर अवज्ञाकारी हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 110
لَن يَضُرُّوكُمۡ إِلَّآ أَذٗىۖ وَإِن يُقَٰتِلُوكُمۡ يُوَلُّوكُمُ ٱلۡأَدۡبَارَ ثُمَّ لَا يُنصَرُونَ
वे तुम्हें सताने के सिवा कोई हानि पहुँचा नहीं सकेंगे और यदि तुमसे युध्द करेंगे, तो वे तुम्हें पीठ दिखा देंगे। फिर सहायता नहीं दिए जायेंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 111
ضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلذِّلَّةُ أَيۡنَ مَا ثُقِفُوٓاْ إِلَّا بِحَبۡلٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَحَبۡلٖ مِّنَ ٱلنَّاسِ وَبَآءُو بِغَضَبٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَسۡكَنَةُۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانُواْ يَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقۡتُلُونَ ٱلۡأَنۢبِيَآءَ بِغَيۡرِ حَقّٖۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ يَعۡتَدُونَ
इन (यहूदियों) पर जहाँ भी रहें, अपमान थोंप दिया गया है, (ये और बात है कि) अल्लाह की शरण[1] अथवा लोगों की शरण में हों[2], ये अल्लाह के प्रकोप के अधिकारी हो गये तथा इनपर दरिद्रता थोंप दी गयी। ये इस कारण हुआ कि ये अल्लाह की आयतों के साथ कुफ़्र कर रहे थे और नबियों का अवैध वध कर रहे थे। ये इस कारण कि इन्होंने अवज्ञा की और (धर्म की) सीमा का उल्लंघन कर रहे थे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 112
۞لَيۡسُواْ سَوَآءٗۗ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ أُمَّةٞ قَآئِمَةٞ يَتۡلُونَ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ وَهُمۡ يَسۡجُدُونَ
वे सभी समान नहीं हैं; अह्ले किताब में एक( सत्य पर) स्थित उम्मत[1] भी है, जो अल्लाह की आयतें रातों में पढ़ते हैं तथा सज्दा करते रहते हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 113
يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَيَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَيُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
अल्लाह तथा अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हैं, भलाई का आदेश देते हैं, बुराई से रोकते हैं, भलाईयों में अग्रसर रहते हैं और यही सदाचारियों में हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 114
وَمَا يَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَلَن يُكۡفَرُوهُۗ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلۡمُتَّقِينَ
वे, जो भी भलाई करेंगे, उसकी उपेक्षा (अनादर) नहीं की जायेगी और अल्लाह आज्ञाकारियों को भली-भाँति जानता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 115
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
(परन्तु) जो काफ़िर[1] हो गये, उनके धन और उनकी संतान अल्लाह (की यातना) से उन्हें तनिक भी बचा नहीं सकेगी तथा वही नारकी हैं, वही उसमें सदावासी होंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 116
مَثَلُ مَا يُنفِقُونَ فِي هَٰذِهِ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا كَمَثَلِ رِيحٖ فِيهَا صِرٌّ أَصَابَتۡ حَرۡثَ قَوۡمٖ ظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فَأَهۡلَكَتۡهُۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَٰكِنۡ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ
जो दान, वे इस सांसारिक जीवन में करते हैं, वो उस वायु के समान है, जिसमें पाला हो, जो किसी क़ौम की खेती को लग जाये, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार[1] किया हो और उसका नाश कर दे तथा अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, परन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे थे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 117
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُواْ بِطَانَةٗ مِّن دُونِكُمۡ لَا يَأۡلُونَكُمۡ خَبَالٗا وَدُّواْ مَا عَنِتُّمۡ قَدۡ بَدَتِ ٱلۡبَغۡضَآءُ مِنۡ أَفۡوَٰهِهِمۡ وَمَا تُخۡفِي صُدُورُهُمۡ أَكۡبَرُۚ قَدۡ بَيَّنَّا لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِۖ إِن كُنتُمۡ تَعۡقِلُونَ
हे ईमान वालो! अपनों के सिवा किसी को अपना भेदी न बनाओ[1], वे तुम्हारा बिगाड़ने में तनिक भी नहीं चूकेंगे, उनहें वही बात भाती है, जिससे तुम्हें दुःख हो। उनके मुखों से शत्रुता खुल चुकी है तथा जो उनके दिल छुपा रहे हैं, वो इससे बढ़कर है। हमने तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन कर दिया है, यदि तुम समझो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 118
هَـٰٓأَنتُمۡ أُوْلَآءِ تُحِبُّونَهُمۡ وَلَا يُحِبُّونَكُمۡ وَتُؤۡمِنُونَ بِٱلۡكِتَٰبِ كُلِّهِۦ وَإِذَا لَقُوكُمۡ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوۡاْ عَضُّواْ عَلَيۡكُمُ ٱلۡأَنَامِلَ مِنَ ٱلۡغَيۡظِۚ قُلۡ مُوتُواْ بِغَيۡظِكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
सावधान! तुमही वो हो कि उनसे प्रेम करते हो, जबकि वे तुमसे प्रेम नहीं करते और तुम सभी पुस्तकों पर ईमान रखते हो, जबकि वे जब तुमसे मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाये और जब अकेले होते हैं, तो क्रोध से तुमपर उँगलियों की पोरें चबाते हैं। कह दो कि अपने क्रोध से मर जाओ। निःसंदेह अल्लाह सीनों की बातों को जानता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 119
إِن تَمۡسَسۡكُمۡ حَسَنَةٞ تَسُؤۡهُمۡ وَإِن تُصِبۡكُمۡ سَيِّئَةٞ يَفۡرَحُواْ بِهَاۖ وَإِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ لَا يَضُرُّكُمۡ كَيۡدُهُمۡ شَيۡـًٔاۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا يَعۡمَلُونَ مُحِيطٞ
यदि तुम्हारा कुछ भला हो, तो उन्हें बुरा लगता है और यदि तुम्हारा कुछ बुरा हो जाये, तो वे उससे प्रसन्न हो जाते हैं। अलबत्ता, यदि तुम सहन करते रहे और आज्ञाकारी रहे, तो उनका छल तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचायेगा। उनके सभी कर्म अल्लाह के घेरे में हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 120
