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Surah Az-Zukhruf - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi


حمٓ

हा मीम
Surah Az-Zukhruf, Verse 1


وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلۡمُبِينِ

रौशन किताब (क़ुरान) की क़सम
Surah Az-Zukhruf, Verse 2


إِنَّا جَعَلۡنَٰهُ قُرۡءَٰنًا عَرَبِيّٗا لَّعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ

हमने इस किताब को अरबी ज़बान कुरान ज़रूर बनाया है ताकि तुम समझो
Surah Az-Zukhruf, Verse 3


وَإِنَّهُۥ فِيٓ أُمِّ ٱلۡكِتَٰبِ لَدَيۡنَا لَعَلِيٌّ حَكِيمٌ

और बेशक ये (क़ुरान) असली किताब (लौह महफूज़) में (भी जो) मेरे पास है लिखी हुई है (और) यक़ीनन बड़े रूतबे की (और) पुरअज़ हिकमत है
Surah Az-Zukhruf, Verse 4


أَفَنَضۡرِبُ عَنكُمُ ٱلذِّكۡرَ صَفۡحًا أَن كُنتُمۡ قَوۡمٗا مُّسۡرِفِينَ

भला इस वजह से कि तुम ज्यादती करने वाले लोग हो हम तुमको नसीहत करने से मुँह मोड़ेंगे (हरगिज़ नहीं)
Surah Az-Zukhruf, Verse 5


وَكَمۡ أَرۡسَلۡنَا مِن نَّبِيّٖ فِي ٱلۡأَوَّلِينَ

और हमने अगले लोगों को बहुत से पैग़म्बर भेजे थे
Surah Az-Zukhruf, Verse 6


وَمَا يَأۡتِيهِم مِّن نَّبِيٍّ إِلَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ

और कोई पैग़म्बर उनके पास ऐसा नहीं आया जिससे इन लोगों ने ठट्ठे नहीं किए हो
Surah Az-Zukhruf, Verse 7


فَأَهۡلَكۡنَآ أَشَدَّ مِنۡهُم بَطۡشٗا وَمَضَىٰ مَثَلُ ٱلۡأَوَّلِينَ

तो उनमें से जो ज्यादा ज़ोरावर थे तो उनको हमने हलाक कर मारा और (दुनिया में) अगलों के अफ़साने जारी हो गए
Surah Az-Zukhruf, Verse 8


وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ لَيَقُولُنَّ خَلَقَهُنَّ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡعَلِيمُ

और (ऐ रसूल) अगर तुम उनसे पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो वह ज़रूर कह देंगे कि उनको बड़े वाक़िफ़कार ज़बरदस्त (ख़ुदा ने) पैदा किया है
Surah Az-Zukhruf, Verse 9


ٱلَّذِي جَعَلَ لَكُمُ ٱلۡأَرۡضَ مَهۡدٗا وَجَعَلَ لَكُمۡ فِيهَا سُبُلٗا لَّعَلَّكُمۡ تَهۡتَدُونَ

जिसने तुम लोगों के वास्ते ज़मीन का बिछौना बनाया और (फिर) उसमें तुम्हारे नफ़े के लिए रास्ते बनाए ताकि तुम राह मालूम करो
Surah Az-Zukhruf, Verse 10


وَٱلَّذِي نَزَّلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءَۢ بِقَدَرٖ فَأَنشَرۡنَا بِهِۦ بَلۡدَةٗ مَّيۡتٗاۚ كَذَٰلِكَ تُخۡرَجُونَ

और जिसने एक (मुनासिब) अन्दाजे क़े साथ आसमान से पानी बरसाया फिर हम ही ने उसके (ज़रिए) से मुर्दा (परती) शहर को ज़िन्दा (आबाद) किया उसी तरह तुम भी (क़यामत के दिन क़ब्रों से) निकाले जाओगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 11


وَٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡأَزۡوَٰجَ كُلَّهَا وَجَعَلَ لَكُم مِّنَ ٱلۡفُلۡكِ وَٱلۡأَنۡعَٰمِ مَا تَرۡكَبُونَ

और जिसने हर किस्म की चीज़े पैदा कीं और तुम्हारे लिए कश्तियां बनायीं और चारपाए (पैदा किए) जिन पर तुम सवार होते हो
Surah Az-Zukhruf, Verse 12


لِتَسۡتَوُۥاْ عَلَىٰ ظُهُورِهِۦ ثُمَّ تَذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ رَبِّكُمۡ إِذَا ٱسۡتَوَيۡتُمۡ عَلَيۡهِ وَتَقُولُواْ سُبۡحَٰنَ ٱلَّذِي سَخَّرَ لَنَا هَٰذَا وَمَا كُنَّا لَهُۥ مُقۡرِنِينَ

ताकि तुम उसकी पीठ पर चढ़ो और जब उस पर (अच्छी तरह) सीधे हो बैठो तो अपने परवरदिगार का एहसान माना करो और कहो कि वह (ख़ुदा हर ऐब से) पाक है जिसने इसको हमारा ताबेदार बनाया हालॉकि हम तो ऐसे (ताक़तवर) न थे कि उस पर क़ाबू पाते
Surah Az-Zukhruf, Verse 13


