Surah Ibrahim - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi
الٓرۚ كِتَٰبٌ أَنزَلۡنَٰهُ إِلَيۡكَ لِتُخۡرِجَ ٱلنَّاسَ مِنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ بِإِذۡنِ رَبِّهِمۡ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡحَمِيدِ
अलिफ़ लाम रा ऐ रसूल ये (क़ुरान वह) किताब है जिसकों हमने तुम्हारे पास इसलिए नाज़िल किया है कि तुम लोगों को परवरदिगार के हुक्म से (कुफ्र की) तारीकी से (ईमान की) रौशनी में निकाल लाओ ग़रज़ उसकी राह पर लाओ जो सब पर ग़ालिब और सज़ावार हम्द है
Surah Ibrahim, Verse 1
ٱللَّهِ ٱلَّذِي لَهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَوَيۡلٞ لِّلۡكَٰفِرِينَ مِنۡ عَذَابٖ شَدِيدٍ
वह ख़ुदा को कुछ आसमानों में और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और (आख़िरत में) काफिरों को लिए जो सख्त अज़ाब (मुहय्या किया गया) है अफसोस नाक है
Surah Ibrahim, Verse 2
ٱلَّذِينَ يَسۡتَحِبُّونَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا عَلَى ٱلۡأٓخِرَةِ وَيَصُدُّونَ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَيَبۡغُونَهَا عِوَجًاۚ أُوْلَـٰٓئِكَ فِي ضَلَٰلِۭ بَعِيدٖ
वह कुफ्फार जो दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी को आख़िरत पर तरजीह देते हैं और (लोगों) को ख़ुदा की राह (पर चलने) से रोकते हैं और इसमें ख्वाह मा ख्वाह कज़ी पैदा करना चाहते हैं यही लोग बड़े पल्ले दर्जे की गुमराही में हैं
Surah Ibrahim, Verse 3
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن رَّسُولٍ إِلَّا بِلِسَانِ قَوۡمِهِۦ لِيُبَيِّنَ لَهُمۡۖ فَيُضِلُّ ٱللَّهُ مَن يَشَآءُ وَيَهۡدِي مَن يَشَآءُۚ وَهُوَ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
और हमने जब कभी कोई पैग़म्बर भेजा तो उसकी क़ौम की ज़बान में बातें करता हुआ (ताकि उसके सामने (हमारे एहक़ाम) बयान कर सके तो यही ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिस की चाहता है हिदायत करता है वही सब पर ग़ालिब हिकमत वाला है
Surah Ibrahim, Verse 4
وَلَقَدۡ أَرۡسَلۡنَا مُوسَىٰ بِـَٔايَٰتِنَآ أَنۡ أَخۡرِجۡ قَوۡمَكَ مِنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ وَذَكِّرۡهُم بِأَيَّىٰمِ ٱللَّهِۚ إِنَّ فِي ذَٰلِكَ لَأٓيَٰتٖ لِّكُلِّ صَبَّارٖ شَكُورٖ
और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ देकर भेजा (और ये हुक्म दिया) कि अपनी क़ौम को (कुफ्र की) तारिकियों से (ईमान की) रौशनी में निकाल लाओ और उन्हें ख़ुदा के (वह) दिन याद दिलाओ (जिनमें ख़ुदा की बड़ी बड़ी कुदरतें ज़ाहिर हुई) इसमें शक़ नहीं इसमें तमाम सब्र शुक्र करने वालों के वास्ते (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं
Surah Ibrahim, Verse 5
وَإِذۡ قَالَ مُوسَىٰ لِقَوۡمِهِ ٱذۡكُرُواْ نِعۡمَةَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ إِذۡ أَنجَىٰكُم مِّنۡ ءَالِ فِرۡعَوۡنَ يَسُومُونَكُمۡ سُوٓءَ ٱلۡعَذَابِ وَيُذَبِّحُونَ أَبۡنَآءَكُمۡ وَيَسۡتَحۡيُونَ نِسَآءَكُمۡۚ وَفِي ذَٰلِكُم بَلَآءٞ مِّن رَّبِّكُمۡ عَظِيمٞ
