Surah Al-Anfal - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
يَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلۡأَنفَالِۖ قُلِ ٱلۡأَنفَالُ لِلَّهِ وَٱلرَّسُولِۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَصۡلِحُواْ ذَاتَ بَيۡنِكُمۡۖ وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ إِن كُنتُم مُّؤۡمِنِينَ
(हे नबी!) आपसे (आपके साथी) युध्द में प्राप्त धन के विषय में प्रश्न कर रहे हैं। कह दें कि यूध्द में प्राप्त धन अल्लाह और रसूल के हैं। अतः अल्लाह से डरो और आपस में सुधार रखो तथा अल्लाह और उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो[1] यदि तुम ईमान वाले हो।
Surah Al-Anfal, Verse 1
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَجِلَتۡ قُلُوبُهُمۡ وَإِذَا تُلِيَتۡ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُهُۥ زَادَتۡهُمۡ إِيمَٰنٗا وَعَلَىٰ رَبِّهِمۡ يَتَوَكَّلُونَ
वास्तव में, ईमान वाले वही हैं कि जब अल्लाह का वर्णन किया जाये, तो उनके दिल काँप उठते हैं और जब उनके समक्ष उसकी आयतें पढ़ी जायें, तो उनका ईमान अधिक हो जाता है और वे अपने पालनहार पर ही भरोसा रखते हैं।
Surah Al-Anfal, Verse 2
ٱلَّذِينَ يُقِيمُونَ ٱلصَّلَوٰةَ وَمِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ يُنفِقُونَ
जो नमाज़ की स्थापना करते हैं तथा हमने उन्हें जो कुछ प्रदान किया है, उसमें से दान करते हैं।
Surah Al-Anfal, Verse 3
أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقّٗاۚ لَّهُمۡ دَرَجَٰتٌ عِندَ رَبِّهِمۡ وَمَغۡفِرَةٞ وَرِزۡقٞ كَرِيمٞ
वही सच्चे ईमान वाले हैं, उन्हीं के लिए उनके पालनहार के पास श्रेणियाँ तथा क्षमा और उत्तम जीविका है।
Surah Al-Anfal, Verse 4
كَمَآ أَخۡرَجَكَ رَبُّكَ مِنۢ بَيۡتِكَ بِٱلۡحَقِّ وَإِنَّ فَرِيقٗا مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ لَكَٰرِهُونَ
जिस प्रकार,[1] आपको, आपके पालनहार ने, आपके घर (मदीना) से (मिश्रणवादियों से युध्द के लिए सत्य के साथ) निकाला, जबकि ईमान वालों का एक समुदाय इससे अप्रसन्न था।
Surah Al-Anfal, Verse 5
يُجَٰدِلُونَكَ فِي ٱلۡحَقِّ بَعۡدَ مَا تَبَيَّنَ كَأَنَّمَا يُسَاقُونَ إِلَى ٱلۡمَوۡتِ وَهُمۡ يَنظُرُونَ
वे आपसे सच (युध्द) के बारे में झगड़ रहे थे, जबकि वह उजागर हो गया था, (कि युध्द होना है, उनकी ये ह़ालत थी,) जैसे वे मौत की ओर हाँके जा रहे हों और वे उसे देख रहे हों।
Surah Al-Anfal, Verse 6
وَإِذۡ يَعِدُكُمُ ٱللَّهُ إِحۡدَى ٱلطَّآئِفَتَيۡنِ أَنَّهَا لَكُمۡ وَتَوَدُّونَ أَنَّ غَيۡرَ ذَاتِ ٱلشَّوۡكَةِ تَكُونُ لَكُمۡ وَيُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُحِقَّ ٱلۡحَقَّ بِكَلِمَٰتِهِۦ وَيَقۡطَعَ دَابِرَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
तथा (वह समय याद करो) जब अल्लाह तुम्हें वचन दे रहा था कि दो गिरोहों में एक तुम्हारे हाथ आयेगा और तुम चाहते थे कि निर्बल गिरोह तुम्हारे हाथ लगे[1]। परन्तु अल्लाह चाहता था कि अपने वचन द्वारा सत्य को सिध्द कर दे और काफ़िरों की जड़ काट दे।
Surah Al-Anfal, Verse 7
لِيُحِقَّ ٱلۡحَقَّ وَيُبۡطِلَ ٱلۡبَٰطِلَ وَلَوۡ كَرِهَ ٱلۡمُجۡرِمُونَ
इस प्रकार सत्य को सत्य और असत्य को असत्य कर दे। यद्यपि अपराधियों को बुरा लगे।
Surah Al-Anfal, Verse 8
إِذۡ تَسۡتَغِيثُونَ رَبَّكُمۡ فَٱسۡتَجَابَ لَكُمۡ أَنِّي مُمِدُّكُم بِأَلۡفٖ مِّنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ مُرۡدِفِينَ
जब तुम अपने पालनहार को (बद्र के युध्द के समय) गुहार रहे थे। तो उसने तुम्हारी प्रार्थना सुन ली। (और कहाः) मैं तुम्हारी सहायता के लिए लगातार एक हज़ार फ़रिश्ते भेज रहा[1] हूँ।
Surah Al-Anfal, Verse 9
وَمَا جَعَلَهُ ٱللَّهُ إِلَّا بُشۡرَىٰ وَلِتَطۡمَئِنَّ بِهِۦ قُلُوبُكُمۡۚ وَمَا ٱلنَّصۡرُ إِلَّا مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ
और अल्लाह ने ये इसलिए बता दिया, ताकि (तुम्हारे लिए) शुभ सूचना हो और ताकि तुम्हारे दिलों को संतोष हो जाये। अन्यथा सहायता तो अल्लाह ही की ओर से होती है। वास्तव में, अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
Surah Al-Anfal, Verse 10
إِذۡ يُغَشِّيكُمُ ٱلنُّعَاسَ أَمَنَةٗ مِّنۡهُ وَيُنَزِّلُ عَلَيۡكُم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ لِّيُطَهِّرَكُم بِهِۦ وَيُذۡهِبَ عَنكُمۡ رِجۡزَ ٱلشَّيۡطَٰنِ وَلِيَرۡبِطَ عَلَىٰ قُلُوبِكُمۡ وَيُثَبِّتَ بِهِ ٱلۡأَقۡدَامَ