وَإِنَّآ إِلَىٰ رَبِّنَا لَمُنقَلِبُونَ

और हमको तो यक़ीनन अपने परवरदिगार की तरफ लौट कर जाना है
Surah Az-Zukhruf, Verse 14


وَجَعَلُواْ لَهُۥ مِنۡ عِبَادِهِۦ جُزۡءًاۚ إِنَّ ٱلۡإِنسَٰنَ لَكَفُورٞ مُّبِينٌ

और उन लोगों ने उसके बन्दों में से उसके लिए औलाद क़रार दी है इसमें शक़ नहीं कि इन्सान खुल्लम खुल्ला बड़ा ही नाशक्रा है
Surah Az-Zukhruf, Verse 15


أَمِ ٱتَّخَذَ مِمَّا يَخۡلُقُ بَنَاتٖ وَأَصۡفَىٰكُم بِٱلۡبَنِينَ

क्या उसने अपनी मख़लूक़ात में से ख़ुद तो बेटियाँ ली हैं और तुमको चुनकर बेटे दिए हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 16


وَإِذَا بُشِّرَ أَحَدُهُم بِمَا ضَرَبَ لِلرَّحۡمَٰنِ مَثَلٗا ظَلَّ وَجۡهُهُۥ مُسۡوَدّٗا وَهُوَ كَظِيمٌ

हालॉकि जब उनमें किसी शख़्श को उस चीज़ (बेटी) की ख़ुशख़बरी दी जाती है जिसकी मिसल उसने ख़ुदा के लिए बयान की है तो वह (ग़ुस्से के मारे) सियाह हो जाता है और ताव पेंच खाने लगता है
Surah Az-Zukhruf, Verse 17


أَوَمَن يُنَشَّؤُاْ فِي ٱلۡحِلۡيَةِ وَهُوَ فِي ٱلۡخِصَامِ غَيۡرُ مُبِينٖ

क्या वह (औरत) जो ज़ेवरों में पाली पोसी जाए और झगड़े में (अच्छी तरह) बात तक न कर सकें (ख़ुदा की बेटी हो सकती है)
Surah Az-Zukhruf, Verse 18


وَجَعَلُواْ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةَ ٱلَّذِينَ هُمۡ عِبَٰدُ ٱلرَّحۡمَٰنِ إِنَٰثًاۚ أَشَهِدُواْ خَلۡقَهُمۡۚ سَتُكۡتَبُ شَهَٰدَتُهُمۡ وَيُسۡـَٔلُونَ

और उन लोगों ने फ़रिश्तों को कि वह भी ख़ुदा के बन्दे हैं (ख़ुदा की) बेटियाँ बनायी हैं लोग फरिश्तों की पैदाइश क्यों खड़े देख रहे थे अभी उनकी शहादत क़लम बन्द कर ली जाती है
Surah Az-Zukhruf, Verse 19


وَقَالُواْ لَوۡ شَآءَ ٱلرَّحۡمَٰنُ مَا عَبَدۡنَٰهُمۗ مَّا لَهُم بِذَٰلِكَ مِنۡ عِلۡمٍۖ إِنۡ هُمۡ إِلَّا يَخۡرُصُونَ

और (क़यामत) में उनसे बाज़पुर्स की जाएगी और कहते हैं कि अगर ख़ुदा चाहता तो हम उनकी परसतिश न करते उनको उसकी कुछ ख़बर ही नहीं ये लोग तो बस अटकल पच्चू बातें किया करते हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 20


أَمۡ ءَاتَيۡنَٰهُمۡ كِتَٰبٗا مِّن قَبۡلِهِۦ فَهُم بِهِۦ مُسۡتَمۡسِكُونَ

या हमने उनको उससे पहले कोई किताब दी थी कि ये लोग उसे मज़बूत थामें हुए हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 21


بَلۡ قَالُوٓاْ إِنَّا وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا عَلَىٰٓ أُمَّةٖ وَإِنَّا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم مُّهۡتَدُونَ

बल्कि ये लोग तो ये कहते हैं कि हमने अपने बाप दादाओं को एक तरीके पर पाया और हम उनको क़दम ब क़दम ठीक रास्ते पर चले जा रहें हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 22


وَكَذَٰلِكَ مَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ فِي قَرۡيَةٖ مِّن نَّذِيرٍ إِلَّا قَالَ مُتۡرَفُوهَآ إِنَّا وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا عَلَىٰٓ أُمَّةٖ وَإِنَّا عَلَىٰٓ ءَاثَٰرِهِم مُّقۡتَدُونَ

और (ऐ रसूल) इसी तरह हमने तुमसे पहले किसी बस्ती में कोई डराने वाला (पैग़म्बर) नहीं भेजा मगर वहाँ के ख़ुशहाल लोगों ने यही कहा कि हमने अपने बाप दादाओं को एक तरीके पर पाया, और हम यक़ीनी उनके क़दम ब क़दम चले जा रहे हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 23