और वह (वक्त याद दिलाओ) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ख़ुदा ने जो एहसान तुम पर किए हैं उनको याद करो जब अकेले तुमको फिरऔन के लोगों (के ज़ुल्म) से नजात दी कि वह तुम को बहुत बड़े बड़े दुख दे के सताते थे तुम्हारा लड़कों को जबाह कर डालते थे और तुम्हारी औरतों को (अपनी ख़िदमत के वास्ते) जिन्दा रहने देते थे और इसमें तुम्हारा परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारा सब्र की) बड़ी (सख्त) आज़माइश थी
Surah Ibrahim, Verse 6
وَإِذۡ تَأَذَّنَ رَبُّكُمۡ لَئِن شَكَرۡتُمۡ لَأَزِيدَنَّكُمۡۖ وَلَئِن كَفَرۡتُمۡ إِنَّ عَذَابِي لَشَدِيدٞ
और (वह वक्त याद दिलाओ) जब तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें जता दिया कि अगर (मेरा) शुक्र करोगें तो मै यक़ीनन तुम पर (नेअमत की) ज्यादती करुँगा और अगर कहीं तुमने नाशुक्री की तो (याद रखो कि) यक़ीनन मेरा अज़ाब सख्त है
Surah Ibrahim, Verse 7
وَقَالَ مُوسَىٰٓ إِن تَكۡفُرُوٓاْ أَنتُمۡ وَمَن فِي ٱلۡأَرۡضِ جَمِيعٗا فَإِنَّ ٱللَّهَ لَغَنِيٌّ حَمِيدٌ
और मूसा ने (अपनी क़ौम से) कह दिया कि अगर और (तुम्हारे साथ) जितने रुए ज़मीन पर हैं सब के सब (मिलकर भी ख़ुदा की) नाशुक्री करो तो ख़ुदा (को ज़रा भी परवाह नहीं क्योंकि वह तो बिल्कुल) बे नियाज़ है
Surah Ibrahim, Verse 8
أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ نَبَؤُاْ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ قَوۡمِ نُوحٖ وَعَادٖ وَثَمُودَ وَٱلَّذِينَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡ لَا يَعۡلَمُهُمۡ إِلَّا ٱللَّهُۚ جَآءَتۡهُمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَرَدُّوٓاْ أَيۡدِيَهُمۡ فِيٓ أَفۡوَٰهِهِمۡ وَقَالُوٓاْ إِنَّا كَفَرۡنَا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ وَإِنَّا لَفِي شَكّٖ مِّمَّا تَدۡعُونَنَآ إِلَيۡهِ مُرِيبٖ
और हम्द है क्या तुम्हारे पास उन लोगों की ख़बर नहीं पहुँची जो तुमसे पहले थे (जैसे) नूह की क़ौम और आद व समूद और (दूसरे लोग) जो उनके बाद हुए (क्योकर ख़बर होती) उनको ख़ुदा के सिवा कोई जानता ही नहीं उनके पास उनके (वक्त क़े) पैग़म्बर मौजिज़े लेकर आए (और समझाने लगे) तो उन लोगों ने उन पैग़म्बरों के हाथों को उनके मुँह पर उलटा मार दिया और कहने लगे कि जो (हुक्म लेकर) तुम ख़ुदा की तरफ से भेजे गए हो हम तो उसको नहीं मानते और जिस (दीन) की तरफ तुम हमको बुलाते हो बड़े गहरे शक़ में पड़े है
Surah Ibrahim, Verse 9
۞قَالَتۡ رُسُلُهُمۡ أَفِي ٱللَّهِ شَكّٞ فَاطِرِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۖ يَدۡعُوكُمۡ لِيَغۡفِرَ لَكُم مِّن ذُنُوبِكُمۡ وَيُؤَخِّرَكُمۡ إِلَىٰٓ أَجَلٖ مُّسَمّٗىۚ قَالُوٓاْ إِنۡ أَنتُمۡ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُنَا تُرِيدُونَ أَن تَصُدُّونَا عَمَّا كَانَ يَعۡبُدُ ءَابَآؤُنَا فَأۡتُونَا بِسُلۡطَٰنٖ مُّبِينٖ
(तब) उनके पैग़म्बरों ने (उनसे) कहा क्या तुम को ख़ुदा के बारे में शक़ है जो सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (और) वह तुमको अपनी तरफ बुलाता भी है तो इसलिए कि तुम्हारे गुनाह माफ कर दे और एक वक्त मुक़र्रर तक तुमको (दुनिया में चैन से) रहने दे वह लोग बोल उठे कि तुम भी बस हमारे ही से आदमी हो (अच्छा) अब समझे तुम ये चाहते हो कि जिन माबूदों की हमारे बाप दादा परसतिश करते थे तुम हमको उनसे बाज़ रखो अच्छा अगर तुम सच्चे हो तो कोई साफ खुला हुआ सरीही मौजिज़ा हमे ला दिखाओ