وَإِذۡ غَدَوۡتَ مِنۡ أَهۡلِكَ تُبَوِّئُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ مَقَٰعِدَ لِلۡقِتَالِۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ
तथा (हे नबी! वो समय याद करें) जब आप प्रातः अपने घर से निकले, ईमान वालों को युध्द[1] के स्थानों पर नियुक्त कर रहे थे तथा अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 121
إِذۡ هَمَّت طَّآئِفَتَانِ مِنكُمۡ أَن تَفۡشَلَا وَٱللَّهُ وَلِيُّهُمَاۗ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
तथा (याद करें) जब आपमें से दो गिरोहों[1] ने कायरता दिखाने का विचार किया और अल्लाह उनका रक्षक था तथा ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।
Surah Aal-e-Imran, Verse 122
وَلَقَدۡ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ بِبَدۡرٖ وَأَنتُمۡ أَذِلَّةٞۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
अल्लाह बद्र में तुम्हारी सहायता कर चुका है, जब तुम निर्बल थे। अतः अल्लाह से डरते रहो, ताकि उसके कृतज्ञ रहो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 123
إِذۡ تَقُولُ لِلۡمُؤۡمِنِينَ أَلَن يَكۡفِيَكُمۡ أَن يُمِدَّكُمۡ رَبُّكُم بِثَلَٰثَةِ ءَالَٰفٖ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ مُنزَلِينَ
(हे नबी! वो समय भी याद करें) जब आप ईमान वालों से कह रहे थेः क्या तुम्हारे लिए ये बस नहीं है कि अल्लाह तुम्हें (आकाश से) उतारे हुए, तीन हज़ार फ़रिश्तों द्वारा समर्थन दे
Surah Aal-e-Imran, Verse 124
بَلَىٰٓۚ إِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ وَيَأۡتُوكُم مِّن فَوۡرِهِمۡ هَٰذَا يُمۡدِدۡكُمۡ رَبُّكُم بِخَمۡسَةِ ءَالَٰفٖ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ مُسَوِّمِينَ
क्यों[1] नहीं? यदि तुम सहन करोगे, आज्ञाकारी रहोगे और वे (शत्रु) तुम्हारे पास अपनी उत्तेजना के साथ आ गये, तो तुम्हारा पालनहार तुम्हें (तीन नहीं,) पाँच हज़ार चिन्ह[2] लगे फ़रिश्तों द्वारा समर्थन देगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 125
وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشۡرَىٰ لَكُمۡ وَلِتَطۡمَئِنَّ قُلُوبُكُم بِهِۦۗ وَمَا ٱلنَّصۡرُ إِلَّا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ
और अल्लाह ने इसे तुम्हारे लिए केवल शुभ सूचना बनाया है और ताकि तुम्हारे दिलों को संतोष हो जाये और समर्थन तो केवल अल्लाह ही के पास से है, जो प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 126
لِيَقۡطَعَ طَرَفٗا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَوۡ يَكۡبِتَهُمۡ فَيَنقَلِبُواْ خَآئِبِينَ
ताकि[1] वह काफ़िरों का एक भाग काट दे अथवा उन्हें अपमानित कर दे। फिर वे असफल वापस हो जायेँ।
Surah Aal-e-Imran, Verse 127
لَيۡسَ لَكَ مِنَ ٱلۡأَمۡرِ شَيۡءٌ أَوۡ يَتُوبَ عَلَيۡهِمۡ أَوۡ يُعَذِّبَهُمۡ فَإِنَّهُمۡ ظَٰلِمُونَ
हे नबी! इस[1] विषय में आपको कोई अधिकार नहीं, अल्लाह चाहे तो उनकी क्षमा याचना स्वीकार[2] करे या दण्ड[3] दे, क्योंकि वे अत्याचारी हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 128
وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ يَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है, वह जिसे चाहे, क्षमा करे और जिसे चाहे, दण्ड दे तथा अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 129
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَأۡكُلُواْ ٱلرِّبَوٰٓاْ أَضۡعَٰفٗا مُّضَٰعَفَةٗۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ
हे ईमान वालो! कई-कई गुणा करके ब्याज[1] न खाओ तथा अल्लाह से डरो, ताकि सफल हो जाओ।
Surah Aal-e-Imran, Verse 130
وَٱتَّقُواْ ٱلنَّارَ ٱلَّتِيٓ أُعِدَّتۡ لِلۡكَٰفِرِينَ
तथा उस अग्नि से बचो, जो काफ़िरों के लिए तैयार की गयी है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 131
وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ
तथा अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी रहो, ताकि तुमपर दया की जाये।
Surah Aal-e-Imran, Verse 132
۞وَسَارِعُوٓاْ إِلَىٰ مَغۡفِرَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ وَجَنَّةٍ عَرۡضُهَا ٱلسَّمَٰوَٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ أُعِدَّتۡ لِلۡمُتَّقِينَ
और अपने पालनहार की क्षमा और उस स्वर्ग की ओर अग्रसर हो जाओ, जिसकी चौड़ाई आकाशों तथा धरती के बराबर है, वह आज्ञाकारियों के लिए तैयार की गयी है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 133
ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ فِي ٱلسَّرَّآءِ وَٱلضَّرَّآءِ وَٱلۡكَٰظِمِينَ ٱلۡغَيۡظَ وَٱلۡعَافِينَ عَنِ ٱلنَّاسِۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
जो सुविधा तथा असुविधा की दशा में दान करते रहते हैं, क्रोध पी जाते और लोगों के दोष क्षमा कर दिया करते हैं और अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 134
وَٱلَّذِينَ إِذَا فَعَلُواْ فَٰحِشَةً أَوۡ ظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ ذَكَرُواْ ٱللَّهَ فَٱسۡتَغۡفَرُواْ لِذُنُوبِهِمۡ وَمَن يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ إِلَّا ٱللَّهُ وَلَمۡ يُصِرُّواْ عَلَىٰ مَا فَعَلُواْ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
और जब कभी वे कोई बड़ा पाप कर जायेँ अथवा अपने ऊपर अत्याचार कर लें, तो अल्लाह को याद करते हैं, फिर अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं -तथा अल्लाह के सिवा कौन है, जो पापों को क्षमा करे?- और अपने किये पर जान-बूझ कर अड़े नहीं रहते।
Surah Aal-e-Imran, Verse 135
