Surah Al-Araf Verse 169 - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
Surah Al-Arafفَخَلَفَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ خَلۡفٞ وَرِثُواْ ٱلۡكِتَٰبَ يَأۡخُذُونَ عَرَضَ هَٰذَا ٱلۡأَدۡنَىٰ وَيَقُولُونَ سَيُغۡفَرُ لَنَا وَإِن يَأۡتِهِمۡ عَرَضٞ مِّثۡلُهُۥ يَأۡخُذُوهُۚ أَلَمۡ يُؤۡخَذۡ عَلَيۡهِم مِّيثَٰقُ ٱلۡكِتَٰبِ أَن لَّا يَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡحَقَّ وَدَرَسُواْ مَا فِيهِۗ وَٱلدَّارُ ٱلۡأٓخِرَةُ خَيۡرٞ لِّلَّذِينَ يَتَّقُونَۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
फिर उनके पीछे कुछ ऐसे लोगों ने उनकी जगह ली, जो पुस्तक के उत्तराधिकारी होकर भी तुच्छ संसार का लाभ समेटने लगे और कहने लगे कि हमें क्षमा कर दिया जायेगा और यदि उसी के समान उन्हें लाभ हाथ आ जाये, तो उसे भी ले लेंगे। क्या उनसे पुस्तक का दृढ़ वचन नहीं लिया गया है कि अल्लाह पर सच ही बोलेंगे, जबकि पुस्तक में जो कुछ है, उसका अध्ययन कर चुके हैं? और परलोक का घर (स्वर्ग) उत्तम है, उनके लिए जो अल्लाह से डरते हों। तो क्या वे इतना भी नहीं[1] समझते