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Surah Aal-e-Imran - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi


الٓمٓ

अलिफ़ लाम मीम
Surah Aal-e-Imran, Verse 1


ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡحَيُّ ٱلۡقَيُّومُ

अल्लाह ही वह (ख़ुदा) है जिसके सिवा कोई क़ाबिले परस्तिश नहीं है वही ज़िन्दा (और) सारे जहान का सॅभालने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 2


نَزَّلَ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ مُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيۡهِ وَأَنزَلَ ٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَ

(ऐ रसूल) उसी ने तुम पर बरहक़ किताब नाज़िल की जो (आसमानी किताबें पहले से) उसके सामने मौजूद हैं उनकी तसदीक़ करती है और उसी ने उससे पहले लोगों की हिदायत के वास्ते तौरेत व इन्जील नाज़िल की
Surah Aal-e-Imran, Verse 3


مِن قَبۡلُ هُدٗى لِّلنَّاسِ وَأَنزَلَ ٱلۡفُرۡقَانَۗ إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ لَهُمۡ عَذَابٞ شَدِيدٞۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٞ ذُو ٱنتِقَامٍ

और हक़ व बातिल में तमीज़ देने वाली किताब (कुरान) नाज़िल की बेशक जिन लोगों ने ख़ुदा की आयतों को न माना उनके लिए सख्त अज़ाब है और ख़ुदा हर चीज़ पर ग़ालिब बदला लेने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 4


إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَخۡفَىٰ عَلَيۡهِ شَيۡءٞ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِي ٱلسَّمَآءِ

बेशक ख़ुदा पर कोई चीज़ पोशीदा नहीं है (न) ज़मीन में न आसमान में
Surah Aal-e-Imran, Verse 5


هُوَ ٱلَّذِي يُصَوِّرُكُمۡ فِي ٱلۡأَرۡحَامِ كَيۡفَ يَشَآءُۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ

वही तो वह ख़ुदा है जो माँ के पेट में तुम्हारी सूरत जैसी चाहता है बनाता हे उसके सिवा कोई माबूद नहीं
Surah Aal-e-Imran, Verse 6


هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ مِنۡهُ ءَايَٰتٞ مُّحۡكَمَٰتٌ هُنَّ أُمُّ ٱلۡكِتَٰبِ وَأُخَرُ مُتَشَٰبِهَٰتٞۖ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمۡ زَيۡغٞ فَيَتَّبِعُونَ مَا تَشَٰبَهَ مِنۡهُ ٱبۡتِغَآءَ ٱلۡفِتۡنَةِ وَٱبۡتِغَآءَ تَأۡوِيلِهِۦۖ وَمَا يَعۡلَمُ تَأۡوِيلَهُۥٓ إِلَّا ٱللَّهُۗ وَٱلرَّـٰسِخُونَ فِي ٱلۡعِلۡمِ يَقُولُونَ ءَامَنَّا بِهِۦ كُلّٞ مِّنۡ عِندِ رَبِّنَاۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّآ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ

वही (हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (ए रसूल) वही (वह ख़ुदा) है जिसने तुमपर किताब नाज़िल की उसमें की बाज़ आयतें तो मोहकम (बहुत सरीह) हैं वही (अमल करने के लिए) असल (व बुनियाद) किताब है और कुछ (आयतें) मुतशाबेह (मिलती जुलती) (गोल गोल जिसके मायने में से पहलू निकल सकते हैं) पस जिन लोगों के दिलों में कज़ी है वह उन्हीं आयतों के पीछे पड़े रहते हैं जो मुतशाबेह हैं ताकि फ़साद बरपा करें और इस ख्याल से कि उन्हें मतलब पर ढाले लें हालाँकि ख़ुदा और उन लोगों के सिवा जो इल्म से बड़े पाए पर फ़ायज़ हैं उनका असली मतलब कोई नहीं जानता वह लोग (ये भी) कहते हैं कि हम उस पर ईमान लाए (यह) सब (मोहकम हो या मुतशाबेह) हमारे परवरदिगार की तरफ़ से है और अक्ल वाले ही समझते हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 7


رَبَّنَا لَا تُزِغۡ قُلُوبَنَا بَعۡدَ إِذۡ هَدَيۡتَنَا وَهَبۡ لَنَا مِن لَّدُنكَ رَحۡمَةًۚ إِنَّكَ أَنتَ ٱلۡوَهَّابُ

(और दुआ करते हैं) ऐ हमारे पालने वाले हमारे दिल को हिदायत करने के बाद डॉवाडोल न कर और अपनी बारगाह से हमें रहमत अता फ़रमा इसमें तो शक ही नहीं कि तू बड़ा देने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 8


رَبَّنَآ إِنَّكَ جَامِعُ ٱلنَّاسِ لِيَوۡمٖ لَّا رَيۡبَ فِيهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُخۡلِفُ ٱلۡمِيعَادَ

ऐ हमारे परवरदिगार बेशक तू एक न एक दिन जिसके आने में शुबह नहीं लोगों को इक्ट्ठा करेगा (तो हम पर नज़रे इनायत रहे) बेशक ख़ुदा अपने वायदे के ख़िलाफ़ नहीं करता
Surah Aal-e-Imran, Verse 9


إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمۡ وَقُودُ ٱلنَّارِ

बेशक जिन लोगों ने कुफ्र किया इख्तेयार किया उनको ख़ुदा (के अज़ाब) से न उनके माल ही कुछ बचाएंगे, न उनकी औलाद (कुछ काम आएगी) और यही लोग जहन्नुम के ईधन होंगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 10


كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَا فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمۡۗ وَٱللَّهُ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ

(उनकी भी) क़ौमे फ़िरऔन और उनसे पहले वालों की सी हालत है कि उन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया तो खुदा ने उन्हें उनके गुनाहों की पादाश (सज़ा) में ले डाला और ख़ुदा सख्त सज़ा देने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 11


قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ سَتُغۡلَبُونَ وَتُحۡشَرُونَ إِلَىٰ جَهَنَّمَۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ

(ऐ रसूल) जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनसे कह दो कि बहुत जल्द तुम (मुसलमानो के मुक़ाबले में) मग़लूब (हारे हुए) होंगे और जहन्नुम में इकट्ठे किये जाओगे और वह (क्या) बुरा ठिकाना है
Surah Aal-e-Imran, Verse 12


قَدۡ كَانَ لَكُمۡ ءَايَةٞ فِي فِئَتَيۡنِ ٱلۡتَقَتَاۖ فِئَةٞ تُقَٰتِلُ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَأُخۡرَىٰ كَافِرَةٞ يَرَوۡنَهُم مِّثۡلَيۡهِمۡ رَأۡيَ ٱلۡعَيۡنِۚ وَٱللَّهُ يُؤَيِّدُ بِنَصۡرِهِۦ مَن يَشَآءُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَعِبۡرَةٗ لِّأُوْلِي ٱلۡأَبۡصَٰرِ

बेशक तुम्हारे (समझाने के) वास्ते उन दो (मुख़ालिफ़ गिरोहों में जो (बद्र की लड़ाई में) एक दूसरे के साथ गुथ गए (रसूल की सच्चाई की) बड़ी भारी निशानी है कि एक गिरोह ख़ुदा की राह में जेहाद करता था और दूसरा काफ़िरों का जिनको मुसलमान अपनी ऑख से दुगना देख रहे थे (मगर ख़ुदा ने क़लील ही को फ़तह दी) और ख़ुदा अपनी मदद से जिस की चाहता है ताईद करता है बेशक ऑख वालों के वास्ते इस वाक़ये में बड़ी इबरत है
Surah Aal-e-Imran, Verse 13


زُيِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ ٱلشَّهَوَٰتِ مِنَ ٱلنِّسَآءِ وَٱلۡبَنِينَ وَٱلۡقَنَٰطِيرِ ٱلۡمُقَنطَرَةِ مِنَ ٱلذَّهَبِ وَٱلۡفِضَّةِ وَٱلۡخَيۡلِ ٱلۡمُسَوَّمَةِ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ وَٱلۡحَرۡثِۗ ذَٰلِكَ مَتَٰعُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَٱللَّهُ عِندَهُۥ حُسۡنُ ٱلۡمَـَٔابِ

दुनिया में लोगों को उनकी मरग़ूब चीज़े (मसलन) बीवियों और बेटों और सोने चॉदी के बड़े बड़े लगे हुए ढेरों और उम्दा उम्दा घोड़ों और मवेशियों ओर खेती के साथ उलफ़त भली करके दिखा दी गई है ये सब दुनयावी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ा) फ़ायदे हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो ख़ुदा ही के यहॉ है
Surah Aal-e-Imran, Verse 14


۞قُلۡ أَؤُنَبِّئُكُم بِخَيۡرٖ مِّن ذَٰلِكُمۡۖ لِلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ عِندَ رَبِّهِمۡ جَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا وَأَزۡوَٰجٞ مُّطَهَّرَةٞ وَرِضۡوَٰنٞ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِٱلۡعِبَادِ

(ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि क्या मैं तुमको उन सब चीज़ों से बेहतर चीज़ बता दूं (अच्छा सुनो) जिन लोगों ने परहेज़गारी इख्तेयार की उनके लिए उनके परवरदिगार के यहॉ (बेहिश्त) के वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं (और वह) हमेशा उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ सुथरी बीवियॉ हैं और (सबसे बढ़कर) ख़ुदा की ख़ुशनूदी है और ख़ुदा (अपने) उन बन्दों को खूब देख रहा हे जो दुआऐं मॉगा करते हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 15


ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَآ إِنَّنَآ ءَامَنَّا فَٱغۡفِرۡ لَنَا ذُنُوبَنَا وَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ

कि हमारे पालने वाले हम तो (बेताम्मुल) ईमान लाए हैं पस तू भी हमारे गुनाहों को बख्श दे और हमको दोज़ख़ के अज़ाब से बचा
Surah Aal-e-Imran, Verse 16


ٱلصَّـٰبِرِينَ وَٱلصَّـٰدِقِينَ وَٱلۡقَٰنِتِينَ وَٱلۡمُنفِقِينَ وَٱلۡمُسۡتَغۡفِرِينَ بِٱلۡأَسۡحَارِ

(यही लोग हैं) सब्र करने वाले और सच बोलने वाले और (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार और (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करने वाले और पिछली रातों में (ख़ुदा से तौबा) इस्तग़फ़ार करने वाले
Surah Aal-e-Imran, Verse 17


شَهِدَ ٱللَّهُ أَنَّهُۥ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ وَأُوْلُواْ ٱلۡعِلۡمِ قَآئِمَۢا بِٱلۡقِسۡطِۚ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ

ज़रूर ख़ुदा और फ़रिश्तों और इल्म वालों ने गवाही दी है कि उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं है और वह ख़ुदा अद्ल व इन्साफ़ के साथ (कारख़ानाए आलम का) सॅभालने वाला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वही हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (सच्चा) दीन तो ख़ुदा के नज़दीक यक़ीनन (बस यही) इस्लाम है
Surah Aal-e-Imran, Verse 18


إِنَّ ٱلدِّينَ عِندَ ٱللَّهِ ٱلۡإِسۡلَٰمُۗ وَمَا ٱخۡتَلَفَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡعِلۡمُ بَغۡيَۢا بَيۡنَهُمۡۗ وَمَن يَكۡفُرۡ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ

और अहले किताब ने जो उस दीने हक़ से इख्तेलाफ़ किया तो महज़ आपस की शरारत और असली (अम्र) मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख्स ने ख़ुदा की निशानियों से इन्कार किया तो (वह समझ ले कि यक़ीनन ख़ुदा (उससे) बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 19


فَإِنۡ حَآجُّوكَ فَقُلۡ أَسۡلَمۡتُ وَجۡهِيَ لِلَّهِ وَمَنِ ٱتَّبَعَنِۗ وَقُل لِّلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡأُمِّيِّـۧنَ ءَأَسۡلَمۡتُمۡۚ فَإِنۡ أَسۡلَمُواْ فَقَدِ ٱهۡتَدَواْۖ وَّإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّمَا عَلَيۡكَ ٱلۡبَلَٰغُۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِٱلۡعِبَادِ

(ऐ रसूल) पस अगर ये लोग तुमसे (ख्वाह मा ख्वाह) हुज्जत करे तो कह दो मैंने ख़ुदा के आगे अपना सरे तस्लीम ख़म कर दिया है और जो मेरे ताबे है (उन्होंने) भी) और ऐ रसूल तुम अहले किताब और जाहिलों से पूंछो कि क्या तुम भी इस्लाम लाए हो (या नही) पस अगर इस्लाम लाए हैं तो बेख़टके राहे रास्त पर आ गए और अगर मुंह फेरे तो (ऐ रसूल) तुम पर सिर्फ़ पैग़ाम (इस्लाम) पहुंचा देना फ़र्ज़ है (बस) और ख़ुदा (अपने बन्दों) को देख रहा है
Surah Aal-e-Imran, Verse 20


إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقۡتُلُونَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ بِغَيۡرِ حَقّٖ وَيَقۡتُلُونَ ٱلَّذِينَ يَأۡمُرُونَ بِٱلۡقِسۡطِ مِنَ ٱلنَّاسِ فَبَشِّرۡهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ

बेशक जो लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते हैं और नाहक़ पैग़म्बरों को क़त्ल करते हैं और उन लोगों को (भी) क़त्ल करते हैं जो (उन्हें) इन्साफ़ करने का हुक्म करते हैं तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो
Surah Aal-e-Imran, Verse 21


أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ حَبِطَتۡ أَعۡمَٰلُهُمۡ فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ

यही वह (बदनसीब) लोग हैं जिनका सारा किया कराया दुनिया और आख़ेरत (दोनों) में अकारत गया और कोई उनका मददगार नहीं
Surah Aal-e-Imran, Verse 22


أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يُدۡعَوۡنَ إِلَىٰ كِتَٰبِ ٱللَّهِ لِيَحۡكُمَ بَيۡنَهُمۡ ثُمَّ يَتَوَلَّىٰ فَرِيقٞ مِّنۡهُمۡ وَهُم مُّعۡرِضُونَ

(ऐ रसूल) क्या तुमने (उलमाए यहूद) के हाल पर नज़र नहीं की जिनको किताब (तौरेत) का एक हिस्सा दिया गया था (अब) उनको किताबे ख़ुदा की तरफ़ बुलाया जाता है ताकि वही (किताब) उनके झगड़ें का फैसला कर दे इस पर भी उनमें का एक गिरोह मुंह फेर लेता है और यही लोग रूगरदानी (मुँह फेरने) करने वाले हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 23


ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُواْ لَن تَمَسَّنَا ٱلنَّارُ إِلَّآ أَيَّامٗا مَّعۡدُودَٰتٖۖ وَغَرَّهُمۡ فِي دِينِهِم مَّا كَانُواْ يَفۡتَرُونَ

ये इस वजह से है कि वह लोग कहते हैं कि हमें गिनती के चन्द दिनों के सिवा जहन्नुम की आग हरगिज़ छुएगी भी तो नहीं जो इफ़तेरा परदाज़ी ये लोग बराबर करते आए हैं उसी ने उन्हें उनके दीन में भी धोखा दिया है
Surah Aal-e-Imran, Verse 24


فَكَيۡفَ إِذَا جَمَعۡنَٰهُمۡ لِيَوۡمٖ لَّا رَيۡبَ فِيهِ وَوُفِّيَتۡ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ

फ़िर उनकी क्या गत होगी जब हम उनको एक दिन (क़यामत) जिसके आने में कोई शुबहा नहीं इक्ट्ठा करेंगे और हर शख्स को उसके किए का पूरा पूरा बदला दिया जाएगा और उनकी किसी तरह हक़तल्फ़ी नहीं की जाएगी
Surah Aal-e-Imran, Verse 25


قُلِ ٱللَّهُمَّ مَٰلِكَ ٱلۡمُلۡكِ تُؤۡتِي ٱلۡمُلۡكَ مَن تَشَآءُ وَتَنزِعُ ٱلۡمُلۡكَ مِمَّن تَشَآءُ وَتُعِزُّ مَن تَشَآءُ وَتُذِلُّ مَن تَشَآءُۖ بِيَدِكَ ٱلۡخَيۡرُۖ إِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ

(ऐ रसूल) तुम तो यह दुआ मॉगों कि ऐ ख़ुदा तमाम आलम के मालिक तू ही जिसको चाहे सल्तनत दे और जिससे चाहे सल्तनत छीन ले और तू ही जिसको चाहे इज्ज़त दे और जिसे चाहे ज़िल्लत दे हर तरह की भलाई तेरे ही हाथ में है बेशक तू ही हर चीज़ पर क़ादिर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 26


