Surah Az-Zumar - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi
تَنزِيلُ ٱلۡكِتَٰبِ مِنَ ٱللَّهِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَكِيمِ
(इस) किताब (क़ुरान) का नाज़िल करना उस खुदा की बारगाह से है जो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है
Surah Az-Zumar, Verse 1
إِنَّآ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ فَٱعۡبُدِ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ
(ऐ रसूल) हमने किताब (कुरान) को बिल्कुल ठीक नाज़िल किया है तो तुम इबादत को उसी के लिए निरा खुरा करके खुदा की बन्दगी किया करो
Surah Az-Zumar, Verse 2
أَلَا لِلَّهِ ٱلدِّينُ ٱلۡخَالِصُۚ وَٱلَّذِينَ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ أَوۡلِيَآءَ مَا نَعۡبُدُهُمۡ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَآ إِلَى ٱللَّهِ زُلۡفَىٰٓ إِنَّ ٱللَّهَ يَحۡكُمُ بَيۡنَهُمۡ فِي مَا هُمۡ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَهۡدِي مَنۡ هُوَ كَٰذِبٞ كَفَّارٞ
आगाह रहो कि इबादत तो ख़ास खुदा ही के लिए है और जिन लोगों ने खुदा के सिवा (औरों को अपना) सरपरस्त बना रखा है और कहते हैं कि हम तो उनकी परसतिश सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि ये लोग खुदा की बारगाह में हमारा तक़र्रब बढ़ा देगें इसमें शक नहीं कि जिस बात में ये लोग झगड़ते हैं (क़यामत के दिन) खुदा उनके दरमियान इसमें फैसला कर देगा बेशक खुदा झूठे नाशुक्रे को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता
Surah Az-Zumar, Verse 3
لَّوۡ أَرَادَ ٱللَّهُ أَن يَتَّخِذَ وَلَدٗا لَّٱصۡطَفَىٰ مِمَّا يَخۡلُقُ مَا يَشَآءُۚ سُبۡحَٰنَهُۥۖ هُوَ ٱللَّهُ ٱلۡوَٰحِدُ ٱلۡقَهَّارُ
अगर खुदा किसी को (अपना) बेटा बनाना चाहता तो अपने मख़लूक़ात में से जिसे चाहता मुन्तखिब कर लेता (मगर) वह तो उससे पाक व पाकीज़ा है वह तो यकता बड़ा ज़बरदस्त अल्लाह है
Surah Az-Zumar, Verse 4
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۖ يُكَوِّرُ ٱلَّيۡلَ عَلَى ٱلنَّهَارِ وَيُكَوِّرُ ٱلنَّهَارَ عَلَى ٱلَّيۡلِۖ وَسَخَّرَ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ يَجۡرِي لِأَجَلٖ مُّسَمًّىۗ أَلَا هُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡغَفَّـٰرُ
उसी ने सारे आसमान और ज़मीन को बजा (दुरूस्त) पैदा किया वही रात को दिन पर ऊपर तले लपेटता है और वही दिन को रात पर तह ब तह लपेटता है और उसी ने आफताब और महताब को अपने बस में कर लिया है कि ये सबके सब अपने (अपने) मुक़रर्र वक्त चलते रहेगें आगाह रहो कि वही ग़ालिब बड़ा बख्शने वाला है
Surah Az-Zumar, Verse 5
خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ ثُمَّ جَعَلَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَأَنزَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ ثَمَٰنِيَةَ أَزۡوَٰجٖۚ يَخۡلُقُكُمۡ فِي بُطُونِ أُمَّهَٰتِكُمۡ خَلۡقٗا مِّنۢ بَعۡدِ خَلۡقٖ فِي ظُلُمَٰتٖ ثَلَٰثٖۚ ذَٰلِكُمُ ٱللَّهُ رَبُّكُمۡ لَهُ ٱلۡمُلۡكُۖ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۖ فَأَنَّىٰ تُصۡرَفُونَ
उसी ने तुम सबको एक ही शख्स से पैदा किया फिर उस (की बाक़ी मिट्टी) से उसकी बीबी (हौव्वा) को पैदा किया और उसी ने तुम्हारे लिए आठ क़िस्म के चारपाए पैदा किए वही तुमको तुम्हारी माँओं के पेट में एक क़िस्म की पैदाइश के बाद दूसरी क़िस्म (नुत्फे जमा हुआ खून लोथड़ा) की पैदाइश से तेहरे तेहरे अंधेरों (पेट) रहम और झिल्ली में पैदा करता है वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसी की बादशाही है उसके सिवा माबूद नहीं तो तुम लोग कहाँ फिरे जाते हो
Surah Az-Zumar, Verse 6
إِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَنِيٌّ عَنكُمۡۖ وَلَا يَرۡضَىٰ لِعِبَادِهِ ٱلۡكُفۡرَۖ وَإِن تَشۡكُرُواْ يَرۡضَهُ لَكُمۡۗ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۚ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُم مَّرۡجِعُكُمۡ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَۚ إِنَّهُۥ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
अगर तुमने उसकी नाशुक्री की तो (याद रखो कि) खुदा तुमसे बिल्कुल बेपरवाह है और अपने बन्दों से कुफ्र और नाशुक्री को पसन्द नहीं करता और अगर तुम शुक्र करोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते पसन्द करता है और (क़यामत में) कोई किसी (के गुनाह) का बोझ (अपनी गर्दन पर) नहीं उठाएगा फिर तुमको अपने परवरदिगार की तरफ लौटना है तो (दुनिया में) जो कुछ (भला बुरा) करते थे वह तुम्हें बता देगा वह यक़ीनन दिलों के राज़ (तक) से खूब वाक़िफ है
