Surah An-Nisa Verse 43 - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
Surah An-Nisaيَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَقۡرَبُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنتُمۡ سُكَٰرَىٰ حَتَّىٰ تَعۡلَمُواْ مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغۡتَسِلُواْۚ وَإِن كُنتُم مَّرۡضَىٰٓ أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوۡ جَآءَ أَحَدٞ مِّنكُم مِّنَ ٱلۡغَآئِطِ أَوۡ لَٰمَسۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمۡ تَجِدُواْ مَآءٗ فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدٗا طَيِّبٗا فَٱمۡسَحُواْ بِوُجُوهِكُمۡ وَأَيۡدِيكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا
हे ईमान वालो! तुम जब नशे[1] में रहो, तो नमाज़ के समीप न जाओ, जब तक जो कुछ बोलो, उसे न समझो और न जनाबत[2] की स्थिति में (मस्जिदों के समीप जाओ), परन्तु रास्ता पार करते हुए। यदि तुम रोगी हो अथवा यात्रा में रहो या स्त्रियों से सहवास कर लो, फिर जल न पाओ, तो पवित्र मिट्टी से तयम्मुम[3] कर लो; उसे अपने मुखों तथा हाथों पर फेर लो। वास्तव में, अल्लाह अति क्षांत (सहिष्णु) क्षमाशील है।