और वह समय याद करो जब अल्लाह अपनी ओर से शान्ति के लिए तुमपर ऊँघ डाल रहा था और तुमपर आकाश से जल बरसा रहा था, ताकि तुम्हें स्वच्छ कर दे और तुमसे शैतान की मलीनता दूर कर दे और तुम्हारे दिलों को साहस दे और (तुम्हारे) पाँव जमा दे[1]।
Surah Al-Anfal, Verse 11
إِذۡ يُوحِي رَبُّكَ إِلَى ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ أَنِّي مَعَكُمۡ فَثَبِّتُواْ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْۚ سَأُلۡقِي فِي قُلُوبِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلرُّعۡبَ فَٱضۡرِبُواْ فَوۡقَ ٱلۡأَعۡنَاقِ وَٱضۡرِبُواْ مِنۡهُمۡ كُلَّ بَنَانٖ
(हे नबी!) ये वो समय था, जब आपका पालनहार फ़रिश्तों को संकेत कर रहा था कि मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम ईमान वालों को स्थिर रखो, मैं कीफ़िरों के दिलों में भय डाल दूँगा। तो (हे मुसलमानों!) तुम उनकी गरदनों पर तथा पोर-पोर पर आघात पहुँचाओ।
Surah Al-Anfal, Verse 12
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ شَآقُّواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ وَمَن يُشَاقِقِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
ये इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया तथा जो अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करेगा, तो निश्चय अल्लाह उसे कड़ी यातना देने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 13
ذَٰلِكُمۡ فَذُوقُوهُ وَأَنَّ لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابَ ٱلنَّارِ
ये है (तुम्हारी यातना), तो इसका स्वाद चखो और (जान लो कि) काफ़िरों के लिए नरक की यातना (भी) है।
Surah Al-Anfal, Verse 14
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا لَقِيتُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ زَحۡفٗا فَلَا تُوَلُّوهُمُ ٱلۡأَدۡبَارَ
हे इमान वालो! जब काफ़िरों की सेना से भिड़ो, तो उन्हें पीठ न दिखाओ।
Surah Al-Anfal, Verse 15
وَمَن يُوَلِّهِمۡ يَوۡمَئِذٖ دُبُرَهُۥٓ إِلَّا مُتَحَرِّفٗا لِّقِتَالٍ أَوۡ مُتَحَيِّزًا إِلَىٰ فِئَةٖ فَقَدۡ بَآءَ بِغَضَبٖ مِّنَ ٱللَّهِ وَمَأۡوَىٰهُ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
और जो कोई उस दिन अपनी पीठ दिखायेगा, परन्तु फिरकर आक्रमण करने अथवा (अपने) किसी गिरोह से मिलने के लिए, तो वह अल्लाह के प्रकोप में घिर जायेगा और उसका स्थान नरक है और वह बहुत ही बुरा स्थान है।
Surah Al-Anfal, Verse 16
فَلَمۡ تَقۡتُلُوهُمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ قَتَلَهُمۡۚ وَمَا رَمَيۡتَ إِذۡ رَمَيۡتَ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ رَمَىٰ وَلِيُبۡلِيَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ مِنۡهُ بَلَآءً حَسَنًاۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
अतः (रणक्षेत्र में) उन्हें वध तुमने नहीं किया, परन्तु अल्लाह ने उन्हें वध किया और हे नबी! आपने नहीं फेंका, जब फेंका, परन्तु अल्लाह ने फेंका। और (ये इसलिए हुआ) ताकि अल्लाह इसके द्वारा ईमान वालों की एक उत्तम परीक्षा ले। वास्तव में, अल्लाह सबकुछ सुनने और जानने[1] वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 17
ذَٰلِكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مُوهِنُ كَيۡدِ ٱلۡكَٰفِرِينَ
ये सब तुम्हारे लिए हो गया और अल्लाह काफ़िरों की चालों को निर्बल करने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 18
إِن تَسۡتَفۡتِحُواْ فَقَدۡ جَآءَكُمُ ٱلۡفَتۡحُۖ وَإِن تَنتَهُواْ فَهُوَ خَيۡرٞ لَّكُمۡۖ وَإِن تَعُودُواْ نَعُدۡ وَلَن تُغۡنِيَ عَنكُمۡ فِئَتُكُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَوۡ كَثُرَتۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
यदि तुम[1] निर्णय चाहते हो, तो तुम्हारे सामने निर्णय आ गया है और यदि तुम रुक जाओ, तो तुम्हारे लिए उत्तम है और यदि फिर पहले जैसा करोगे, तो हमभी वैसा ही करेंगे और तुम्हारा जत्था तुम्हारे कुछ काम नहीं आयेगा, यद्यपि अधिक हो और निश्चय अल्लाह ईमान वालों के साथ है।
Surah Al-Anfal, Verse 19
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَوَلَّوۡاْ عَنۡهُ وَأَنتُمۡ تَسۡمَعُونَ
हे ईमान वालो! अल्लाह के आज्ञाकारी रहो तथा उसके रसूल के और उससे मुँह न फेरो, जबकि सुन रहे हो।
Surah Al-Anfal, Verse 20
وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَهُمۡ لَا يَسۡمَعُونَ
तथा उनके समान[1] न हो जाओ, जिन्होंने कहा कि हमने सुन लिया, जबकि वास्तव में वे सुनते नहीं थे।
Surah Al-Anfal, Verse 21
۞إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَآبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلصُّمُّ ٱلۡبُكۡمُ ٱلَّذِينَ لَا يَعۡقِلُونَ
वास्तव में, अल्लाह के हाँ सबसे बुरे पशु वे (मानव) हैं, जो बहरे-गूँगे हों, जो कुछ समझते न हों।
Surah Al-Anfal, Verse 22
وَلَوۡ عَلِمَ ٱللَّهُ فِيهِمۡ خَيۡرٗا لَّأَسۡمَعَهُمۡۖ وَلَوۡ أَسۡمَعَهُمۡ لَتَوَلَّواْ وَّهُم مُّعۡرِضُونَ
और यदि अल्लाह उनमें कुछ भी भलाई जानता, तो उन्हें सुना देता और यदि उन्हें सुना भी दे, तो भी वे मुँह फेर लेंगे और वे विमुख हैं ही।
Surah Al-Anfal, Verse 23
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱسۡتَجِيبُواْ لِلَّهِ وَلِلرَّسُولِ إِذَا دَعَاكُمۡ لِمَا يُحۡيِيكُمۡۖ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَحُولُ بَيۡنَ ٱلۡمَرۡءِ وَقَلۡبِهِۦ وَأَنَّهُۥٓ إِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ
हे ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल की पुकार सुनो, जब तुम्हें उसकी ओर बुलाये, जो तुम्हारी[1] (आत्मा) को जीवन प्रदान करे और जान लो कि अल्लाह मानव और उसके दिल के बीच आड़े[2] आ जाता है और निःसंदेह तुम उसी के पास (अपने कर्म फल के लिए) एकत्र किये जाओगे।
Surah Al-Anfal, Verse 24
وَٱتَّقُواْ فِتۡنَةٗ لَّا تُصِيبَنَّ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنكُمۡ خَآصَّةٗۖ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
तथा उस आपदा से डरो, जो तुममें से अत्याचारियों पर ही विशेष रूप से नहीं आयेगी और विश्वास रखो[1] कि अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 25
وَٱذۡكُرُوٓاْ إِذۡ أَنتُمۡ قَلِيلٞ مُّسۡتَضۡعَفُونَ فِي ٱلۡأَرۡضِ تَخَافُونَ أَن يَتَخَطَّفَكُمُ ٱلنَّاسُ فَـَٔاوَىٰكُمۡ وَأَيَّدَكُم بِنَصۡرِهِۦ وَرَزَقَكُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ لَعَلَّكُمۡ تَشۡكُرُونَ
तथा वो समय याद करो, जबतुम (मक्का में) बहुत थोड़े निर्बल समझे जाते थे। तुम डर रहे थे कि लोग तुम्हें उचक न लें। तो अल्लाह ने तुम्हें (मदीना में) शरण दी और अपनी सहायता द्वारा तुम्हें समर्थन दिया और तुम्हें स्वच्छ जीविका प्रदान की, ताकि तुम कृतज्ञ रहो।
Surah Al-Anfal, Verse 26
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَخُونُواْ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ وَتَخُونُوٓاْ أَمَٰنَٰتِكُمۡ وَأَنتُمۡ تَعۡلَمُونَ
हे ईमान वालो! अल्लाह तथा उसके रसूल के साथ विश्वासघात न करो और न अपनी अमानतों (कर्तव्य) के साथ विश्वासघात[1] करो, जानते हुए।
Surah Al-Anfal, Verse 27
وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّمَآ أَمۡوَٰلُكُمۡ وَأَوۡلَٰدُكُمۡ فِتۡنَةٞ وَأَنَّ ٱللَّهَ عِندَهُۥٓ أَجۡرٌ عَظِيمٞ
तथा जान लो कि तुम्हारा धन और तुम्हारी संतान एक परीक्षा हैं तथा ये कि अल्लाह के पास बड़ा प्रतिफल है।
Surah Al-Anfal, Verse 28
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن تَتَّقُواْ ٱللَّهَ يَجۡعَل لَّكُمۡ فُرۡقَانٗا وَيُكَفِّرۡ عَنكُمۡ سَيِّـَٔاتِكُمۡ وَيَغۡفِرۡ لَكُمۡۗ وَٱللَّهُ ذُو ٱلۡفَضۡلِ ٱلۡعَظِيمِ
हे ईमान वालो! यदि तुम अल्लाह से डरोगे, तो तुम्हें विवेक[1] प्रदान करेगा तथा तुमसे तुम्हारी बुराईयाँ दूर कर देगा, तुम्हे क्षमा कर देगा और अल्लाह बड़ा दयाशील है।
Surah Al-Anfal, Verse 29
وَإِذۡ يَمۡكُرُ بِكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لِيُثۡبِتُوكَ أَوۡ يَقۡتُلُوكَ أَوۡ يُخۡرِجُوكَۚ وَيَمۡكُرُونَ وَيَمۡكُرُ ٱللَّهُۖ وَٱللَّهُ خَيۡرُ ٱلۡمَٰكِرِينَ
तथा (हे नबी! वो समय याद करो) जब (मक्का में) काफ़िर आपके विरुध्द षड्यंत्र रच रहे थे, ताकि आपको क़ैद कर लें, वध कर दें अथवा देश निकाला दे दें तथा वे षड्यंत्र रच रहे थे और अल्लह अपना उपाय कर रहा था और अल्लाह का उपाय[1] सबसे उत्तम है।
Surah Al-Anfal, Verse 30
وَإِذَا تُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ ءَايَٰتُنَا قَالُواْ قَدۡ سَمِعۡنَا لَوۡ نَشَآءُ لَقُلۡنَا مِثۡلَ هَٰذَآ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّآ أَسَٰطِيرُ ٱلۡأَوَّلِينَ