۞قَٰلَ أَوَلَوۡ جِئۡتُكُم بِأَهۡدَىٰ مِمَّا وَجَدتُّمۡ عَلَيۡهِ ءَابَآءَكُمۡۖ قَالُوٓاْ إِنَّا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَٰفِرُونَ

(इस पर) उनके पैग़म्बर ने कहा भी जिस तरीक़े पर तुमने अपने बाप दादाओं को पाया अगरचे मैं तुम्हारे पास इससे बेहतर राहे रास्त पर लाने वाला दीन लेकर आया हूँ (तो भी न मानोगे) वह बोले (कुछ हो मगर) हम तो उस दीन को जो तुम देकर भेजे गए हो मानने वाले नहीं
Surah Az-Zukhruf, Verse 24


فَٱنتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡۖ فَٱنظُرۡ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلۡمُكَذِّبِينَ

तो हमने उनसे बदला लिया (तो ज़रा) देखो तो कि झुठलाने वालों का क्या अन्जाम हुआ
Surah Az-Zukhruf, Verse 25


وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِيمُ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦٓ إِنَّنِي بَرَآءٞ مِّمَّا تَعۡبُدُونَ

(और वह वख्त याद करो) जब इब्राहीम ने अपने (मुँह बोले) बाप (आज़र) और अपनी क़ौम से कहा कि जिन चीज़ों को तुम लोग पूजते हो मैं यक़ीनन उससे बेज़ार हूँ
Surah Az-Zukhruf, Verse 26


إِلَّا ٱلَّذِي فَطَرَنِي فَإِنَّهُۥ سَيَهۡدِينِ

मगर उसकी इबादत करता हूँ, जिसने मुझे पैदा किया तो वही बहुत जल्द मेरी हिदायत करेगा
Surah Az-Zukhruf, Verse 27


وَجَعَلَهَا كَلِمَةَۢ بَاقِيَةٗ فِي عَقِبِهِۦ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ

और उसी (ईमान) को इब्राहीम ने अपनी औलाद में हमेशा बाक़ी रहने वाली बात छोड़ गए ताकि वह (ख़ुदा की तरफ रूजू) करें
Surah Az-Zukhruf, Verse 28


بَلۡ مَتَّعۡتُ هَـٰٓؤُلَآءِ وَءَابَآءَهُمۡ حَتَّىٰ جَآءَهُمُ ٱلۡحَقُّ وَرَسُولٞ مُّبِينٞ

बल्कि मैं उनको और उनके बाप दादाओं को फायदा पहुँचाता रहा यहाँ तक कि उनके पास (दीने) हक़ और साफ़ साफ़ बयान करने वाला रसूल आ पहुँचा
Surah Az-Zukhruf, Verse 29


وَلَمَّا جَآءَهُمُ ٱلۡحَقُّ قَالُواْ هَٰذَا سِحۡرٞ وَإِنَّا بِهِۦ كَٰفِرُونَ

और जब उनके पास (दीन) हक़ आ गया तो कहने लगे ये तो जादू है और हम तो हरगिज़ इसके मानने वाले नहीं
Surah Az-Zukhruf, Verse 30


وَقَالُواْ لَوۡلَا نُزِّلَ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانُ عَلَىٰ رَجُلٖ مِّنَ ٱلۡقَرۡيَتَيۡنِ عَظِيمٍ

और कहने लगे कि ये क़ुरान इन दो बस्तियों (मक्के ताएफ) में से किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं नाज़िल किया गया
Surah Az-Zukhruf, Verse 31


أَهُمۡ يَقۡسِمُونَ رَحۡمَتَ رَبِّكَۚ نَحۡنُ قَسَمۡنَا بَيۡنَهُم مَّعِيشَتَهُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۚ وَرَفَعۡنَا بَعۡضَهُمۡ فَوۡقَ بَعۡضٖ دَرَجَٰتٖ لِّيَتَّخِذَ بَعۡضُهُم بَعۡضٗا سُخۡرِيّٗاۗ وَرَحۡمَتُ رَبِّكَ خَيۡرٞ مِّمَّا يَجۡمَعُونَ

ये लोग तुम्हारे परवरदिगार की रहमत को (अपने तौर पर) बाँटते हैं हमने तो इनके दरमियान उनकी रोज़ी दुनयावी ज़िन्दगी में बाँट ही दी है और एक के दूसरे पर दर्जे बुलन्द किए हैं ताकि इनमें का एक दूसरे से ख़िदमत ले और जो माल (मतआ) ये लोग जमा करते फिरते हैं ख़ुदा की रहमत (पैग़म्बर) इससे कहीं बेहतर है
Surah Az-Zukhruf, Verse 32


وَلَوۡلَآ أَن يَكُونَ ٱلنَّاسُ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ لَّجَعَلۡنَا لِمَن يَكۡفُرُ بِٱلرَّحۡمَٰنِ لِبُيُوتِهِمۡ سُقُفٗا مِّن فِضَّةٖ وَمَعَارِجَ عَلَيۡهَا يَظۡهَرُونَ