Surah Ibrahim, Verse 10
قَالَتۡ لَهُمۡ رُسُلُهُمۡ إِن نَّحۡنُ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ يَمُنُّ عَلَىٰ مَن يَشَآءُ مِنۡ عِبَادِهِۦۖ وَمَا كَانَ لَنَآ أَن نَّأۡتِيَكُم بِسُلۡطَٰنٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
उनके पैग़म्बरों ने उनके जवाब में कहा कि इसमें शक़ नहीं कि हम भी तुम्हारे ही से आदमी हैं मगर ख़ुदा अपने बन्दों में जिस पर चाहता है अपना फज़ल (व करम) करता है (और) रिसालत अता करता है और हमारे एख्तियार मे ये बात नही कि बे हुक्मे ख़ुदा (तुम्हारी फरमाइश के मुवाफिक़) हम कोई मौजिज़ा तुम्हारे सामने ला सकें और ख़ुदा ही पर सब ईमानदारों को भरोसा रखना चाहिए
Surah Ibrahim, Verse 11
وَمَا لَنَآ أَلَّا نَتَوَكَّلَ عَلَى ٱللَّهِ وَقَدۡ هَدَىٰنَا سُبُلَنَاۚ وَلَنَصۡبِرَنَّ عَلَىٰ مَآ ءَاذَيۡتُمُونَاۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُتَوَكِّلُونَ
और हमें (आख़िर) क्या है कि हम उस पर भरोसा न करें हालॉकि हमे (निजात की) आसान राहें दिखाई और जो तूने अज़ियतें हमें पहुँचाइ (उन पर हमने सब्र किया और आइन्दा भी सब्र करेगें और तवक्कल भरोसा करने वालो को ख़ुदा ही पर तवक्कल करना चाहिए)
Surah Ibrahim, Verse 12
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لِرُسُلِهِمۡ لَنُخۡرِجَنَّكُم مِّنۡ أَرۡضِنَآ أَوۡ لَتَعُودُنَّ فِي مِلَّتِنَاۖ فَأَوۡحَىٰٓ إِلَيۡهِمۡ رَبُّهُمۡ لَنُهۡلِكَنَّ ٱلظَّـٰلِمِينَ
और जिन लोगों नें कुफ्र एख्तियार किया था अपने (वक्त क़े) पैग़म्बरों से कहने लगे हम तो तुमको अपनी सरज़मीन से ज़रुर निकाल बाहर कर देगें यहाँ तक कि तुम फिर हमारे मज़हब की तरफ पलट आओ-तो उनके परवरदिगार ने उनकी तरफ वही भेजी कि तुम घबराओं नहीं हम उन सरकश लोगों को ज़रुर बर्बाद करेगें
Surah Ibrahim, Verse 13
وَلَنُسۡكِنَنَّكُمُ ٱلۡأَرۡضَ مِنۢ بَعۡدِهِمۡۚ ذَٰلِكَ لِمَنۡ خَافَ مَقَامِي وَخَافَ وَعِيدِ
और उनकी हलाकत के बाद ज़रुर तुम्ही को इस सरज़मीन में बसाएगें ये (वायदा) महज़ उस शख़्श से जो हमारी बारगाह में (आमाल की जवाब देही में) खड़े होने से डरे
Surah Ibrahim, Verse 14
وَٱسۡتَفۡتَحُواْ وَخَابَ كُلُّ جَبَّارٍ عَنِيدٖ
और हमारे अज़ाब से ख़ौफ खाए और उन पैग़म्बरों हम से अपनी फतेह की दुआ माँगी (आख़िर वह पूरी हुई)
Surah Ibrahim, Verse 15
مِّن وَرَآئِهِۦ جَهَنَّمُ وَيُسۡقَىٰ مِن مَّآءٖ صَدِيدٖ
और हर एक सरकश अदावत रखने वाला हलाक हुआ (ये तो उनकी सज़ा थी और उसके पीछे ही पीछे जहन्नुम है और उसमें) से पीप लहू भरा हुआ पानी पीने को दिया जाएगा
Surah Ibrahim, Verse 16
يَتَجَرَّعُهُۥ وَلَا يَكَادُ يُسِيغُهُۥ وَيَأۡتِيهِ ٱلۡمَوۡتُ مِن كُلِّ مَكَانٖ وَمَا هُوَ بِمَيِّتٖۖ وَمِن وَرَآئِهِۦ عَذَابٌ غَلِيظٞ
(ज़बरदस्ती) उसे घूँट घँट करके पीना पड़ेगा और उसे हलक़ से आसानी से न उतार सकेगा और (वह मुसीबत है कि) उसे हर तरफ से मौत ही मौत आती दिखाई देती है हालॉकि वह मारे न मर सकेगा-और फिर उसके पीछे अज़ाब सख्त होगा