और जब उनको हमारी आयतें सुनाई जाती हैं, तो कहते हैः हमने (इसे) सुन लिया है। यदि हम चाहें, तो इसी (क़ुर्आन) जैसी बातें कह दें। ये तो वही प्राचीन लोगों की कथायें हैं।
Surah Al-Anfal, Verse 31
وَإِذۡ قَالُواْ ٱللَّهُمَّ إِن كَانَ هَٰذَا هُوَ ٱلۡحَقَّ مِنۡ عِندِكَ فَأَمۡطِرۡ عَلَيۡنَا حِجَارَةٗ مِّنَ ٱلسَّمَآءِ أَوِ ٱئۡتِنَا بِعَذَابٍ أَلِيمٖ
तथा (याद करो) जब उन्होंने कहाः हे अल्लाह! यदि ये[1] तेरी ओर से सत्य है, तो हमपर आकाश से पत्थरों की वर्षा कर दे अथवा हमपर दुःखदायी यातना ले आ।
Surah Al-Anfal, Verse 32
وَمَا كَانَ ٱللَّهُ لِيُعَذِّبَهُمۡ وَأَنتَ فِيهِمۡۚ وَمَا كَانَ ٱللَّهُ مُعَذِّبَهُمۡ وَهُمۡ يَسۡتَغۡفِرُونَ
और अल्लाह उन्हें यातना नहीं दे सकता था, जब तक आप उनके बीच थे और न उन्हें यातना देने वाला है, जब तक वे क्षमा याचना कर रहे हों।
Surah Al-Anfal, Verse 33
وَمَا لَهُمۡ أَلَّا يُعَذِّبَهُمُ ٱللَّهُ وَهُمۡ يَصُدُّونَ عَنِ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَمَا كَانُوٓاْ أَوۡلِيَآءَهُۥٓۚ إِنۡ أَوۡلِيَآؤُهُۥٓ إِلَّا ٱلۡمُتَّقُونَ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
और अब उनपर क्यों न यातना उतारे, जबकि वे सम्मानित मस्जिद (काबा) से रोक रहे हैं, जबकि वे उसके संरक्षक नहीं हैं। उसके संरक्षक तो केवल अल्लाह के आज्ञाकारी हैं, परन्तु अधिकांश लोग (इसे) नहीं जानते।
Surah Al-Anfal, Verse 34
وَمَا كَانَ صَلَاتُهُمۡ عِندَ ٱلۡبَيۡتِ إِلَّا مُكَآءٗ وَتَصۡدِيَةٗۚ فَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَ بِمَا كُنتُمۡ تَكۡفُرُونَ
और अल्लाह के घर (काबा) के पास इनकी नमाज़ इसके सिवा क्या थी कि सीटियाँ और तालियाँ बजायें? तो अब[1] अपने कुफ़्र (अस्वीकार) के बदले यातना का स्वाद चखो।
Surah Al-Anfal, Verse 35
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمۡ لِيَصُدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۚ فَسَيُنفِقُونَهَا ثُمَّ تَكُونُ عَلَيۡهِمۡ حَسۡرَةٗ ثُمَّ يُغۡلَبُونَۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ يُحۡشَرُونَ
जो काफ़िर हो गये, वे अपना धन इसलिए ख़र्च करते हैं कि अल्लाह की राह से रोक दें। तो वे अपना धन ख़र्च करते रहेंगे, फिर (वो समय आयेगा कि) वह उनके लिए पछतावे का कारण हो जायेगा। फिर पराजित होंगे तथा जो काफ़िर हो गये, वे नरक की ओर हाँक दिये जायेंगे।
Surah Al-Anfal, Verse 36
لِيَمِيزَ ٱللَّهُ ٱلۡخَبِيثَ مِنَ ٱلطَّيِّبِ وَيَجۡعَلَ ٱلۡخَبِيثَ بَعۡضَهُۥ عَلَىٰ بَعۡضٖ فَيَرۡكُمَهُۥ جَمِيعٗا فَيَجۡعَلَهُۥ فِي جَهَنَّمَۚ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
ताकि अल्लाह मलीन को पवित्र से अलग कर दे तथा मलीनों को एक-दूसरे से मिला दे। फिर सबका ढेर बना दे और उन्हें नरक में फेंक दे, यही क्षतिग्रस्त हैं।
Surah Al-Anfal, Verse 37
قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِن يَنتَهُواْ يُغۡفَرۡ لَهُم مَّا قَدۡ سَلَفَ وَإِن يَعُودُواْ فَقَدۡ مَضَتۡ سُنَّتُ ٱلۡأَوَّلِينَ
(हे नबी!) इन काफ़िरों से कह दोः यदि वे रुक[1] गये, तो जो कुछ हो गया है, वह उनसे क्षमा कर दिया जायेगा और यदि पहले जैसा ही करेंगे, तो अगली जातियों की दुर्गत हो चुकी है।
Surah Al-Anfal, Verse 38
وَقَٰتِلُوهُمۡ حَتَّىٰ لَا تَكُونَ فِتۡنَةٞ وَيَكُونَ ٱلدِّينُ كُلُّهُۥ لِلَّهِۚ فَإِنِ ٱنتَهَوۡاْ فَإِنَّ ٱللَّهَ بِمَا يَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ
हे ईमान वालो! उनसे उस समय तक युध्द करो कि[1] फ़ित्ना (अत्याचार तथा उपद्रव) समाप्त हो जाये और धर्म पूरा अल्लाह के लिए हो जाये। तो यदि वे (अत्याचार से) रुक जायें तो अल्लाह उनके कर्मों को देख रहा है।
Surah Al-Anfal, Verse 39
وَإِن تَوَلَّوۡاْ فَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَوۡلَىٰكُمۡۚ نِعۡمَ ٱلۡمَوۡلَىٰ وَنِعۡمَ ٱلنَّصِيرُ
और यदि वे मुँह फेरें, तो जान लो कि अल्लाह रक्षक है और वह क्या ही अच्छा संरक्षक तथा क्या ही अच्छा सहायक है
Surah Al-Anfal, Verse 40
۞وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّمَا غَنِمۡتُم مِّن شَيۡءٖ فَأَنَّ لِلَّهِ خُمُسَهُۥ وَلِلرَّسُولِ وَلِذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِيلِ إِن كُنتُمۡ ءَامَنتُم بِٱللَّهِ وَمَآ أَنزَلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا يَوۡمَ ٱلۡفُرۡقَانِ يَوۡمَ ٱلۡتَقَى ٱلۡجَمۡعَانِۗ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ
और जान[1] लो कि तुम्हें जो कुछ ग़नीमत में मिला है, उसका पाँचवाँ भाग अल्लाह तथा रसूल और (आपके) समीपवर्तियों तथा अनाथों, निर्धनों और यात्रियों के लिए है, यदि तुम अल्लाह पर तथा उस (सहायता) पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने भक्त पर निर्णय[2] के दिन उतारी, जिस दिन, दो सेनायें भिड़ गईं और अल्लाह जो चाहे, कर सकता है।
Surah Al-Anfal, Verse 41
إِذۡ أَنتُم بِٱلۡعُدۡوَةِ ٱلدُّنۡيَا وَهُم بِٱلۡعُدۡوَةِ ٱلۡقُصۡوَىٰ وَٱلرَّكۡبُ أَسۡفَلَ مِنكُمۡۚ وَلَوۡ تَوَاعَدتُّمۡ لَٱخۡتَلَفۡتُمۡ فِي ٱلۡمِيعَٰدِ وَلَٰكِن لِّيَقۡضِيَ ٱللَّهُ أَمۡرٗا كَانَ مَفۡعُولٗا لِّيَهۡلِكَ مَنۡ هَلَكَ عَنۢ بَيِّنَةٖ وَيَحۡيَىٰ مَنۡ حَيَّ عَنۢ بَيِّنَةٖۗ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَسَمِيعٌ عَلِيمٌ
तथा उस समय को याद करो जब तुम (रणक्षेत्र में) इधर के किनारे तथा वे (शत्रु) उधर के किनारे पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे था। यदि तुम आपस में (युध्द का) निश्चय करते, तो निश्चित समय से अवश्य कतरा जाते। परन्तु अल्लाह ने (दोनों को भिड़ा दिया) ताकि जो होना था, उसका निर्णय कर दे, ताकि जो मरे, वह खुले प्रमाण के पश्चात मरे और जो जीवित रहे, वह खुले प्रमाण के साथ जीवित रहे और वस्तुतः अल्लाह सबकुछ सुनने-जानने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 42
إِذۡ يُرِيكَهُمُ ٱللَّهُ فِي مَنَامِكَ قَلِيلٗاۖ وَلَوۡ أَرَىٰكَهُمۡ كَثِيرٗا لَّفَشِلۡتُمۡ وَلَتَنَٰزَعۡتُمۡ فِي ٱلۡأَمۡرِ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ سَلَّمَۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
तथा (हे नबी! वो समय याद करें) जब आपको, (अल्लाह) आपके सपने[1] में, उन्हें (शत्रु को) थोड़ा दिखा रहा था और यदि उन्हें आपको अधिक दिखा देता, तो तुम साहस खो देते और इस (युध्द के) विषय में आपस में झगड़ने लगते। परन्तु अल्लाह ने तुम्हें बचा लिया। वास्तव में, वह सीनों (अन्तरात्मा) की बातों से भली-भाँति अवगत है।
Surah Al-Anfal, Verse 43
وَإِذۡ يُرِيكُمُوهُمۡ إِذِ ٱلۡتَقَيۡتُمۡ فِيٓ أَعۡيُنِكُمۡ قَلِيلٗا وَيُقَلِّلُكُمۡ فِيٓ أَعۡيُنِهِمۡ لِيَقۡضِيَ ٱللَّهُ أَمۡرٗا كَانَ مَفۡعُولٗاۗ وَإِلَى ٱللَّهِ تُرۡجَعُ ٱلۡأُمُورُ
तथा (याद करो उस समय को) जब अल्लाह उन (शत्रु) को लड़ाई के समय तुम्हारी आँखों में तुम्हारे लिए थोड़ा करके दिखा रहा था और इनकी आँखों में तुम्हें थोड़ा करके दिखा रहा था, ताकि जो होना था, अल्लाह उसका निर्णय कर दे और सभी कर्म अल्लाह ही की ओर फेरे[1] जाते हैं।
Surah Al-Anfal, Verse 44
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا لَقِيتُمۡ فِئَةٗ فَٱثۡبُتُواْ وَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ كَثِيرٗا لَّعَلَّكُمۡ تُفۡلِحُونَ
हे ईमान वालो! जब (आक्रमणकारियों) के किसी गिरोह से भिड़ो, तो जम जाओ तथा अल्लाह को बहुत याद करो, ताकि तुम सफल रहो।
Surah Al-Anfal, Verse 45
وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَا تَنَٰزَعُواْ فَتَفۡشَلُواْ وَتَذۡهَبَ رِيحُكُمۡۖ وَٱصۡبِرُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
तथा अल्लाह और उसके रसूल के आज्ञाकारी रहो और आपस में विवाद न करो, अन्यथा तुम कमज़ोर हो जाओगे और तुम्हारी हवा उखड़ जायेगी तथा धैर्य से काम लो, वास्तव में, अल्लाह धैर्यवानों के साथ है।
Surah Al-Anfal, Verse 46
وَلَا تَكُونُواْ كَٱلَّذِينَ خَرَجُواْ مِن دِيَٰرِهِم بَطَرٗا وَرِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِۚ وَٱللَّهُ بِمَا يَعۡمَلُونَ مُحِيطٞ
और उन[1] के समान न हो जाओ, जो अपने घरों से इतराते हुए तथा लोगों को दिखाते हुए निकले और वे अल्लाह की राह (इस्लाम) से लोगों को रोकते हैं और अल्लाह उनके कर्मों को (अपने ज्ञान के) घेरे में लिए हुए है।
Surah Al-Anfal, Verse 47
وَإِذۡ زَيَّنَ لَهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَعۡمَٰلَهُمۡ وَقَالَ لَا غَالِبَ لَكُمُ ٱلۡيَوۡمَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَإِنِّي جَارٞ لَّكُمۡۖ فَلَمَّا تَرَآءَتِ ٱلۡفِئَتَانِ نَكَصَ عَلَىٰ عَقِبَيۡهِ وَقَالَ إِنِّي بَرِيٓءٞ مِّنكُمۡ إِنِّيٓ أَرَىٰ مَا لَا تَرَوۡنَ إِنِّيٓ أَخَافُ ٱللَّهَۚ وَٱللَّهُ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