أُوْلَـٰٓئِكَ جَزَآؤُهُم مَّغۡفِرَةٞ مِّن رَّبِّهِمۡ وَجَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَٰمِلِينَ
उन्हीं का प्रतिफल (बदला) उनके पालनहार की क्षमा तथा ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें परवाहित हैं, जिनमें वे सदावासी होंगे। तो क्या ही अच्छा है सत्कर्मियों का ये प्रतिफल
Surah Aal-e-Imran, Verse 136
قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِكُمۡ سُنَنٞ فَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ
तुमसे पहले भी इसी प्रकार हो चुका[1] है। तुम धरती में फिरो और देखो कि झुठलाने वालों का परिणाम कैसा रहा
Surah Aal-e-Imran, Verse 137
هَٰذَا بَيَانٞ لِّلنَّاسِ وَهُدٗى وَمَوۡعِظَةٞ لِّلۡمُتَّقِينَ
ये (क़ुर्आन) लोगों के लिए एक वर्णन, मार्गदर्शन और एक शिक्षा है, (अल्लाह से) डरने वालों के लिए।
Surah Aal-e-Imran, Verse 138
وَلَا تَهِنُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَنتُمُ ٱلۡأَعۡلَوۡنَ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
(इसपराजय से) तुम निर्बल तथा उदासीन न बनो और तुमही सर्वोच्च रहोगे, यदि तुम ईमान वाले हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 139
إِن يَمۡسَسۡكُمۡ قَرۡحٞ فَقَدۡ مَسَّ ٱلۡقَوۡمَ قَرۡحٞ مِّثۡلُهُۥۚ وَتِلۡكَ ٱلۡأَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيۡنَ ٱلنَّاسِ وَلِيَعۡلَمَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَيَتَّخِذَ مِنكُمۡ شُهَدَآءَۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِينَ
यदि तुम्हें कोई घाव लगा है, तो क़ौम (शत्रु)[1] को भी इसी के समान घाव लग चुका है तथा उन दिनों को हम लोगों के बीच फेरते[2] रहते हैं। ताकि अल्लाह उन लोगों को जान ले,[1] जो ईमान लाये और तुममें से साक्षी बनाये और अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
Surah Aal-e-Imran, Verse 140
وَلِيُمَحِّصَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَيَمۡحَقَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
तथा ताकि अल्लाह उन्हें शुध्द कर दे, जो ईमान लाये हैं और काफ़िरों को नाश कर दे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 141
أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا يَعۡلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَٰهَدُواْ مِنكُمۡ وَيَعۡلَمَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
क्या तुमने समझ रखा है कि स्वर्ग में प्रवेश कर जाओगे? जबकि अल्लाह ने (परीक्षा करके) उन्हें नहीं जाना है, जिन्होंने तुममें से जिहाद किया है और न सहनशीलों को जाना है
Surah Aal-e-Imran, Verse 142
وَلَقَدۡ كُنتُمۡ تَمَنَّوۡنَ ٱلۡمَوۡتَ مِن قَبۡلِ أَن تَلۡقَوۡهُ فَقَدۡ رَأَيۡتُمُوهُ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ
तथा तुम मौत की कामना कर[1] रहे थे, इससे पूर्व कि उसका सामना करो, तो अब तुमने उसे आँखों से देख लिया है और देख रहे हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 143
وَمَا مُحَمَّدٌ إِلَّا رَسُولٞ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِ ٱلرُّسُلُۚ أَفَإِيْن مَّاتَ أَوۡ قُتِلَ ٱنقَلَبۡتُمۡ عَلَىٰٓ أَعۡقَٰبِكُمۡۚ وَمَن يَنقَلِبۡ عَلَىٰ عَقِبَيۡهِ فَلَن يَضُرَّ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۚ وَسَيَجۡزِي ٱللَّهُ ٱلشَّـٰكِرِينَ
मुह़म्मद केवल एक रसूल हैं, इससे पहले बहुत-से रसूल हो चुके हैं, तो क्या यदि वो मर गये अथवा मार दिये गये, तो तुम अपनी एड़ियों के बल[1] फिर जाओगे? तथा जो अपनी एड़ियों के बल फिर जायेगा, वो अल्लाह को कुछ हानि नहीं पहुँचा सकेगा और अल्लाह शीघ्र ही कृतज्ञों को प्रतिफल प्रदान करेगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 144
وَمَا كَانَ لِنَفۡسٍ أَن تَمُوتَ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِ كِتَٰبٗا مُّؤَجَّلٗاۗ وَمَن يُرِدۡ ثَوَابَ ٱلدُّنۡيَا نُؤۡتِهِۦ مِنۡهَا وَمَن يُرِدۡ ثَوَابَ ٱلۡأٓخِرَةِ نُؤۡتِهِۦ مِنۡهَاۚ وَسَنَجۡزِي ٱلشَّـٰكِرِينَ
कोई प्राणी ऐसा नहीं कि अल्लाह की अनुमति के बिना मर जाये, उसका अंकित निर्धारित समय है। जो सांसारिक प्रतिफल चाहेगा, हम उसे उसमें से कुछ देंगे तथा जो परलोक का प्रतिफल चाहेगा, हम उसे उसमें से देंगे और हम कृतज्ञों को शीघ्र ही प्रतिफल देंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 145
وَكَأَيِّن مِّن نَّبِيّٖ قَٰتَلَ مَعَهُۥ رِبِّيُّونَ كَثِيرٞ فَمَا وَهَنُواْ لِمَآ أَصَابَهُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَمَا ضَعُفُواْ وَمَا ٱسۡتَكَانُواْۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلصَّـٰبِرِينَ
कितने ही नबी थे, जिनके साथ होकर बहुत-से अल्लाह वालों ने युध्द किया, तो वे अल्लाह की राह में आयी आपदा पर न आलसी हुए, न निर्बल बने और न (शत्रु से) दबे तथा अल्लाह धैर्यवानों से प्रेम करता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 146
وَمَا كَانَ قَوۡلَهُمۡ إِلَّآ أَن قَالُواْ رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسۡرَافَنَا فِيٓ أَمۡرِنَا وَثَبِّتۡ أَقۡدَامَنَا وَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ
तथा उनका कथन बस यही था कि उन्होंने कहाः हे हमारे पालनहार! हमारे लिए हमारे पापों को क्षमा कर दे तथा हमारे विषय में हमारी अति को। और हमारे पैरों को दृढ़ कर दे और काफ़िर जाति के विरुध्द हमारी सहायता कर।
Surah Aal-e-Imran, Verse 147
فَـَٔاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ ثَوَابَ ٱلدُّنۡيَا وَحُسۡنَ ثَوَابِ ٱلۡأٓخِرَةِۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
तो अल्लाह ने उन्हें सांसारिक प्रतिफल तथा आख़िरत (परलोक) का अच्छा प्रतिफल प्रदान कर दिया तथा अल्लाह सुकर्मियों से प्रेम करता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 148
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن تُطِيعُواْ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يَرُدُّوكُمۡ عَلَىٰٓ أَعۡقَٰبِكُمۡ فَتَنقَلِبُواْ خَٰسِرِينَ
हे ईमान वालो! यदि तुम काफ़िरों की बात मानोगे, तो वे तुम्हें तुम्हारी एड़ियों के बल फेर देंगे और तुम फिर से क्षति में पड़ जाओगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 149
بَلِ ٱللَّهُ مَوۡلَىٰكُمۡۖ وَهُوَ خَيۡرُ ٱلنَّـٰصِرِينَ
बल्कि अल्लाह तुम्हारा रक्षक है तथा वह सबसे अच्छा सहायक है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 150
سَنُلۡقِي فِي قُلُوبِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلرُّعۡبَ بِمَآ أَشۡرَكُواْ بِٱللَّهِ مَا لَمۡ يُنَزِّلۡ بِهِۦ سُلۡطَٰنٗاۖ وَمَأۡوَىٰهُمُ ٱلنَّارُۖ وَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلظَّـٰلِمِينَ
शीघ्र ही हम काफ़िरों के दिलों में तुम्हारा भय डाल देंगे, इस कारण कि उन्होंने अल्लाह का साझी उसे बना लिया है, जिसका कोई तर्क (प्रमाण) अल्लाह ने नहीं उतारा है और इनका आवास नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है
Surah Aal-e-Imran, Verse 151
وَلَقَدۡ صَدَقَكُمُ ٱللَّهُ وَعۡدَهُۥٓ إِذۡ تَحُسُّونَهُم بِإِذۡنِهِۦۖ حَتَّىٰٓ إِذَا فَشِلۡتُمۡ وَتَنَٰزَعۡتُمۡ فِي ٱلۡأَمۡرِ وَعَصَيۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ مَآ أَرَىٰكُم مَّا تُحِبُّونَۚ مِنكُم مَّن يُرِيدُ ٱلدُّنۡيَا وَمِنكُم مَّن يُرِيدُ ٱلۡأٓخِرَةَۚ ثُمَّ صَرَفَكُمۡ عَنۡهُمۡ لِيَبۡتَلِيَكُمۡۖ وَلَقَدۡ عَفَا عَنكُمۡۗ وَٱللَّهُ ذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
तथा अल्लाह ने तुमसे अपना वचन सच कर दिखाया है, जब तुम उसकी अनुमति से, उनहें काट[1] रहे थे, यहाँ तक कि जब तुमने कायरता दिखायी तथा (रसूल के) आदेश[2] में विभेद कर लिया और अवज्ञा की, इसके पश्चात् कि तुम्हें वह (विजय) दिखा दी, जिसे तुम चाहते थे। तुममें से कुछ संसार चाहते हैं तथा कुछ परलोक चाहते हैं। फिर तुम्हें उनसे फेर दिया, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले और तुम्हें क्षमा कर दिया तथा अल्लाह ईमान वालों के लिए दानशील है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 152
۞إِذۡ تُصۡعِدُونَ وَلَا تَلۡوُۥنَ عَلَىٰٓ أَحَدٖ وَٱلرَّسُولُ يَدۡعُوكُمۡ فِيٓ أُخۡرَىٰكُمۡ فَأَثَٰبَكُمۡ غَمَّۢا بِغَمّٖ لِّكَيۡلَا تَحۡزَنُواْ عَلَىٰ مَا فَاتَكُمۡ وَلَا مَآ أَصَٰبَكُمۡۗ وَٱللَّهُ خَبِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ
(और याद करो) जब तुम चढ़े (भागे) जा रहे थे और किसी की ओर मुड़कर नहीं देख रहे थे और रसूल तुम्हें तुम्हारे पीछे से पुकार[1] रहे थे, तो (अल्लाह ने) तुम्हें शोक के बदले शोक दे दिया, ताकि जो तुमसे खो गया और जो दुख तुम्हें पहुँचा, उसपर उदासीन न हो तथा अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 153
ثُمَّ أَنزَلَ عَلَيۡكُم مِّنۢ بَعۡدِ ٱلۡغَمِّ أَمَنَةٗ نُّعَاسٗا يَغۡشَىٰ طَآئِفَةٗ مِّنكُمۡۖ وَطَآئِفَةٞ قَدۡ أَهَمَّتۡهُمۡ أَنفُسُهُمۡ يَظُنُّونَ بِٱللَّهِ غَيۡرَ ٱلۡحَقِّ ظَنَّ ٱلۡجَٰهِلِيَّةِۖ يَقُولُونَ هَل لَّنَا مِنَ ٱلۡأَمۡرِ مِن شَيۡءٖۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡأَمۡرَ كُلَّهُۥ لِلَّهِۗ يُخۡفُونَ فِيٓ أَنفُسِهِم مَّا لَا يُبۡدُونَ لَكَۖ يَقُولُونَ لَوۡ كَانَ لَنَا مِنَ ٱلۡأَمۡرِ شَيۡءٞ مَّا قُتِلۡنَا هَٰهُنَاۗ قُل لَّوۡ كُنتُمۡ فِي بُيُوتِكُمۡ لَبَرَزَ ٱلَّذِينَ كُتِبَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقَتۡلُ إِلَىٰ مَضَاجِعِهِمۡۖ وَلِيَبۡتَلِيَ ٱللَّهُ مَا فِي صُدُورِكُمۡ وَلِيُمَحِّصَ مَا فِي قُلُوبِكُمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
फिर तुमपर शोक के पश्चात् शान्ति (ऊँघ) उतार दी, जो तुम्हारे एक गिरोह[1] को आने लगी और एक गिरोह को अपनी[2] पड़ी हुई थी। वे अल्लाह के बारे में असत्य जाहिलिय्यत की सोच सोच रहे थे। वे कह रहे थे कि क्या हमारा भी कुछ अधिकार है? (हे नबी!) कह दें कि सब अधिकार अल्लाह को है। वे अपने मनों में जो छुपा रहे थे, आपको नहीं बता रहे थे। वे कह रहे थे कि यदि हमारा कुछ भी अधिकार होता, तो यहाँ मारे नहीं जाते। आप कह दें: यदि तुम अपने घरों में रहते, तबभी जिनके (भाग्य में) मारा जाना लिखा है, वे अपने निहत होने के स्थानों की ओर निकल आते और ताकि अल्लाह जो तुम्हारे दिलों में है, उसकी परीक्षा ले तथा जो तुम्हारे दिलों में है, उसे शुध्द कर दे और अल्लाह दिलों के भेदों से अवगत है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 154
إِنَّ ٱلَّذِينَ تَوَلَّوۡاْ مِنكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡتَقَى ٱلۡجَمۡعَانِ إِنَّمَا ٱسۡتَزَلَّهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ بِبَعۡضِ مَا كَسَبُواْۖ وَلَقَدۡ عَفَا ٱللَّهُ عَنۡهُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٞ
वस्तुतः तुममें से जिन्होंने दो गिरोहों के सम्मुख होने के दिन मुँह फेर लिया, शैतान ने उनहें उनके कुछ कुकर्मों के कारण फिसला दिया तथा अल्लाह ने उन्हें क्षमा कर दिया है। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 155
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَقَالُواْ لِإِخۡوَٰنِهِمۡ إِذَا ضَرَبُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَوۡ كَانُواْ غُزّٗى لَّوۡ كَانُواْ عِندَنَا مَا مَاتُواْ وَمَا قُتِلُواْ لِيَجۡعَلَ ٱللَّهُ ذَٰلِكَ حَسۡرَةٗ فِي قُلُوبِهِمۡۗ وَٱللَّهُ يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ
हे ईमान वालो! उनके समान न हो जाओ, जो काफ़िर हो गये तथा अपने भाईयों से -जब यात्रा में हों अथवा युध्द में- कहा कि यदि वे हमारे पास होते, तो न मरते और न मारे जाते, ताकि अल्लाह उनके दिलों में इसे संताप बना दे और अल्लाह ही जीवित करता तथा मौत देता है और अल्लाह जो तुम कर रहे हो, उसे देख रहा है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 156