और अगर ये बात न होती कि (आख़िर) सब लोग एक ही तरीक़े के हो जाएँगे तो हम उनके लिए जो ख़ुदा से इन्कार करते हैं उनके घरों की छतें और वही सीढ़ियाँ जिन पर वह चढ़ते हैं (उतरते हैं)
Surah Az-Zukhruf, Verse 33


وَلِبُيُوتِهِمۡ أَبۡوَٰبٗا وَسُرُرًا عَلَيۡهَا يَتَّكِـُٔونَ

और उनके घरों के दरवाज़े और वह तख्त जिन पर तकिये लगाते हैं चाँदी और सोने के बना देते
Surah Az-Zukhruf, Verse 34


وَزُخۡرُفٗاۚ وَإِن كُلُّ ذَٰلِكَ لَمَّا مَتَٰعُ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۚ وَٱلۡأٓخِرَةُ عِندَ رَبِّكَ لِلۡمُتَّقِينَ

ये सब साज़ो सामान, तो बस दुनियावी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ा) साज़ो सामान हैं (जो मिट जाएँगे) और आख़ेरत (का सामान) तो तुम्हारे परवरदिगार के यहॉ ख़ास परहेज़गारों के लिए है
Surah Az-Zukhruf, Verse 35


وَمَن يَعۡشُ عَن ذِكۡرِ ٱلرَّحۡمَٰنِ نُقَيِّضۡ لَهُۥ شَيۡطَٰنٗا فَهُوَ لَهُۥ قَرِينٞ

और जो शख़्श ख़ुदा की चाह से अन्धा बनता है हम (गोया ख़ुद) उसके वास्ते शैतान मुक़र्रर कर देते हैं तो वही उसका (हर दम का) साथी है
Surah Az-Zukhruf, Verse 36


وَإِنَّهُمۡ لَيَصُدُّونَهُمۡ عَنِ ٱلسَّبِيلِ وَيَحۡسَبُونَ أَنَّهُم مُّهۡتَدُونَ

और वह (शयातीन) उन लोगों को (ख़ुदा की) राह से रोकते रहते हैं बावजूद इसके वह उसी ख्याल में हैं कि वह यक़ीनी राहे रास्त पर हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 37


حَتَّىٰٓ إِذَا جَآءَنَا قَالَ يَٰلَيۡتَ بَيۡنِي وَبَيۡنَكَ بُعۡدَ ٱلۡمَشۡرِقَيۡنِ فَبِئۡسَ ٱلۡقَرِينُ

यहाँ तक कि जब (क़यामत में) हमारे पास आएगा तो (अपने साथी शैतान से) कहेगा काश मुझमें और तुममें पूरब पश्चिम का फ़ासला होता ग़रज़ (शैतान भी) क्या ही बुरा रफीक़ है
Surah Az-Zukhruf, Verse 38


وَلَن يَنفَعَكُمُ ٱلۡيَوۡمَ إِذ ظَّلَمۡتُمۡ أَنَّكُمۡ فِي ٱلۡعَذَابِ مُشۡتَرِكُونَ

और जब तुम नाफरमानियाँ कर चुके तो (शयातीन के साथ) तुम्हारा अज़ाब में शरीक होना भी आज तुमको (अज़ाब की कमी में) कोई फायदा नहीं पहुँचा सकता
Surah Az-Zukhruf, Verse 39


أَفَأَنتَ تُسۡمِعُ ٱلصُّمَّ أَوۡ تَهۡدِي ٱلۡعُمۡيَ وَمَن كَانَ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ

तो (ऐ रसूल) क्या तुम बहरों को सुना सकते हो या अन्धे को और उस शख़्श को जो सरीही गुमराही में पड़ा हो रास्ता दिखा सकते हो (हरगिज़ नहीं)
Surah Az-Zukhruf, Verse 40


فَإِمَّا نَذۡهَبَنَّ بِكَ فَإِنَّا مِنۡهُم مُّنتَقِمُونَ

तो अगर हम तुमको (दुनिया से) ले भी जाएँ तो भी हमको उनसे बदला लेना ज़रूरी है
Surah Az-Zukhruf, Verse 41


أَوۡ نُرِيَنَّكَ ٱلَّذِي وَعَدۡنَٰهُمۡ فَإِنَّا عَلَيۡهِم مُّقۡتَدِرُونَ

या (तुम्हारी ज़िन्दगी ही में) जिस अज़ाब का हमने उनसे वायदा किया है तुमको दिखा दें तो उन पर हर तरह क़ाबू रखते हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 42


فَٱسۡتَمۡسِكۡ بِٱلَّذِيٓ أُوحِيَ إِلَيۡكَۖ إِنَّكَ عَلَىٰ صِرَٰطٖ مُّسۡتَقِيمٖ

तो तुम्हारे पास जो वही भेजी गयी है तुम उसे मज़बूत पकड़े रहो इसमें शक़ नहीं कि तुम सीधी राह पर हो
Surah Az-Zukhruf, Verse 43