Surah Ibrahim, Verse 17
مَّثَلُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِرَبِّهِمۡۖ أَعۡمَٰلُهُمۡ كَرَمَادٍ ٱشۡتَدَّتۡ بِهِ ٱلرِّيحُ فِي يَوۡمٍ عَاصِفٖۖ لَّا يَقۡدِرُونَ مِمَّا كَسَبُواْ عَلَىٰ شَيۡءٖۚ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلضَّلَٰلُ ٱلۡبَعِيدُ
जो लोग अपने परवरदिगार से काफिर हो बैठे हैं उनकी मसल ऐसी है कि उनकी कारस्तानियाँ गोया (राख का एक ढेर) है जिसे (अन्धड़ के रोज़ हवा का बड़े ज़ोरों का झोंका उड़ा लेगा जो कुछ उन लोगों ने (दुनिया में) किया कराया उसमें से कुछ भी उनके क़ाबू में न होगा यही तो पल्ले दर्जे की गुमराही है
Surah Ibrahim, Verse 18
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّۚ إِن يَشَأۡ يُذۡهِبۡكُمۡ وَيَأۡتِ بِخَلۡقٖ جَدِيدٖ
क्या तूने नहीं देखा कि ख़ुदा ही ने सारे आसमान व ज़मीन ज़रुर मसलहत से पैदा किए अगर वह चाहे तो सबको मिटाकर एक नई खिलक़त (बस्ती) ला बसाए
Surah Ibrahim, Verse 19
وَمَا ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ بِعَزِيزٖ
औ ये ख़ुदा पर कुछ भी दुशवार नहीं
Surah Ibrahim, Verse 20
وَبَرَزُواْ لِلَّهِ جَمِيعٗا فَقَالَ ٱلضُّعَفَـٰٓؤُاْ لِلَّذِينَ ٱسۡتَكۡبَرُوٓاْ إِنَّا كُنَّا لَكُمۡ تَبَعٗا فَهَلۡ أَنتُم مُّغۡنُونَ عَنَّا مِنۡ عَذَابِ ٱللَّهِ مِن شَيۡءٖۚ قَالُواْ لَوۡ هَدَىٰنَا ٱللَّهُ لَهَدَيۡنَٰكُمۡۖ سَوَآءٌ عَلَيۡنَآ أَجَزِعۡنَآ أَمۡ صَبَرۡنَا مَا لَنَا مِن مَّحِيصٖ
और (क़यामत के दिन) लोग सबके सब ख़ुदा के सामने निकल खड़े होगें जो लोग (दुनिया में कमज़ोर थे बड़ी इज्ज़त रखने वालो से (उस वक्त) क़हेंगें कि हम तो बस तुम्हारे क़दम ब क़दम चलने वाले थे तो क्या (आज) तुम ख़ुदा के अज़ाब से कुछ भी हमारे आड़े आ सकते हो वह जवाब देगें काश ख़ुदा हमारी हिदायत करता तो हम भी तुम्हारी हिदायत करते हम ख्वाह बेक़रारी करें ख्वाह सब्र करे (दोनो) हमारे लिए बराबर है (क्योंकि अज़ाब से) हमें तो अब छुटकारा नहीं
Surah Ibrahim, Verse 21
وَقَالَ ٱلشَّيۡطَٰنُ لَمَّا قُضِيَ ٱلۡأَمۡرُ إِنَّ ٱللَّهَ وَعَدَكُمۡ وَعۡدَ ٱلۡحَقِّ وَوَعَدتُّكُمۡ فَأَخۡلَفۡتُكُمۡۖ وَمَا كَانَ لِيَ عَلَيۡكُم مِّن سُلۡطَٰنٍ إِلَّآ أَن دَعَوۡتُكُمۡ فَٱسۡتَجَبۡتُمۡ لِيۖ فَلَا تَلُومُونِي وَلُومُوٓاْ أَنفُسَكُمۖ مَّآ أَنَا۠ بِمُصۡرِخِكُمۡ وَمَآ أَنتُم بِمُصۡرِخِيَّ إِنِّي كَفَرۡتُ بِمَآ أَشۡرَكۡتُمُونِ مِن قَبۡلُۗ إِنَّ ٱلظَّـٰلِمِينَ لَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ
और जब (लोगों का) ख़ैर फैसला हो चुकेगा (और लोग शैतान को इल्ज़ाम देगें) तो शैतान कहेगा कि ख़ुदा ने तुम से सच्चा वायदा किया था (तो वह पूरा हो गया) और मैने भी वायदा तो किया था फिर मैने वायदा ख़िलाफ़ी की और मुझे कुछ तुम पर हुकूमत तो थी नहीं मगर इतनी बात थी कि मैने तुम को (बुरे कामों की तरफ) बुलाया और तुमने मेरा कहा मान लिया तो अब तुम मुझे बुंरा (भला) न कहो बल्कि (अगर कहना है तो) अपने नफ्स को बुरा कहो (आज) न तो मैं तुम्हारी फरियाद को पहुँचा सकता हूँ और न तुम मेरी फरियाद कर सकते हो मै तो उससे पहले ही बेज़ार हूँ कि तुमने मुझे (ख़ुदा का) शरीक बनाया बेशक जो लोग नाफरमान हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है