जब शैतान[1] ने उनके लिए उनके कुकर्मों को शोभनीय बना दिया था और उस (शैतान) ने कहाः आज तुमपर कोई प्रभुत्व नहीं पा सकता और मैं तुम्हारा सहायक हूँ। फिर जब दोनों सेनायें सम्मुख हो गईं, तो अपनी एड़ियों के बल फिर गया और कह दिया कि मैं तुमसे अलग हूँ। मैं जो देख रहा हूँ, तुम नहीं देखते। वास्तव में, मैं अल्लाह से डर रहा हूँ और अल्लाह कड़ी यातना देने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 48
إِذۡ يَقُولُ ٱلۡمُنَٰفِقُونَ وَٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ غَرَّ هَـٰٓؤُلَآءِ دِينُهُمۡۗ وَمَن يَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٞ
तथा (वो समय याद करो) जब मुनाफ़िक़ तथा जिनके दिलों में रोग है, वे कह रहे थे कि इन (मुसलमानों) को इनके धर्म ने धोखा दिया है तथा जो अल्लाह पर निर्भर करे, तो वास्तव में, अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
Surah Al-Anfal, Verse 49
وَلَوۡ تَرَىٰٓ إِذۡ يَتَوَفَّى ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَضۡرِبُونَ وُجُوهَهُمۡ وَأَدۡبَٰرَهُمۡ وَذُوقُواْ عَذَابَ ٱلۡحَرِيقِ
और क्या ही अच्छा होता, यदि आप उस दशा को देखते, जब फ़रिश्ते (बधिक) काफ़िरों के प्राण निकाल रहे थे, तो उनके मुखों और उनकी पीठों पर मार रहे थे तथा (कह रहे थे कि) दहन की यातना[1] चखो।
Surah Al-Anfal, Verse 50
ذَٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيكُمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ لَيۡسَ بِظَلَّـٰمٖ لِّلۡعَبِيدِ
यही तुम्हारे करतूतों का प्रतिफल है और अल्लाह अपने भक्तों पर अत्याचार करने वाला नहीं है।
Surah Al-Anfal, Verse 51
كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ فَأَخَذَهُمُ ٱللَّهُ بِذُنُوبِهِمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِيّٞ شَدِيدُ ٱلۡعِقَابِ
इनकी दशा भी फ़िरऔनियों तथा उनके जैसी हुई, जिन्होंने इससे पहले अल्लाह की आयतों को नकार दिया, तो अल्लाह ने उनके पापों के बदले उन्हें पकड़ लिया। वास्तव में, अल्लाह बड़ा शक्तिशाली, कड़ी यातना देने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 52
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ لَمۡ يَكُ مُغَيِّرٗا نِّعۡمَةً أَنۡعَمَهَا عَلَىٰ قَوۡمٍ حَتَّىٰ يُغَيِّرُواْ مَا بِأَنفُسِهِمۡ وَأَنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
अल्लाह का ये नियम है कि वह उस पुरस्कार में परिवर्तन करने वाला नहीं है, जो किसी जाति पर किया हो, जब तक वह स्वयं अपनी दशा में परिवर्तन न कर ले और वास्तव में, अल्लाह सबकुछ सुनने-जानने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 53
كَدَأۡبِ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِ رَبِّهِمۡ فَأَهۡلَكۡنَٰهُم بِذُنُوبِهِمۡ وَأَغۡرَقۡنَآ ءَالَ فِرۡعَوۡنَۚ وَكُلّٞ كَانُواْ ظَٰلِمِينَ
इनकी दशा फ़िरऔनियों तथा उन लोगों जैसी हुई, जो इनसे पहले थे, उन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठला दिया, तो हमने उन्हें उनके पापों के कारण ध्वस्त कर दिया तथा फ़िरऔनियों को डुबो दिया और वह सभी अत्याचारी[1] थे।
Surah Al-Anfal, Verse 54
إِنَّ شَرَّ ٱلدَّوَآبِّ عِندَ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ
वास्तव में, सबसे बुरे जीव अल्लाह के पास वो हैं, जो काफ़िर हो गये और ईमान नहीं लाये। ये वे[1] लोग हैं, जिनसे आपने संधि की, फिर वे प्रत्येक अवसर पर अपना वचन भंग कर देते हैं और (अल्लाह से) नहीं डरते।
Surah Al-Anfal, Verse 55
ٱلَّذِينَ عَٰهَدتَّ مِنۡهُمۡ ثُمَّ يَنقُضُونَ عَهۡدَهُمۡ فِي كُلِّ مَرَّةٖ وَهُمۡ لَا يَتَّقُونَ
ये वे[1] लोग हैं, जिनसे आपने संधि की। फिर वे प्रत्येक अवसर पर अपना वचन भंग कर देते हैं और (अल्लाह से) नहीं डरते।
Surah Al-Anfal, Verse 56
فَإِمَّا تَثۡقَفَنَّهُمۡ فِي ٱلۡحَرۡبِ فَشَرِّدۡ بِهِم مَّنۡ خَلۡفَهُمۡ لَعَلَّهُمۡ يَذَّكَّرُونَ
तो यदि ऐसे (वचनभंगी) आपको रणक्षेत्र में मिल जायें, तो उन्हें शिक्षाप्रद दण्ड दें, ताकि जो उनके पीछे हैं, वे शिक्षा ग्रहण करें।
Surah Al-Anfal, Verse 57
وَإِمَّا تَخَافَنَّ مِن قَوۡمٍ خِيَانَةٗ فَٱنۢبِذۡ إِلَيۡهِمۡ عَلَىٰ سَوَآءٍۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ ٱلۡخَآئِنِينَ
और यदि आपको किसी जाति से विश्वासघात (संधि भंग करने) का भय हो, तो बराबरी के आधार पर संधि तोड़[1] दें। क्योंकि अल्लाह विश्वासघातियों से प्रेम नहीं करता।
Surah Al-Anfal, Verse 58
وَلَا يَحۡسَبَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ سَبَقُوٓاْۚ إِنَّهُمۡ لَا يُعۡجِزُونَ