Surah Az-Zumar, Verse 7
۞وَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَا رَبَّهُۥ مُنِيبًا إِلَيۡهِ ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُۥ نِعۡمَةٗ مِّنۡهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدۡعُوٓاْ إِلَيۡهِ مِن قَبۡلُ وَجَعَلَ لِلَّهِ أَندَادٗا لِّيُضِلَّ عَن سَبِيلِهِۦۚ قُلۡ تَمَتَّعۡ بِكُفۡرِكَ قَلِيلًا إِنَّكَ مِنۡ أَصۡحَٰبِ ٱلنَّارِ
और आदमी (की हालत तो ये है कि) जब उसको कोई तकलीफ पहुँचती है तो उसी की तरफ रूजू करके अपने परवरदिगार से दुआ करता है (मगर) फिर जब खुदा अपनी तरफ से उसे नेअमत अता फ़रमा देता है तो जिस काम के लिए पहले उससे दुआ करता था उसे भुला देता है और बल्कि खुदा का शरीक बनाने लगता है ताकि (उस ज़रिए से और लोगों को भी) उसकी राह से गुमराह कर दे (ऐ रसूल ऐसे शख्स से) कह दो कि थोड़े दिनों और अपने कुफ्र (की हालत) में चैन कर लो
Surah Az-Zumar, Verse 8
أَمَّنۡ هُوَ قَٰنِتٌ ءَانَآءَ ٱلَّيۡلِ سَاجِدٗا وَقَآئِمٗا يَحۡذَرُ ٱلۡأٓخِرَةَ وَيَرۡجُواْ رَحۡمَةَ رَبِّهِۦۗ قُلۡ هَلۡ يَسۡتَوِي ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُونَ وَٱلَّذِينَ لَا يَعۡلَمُونَۗ إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
(आख़िर) तू यक़ीनी जहन्नुमियों में होगा क्या जो शख्स रात के अवक़ात में सजदा करके और खड़े-खड़े (खुदा की) इबादत करता हो और आख़ेरत से डरता हो अपने परवरदिगार की रहमत का उम्मीदवार हो (नाशुक्रे) काफिर के बराबर हो सकता है (ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि भला कहीं जानने वाले और न जाननेवाले लोग बराबर हो सकते हैं (मगर) नसीहत इबरतें तो बस अक्लमन्द ही लोग मानते हैं
Surah Az-Zumar, Verse 9
قُلۡ يَٰعِبَادِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمۡۚ لِلَّذِينَ أَحۡسَنُواْ فِي هَٰذِهِ ٱلدُّنۡيَا حَسَنَةٞۗ وَأَرۡضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةٌۗ إِنَّمَا يُوَفَّى ٱلصَّـٰبِرُونَ أَجۡرَهُم بِغَيۡرِ حِسَابٖ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे ईमानदार बन्दों अपने परवरदिगार (ही) से डरते रहो (क्योंकि) जिन लोगों ने इस दुनिया में नेकी की उन्हीं के लिए (आख़ेरत में) भलाई है और खुदा की ज़मीन तो कुशादा है (जहाँ इबादत न कर सको उसे छोड़ दो) सब्र करने वालों ही की तो उनका भरपूर बेहिसाब बदला दिया जाएगा
Surah Az-Zumar, Verse 10
قُلۡ إِنِّيٓ أُمِرۡتُ أَنۡ أَعۡبُدَ ٱللَّهَ مُخۡلِصٗا لَّهُ ٱلدِّينَ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं इबादत को उसके लिए ख़ास करके खुदा ही की बन्दगी करो
Surah Az-Zumar, Verse 11
وَأُمِرۡتُ لِأَنۡ أَكُونَ أَوَّلَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ
और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहल मुसलमान हूँ
Surah Az-Zumar, Verse 12
قُلۡ إِنِّيٓ أَخَافُ إِنۡ عَصَيۡتُ رَبِّي عَذَابَ يَوۡمٍ عَظِيمٖ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफरमानी करूँ तो मैं एक बड़ी (सख्त) दिन (क़यामत) के अज़ाब से डरता हूँ
Surah Az-Zumar, Verse 13
قُلِ ٱللَّهَ أَعۡبُدُ مُخۡلِصٗا لَّهُۥ دِينِي
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं अपनी इबादत को उसी के वास्ते ख़ालिस करके खुदा ही की बन्दगी करता हूँ (अब रहे तुम) तो उसके सिवा जिसको चाहो पूजो
Surah Az-Zumar, Verse 14
فَٱعۡبُدُواْ مَا شِئۡتُم مِّن دُونِهِۦۗ قُلۡ إِنَّ ٱلۡخَٰسِرِينَ ٱلَّذِينَ خَسِرُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَأَهۡلِيهِمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۗ أَلَا ذَٰلِكَ هُوَ ٱلۡخُسۡرَانُ ٱلۡمُبِينُ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि फिल हक़ीक़त घाटे में वही लोग हैं जिन्होंने अपना और अपने लड़के वालों का क़यामत के दिन घाटा किया आगाह रहो कि सरीही (खुल्लम खुल्ला) घाटा यही है कि उनके लिए उनके ऊपर से आग ही के ओढ़ने होगें
Surah Az-Zumar, Verse 15
لَهُم مِّن فَوۡقِهِمۡ ظُلَلٞ مِّنَ ٱلنَّارِ وَمِن تَحۡتِهِمۡ ظُلَلٞۚ ذَٰلِكَ يُخَوِّفُ ٱللَّهُ بِهِۦ عِبَادَهُۥۚ يَٰعِبَادِ فَٱتَّقُونِ