تُولِجُ ٱلَّيۡلَ فِي ٱلنَّهَارِ وَتُولِجُ ٱلنَّهَارَ فِي ٱلَّيۡلِۖ وَتُخۡرِجُ ٱلۡحَيَّ مِنَ ٱلۡمَيِّتِ وَتُخۡرِجُ ٱلۡمَيِّتَ مِنَ ٱلۡحَيِّۖ وَتَرۡزُقُ مَن تَشَآءُ بِغَيۡرِ حِسَابٖ

तू ही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल कर देता है (तो) रात बढ़ जाती है और तू ही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है) तू ही बेजान (अन्डा नुत्फ़ा वगैरह) से जानदार को पैदा करता है और तू ही जानदार से बेजान नुत्फ़ा (वगैरहा) निकालता है और तू ही जिसको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 27


لَّا يَتَّخِذِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلۡكَٰفِرِينَ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ فَلَيۡسَ مِنَ ٱللَّهِ فِي شَيۡءٍ إِلَّآ أَن تَتَّقُواْ مِنۡهُمۡ تُقَىٰةٗۗ وَيُحَذِّرُكُمُ ٱللَّهُ نَفۡسَهُۥۗ وَإِلَى ٱللَّهِ ٱلۡمَصِيرُ

मोमिनीन मोमिनीन को छोड़ के काफ़िरों को अपना सरपरस्त न बनाऐं और जो ऐसा करेगा तो उससे ख़ुदा से कुछ सरोकार नहीं मगर (इस क़िस्म की तदबीरों से) किसी तरह उन (के शर) से बचना चाहो तो (ख़ैर) और ख़ुदा तुमको अपने ही से डराता है और ख़ुदा ही की तरफ़ लौट कर जाना है
Surah Aal-e-Imran, Verse 28


قُلۡ إِن تُخۡفُواْ مَا فِي صُدُورِكُمۡ أَوۡ تُبۡدُوهُ يَعۡلَمۡهُ ٱللَّهُۗ وَيَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ

ऐ रसूल तुम उन (लोगों से) कह दो किजो कुछ तुम्हारे दिलों में है तो ख्वाह उसे छिपाओ या ज़ाहिर करो (बहरहाल) ख़ुदा तो उसे जानता है और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में वह (सब कुछ) जानता है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 29


يَوۡمَ تَجِدُ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ مِنۡ خَيۡرٖ مُّحۡضَرٗا وَمَا عَمِلَتۡ مِن سُوٓءٖ تَوَدُّ لَوۡ أَنَّ بَيۡنَهَا وَبَيۡنَهُۥٓ أَمَدَۢا بَعِيدٗاۗ وَيُحَذِّرُكُمُ ٱللَّهُ نَفۡسَهُۥۗ وَٱللَّهُ رَءُوفُۢ بِٱلۡعِبَادِ

(और उस दिन को याद रखो) जिस दिन हर शख्स जो कुछ उसने (दुनिया में) नेकी की है और जो कुछ बुराई की है उसको मौजूद पाएगा (और) आरज़ू करेगा कि काश उस की बदी और उसके दरमियान में ज़मानए दराज़ (हाएल) हो जाता और ख़ुदा तुमको अपने ही से डराता है और ख़ुदा अपने बन्दों पर बड़ा शफ़ीक़ और (मेहरबान भी) है
Surah Aal-e-Imran, Verse 30


قُلۡ إِن كُنتُمۡ تُحِبُّونَ ٱللَّهَ فَٱتَّبِعُونِي يُحۡبِبۡكُمُ ٱللَّهُ وَيَغۡفِرۡ لَكُمۡ ذُنُوبَكُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ

(ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि अगर तुम ख़ुदा को दोस्त रखते हो तो मेरी पैरवी करो कि ख़ुदा (भी) तुमको दोस्त रखेगा और तुमको तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
Surah Aal-e-Imran, Verse 31


قُلۡ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَۖ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡكَٰفِرِينَ

(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा और रसूल की फ़रमाबरदारी करो फिर अगर यह लोग उससे सरताबी करें तो (समझ लें कि) ख़ुदा काफ़िरों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता
Surah Aal-e-Imran, Verse 32


۞إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰٓ ءَادَمَ وَنُوحٗا وَءَالَ إِبۡرَٰهِيمَ وَءَالَ عِمۡرَٰنَ عَلَى ٱلۡعَٰلَمِينَ

बेशक ख़ुदा ने आदम और नूह और ख़ानदाने इबराहीम और खानदाने इमरान को सारे जहान से बरगुज़ीदा किया है
Surah Aal-e-Imran, Verse 33


ذُرِّيَّةَۢ بَعۡضُهَا مِنۢ بَعۡضٖۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

बाज़ की औलाद को बाज़ से और ख़ुदा (सबकी) सुनता (और सब कुछ) जानता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 34


إِذۡ قَالَتِ ٱمۡرَأَتُ عِمۡرَٰنَ رَبِّ إِنِّي نَذَرۡتُ لَكَ مَا فِي بَطۡنِي مُحَرَّرٗا فَتَقَبَّلۡ مِنِّيٓۖ إِنَّكَ أَنتَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ

(ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब इमरान की बीवी ने (ख़ुदा से) अर्ज़ की कि ऐ मेरे पालने वाले मेरे पेट में जो बच्चा है (उसको मैं दुनिया के काम से) आज़ाद करके तेरी नज़्र करती हूं तू मेरी तरफ़ से (ये नज़्र कुबूल फ़रमा तू बेशक बड़ा सुनने वाला और जानने वाला है)
Surah Aal-e-Imran, Verse 35


فَلَمَّا وَضَعَتۡهَا قَالَتۡ رَبِّ إِنِّي وَضَعۡتُهَآ أُنثَىٰ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا وَضَعَتۡ وَلَيۡسَ ٱلذَّكَرُ كَٱلۡأُنثَىٰۖ وَإِنِّي سَمَّيۡتُهَا مَرۡيَمَ وَإِنِّيٓ أُعِيذُهَا بِكَ وَذُرِّيَّتَهَا مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ ٱلرَّجِيمِ

फिर जब वह बेटी जन चुकी तो (हैरत से) कहने लगी ऐ मेरे परवरदिगार (मैं क्या करूं) मैं तो ये लड़की जनी हूँ और लड़का लड़की के ऐसा (गया गुज़रा) नहीं होता हालॉकि उसे कहने की ज़रूरत क्या थी जो वे जनी थी ख़ुदा उस (की शान व मरतबा) से खूब वाक़िफ़ था और मैंने उसका नाम मरियम रखा है और मैं उसको और उसकी औलाद को शैतान मरदूद (के फ़रेब) से तेरी पनाह में देती हूं
Surah Aal-e-Imran, Verse 36


فَتَقَبَّلَهَا رَبُّهَا بِقَبُولٍ حَسَنٖ وَأَنۢبَتَهَا نَبَاتًا حَسَنٗا وَكَفَّلَهَا زَكَرِيَّاۖ كُلَّمَا دَخَلَ عَلَيۡهَا زَكَرِيَّا ٱلۡمِحۡرَابَ وَجَدَ عِندَهَا رِزۡقٗاۖ قَالَ يَٰمَرۡيَمُ أَنَّىٰ لَكِ هَٰذَاۖ قَالَتۡ هُوَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ إِنَّ ٱللَّهَ يَرۡزُقُ مَن يَشَآءُ بِغَيۡرِ حِسَابٍ

तो उसके परवरदिगार ने (उनकी नज़्र) मरियम को ख़ुशी से कुबूल फ़रमाया और उसकी नशो व नुमा (परवरिश) अच्छी तरह की और ज़करिया को उनका कफ़ील बनाया जब किसी वक्त ज़क़रिया उनके पास (उनके) इबादत के हुजरे में जाते तो मरियम के पास कुछ न कुछ खाने को मौजूद पाते तो पूंछते कि ऐ मरियम ये (खाना) तुम्हारे पास कहॉ से आया है तो मरियम ये कह देती थी कि यह खुदा के यहॉ से (आया) है बेशक ख़ुदा जिसको चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 37


هُنَالِكَ دَعَا زَكَرِيَّا رَبَّهُۥۖ قَالَ رَبِّ هَبۡ لِي مِن لَّدُنكَ ذُرِّيَّةٗ طَيِّبَةًۖ إِنَّكَ سَمِيعُ ٱلدُّعَآءِ

(ये माजरा देखते ही) उसी वक्त ज़करिया ने अपने परवरदिगार से दुआ कि और अर्ज क़ी ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (भी) अपनी बारगाह से पाकीज़ा औलाद अता फ़रमा बेशक तू ही दुआ का सुनने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 38


فَنَادَتۡهُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ وَهُوَ قَآئِمٞ يُصَلِّي فِي ٱلۡمِحۡرَابِ أَنَّ ٱللَّهَ يُبَشِّرُكَ بِيَحۡيَىٰ مُصَدِّقَۢا بِكَلِمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَسَيِّدٗا وَحَصُورٗا وَنَبِيّٗا مِّنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

अभी ज़करिया हुजरे में खड़े (ये) दुआ कर ही रहे थे कि फ़रिश्तों ने उनको आवाज़ दी कि ख़ुदा तुमको यहया (के पैदा होने) की खुशख़बरी देता है जो जो कलेमतुल्लाह (ईसा) की तस्दीक़ करेगा और (लोगों का) सरदार होगा और औरतों की तरफ़ रग़बत न करेगा और नेको कार नबी होगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 39


قَالَ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي غُلَٰمٞ وَقَدۡ بَلَغَنِيَ ٱلۡكِبَرُ وَٱمۡرَأَتِي عَاقِرٞۖ قَالَ كَذَٰلِكَ ٱللَّهُ يَفۡعَلُ مَا يَشَآءُ

ज़करिया ने अर्ज़ की परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर हो सकता है हालॉकि मेरा बुढ़ापा आ पहुंचा और (उसपर) मेरी बीवी बॉझ है (ख़ुदा ने) फ़रमाया इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 40


قَالَ رَبِّ ٱجۡعَل لِّيٓ ءَايَةٗۖ قَالَ ءَايَتُكَ أَلَّا تُكَلِّمَ ٱلنَّاسَ ثَلَٰثَةَ أَيَّامٍ إِلَّا رَمۡزٗاۗ وَٱذۡكُر رَّبَّكَ كَثِيرٗا وَسَبِّحۡ بِٱلۡعَشِيِّ وَٱلۡإِبۡكَٰرِ

ज़करिया ने अर्ज़ की परवरदिगार मेरे इत्मेनान के लिए कोई निशानी मुक़र्रर फ़रमा इरशाद हुआ तुम्हारी निशानी ये है तुम तीन दिन तक लोगों से बात न कर सकोगे मगर इशारे से और (उसके शुक्रिये में) अपने परवरदिगार की अक्सर याद करो और रात को और सुबह तड़के (हमारी) तसबीह किया करो
Surah Aal-e-Imran, Verse 41


وَإِذۡ قَالَتِ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَٰمَرۡيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ ٱصۡطَفَىٰكِ وَطَهَّرَكِ وَٱصۡطَفَىٰكِ عَلَىٰ نِسَآءِ ٱلۡعَٰلَمِينَ

और वह वाक़िया भी याद करो जब फ़रिश्तों ने मरियम से कहा, ऐ मरियम तुमको ख़ुदा ने बरगुज़ीदा किया और (तमाम) गुनाहों और बुराइयों से पाक साफ़ रखा और सारे दुनिया जहॉन की औरतों में से तुमको मुन्तख़िब किया है
Surah Aal-e-Imran, Verse 42


يَٰمَرۡيَمُ ٱقۡنُتِي لِرَبِّكِ وَٱسۡجُدِي وَٱرۡكَعِي مَعَ ٱلرَّـٰكِعِينَ

(तो) ऐ मरियम इसके शुक्र से मैं अपने परवरदिगार की फ़रमाबदारी करूं सजदा और रूकूउ करने वालों के साथ रूकूउ करती रहूं
Surah Aal-e-Imran, Verse 43


ذَٰلِكَ مِنۡ أَنۢبَآءِ ٱلۡغَيۡبِ نُوحِيهِ إِلَيۡكَۚ وَمَا كُنتَ لَدَيۡهِمۡ إِذۡ يُلۡقُونَ أَقۡلَٰمَهُمۡ أَيُّهُمۡ يَكۡفُلُ مَرۡيَمَ وَمَا كُنتَ لَدَيۡهِمۡ إِذۡ يَخۡتَصِمُونَ

(ऐ रसूल) ये ख़बर गैब की ख़बरों में से है जो हम तुम्हारे पास 'वही' के ज़रिए से भेजते हैं (ऐ रसूल) तुम तो उन सरपरस्ताने मरियम के पास मौजूद न थे जब वह लोग अपना अपना क़लम दरिया में बतौर क़ुरआ के डाल रहे थे (देखें) कौन मरियम का कफ़ील बनता है और न तुम उस वक्त उनके पास मौजूद थे जब वह लोग आपस में झगड़ रहे थे
Surah Aal-e-Imran, Verse 44


إِذۡ قَالَتِ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَٰمَرۡيَمُ إِنَّ ٱللَّهَ يُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٖ مِّنۡهُ ٱسۡمُهُ ٱلۡمَسِيحُ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَ وَجِيهٗا فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَمِنَ ٱلۡمُقَرَّبِينَ

(वह वाक़िया भी याद करो) जब फ़रिश्तों ने (मरियम) से कहा ऐ मरियम ख़ुदा तुमको सिर्फ़ अपने हुक्म से एक लड़के के पैदा होने की खुशख़बरी देता है जिसका नाम ईसा मसीह इब्ने मरियम होगा (और) दुनिया और आखेरत (दोनों) में बाइज्ज़त (आबरू) और ख़ुदा के मुक़र्रब बन्दों में होगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 45


وَيُكَلِّمُ ٱلنَّاسَ فِي ٱلۡمَهۡدِ وَكَهۡلٗا وَمِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

और (बचपन में) जब झूले में पड़ा होगा और बड़ी उम्र का होकर (दोनों हालतों में यकसॉ) लोगों से बाते करेगा और नेको कारों में से होगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 46


قَالَتۡ رَبِّ أَنَّىٰ يَكُونُ لِي وَلَدٞ وَلَمۡ يَمۡسَسۡنِي بَشَرٞۖ قَالَ كَذَٰلِكِ ٱللَّهُ يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ إِذَا قَضَىٰٓ أَمۡرٗا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ

(ये सुनकर मरियम ताज्जुब से) कहने लगी परवरदिगार मुझे लड़का क्योंकर होगा हालॉकि मुझे किसी मर्द ने छुआ तक नहीं इरशाद हुआ इसी तरह ख़ुदा जो चाहता है करता है जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस कह देता है 'हो जा' तो वह हो जाता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 47


وَيُعَلِّمُهُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَٱلتَّوۡرَىٰةَ وَٱلۡإِنجِيلَ

और (ऐ मरयिम) ख़ुदा उसको (तमाम) किताबे आसमानी और अक्ल की बातें और (ख़ासकर) तौरेत व इन्जील सिखा देगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 48


وَرَسُولًا إِلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ أَنِّي قَدۡ جِئۡتُكُم بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ أَنِّيٓ أَخۡلُقُ لَكُم مِّنَ ٱلطِّينِ كَهَيۡـَٔةِ ٱلطَّيۡرِ فَأَنفُخُ فِيهِ فَيَكُونُ طَيۡرَۢا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۖ وَأُبۡرِئُ ٱلۡأَكۡمَهَ وَٱلۡأَبۡرَصَ وَأُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۖ وَأُنَبِّئُكُم بِمَا تَأۡكُلُونَ وَمَا تَدَّخِرُونَ فِي بُيُوتِكُمۡۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَةٗ لَّكُمۡ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ

और बनी इसराइल का रसूल (क़रार देगा और वह उनसे यूं कहेगा कि) मैं तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) यह निशानी लेकर आया हूं कि मैं गुंधीं हुई मिट्टी से एक परिन्दे की सूरत बनाऊॅगा फ़िर उस पर (कुछ) दम करूंगा तो वो ख़ुदा के हुक्म से उड़ने लगेगा और मैं ख़ुदा ही के हुक्म से मादरज़ाद (पैदायशी) अंधे और कोढ़ी को अच्छा करूंगा और मुर्दो को ज़िन्दा करूंगा और जो कुछ तुम खाते हो और अपने घरों में जमा करते हो मैं (सब) तुमको बता दूंगा अगर तुम ईमानदार हो तो बेशक तुम्हारे लिये इन बातों में (मेरी नबूवत की) बड़ी निशानी है
Surah Aal-e-Imran, Verse 49


وَمُصَدِّقٗا لِّمَا بَيۡنَ يَدَيَّ مِنَ ٱلتَّوۡرَىٰةِ وَلِأُحِلَّ لَكُم بَعۡضَ ٱلَّذِي حُرِّمَ عَلَيۡكُمۡۚ وَجِئۡتُكُم بِـَٔايَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ

और तौरेत जो मेरे सामने मौजूद है मैं उसकी तसदीक़ करता हूं और (मेरे आने की) एक ग़रज़ यह (भी) है कि जो चीजे तुम पर हराम है उनमें से बाज़ को (हुक्मे ख़ुदा से) हलाल कर दूं और मैं तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (अपनी नबूवत की) निशानी लेकर तुम्हारे पास आया हूं
Surah Aal-e-Imran, Verse 50


إِنَّ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُوهُۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ

पस तुम ख़ुदा से डरो और मेरी इताअत करो बेशक ख़ुदा ही मेरा और तुम्हारा परवरदिगार है
Surah Aal-e-Imran, Verse 51


۞فَلَمَّآ أَحَسَّ عِيسَىٰ مِنۡهُمُ ٱلۡكُفۡرَ قَالَ مَنۡ أَنصَارِيٓ إِلَى ٱللَّهِۖ قَالَ ٱلۡحَوَارِيُّونَ نَحۡنُ أَنصَارُ ٱللَّهِ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَٱشۡهَدۡ بِأَنَّا مُسۡلِمُونَ

पस उसकी इबादत करो (क्योंकि) यही नजात का सीधा रास्ता है फिर जब ईसा ने (इतनी बातों के बाद भी) उनका कुफ़्र (पर अड़े रहना) देखा तो (आख़िर) कहने लगे कौन ऐसा है जो ख़ुदा की तरफ़ होकर मेरा मददगार बने (ये सुनकर) हवारियों ने कहा हम ख़ुदा के तरफ़दार हैं और हम ख़ुदा पर ईमान लाए
Surah Aal-e-Imran, Verse 52


رَبَّنَآ ءَامَنَّا بِمَآ أَنزَلۡتَ وَٱتَّبَعۡنَا ٱلرَّسُولَ فَٱكۡتُبۡنَا مَعَ ٱلشَّـٰهِدِينَ

और (ईसा से कहा) आप गवाह रहिए कि हम फ़रमाबरदार हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 53


وَمَكَرُواْ وَمَكَرَ ٱللَّهُۖ وَٱللَّهُ خَيۡرُ ٱلۡمَٰكِرِينَ

और ख़ुदा की बारगाह में अर्ज़ की कि ऐ हमारे पालने वाले जो कुछ तूने नाज़िल किया हम उसपर ईमान लाए और हमने तेरे रसूल (ईसा) की पैरवी इख्तेयार की पस तू हमें (अपने रसूल के) गवाहों के दफ्तर में लिख ले
Surah Aal-e-Imran, Verse 54


إِذۡ قَالَ ٱللَّهُ يَٰعِيسَىٰٓ إِنِّي مُتَوَفِّيكَ وَرَافِعُكَ إِلَيَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَجَاعِلُ ٱلَّذِينَ ٱتَّبَعُوكَ فَوۡقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِۖ ثُمَّ إِلَيَّ مَرۡجِعُكُمۡ فَأَحۡكُمُ بَيۡنَكُمۡ فِيمَا كُنتُمۡ فِيهِ تَخۡتَلِفُونَ

और यहूदियों (ने ईसा से) मक्कारी की और ख़ुदा ने उसके दफ़ईया की तदबीर की और ख़ुदा सब से बेहतर तदबीर करने वाला है (वह वक्त भी याद करो) जब ईसा से ख़ुदा ने फ़रमाया ऐ ईसा मैं ज़रूर तुम्हारी ज़िन्दगी की मुद्दत पूरी करके तुमको अपनी तरफ़ उठा लूंगा और काफ़िरों (की ज़िन्दगी) से तुमको पाक व पाकीज़ा रखूंगा और जिन लोगों ने तुम्हारी पैरवी की उनको क़यामत तक काफ़िरों पर ग़ालिब रखूंगा फिर तुम सबको मेरी तरफ़ लौटकर आना है
Surah Aal-e-Imran, Verse 55


فَأَمَّا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَأُعَذِّبُهُمۡ عَذَابٗا شَدِيدٗا فِي ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ

तब (उस दिन) जिन बातों में तुम (दुनिया) में झगड़े करते थे (उनका) तुम्हारे दरमियान फ़ैसला कर दूंगा पस जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनपर दुनिया और आख़िरत (दोनों में) सख्त अज़ाब करूंगा और उनका कोई मददगार न होगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 56


وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ فَيُوَفِّيهِمۡ أُجُورَهُمۡۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِينَ

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए तो ख़ुदा उनको उनका पूरा अज्र व सवाब देगा और ख़ुदा ज़ालिमों को दोस्त नहीं रखता
Surah Aal-e-Imran, Verse 57


ذَٰلِكَ نَتۡلُوهُ عَلَيۡكَ مِنَ ٱلۡأٓيَٰتِ وَٱلذِّكۡرِ ٱلۡحَكِيمِ

(ऐ रसूल) ये जो हम तुम्हारे सामने बयान कर रहे हैं कुदरते ख़ुदा की निशानियॉ और हिकमत से भरे हुये तज़किरे हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 58


إِنَّ مَثَلَ عِيسَىٰ عِندَ ٱللَّهِ كَمَثَلِ ءَادَمَۖ خَلَقَهُۥ مِن تُرَابٖ ثُمَّ قَالَ لَهُۥ كُن فَيَكُونُ

ख़ुदा के नज़दीक तो जैसे ईसा की हालत वैसी ही आदम की हालत कि उनको को मिट्टी का पुतला बनाकर कहा कि 'हो जा' पस (फ़ौरन ही) वह (इन्सान) हो गया
Surah Aal-e-Imran, Verse 59


ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّكَ فَلَا تَكُن مِّنَ ٱلۡمُمۡتَرِينَ

(ऐ रसूल ये है) हक़ बात (जो) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (बताई जाती है) तो तुम शक करने वालों में से न हो जाना
Surah Aal-e-Imran, Verse 60


فَمَنۡ حَآجَّكَ فِيهِ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَكَ مِنَ ٱلۡعِلۡمِ فَقُلۡ تَعَالَوۡاْ نَدۡعُ أَبۡنَآءَنَا وَأَبۡنَآءَكُمۡ وَنِسَآءَنَا وَنِسَآءَكُمۡ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمۡ ثُمَّ نَبۡتَهِلۡ فَنَجۡعَل لَّعۡنَتَ ٱللَّهِ عَلَى ٱلۡكَٰذِبِينَ

फिर जब तुम्हारे पास इल्म (कुरान) आ चुका उसके बाद भी अगर तुम से कोई (नसरानी) ईसा के बारे में हुज्जत करें तो कहो कि (अच्छा मैदान में) आओ हम अपने बेटों को बुलाएं तुम अपने बेटों को और हम अपनी औरतों को (बुलाएं) और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाएं ओर तुम अपनी जानों को
Surah Aal-e-Imran, Verse 61


إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ ٱلۡقَصَصُ ٱلۡحَقُّۚ وَمَا مِنۡ إِلَٰهٍ إِلَّا ٱللَّهُۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ

उसके बाद हम सब मिलकर (खुदा की बारगाह में) गिड़गिड़ाएं और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें (ऐ रसूल) ये सब यक़ीनी सच्चे वाक़यात हैं और ख़ुदा के सिवा कोई माबूद (क़ाबिले परसतिश) नहीं है
Surah Aal-e-Imran, Verse 62


فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِٱلۡمُفۡسِدِينَ

और बेशक ख़ुदा ही सब पर ग़ालिब और हिकमत वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 63


قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ تَعَالَوۡاْ إِلَىٰ كَلِمَةٖ سَوَآءِۭ بَيۡنَنَا وَبَيۡنَكُمۡ أَلَّا نَعۡبُدَ إِلَّا ٱللَّهَ وَلَا نُشۡرِكَ بِهِۦ شَيۡـٔٗا وَلَا يَتَّخِذَ بَعۡضُنَا بَعۡضًا أَرۡبَابٗا مِّن دُونِ ٱللَّهِۚ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَقُولُواْ ٱشۡهَدُواْ بِأَنَّا مُسۡلِمُونَ

फिर अगर इससे भी मुंह फेरें तो (कुछ) परवाह (नहीं) ख़ुदा फ़सादी लोगों को खूब जानता है (ऐ रसूल) तुम (उनसे) कहो कि ऐ अहले किताब तुम ऐसी (ठिकाने की) बात पर तो आओ जो हमारे और तुम्हारे दरमियान यकसॉ है कि खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और किसी चीज़ को उसका शरीक न बनाएं और ख़ुदा के सिवा हममें से कोई किसी को अपना परवरदिगार न बनाए अगर इससे भी मुंह मोडें तो तुम गवाह रहना हम (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 64


يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تُحَآجُّونَ فِيٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَمَآ أُنزِلَتِ ٱلتَّوۡرَىٰةُ وَٱلۡإِنجِيلُ إِلَّا مِنۢ بَعۡدِهِۦٓۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ

ऐ अहले किताब तुम इबराहीम के बारे में (ख्वाह मा ख्वाह) क्यों झगड़ते हो कि कोई उनको नसरानी कहता है कोई यहूदी हालॉकि तौरेत व इन्जील (जिनसे यहूद व नसारा की इब्तेदा है वह) तो उनके बाद ही नाज़िल हुई
Surah Aal-e-Imran, Verse 65


هَـٰٓأَنتُمۡ هَـٰٓؤُلَآءِ حَٰجَجۡتُمۡ فِيمَا لَكُم بِهِۦ عِلۡمٞ فَلِمَ تُحَآجُّونَ فِيمَا لَيۡسَ لَكُم بِهِۦ عِلۡمٞۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ وَأَنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ

तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते? (ऐ लो अरे) तुम वही एहमक़ लोग हो कि जिस का तुम्हें कुछ इल्म था उसमें तो झगड़ा कर चुके (खैर) फिर तब उसमें क्या (ख्वाह मा ख्वाह) झगड़ने बैठे हो जिसकी (सिरे से) तुम्हें कुछ ख़बर नहीं और (हकॣक़ते हाल तो) खुदा जानता है और तुम नहीं जानते
Surah Aal-e-Imran, Verse 66


مَا كَانَ إِبۡرَٰهِيمُ يَهُودِيّٗا وَلَا نَصۡرَانِيّٗا وَلَٰكِن كَانَ حَنِيفٗا مُّسۡلِمٗا وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ

इबराहीम न तो यहूदी थे और न नसरानी बल्कि निरे खरे हक़ पर थे (और) फ़रमाबरदार (बन्दे) थे और मुशरिकों से भी न थे
Surah Aal-e-Imran, Verse 67


إِنَّ أَوۡلَى ٱلنَّاسِ بِإِبۡرَٰهِيمَ لَلَّذِينَ ٱتَّبَعُوهُ وَهَٰذَا ٱلنَّبِيُّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۗ وَٱللَّهُ وَلِيُّ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ

इबराहीम से ज्यादा ख़ुसूसियत तो उन लोगों को थी जो ख़ास उनकी पैरवी करते थे और उस पैग़म्बर और ईमानदारों को (भी) है और मोमिनीन का ख़ुदा मालिक है
Surah Aal-e-Imran, Verse 68


وَدَّت طَّآئِفَةٞ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ لَوۡ يُضِلُّونَكُمۡ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡ وَمَا يَشۡعُرُونَ

(मुसलमानो) अहले किताब से एक गिरोह ने बहुत चाहा कि किसी तरह तुमको राहेरास्त से भटका दे हालॉकि वह (अपनी तदबीरों से तुमको तो नहीं मगर) अपने ही को भटकाते हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 69


يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَأَنتُمۡ تَشۡهَدُونَ

और उसको समझते (भी) नहीं ऐ अहले किताब तुम ख़ुदा की आयतों से क्यों इन्कार करते हो, हालॉकि तुम ख़ुद गवाह बन सकते हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 70


يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَلۡبِسُونَ ٱلۡحَقَّ بِٱلۡبَٰطِلِ وَتَكۡتُمُونَ ٱلۡحَقَّ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ

ऐ अहले किताब तुम क्यो हक़ व बातिल को गड़बड़ करते और हक़ को छुपाते हो हालॉकि तुम जानते हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 71


وَقَالَت طَّآئِفَةٞ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ ءَامِنُواْ بِٱلَّذِيٓ أُنزِلَ عَلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَجۡهَ ٱلنَّهَارِ وَٱكۡفُرُوٓاْ ءَاخِرَهُۥ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ

और अहले किताब से एक गिरोह ने (अपने लोगों से) कहा कि मुसलमानों पर जो किताब नाज़िल हुईहै उसपर सुबह सवेरे ईमान लाओ और आख़िर वक्त ऌन्कार कर दिया करो शायद मुसलमान (इसी तदबीर से अपने दीन से) फिर जाए
Surah Aal-e-Imran, Verse 72


وَلَا تُؤۡمِنُوٓاْ إِلَّا لِمَن تَبِعَ دِينَكُمۡ قُلۡ إِنَّ ٱلۡهُدَىٰ هُدَى ٱللَّهِ أَن يُؤۡتَىٰٓ أَحَدٞ مِّثۡلَ مَآ أُوتِيتُمۡ أَوۡ يُحَآجُّوكُمۡ عِندَ رَبِّكُمۡۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡفَضۡلَ بِيَدِ ٱللَّهِ يُؤۡتِيهِ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ وَٰسِعٌ عَلِيمٞ

और तुम्हारे दीन की पैरवरी करे उसके सिवा किसी दूसरे की बात का ऐतबार न करो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बस ख़ुदा ही की हिदायत तो हिदायत है (यहूदी बाहम ये भी कहते हैं कि) उसको भी न (मानना) कि जैसा (उम्दा दीन) तुमको दिया गया है, वैसा किसी और को दिया जाय या तुमसे कोई शख्स ख़ुदा के यहॉ झगड़ा करे (ऐ रसूल तुम उनसे) कह दो कि (ये क्या ग़लत ख्याल है) फ़ज़ल (व करम) ख़ुदा के हाथ में है वह जिसको चाहे दे और ख़ुदा बड़ी गुन्जाईश वाला है (और हर शै को)े जानता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 73


يَخۡتَصُّ بِرَحۡمَتِهِۦ مَن يَشَآءُۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ

जिसको चाहे अपनी रहमत के लिये ख़ास कर लेता है और ख़ुदा बड़ा फ़ज़लों करम वाला हे
Surah Aal-e-Imran, Verse 74


۞وَمِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ مَنۡ إِن تَأۡمَنۡهُ بِقِنطَارٖ يُؤَدِّهِۦٓ إِلَيۡكَ وَمِنۡهُم مَّنۡ إِن تَأۡمَنۡهُ بِدِينَارٖ لَّا يُؤَدِّهِۦٓ إِلَيۡكَ إِلَّا مَا دُمۡتَ عَلَيۡهِ قَآئِمٗاۗ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُواْ لَيۡسَ عَلَيۡنَا فِي ٱلۡأُمِّيِّـۧنَ سَبِيلٞ وَيَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ

और अहले किताब कुछ ऐसे भी हैं कि अगर उनके पास रूपए की ढेर अमानत रख दो तो भी उसे (जब चाहो) वैसे ही तुम्हारे हवाले कर देंगे और बाज़ ऐसे हें कि अगर एक अशर्फ़ी भी अमानत रखो तो जब तक तुम बराबर (उनके सर) पर खड़े न रहोगे तुम्हें वापस न देंगे ये (बदमुआम लगी) इस वजह से है कि उन का तो ये क़ौल है कि (अरब के) जाहिलो (का हक़ मार लेने) में हम पर कोई इल्ज़ाम की राह ही नहीं और जान बूझ कर खुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 75


بَلَىٰۚ مَنۡ أَوۡفَىٰ بِعَهۡدِهِۦ وَٱتَّقَىٰ فَإِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُتَّقِينَ

हाँ (अलबत्ता) जो शख्स अपने एहद को पूरा करे और परहेज़गारी इख्तेयार करे तो बेशक ख़ुदा परहेज़गारों को दोस्त रखता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 76


إِنَّ ٱلَّذِينَ يَشۡتَرُونَ بِعَهۡدِ ٱللَّهِ وَأَيۡمَٰنِهِمۡ ثَمَنٗا قَلِيلًا أُوْلَـٰٓئِكَ لَا خَلَٰقَ لَهُمۡ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ وَلَا يَنظُرُ إِلَيۡهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ

बेशक जो लोग अपने एहद और (क़समे) जो ख़ुदा (से किया था उसके) बदले थोड़ा (दुनयावी) मुआवेज़ा ले लेते हैं उन ही लोगों के वास्ते आख़िरत में कुछ हिस्सा नहीं और क़यामत के दिन ख़ुदा उनसे बात तक तो करेगा नहीं ओर उनकी तरफ़ नज़र (रहमत) ही करेगा और न उनको (गुनाहों की गन्दगी से) पाक करेगा और उनके लिये दर्दनाम अज़ाब है
Surah Aal-e-Imran, Verse 77


