ظَهَرَ ٱلۡفَسَادُ فِي ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ بِمَا كَسَبَتۡ أَيۡدِي ٱلنَّاسِ لِيُذِيقَهُم بَعۡضَ ٱلَّذِي عَمِلُواْ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ
फैल गया उपद्रव जल तथा[1] थल में लोगों के करतूतों के कारण, ताकि वह चखाये उन्हें उनका कुछ कर्म, संभवतः वे रूक जायें।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari