Surah Al-Muddathir - Hindi Translation by Muhammad Farooq Khan And Muhammad Ahmed
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلۡمُدَّثِّرُ
ऐ ओढ़ने लपेटनेवाले
Surah Al-Muddathir, Verse 1
قُمۡ فَأَنذِرۡ
उठो, और सावधान करने में लग जाओ
Surah Al-Muddathir, Verse 2
وَرَبَّكَ فَكَبِّرۡ
और अपने रब की बड़ाई ही करो
Surah Al-Muddathir, Verse 3
وَثِيَابَكَ فَطَهِّرۡ
अपने दामन को पाक रखो
Surah Al-Muddathir, Verse 4
وَٱلرُّجۡزَ فَٱهۡجُرۡ
और गन्दगी से दूर ही रहो
Surah Al-Muddathir, Verse 5
وَلَا تَمۡنُن تَسۡتَكۡثِرُ
अपनी कोशिशों को अधिक समझकर उसके क्रम को भंग न करो
Surah Al-Muddathir, Verse 6
وَلِرَبِّكَ فَٱصۡبِرۡ
और अपने रब के लिए धैर्य ही से काम लो
Surah Al-Muddathir, Verse 7
فَإِذَا نُقِرَ فِي ٱلنَّاقُورِ
जब सूर में फूँक मारी जाएगी
Surah Al-Muddathir, Verse 8
فَذَٰلِكَ يَوۡمَئِذٖ يَوۡمٌ عَسِيرٌ
तो जिस दिन ऐसा होगा, वह दिन बड़ा ही कठोर होगा
Surah Al-Muddathir, Verse 9
عَلَى ٱلۡكَٰفِرِينَ غَيۡرُ يَسِيرٖ
इनकार करनेवालो पर आसान न होगा
Surah Al-Muddathir, Verse 10
ذَرۡنِي وَمَنۡ خَلَقۡتُ وَحِيدٗا
छोड़ दो मुझे और उसको जिसे मैंने अकेला पैदा किया
Surah Al-Muddathir, Verse 11
وَجَعَلۡتُ لَهُۥ مَالٗا مَّمۡدُودٗا
और उसे माल दिया दूर तक फैला हुआ
Surah Al-Muddathir, Verse 12
وَبَنِينَ شُهُودٗا
और उसके पास उपस्थित रहनेवाले बेटे दिए
Surah Al-Muddathir, Verse 13
وَمَهَّدتُّ لَهُۥ تَمۡهِيدٗا
और मैंने उसके लिए अच्छी तरह जीवन-मार्ग समतल किया
Surah Al-Muddathir, Verse 14
ثُمَّ يَطۡمَعُ أَنۡ أَزِيدَ
फिर वह लोभ रखता है कि मैं उसके लिए और अधिक दूँगा
Surah Al-Muddathir, Verse 15
كَلَّآۖ إِنَّهُۥ كَانَ لِأٓيَٰتِنَا عَنِيدٗا
कदापि नहीं, वह हमारी आयतों का दुश्मन है
Surah Al-Muddathir, Verse 16
سَأُرۡهِقُهُۥ صَعُودًا
शीघ्र ही मैं उसे घेरकर कठिन चढ़ाई चढ़वाऊँगा
Surah Al-Muddathir, Verse 17
إِنَّهُۥ فَكَّرَ وَقَدَّرَ
उसने सोचा और अटकल से एक बात बनाई
Surah Al-Muddathir, Verse 18
فَقُتِلَ كَيۡفَ قَدَّرَ
तो विनष्ट हो, कैसी बात बनाई
Surah Al-Muddathir, Verse 19
ثُمَّ قُتِلَ كَيۡفَ قَدَّرَ
फिर विनष्ट हो, कैसी बात बनाई
Surah Al-Muddathir, Verse 20
ثُمَّ نَظَرَ
फिर नज़र दौड़ाई
Surah Al-Muddathir, Verse 21
ثُمَّ عَبَسَ وَبَسَرَ
फिर त्योरी चढ़ाई और मुँह बनाया
Surah Al-Muddathir, Verse 22
ثُمَّ أَدۡبَرَ وَٱسۡتَكۡبَرَ
फिर पीठ फेरी और घमंड किया
Surah Al-Muddathir, Verse 23
فَقَالَ إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا سِحۡرٞ يُؤۡثَرُ
अन्ततः बोला, "यह तो बस एक जादू है, जो पहले से चला आ रहा है
Surah Al-Muddathir, Verse 24