وَلَئِن قُتِلۡتُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَوۡ مُتُّمۡ لَمَغۡفِرَةٞ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَحۡمَةٌ خَيۡرٞ مِّمَّا يَجۡمَعُونَ
यदि तुम अल्लाह की राह में मार दिये जाओ अथवा मर जाओ, तो अल्लाह की क्षमा उससे उत्तम है, जो, लोग एकत्र कर रहे हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 157
وَلَئِن مُّتُّمۡ أَوۡ قُتِلۡتُمۡ لَإِلَى ٱللَّهِ تُحۡشَرُونَ
तथा यदि तुम मर गये अथवा मार दिये गये, तो अल्लाह ही के पास एकत्र किये जाओगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 158
فَبِمَا رَحۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ لِنتَ لَهُمۡۖ وَلَوۡ كُنتَ فَظًّا غَلِيظَ ٱلۡقَلۡبِ لَٱنفَضُّواْ مِنۡ حَوۡلِكَۖ فَٱعۡفُ عَنۡهُمۡ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لَهُمۡ وَشَاوِرۡهُمۡ فِي ٱلۡأَمۡرِۖ فَإِذَا عَزَمۡتَ فَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُتَوَكِّلِينَ
अल्लाह की दया के कारण ही आप उनके लिए[1] कोमल (सुशील) हो गये और यदि आप अक्खड़ तथा कड़े दिल के होते, तो वे आपके पास से बिखर जाते। अतः, उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो तथा उनसे भी मामले में प्रामर्श करो, फिर जब कोई दृढ़ संकल्प ले लो, तो अल्लाह पर भरोसा करो। निःसंदेह, अल्लाह भरोसा रखने वालों से प्रेम करता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 159
إِن يَنصُرۡكُمُ ٱللَّهُ فَلَا غَالِبَ لَكُمۡۖ وَإِن يَخۡذُلۡكُمۡ فَمَن ذَا ٱلَّذِي يَنصُرُكُم مِّنۢ بَعۡدِهِۦۗ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो तुमपर कोई प्रभुत्व नहीं पा सकता तथा यदि तुम्हारी सहायता न करे, तो फिर कौन है, जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके? अतः ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिये।
Surah Aal-e-Imran, Verse 160
وَمَا كَانَ لِنَبِيٍّ أَن يَغُلَّۚ وَمَن يَغۡلُلۡ يَأۡتِ بِمَا غَلَّ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ
किसी नबी के लिए योग्य नहीं कि अपभोग[1] करे और जो अपभोग करेगा, प्रलय के दिन उसे लायेगा। फिर प्रत्येक प्राणी को, उसकी कमाई का भरपूर प्रतिकार (बदला) दिया जायेगा तथा उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 161
أَفَمَنِ ٱتَّبَعَ رِضۡوَٰنَ ٱللَّهِ كَمَنۢ بَآءَ بِسَخَطٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأۡوَىٰهُ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
तो क्या जिसने अल्लाह की प्रसन्नता का अनुसरण किया हो, उसके समान हो जायेगा, जो अल्लाह का क्रोध[1] लेकर फिरा और उसका आवास नरक है
Surah Aal-e-Imran, Verse 162
هُمۡ دَرَجَٰتٌ عِندَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا يَعۡمَلُونَ
अल्लाह के पास उनकी श्रेणियाँ हैं तथा अल्लाह उसे देख[1] रहा है, जो वे कर रहे हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 163
لَقَدۡ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ إِذۡ بَعَثَ فِيهِمۡ رَسُولٗا مِّنۡ أَنفُسِهِمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِهِۦ وَيُزَكِّيهِمۡ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَإِن كَانُواْ مِن قَبۡلُ لَفِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ
अल्लाह ने ईमान वालों पर उपकार किया है कि उनमें उन्हीं में से एक रसूल भेजा, जो उनके सामने (अल्लाह) की आयतें पढ़ता है, उन्हें शुध्द करता है तथा उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) और ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा देता है, यद्यपि वे इससे पहले खुले कुपथ में थे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 164
أَوَلَمَّآ أَصَٰبَتۡكُم مُّصِيبَةٞ قَدۡ أَصَبۡتُم مِّثۡلَيۡهَا قُلۡتُمۡ أَنَّىٰ هَٰذَاۖ قُلۡ هُوَ مِنۡ عِندِ أَنفُسِكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
तथा जब तुम्हें एक दुःख पहुँचा,[1] जबकि इसके दुगना (दुःख) तुमने (उन्हें) पहुँचाया है[2], तो तुमने कह दिया कि ये कहाँ से आ गया? (हे नबी!) कह दोः ये तुम्हारे पास से[3] आया है। वास्तव में, अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 165
وَمَآ أَصَٰبَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡتَقَى ٱلۡجَمۡعَانِ فَبِإِذۡنِ ٱللَّهِ وَلِيَعۡلَمَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
तथा जो भी आपदा, दो गिरोहों के सम्मुख होने के दिन, तुमपर आई, तो वो अल्लाह की अनुमति से (आई)। ताकि वह ईमान वालों को जान ले।
Surah Aal-e-Imran, Verse 166
وَلِيَعۡلَمَ ٱلَّذِينَ نَافَقُواْۚ وَقِيلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡاْ قَٰتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَوِ ٱدۡفَعُواْۖ قَالُواْ لَوۡ نَعۡلَمُ قِتَالٗا لَّٱتَّبَعۡنَٰكُمۡۗ هُمۡ لِلۡكُفۡرِ يَوۡمَئِذٍ أَقۡرَبُ مِنۡهُمۡ لِلۡإِيمَٰنِۚ يَقُولُونَ بِأَفۡوَٰهِهِم مَّا لَيۡسَ فِي قُلُوبِهِمۡۚ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا يَكۡتُمُونَ
और ताकि उन्हें जान ले, जो मुनाफ़िक़ हैं। (जब) उनसे कहा गया कि आओ, अल्लाह की राह में युध्द करो अथवा रक्षा करो, तो उन्होंने कहा कि यदि हम युध्द होना जानते, तो अवश्य तुम्हारा साथ देते। वे उस दिन ईमान से अधिक कुफ़्र के समीप थे, व अपने मुखों से ऐसी बात बोल रहे थे, जो उनके दिलों में नहीं थी तथा अल्लाह, जिसे वे छुपा रहे थे, अधिक जानता था।
Surah Aal-e-Imran, Verse 167
ٱلَّذِينَ قَالُواْ لِإِخۡوَٰنِهِمۡ وَقَعَدُواْ لَوۡ أَطَاعُونَا مَا قُتِلُواْۗ قُلۡ فَٱدۡرَءُواْ عَنۡ أَنفُسِكُمُ ٱلۡمَوۡتَ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
इन्होंने ही अपने भाईयों से कहा और (स्वयं घरों में) आसीन रह गयेः यदि वे हमारी बात मानते, तो मारे नहीं जाते! (हे नबी!) कह दोः फिर तो मौत से[1] अपनी रक्षा कर लो, यदि तुम सच्चे हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 168