وَإِنَّهُۥ لَذِكۡرٞ لَّكَ وَلِقَوۡمِكَۖ وَسَوۡفَ تُسۡـَٔلُونَ

और ये (क़ुरान) तुम्हारे लिए और तुम्हारी क़ौम के लिए नसीहत है और अनक़रीब ही तुम लोगों से इसकी बाज़पुर्स की जाएगी
Surah Az-Zukhruf, Verse 44


وَسۡـَٔلۡ مَنۡ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رُّسُلِنَآ أَجَعَلۡنَا مِن دُونِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ءَالِهَةٗ يُعۡبَدُونَ

और हमने तुमसे पहले अपने जितने पैग़म्बर भेजे हैं उन सब से दरियाफ्त कर देखो क्या हमने ख़ुदा कि सिवा और माबूद बनाएा थे कि उनकी इबादत की जाए
Surah Az-Zukhruf, Verse 45


وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَآ إِلَىٰ فِرۡعَوۡنَ وَمَلَإِيْهِۦ فَقَالَ إِنِّي رَسُولُ رَبِّ ٱلۡعَٰلَمِينَ

और हम ही ने यक़ीनन मूसा को अपनी निशानियाँ देकर फिरऔन और उसके दरबारियों के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा था तो मूसा ने कहा कि मैं सारे जहॉन के पालने वाले (ख़ुदा) का रसूल हूँ
Surah Az-Zukhruf, Verse 46


فَلَمَّا جَآءَهُم بِـَٔايَٰتِنَآ إِذَا هُم مِّنۡهَا يَضۡحَكُونَ

तो जब मूसा उन लोगों के पास हमारे मौजिज़े लेकर आए तो वह लोग उन मौजिज़ों की हँसी उड़ाने लगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 47


وَمَا نُرِيهِم مِّنۡ ءَايَةٍ إِلَّا هِيَ أَكۡبَرُ مِنۡ أُخۡتِهَاۖ وَأَخَذۡنَٰهُم بِٱلۡعَذَابِ لَعَلَّهُمۡ يَرۡجِعُونَ

और हम जो मौजिज़ा उन को दिखाते थे वह दूसरे से बढ़ कर होता था और आख़िर हमने उनको अज़ाब में गिरफ्तार किया ताकि ये लोग बाज़ आएँ
Surah Az-Zukhruf, Verse 48


وَقَالُواْ يَـٰٓأَيُّهَ ٱلسَّاحِرُ ٱدۡعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِندَكَ إِنَّنَا لَمُهۡتَدُونَ

और (जब) अज़ाब में गिरफ्तार हुए तो (मूसा से) कहने लगे ऐ जादूगर इस एहद के मुताबिक़ जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुमसे किया है हमारे वास्ते दुआ कर
Surah Az-Zukhruf, Verse 49


فَلَمَّا كَشَفۡنَا عَنۡهُمُ ٱلۡعَذَابَ إِذَا هُمۡ يَنكُثُونَ

(अगर अब की छूटे) तो हम ज़रूर ऊपर आ जाएँगे फिर जब हमने उनसे अज़ाब को हटा दिया तो वह फौरन (अपना) अहद तोड़ बैठे
Surah Az-Zukhruf, Verse 50


وَنَادَىٰ فِرۡعَوۡنُ فِي قَوۡمِهِۦ قَالَ يَٰقَوۡمِ أَلَيۡسَ لِي مُلۡكُ مِصۡرَ وَهَٰذِهِ ٱلۡأَنۡهَٰرُ تَجۡرِي مِن تَحۡتِيٓۚ أَفَلَا تُبۡصِرُونَ

और फिरऔन ने अपने लोगों में पुकार कर कहा ऐ मेरी क़ौम क्या (ये) मुल्क मिस्र हमारा नहीं और (क्या) ये नहरें जो हमारे (शाही महल के) नीचे बह रही हैं (हमारी नहीं) तो क्या तुमको इतना भी नहीं सूझता
Surah Az-Zukhruf, Verse 51


أَمۡ أَنَا۠ خَيۡرٞ مِّنۡ هَٰذَا ٱلَّذِي هُوَ مَهِينٞ وَلَا يَكَادُ يُبِينُ

या (सूझता है कि) मैं इस शख़्श (मूसा) से जो एक ज़लील आदमी है और (हकले पन की वजह से) साफ़ गुफ्तगू भी नहीं कर सकता
Surah Az-Zukhruf, Verse 52


فَلَوۡلَآ أُلۡقِيَ عَلَيۡهِ أَسۡوِرَةٞ مِّن ذَهَبٍ أَوۡ جَآءَ مَعَهُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ مُقۡتَرِنِينَ

कहीं बहुत बेहतर हूँ (अगर ये बेहतर है तो इसके लिए सोने के कंगन) (ख़ुदा के हॉ से) क्यों नहीं उतारे गये या उसके साथ फ़रिश्ते जमा होकर आते
Surah Az-Zukhruf, Verse 53