जो काफ़िर हो गये, वे कदापि ये न समझें कि हमसे आगे हो जायेंगे। निश्चय वे (हमें) विवश नहीं कर सकेंगे।
Surah Al-Anfal, Verse 59
وَأَعِدُّواْ لَهُم مَّا ٱسۡتَطَعۡتُم مِّن قُوَّةٖ وَمِن رِّبَاطِ ٱلۡخَيۡلِ تُرۡهِبُونَ بِهِۦ عَدُوَّ ٱللَّهِ وَعَدُوَّكُمۡ وَءَاخَرِينَ مِن دُونِهِمۡ لَا تَعۡلَمُونَهُمُ ٱللَّهُ يَعۡلَمُهُمۡۚ وَمَا تُنفِقُواْ مِن شَيۡءٖ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ يُوَفَّ إِلَيۡكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تُظۡلَمُونَ
तथा तुमसे जितनी हो सके, उनके लिए शक्ति तथा सीमा रक्षा के लिए घोड़े तैयार रखो, जिससे अल्लाह के शत्रुओं तथा अपने शत्रुओं को और इनके सिवा दूसरों को डराओ[1], जिन्हें तुम नहीं जानते, उन्हें अल्लाह ही जानता है और अल्लाह की राह में तुम जो भी व्यय (खर्च) करोगे, तुम्हें पूरा मिलेगा और तुमपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
Surah Al-Anfal, Verse 60
۞وَإِن جَنَحُواْ لِلسَّلۡمِ فَٱجۡنَحۡ لَهَا وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
और यदि वे (शत्रु) संधि की ओर झुकें, तो आपभी उसके लिए झुक जायें और अल्लाह पर भरोसा करें। निश्चय वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 61
وَإِن يُرِيدُوٓاْ أَن يَخۡدَعُوكَ فَإِنَّ حَسۡبَكَ ٱللَّهُۚ هُوَ ٱلَّذِيٓ أَيَّدَكَ بِنَصۡرِهِۦ وَبِٱلۡمُؤۡمِنِينَ
और यदि वे (संधि करके) आपको धोखा देना चाहेंगे, तो अल्लाह आपके लिए काफ़ी है। वही है, जिसने अपनी सहायता तथा ईमान वालों के द्वारा आपको समर्थन दिया है।
Surah Al-Anfal, Verse 62
وَأَلَّفَ بَيۡنَ قُلُوبِهِمۡۚ لَوۡ أَنفَقۡتَ مَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا مَّآ أَلَّفۡتَ بَيۡنَ قُلُوبِهِمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ أَلَّفَ بَيۡنَهُمۡۚ إِنَّهُۥ عَزِيزٌ حَكِيمٞ
और उनके दिलों को जाड़ दिया और यदि आप धरती में जोकुछ है, सब व्यय (खर्च) कर देते, तो भी उनके दिलों को नहीं जोड़ सकते थे। वास्तव में, अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ (निपुन) है।
Surah Al-Anfal, Verse 63
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ حَسۡبُكَ ٱللَّهُ وَمَنِ ٱتَّبَعَكَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
हे नबी! आपके लिए तथा आपके ईमान वाले साथियों के लिए अल्लाह काफ़ी है।
Surah Al-Anfal, Verse 64
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ حَرِّضِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ عَلَى ٱلۡقِتَالِۚ إِن يَكُن مِّنكُمۡ عِشۡرُونَ صَٰبِرُونَ يَغۡلِبُواْ مِاْئَتَيۡنِۚ وَإِن يَكُن مِّنكُم مِّاْئَةٞ يَغۡلِبُوٓاْ أَلۡفٗا مِّنَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِأَنَّهُمۡ قَوۡمٞ لَّا يَفۡقَهُونَ
हे नबी! ईमान वालों को युध्द की प्रेरणा दो[1]। यदि तुममें से बीस धैर्यवान होंगे, तो दो सौ पर विजयी प्राप्त कर लेंगे और यदि तुमसे सौ होंगे, तो उनकाफ़िरों के एक हज़ार पर विजयी प्राप्त कर लेंगे। इसलिए कि वे समझ-बूझ नहीं रखते।
Surah Al-Anfal, Verse 65
ٱلۡـَٰٔنَ خَفَّفَ ٱللَّهُ عَنكُمۡ وَعَلِمَ أَنَّ فِيكُمۡ ضَعۡفٗاۚ فَإِن يَكُن مِّنكُم مِّاْئَةٞ صَابِرَةٞ يَغۡلِبُواْ مِاْئَتَيۡنِۚ وَإِن يَكُن مِّنكُمۡ أَلۡفٞ يَغۡلِبُوٓاْ أَلۡفَيۡنِ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ مَعَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
अब अल्लाह ने तुम्हारा बोझ हल्का कर दिया और जान लिया कि तुममें कुछ निर्बलता है, तो यदि तुममें से सौ सहनशील हों, तो दो सौ पर विजय प्राप्त कर लेंगे और यदि तुममें से एक हज़ार हों, तो अल्लाह की अनुमति से दो हजार पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेंगे और अल्लाह सहनशीलों के साथ है[1]।
Surah Al-Anfal, Verse 66
مَا كَانَ لِنَبِيٍّ أَن يَكُونَ لَهُۥٓ أَسۡرَىٰ حَتَّىٰ يُثۡخِنَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ تُرِيدُونَ عَرَضَ ٱلدُّنۡيَا وَٱللَّهُ يُرِيدُ ٱلۡأٓخِرَةَۗ وَٱللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٞ
किसी नबी के लिए ये उचित न था कि उसके पास बंदी हों, जब तक कि धरती (रणक्षेत्र) में अच्छी तरह़ रक्तपात न कर दे। तुम सांसारिक लाभ चाहते हो और अल्लाह (तुम्हारे लिए) आख़िरत (परलोक) चाहता है और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।
Surah Al-Anfal, Verse 67