وَلَا تَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ قُتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَمۡوَٰتَۢاۚ بَلۡ أَحۡيَآءٌ عِندَ رَبِّهِمۡ يُرۡزَقُونَ
जो अल्लाह की राह में मार दिये गये, तो तुम उन्हें मरा हुआ न समझो, बल्कि वे जीवित हैं[1], अपने पालनहार के पास जीविका दिये जा रहे हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 169
فَرِحِينَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ وَيَسۡتَبۡشِرُونَ بِٱلَّذِينَ لَمۡ يَلۡحَقُواْ بِهِم مِّنۡ خَلۡفِهِمۡ أَلَّا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
तथा उससे प्रसन्न हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपनी दया से प्रदान किया है और उनके लिए प्रसन्न (हर्षित) हो रहे हैं, जो उनसे मिले नहीं, उनके पीछे[1] रह गये हैं कि उन्हें कोई डर नहीं होगा और न वे उदासीन होंगे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 170
۞يَسۡتَبۡشِرُونَ بِنِعۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَفَضۡلٖ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجۡرَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
वे अल्लाह के पुरस्कार और प्रदान के कारण प्रसन्न हो रहे हैं तथा इसपर कि अल्लाह ईमान वालों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करता।
Surah Aal-e-Imran, Verse 171
ٱلَّذِينَ ٱسۡتَجَابُواْ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِ مِنۢ بَعۡدِ مَآ أَصَابَهُمُ ٱلۡقَرۡحُۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ مِنۡهُمۡ وَٱتَّقَوۡاْ أَجۡرٌ عَظِيمٌ
जिन्होंने अल्लाह और रसूल की पुकार स्वीकार[1] की, इसके पश्चात् कि उन्हें आघात पहुँचा, उनमें से उनके लिए जिन्होंने सुकर्म किया तथा (अल्लाह से) डरे, महा प्रतिफल है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 172
ٱلَّذِينَ قَالَ لَهُمُ ٱلنَّاسُ إِنَّ ٱلنَّاسَ قَدۡ جَمَعُواْ لَكُمۡ فَٱخۡشَوۡهُمۡ فَزَادَهُمۡ إِيمَٰنٗا وَقَالُواْ حَسۡبُنَا ٱللَّهُ وَنِعۡمَ ٱلۡوَكِيلُ
ये वे लोग हैं, जिनसे लोगों ने कहा कि तुम्हारे लिए लोगों (शत्रु) ने (वापिस आने का) संकल्प[1] लिया है। अतः उनसे डरो, तो इस (सूचना) ने उनके ईमान को और अधिक कर दिया और उन्होंने कहाः हमें अल्लाह बस है और वह अच्छा काम बनाने वाला है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 173
فَٱنقَلَبُواْ بِنِعۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَفَضۡلٖ لَّمۡ يَمۡسَسۡهُمۡ سُوٓءٞ وَٱتَّبَعُواْ رِضۡوَٰنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ ذُو فَضۡلٍ عَظِيمٍ
तथा अल्लाह के अनुग्रह एवं दया के साथ[1] वापिस हुए। उन्हें कोई दुःख नहीं पहुँचा तथा अल्लाह की प्रसन्नता पर चले और अल्लाह बड़ा दयाशील है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 174
إِنَّمَا ذَٰلِكُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ يُخَوِّفُ أَوۡلِيَآءَهُۥ فَلَا تَخَافُوهُمۡ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
वह शैतान है, जो तुम्हें अपने सहयोगियों से डरा रहा है, तो उनसे[1] न डरो तथा मुझी से डरो यदि तुम ईमान वाले हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 175
وَلَا يَحۡزُنكَ ٱلَّذِينَ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡكُفۡرِۚ إِنَّهُمۡ لَن يَضُرُّواْ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۚ يُرِيدُ ٱللَّهُ أَلَّا يَجۡعَلَ لَهُمۡ حَظّٗا فِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٌ
(हे नबी!) आपको वे काफ़िर उदासीन न करें, जो कुफ़्र में अग्रसर हैं, वे अल्लाह को कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे। अल्लाह चाहता है कि आख़िरत (परलोक) में उनका कोई भाग न बनाये तथा उन्हीं के लिए घोर यातना है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 176
إِنَّ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلۡكُفۡرَ بِٱلۡإِيمَٰنِ لَن يَضُرُّواْ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ
वस्तुतः जिन्होंने ईमान के बदले कुफ़्र खरीद लिया, वे अल्लाह को कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे तथा उन्हीं के दुःखदायी यातना है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 177
وَلَا يَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّمَا نُمۡلِي لَهُمۡ خَيۡرٞ لِّأَنفُسِهِمۡۚ إِنَّمَا نُمۡلِي لَهُمۡ لِيَزۡدَادُوٓاْ إِثۡمٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ
जो काफ़िर हो गये, वे कदापि ये न समझें कि हमारा उन्हें अवसर[1] देना, उनके लिए अच्छा है, वास्तव में, हम उन्हें इसलिए अवसर दे रहे हैं कि उनके पाप[2] अधिक हो जायेँ तथा उन्हीं के लिए अपमानकारी यातना है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 178
مَّا كَانَ ٱللَّهُ لِيَذَرَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ عَلَىٰ مَآ أَنتُمۡ عَلَيۡهِ حَتَّىٰ يَمِيزَ ٱلۡخَبِيثَ مِنَ ٱلطَّيِّبِۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُطۡلِعَكُمۡ عَلَى ٱلۡغَيۡبِ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَجۡتَبِي مِن رُّسُلِهِۦ مَن يَشَآءُۖ فَـَٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦۚ وَإِن تُؤۡمِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَلَكُمۡ أَجۡرٌ عَظِيمٞ
अल्लाह ऐसा नहीं है कि ईमान वालों को उसी (दशा) पर छोड़ दे, जिसपर तुम हो, जब तक बुरे को अच्छे से अलग न कर दे और अल्लाह ऐसा (भी) नहीं है कि तुम्हें ग़ैब (परोक्ष) से[1] सूचित कर दे, परन्तु अल्लाह अपने रसूलों में से (परोक्ष पर अवगत करने के लिए) जिसे चाहे, चुन लेता है तथा यदि तुम ईमान लाओ और अल्लाह से डरते रहो, तो तुम्हारे लिए बड़ा प्रतिफल है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 179