और उनके नीचे भी (आग ही के) बिछौने ये वह अज़ाब है जिससे खुदा अपने बन्दों को डराता है तो ऐ मेरे बन्दों मुझी से डरते रहो
Surah Az-Zumar, Verse 16
وَٱلَّذِينَ ٱجۡتَنَبُواْ ٱلطَّـٰغُوتَ أَن يَعۡبُدُوهَا وَأَنَابُوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ لَهُمُ ٱلۡبُشۡرَىٰۚ فَبَشِّرۡ عِبَادِ
और जो लोग बुतों से उनके पूजने से बचे रहे और ख़ुदा ही की तरफ रूजु की उनके लिए (जन्नत की) ख़ुशख़बरी है
Surah Az-Zumar, Verse 17
ٱلَّذِينَ يَسۡتَمِعُونَ ٱلۡقَوۡلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحۡسَنَهُۥٓۚ أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ هَدَىٰهُمُ ٱللَّهُۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمۡ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
तो (ऐ रसूल) तुम मेरे (ख़ास) बन्दों को खुशख़बरी दे दो जो बात को जी लगाकर सुनते हैं और फिर उसमें से अच्छी बात पर अमल करते हैं यही वह लोग हैं जिनकी खुदा ने हिदायत की और यही लोग अक्लमन्द हैं
Surah Az-Zumar, Verse 18
أَفَمَنۡ حَقَّ عَلَيۡهِ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ أَفَأَنتَ تُنقِذُ مَن فِي ٱلنَّارِ
तो (ऐ रसूल) भला जिस शख्स पर अज़ाब का वायदा पूरा हो चुका हो तो क्या तुम उस शख्स की ख़लासी दे सकते हो
Surah Az-Zumar, Verse 19
لَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ لَهُمۡ غُرَفٞ مِّن فَوۡقِهَا غُرَفٞ مَّبۡنِيَّةٞ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ لَا يُخۡلِفُ ٱللَّهُ ٱلۡمِيعَادَ
जो आग में (पड़ा) हो मगर जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे उनके ऊँचे-ऊँचे महल हैं (और) बाला ख़ानों पर बालाख़ाने बने हुए हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं ये खुदा का वायदा है (और) वायदा ख़िलाफी नहीं किया करता
Surah Az-Zumar, Verse 20
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ أَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَسَلَكَهُۥ يَنَٰبِيعَ فِي ٱلۡأَرۡضِ ثُمَّ يُخۡرِجُ بِهِۦ زَرۡعٗا مُّخۡتَلِفًا أَلۡوَٰنُهُۥ ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَىٰهُ مُصۡفَرّٗا ثُمَّ يَجۡعَلُهُۥ حُطَٰمًاۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَذِكۡرَىٰ لِأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ
क्या तुमने इस पर ग़ौर नहीं किया कि खुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में चश्में बनाकर जारी किया फिर उसके ज़रिए से रंग बिरंग (के गल्ले) की खेती उगाता है फिर (पकने के बाद) सूख जाती है तो तुम को वह ज़र्द दिखायी देती है फिर खुदा उसे चूर-चूर भूसा कर देता है बेशक इसमें अक्लमन्दों के लिए (बड़ी) इबरत व नसीहत है
Surah Az-Zumar, Verse 21
أَفَمَن شَرَحَ ٱللَّهُ صَدۡرَهُۥ لِلۡإِسۡلَٰمِ فَهُوَ عَلَىٰ نُورٖ مِّن رَّبِّهِۦۚ فَوَيۡلٞ لِّلۡقَٰسِيَةِ قُلُوبُهُم مِّن ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ أُوْلَـٰٓئِكَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٍ
तो क्या वह शख्स जिस के सीने को खुदा ने (क़ुबूल) इस्लाम के लिए कुशादा कर दिया है तो वह अपने परवरदिगार (की हिदायत) की रौशनी पर (चलता) है मगर गुमराहों के बराबर हो सकता है अफसोस तो उन लोगों पर है जिनके दिल खुदा की याद से (ग़ाफ़िल होकर) सख्त हो गए हैं
Surah Az-Zumar, Verse 22
ٱللَّهُ نَزَّلَ أَحۡسَنَ ٱلۡحَدِيثِ كِتَٰبٗا مُّتَشَٰبِهٗا مَّثَانِيَ تَقۡشَعِرُّ مِنۡهُ جُلُودُ ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُمۡ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمۡ وَقُلُوبُهُمۡ إِلَىٰ ذِكۡرِ ٱللَّهِۚ ذَٰلِكَ هُدَى ٱللَّهِ يَهۡدِي بِهِۦ مَن يَشَآءُۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٍ
ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े) हैं ख़ुदा ने बहुत ही अच्छा कलाम (यावी ये) किताब नाज़िल फरमाई (जिसकी आयतें) एक दूसरे से मिलती जुलती हैं और (एक बात कई-कई बार) दोहराई गयी है उसके सुनने से उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने परवरदिगार से डरते हैं फिर उनके जिस्म नरम हो जाते हैं और उनके दिल खुदा की याद की तरफ बा इतमेनान मुतावज्जे हो जाते हैं ये खुदा की हिदायत है इसी से जिसकी चाहता है हिदायत करता है और खुदा जिसको गुमराही में छोड़ दे तो उसको कोई राह पर लाने वाला नहीं
Surah Az-Zumar, Verse 23