Surah Ibrahim, Verse 22
وَأُدۡخِلَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا بِإِذۡنِ رَبِّهِمۡۖ تَحِيَّتُهُمۡ فِيهَا سَلَٰمٌ
और जिन लोगों ने (सदक़ दिल से) ईमान क़ुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए वह (बेहश्त के) उन बाग़ों में दाख़िल किए जाएँगें जिनके नीचे नहरे जारी होगी और वह अपने परवरदिगार के हुक्म से हमेशा उसमें रहेगें वहाँ उन (की मुलाक़ात) का तोहफा सलाम का हो
Surah Ibrahim, Verse 23
أَلَمۡ تَرَ كَيۡفَ ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا كَلِمَةٗ طَيِّبَةٗ كَشَجَرَةٖ طَيِّبَةٍ أَصۡلُهَا ثَابِتٞ وَفَرۡعُهَا فِي ٱلسَّمَآءِ
(ऐ रसूल) क्या तुमने नहीं देखा कि ख़ुदा ने अच्छी बात (मसलन कलमा तौहीद की) वैसी अच्छी मिसाल बयान की है कि (अच्छी बात) गोया एक पाकीज़ा दरख्त है कि उसकी जड़ मज़बूत है और उसकी टहनियाँ आसमान में लगी हो
Surah Ibrahim, Verse 24
تُؤۡتِيٓ أُكُلَهَا كُلَّ حِينِۭ بِإِذۡنِ رَبِّهَاۗ وَيَضۡرِبُ ٱللَّهُ ٱلۡأَمۡثَالَ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَتَذَكَّرُونَ
अपने परवरदिगार के हुक्म से हर वक्त फ़ला (फूला) रहता है और ख़ुदा लोगों के वास्ते (इसलिए) मिसालें बयान फरमाता है ताकि लोग नसीहत व इबरत हासिल करें
Surah Ibrahim, Verse 25
وَمَثَلُ كَلِمَةٍ خَبِيثَةٖ كَشَجَرَةٍ خَبِيثَةٍ ٱجۡتُثَّتۡ مِن فَوۡقِ ٱلۡأَرۡضِ مَا لَهَا مِن قَرَارٖ
और गन्दी बात (जैसे कलमाए शिर्क) की मिसाल गोया एक गन्दे दरख्त की सी है (जिसकी जड़ ऐसी कमज़ोर हो) कि ज़मीन के ऊपर ही से उखाड़ फेंका जाए (क्योंकि) उसको कुछ ठहराओ तो है नहीं
Surah Ibrahim, Verse 26
يُثَبِّتُ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱلۡقَوۡلِ ٱلثَّابِتِ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَيُضِلُّ ٱللَّهُ ٱلظَّـٰلِمِينَۚ وَيَفۡعَلُ ٱللَّهُ مَا يَشَآءُ
जो लोग पक्की बात (कलमा तौहीद) पर (सदक़ दिल से ईमान ला चुके उनको ख़ुदा दुनिया की ज़िन्दगी में भी साबित क़दम रखता है और आख़िरत में भी साबित क़दम रखेगा (और) उन्हें सवाल व जवाब में कोई वक्त न होगा और सरकशों को ख़ुदा गुमराही में छोड़ देता है और ख़ुदा जो चाहता है करता है
Surah Ibrahim, Verse 27
۞أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ بَدَّلُواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ كُفۡرٗا وَأَحَلُّواْ قَوۡمَهُمۡ دَارَ ٱلۡبَوَارِ
(ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों के हाल पर ग़ौर नहीं किया जिन्होंने मेरे एहसान के बदले नाशुक्री की एख्तियार की और अपनी क़ौम को हलाकत के घरवाहे (जहन्नुम) में झोंक दिया
Surah Ibrahim, Verse 28
جَهَنَّمَ يَصۡلَوۡنَهَاۖ وَبِئۡسَ ٱلۡقَرَارُ
कि सबके सब जहन्नुम वासिल होगें और वह (क्या) बुरा ठिकाना है
Surah Ibrahim, Verse 29
وَجَعَلُواْ لِلَّهِ أَندَادٗا لِّيُضِلُّواْ عَن سَبِيلِهِۦۗ قُلۡ تَمَتَّعُواْ فَإِنَّ مَصِيرَكُمۡ إِلَى ٱلنَّارِ
और वह लोग दूसरो को ख़ुदा का हमसर (बराबर) बनाने लगे ताकि (लोगों को) उसकी राह से बहका दे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (ख़ैर चन्द रोज़ तो) चैन कर लो फिर तो तुम्हें दोज़ख की तरफ लौट कर जाना ही है
