Surah Aal-e-Imran Verse 7 - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
Surah Aal-e-Imranهُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ مِنۡهُ ءَايَٰتٞ مُّحۡكَمَٰتٌ هُنَّ أُمُّ ٱلۡكِتَٰبِ وَأُخَرُ مُتَشَٰبِهَٰتٞۖ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمۡ زَيۡغٞ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَٰبَهَ مِنۡهُ ٱبۡتِغَآءَ ٱلۡفِتۡنَةِ وَٱبۡتِغَآءَ تَأۡوِيلِهِۦۖ وَمَا يَعۡلَمُ تَأۡوِيلَهُۥٓ إِلَّا ٱللَّهُۗ وَٱلرَّـٰسِخُونَ فِي ٱلۡعِلۡمِ يَقُولُونَ ءَامَنَّا بِهِۦ كُلّٞ مِّنۡ عِندِ رَبِّنَاۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّآ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
उसीने आपपर[1] ये पुस्तक (क़ुर्आन) उतारी है, जिसमें कुछ आयतें मुह़कम[2] (सुदृढ़) हैं, जो पुस्तक का मूल आधार हैं तथा कुछ दूसरी मुतशाबिह[3] (संदिग्ध) हैं। तो जिनके दिलों में कुटिलता है, वे उपद्रव की खोज तथा मनमाना अर्थ करने के लिए, संदिग्ध के पीछे पड़ जाते हैं। जबकि उनका वास्तविक अर्थ, अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता तथा जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं कि सब, हमारे पालनहार के पास से है और बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।