أَفَمَن يَتَّقِي بِوَجۡهِهِۦ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَقِيلَ لِلظَّـٰلِمِينَ ذُوقُواْ مَا كُنتُمۡ تَكۡسِبُونَ
तो क्या जो शख्स क़यामत के दिन अपने मुँह को बड़े अज़ाब की सिपर बनाएगा (नाज़ी के बराबर हो सकता है) और ज़ालिमों से कहा जाएगा कि तुम (दुनिया में) जैसा कुछ करते थे अब उसके मज़े चखो
Surah Az-Zumar, Verse 24
كَذَّبَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَأَتَىٰهُمُ ٱلۡعَذَابُ مِنۡ حَيۡثُ لَا يَشۡعُرُونَ
जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया तो उन पर अज़ाब इस तरह आ पहुँचा कि उन्हें ख़बर भी न हुई
Surah Az-Zumar, Verse 25
فَأَذَاقَهُمُ ٱللَّهُ ٱلۡخِزۡيَ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَكۡبَرُۚ لَوۡ كَانُواْ يَعۡلَمُونَ
तो खुदा ने उन्हें (इसी) दुनिया की ज़िन्दगी में रूसवाई की लज्ज़त चखा दी और आख़ेरत का अज़ाब तो यक़ीनी उससे कहीं बढ़कर है काश ये लोग ये बात जानते
Surah Az-Zumar, Verse 26
وَلَقَدۡ ضَرَبۡنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ
और हमने तो इस क़ुरान में लोगों के (समझाने के) वास्ते हर तरह की मिसाल बयान कर दी है ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें
Surah Az-Zumar, Verse 27
قُرۡءَانًا عَرَبِيًّا غَيۡرَ ذِي عِوَجٖ لَّعَلَّهُمۡ يَتَّقُونَ
(हम ने तो साफ और सलीस) एक अरबी कुरान (नाज़िल किया) जिसमें ज़रा भी कजी (पेचीदगी) नहीं
Surah Az-Zumar, Verse 28
ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا رَّجُلٗا فِيهِ شُرَكَآءُ مُتَشَٰكِسُونَ وَرَجُلٗا سَلَمٗا لِّرَجُلٍ هَلۡ يَسۡتَوِيَانِ مَثَلًاۚ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
ताकि ये लोग (समझकर) खुदा से डरे ख़ुदा ने एक मिसाल बयान की है कि एक शख्स (ग़ुलाम) है जिसमें कई झगड़ालू साझी हैं और एक ज़ालिम है कि पूरा एक शख्स का है उन दोनों की हालत यकसाँ हो सकती हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह मगर उनमें अक्सर इतना भी नहीं जानते
Surah Az-Zumar, Verse 29
إِنَّكَ مَيِّتٞ وَإِنَّهُم مَّيِّتُونَ
(ऐ रसूल) बेशक तुम भी मरने वाले हो
Surah Az-Zumar, Verse 30
ثُمَّ إِنَّكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عِندَ رَبِّكُمۡ تَخۡتَصِمُونَ
और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं फिर तुम लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में बाहम झगड़ोगे
Surah Az-Zumar, Verse 31
۞فَمَنۡ أَظۡلَمُ مِمَّن كَذَبَ عَلَى ٱللَّهِ وَكَذَّبَ بِٱلصِّدۡقِ إِذۡ جَآءَهُۥٓۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡكَٰفِرِينَ
तो इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठ (तूफान) बाँधे और जब उसके पास सच्ची बात आए तो उसको झुठला दे क्या जहन्नुम में कााफिरों का ठिकाना नहीं है
Surah Az-Zumar, Verse 32
وَٱلَّذِي جَآءَ بِٱلصِّدۡقِ وَصَدَّقَ بِهِۦٓ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ
(ज़रूर है) और याद रखो कि जो शख्स (रसूल) सच्ची बात लेकर आया वह और जिसने उसकी तसदीक़ की यही लोग तो परहेज़गार हैं
Surah Az-Zumar, Verse 33
لَهُم مَّا يَشَآءُونَ عِندَ رَبِّهِمۡۚ ذَٰلِكَ جَزَآءُ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
ये लोग जो चाहेंगे उनके लिए परवर दिगार के पास (मौजूद) है, ये नेकी करने वालों की जज़ाए ख़ैर है
Surah Az-Zumar, Verse 34
لِيُكَفِّرَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي عَمِلُواْ وَيَجۡزِيَهُمۡ أَجۡرَهُم بِأَحۡسَنِ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
ताकि ख़ुदा उन लोगों की बुराइयों को जो उन्होने की हैं दूर कर दे और उनके अच्छे कामों के एवज़ जो वह कर चुके थे उसका अज्र (सवाब) अता फरमाए
Surah Az-Zumar, Verse 35
أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِكَافٍ عَبۡدَهُۥۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِنۡ هَادٖ
क्या ख़ुदा अपने बन्दों (की मदद) के लिए काफ़ी नहीं है (ज़रूर है) और (ऐ रसूल) तुमको लोग ख़ुदा के सिवा (दूसरे माबूदों) से डराते हैं और ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई राह पर लाने वाला नहीं है
Surah Az-Zumar, Verse 36
وَمَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَمَا لَهُۥ مِن مُّضِلٍّۗ أَلَيۡسَ ٱللَّهُ بِعَزِيزٖ ذِي ٱنتِقَامٖ
और जिस शख्स की हिदायत करे तो उसका कोई गुमराह करने वाला नहीं। क्या ख़दा ज़बरदस्त और बदला लेने वाला नहीं है (ज़रूर है)