فَٱسۡتَخَفَّ قَوۡمَهُۥ فَأَطَاعُوهُۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمٗا فَٰسِقِينَ

ग़रज़ फिरऔन ने (बातें बनाकर) अपनी क़ौम की अक़ल मार दी और वह लोग उसके ताबेदार बन गये बेशक वह लोग बदकार थे ही
Surah Az-Zukhruf, Verse 54


فَلَمَّآ ءَاسَفُونَا ٱنتَقَمۡنَا مِنۡهُمۡ فَأَغۡرَقۡنَٰهُمۡ أَجۡمَعِينَ

ग़रज़ जब उन लोगों ने हमको झुझंला दिया तो हमने भी उनसे बदला लिया तो हमने उन सब (के सब) को डुबो दिया
Surah Az-Zukhruf, Verse 55


فَجَعَلۡنَٰهُمۡ سَلَفٗا وَمَثَلٗا لِّلۡأٓخِرِينَ

फिर हमने उनको गया गुज़रा और पिछलों के वास्ते इबरत बना दिया
Surah Az-Zukhruf, Verse 56


۞وَلَمَّا ضُرِبَ ٱبۡنُ مَرۡيَمَ مَثَلًا إِذَا قَوۡمُكَ مِنۡهُ يَصِدُّونَ

और(ऐ रसूल) जब मरियम के बेटे (ईसा) की मिसाल बयान की गयी तो उससे तुम्हारी क़ौम के लोग खिलखिला कर हंसने लगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 57


وَقَالُوٓاْ ءَأَٰلِهَتُنَا خَيۡرٌ أَمۡ هُوَۚ مَا ضَرَبُوهُ لَكَ إِلَّا جَدَلَۢاۚ بَلۡ هُمۡ قَوۡمٌ خَصِمُونَ

और बोल उठे कि भला हमारे माबूद अच्छे हैं या वह (ईसा) उन लोगों ने जो ईसा की मिसाल तुमसे बयान की है तो सिर्फ झगड़ने को
Surah Az-Zukhruf, Verse 58


إِنۡ هُوَ إِلَّا عَبۡدٌ أَنۡعَمۡنَا عَلَيۡهِ وَجَعَلۡنَٰهُ مَثَلٗا لِّبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ

बल्कि (हक़ तो यह है कि) ये लोग हैं झगड़ालू ईसा तो बस हमारे एक बन्दे थे जिन पर हमने एहसान किया (नबी बनाया और मौजिज़े दिये) और उनको हमने बनी इसराईल के लिए (अपनी कुदरत का) नमूना बनाया
Surah Az-Zukhruf, Verse 59


وَلَوۡ نَشَآءُ لَجَعَلۡنَا مِنكُم مَّلَـٰٓئِكَةٗ فِي ٱلۡأَرۡضِ يَخۡلُفُونَ

और अगर हम चाहते तो तुम ही लोगों में से (किसी को) फ़रिश्ते बना देते जो तुम्हारी जगह ज़मीन में रहते
Surah Az-Zukhruf, Verse 60


وَإِنَّهُۥ لَعِلۡمٞ لِّلسَّاعَةِ فَلَا تَمۡتَرُنَّ بِهَا وَٱتَّبِعُونِۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ

और वह तो यक़ीनन क़यामत की एक रौशन दलील है तुम लोग इसमें हरगिज़ यक़ न करो और मेरी पैरवी करो यही सीधा रास्ता है
Surah Az-Zukhruf, Verse 61


وَلَا يَصُدَّنَّكُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُۖ إِنَّهُۥ لَكُمۡ عَدُوّٞ مُّبِينٞ

और (कहीं) शैतान तुम लोगों को (इससे) रोक न दे वही यक़ीनन तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है
Surah Az-Zukhruf, Verse 62


وَلَمَّا جَآءَ عِيسَىٰ بِٱلۡبَيِّنَٰتِ قَالَ قَدۡ جِئۡتُكُم بِٱلۡحِكۡمَةِ وَلِأُبَيِّنَ لَكُم بَعۡضَ ٱلَّذِي تَخۡتَلِفُونَ فِيهِۖ فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُونِ

और जब ईसा वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आये तो (लोगों से) कहा मैं तुम्हारे पास दानाई (की किताब) लेकर आया हूँ ताकि बाज़ बातें जिन में तुम लोग एख्तेलाफ करते थे तुमको साफ-साफ बता दूँ तो तुम लोग ख़ुदा से डरो और मेरा कहा मानो
Surah Az-Zukhruf, Verse 63


إِنَّ ٱللَّهَ هُوَ رَبِّي وَرَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُوهُۚ هَٰذَا صِرَٰطٞ مُّسۡتَقِيمٞ

बेशक ख़ुदा ही मेरा और तुम्हार परवरदिगार है तो उसी की इबादत करो यही सीधा रास्ता है
Surah Az-Zukhruf, Verse 64