وَإِنَّ مِنۡهُمۡ لَفَرِيقٗا يَلۡوُۥنَ أَلۡسِنَتَهُم بِٱلۡكِتَٰبِ لِتَحۡسَبُوهُ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَمَا هُوَ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَيَقُولُونَ هُوَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ وَمَا هُوَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ وَيَقُولُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ

और अहले किताब से बाज़ ऐसे ज़रूर हैं कि किताब (तौरेत) में अपनी ज़बाने मरोड़ मरोड़ के (कुछ का कुछ) पढ़ जाते हैं ताकि तुम ये समझो कि ये किताब का जुज़ है हालॉकि वह किताब का जुज़ नहीं और कहते हैं कि ये (जो हम पढ़ते हैं) ख़ुदा के यहॉ से (उतरा) है हालॉकि वह ख़ुदा के यहॉ से नहीं (उतरा) और जानबूझ कर ख़ुदा पर झूठ (तूफ़ान) जोड़ते हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 78


مَا كَانَ لِبَشَرٍ أَن يُؤۡتِيَهُ ٱللَّهُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحُكۡمَ وَٱلنُّبُوَّةَ ثُمَّ يَقُولَ لِلنَّاسِ كُونُواْ عِبَادٗا لِّي مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلَٰكِن كُونُواْ رَبَّـٰنِيِّـۧنَ بِمَا كُنتُمۡ تُعَلِّمُونَ ٱلۡكِتَٰبَ وَبِمَا كُنتُمۡ تَدۡرُسُونَ

किसी आदमी को ये ज़ेबा न था कि ख़ुदा तो उसे (अपनी) किताब और हिकमत और नबूवत अता फ़रमाए और वह लोगों से कहता फिरे कि ख़ुदा को छोड़कर मेरे बन्दे बन जाओ बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम अल्लाह वाले बन जाओ क्योंकि तुम तो (हमेशा) किताबे ख़ुदा (दूसरो) को पढ़ाते रहते हो और तुम ख़ुद भी सदा पढ़ते रहे हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 79


وَلَا يَأۡمُرَكُمۡ أَن تَتَّخِذُواْ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ أَرۡبَابًاۚ أَيَأۡمُرُكُم بِٱلۡكُفۡرِ بَعۡدَ إِذۡ أَنتُم مُّسۡلِمُونَ

और वह तुमसे ये तो (कभी) न कहेगा कि फ़रिश्तों और पैग़म्बरों को ख़ुदा बना लो भला (कहीं ऐसा हो सकता है कि) तुम्हारे मुसलमान हो जाने के बाद तुम्हें कुफ़्र का हुक्म करेगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 80


وَإِذۡ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَٰقَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ لَمَآ ءَاتَيۡتُكُم مِّن كِتَٰبٖ وَحِكۡمَةٖ ثُمَّ جَآءَكُمۡ رَسُولٞ مُّصَدِّقٞ لِّمَا مَعَكُمۡ لَتُؤۡمِنُنَّ بِهِۦ وَلَتَنصُرُنَّهُۥۚ قَالَ ءَأَقۡرَرۡتُمۡ وَأَخَذۡتُمۡ عَلَىٰ ذَٰلِكُمۡ إِصۡرِيۖ قَالُوٓاْ أَقۡرَرۡنَاۚ قَالَ فَٱشۡهَدُواْ وَأَنَا۠ مَعَكُم مِّنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ

(और ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब ख़ुदा ने पैग़म्बरों से इक़रार लिया कि हम तुमको जो कुछ किताब और हिकमत (वगैरह) दे उसके बाद तुम्हारे पास कोई रसूल आए और जो किताब तुम्हारे पास उसकी तसदीक़ करे तो (देखो) तुम ज़रूर उस पर ईमान लाना, और ज़रूर उसकी मदद करना (और) ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुमने इक़रार लिया तुमने मेरे (एहद का) बोझ उठा लिया सबने अर्ज़ की हमने इक़रार किया इरशाद हुआ (अच्छा) तो आज के क़ौल व (क़रार के) आपस में एक दूसरे के गवाह रहना
Surah Aal-e-Imran, Verse 81


فَمَن تَوَلَّىٰ بَعۡدَ ذَٰلِكَ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡفَٰسِقُونَ

और तुम्हारे साथ मैं भी एक गवाह हूं फिर उसके बाद जो शख्स (अपने क़ौल से) मुंह फेरे तो वही लोग बदचलन हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 82


أَفَغَيۡرَ دِينِ ٱللَّهِ يَبۡغُونَ وَلَهُۥٓ أَسۡلَمَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ طَوۡعٗا وَكَرۡهٗا وَإِلَيۡهِ يُرۡجَعُونَ

तो क्या ये लोग ख़ुदा के दीन के सिवा (कोई और दीन) ढूंढते हैं हालॉकि जो (फ़रिश्ते) आसमानों में हैं और जो (लोग) ज़मीन में हैं सबने ख़ुशी ख़ुशी या ज़बरदस्ती उसके सामने अपनी गर्दन डाल दी है और (आख़िर सब) उसकी तरफ़ लौट कर जाएंगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 83


قُلۡ ءَامَنَّا بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ عَلَيۡنَا وَمَآ أُنزِلَ عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَمَآ أُوتِيَ مُوسَىٰ وَعِيسَىٰ وَٱلنَّبِيُّونَ مِن رَّبِّهِمۡ لَا نُفَرِّقُ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّنۡهُمۡ وَنَحۡنُ لَهُۥ مُسۡلِمُونَ

(ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि हम तो ख़ुदा पर ईमान लाए और जो किताब हम पर नाज़िल हुई और जो (सहीफ़े) इबराहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याकूब और औलादे याकूब पर नाज़िल हुये और मूसा और ईसा और दूसरे पैग़म्बरों को जो (जो किताब) उनके परवरदिगार की तरफ़ से इनायत हुई(सब पर ईमान लाए) हम तो उनमें से किसी एक में भी फ़र्क़ नहीं करते
Surah Aal-e-Imran, Verse 84


وَمَن يَبۡتَغِ غَيۡرَ ٱلۡإِسۡلَٰمِ دِينٗا فَلَن يُقۡبَلَ مِنۡهُ وَهُوَ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ

और हम तो उसी (यकता ख़ुदा) के फ़रमाबरदार हैं और जो शख्स इस्लाम के सिवा किसी और दीन की ख्वाहिश करे तो उसका वह दीन हरगिज़ कुबूल ही न किया जाएगा और वह आख़िरत में सख्त घाटे में रहेगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 85


كَيۡفَ يَهۡدِي ٱللَّهُ قَوۡمٗا كَفَرُواْ بَعۡدَ إِيمَٰنِهِمۡ وَشَهِدُوٓاْ أَنَّ ٱلرَّسُولَ حَقّٞ وَجَآءَهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُۚ وَٱللَّهُ لَا يَهۡدِي ٱلۡقَوۡمَ ٱلظَّـٰلِمِينَ

भला ख़ुदा ऐसे लोगों की क्योंकर हिदायत करेगा जो इमाने लाने के बाद फिर काफ़िर हो गए हालॉकि वह इक़रार कर चुके थे कि पैग़म्बर (आख़िरूज़ज़मा) बरहक़ हैं और उनके पास वाजेए व रौशन मौजिज़े भी आ चुके थे और ख़ुदा ऐसी हठधर्मी करने वाले लोगों की हिदायत नहीं करता
Surah Aal-e-Imran, Verse 86


أُوْلَـٰٓئِكَ جَزَآؤُهُمۡ أَنَّ عَلَيۡهِمۡ لَعۡنَةَ ٱللَّهِ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ وَٱلنَّاسِ أَجۡمَعِينَ

ऐसे लोगों की सज़ा यह है कि उनपर ख़ुदा और फ़रिश्तों और (दुनिया जहॉन के) सब लोगों की फिटकार हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 87


خَٰلِدِينَ فِيهَا لَا يُخَفَّفُ عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابُ وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ

और वह हमेशा उसी फिटकार में रहेंगे न तो उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको मोहलत दी जाएगी
Surah Aal-e-Imran, Verse 88


إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ مِنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ وَأَصۡلَحُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ

मगर (हॉ) जिन लोगों ने इसके बाद तौबा कर ली और अपनी (ख़राबी की) इस्लाह कर ली तो अलबत्ता ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
Surah Aal-e-Imran, Verse 89


إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بَعۡدَ إِيمَٰنِهِمۡ ثُمَّ ٱزۡدَادُواْ كُفۡرٗا لَّن تُقۡبَلَ تَوۡبَتُهُمۡ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلضَّآلُّونَ

जो अपने ईमान के बाद काफ़िर हो बैठे फ़िर (रोज़ बरोज़ अपना) कुफ़्र बढ़ाते चले गये तो उनकी तौबा हरगिज़ न कुबूल की जाएगी और यही लोग (पल्ले दरजे के) गुमराह हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 90


إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَمَاتُواْ وَهُمۡ كُفَّارٞ فَلَن يُقۡبَلَ مِنۡ أَحَدِهِم مِّلۡءُ ٱلۡأَرۡضِ ذَهَبٗا وَلَوِ ٱفۡتَدَىٰ بِهِۦٓۗ أُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ وَمَا لَهُم مِّن نَّـٰصِرِينَ

बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तियार किया और कुफ़्र की हालत में मर गये तो अगरचे इतना सोना भी किसी की गुलू ख़लासी (छुटकारा पाने) में दिया जाए कि ज़मीन भर जाए तो भी हरगिज़ न कुबूल किया जाएगा यही लोग हैं जिनके लिए दर्दनाक अज़ाब होगा और उनका कोई मददगार भी न होगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 91


لَن تَنَالُواْ ٱلۡبِرَّ حَتَّىٰ تُنفِقُواْ مِمَّا تُحِبُّونَۚ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيۡءٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِهِۦ عَلِيمٞ

(लोगों) जब तक तुम अपनी पसन्दीदा चीज़ों में से कुछ राहे ख़ुदा में ख़र्च न करोगे हरगिज़ नेकी के दरजे पर फ़ायज़ नहीं हो सकते और तुम कोई
Surah Aal-e-Imran, Verse 92


۞كُلُّ ٱلطَّعَامِ كَانَ حِلّٗا لِّبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ إِلَّا مَا حَرَّمَ إِسۡرَـٰٓءِيلُ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦ مِن قَبۡلِ أَن تُنَزَّلَ ٱلتَّوۡرَىٰةُۚ قُلۡ فَأۡتُواْ بِٱلتَّوۡرَىٰةِ فَٱتۡلُوهَآ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ

सी चीज़ भी ख़र्च करो ख़ुदा तो उसको ज़रूर जानता है तौरैत के नाज़िल होने के क़ब्ल याकूब ने जो जो चीज़े अपने ऊपर हराम कर ली थीं उनके सिवा बनी इसराइल के लिए सब खाने हलाल थे (ऐ रसूल उन यहूद से) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में सच्चे हो तो तौरेत ले आओ)
Surah Aal-e-Imran, Verse 93


فَمَنِ ٱفۡتَرَىٰ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَ مِنۢ بَعۡدِ ذَٰلِكَ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ

और उसको (हमारे सामने) पढ़ो फिर उसके बाद भी जो कोई ख़ुदा पर झूठ तूफ़ान जोड़े तो (समझ लो) कि यही लोग ज़ालिम (हठधर्म) हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 94


قُلۡ صَدَقَ ٱللَّهُۗ فَٱتَّبِعُواْ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِيمَ حَنِيفٗاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ

(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इबराहीम (इस्लाम) की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे
Surah Aal-e-Imran, Verse 95


إِنَّ أَوَّلَ بَيۡتٖ وُضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِي بِبَكَّةَ مُبَارَكٗا وَهُدٗى لِّلۡعَٰلَمِينَ

लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो मक्के में है बड़ी (खैर व बरकत) वाला और सारे जहॉन के लोगों का रहनुमा
Surah Aal-e-Imran, Verse 96


فِيهِ ءَايَٰتُۢ بَيِّنَٰتٞ مَّقَامُ إِبۡرَٰهِيمَۖ وَمَن دَخَلَهُۥ كَانَ ءَامِنٗاۗ وَلِلَّهِ عَلَى ٱلنَّاسِ حِجُّ ٱلۡبَيۡتِ مَنِ ٱسۡتَطَاعَ إِلَيۡهِ سَبِيلٗاۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ عَنِ ٱلۡعَٰلَمِينَ

इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़े और रौशन निशानियॉ हैं (उनमें से) मुक़ाम इबराहीम है (जहॉ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाख़िल हुआ अमन में आ गया और लोगों पर वाजिब है कि महज़ ख़ुदा के लिए ख़ानाए काबा का हज करें जिन्हे वहां तक पहुँचने की इस्तेताअत है और जिसने बावजूद कुदरत हज से इन्कार किया तो (याद रखे) कि ख़ुदा सारे जहॉन से बेपरवा है
Surah Aal-e-Imran, Verse 97


قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَٱللَّهُ شَهِيدٌ عَلَىٰ مَا تَعۡمَلُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब खुदा की आयतो से क्यो मुन्किर हुए जाते हो हालॉकि जो काम काज तुम करते हो खुदा को उसकी (पूरी) पूरी इत्तिला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 98


قُلۡ يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لِمَ تَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ مَنۡ ءَامَنَ تَبۡغُونَهَا عِوَجٗا وَأَنتُمۡ شُهَدَآءُۗ وَمَا ٱللَّهُ بِغَٰفِلٍ عَمَّا تَعۡمَلُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब दीदए दानिस्ता खुदा की (सीधी) राह में (नाहक़ की) कज़ी ढूंढो (ढूंढ) के ईमान लाने वालों को उससे क्यों रोकते हो ओर जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं है
Surah Aal-e-Imran, Verse 99


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن تُطِيعُواْ فَرِيقٗا مِّنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ يَرُدُّوكُم بَعۡدَ إِيمَٰنِكُمۡ كَٰفِرِينَ

ऐ ईमान वालों अगर तुमने अहले किताब के किसी फ़िरके क़ा भी कहना माना तो (याद रखो कि) वह तुमको ईमान लाने के बाद (भी) फिर दुबारा काफ़िर बना छोडेंग़े
Surah Aal-e-Imran, Verse 100


وَكَيۡفَ تَكۡفُرُونَ وَأَنتُمۡ تُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ وَفِيكُمۡ رَسُولُهُۥۗ وَمَن يَعۡتَصِم بِٱللَّهِ فَقَدۡ هُدِيَ إِلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ

और (भला) तुम क्योंकर काफ़िर बन जाओगे हालॉकि तुम्हारे सामने ख़ुदा की आयतें (बराबर) पढ़ी जाती हैं और उसके रसूल (मोहम्मद) भी तुममें (मौजूद) हैं और जो शख्स ख़ुदा से वाबस्ता हो वह (तो) जरूर सीधी राह पर लगा दिया गया
Surah Aal-e-Imran, Verse 101


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِۦ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنتُم مُّسۡلِمُونَ

ऐ ईमान वालों ख़ुदा से डरो जितना उससे डरने का हक़ है और तुम (दीन) इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर हरगिज़ न मरना
Surah Aal-e-Imran, Verse 102


وَٱعۡتَصِمُواْ بِحَبۡلِ ٱللَّهِ جَمِيعٗا وَلَا تَفَرَّقُواْۚ وَٱذۡكُرُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ كُنتُمۡ أَعۡدَآءٗ فَأَلَّفَ بَيۡنَ قُلُوبِكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم بِنِعۡمَتِهِۦٓ إِخۡوَٰنٗا وَكُنتُمۡ عَلَىٰ شَفَا حُفۡرَةٖ مِّنَ ٱلنَّارِ فَأَنقَذَكُم مِّنۡهَاۗ كَذَٰلِكَ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ ءَايَٰتِهِۦ لَعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ

और तुम सब के सब (मिलकर) ख़ुदा की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे) के फूट न डालो और अपने हाल (ज़ार) पर ख़ुदा के एहसान को तो याद करो जब तुम आपस में (एक दूसरे के) दुश्मन थे तो ख़ुदा ने तुम्हारे दिलों में (एक दूसरे की) उलफ़त पैदा कर दी तो तुम उसके फ़ज़ल से आपस में भाई भाई हो गए और तुम गोया सुलगती हुईआग की भट्टी (दोज़ख) के लब पर (खडे) थे गिरना ही चाहते थे कि ख़ुदा ने तुमको उससे बचा लिया तो ख़ुदा अपने एहकाम यूं वाजेए करके बयान करता है ताकि तुम राहे रास्त पर आ जाओ
Surah Aal-e-Imran, Verse 103


وَلۡتَكُن مِّنكُمۡ أُمَّةٞ يَدۡعُونَ إِلَى ٱلۡخَيۡرِ وَيَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِۚ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ

और तुमसे एक गिरोह ऐसे (लोगों का भी) तो होना चाहिये जो (लोगों को) नेकी की तरफ़ बुलाए अच्छे काम का हुक्म दे और बुरे कामों से रोके और ऐसे ही लोग (आख़ेरत में) अपनी दिली मुरादें पायेंगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 104


وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ تَفَرَّقُواْ وَٱخۡتَلَفُواْ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُۚ وَأُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ

और तुम (कहीं) उन लोगों के ऐसे न हो जाना जो आपस में फूट डाल कर बैठ रहे और रौशन (दलील) आने के बाद भी एक मुंह एक ज़बान न रहे और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा (भारी) अज़ाब है
Surah Aal-e-Imran, Verse 105


يَوۡمَ تَبۡيَضُّ وُجُوهٞ وَتَسۡوَدُّ وُجُوهٞۚ فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسۡوَدَّتۡ وُجُوهُهُمۡ أَكَفَرۡتُم بَعۡدَ إِيمَٰنِكُمۡ فَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ

(उस दिन से डरो) जिस दिन कुछ लोगों के चेहरे तो सफैद नूरानी होंगे और कुछ (लोगो) के चेहरे सियाह जिन लोगों के मुहॅ में कालिक होगी (उनसे कहा जायेगा) हाए क्यों तुम तो ईमान लाने के बाद काफ़िर हो गए थे अच्छा तो (लो) (अब) अपने कुफ़्र की सज़ा में अज़ाब (के मजे) चखो
Surah Aal-e-Imran, Verse 106


وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱبۡيَضَّتۡ وُجُوهُهُمۡ فَفِي رَحۡمَةِ ٱللَّهِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ

और जिनके चेहरे पर नूर बरसता होगा वह तो ख़ुदा की रहमत(बहिश्त) में होंगे (और) उसी में सदा रहेंगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 107


تِلۡكَ ءَايَٰتُ ٱللَّهِ نَتۡلُوهَا عَلَيۡكَ بِٱلۡحَقِّۗ وَمَا ٱللَّهُ يُرِيدُ ظُلۡمٗا لِّلۡعَٰلَمِينَ

(ऐ रसूल) ये ख़ुदा की आयतें हैं जो हम तुमको ठीक (ठीक) पढ़ के सुनाते हैं और ख़ुदा सारे जहॉन के लोगों (से किसी) पर जुल्म करना नहीं चाहता
Surah Aal-e-Imran, Verse 108


وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ

और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (सब) ख़ुदा ही का है और (आख़िर) सब कामों की रूज़ु ख़ुदा ही की तरफ़ है
Surah Aal-e-Imran, Verse 109


كُنتُمۡ خَيۡرَ أُمَّةٍ أُخۡرِجَتۡ لِلنَّاسِ تَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَتَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَتُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِۗ وَلَوۡ ءَامَنَ أَهۡلُ ٱلۡكِتَٰبِ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۚ مِّنۡهُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَأَكۡثَرُهُمُ ٱلۡفَٰسِقُونَ

तुम क्या अच्छे गिरोह हो कि (लोगों की) हिदायत के वास्ते पैदा किये गए हो तुम (लोगों को) अच्छे काम का हुक्म करते हो और बुरे कामों से रोकते हो और ख़ुदा पर ईमान रखते हो और अगर अहले किताब भी (इसी तरह) ईमान लाते तो उनके हक़ में बहुत अच्छा होता उनमें से कुछ ही तो ईमानदार हैं और अक्सर बदकार
Surah Aal-e-Imran, Verse 110


لَن يَضُرُّوكُمۡ إِلَّآ أَذٗىۖ وَإِن يُقَٰتِلُوكُمۡ يُوَلُّوكُمُ ٱلۡأَدۡبَارَ ثُمَّ لَا يُنصَرُونَ

(मुसलमानों) ये लोग मामूली अज़ीयत के सिवा तुम्हें हरगिज़ ज़रर नहीं पहुंचा सकते और अगर तुमसे लड़ेंगे तो उन्हें तुम्हारी तरफ़ पीठ ही करनी होगी और फिर उनकी कहीं से मदद भी नहीं पहुंचेगी
Surah Aal-e-Imran, Verse 111


ضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلذِّلَّةُ أَيۡنَ مَا ثُقِفُوٓاْ إِلَّا بِحَبۡلٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَحَبۡلٖ مِّنَ ٱلنَّاسِ وَبَآءُو بِغَضَبٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَضُرِبَتۡ عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَسۡكَنَةُۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَانُواْ يَكۡفُرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَيَقۡتُلُونَ ٱلۡأَنۢبِيَآءَ بِغَيۡرِ حَقّٖۚ ذَٰلِكَ بِمَا عَصَواْ وَّكَانُواْ يَعۡتَدُونَ

और जहॉ कहीं हत्ते चढ़े उनपर रूसवाई की मार पड़ी मगर ख़ुदा के एहद (या) और लोगों के एहद के ज़रिये से (उनको कहीं पनाह मिल गयी) और फिर हेरफेर के खुदा के गज़ब में पड़ गए और उनपर मोहताजी की मार (अलग) पड़ी ये (क्यों) इस सबब से कि वह ख़ुदा की आयतों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करते थे ये सज़ा उसकी है कि उन्होंने नाफ़रमानी की और हद से गुज़र गए थे
Surah Aal-e-Imran, Verse 112


۞لَيۡسُواْ سَوَآءٗۗ مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ أُمَّةٞ قَآئِمَةٞ يَتۡلُونَ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ وَهُمۡ يَسۡجُدُونَ

और ये लोग भी सबके सब यकसॉ नहीं हैं (बल्कि) अहले किताब से कुछ लोग तो ऐसे हैं कि (ख़ुदा के दीन पर) इस तरह साबित क़दम हैं कि रातों को ख़ुदा की आयतें पढ़ा करते हैं और वह बराबर सजदे किया करते हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 113


يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَيَأۡمُرُونَ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَيَنۡهَوۡنَ عَنِ ٱلۡمُنكَرِ وَيُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ

खुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हैं और अच्छे काम का तो हुक्म करते हैं और बुरे कामों से रोकते हैं और नेक कामों में दौड़ पड़ते हैं और यही लोग तो नेक बन्दों से हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 114


وَمَا يَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَلَن يُكۡفَرُوهُۗ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِٱلۡمُتَّقِينَ

और वह जो कुछ नेकी करेंगे उसकी हरगिज़ नाक़द्री न की जाएगी और ख़ुदा परहेज़गारों से खूब वाक़िफ़ है
Surah Aal-e-Imran, Verse 115


إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗاۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ

बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया ख़ुदा (के अज़ाब) से बचाने में हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएंगे न उनकी औलाद और यही लोग जहन्नुमी हैं और हमेशा उसी में रहेंगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 116


مَثَلُ مَا يُنفِقُونَ فِي هَٰذِهِ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا كَمَثَلِ رِيحٖ فِيهَا صِرٌّ أَصَابَتۡ حَرۡثَ قَوۡمٖ ظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ فَأَهۡلَكَتۡهُۚ وَمَا ظَلَمَهُمُ ٱللَّهُ وَلَٰكِنۡ أَنفُسَهُمۡ يَظۡلِمُونَ

दुनिया की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी में ये लोग जो कुछ (ख़िलाफ़ शरा) ख़र्च करते हैं उसकी मिसाल अन्धड़ की मिसाल है जिसमें बहुत पाला हो और वह उन लोगों के खेत पर जा पड़े जिन्होंने (कुफ़्र की वजह से) अपनी जानों पर सितम ढाया हो और फिर पाला उसे मार के (नास कर दे) और ख़ुदा ने उनपर जुल्म कुछ नहीं किया बल्कि उन्होंने आप अपने ऊपर जुल्म किया
Surah Aal-e-Imran, Verse 117


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُواْ بِطَانَةٗ مِّن دُونِكُمۡ لَا يَأۡلُونَكُمۡ خَبَالٗا وَدُّواْ مَا عَنِتُّمۡ قَدۡ بَدَتِ ٱلۡبَغۡضَآءُ مِنۡ أَفۡوَٰهِهِمۡ وَمَا تُخۡفِي صُدُورُهُمۡ أَكۡبَرُۚ قَدۡ بَيَّنَّا لَكُمُ ٱلۡأٓيَٰتِۖ إِن كُنتُمۡ تَعۡقِلُونَ

ऐ ईमानदारों अपने (मोमिनीन) के सिवा (गैरो को) अपना राज़दार न बनाओ (क्योंकि) ये गैर लोग तुम्हारी बरबादी में कुछ उठा नहीं रखेंगे (बल्कि जितना ज्यादा तकलीफ़) में पड़ोगे उतना ही ये लोग ख़ुश होंगे दुश्मनी तो उनके मुंह से टपकती है और जो (बुग़ज़ व हसद) उनके दिलों में भरा है वह कहीं उससे बढ़कर है हमने तुमसे (अपने) एहकाम साफ़ साफ़ बयान कर दिये अगर तुम समझ रखते हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 118


هَـٰٓأَنتُمۡ أُوْلَآءِ تُحِبُّونَهُمۡ وَلَا يُحِبُّونَكُمۡ وَتُؤۡمِنُونَ بِٱلۡكِتَٰبِ كُلِّهِۦ وَإِذَا لَقُوكُمۡ قَالُوٓاْ ءَامَنَّا وَإِذَا خَلَوۡاْ عَضُّواْ عَلَيۡكُمُ ٱلۡأَنَامِلَ مِنَ ٱلۡغَيۡظِۚ قُلۡ مُوتُواْ بِغَيۡظِكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

ऐ लोगों तुम ऐसे (सीधे) हो कि तुम उनसे उलफ़त रखतो हो और वह तुम्हें (ज़रा भी) नहीं चाहते और तुम तो पूरी किताब (ख़ुदा) पर ईमान रखते हो और वह ऐसे नहीं हैं (मगर) जब तुमसे मिलते हैं तो कहने लगते हैं कि हम भी ईमान लाए और जब अकेले में होते हैं तो तुम पर गुस्से के मारे उंगलियों काटते हैं (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (काटना क्या) तुम अपने गुस्से में जल मरो जो बातें तुम्हारे दिलों में हैं बेशक ख़ुदा ज़रूर जानता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 119


إِن تَمۡسَسۡكُمۡ حَسَنَةٞ تَسُؤۡهُمۡ وَإِن تُصِبۡكُمۡ سَيِّئَةٞ يَفۡرَحُواْ بِهَاۖ وَإِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ لَا يَضُرُّكُمۡ كَيۡدُهُمۡ شَيۡـًٔاۗ إِنَّ ٱللَّهَ بِمَا يَعۡمَلُونَ مُحِيطٞ

(ऐ ईमानदारों) अगर तुमको भलाई छू भी गयी तो उनको बुरा मालूम होता है और जब तुमपर कोई भी मुसीबत पड़ती है तो वह ख़ुश हो जाते हैं और अगर तुम सब्र करो और परहेज़गारी इख्तेयार करो तो उनका फ़रेब तुम्हें कुछ भी ज़रर नहीं पहुंचाएगा (क्योंकि) ख़ुदा तो उनकी कारस्तानियों पर हावी है
Surah Aal-e-Imran, Verse 120


وَإِذۡ غَدَوۡتَ مِنۡ أَهۡلِكَ تُبَوِّئُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ مَقَٰعِدَ لِلۡقِتَالِۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

और (ऐ रसूल) एक वक्त वो भी था जब तुम अपने बाल बच्चों से तड़के ही निकल खड़े हुए और मोमिनीन को लड़ाई के मोर्चों पर बिठा रहे थे और खुदा सब कुछ जानता और सुनता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 121


إِذۡ هَمَّت طَّآئِفَتَانِ مِنكُمۡ أَن تَفۡشَلَا وَٱللَّهُ وَلِيُّهُمَاۗ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ

ये उस वक्त क़ा वाक़या है जब तुममें से दो गिरोहों ने ठान लिया था कि पसपाई करें और फिर (सॅभल गए) क्योंकि ख़ुदा तो उनका सरपरस्त था और मोमिनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिये
Surah Aal-e-Imran, Verse 122


وَلَقَدۡ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ بِبَدۡرٖ وَأَنتُمۡ أَذِلَّةٞۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ

यक़ीनन ख़ुदा ने जंगे बदर में तुम्हारी मदद की (बावजूद के) तुम (दुश्मन के मुक़ाबले में) बिल्कुल बे हक़ीक़त थे (फिर भी) ख़ुदा ने फतेह दी
Surah Aal-e-Imran, Verse 123


إِذۡ تَقُولُ لِلۡمُؤۡمِنِينَ أَلَن يَكۡفِيَكُمۡ أَن يُمِدَّكُمۡ رَبُّكُم بِثَلَٰثَةِ ءَالَٰفٖ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ مُنزَلِينَ

पस तुम ख़ुदा से डरते रहो ताकि (उनके) शुक्रगुज़ार बनो (ऐ रसूल) उस वक्त तुम मोमिनीन से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा परवरदिगार तीन हज़ार फ़रिश्ते आसमान से भेजकर तुम्हारी मदद करे हॉ (ज़रूर काफ़ी है)
Surah Aal-e-Imran, Verse 124


بَلَىٰٓۚ إِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ وَيَأۡتُوكُم مِّن فَوۡرِهِمۡ هَٰذَا يُمۡدِدۡكُمۡ رَبُّكُم بِخَمۡسَةِ ءَالَٰفٖ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ مُسَوِّمِينَ

बल्कि अगर तुम साबित क़दम रहो और (रसूल की मुख़ालेफ़त से) बचो और कुफ्फ़ार अपने (जोश में) तुमपर चढ़ भी आये तो तुम्हारा परवरदिगार ऐसे पॉच हज़ार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा जो निशाने जंग लगाए हुए डटे होंगे और ख़ुदा ने ये मदद सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए की है
Surah Aal-e-Imran, Verse 125


وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشۡرَىٰ لَكُمۡ وَلِتَطۡمَئِنَّ قُلُوبُكُم بِهِۦۗ وَمَا ٱلنَّصۡرُ إِلَّا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ

और ताकि इससे तुम्हारे दिल की ढारस हो और (ये तो ज़ाहिर है कि) मदद जब होती है तो ख़ुदा ही की तरफ़ से जो सब पर ग़ालिब (और) हिकमत वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 126


لِيَقۡطَعَ طَرَفٗا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَوۡ يَكۡبِتَهُمۡ فَيَنقَلِبُواْ خَآئِبِينَ

(और यह मदद की भी तो) इसलिए कि काफ़िरों के एक गिरोह को कम कर दे या ऐसा चौपट कर दे कि (अपना सा) मुंह लेकर नामुराद अपने घर वापस चले जायें
Surah Aal-e-Imran, Verse 127


لَيۡسَ لَكَ مِنَ ٱلۡأَمۡرِ شَيۡءٌ أَوۡ يَتُوبَ عَلَيۡهِمۡ أَوۡ يُعَذِّبَهُمۡ فَإِنَّهُمۡ ظَٰلِمُونَ

(ऐ रसूल) तुम्हारा तो इसमें कुछ बस नहीं चाहे ख़ुदा उनकी तौबा कुबूल करे या उनको सज़ा दे क्योंकि वह ज़ालिम तो ज़रूर हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 128


وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ يَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ

और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब ख़ुदा ही का है जिसको चाहे बख्शे और जिसको चाहे सज़ा करे और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबार है
Surah Aal-e-Imran, Verse 129


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَأۡكُلُواْ ٱلرِّبَوٰٓاْ أَضۡعَٰفٗا مُّضَٰعَفَةٗۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ

ऐ ईमानदारों सूद दनादन खाते न चले जाओ और ख़ुदा से डरो कि तुम छुटकारा पाओ
Surah Aal-e-Imran, Verse 130


وَٱتَّقُواْ ٱلنَّارَ ٱلَّتِيٓ أُعِدَّتۡ لِلۡكَٰفِرِينَ

और जहन्नुम की उस आग से डरो जो काफ़िरों के लिए तैयार की गयी है
Surah Aal-e-Imran, Verse 131


وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ

और ख़ुदा और रसूल की फ़रमाबरदारी करो ताकि तुम पर रहम किया जाए
Surah Aal-e-Imran, Verse 132


۞وَسَارِعُوٓاْ إِلَىٰ مَغۡفِرَةٖ مِّن رَّبِّكُمۡ وَجَنَّةٍ عَرۡضُهَا ٱلسَّمَٰوَٰتُ وَٱلۡأَرۡضُ أُعِدَّتۡ لِلۡمُتَّقِينَ

और अपने परवरदिगार के (सबब) बख्शिश और जन्नत की तरफ़ दौड़ पड़ो जिसकी (वुसअत सारे) आसमान और ज़मीन के बराबर है और जो परहेज़गारों के लिये मुहय्या की गयी है
Surah Aal-e-Imran, Verse 133


ٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ فِي ٱلسَّرَّآءِ وَٱلضَّرَّآءِ وَٱلۡكَٰظِمِينَ ٱلۡغَيۡظَ وَٱلۡعَافِينَ عَنِ ٱلنَّاسِۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ

जो ख़ुशहाली और कठिन वक्त में भी (ख़ुदा की राह पर) ख़र्च करते हैं और गुस्से को रोकते हैं और लोगों (की ख़ता) से दरगुज़र करते हैं और नेकी करने वालों से अल्लाह उलफ़त रखता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 134


وَٱلَّذِينَ إِذَا فَعَلُواْ فَٰحِشَةً أَوۡ ظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ ذَكَرُواْ ٱللَّهَ فَٱسۡتَغۡفَرُواْ لِذُنُوبِهِمۡ وَمَن يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ إِلَّا ٱللَّهُ وَلَمۡ يُصِرُّواْ عَلَىٰ مَا فَعَلُواْ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ

और लोग इत्तिफ़ाक़ से कोई बदकारी कर बैठते हैं या आप अपने ऊपर जुल्म करते हैं तो ख़ुदा को याद करते हैं और अपने गुनाहों की माफ़ी मॉगते हैं और ख़ुदा के सिवा गुनाहों का बख्शने वाला और कौन है और जो (क़ूसूर) वह (नागहानी) कर बैठे तो जानबूझ कर उसपर हट नहीं करते
Surah Aal-e-Imran, Verse 135


أُوْلَـٰٓئِكَ جَزَآؤُهُم مَّغۡفِرَةٞ مِّن رَّبِّهِمۡ وَجَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَٰمِلِينَ

ऐसे ही लोगों की जज़ा उनके परवरदिगार की तरफ़ से बख्शिश है और वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं कि वह उनमें हमेशा रहेंगे और (अच्छे) चलन वालों की (भी) ख़ूब खरी मज़दूरी है
Surah Aal-e-Imran, Verse 136


قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِكُمۡ سُنَنٞ فَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَٱنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ

तुमसे पहले बहुत से वाक़यात गुज़र चुके हैं पस ज़रा रूए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (अपने अपने वक्त क़े पैग़म्बरों को) झुठलाने वालों का अन्जाम क्या हुआ
Surah Aal-e-Imran, Verse 137


هَٰذَا بَيَانٞ لِّلنَّاسِ وَهُدٗى وَمَوۡعِظَةٞ لِّلۡمُتَّقِينَ

ये (जो हमने कहा) आम लोगों के लिए तो सिर्फ़ बयान (वाक़या) है मगर और परहेज़गारों के लिए हिदायत व नसीहत है
Surah Aal-e-Imran, Verse 138


وَلَا تَهِنُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَنتُمُ ٱلۡأَعۡلَوۡنَ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ

और मुसलमानों काहिली न करो और (इस) इत्तफ़ाक़ी शिकस्त (ओहद से) कुढ़ो नहीं (क्योंकि) अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो तुम ही ग़ालिब और वर रहोगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 139


إِن يَمۡسَسۡكُمۡ قَرۡحٞ فَقَدۡ مَسَّ ٱلۡقَوۡمَ قَرۡحٞ مِّثۡلُهُۥۚ وَتِلۡكَ ٱلۡأَيَّامُ نُدَاوِلُهَا بَيۡنَ ٱلنَّاسِ وَلِيَعۡلَمَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَيَتَّخِذَ مِنكُمۡ شُهَدَآءَۗ وَٱللَّهُ لَا يُحِبُّ ٱلظَّـٰلِمِينَ

अगर (जंगे ओहद में) तुमको ज़ख्म लगा है तो उसी तरह (बदर में) तुम्हारे फ़रीक़ (कुफ्फ़ार को) भी ज़ख्म लग चुका है (उस पर उनकी हिम्मत तो न टूटी) ये इत्तफ़ाक़ाते ज़माना हैं जो हम लोगों के दरमियान बारी बारी उलट फेर किया करते हैं और ये (इत्तफ़ाक़ी शिकस्त इसलिए थी) ताकि ख़ुदा सच्चे ईमानदारों को (ज़ाहिरी) मुसलमानों से अलग देख लें और तुममें से बाज़ को दरजाए शहादत पर फ़ायज़ करें और ख़ुदा (हुक्मे रसूल से) सरताबी करने वालों को दोस्त नहीं रखता
Surah Aal-e-Imran, Verse 140


وَلِيُمَحِّصَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَيَمۡحَقَ ٱلۡكَٰفِرِينَ

और ये (भी मंजूर था) कि सच्चे ईमानदारों को (साबित क़दमी की वजह से) निरा खरा अलग कर ले और नाफ़रमानों (भागने वालों) का मटियामेट कर दे
Surah Aal-e-Imran, Verse 141


أَمۡ حَسِبۡتُمۡ أَن تَدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ وَلَمَّا يَعۡلَمِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ جَٰهَدُواْ مِنكُمۡ وَيَعۡلَمَ ٱلصَّـٰبِرِينَ

(मुसलमानों) क्या तुम ये समझते हो कि सब के सब बहिश्त में चले ही जाओगे और क्या ख़ुदा ने अभी तक तुममें से उन लोगों को भी नहीं पहचाना जिन्होंने जेहाद किया और न साबित क़दम रहने वालों को ही पहचाना
Surah Aal-e-Imran, Verse 142


وَلَقَدۡ كُنتُمۡ تَمَنَّوۡنَ ٱلۡمَوۡتَ مِن قَبۡلِ أَن تَلۡقَوۡهُ فَقَدۡ رَأَيۡتُمُوهُ وَأَنتُمۡ تَنظُرُونَ

तुम तो मौत के आने से पहले (लड़ाई में) मरने की तमन्ना करते थे बस अब तुमने उसको अपनी ऑख से देख लिया और तुम अब भी देख रहे हो
Surah Aal-e-Imran, Verse 143


وَمَا مُحَمَّدٌ إِلَّا رَسُولٞ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِ ٱلرُّسُلُۚ أَفَإِيْن مَّاتَ أَوۡ قُتِلَ ٱنقَلَبۡتُمۡ عَلَىٰٓ أَعۡقَٰبِكُمۡۚ وَمَن يَنقَلِبۡ عَلَىٰ عَقِبَيۡهِ فَلَن يَضُرَّ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۚ وَسَيَجۡزِي ٱللَّهُ ٱلشَّـٰكِرِينَ

(फिर लड़ाई से जी क्यों चुराते हो) और मोहम्मद तो सिर्फ रसूल हैं (ख़ुदा नहीं) इनसे पहले बहुतेरे पैग़म्बर गुज़र चुके हैं फिर क्या अगर मोहम्मद अपनी मौत से मर जॉए या मार डाले जाएं तो तुम उलटे पॉव (अपने कुफ़्र की तरफ़) पलट जाओगे और जो उलटे पॉव फिरेगा (भी) तो (समझ लो) हरगिज़ ख़ुदा का कुछ भी नहीं बिगड़ेगा और अनक़रीब ख़ुदा का शुक्र करने वालों को अच्छा बदला देगा
Surah Aal-e-Imran, Verse 144


وَمَا كَانَ لِنَفۡسٍ أَن تَمُوتَ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِ كِتَٰبٗا مُّؤَجَّلٗاۗ وَمَن يُرِدۡ ثَوَابَ ٱلدُّنۡيَا نُؤۡتِهِۦ مِنۡهَا وَمَن يُرِدۡ ثَوَابَ ٱلۡأٓخِرَةِ نُؤۡتِهِۦ مِنۡهَاۚ وَسَنَجۡزِي ٱلشَّـٰكِرِينَ

और बगैर हुक्मे ख़ुदा के तो कोई शख्स मर ही नहीं सकता वक्ते मुअय्यन तक हर एक की मौत लिखी हुई है और जो शख्स (अपने किए का) बदला दुनिया में चाहे तो हम उसको इसमें से दे देते हैं और जो शख्स आख़ेरत का बदला चाहे उसे उसी में से देंगे और (नेअमत ईमान के) शुक्र करने वालों को बहुत जल्द हम जज़ाए खैर देंगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 145


وَكَأَيِّن مِّن نَّبِيّٖ قَٰتَلَ مَعَهُۥ رِبِّيُّونَ كَثِيرٞ فَمَا وَهَنُواْ لِمَآ أَصَابَهُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَمَا ضَعُفُواْ وَمَا ٱسۡتَكَانُواْۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلصَّـٰبِرِينَ

और (मुसलमानों तुम ही नहीं) ऐसे पैग़म्बर बहुत से गुज़र चुके हैं जिनके साथ बहुतेरे अल्लाह वालों ने (राहे खुदा में) जेहाद किया और फिर उनको ख़ुदा की राह में जो मुसीबत पड़ी है न तो उन्होंने हिम्मत हारी न बोदापन किया (और न दुशमन के सामने) गिड़गिड़ाने लगे और साबित क़दम रहने वालों से ख़ुदा उलफ़त रखता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 146


وَمَا كَانَ قَوۡلَهُمۡ إِلَّآ أَن قَالُواْ رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لَنَا ذُنُوبَنَا وَإِسۡرَافَنَا فِيٓ أَمۡرِنَا وَثَبِّتۡ أَقۡدَامَنَا وَٱنصُرۡنَا عَلَى ٱلۡقَوۡمِ ٱلۡكَٰفِرِينَ

और लुत्फ़ ये है कि उनका क़ौल इसके सिवा कुछ न था कि दुआएं मॉगने लगें कि ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज्यादतियॉ माफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित क़दम रख और काफ़िरों के गिरोह पर हमको फ़तेह दे
Surah Aal-e-Imran, Verse 147


فَـَٔاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ ثَوَابَ ٱلدُّنۡيَا وَحُسۡنَ ثَوَابِ ٱلۡأٓخِرَةِۗ وَٱللَّهُ يُحِبُّ ٱلۡمُحۡسِنِينَ

तो ख़ुदा ने उनको दुनिया में बदला (दिया) और आख़िरत में अच्छा बदला ईनायत फ़रमाया और ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता (ही) है
Surah Aal-e-Imran, Verse 148


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن تُطِيعُواْ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يَرُدُّوكُمۡ عَلَىٰٓ أَعۡقَٰبِكُمۡ فَتَنقَلِبُواْ خَٰسِرِينَ

ऐ ईमानदारों अगर तुम लोगों ने काफ़िरों की पैरवी कर ली तो (याद रखो) वह तुमको उलटे पॉव (कुफ़्र की तरफ़) फेर कर ले जाऐंगे फिर उलटे तुम ही घाटे में आ जाओगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 149


بَلِ ٱللَّهُ مَوۡلَىٰكُمۡۖ وَهُوَ خَيۡرُ ٱلنَّـٰصِرِينَ

(तुम किसी की मदद के मोहताज नहीं) बल्कि ख़ुदा तुम्हारा सरपरस्त है और वह सब मददगारों से बेहतर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 150


سَنُلۡقِي فِي قُلُوبِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلرُّعۡبَ بِمَآ أَشۡرَكُواْ بِٱللَّهِ مَا لَمۡ يُنَزِّلۡ بِهِۦ سُلۡطَٰنٗاۖ وَمَأۡوَىٰهُمُ ٱلنَّارُۖ وَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلظَّـٰلِمِينَ

(तुम घबराओ नहीं) हम अनक़रीब तुम्हारा रोब काफ़िरों के दिलों में जमा देंगे इसलिए कि उन लोगों ने ख़ुदा का शरीक बनाया (भी तो) इस चीज़ बुत को जिसे ख़ुदा ने किसी क़िस्म की हुकूमत नहीं दी और (आख़िरकार) उनका ठिकाना दौज़ख़ है और ज़ालिमों का (भी क्या) बुरा ठिकाना है
Surah Aal-e-Imran, Verse 151


وَلَقَدۡ صَدَقَكُمُ ٱللَّهُ وَعۡدَهُۥٓ إِذۡ تَحُسُّونَهُم بِإِذۡنِهِۦۖ حَتَّىٰٓ إِذَا فَشِلۡتُمۡ وَتَنَٰزَعۡتُمۡ فِي ٱلۡأَمۡرِ وَعَصَيۡتُم مِّنۢ بَعۡدِ مَآ أَرَىٰكُم مَّا تُحِبُّونَۚ مِنكُم مَّن يُرِيدُ ٱلدُّنۡيَا وَمِنكُم مَّن يُرِيدُ ٱلۡأٓخِرَةَۚ ثُمَّ صَرَفَكُمۡ عَنۡهُمۡ لِيَبۡتَلِيَكُمۡۖ وَلَقَدۡ عَفَا عَنكُمۡۗ وَٱللَّهُ ذُو فَضۡلٍ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ

बेशक खुदा ने (जंगे औहद में भी) अपना (फतेह का) वायदा सच्चा कर दिखाया था जब तुम उसके हुक्म से (पहले ही हमले में) उन (कुफ्फ़ार) को खूब क़त्ल कर रहे थे यहॉ तक की तुम्हारे पसन्द की चीज़ (फ़तेह) तुम्हें दिखा दी उसके बाद भी तुमने (माले ग़नीमत देखकर) बुज़दिलापन किया और हुक्में रसूल (मोर्चे पर जमे रहने) झगड़ा किया और रसूल की नाफ़रमानी की तुममें से कुछ तो तालिबे दुनिया हैं (कि माले ग़नीमत की तरफ़) से झुक पड़े और कुछ तालिबे आख़िरत (कि रसूल पर अपनी जान फ़िदा कर दी) फिर (बुज़दिलेपन ने) तुम्हें उन (कुफ्फ़ार) की की तरफ से फेर दिया (और तुम भाग खड़े हुए) उससे ख़ुदा को तुम्हारा (ईमान अख़लासी) आज़माना मंज़ूर था और (उसपर भी) ख़ुदा ने तुमसे दरगुज़र की और खुदा मोमिनीन पर बड़ा फ़ज़ल करने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 152


۞إِذۡ تُصۡعِدُونَ وَلَا تَلۡوُۥنَ عَلَىٰٓ أَحَدٖ وَٱلرَّسُولُ يَدۡعُوكُمۡ فِيٓ أُخۡرَىٰكُمۡ فَأَثَٰبَكُمۡ غَمَّۢا بِغَمّٖ لِّكَيۡلَا تَحۡزَنُواْ عَلَىٰ مَا فَاتَكُمۡ وَلَا مَآ أَصَٰبَكُمۡۗ وَٱللَّهُ خَبِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ

(मुसलमानों तुम) उस वक्त क़ो याद करके शर्माओ जब तुम (बदहवास) भागे पहाड़ पर चले जाते थे पस (चूंकि) रसूल को तुमने (आज़ारदा) किया ख़ुदा ने भी तुमको (इस) रंज की सज़ा में (शिकस्त का) रंज दिया ताकि जब कभी तुम्हारी कोई चीज़ हाथ से जाती रहे या कोई मुसीबत पड़े तो तुम रंज न करो और सब्र करना सीखो और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है
Surah Aal-e-Imran, Verse 153


ثُمَّ أَنزَلَ عَلَيۡكُم مِّنۢ بَعۡدِ ٱلۡغَمِّ أَمَنَةٗ نُّعَاسٗا يَغۡشَىٰ طَآئِفَةٗ مِّنكُمۡۖ وَطَآئِفَةٞ قَدۡ أَهَمَّتۡهُمۡ أَنفُسُهُمۡ يَظُنُّونَ بِٱللَّهِ غَيۡرَ ٱلۡحَقِّ ظَنَّ ٱلۡجَٰهِلِيَّةِۖ يَقُولُونَ هَل لَّنَا مِنَ ٱلۡأَمۡرِ مِن شَيۡءٖۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡأَمۡرَ كُلَّهُۥ لِلَّهِۗ يُخۡفُونَ فِيٓ أَنفُسِهِم مَّا لَا يُبۡدُونَ لَكَۖ يَقُولُونَ لَوۡ كَانَ لَنَا مِنَ ٱلۡأَمۡرِ شَيۡءٞ مَّا قُتِلۡنَا هَٰهُنَاۗ قُل لَّوۡ كُنتُمۡ فِي بُيُوتِكُمۡ لَبَرَزَ ٱلَّذِينَ كُتِبَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقَتۡلُ إِلَىٰ مَضَاجِعِهِمۡۖ وَلِيَبۡتَلِيَ ٱللَّهُ مَا فِي صُدُورِكُمۡ وَلِيُمَحِّصَ مَا فِي قُلُوبِكُمۡۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ

फिर ख़ुदा ने इस रंज के बाद तुमपर इत्मिनान की हालत तारी की कि तुममें से एक गिरोह का (जो सच्चे ईमानदार थे) ख़ूब गहरी नींद आ गयी और एक गिरोह जिनको उस वक्त भी (भागने की शर्म से) जान के लाले पड़े थे ख़ुदा के साथ (ख्वाह मख्वाह) ज़मानाए जिहालत की ऐसी बदगुमानियॉ करने लगे और कहने लगे भला क्या ये अम्र (फ़तेह) कुछ भी हमारे इख्तियार में है (ऐ रसूल) कह दो कि हर अम्र का इख्तियार ख़ुदा ही को है (ज़बान से तो कहते ही है नहीं) ये अपने दिलों में ऐसी बातें छिपाए हुए हैं जो तुमसे ज़ाहिर नहीं करते (अब सुनो) कहते हैं कि इस अम्र (फ़तेह) में हमारा कुछ इख़्तियार होता तो हम यहॉ मारे न जाते (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि तुम अपने घरों में रहते तो जिन जिन की तकदीर में लड़के मर जाना लिखा था वह अपने (घरो से) निकल निकल के अपने मरने की जगह ज़रूर आ जाते और (ये इस वास्ते किया गया) ताकि जो कुछ तुम्हारे दिल में है उसका इम्तिहान कर दे और ख़ुदा तो दिलों के राज़ खूब जानता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 154


إِنَّ ٱلَّذِينَ تَوَلَّوۡاْ مِنكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡتَقَى ٱلۡجَمۡعَانِ إِنَّمَا ٱسۡتَزَلَّهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ بِبَعۡضِ مَا كَسَبُواْۖ وَلَقَدۡ عَفَا ٱللَّهُ عَنۡهُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٞ

बेशक जिस दिन (जंगे औहद में) दो जमाअतें आपस में गुथ गयीं उस दिन जो लोग तुम (मुसलमानों) में से भाग खड़े हुए (उसकी वजह ये थी कि) उनके बाज़ गुनाहों (मुख़ालफ़ते रसूल) की वजह से शैतान ने बहका के उनके पॉव उखाड़ दिए और (उसी वक्त तो) ख़ुदा ने ज़रूर उनसे दरगुज़र की बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला बुर्दवार है
Surah Aal-e-Imran, Verse 155


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَقَالُواْ لِإِخۡوَٰنِهِمۡ إِذَا ضَرَبُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ أَوۡ كَانُواْ غُزّٗى لَّوۡ كَانُواْ عِندَنَا مَا مَاتُواْ وَمَا قُتِلُواْ لِيَجۡعَلَ ٱللَّهُ ذَٰلِكَ حَسۡرَةٗ فِي قُلُوبِهِمۡۗ وَٱللَّهُ يُحۡيِۦ وَيُمِيتُۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ

ऐ ईमानदारों उन लोगों के ऐसे न बनो जो काफ़िर हो गए भाई बन्द उनके परदेस में निकले हैं या जेहाद करने गए हैं (और वहॉ) मर (गए) तो उनके बारे में कहने लगे कि वह हमारे पास रहते तो न मरते ओर न मारे जाते (और ये इस वजह से कहते हैं) ताकि ख़ुदा (इस ख्याल को) उनके दिलों में (बाइसे) हसरत बना दे और (यूं तो) ख़ुदा ही जिलाता और मारता है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है
Surah Aal-e-Imran, Verse 156


وَلَئِن قُتِلۡتُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَوۡ مُتُّمۡ لَمَغۡفِرَةٞ مِّنَ ٱللَّهِ وَرَحۡمَةٌ خَيۡرٞ مِّمَّا يَجۡمَعُونَ

और अगर तुम ख़ुदा की राह में मारे जाओ या (अपनी मौत से) मर जाओ तो बेशक ख़ुदा की बख्शिश और रहमत इस (माल व दौलत) से जिसको तुम जमा करते हो ज़रूर बेहतर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 157


وَلَئِن مُّتُّمۡ أَوۡ قُتِلۡتُمۡ لَإِلَى ٱللَّهِ تُحۡشَرُونَ

और अगर तुम (अपनी मौत से) मरो या मारे जाओ (आख़िरकार) ख़ुदा ही की तरफ़ (क़ब्रों से) उठाए जाओगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 158


فَبِمَا رَحۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ لِنتَ لَهُمۡۖ وَلَوۡ كُنتَ فَظًّا غَلِيظَ ٱلۡقَلۡبِ لَٱنفَضُّواْ مِنۡ حَوۡلِكَۖ فَٱعۡفُ عَنۡهُمۡ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لَهُمۡ وَشَاوِرۡهُمۡ فِي ٱلۡأَمۡرِۖ فَإِذَا عَزَمۡتَ فَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُتَوَكِّلِينَ

(तो ऐ रसूल ये भी) ख़ुदा की एक मेहरबानी है कि तुम (सा) नरमदिल (सरदार) उनको मिला और तुम अगर बदमिज़ाज और सख्त दिल होते तब तो ये लोग (ख़ुदा जाने कब के) तुम्हारे गिर्द से तितर बितर हो गए होते पस (अब भी) तुम उनसे दरगुज़र करो और उनके लिए मग़फेरत की दुआ मॉगो और (साबिक़ दस्तूरे ज़ाहिरा) उनसे काम काज में मशवरा कर लिया करो (मगर) इस पर भी जब किसी काम को ठान लो तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखो (क्योंकि जो लोग ख़ुदा पर भरोसा रखते हैं ख़ुदा उनको ज़रूर दोस्त रखता है)
Surah Aal-e-Imran, Verse 159


إِن يَنصُرۡكُمُ ٱللَّهُ فَلَا غَالِبَ لَكُمۡۖ وَإِن يَخۡذُلۡكُمۡ فَمَن ذَا ٱلَّذِي يَنصُرُكُم مِّنۢ بَعۡدِهِۦۗ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ

(मुसलमानों याद रखो) अगर ख़ुदा ने तुम्हारी मदद की तो फिर कोई तुमपर ग़ालिब नहीं आ सकता और अगर ख़ुदा तुमको छोड़ दे तो फिर कौन ऐसा है जो उसके बाद तुम्हारी मदद को खड़ा हो और मोमिनीन को चाहिये कि ख़ुदा ही पर भरोसा रखें
Surah Aal-e-Imran, Verse 160


وَمَا كَانَ لِنَبِيٍّ أَن يَغُلَّۚ وَمَن يَغۡلُلۡ يَأۡتِ بِمَا غَلَّ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ ثُمَّ تُوَفَّىٰ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ

और (तुम्हारा गुमान बिल्कुल ग़लत है) किसी नबी की (हरगिज़) ये शान नहीं कि ख्यानत करे और ख्यानत करेगा तो जो चीज़ ख्यानत की है क़यामत के दिन वही चीज़ (बिलकुल वैसा ही) ख़ुदा के सामने लाना होगा फिर हर शख्स अपने किए का पूरा पूरा बदला पाएगा और उनकी किसी तरह हक़तल्फ़ी नहीं की जाएगी
Surah Aal-e-Imran, Verse 161


أَفَمَنِ ٱتَّبَعَ رِضۡوَٰنَ ٱللَّهِ كَمَنۢ بَآءَ بِسَخَطٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأۡوَىٰهُ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ

भला जो शख्स ख़ुदा की ख़ुशनूदी का पाबन्द हो क्या वह उस शख्स के बराबर हो सकता है जो ख़ुदा के गज़ब में गिरफ्तार हो और जिसका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है
Surah Aal-e-Imran, Verse 162


هُمۡ دَرَجَٰتٌ عِندَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا يَعۡمَلُونَ

वह लोग खुदा के यहॉ मुख्तलिफ़ दरजों के हैं और जो कुछ वह करते हैं ख़ुदा देख रहा है
Surah Aal-e-Imran, Verse 163


لَقَدۡ مَنَّ ٱللَّهُ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ إِذۡ بَعَثَ فِيهِمۡ رَسُولٗا مِّنۡ أَنفُسِهِمۡ يَتۡلُواْ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتِهِۦ وَيُزَكِّيهِمۡ وَيُعَلِّمُهُمُ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَإِن كَانُواْ مِن قَبۡلُ لَفِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ

ख़ुदा ने तो ईमानदारों पर बड़ा एहसान किया कि उनके वास्ते उन्हीं की क़ौम का एक रसूल भेजा जो उन्हें खुदा की आयतें पढ़ पढ़ के सुनाता है और उनकी तबीयत को पाकीज़ा करता है और उन्हें किताबे (ख़ुदा) और अक्ल की बातें सिखाता है अगरचे वह पहले खुली हुई गुमराही में पडे थे
Surah Aal-e-Imran, Verse 164


أَوَلَمَّآ أَصَٰبَتۡكُم مُّصِيبَةٞ قَدۡ أَصَبۡتُم مِّثۡلَيۡهَا قُلۡتُمۡ أَنَّىٰ هَٰذَاۖ قُلۡ هُوَ مِنۡ عِندِ أَنفُسِكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ

मुसलमानों क्या जब तुमपर (जंगे ओहद) में वह मुसीबत पड़ी जिसकी दूनी मुसीबत तुम (कुफ्फ़ार पर) डाल चुके थे तो (घबरा के) कहने लगे ये (आफ़त) कहॉ से आ गयी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये तो खुद तुम्हारी ही तरफ़ से है (न रसूल की मुख़ालेफ़त करते न सज़ा होती) बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 165


وَمَآ أَصَٰبَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡتَقَى ٱلۡجَمۡعَانِ فَبِإِذۡنِ ٱللَّهِ وَلِيَعۡلَمَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ

और जिस दिन दो जमाअतें आपस में गुंथ गयीं उस दिन तुम पर जो मुसीबत पड़ी वह तुम्हारी शरारत की वजह से (ख़ुदा के इजाजत की वजह से आयी) और ताकि ख़ुदा सच्चे ईमान वालों को देख ले
Surah Aal-e-Imran, Verse 166


وَلِيَعۡلَمَ ٱلَّذِينَ نَافَقُواْۚ وَقِيلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡاْ قَٰتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَوِ ٱدۡفَعُواْۖ قَالُواْ لَوۡ نَعۡلَمُ قِتَالٗا لَّٱتَّبَعۡنَٰكُمۡۗ هُمۡ لِلۡكُفۡرِ يَوۡمَئِذٍ أَقۡرَبُ مِنۡهُمۡ لِلۡإِيمَٰنِۚ يَقُولُونَ بِأَفۡوَٰهِهِم مَّا لَيۡسَ فِي قُلُوبِهِمۡۚ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِمَا يَكۡتُمُونَ

और मुनाफ़िक़ों को देख ले (कि कौन है) और मुनाफ़िक़ों से कहा गया कि आओ ख़ुदा की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुशमन को) हटा दो तो कहने लगे (हाए क्या कहीं) अगर हम लड़ना जानते तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते ये लोग उस दिन बनिस्बते ईमान के कुफ़्र के ज्यादा क़रीब थे अपने मुंह से वह बातें कह देते हैं जो उनके दिल में (ख़ाक) नहीं होतीं और जिसे वह छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है
Surah Aal-e-Imran, Verse 167


ٱلَّذِينَ قَالُواْ لِإِخۡوَٰنِهِمۡ وَقَعَدُواْ لَوۡ أَطَاعُونَا مَا قُتِلُواْۗ قُلۡ فَٱدۡرَءُواْ عَنۡ أَنفُسِكُمُ ٱلۡمَوۡتَ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ

(ये वही लोग हैं) जो (आप चैन से घरों में बैठे रहते है और अपने शहीद) भाईयों के बारे में कहने लगे काश हमारी पैरवी करते तो न मारे जाते (ऐ रसूल) उनसे कहो (अच्छा) अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा अपनी जान से मौत को टाल दो
Surah Aal-e-Imran, Verse 168


وَلَا تَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ قُتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ أَمۡوَٰتَۢاۚ بَلۡ أَحۡيَآءٌ عِندَ رَبِّهِمۡ يُرۡزَقُونَ

और जो लोग ख़ुदा की राह में शहीद किए गए उन्हें हरगिज़ मुर्दा न समझना बल्कि वह लोग जीते जागते मौजूद हैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से वह (तरह तरह की) रोज़ी पाते हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 169


فَرِحِينَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ وَيَسۡتَبۡشِرُونَ بِٱلَّذِينَ لَمۡ يَلۡحَقُواْ بِهِم مِّنۡ خَلۡفِهِمۡ أَلَّا خَوۡفٌ عَلَيۡهِمۡ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ

और ख़ुदा ने जो फ़ज़ल व करम उन पर किया है उसकी (ख़ुशी) से फूले नहीं समाते और जो लोग उनसे पीछे रह गए और उनमें आकर शामिल नहीं हुए उनकी निस्बत ये (ख्याल करके) ख़ुशियॉ मनाते हैं कि (ये भी शहीद हों तो) उनपर न किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे
Surah Aal-e-Imran, Verse 170


۞يَسۡتَبۡشِرُونَ بِنِعۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَفَضۡلٖ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجۡرَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ

ख़ुदा नेअमत और उसके फ़ज़ल (व करम) और इस बात की ख़ुशख़बरी पाकर कि ख़ुदा मोमिनीन के सवाब को बरबाद नहीं करता
Surah Aal-e-Imran, Verse 171


ٱلَّذِينَ ٱسۡتَجَابُواْ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِ مِنۢ بَعۡدِ مَآ أَصَابَهُمُ ٱلۡقَرۡحُۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ مِنۡهُمۡ وَٱتَّقَوۡاْ أَجۡرٌ عَظِيمٌ

निहाल हो रहे हैं (जंगे ओहद में) जिन लोगों ने जख्म खाने के बाद भी ख़ुदा और रसूल का कहना माना उनमें से जिन लोगों ने नेकी और परहेज़गारी की (सब के लिये नहीं सिर्फ) उनके लिये बड़ा सवाब है
Surah Aal-e-Imran, Verse 172


ٱلَّذِينَ قَالَ لَهُمُ ٱلنَّاسُ إِنَّ ٱلنَّاسَ قَدۡ جَمَعُواْ لَكُمۡ فَٱخۡشَوۡهُمۡ فَزَادَهُمۡ إِيمَٰنٗا وَقَالُواْ حَسۡبُنَا ٱللَّهُ وَنِعۡمَ ٱلۡوَكِيلُ

यह वह हैं कि जब उनसे लोगों ने आकर कहना शुरू किया कि (दुशमन) लोगों ने तुम्हारे (मुक़ाबले के) वास्ते (बड़ा लश्कर) जमा किया है पस उनसे डरते (तो बजाए ख़ौफ़ के) उनका ईमान और ज्यादा हो गया और कहने लगे (होगा भी) ख़ुदा हमारे वास्ते काफ़ी है
Surah Aal-e-Imran, Verse 173


فَٱنقَلَبُواْ بِنِعۡمَةٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَفَضۡلٖ لَّمۡ يَمۡسَسۡهُمۡ سُوٓءٞ وَٱتَّبَعُواْ رِضۡوَٰنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ ذُو فَضۡلٍ عَظِيمٍ

और वह क्या अच्छा कारसाज़ है फिर (या तो हिम्मत करके गए मगर जब लड़ाई न हुई तो) ये लोग ख़ुदा की नेअमत और फ़ज़ल के साथ (अपने घर) वापस आए और उन्हें कोई बुराई छू भी नहीं गयी और ख़ुदा की ख़ुशनूदी के पाबन्द रहे और ख़ुदा बड़ा फ़ज़ल करने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 174


إِنَّمَا ذَٰلِكُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ يُخَوِّفُ أَوۡلِيَآءَهُۥ فَلَا تَخَافُوهُمۡ وَخَافُونِ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ

यह (मुख्बिर) बस शैतान था जो सिर्फ़ अपने दोस्तों को (रसूल का साथ देने से) डराता है पस तुम उनसे तो डरो नहीं अगर सच्चे मोमिन हो तो मुझ ही से डरते रहो
Surah Aal-e-Imran, Verse 175


وَلَا يَحۡزُنكَ ٱلَّذِينَ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡكُفۡرِۚ إِنَّهُمۡ لَن يَضُرُّواْ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۚ يُرِيدُ ٱللَّهُ أَلَّا يَجۡعَلَ لَهُمۡ حَظّٗا فِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٌ

और (ऐ रसूल) जो लोग कुफ़्र की (मदद) में पेश क़दमी कर जाते हैं उनकी वजह से तुम रन्ज न करो क्योंकि ये लोग ख़ुदा को कुछ ज़रर नहीं पहुँचा सकते (बल्कि) ख़ुदा तो ये चाहता है कि आख़ेरत में उनका हिस्सा न क़रार दे और उनके लिए बड़ा (सख्त) अज़ाब है
Surah Aal-e-Imran, Verse 176


إِنَّ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلۡكُفۡرَ بِٱلۡإِيمَٰنِ لَن يَضُرُّواْ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ

बेशक जिन लोगों ने ईमान के एवज़ कुफ़्र ख़रीद किया वह हरगिज़ खुदा का कुछ भी नहीं बिगाड़ेंगे (बल्कि आप अपना) और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है
Surah Aal-e-Imran, Verse 177


وَلَا يَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّمَا نُمۡلِي لَهُمۡ خَيۡرٞ لِّأَنفُسِهِمۡۚ إِنَّمَا نُمۡلِي لَهُمۡ لِيَزۡدَادُوٓاْ إِثۡمٗاۖ وَلَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ

और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तियार किया वह हरगिज़ ये न ख्याल करें कि हमने जो उनको मोहलत व बेफिक्री दे रखी है वह उनके हक़ में बेहतर है (हालॉकि) हमने मोहल्लत व बेफिक्री सिर्फ इस वजह से दी है ताकि वह और ख़ूब गुनाह कर लें और (आख़िर तो) उनके लिए रूसवा करने वाला अज़ाब है
Surah Aal-e-Imran, Verse 178


مَّا كَانَ ٱللَّهُ لِيَذَرَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ عَلَىٰ مَآ أَنتُمۡ عَلَيۡهِ حَتَّىٰ يَمِيزَ ٱلۡخَبِيثَ مِنَ ٱلطَّيِّبِۗ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُطۡلِعَكُمۡ عَلَى ٱلۡغَيۡبِ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَجۡتَبِي مِن رُّسُلِهِۦ مَن يَشَآءُۖ فَـَٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦۚ وَإِن تُؤۡمِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَلَكُمۡ أَجۡرٌ عَظِيمٞ

(मुनाफ़िक़ो) ख़ुदा ऐसा नहीं कि बुरे भले की तमीज़ किए बगैर जिस हालत पर तुम हो उसी हालत पर मोमिनों को भी छोड़ दे और ख़ुदा ऐसा भी नहीं है कि तुम्हें गैब की बातें बता दे मगर (हॉ) ख़ुदा अपने रसूलों में जिसे चाहता है (गैब बताने के वास्ते) चुन लेता है पस ख़ुदा और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और अगर तुम ईमान लाओगे और परहेज़गारी करोगे तो तुम्हारे वास्ते बड़ी जज़ाए ख़ैर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 179


وَلَا يَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ يَبۡخَلُونَ بِمَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦ هُوَ خَيۡرٗا لَّهُمۖ بَلۡ هُوَ شَرّٞ لَّهُمۡۖ سَيُطَوَّقُونَ مَا بَخِلُواْ بِهِۦ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ وَلِلَّهِ مِيرَٰثُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ

और जिन लोगों को ख़ुदा ने अपने फ़ज़ल (व करम) से कुछ दिया है (और फिर) बुख्ल करते हैं वह हरगिज़ इस ख्याल में न रहें कि ये उनके लिए (कुछ) बेहतर होगा बल्कि ये उनके हक़ में बदतर है क्योंकि जिस (माल) का बुख्ल करते हैं अनक़रीब ही क़यामत के दिन उसका तौक़ बनाकर उनके गले में पहनाया जाएगा और सारे आसमान व ज़मीन की मीरास ख़ुदा ही की है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है
Surah Aal-e-Imran, Verse 180


لَّقَدۡ سَمِعَ ٱللَّهُ قَوۡلَ ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ فَقِيرٞ وَنَحۡنُ أَغۡنِيَآءُۘ سَنَكۡتُبُ مَا قَالُواْ وَقَتۡلَهُمُ ٱلۡأَنۢبِيَآءَ بِغَيۡرِ حَقّٖ وَنَقُولُ ذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡحَرِيقِ

जो लोग (यहूद) ये कहते हैं कि ख़ुदा तो कंगाल है और हम बड़े मालदार हैं ख़ुदा ने उनकी ये बकवास सुनी उन लोगों ने जो कुछ किया उसको और उनका पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करना हम अभी से लिख लेते हैं और (आज तो जो जी में कहें मगर क़यामत के दिन) हम कहेंगे कि अच्छा तो लो (अपनी शरारत के एवज़ में) जलाने वाले अज़ाब का मज़ा चखो
Surah Aal-e-Imran, Verse 181


ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيۡسَ بِظَلَّامٖ لِّلۡعَبِيدِ

ये उन्हीं कामों का बदला है जिनको तुम्हारे हाथों ने (ज़ादे आख़ेरत बना कर) पहले से भेजा है वरना ख़ुदा तो कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं
Surah Aal-e-Imran, Verse 182


ٱلَّذِينَ قَالُوٓاْ إِنَّ ٱللَّهَ عَهِدَ إِلَيۡنَآ أَلَّا نُؤۡمِنَ لِرَسُولٍ حَتَّىٰ يَأۡتِيَنَا بِقُرۡبَانٖ تَأۡكُلُهُ ٱلنَّارُۗ قُلۡ قَدۡ جَآءَكُمۡ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِي بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَبِٱلَّذِي قُلۡتُمۡ فَلِمَ قَتَلۡتُمُوهُمۡ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ

(यह वही लोग हैं) जो कहते हैं कि ख़ुदा ने तो हमसे वायदा किया है कि जब तक कोई रसूल हमें ये (मौजिज़ा) न दिखा दे कि वह कुरबानी करे और उसको (आसमानी) आग आकर चट कर जाए उस वक्त तक हम ईमान न लाएंगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (भला) ये तो बताओ बहुतेरे पैग़म्बर मुझसे क़ब्ल तुम्हारे पास वाजे व रौशन मौजिज़ात और जिस चीज़ की तुमने (उस वक्त) फ़रमाइश की है (वह भी) लेकर आए फिर तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे तो तुमने क्यों क़त्ल किया
Surah Aal-e-Imran, Verse 183


فَإِن كَذَّبُوكَ فَقَدۡ كُذِّبَ رُسُلٞ مِّن قَبۡلِكَ جَآءُو بِٱلۡبَيِّنَٰتِ وَٱلزُّبُرِ وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُنِيرِ

(ऐ रसूल) अगर वह इस पर भी तुम्हें झुठलाएं तो (तुम आज़ुर्दा न हो क्योंकि) तुमसे पहले भी बहुत से पैग़म्बर रौशन मौजिज़े और सहीफे और नूरानी किताब लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर भी लोगों ने आख़िर झुठला ही छोड़ा
Surah Aal-e-Imran, Verse 184


كُلُّ نَفۡسٖ ذَآئِقَةُ ٱلۡمَوۡتِۗ وَإِنَّمَا تُوَفَّوۡنَ أُجُورَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۖ فَمَن زُحۡزِحَ عَنِ ٱلنَّارِ وَأُدۡخِلَ ٱلۡجَنَّةَ فَقَدۡ فَازَۗ وَمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَآ إِلَّا مَتَٰعُ ٱلۡغُرُورِ

हर जान एक न एक (दिन) मौत का मज़ा चखेगी और तुम लोग क़यामत के दिन (अपने किए का) पूरा पूरा बदला भर पाओगे पस जो शख्स जहन्नुम से हटा दिया गया और बहिश्त में पहुंचा दिया गया पस वही कामयाब हुआ और दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी धोखे की टट्टी के सिवा कुछ नहीं
Surah Aal-e-Imran, Verse 185


۞لَتُبۡلَوُنَّ فِيٓ أَمۡوَٰلِكُمۡ وَأَنفُسِكُمۡ وَلَتَسۡمَعُنَّ مِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَمِنَ ٱلَّذِينَ أَشۡرَكُوٓاْ أَذٗى كَثِيرٗاۚ وَإِن تَصۡبِرُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ذَٰلِكَ مِنۡ عَزۡمِ ٱلۡأُمُورِ

(मुसलमानों) तुम्हारे मालों और जानों का तुमसे ज़रूर इम्तेहान लिया जाएगा और जिन लोगो को तुम से पहले किताबे ख़ुदा दी जा चुकी है (यहूद व नसारा) उनसे और मुशरेकीन से बहुत ही दुख दर्द की बातें तुम्हें ज़रूर सुननी पड़ेंगी और अगर तुम (उन मुसीबतों को) झेल जाओगे और परहेज़गारी करते रहोगे तो बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है
Surah Aal-e-Imran, Verse 186


وَإِذۡ أَخَذَ ٱللَّهُ مِيثَٰقَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ لَتُبَيِّنُنَّهُۥ لِلنَّاسِ وَلَا تَكۡتُمُونَهُۥ فَنَبَذُوهُ وَرَآءَ ظُهُورِهِمۡ وَٱشۡتَرَوۡاْ بِهِۦ ثَمَنٗا قَلِيلٗاۖ فَبِئۡسَ مَا يَشۡتَرُونَ

और (ऐ रसूल) इनको वह वक्त तो याद दिलाओ जब ख़ुदा ने अहले किताब से एहद व पैमान लिया था कि तुम किताबे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान कर देना और (ख़बरदार) उसकी कोई बात छुपाना नहीं मगर इन लोगों ने (ज़रा भी ख्याल न किया) और उनको पसे पुश्त फेंक दिया और उसके बदले में (बस) थोड़ी सी क़ीमत हासिल कर ली पस ये क्या ही बुरा (सौदा) है जो ये लोग ख़रीद रहे हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 187


لَا تَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ يَفۡرَحُونَ بِمَآ أَتَواْ وَّيُحِبُّونَ أَن يُحۡمَدُواْ بِمَا لَمۡ يَفۡعَلُواْ فَلَا تَحۡسَبَنَّهُم بِمَفَازَةٖ مِّنَ ٱلۡعَذَابِۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ

(ऐ रसूल) तुम उन्हें ख्याल में भी न लाना जो अपनी कारस्तानी पर इतराए जाते हैं और किया कराया ख़ाक नहीं (मगर) तारीफ़ के ख़ास्तगार (चाहते) हैं पस तुम हरगिज़ ये ख्याल न करना कि इनको अज़ाब से छुटकारा है बल्कि उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है
Surah Aal-e-Imran, Verse 188


وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ

और आसमान व ज़मीन सब ख़ुदा ही का मुल्क है और ख़ुदा ही हर चीज़ पर क़ादिर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 189


إِنَّ فِي خَلۡقِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَٱخۡتِلَٰفِ ٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ لَأٓيَٰتٖ لِّأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ

इसमें तो शक ही नहीं कि आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के फेर बदल में अक्लमन्दों के लिए (क़ुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानियॉ हैं
Surah Aal-e-Imran, Verse 190


ٱلَّذِينَ يَذۡكُرُونَ ٱللَّهَ قِيَٰمٗا وَقُعُودٗا وَعَلَىٰ جُنُوبِهِمۡ وَيَتَفَكَّرُونَ فِي خَلۡقِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ رَبَّنَا مَا خَلَقۡتَ هَٰذَا بَٰطِلٗا سُبۡحَٰنَكَ فَقِنَا عَذَابَ ٱلنَّارِ

जो लोग उठते बैठते करवट लेते (अलगरज़ हर हाल में) ख़ुदा का ज़िक्र करते हैं और आसमानों और ज़मीन की बनावट में ग़ौर व फ़िक्र करते हैं और (बेसाख्ता) कह उठते हैं कि ख़ुदावन्दा तूने इसको बेकार पैदा नहीं किया तू (फेले अबस से) पाक व पाकीज़ा है बस हमको दोज़क के अज़ाब से बचा
Surah Aal-e-Imran, Verse 191


رَبَّنَآ إِنَّكَ مَن تُدۡخِلِ ٱلنَّارَ فَقَدۡ أَخۡزَيۡتَهُۥۖ وَمَا لِلظَّـٰلِمِينَ مِنۡ أَنصَارٖ

ऐ हमारे पालने वाले जिसको तूने दोज़ख़ में डाला तो यक़ीनन उसे रूसवा कर डाला और जुल्म करने वाले का कोई मददगार नहीं
Surah Aal-e-Imran, Verse 192


رَّبَّنَآ إِنَّنَا سَمِعۡنَا مُنَادِيٗا يُنَادِي لِلۡإِيمَٰنِ أَنۡ ءَامِنُواْ بِرَبِّكُمۡ فَـَٔامَنَّاۚ رَبَّنَا فَٱغۡفِرۡ لَنَا ذُنُوبَنَا وَكَفِّرۡ عَنَّا سَيِّـَٔاتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ ٱلۡأَبۡرَارِ

ऐ हमारे पालने वाले (जब) हमने एक आवाज़ लगाने वाले (पैग़म्बर) को सुना कि वह (ईमान के वास्ते यूं पुकारता था) कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ तो हम ईमान लाए पस ऐ हमारे पालने वाले हमें हमारे गुनाह बख्श दे और हमारी बुराईयों को हमसे दूर करे दे और हमें नेकों के साथ (दुनिया से) उठा ले
Surah Aal-e-Imran, Verse 193


رَبَّنَا وَءَاتِنَا مَا وَعَدتَّنَا عَلَىٰ رُسُلِكَ وَلَا تُخۡزِنَا يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۖ إِنَّكَ لَا تُخۡلِفُ ٱلۡمِيعَادَ

और ऐ पालने वाले अपने रसूलों की मार्फत जो कुछ हमसे वायदा किया है हमें दे और हमें क़यामत के दिन रूसवा न कर तू तो वायदा ख़िलाफ़ी करता ही नहीं
Surah Aal-e-Imran, Verse 194


فَٱسۡتَجَابَ لَهُمۡ رَبُّهُمۡ أَنِّي لَآ أُضِيعُ عَمَلَ عَٰمِلٖ مِّنكُم مِّن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰۖ بَعۡضُكُم مِّنۢ بَعۡضٖۖ فَٱلَّذِينَ هَاجَرُواْ وَأُخۡرِجُواْ مِن دِيَٰرِهِمۡ وَأُوذُواْ فِي سَبِيلِي وَقَٰتَلُواْ وَقُتِلُواْ لَأُكَفِّرَنَّ عَنۡهُمۡ سَيِّـَٔاتِهِمۡ وَلَأُدۡخِلَنَّهُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ ثَوَابٗا مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ عِندَهُۥ حُسۡنُ ٱلثَّوَابِ

तो उनके परवरदिगार ने दुआ कुबूल कर ली और (फ़रमाया) कि हम तुममें से किसी काम करने वाले के काम को अकारत नहीं करते मर्द हो या औरत (उस में कुछ किसी की खुसूसियत नहीं क्योंकि) तुम एक दूसरे (की जिन्स) से हो जो लोग (हमारे लिए वतन आवारा हुए) और शहर बदर किए गए और उन्होंने हमारी राह में अज़ीयतें उठायीं और (कुफ्फ़र से) जंग की और शहीद हुए मैं उनकी बुराईयों से ज़रूर दरगुज़र करूंगा और उन्हें बेहिश्त के उन बाग़ों में ले जाऊॅगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं ख़ुदा के यहॉ ये उनके किये का बदला है और ख़ुदा (ऐसा ही है कि उस) के यहॉ तो अच्छा ही बदला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 195


لَا يَغُرَّنَّكَ تَقَلُّبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي ٱلۡبِلَٰدِ

(ऐ रसूल) काफ़िरों का शहरों शहरों चैन करते फिरना तुम्हे धोखे में न डाले
Surah Aal-e-Imran, Verse 196


مَتَٰعٞ قَلِيلٞ ثُمَّ مَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمِهَادُ

ये चन्द रोज़ा फ़ायदा हैं फिर तो (आख़िरकार) उनका ठिकाना जहन्नुम ही है और क्या ही बुरा ठिकाना है
Surah Aal-e-Imran, Verse 197


لَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ جَنَّـٰتٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا نُزُلٗا مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِۗ وَمَا عِندَ ٱللَّهِ خَيۡرٞ لِّلۡأَبۡرَارِ

मगर जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की परहेज़गारी (इख्तेयार की उनके लिए बेहिश्त के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारीं हैं और वह हमेशा उसी में रहेंगे ये ख़ुदा की तरफ़ से उनकी (दावत है और जो साज़ो सामान) ख़ुदा के यहॉ है वह नेको कारों के वास्ते दुनिया से कहीं बेहतर है
Surah Aal-e-Imran, Verse 198


وَإِنَّ مِنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ لَمَن يُؤۡمِنُ بِٱللَّهِ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُمۡ وَمَآ أُنزِلَ إِلَيۡهِمۡ خَٰشِعِينَ لِلَّهِ لَا يَشۡتَرُونَ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ ثَمَنٗا قَلِيلًاۚ أُوْلَـٰٓئِكَ لَهُمۡ أَجۡرُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ

और अहले किताब में से कुछ लोग तो ऐसे ज़रूर हैं जो ख़ुदा पर और जो (किताब) तुम पर नाज़िल हुई और जो (किताब) उनपर नाज़िल हुई (सब पर) ईमान रखते हैं ख़ुदा के आगे सर झुकाए हुए हैं और ख़ुदा की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फ़ायदे) नहीं लेते ऐसे ही लोगों के वास्ते उनके परवरदिगार के यहॉ अच्छा बदला है बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब करने वाला है
Surah Aal-e-Imran, Verse 199


يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱصۡبِرُواْ وَصَابِرُواْ وَرَابِطُواْ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ

ऐ ईमानदारों (दीन की तकलीफ़ों को) और दूसरों को बर्दाश्त की तालीम दो और (जिहाद के लिए) कमरें कस लो और ख़ुदा ही से डरो ताकि तुम अपनी दिली मुराद पाओ
Surah Aal-e-Imran, Verse 200


Author: Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi


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