Surah Az-Zumar, Verse 37
وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۚ قُلۡ أَفَرَءَيۡتُم مَّا تَدۡعُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ إِنۡ أَرَادَنِيَ ٱللَّهُ بِضُرٍّ هَلۡ هُنَّ كَٰشِفَٰتُ ضُرِّهِۦٓ أَوۡ أَرَادَنِي بِرَحۡمَةٍ هَلۡ هُنَّ مُمۡسِكَٰتُ رَحۡمَتِهِۦۚ قُلۡ حَسۡبِيَ ٱللَّهُۖ عَلَيۡهِ يَتَوَكَّلُ ٱلۡمُتَوَكِّلُونَ
और (ऐ रसूल) अगर तुम इनसे पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो ये लोग यक़ीनन कहेंगे कि ख़ुदा ने, तुम कह दो कि तो क्या तुमने ग़ौर किया है कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन लोगों की तुम इबादत करते हो अगर ख़ुदा मुझे कोई तक़लीफ पहुँचाना चाहे तो क्या वह लोग उसके नुक़सान को (मुझसे) रोक सकते हैं या अगर ख़ुदा मुझ पर मेहरबानी करना चाहे तो क्या वह लोग उसकी मेहरबानी रोक सकते हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि ख़ुदा मेरे लिए काफ़ी है उसी पर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं
Surah Az-Zumar, Verse 38
قُلۡ يَٰقَوۡمِ ٱعۡمَلُواْ عَلَىٰ مَكَانَتِكُمۡ إِنِّي عَٰمِلٞۖ فَسَوۡفَ تَعۡلَمُونَ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) अमल किए जाओ मै
Surah Az-Zumar, Verse 39
مَن يَأۡتِيهِ عَذَابٞ يُخۡزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيۡهِ عَذَابٞ مُّقِيمٌ
भी (अपनी जगह) कुछ कर रहा हूँ, फिर अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर वह आफत आती है जो उसको (दुनिया में) रूसवा कर देगी और (आख़िर में) उस पर दायमी अज़ाब भी नाज़िल होगा
Surah Az-Zumar, Verse 40
إِنَّآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ لِلنَّاسِ بِٱلۡحَقِّۖ فَمَنِ ٱهۡتَدَىٰ فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَاۖ وَمَآ أَنتَ عَلَيۡهِم بِوَكِيلٍ
(ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरान) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है, पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो उसकी गुमराही का वबाल भी उसी पर है और फिर तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार तो हो नहीं
Surah Az-Zumar, Verse 41
ٱللَّهُ يَتَوَفَّى ٱلۡأَنفُسَ حِينَ مَوۡتِهَا وَٱلَّتِي لَمۡ تَمُتۡ فِي مَنَامِهَاۖ فَيُمۡسِكُ ٱلَّتِي قَضَىٰ عَلَيۡهَا ٱلۡمَوۡتَ وَيُرۡسِلُ ٱلۡأُخۡرَىٰٓ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمًّىۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يَتَفَكَّرُونَ
ख़ुदा ही लोगों के मरने के वक्त उनकी रूहें (अपनी तरफ़) खींच बुलाता है और जो लोग नहीं मरे (उनकी रूहें) उनकी नींद में (खींच ली जाती हैं) बस जिन के बारे में ख़ुदा मौत का हुक्म दे चुका है उनकी रूहों को रोक रखता है और बाक़ी (सोने वालों की रूहों) को फिर एक मुक़र्रर वक्त तक के वास्ते भेज देता है जो लोग (ग़ौर) और फिक्र करते हैं उनके लिए (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं
Surah Az-Zumar, Verse 42
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِ ٱللَّهِ شُفَعَآءَۚ قُلۡ أَوَلَوۡ كَانُواْ لَا يَمۡلِكُونَ شَيۡـٔٗا وَلَا يَعۡقِلُونَ
क्या उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (दूसरे) सिफारिशी बना रखे है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगरचे वह लोग न कुछ एख़तेयार रखते हों न कुछ समझते हों
Surah Az-Zumar, Verse 43
قُل لِّلَّهِ ٱلشَّفَٰعَةُ جَمِيعٗاۖ لَّهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ ثُمَّ إِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ
(तो भी सिफारिशी बनाओगे) तुम कह दो कि सारी सिफारिश तो ख़ुदा के लिए ख़ास है- सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत उसी के लिए ख़ास है, फिर तुम लोगों को उसकी तरफ लौट कर जाना है
Surah Az-Zumar, Verse 44
وَإِذَا ذُكِرَ ٱللَّهُ وَحۡدَهُ ٱشۡمَأَزَّتۡ قُلُوبُ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِۖ وَإِذَا ذُكِرَ ٱلَّذِينَ مِن دُونِهِۦٓ إِذَا هُمۡ يَسۡتَبۡشِرُونَ
और जब सिर्फ अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल मुतनफ़िफ़र हो जाते हैं और जब ख़ुदा के सिवा और (माबूदों) का ज़िक्र किया जाता है तो बस फौरन उनकी बाछें खिल जाती हैं
Surah Az-Zumar, Verse 45