وَلَا يَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ يَبۡخَلُونَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ هُوَ خَيۡرٗا لَّهُمۖ بَلۡ هُوَ شَرّٞ لَّهُمۡۖ سَيُطَوَّقُونَ مَا بَخِلُواْ بِهِۦ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ وَلِلَّهِ مِيرَٰثُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
वे लोग कदापि ये न समझें, जो उसमें कृपण (कंजसी) करते हैं, जो अल्लाह ने उन्हों अपनी दया से प्रदान किया[1] है कि वह उनके लिए अच्छा है, बल्कि वह उनके लिए बुरा है, जिसमें उन्होंने कृपण किया है। प्रलय के दिन उसे उनके गले का हार[2] बना दिया जायेगा और आकाशों तथा धरती की मीरास (उत्तराधिकार) अल्लाह के[3] लिए है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उससे सूचित है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 180
لَّقَدۡ سَمِعَ ٱللَّهُ قَوۡلَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ فَقِيرٞ وَنَحۡنُ أَغۡنِيَآءُۘ سَنَكۡتُبُ مَا قَالُواْ وَقَتۡلَهُمُ ٱلۡأَنۢبِيَآءَ بِغَيۡرِ حَقّٖ وَنَقُولُ ذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡحَرِيقِ
अल्लाह ने उनकी बात सुन ली है, जिन्होंने कहा कि अल्लाह निर्धन और हम धनी[1] हैं, उन्होंने जो कुछ कहा है, हम उसे लिख लेंगे और उनके नबियों की अवैध हत्या करने को भी, तथा कहेंगे कि दहन की यातना चखो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 181
ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيۡسَ بِظَلَّامٖ لِّلۡعَبِيدِ
ये तुम्हारे करतूतों का दुष्परिणाम है तथा वास्तव में, अल्लाह बंदों के लिए तनिक भी अत्याचारी नहीं है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 182
ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ عَهِدَ إِلَيۡنَآ أَلَّا نُؤۡمِنَ لِرَسُولٍ حَتَّىٰ يَأۡتِيَنَا بِقُرۡبَانٖ تَأۡكُلُهُ ٱلنَّارُۗ قُلۡ قَدۡ جَآءَكُمۡ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِي بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَبِٱلَّذِي قُلۡتُمۡ فَلِمَ قَتَلۡتُمُوهُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
जिन्होंने कहाः अल्लाह ने हमसे वचन लिया है कि किसी रसूल का विश्वास न करें, जब तक हमारे समक्ष ऐसी बली न दें, जिसे अग्नि खा[1] जाये। (हे नबी!) आप कह दें कि मुझसे पूर्व बहुत-से रसूल खुली निशानियाँ और वो चीज़ लाये, जो तुमने कही, तो तुमने उनकी हत्या क्यों कर दी, यदि तुम सच्चे हो तो
Surah Aal-e-Imran, Verse 183
فَإِن كَذَّبُوكَ فَقَدۡ كُذِّبَ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِكَ جَآءُو بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَٱلزُّبُرِ وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُنِيرِ
फिर यदि इन्होंने[1] आपको झुठला दिया, तो आपसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाये गये हैं, जो खुली निशानियाँ तथा (आकाशीय) ग्रंथ और प्रकाशक पुस्तकें लाये[2]।
Surah Aal-e-Imran, Verse 184
كُلُّ نَفۡسٖ ذَآئِقَةُ ٱلۡمَوۡتِۗ وَإِنَّمَا تُوَفَّوۡنَ أُجُورَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۖ فَمَن زُحۡزِحَ عَنِ ٱلنَّارِ وَأُدۡخِلَ ٱلۡجَنَّةَ فَقَدۡ فَازَۗ وَمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَآ إِلَّا مَتَٰعُ ٱلۡغُرُورِ
प्रत्येक प्राणी को मौत का स्वाद चखना है और तुम्हें, तुम्हारे कर्मों का प्रलय के दिन भरपूर प्रतिफल दिया जायेगा, तो (उस दिन) जो व्यक्ति नरक से बचा लिया गया तथा स्वर्ग में प्रवेश पा गया[1], तो वह सफल हो गया तथा सांसारिक जीवन धोखे की पूंजी के सिवा कुछ नहीं है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 185
۞لَتُبۡلَوُنَّ فِيٓ أَمۡوَٰلِكُمۡ وَأَنفُسِكُمۡ وَلَتَسۡمَعُنَّ مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَمِنَ ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُوٓاْ أَذٗى كَثِيرٗاۚ وَإِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ذَٰلِكَ مِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ
(हे ईमान वालो!) तुम्हारे धनों तथा प्राणों में तुम्हारी परीक्षा अवश्य ली जायेगी और तुम उनसे अवश्य बहुत सी दुःखद बातें सुनोगे, जो तुमसे पूर्व पुस्तक दिये गये तथा उनसे जो मिश्रणवादी[1] हैं। अब यदि तुमने सहन किया और (अल्लाह से) डरते रहे, तो ये बड़ी साहस की बात होगी।
Surah Aal-e-Imran, Verse 186
وَإِذۡ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَٰقَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ لَتُبَيِّنُنَّهُۥ لِلنَّاسِ وَلَا تَكۡتُمُونَهُۥ فَنَبَذُوهُ وَرَآءَ ظُهُورِهِمۡ وَٱشۡتَرَوۡاْ بِهِۦ ثَمَنٗا قَلِيلٗاۖ فَبِئۡسَ مَا يَشۡتَرُونَ
तथा (हे नबी! याद करो) जब अल्लाह ने उनसे दृढ़ वचन लिया था, जो पुस्तक[1] दिये गये कि तुम अवश्य इसे लोगों के लिए उजागर करते रहोगे और इसे छुपाओगे नहीं। तो उन्होंने इस वचन को अपने पीछे डाल दिया (भंग कर दिया) और उसके बदले तनिक मूल्य खरीद[2] लिया। तो वे कितनी बुरी चीज़ खरीद रहे हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 187
لَا تَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ يَفۡرَحُونَ بِمَآ أَتَواْ وَّيُحِبُّونَ أَن يُحۡمَدُواْ بِمَا لَمۡ يَفۡعَلُواْ فَلَا تَحۡسَبَنَّهُم بِمَفَازَةٖ مِّنَ ٱلۡعَذَابِۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ
(हे नबी!) जो[1] अपने करतूतों पर प्रसन्न हो रहे हैं और चाहते हैं कि उन कर्मों के लिए सराहे जायें, जो उन्होंने नहीं किये। आप उन्हें कदापि न समझें कि यातना से बचे रहेंगे तथा (वास्तविकता ये कि) उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 188
وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ
तथा आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है तथा अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 189
إِنَّ فِي خَلۡقِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ لَأٓيَٰتٖ لِّأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ
वस्तुतः आकाशों तथा धरती की रचना और रात्रि तथा दिवस के एक के पश्चात् एक आते-जाते रहने में, मतिमानों के लिए बहुत सी निशानियाँ (लक्षण)[1] हैं।
Surah Aal-e-Imran, Verse 190
ٱلَّذِينَ يَذۡكُرُونَ ٱللَّهَ قِيَٰمٗا وَقُعُودٗا وَعَلَىٰ جُنُوبِهِمۡ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلۡقِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ رَبَّنَا مَا خَلَقۡتَ هَٰذَا بَٰطِلٗا سُبۡحَٰنَكَ فَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ
जो खड़े, बैठे तथा सोए (प्रत्येक स्थिति में,) अल्लाह की याद करते तथ आकाशों और धरती की रचना में विचार करते रहते हैं। (कहते हैः) हे हमारे पालनहार! तूने ये सब[1] व्यर्थ नहीं रचा है। हमें अग्नि के दण्ड से बचा ले।
Surah Aal-e-Imran, Verse 191
رَبَّنَآ إِنَّكَ مَن تُدۡخِلِ ٱلنَّارَ فَقَدۡ أَخۡزَيۡتَهُۥۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِينَ مِنۡ أَنصَارٖ
हे हमारे पालनहार! तूने जिसे नरक में झोंक दिया, उसे अपमानित कर दिया और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा।
Surah Aal-e-Imran, Verse 192
رَّبَّنَآ إِنَّنَا سَمِعۡنَا مُنَادِيٗا يُنَادِي لِلۡإِيمَٰنِ أَنۡ ءَامِنُواْ بِرَبِّكُمۡ فَـَٔامَنَّاۚ رَبَّنَا فَٱغۡفِرۡ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرۡ عَنَّا سَيِّـَٔاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ ٱلۡأَبۡرَارِ
हे हमारे पालनहार! हमने एक[1] पुकारने वाले को ईमान के लिए पुकारते हुए सुना कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, तो हम ईमान ले आये। हे हमारे पालनहार! हमारे पाप क्षमा कर दे तथा हमारी बुराईयों को अनदेखी कर दे तथा हमारी मौत पुनीतों (सदाचारियों) के साथ हो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 193
رَبَّنَا وَءَاتِنَا مَا وَعَدتَّنَا عَلَىٰ رُسُلِكَ وَلَا تُخۡزِنَا يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۖ إِنَّكَ لَا تُخۡلِفُ ٱلۡمِيعَادَ
हे हमारे पालनहार! हमें, तूने रसूलों द्वारा जो वचन दिया है, हमें वो प्रदान कर तथा प्रलय के दिन हमें अपमानित न कर, वास्तव में तू वचन विरोधी नहीं है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 194
فَٱسۡتَجَابَ لَهُمۡ رَبُّهُمۡ أَنِّي لَآ أُضِيعُ عَمَلَ عَٰمِلٖ مِّنكُم مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰۖ بَعۡضُكُم مِّنۢ بَعۡضٖۖ فَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ وَأُخۡرِجُواْ مِن دِيَٰرِهِمۡ وَأُوذُواْ فِي سَبِيلِي وَقَٰتَلُواْ وَقُتِلُواْ لَأُكَفِّرَنَّ عَنۡهُمۡ سَيِّـَٔاتِهِمۡ وَلَأُدۡخِلَنَّهُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ ثَوَابٗا مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ عِندَهُۥ حُسۡنُ ٱلثَّوَابِ
तो उनके पालनहार ने उनकी (प्रार्थना) सुन ली, (तथा कहा किः) निःसंदेह मैं किसी कार्यकर्ता के कार्य को व्यर्थ नहीं करता[1], नर हो अथवा नारी। तो जिन्होंने हिजरत (प्रस्थान) की, अपने घरों से निकाले गये, मेरी राह में सताये गये और युध्द किया तथा मारे गये, तो हम अवश्य उनके दोषों को क्षमा कर देंगे तथा उन्हें ऐसे स्वर्गों में प्रवेश देंगे, जिनमें नहरें बह रही हैं। ये अल्लाह के पास से उनका प्रतिफल होगा और अल्लाह ही के पास अच्छा प्रतिफल है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 195
لَا يَغُرَّنَّكَ تَقَلُّبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي ٱلۡبِلَٰدِ
(हे नबी!) नगरों में काफ़िरों का (सुविधा के साथ) फिरना आपको धोखे में न डाल दे।
Surah Aal-e-Imran, Verse 196
مَتَٰعٞ قَلِيلٞ ثُمَّ مَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ
ये तनिक लाभ[1] है, फिर उनका स्थान नरक है और वह क्या ही बुरा आवास है
Surah Aal-e-Imran, Verse 197
لَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ جَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا نُزُلٗا مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِۗ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ خَيۡرٞ لِّلۡأَبۡرَارِ
परन्तु जो अपने पालनहार से डरे, तो उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं। उनमें वे सदावासी होंगे। ये अल्लाह के पास से अतिथि सत्कार होगा तथा जो अल्लाह के पास है, पुनीतों के लिए उत्तम है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 198
وَإِنَّ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ لَمَن يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُمۡ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِمۡ خَٰشِعِينَ لِلَّهِ لَا يَشۡتَرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ ثَمَنٗا قَلِيلًاۚ أُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ
और निःसंदेह अह्ले किताब (अर्थात यहूद और ईसाई) में से कुछ ऐसे भी हैं, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं और तुम्हारी ओर जो उतारा गया है, उसपर भी, अल्लाह से डरे रहते हैं और उसकी आयतों को थोड़ी थोड़ी क़ीमतों पर बेचते भी नहीं[1]। उनका बदला उनके रब के पास है। निःसंदेह अल्लाह जल्दी ही हिसाब लेने वाला है।
Surah Aal-e-Imran, Verse 199
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱصۡبِرُواْ وَصَابِرُواْ وَرَابِطُواْ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ
हे ईमान वालो! तुम धैर्य रखो[1], एक-दूसरे को थामे रखो, जिहाद के लिए तैयार रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम अपने उद्देश्य को पहुँचो।
Surah Aal-e-Imran, Verse 200