فَٱخۡتَلَفَ ٱلۡأَحۡزَابُ مِنۢ بَيۡنِهِمۡۖ فَوَيۡلٞ لِّلَّذِينَ ظَلَمُواْ مِنۡ عَذَابِ يَوۡمٍ أَلِيمٍ

तो इनमें से कई फिरक़े उनसे एख्तेलाफ करने लगे तो जिन लोगों ने ज़ुल्म किया उन पर दर्दनांक दिन के अज़ब से अफ़सोस है
Surah Az-Zukhruf, Verse 65


هَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا ٱلسَّاعَةَ أَن تَأۡتِيَهُم بَغۡتَةٗ وَهُمۡ لَا يَشۡعُرُونَ

क्या ये लोग बस क़यामत के ही मुन्ज़िर बैठे हैं कि अचानक ही उन पर आ जाए और उन को ख़बर तक न हो
Surah Az-Zukhruf, Verse 66


ٱلۡأَخِلَّآءُ يَوۡمَئِذِۭ بَعۡضُهُمۡ لِبَعۡضٍ عَدُوٌّ إِلَّا ٱلۡمُتَّقِينَ

(दिली) दोस्त इस दिन (बाहम) एक दूसरे के दुशमन होगें मगर परहेज़गार कि वह दोस्त ही रहेगें
Surah Az-Zukhruf, Verse 67


يَٰعِبَادِ لَا خَوۡفٌ عَلَيۡكُمُ ٱلۡيَوۡمَ وَلَآ أَنتُمۡ تَحۡزَنُونَ

और ख़ुदा उनसे कहेगा ऐ मेरे बन्दों आज न तो तुमको कोई ख़ौफ है और न तुम ग़मग़ीन होगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 68


ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِـَٔايَٰتِنَا وَكَانُواْ مُسۡلِمِينَ

(यह) वह लोग हैं जो हमारी आयतों पर ईमान लाए और (हमारे) फ़रमाबरदार थे
Surah Az-Zukhruf, Verse 69


ٱدۡخُلُواْ ٱلۡجَنَّةَ أَنتُمۡ وَأَزۡوَٰجُكُمۡ تُحۡبَرُونَ

तो तुम अपनी बीवियों समैत एजाज़ व इकराम से बेहिश्त में दाखिल हो जाओ
Surah Az-Zukhruf, Verse 70


يُطَافُ عَلَيۡهِم بِصِحَافٖ مِّن ذَهَبٖ وَأَكۡوَابٖۖ وَفِيهَا مَا تَشۡتَهِيهِ ٱلۡأَنفُسُ وَتَلَذُّ ٱلۡأَعۡيُنُۖ وَأَنتُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ

उन पर सोने की एक रिक़ाबियों और प्यालियों का दौर चलेगा और वहाँ जिस चीज़ को जी चाहे और जिससे ऑंखें लज्ज़त उठाएं (सब मौजूद हैं) और तुम उसमें हमेशा रहोगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 71


وَتِلۡكَ ٱلۡجَنَّةُ ٱلَّتِيٓ أُورِثۡتُمُوهَا بِمَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ

और ये जन्नत जिसके तुम वारिस (हिस्सेदार) कर दिये गये हो तुम्हारी क़ारगुज़ारियों का सिला है
Surah Az-Zukhruf, Verse 72


لَكُمۡ فِيهَا فَٰكِهَةٞ كَثِيرَةٞ مِّنۡهَا تَأۡكُلُونَ

वहाँ तुम्हारे वास्ते बहुत से मेवे हैं जिनको तुम खाओगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 73


إِنَّ ٱلۡمُجۡرِمِينَ فِي عَذَابِ جَهَنَّمَ خَٰلِدُونَ

(गुनाहगार कुफ्फ़ार) तो यक़ीकन जहन्नुम के अज़ाब में हमेशा रहेगें
Surah Az-Zukhruf, Verse 74


لَا يُفَتَّرُ عَنۡهُمۡ وَهُمۡ فِيهِ مُبۡلِسُونَ

जो उनसे कभी नाग़ा न किया जाएगा और वह इसी अज़ाब में नाउम्मीद होकर रहेंगें
Surah Az-Zukhruf, Verse 75


وَمَا ظَلَمۡنَٰهُمۡ وَلَٰكِن كَانُواْ هُمُ ٱلظَّـٰلِمِينَ

और हमने उन पर कोई ज़ुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग ख़ुद अपने ऊपर ज़ुल्म कर रहे हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 76


وَنَادَوۡاْ يَٰمَٰلِكُ لِيَقۡضِ عَلَيۡنَا رَبُّكَۖ قَالَ إِنَّكُم مَّـٰكِثُونَ

और (जहन्नुमी) पुकारेगें कि ऐ मालिक (दरोग़ा ए जहन्नुम कोई तरकीब करो) तुम्हारा परवरदिगार हमें मौत ही दे दे वह जवाब देगा कि तुमको इसी हाल में रहना है
Surah Az-Zukhruf, Verse 77