إِنۡ هَٰذَآ إِلَّا قَوۡلُ ٱلۡبَشَرِ
यह तो मात्र मनुष्य की वाणी है।
Surah Al-Muddathir, Verse 25
سَأُصۡلِيهِ سَقَرَ
मैं शीघ्र ही उसे 'सक़र' (जहन्नम की आग) में झोंक दूँगा
Surah Al-Muddathir, Verse 26
وَمَآ أَدۡرَىٰكَ مَا سَقَرُ
और तुम्हें क्या पता की सक़र क्या है
Surah Al-Muddathir, Verse 27
لَا تُبۡقِي وَلَا تَذَرُ
वह न तरस खाएगी और न छोड़ेगी
Surah Al-Muddathir, Verse 28
لَوَّاحَةٞ لِّلۡبَشَرِ
खाल को झुलसा देनेवाली है
Surah Al-Muddathir, Verse 29
عَلَيۡهَا تِسۡعَةَ عَشَرَ
उसपर उन्नीस (कार्यकर्ता) नियुक्त है
Surah Al-Muddathir, Verse 30
وَمَا جَعَلۡنَآ أَصۡحَٰبَ ٱلنَّارِ إِلَّا مَلَـٰٓئِكَةٗۖ وَمَا جَعَلۡنَا عِدَّتَهُمۡ إِلَّا فِتۡنَةٗ لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ لِيَسۡتَيۡقِنَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَيَزۡدَادَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِيمَٰنٗا وَلَا يَرۡتَابَ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ وَلِيَقُولَ ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ وَٱلۡكَٰفِرُونَ مَاذَآ أَرَادَ ٱللَّهُ بِهَٰذَا مَثَلٗاۚ كَذَٰلِكَ يُضِلُّ ٱللَّهُ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ وَمَا يَعۡلَمُ جُنُودَ رَبِّكَ إِلَّا هُوَۚ وَمَا هِيَ إِلَّا ذِكۡرَىٰ لِلۡبَشَرِ
और हमने उस आग पर नियुक्त रहनेवालों को फ़रिश्ते ही बनाया है, और हमने उनकी संख्या को इनकार करनेवालों के लिए मुसीबत और आज़माइश ही बनाकर रखा है। ताकि वे लोग जिन्हें किताब प्रदान की गई थी पूर्ण विश्वास प्राप्त करें, और वे लोग जो ईमान ले आए वे ईमान में और आगे बढ़ जाएँ। और जिन लोगों को किताब प्रदान की गई वे और ईमानवाले किसी संशय मे न पड़े, और ताकि जिनके दिलों मे रोग है वे और इनकार करनेवाले कहें, "इस वर्णन से अल्लाह का क्या अभिप्राय है?" इस प्रकार अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है और जिसे चाहता हैं संमार्ग प्रदान करता है। और तुम्हारे रब की सेनाओं को स्वयं उसके सिवा कोई नहीं जानता, और यह तो मनुष्य के लिए मात्र एक शिक्षा-सामग्री है
Surah Al-Muddathir, Verse 31
كَلَّا وَٱلۡقَمَرِ
कुछ नहीं, साक्षी है चाँद
Surah Al-Muddathir, Verse 32
وَٱلَّيۡلِ إِذۡ أَدۡبَرَ
और साक्षी है रात जबकि वह पीठ फेर चुकी
Surah Al-Muddathir, Verse 33
وَٱلصُّبۡحِ إِذَآ أَسۡفَرَ
और प्रातःकाल जबकि वह पूर्णरूपेण प्रकाशित हो जाए।
Surah Al-Muddathir, Verse 34
إِنَّهَا لَإِحۡدَى ٱلۡكُبَرِ
निश्चय ही वह भारी (भयंकर) चीज़ों में से एक है
Surah Al-Muddathir, Verse 35
نَذِيرٗا لِّلۡبَشَرِ
मनुष्यों के लिए सावधानकर्ता के रूप में
Surah Al-Muddathir, Verse 36
لِمَن شَآءَ مِنكُمۡ أَن يَتَقَدَّمَ أَوۡ يَتَأَخَّرَ