قُلِ ٱللَّهُمَّ فَاطِرَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ عَٰلِمَ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ أَنتَ تَحۡكُمُ بَيۡنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُواْ فِيهِ يَخۡتَلِفُونَ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ ख़ुदा (ऐ) सारे आसमान और ज़मीन पैदा करने वाले, ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले हक़ बातों में तेरे बन्दे आपस में झगड़ रहे हैं तू ही उनके दरमियान फैसला कर देगा
Surah Az-Zumar, Verse 46
وَلَوۡ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُواْ مَا فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا وَمِثۡلَهُۥ مَعَهُۥ لَٱفۡتَدَوۡاْ بِهِۦ مِن سُوٓءِ ٱلۡعَذَابِ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَبَدَا لَهُم مِّنَ ٱللَّهِ مَا لَمۡ يَكُونُواْ يَحۡتَسِبُونَ
और अगर नाफरमानों के पास रूए ज़मीन की सारी काएनात मिल जाएग बल्कि उनके साथ उतनी ही और भी हो तो क़यामत के दिन ये लोग यक़ीनन सख्त अज़ाब का फ़िदया दे निकलें (और अपना छुटकारा कराना चाहें) और (उस वक्त) उनके सामने ख़ुदा की तरफ से वह बात पेश आएगी जिसका उन्हें वहम व गुमान भी न था
Surah Az-Zumar, Verse 47
وَبَدَا لَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَحَاقَ بِهِم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ
और जो बदकिरदारियाँ उन लोगों ने की थीं (वह सब) उनके सामने खुल जाएँगीं और जिस (अज़ाब) पर यह लोग क़हक़हे लगाते थे वह उन्हें घेरेगा
Surah Az-Zumar, Verse 48
فَإِذَا مَسَّ ٱلۡإِنسَٰنَ ضُرّٞ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلۡنَٰهُ نِعۡمَةٗ مِّنَّا قَالَ إِنَّمَآ أُوتِيتُهُۥ عَلَىٰ عِلۡمِۭۚ بَلۡ هِيَ فِتۡنَةٞ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ
इन्सान को तो जब कोई बुराई छू गयी बस वह लगा हमसे दुआएँ माँगने, फिर जब हम उसे अपनी तरफ़ से कोई नेअमत अता करते हैं तो कहने लगता है कि ये तो सिर्फ (मेरे) इल्म के ज़ोर से मुझे दिया गया है (ये ग़लती है) बल्कि ये तो एक आज़माइश है मगर उन में के अक्सर नहीं जानते हैं
Surah Az-Zumar, Verse 49
قَدۡ قَالَهَا ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡ فَمَآ أَغۡنَىٰ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ
जो लोग उनसे पहले थे वह भी ऐसी बातें बका करते थे फिर (जब हमारा अज़ाब आया) तो उनकी कारस्तानियाँ उनके कुछ भी काम न आई
Surah Az-Zumar, Verse 50
فَأَصَابَهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْۚ وَٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ هَـٰٓؤُلَآءِ سَيُصِيبُهُمۡ سَيِّـَٔاتُ مَا كَسَبُواْ وَمَا هُم بِمُعۡجِزِينَ
ग़रज़ उनके आमाल के बुरे नतीजे उन्हें भुगतने पड़े और उन (कुफ्फ़ारे मक्का) में से जिन लोगों ने नाफरमानियाँ की हैं उन्हें भी अपने अपने आमाल की सज़ाएँ भुगतनी पड़ेंगी और ये लोग (ख़ुदा को)े आजिज़ नहीं कर सकते
Surah Az-Zumar, Verse 51
أَوَلَمۡ يَعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّقَوۡمٖ يُؤۡمِنُونَ
क्या उन लोगों को इतनी बात भी मालूम नहीं कि ख़ुदा ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी फराख़ करता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग करता है इसमें शक नहीं कि क्या इसमें ईमानदार लोगों के (कुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं
Surah Az-Zumar, Verse 52
۞قُلۡ يَٰعِبَادِيَ ٱلَّذِينَ أَسۡرَفُواْ عَلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ لَا تَقۡنَطُواْ مِن رَّحۡمَةِ ٱللَّهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ يَغۡفِرُ ٱلذُّنُوبَ جَمِيعًاۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلۡغَفُورُ ٱلرَّحِيمُ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे (ईमानदार) बन्दों जिन्होने (गुनाह करके) अपनी जानों पर ज्यादतियाँ की हैं तुम लोग ख़ुदा की रहमत से नाउम्मीद न होना बेशक ख़ुदा (तुम्हारे) कुल गुनाहों को बख्श देगा वह बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है
Surah Az-Zumar, Verse 53
وَأَنِيبُوٓاْ إِلَىٰ رَبِّكُمۡ وَأَسۡلِمُواْ لَهُۥ مِن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنصَرُونَ
और अपने परवरदिगार की तरफ रूजू करो और उसी के फरमाबरदार बन जाओ (मगर) उस वक्त क़े क़ब्ल ही कि तुम पर जब अज़ाब आ नाज़िल हो (और) फिर तुम्हारी मदद न की जा सके
