Surah An-Nisa Verse 92 - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
Surah An-Nisaوَمَا كَانَ لِمُؤۡمِنٍ أَن يَقۡتُلَ مُؤۡمِنًا إِلَّا خَطَـٔٗاۚ وَمَن قَتَلَ مُؤۡمِنًا خَطَـٔٗا فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖ وَدِيَةٞ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦٓ إِلَّآ أَن يَصَّدَّقُواْۚ فَإِن كَانَ مِن قَوۡمٍ عَدُوّٖ لَّكُمۡ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖۖ وَإِن كَانَ مِن قَوۡمِۭ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُم مِّيثَٰقٞ فَدِيَةٞ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦ وَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖۖ فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ شَهۡرَيۡنِ مُتَتَابِعَيۡنِ تَوۡبَةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا
किसी ईमान वाले के लिए वैध नहीं कि वो किसी ईमान वाले की हत्या कर दे, परन्तु चूक[1] से। फिर जो किसी ईमान वाले की चूक से हत्या कर दे, तो उसे एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और उसके घर वालों को दियत (अर्थदण्ड)[2] देना है, परन्तु ये कि वे दान (क्षमा) कर दें। फिर यदि वह (निहत) उस जाति में से हो, जो तुम्हारी शत्रु है और वह (निहत) ईमान वाला है, तो एक ईमान वाला दास मुक्त करना है और यदि ऐसी क़ौम से हो, जिसके और तुम्हारे बीच संधि है, तो उसके घर वालों को अर्थदण्ड देना तथा एक ईमान वाला दास (भी) मुक्त करना है और जो दास न पाये, उसे निरन्तर दो महीने रोज़ा रखना है। अल्लाह की ओर से (उसके पाप की) यही क्षमा है और अल्लाह अति ज्ञानी तत्वज्ञ है।