तुममें से उस व्यक्ति के लिए जो आगे बढ़ना या पीछे हटना चाहे
Surah Al-Muddathir, Verse 37
كُلُّ نَفۡسِۭ بِمَا كَسَبَتۡ رَهِينَةٌ
प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ उसने कमाया उसके बदले रेहन (गिरवी) है
Surah Al-Muddathir, Verse 38
إِلَّآ أَصۡحَٰبَ ٱلۡيَمِينِ
सिवाय दाएँवालों के
Surah Al-Muddathir, Verse 39
فِي جَنَّـٰتٖ يَتَسَآءَلُونَ
वे बाग़ों में होंगे, पूछ-ताछ कर रहे होंगे
Surah Al-Muddathir, Verse 40
عَنِ ٱلۡمُجۡرِمِينَ
अपराधियों के विषय में
Surah Al-Muddathir, Verse 41
مَا سَلَكَكُمۡ فِي سَقَرَ
तुम्हे क्या चीज़ सकंर (जहन्नम) में ले आई
Surah Al-Muddathir, Verse 42
قَالُواْ لَمۡ نَكُ مِنَ ٱلۡمُصَلِّينَ
वे कहेंगे, "हम नमाज़ अदा करनेवालों में से न थे।
Surah Al-Muddathir, Verse 43
وَلَمۡ نَكُ نُطۡعِمُ ٱلۡمِسۡكِينَ
और न हम मुहताज को खाना खिलाते थे
Surah Al-Muddathir, Verse 44
وَكُنَّا نَخُوضُ مَعَ ٱلۡخَآئِضِينَ
और व्यर्थ बात और कठ-हुज्जती में पड़े रहनेवालों के साथ हम भी उसी में लगे रहते थे।
Surah Al-Muddathir, Verse 45
وَكُنَّا نُكَذِّبُ بِيَوۡمِ ٱلدِّينِ
और हम बदला दिए जाने के दिन को झुठलाते थे
Surah Al-Muddathir, Verse 46
حَتَّىٰٓ أَتَىٰنَا ٱلۡيَقِينُ
यहाँ तक कि विश्वसनीय चीज़ (प्रलय-दिवस) में हमें आ लिया।
Surah Al-Muddathir, Verse 47
فَمَا تَنفَعُهُمۡ شَفَٰعَةُ ٱلشَّـٰفِعِينَ
अतः सिफ़ारिश करनेवालों को कोई सिफ़ारिश उनको कुछ लाभ न पहुँचा सकेगी
Surah Al-Muddathir, Verse 48
فَمَا لَهُمۡ عَنِ ٱلتَّذۡكِرَةِ مُعۡرِضِينَ
आख़िर उन्हें क्या हुआ है कि वे नसीहत से कतराते है
Surah Al-Muddathir, Verse 49
كَأَنَّهُمۡ حُمُرٞ مُّسۡتَنفِرَةٞ
मानो वे बिदके हुए जंगली गधे है
Surah Al-Muddathir, Verse 50
فَرَّتۡ مِن قَسۡوَرَةِۭ
जो शेर से (डरकर) भागे है
Surah Al-Muddathir, Verse 51
بَلۡ يُرِيدُ كُلُّ ٱمۡرِيٕٖ مِّنۡهُمۡ أَن يُؤۡتَىٰ صُحُفٗا مُّنَشَّرَةٗ
नहीं, बल्कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे खुली किताबें दी जाएँ
Surah Al-Muddathir, Verse 52
كَلَّاۖ بَل لَّا يَخَافُونَ ٱلۡأٓخِرَةَ
कदापि नहीं, बल्कि ले आख़िरत से डरते नहीं
Surah Al-Muddathir, Verse 53
كَلَّآ إِنَّهُۥ تَذۡكِرَةٞ
कुछ नहीं, वह तो एक अनुस्मति है
Surah Al-Muddathir, Verse 54
فَمَن شَآءَ ذَكَرَهُۥ
अब जो कोई चाहे इससे नसीहत हासिल करे
Surah Al-Muddathir, Verse 55
وَمَا يَذۡكُرُونَ إِلَّآ أَن يَشَآءَ ٱللَّهُۚ هُوَ أَهۡلُ ٱلتَّقۡوَىٰ وَأَهۡلُ ٱلۡمَغۡفِرَةِ
और वे नसीहत हासिल नहीं करेंगे। यह और बात है कि अल्लाह ही ऐसा चाहे। वही इस योग्य है कि उसका डर रखा जाए और इस योग्य भी कि क्षमा करे
Surah Al-Muddathir, Verse 56