Surah Az-Zumar, Verse 54
وَٱتَّبِعُوٓاْ أَحۡسَنَ مَآ أُنزِلَ إِلَيۡكُم مِّن رَّبِّكُم مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَكُمُ ٱلۡعَذَابُ بَغۡتَةٗ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ
और जो जो अच्छी बातें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाज़िल हई हैं उन पर चलो (मगर) उसके क़ब्ल कि तुम पर एक बारगी अज़ाब नाज़िल हो और तुमको उसकी ख़बर भी न हो
Surah Az-Zumar, Verse 55
أَن تَقُولَ نَفۡسٞ يَٰحَسۡرَتَىٰ عَلَىٰ مَا فَرَّطتُ فِي جَنۢبِ ٱللَّهِ وَإِن كُنتُ لَمِنَ ٱلسَّـٰخِرِينَ
(कहीं ऐसा न हो कि) (तुममें से) कोई शख्स कहने लगे कि हाए अफ़सोस मेरी इस कोताही पर जो मैने ख़ुदा (की बारगाह) का तक़र्रुब हासिल करने में की और मैं तो बस उन बातों पर हँसता ही रहा
Surah Az-Zumar, Verse 56
أَوۡ تَقُولَ لَوۡ أَنَّ ٱللَّهَ هَدَىٰنِي لَكُنتُ مِنَ ٱلۡمُتَّقِينَ
या ये कहने लगे कि अगर ख़ुदा मेरी हिदायत करता तो मैं ज़रूर परहेज़गारों में से होता
Surah Az-Zumar, Verse 57
أَوۡ تَقُولَ حِينَ تَرَى ٱلۡعَذَابَ لَوۡ أَنَّ لِي كَرَّةٗ فَأَكُونَ مِنَ ٱلۡمُحۡسِنِينَ
या जब अज़ाब को (आते) देखें तो कहने लगे कि काश मुझे (दुनिया में) फिर दोबारा जाना मिले तो मैं नेकी कारों में हो जाऊँ
Surah Az-Zumar, Verse 58
بَلَىٰ قَدۡ جَآءَتۡكَ ءَايَٰتِي فَكَذَّبۡتَ بِهَا وَٱسۡتَكۡبَرۡتَ وَكُنتَ مِنَ ٱلۡكَٰفِرِينَ
उस वक्त ख़ुदा कहेगा ( हाँ ) हाँ तेरे पास मेरी आयतें पहुँची तो तूने उन्हें झुठलाया और शेख़ी कर बैठा और तू भी काफिरों में से था (अब तेरी एक न सुनी जाएगी)
Surah Az-Zumar, Verse 59
وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ تَرَى ٱلَّذِينَ كَذَبُواْ عَلَى ٱللَّهِ وُجُوهُهُم مُّسۡوَدَّةٌۚ أَلَيۡسَ فِي جَهَنَّمَ مَثۡوٗى لِّلۡمُتَكَبِّرِينَ
और जिन लोगों ने ख़ुदा पर झूठे बोहतान बाँधे - तुम क़यामत के दिन देखोगे उनके चेहरे सियाह होंगे क्या गुरूर करने वालों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है (ज़रूर है)
Surah Az-Zumar, Verse 60
وَيُنَجِّي ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ بِمَفَازَتِهِمۡ لَا يَمَسُّهُمُ ٱلسُّوٓءُ وَلَا هُمۡ يَحۡزَنُونَ
और जो लोग परहेज़गार हैं ख़ुदा उन्हें उनकी कामयाबी (और सआदत) के सबब निजात देगा कि उन्हें तकलीफ छुएगी भी नहीं और न यह लोग (किसी तरह) रंजीदा दिल होंगे
Surah Az-Zumar, Verse 61
ٱللَّهُ خَٰلِقُ كُلِّ شَيۡءٖۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ وَكِيلٞ
ख़ुदा ही हर चीज़ का जानने वाला है और वही हर चीज़ का निगेहबान है
Surah Az-Zumar, Verse 62
لَّهُۥ مَقَالِيدُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास है और जो लोग उसकी आयतों से इन्कार कर बैठें वही घाटे में रहेगें
Surah Az-Zumar, Verse 63
قُلۡ أَفَغَيۡرَ ٱللَّهِ تَأۡمُرُوٓنِّيٓ أَعۡبُدُ أَيُّهَا ٱلۡجَٰهِلُونَ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि नादानों भला तुम मुझसे ये कहते हो कि मैं ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे की इबादत करूँ
Surah Az-Zumar, Verse 64
وَلَقَدۡ أُوحِيَ إِلَيۡكَ وَإِلَى ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكَ لَئِنۡ أَشۡرَكۡتَ لَيَحۡبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
और (ऐ रसूल) तुम्हारी तरफ और उन (पैग़म्बरों) की तरफ जो तुमसे पहले हो चुके हैं यक़ीनन ये वही भेजी जा की है कि अगर (कहीं) शिर्क किया तो यक़ीनन तुम्हारे सारे अमल अकारत हो जाएँगे और तुम तो ज़रूर घाटे में आ जाओगे
Surah Az-Zumar, Verse 65
بَلِ ٱللَّهَ فَٱعۡبُدۡ وَكُن مِّنَ ٱلشَّـٰكِرِينَ
बल्कि तुम ख़ुदा ही कि इबादत करो और शुक्र गुज़ारों में हो
Surah Az-Zumar, Verse 66
وَمَا قَدَرُواْ ٱللَّهَ حَقَّ قَدۡرِهِۦ وَٱلۡأَرۡضُ جَمِيعٗا قَبۡضَتُهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَٱلسَّمَٰوَٰتُ مَطۡوِيَّـٰتُۢ بِيَمِينِهِۦۚ سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يُشۡرِكُونَ
और उन लोगों ने ख़ुदा की जैसी क़द्र दानी करनी चाहिए थी उसकी ( कुछ भी ) कद्र न की हालाँकि ( वह ऐसा क़ादिर है कि) क़यामत के दिन सारी ज़मीन (गोया) उसकी मुट्ठी में होगी और सारे आसमान (गोया) उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए हैं जिसे ये लोग उसका शरीक बनाते हैं वह उससे पाकीज़ा और बरतर है