لَقَدۡ جِئۡنَٰكُم بِٱلۡحَقِّ وَلَٰكِنَّ أَكۡثَرَكُمۡ لِلۡحَقِّ كَٰرِهُونَ

(ऐ कुफ्फ़ार मक्का) हम तो तुम्हारे पास हक़ लेकर आयें हैं तुम मे से बहुत से हक़ (बात से चिढ़ते) हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 78


أَمۡ أَبۡرَمُوٓاْ أَمۡرٗا فَإِنَّا مُبۡرِمُونَ

क्या उन लोगों ने कोई बात ठान ली है हमने भी (कुछ ठान लिया है)
Surah Az-Zukhruf, Verse 79


أَمۡ يَحۡسَبُونَ أَنَّا لَا نَسۡمَعُ سِرَّهُمۡ وَنَجۡوَىٰهُمۚ بَلَىٰ وَرُسُلُنَا لَدَيۡهِمۡ يَكۡتُبُونَ

क्या ये लोग कुछ समझते हैं कि हम उनके भेद और उनकी सरग़ोशियों को नहीं सुनते हॉ (ज़रूर सुनते हैं) और हमारे फ़रिश्ते उनके पास हैं और उनकी सब बातें लिखते जाते हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 80


قُلۡ إِن كَانَ لِلرَّحۡمَٰنِ وَلَدٞ فَأَنَا۠ أَوَّلُ ٱلۡعَٰبِدِينَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर ख़ुदा की कोई औलाद होती तो मैं सबसे पहले उसकी इबादत को तैयार हूँ
Surah Az-Zukhruf, Verse 81


سُبۡحَٰنَ رَبِّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ رَبِّ ٱلۡعَرۡشِ عَمَّا يَصِفُونَ

ये लोग जो कुछ बयान करते हैं सारे आसमान व ज़मीन का मालिक अर्श का मालिक (ख़ुदा) उससे पाक व पाक़ीज़ा है
Surah Az-Zukhruf, Verse 82


فَذَرۡهُمۡ يَخُوضُواْ وَيَلۡعَبُواْ حَتَّىٰ يُلَٰقُواْ يَوۡمَهُمُ ٱلَّذِي يُوعَدُونَ

तो तुम उन्हें छोड़ दो कि पड़े बक बक करते और खेलते रहते हैं यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है
Surah Az-Zukhruf, Verse 83


وَهُوَ ٱلَّذِي فِي ٱلسَّمَآءِ إِلَٰهٞ وَفِي ٱلۡأَرۡضِ إِلَٰهٞۚ وَهُوَ ٱلۡحَكِيمُ ٱلۡعَلِيمُ

उनके सामने आ मौजूद हो और आसमान में भी (उसी की इबादत की जाती है और वही ज़मीन में भी माबूद है और वही वाकिफ़कार हिकमत वाला है)
Surah Az-Zukhruf, Verse 84


وَتَبَارَكَ ٱلَّذِي لَهُۥ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَمَا بَيۡنَهُمَا وَعِندَهُۥ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ

और वही बहुत बाबरकत है जिसके लिए सारे आसमान व ज़मीन और दोनों के दरमियान की हुक़ुमत है और क़यामत की ख़बर भी उसी को है और तुम लोग उसकी तरफ लौटाए जाओगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 85


وَلَا يَمۡلِكُ ٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ مِن دُونِهِ ٱلشَّفَٰعَةَ إِلَّا مَن شَهِدَ بِٱلۡحَقِّ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ

और ख़ुदा के सिवा जिनकी ये लोग इबादत करतें हैं वह तो सिफारिश का भी एख्तेयार नहीं रख़ते मगर (हॉ) जो लोग समझ बूझ कर हक़ बात (तौहीद) की गवाही दें (तो खैर)
Surah Az-Zukhruf, Verse 86


وَلَئِن سَأَلۡتَهُم مَّنۡ خَلَقَهُمۡ لَيَقُولُنَّ ٱللَّهُۖ فَأَنَّىٰ يُؤۡفَكُونَ

और अगर तुम उनसे पूछोगे कि उनको किसने पैदा किया तो ज़रूर कह देगें कि अल्लाह ने फिर (बावजूद इसके) ये कहाँ बहके जा रहे हैं
Surah Az-Zukhruf, Verse 87


وَقِيلِهِۦ يَٰرَبِّ إِنَّ هَـٰٓؤُلَآءِ قَوۡمٞ لَّا يُؤۡمِنُونَ

और (उसी को) रसूल के उस क़ौल का भी इल्म है कि परवरदिगार ये लोग हरगिज़ ईमान न लाएँगे
Surah Az-Zukhruf, Verse 88


فَٱصۡفَحۡ عَنۡهُمۡ وَقُلۡ سَلَٰمٞۚ فَسَوۡفَ يَعۡلَمُونَ

तो तुम उनसे मुँह फेर लो और कह दो कि तुम को सलाम तो उन्हें अनक़रीब ही (शरारत का नतीजा) मालूम हो जाएगा
Surah Az-Zukhruf, Verse 89


Author: Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi


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