وَمَا كَانَ صَلَاتُهُمۡ عِندَ ٱلۡبَيۡتِ إِلَّا مُكَآءٗ وَتَصۡدِيَةٗۚ فَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ
और अल्लाह के घर (काबा) के पास इनकी नमाज़ इसके सिवा क्या थी कि सीटियाँ और तालियाँ बजायें? तो अब[1] अपने कुफ़्र (अस्वीकार) के बदले यातना का स्वाद चखो।
Author: Maulana Azizul Haque Al Umari