Surah Ibrahim, Verse 30
قُل لِّعِبَادِيَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ يُقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَيُنفِقُواْ مِمَّا رَزَقۡنَٰهُمۡ سِرّٗا وَعَلَانِيَةٗ مِّن قَبۡلِ أَن يَأۡتِيَ يَوۡمٞ لَّا بَيۡعٞ فِيهِ وَلَا خِلَٰلٌ
(ऐ रसूल) मेरे वह बन्दे जो ईमान ला चुके उन से कह दो कि पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करें और जो कुछ हमने उन्हें रोज़ी दी है उसमें से (ख़ुदा की राह में) छिपाकर या दिखा कर ख़र्च किया करे उस दिन (क़यामत) के आने से पहल जिसमें न तो (ख़रीदो) फरोख्त ही (काम आएगी) न दोस्ती मोहब्बत काम (आएगी)
Surah Ibrahim, Verse 31
ٱللَّهُ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ وَأَنزَلَ مِنَ ٱلسَّمَآءِ مَآءٗ فَأَخۡرَجَ بِهِۦ مِنَ ٱلثَّمَرَٰتِ رِزۡقٗا لَّكُمۡۖ وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلۡفُلۡكَ لِتَجۡرِيَ فِي ٱلۡبَحۡرِ بِأَمۡرِهِۦۖ وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلۡأَنۡهَٰرَ
ख़ुदा ही ऐसा (क़ादिर तवाना) है जिसने सारे आसमान व ज़मीन पैदा कर डाले और आसमान से पानी बरसाया फिर उसके ज़रिए से (मुख्तलिफ दरख्तों से) तुम्हारी रोज़ा के वास्ते (तरह तरह) के फल पैदा किए और तुम्हारे वास्ते कश्तियां तुम्हारे बस में कर दी-ताकि उसके हुक्म से दरिया में चलें और तुम्हारे वास्ते नदियों को तुम्हारे एख्तियार में कर दिया
Surah Ibrahim, Verse 32
وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَ دَآئِبَيۡنِۖ وَسَخَّرَ لَكُمُ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ
और सूरज और चाँद को तुम्हारा ताबेदार बना दिया कि सदा फेरी किया करते हैं और रात और दिन को तुम्हारे क़ब्ज़े में कर दिया कि हमेशा हाज़िर रहते हैं
Surah Ibrahim, Verse 33
وَءَاتَىٰكُم مِّن كُلِّ مَا سَأَلۡتُمُوهُۚ وَإِن تَعُدُّواْ نِعۡمَتَ ٱللَّهِ لَا تُحۡصُوهَآۗ إِنَّ ٱلۡإِنسَٰنَ لَظَلُومٞ كَفَّارٞ
(और अपनी ज़रुरत के मुवाफिक) जो कुछ तुमने उससे माँगा उसमें से (तुम्हारी ज़रूरत भर) तुम्हे दिया और तुम ख़ुदा की नेमतो गिनती करना चाहते हो तो गिन नहीं सकते हो तू बड़ा बे इन्साफ नाशुक्रा है
Surah Ibrahim, Verse 34
وَإِذۡ قَالَ إِبۡرَٰهِيمُ رَبِّ ٱجۡعَلۡ هَٰذَا ٱلۡبَلَدَ ءَامِنٗا وَٱجۡنُبۡنِي وَبَنِيَّ أَن نَّعۡبُدَ ٱلۡأَصۡنَامَ
और (वह वक्त याद करो) जब इबराहीम ने (ख़ुदा से) अर्ज़ की थी कि परवरदिगार इस शहर (मक्के) को अमन व अमान की जगह बना दे और मुझे और मेरी औलाद को इस बात को बचा ले कि बुतों की परसतिश करने लगे
Surah Ibrahim, Verse 35
رَبِّ إِنَّهُنَّ أَضۡلَلۡنَ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلنَّاسِۖ فَمَن تَبِعَنِي فَإِنَّهُۥ مِنِّيۖ وَمَنۡ عَصَانِي فَإِنَّكَ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
ऐ मेरे पालने वाले इसमें शक़ नहीं कि इन बुतों ने बहुतेरे लोगों को गुमराह बना छोड़ा तो जो शख़्श मेरी पैरवी करे तो वह मुझ से है और जिसने मेरी नाफ़रमानी की (तो तुझे एख्तेयार है) तू तो बड़ा बख्शने वपला मेहरबान है
Surah Ibrahim, Verse 36