لَّوۡلَا كِتَٰبٞ مِّنَ ٱللَّهِ سَبَقَ لَمَسَّكُمۡ فِيمَآ أَخَذۡتُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ
यदि इसके बारे में, पहले से अल्लाह का लेख (निर्णय) न होता, तो जो (अर्थ दण्ड) तुमने लिया[1] है, उसके लेने में तुम्हें बड़ी यातना दी जाती।
Surah Al-Anfal, Verse 68
فَكُلُواْ مِمَّا غَنِمۡتُمۡ حَلَٰلٗا طَيِّبٗاۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
तो उस ग़नीमत में से[1] खाओ, वह ह़लाल (उचित) स्वच्छ है तथा अल्लाह के आज्ञाकारी रहो। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमा करने वाला, दयावान है।
Surah Al-Anfal, Verse 69
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ قُل لِّمَن فِيٓ أَيۡدِيكُم مِّنَ ٱلۡأَسۡرَىٰٓ إِن يَعۡلَمِ ٱللَّهُ فِي قُلُوبِكُمۡ خَيۡرٗا يُؤۡتِكُمۡ خَيۡرٗا مِّمَّآ أُخِذَ مِنكُمۡ وَيَغۡفِرۡ لَكُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
हे नबी! जो तुम्हारे हाथों में बंदी हैं, उनसे कह दो कि यदि अल्लाह ने तुम्हारे दिलों में कोई भलाई देखी, तो तुम्हें उससे उत्तम चीज़ (ईमान) प्रदान करेगा, जो (अर्थ दण्ड) तुमसे लिया गया है और तुम्हें क्षमा कर देगा और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान है।
Surah Al-Anfal, Verse 70
وَإِن يُرِيدُواْ خِيَانَتَكَ فَقَدۡ خَانُواْ ٱللَّهَ مِن قَبۡلُ فَأَمۡكَنَ مِنۡهُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ
और यदि वे आपके साथ विश्वासघात करना चाहेंगे, तो इससे पूर्व वे अल्लाह के साथ विश्वासघात कर चुके हैं। इसलिए अल्लाह ने उन्हें (आपके) वश में किया है तथा अल्लाह अति ज्ञानी, उपायजानने वाला है।
Surah Al-Anfal, Verse 71
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَٰهَدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ ءَاوَواْ وَّنَصَرُوٓاْ أُوْلَـٰٓئِكَ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِيَآءُ بَعۡضٖۚ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَلَمۡ يُهَاجِرُواْ مَا لَكُم مِّن وَلَٰيَتِهِم مِّن شَيۡءٍ حَتَّىٰ يُهَاجِرُواْۚ وَإِنِ ٱسۡتَنصَرُوكُمۡ فِي ٱلدِّينِ فَعَلَيۡكُمُ ٱلنَّصۡرُ إِلَّا عَلَىٰ قَوۡمِۭ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُم مِّيثَٰقٞۗ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٞ
निःसंदेह, जो ईमान लाये तथा हिजरत (परस्थान) कर गये और अल्लाह की राह में अपने धनों और प्राणों से जिहाद किये तथा जिन लोगों ने उन्हें शरण दिया तथा सहायता की, वही एक-दूसरे के सहायक हैं और जो ईमान नहीं लाये और न हिजरत (परस्थान) की, उनसे तुम्हारी सहायता का कोई संबंध नहीं, यहाँ तक कि हिजरत करके आ जायें और यदि वे धर्म के बारें में तुमसे सहायता मांगें, तो तुमपर उनकी सहायता करना आवश्यक है। परन्तु किसी ऐसी जाति के विरुध्द नहीं, जिनके और तुम्हारे बीच संधि हो तथा तुम जो कुछ कर रहे हो, उसे अल्लाह देख रहा है।
Surah Al-Anfal, Verse 72
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلِيَآءُ بَعۡضٍۚ إِلَّا تَفۡعَلُوهُ تَكُن فِتۡنَةٞ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَفَسَادٞ كَبِيرٞ
और कीफ़िर एक-दूसरे के समर्थक हैं और यदि तुम ऐसा न करोगे, तो धरती में उपद्रव तथा बड़ा बिगाड़ उत्पन्न हो जायेगा।
Surah Al-Anfal, Verse 73
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَهَاجَرُواْ وَجَٰهَدُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلَّذِينَ ءَاوَواْ وَّنَصَرُوٓاْ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ حَقّٗاۚ لَّهُم مَّغۡفِرَةٞ وَرِزۡقٞ كَرِيمٞ
तथ जो ईमान लाये, हिजरत कर गये, अल्लाह की राह में संघर्ष किया और जिन लोगों ने (उन्हें) शरण दी और (उनकी) सहायता की, वही सच्चे ईमान वाले हैं। उन्हीं के लिए क्षमा तथा उन्हीं के लिए उत्तम जीविका है।
Surah Al-Anfal, Verse 74
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنۢ بَعۡدُ وَهَاجَرُواْ وَجَٰهَدُواْ مَعَكُمۡ فَأُوْلَـٰٓئِكَ مِنكُمۡۚ وَأُوْلُواْ ٱلۡأَرۡحَامِ بَعۡضُهُمۡ أَوۡلَىٰ بِبَعۡضٖ فِي كِتَٰبِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمُۢ
तथा जो लोग इनके पश्चात् ईमान लाये और हिजरत कर गये और तुम्हारे साथ मिलकर संघर्ष किया, वही तुम्हारे अपने हैं और वही परिवारिक समीपवर्ती अल्लाह के लेख (आदेश) में अधिक समीप[1] हैं। वास्तव में, अललाह प्रत्येक चीज़ का अति ज्ञानी है।
Surah Al-Anfal, Verse 75