Surah Az-Zumar, Verse 67
وَنُفِخَ فِي ٱلصُّورِ فَصَعِقَ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَّا مَن شَآءَ ٱللَّهُۖ ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخۡرَىٰ فَإِذَا هُمۡ قِيَامٞ يَنظُرُونَ
और जब (पहली बार) सूर फँका जाएगा तो जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं (मौत से) बेहोश होकर गिर पड़ेंगें) मगर (हाँ) जिस को ख़ुदा चाहे वह अलबत्ता बच जाएगा) फिर जब दोबारा सूर फूँका जाएगा तो फौरन सब के सब खड़े हो कर देखने लगेंगें
Surah Az-Zumar, Verse 68
وَأَشۡرَقَتِ ٱلۡأَرۡضُ بِنُورِ رَبِّهَا وَوُضِعَ ٱلۡكِتَٰبُ وَجِاْيٓءَ بِٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ لَا يُظۡلَمُونَ
और ज़मीन अपने परवरदिगार के नूर से जगमगा उठेगी और (आमाल की) किताब (लोगों के सामने) रख दी जाएगी और पैग़म्बर और गवाह ला हाज़िर किए जाएँगे और उनमें इन्साफ के साथ फैसला कर दिया जाएगा और उन पर ( ज़र्रा बराबर ) ज़ुल्म नहीं किया जाएगा
Surah Az-Zumar, Verse 69
وَوُفِّيَتۡ كُلُّ نَفۡسٖ مَّا عَمِلَتۡ وَهُوَ أَعۡلَمُ بِمَا يَفۡعَلُونَ
और जिस शख्स ने जैसा किया हो उसे उसका पूरा पूरा बदला मिल जाएगा, और जो कुछ ये लोग करते हैं वह उससे ख़ूब वाक़िफ है
Surah Az-Zumar, Verse 70
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِلَىٰ جَهَنَّمَ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا فُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَآ أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ رُسُلٞ مِّنكُمۡ يَتۡلُونَ عَلَيۡكُمۡ ءَايَٰتِ رَبِّكُمۡ وَيُنذِرُونَكُمۡ لِقَآءَ يَوۡمِكُمۡ هَٰذَاۚ قَالُواْ بَلَىٰ وَلَٰكِنۡ حَقَّتۡ كَلِمَةُ ٱلۡعَذَابِ عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ
और जो लोग काफिर थे उनके ग़ोल के ग़ोल जहन्नुम की तरफ हॅकाए जाएँगे और यहाँ तक की जब जहन्नुम के पास पहुँचेगें तो उसके दरवाज़े खोल दिए जाएगें और उसके दरोग़ा उनसे पूछेंगे कि क्या तुम लोगों में के पैग़म्बर तुम्हारे पास नहीं आए थे जो तुमको तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़कर सुनाते और तुमको इस रोज़ (बद) के पेश आने से डराते वह लोग जवाब देगें कि हाँ (आए तो थे) मगर (हमने न माना) और अज़ाब का हुक्म काफिरों के बारे में पूरा हो कर रहेगा
Surah Az-Zumar, Verse 71
قِيلَ ٱدۡخُلُوٓاْ أَبۡوَٰبَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ فَبِئۡسَ مَثۡوَى ٱلۡمُتَكَبِّرِينَ
(तब उनसे) कहा जाएगा कि जहन्नुम के दरवाज़ों में धँसो और हमेशा इसी में रहो ग़रज़ तकब्बुर करने वाले का (भी) क्या बुरा ठिकाना है
Surah Az-Zumar, Verse 72
وَسِيقَ ٱلَّذِينَ ٱتَّقَوۡاْ رَبَّهُمۡ إِلَى ٱلۡجَنَّةِ زُمَرًاۖ حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءُوهَا وَفُتِحَتۡ أَبۡوَٰبُهَا وَقَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَا سَلَٰمٌ عَلَيۡكُمۡ طِبۡتُمۡ فَٱدۡخُلُوهَا خَٰلِدِينَ
और जो लोग अपने परवरदिगार से डरते थे वह गिर्दो गिर्दा (गिरोह गिरोह) बेहिश्त की तरफ़ (एजाज़ व इकराम से) बुलाए जाएगें यहाँ तक कि जब उसके पास पहुँचेगें और बेहिश्त के दरवाज़े खोल दिये जाएँगें और उसके निगेहबान उन से कहेंगें सलाम अलैकुम तुम अच्छे रहे, तुम बेहिश्त में हमेशा के लिए दाख़िल हो जाओ
Surah Az-Zumar, Verse 73
وَقَالُواْ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي صَدَقَنَا وَعۡدَهُۥ وَأَوۡرَثَنَا ٱلۡأَرۡضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ ٱلۡجَنَّةِ حَيۡثُ نَشَآءُۖ فَنِعۡمَ أَجۡرُ ٱلۡعَٰمِلِينَ
और ये लोग कहेंगें ख़ुदा का शुक्र जिसने अपना वायदा हमसे सच्चा कर दिखाया और हमें (बेहिश्त की) सरज़मीन का मालिक बनाया कि हम बेहिश्त में जहाँ चाहें रहें तो नेक चलन वालों की भी क्या ख़ूब (खरी) मज़दूरी है
Surah Az-Zumar, Verse 74
وَتَرَى ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ حَآفِّينَ مِنۡ حَوۡلِ ٱلۡعَرۡشِ يُسَبِّحُونَ بِحَمۡدِ رَبِّهِمۡۚ وَقُضِيَ بَيۡنَهُم بِٱلۡحَقِّۚ وَقِيلَ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ
और (उस दिन) फरिश्तों को देखोगे कि अर्श के गिर्दा गिर्द घेरे हुए डटे होंगे और अपने परवरदिगार की तारीफ की (तसबीह) कर रहे होंगे और लोगों के दरमियान ठीक फैसला कर दिया जाएगा और (हर तरफ से यही) सदा बुलन्द होगी अल्हमदो लिल्लाहे रब्बिल आलेमीन
Surah Az-Zumar, Verse 75