رَّبَّنَآ إِنِّيٓ أَسۡكَنتُ مِن ذُرِّيَّتِي بِوَادٍ غَيۡرِ ذِي زَرۡعٍ عِندَ بَيۡتِكَ ٱلۡمُحَرَّمِ رَبَّنَا لِيُقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ فَٱجۡعَلۡ أَفۡـِٔدَةٗ مِّنَ ٱلنَّاسِ تَهۡوِيٓ إِلَيۡهِمۡ وَٱرۡزُقۡهُم مِّنَ ٱلثَّمَرَٰتِ لَعَلَّهُمۡ يَشۡكُرُونَ
ऐ हमारे पालने वाले मैने तेरे मुअज़िज़ (इज्ज़त वाले) घर (काबे) के पास एक बेखेती के (वीरान) बियाबान (मक्का) में अपनी कुछ औलाद को (लाकर) बसाया है ताकि ऐ हमारे पालने वाले ये लोग बराबर यहाँ नमाज़ पढ़ा करें तो तू कुछ लोगों के दिलों को उनकी तरफ माएल कर (ताकि वह यहाँ आकर आबाद हों) और उन्हें तरह तरह के फलों से रोज़ी अता कर ताकि ये लोग (तेरा) शुक्र करें
Surah Ibrahim, Verse 37
رَبَّنَآ إِنَّكَ تَعۡلَمُ مَا نُخۡفِي وَمَا نُعۡلِنُۗ وَمَا يَخۡفَىٰ عَلَى ٱللَّهِ مِن شَيۡءٖ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَلَا فِي ٱلسَّمَآءِ
ऐ हमारे पालने वाले जो कुछ हम छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तू (सबसे) खूब वाक़िफ है और ख़ुदा से तो कोई चीज़ छिपी नहीं (न) ज़मीन में और न आसमान में उस ख़ुदा का (लाख लाख) शुक्र है
Surah Ibrahim, Verse 38
ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي وَهَبَ لِي عَلَى ٱلۡكِبَرِ إِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَۚ إِنَّ رَبِّي لَسَمِيعُ ٱلدُّعَآءِ
जिसने मुझे बुढ़ापा आने पर इस्माईल व इसहाक़ (दो फरज़न्द) अता किए इसमें तो शक़ नहीं कि मेरा परवरदिगार दुआ का सुनने वाला है
Surah Ibrahim, Verse 39
رَبِّ ٱجۡعَلۡنِي مُقِيمَ ٱلصَّلَوٰةِ وَمِن ذُرِّيَّتِيۚ رَبَّنَا وَتَقَبَّلۡ دُعَآءِ
ऐ मेरे पालने वाले मुझे और मेरी औलाद को (भी) नमाज़ का पाबन्द बना दे और ऐ मेरे पालने वाले मेरी दुआ क़ुबूल फरमा
Surah Ibrahim, Verse 40
رَبَّنَا ٱغۡفِرۡ لِي وَلِوَٰلِدَيَّ وَلِلۡمُؤۡمِنِينَ يَوۡمَ يَقُومُ ٱلۡحِسَابُ
ऐ हमारे पालने वाले जिस दिन (आमाल का) हिसाब होने लगे मुझको और मेरे माँ बाप को और सारे ईमानदारों को तू बख्श दे
Surah Ibrahim, Verse 41
وَلَا تَحۡسَبَنَّ ٱللَّهَ غَٰفِلًا عَمَّا يَعۡمَلُ ٱلظَّـٰلِمُونَۚ إِنَّمَا يُؤَخِّرُهُمۡ لِيَوۡمٖ تَشۡخَصُ فِيهِ ٱلۡأَبۡصَٰرُ
और जो कुछ ये कुफ्फ़ार (कुफ्फ़ारे मक्का) किया करते हैं उनसे ख़ुदा को ग़ाफिल न समझना (और उन पर फौरन अज़ाब न करने की) सिर्फ ये वजह है कि उस दिन तक की मोहलत देता है जिस दिन लोगों की ऑंखों के ढेले (ख़ौफ के मारे) पथरा जाएँगें
Surah Ibrahim, Verse 42
مُهۡطِعِينَ مُقۡنِعِي رُءُوسِهِمۡ لَا يَرۡتَدُّ إِلَيۡهِمۡ طَرۡفُهُمۡۖ وَأَفۡـِٔدَتُهُمۡ هَوَآءٞ
और अपने अपने सर उठाए भागे चले जा रहे हैं (टकटकी बँधी है कि) उनकी तरफ उनकी नज़र नहीं लौटती (जिधर देख रहे हैं) और उनके दिल हवा हवा हो रहे हैं
Surah Ibrahim, Verse 43
وَأَنذِرِ ٱلنَّاسَ يَوۡمَ يَأۡتِيهِمُ ٱلۡعَذَابُ فَيَقُولُ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ رَبَّنَآ أَخِّرۡنَآ إِلَىٰٓ أَجَلٖ قَرِيبٖ نُّجِبۡ دَعۡوَتَكَ وَنَتَّبِعِ ٱلرُّسُلَۗ أَوَلَمۡ تَكُونُوٓاْ أَقۡسَمۡتُم مِّن قَبۡلُ مَا لَكُم مِّن زَوَالٖ
और (ऐ रसूल) लोगों को उस दिन से डराओ (जिस दिन) उन पर अज़ाब नाज़िल होगा तो जिन लोगों ने नाफरमानी की थी (गिड़गिड़ा कर) अर्ज़ करेगें कि ऐ हमारे पालने वाले हम को थोड़ी सी मोहलत और दे दे (अबकी बार) हम तेरे बुलाने पर ज़रुर उठ खड़े होगें और सब रसूलों की पैरवी करेगें (तो उनको जवाब मिलेगा) क्या तुम वह लोग नहीं हो जो उसके पहले (उस पर) क़समें खाया करते थे कि तुम को किसी तरह का ज़व्वाल (नुक्सान) नहीं
Surah Ibrahim, Verse 44
وَسَكَنتُمۡ فِي مَسَٰكِنِ ٱلَّذِينَ ظَلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ وَتَبَيَّنَ لَكُمۡ كَيۡفَ فَعَلۡنَا بِهِمۡ وَضَرَبۡنَا لَكُمُ ٱلۡأَمۡثَالَ
(और क्या तुम वह लोग नहीं कि) जिन लोगों ने (हमारी नाफ़रमानी करके) आप अपने ऊपर जुल्म किया उन्हीं के घरों में तुम भी रहे हालॉकि तुम पर ये भी ज़ाहिर हो चुका था कि हमने उनके साथ क्या (बरताओ) किया और हमने (तुम्हारे समझाने के वास्ते) मसले भी बयान कर दी थीं
Surah Ibrahim, Verse 45
وَقَدۡ مَكَرُواْ مَكۡرَهُمۡ وَعِندَ ٱللَّهِ مَكۡرُهُمۡ وَإِن كَانَ مَكۡرُهُمۡ لِتَزُولَ مِنۡهُ ٱلۡجِبَالُ
और वह लोग अपनी चालें चलते हैं (और कभी बाज़ न आए) हालॉकि उनकी सब हालतें खुदा की नज़र में थी और अगरचे उनकी मक्कारियाँ (उस गज़ब की) थीं कि उन से पहाड़ (अपनी जगह से) हट जाये
Surah Ibrahim, Verse 46
فَلَا تَحۡسَبَنَّ ٱللَّهَ مُخۡلِفَ وَعۡدِهِۦ رُسُلَهُۥٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَزِيزٞ ذُو ٱنتِقَامٖ
तो तुम ये ख्याल (भी) न करना कि ख़ुदा अपने रसूलों से ख़िलाफ वायदा करेगा इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा (सबसे) ज़बरदस्त बदला लेने वाला है
Surah Ibrahim, Verse 47
يَوۡمَ تُبَدَّلُ ٱلۡأَرۡضُ غَيۡرَ ٱلۡأَرۡضِ وَٱلسَّمَٰوَٰتُۖ وَبَرَزُواْ لِلَّهِ ٱلۡوَٰحِدِ ٱلۡقَهَّارِ
(मगर कब) जिस दिन ये ज़मीन बदलकर दूसरी ज़मीन कर दी जाएगी और (इसी तरह) आसमान (भी बदल दिए जाएँगें) और सब लोग यकता क़हार (ज़बरदस्त) ख़ुदा के रुबरु (अपनी अपनी जगह से) निकल खड़े होगें
Surah Ibrahim, Verse 48
وَتَرَى ٱلۡمُجۡرِمِينَ يَوۡمَئِذٖ مُّقَرَّنِينَ فِي ٱلۡأَصۡفَادِ
और तुम उस दिन गुनेहगारों को देखोगे कि ज़ज़ीरों मे जकड़े हुए होगें
Surah Ibrahim, Verse 49
سَرَابِيلُهُم مِّن قَطِرَانٖ وَتَغۡشَىٰ وُجُوهَهُمُ ٱلنَّارُ
उनके (बदन के) कपड़े क़तरान (तारकोल) के होगे और उनके चेहरों को आग (हर तरफ से) ढाके होगी
Surah Ibrahim, Verse 50
لِيَجۡزِيَ ٱللَّهُ كُلَّ نَفۡسٖ مَّا كَسَبَتۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَرِيعُ ٱلۡحِسَابِ
ताकि ख़ुदा हर शख़्श को उसके किए का बदला दे (अच्छा तो अच्छा बुरा तो बुरा) बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है
Surah Ibrahim, Verse 51
هَٰذَا بَلَٰغٞ لِّلنَّاسِ وَلِيُنذَرُواْ بِهِۦ وَلِيَعۡلَمُوٓاْ أَنَّمَا هُوَ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ وَلِيَذَّكَّرَ أُوْلُواْ ٱلۡأَلۡبَٰبِ
ये (क़ुरान) लोगों के लिए एक क़िस्म की इत्तेला (जानकारी) है ताकि लोग उसके ज़रिये से (अज़ाबे ख़ुदा से) डराए जाए और ताकि ये भी ये यक़ीन जान लें कि बस वही (ख़ुदा) एक माबूद है और ताकि जो लोग अक्ल वाले हैं नसीहत व इबरत हासिल करें
Surah Ibrahim, Verse 52