Surah Al-Anbiya - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
ٱقۡتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمۡ وَهُمۡ فِي غَفۡلَةٖ مُّعۡرِضُونَ
समीप आ गया है लोगों के ह़साब[1] का समय, जबकि वे अचेतना में मुँह फेरे हुए हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 1
مَا يَأۡتِيهِم مِّن ذِكۡرٖ مِّن رَّبِّهِم مُّحۡدَثٍ إِلَّا ٱسۡتَمَعُوهُ وَهُمۡ يَلۡعَبُونَ
नहीं आती उनके पास, उनके पालनहार की ओर से कोई नई शिक्षा[1], परन्तु उसे सुनते हैं और खेलते रह जाते हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 2
لَاهِيَةٗ قُلُوبُهُمۡۗ وَأَسَرُّواْ ٱلنَّجۡوَى ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ هَلۡ هَٰذَآ إِلَّا بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡۖ أَفَتَأۡتُونَ ٱلسِّحۡرَ وَأَنتُمۡ تُبۡصِرُونَ
निश्चेत हैं उनके दिल और उन्होंने चुपके-चुपके आपस में बातें कीं, जो अत्याचारी हो गयेः ये (नबी) तो बस एक पुरुष है तुम्हारे समान, तो क्या तुम जादू के पास जाते हो, जबकि तुम देखते हो
Surah Al-Anbiya, Verse 3
قَالَ رَبِّي يَعۡلَمُ ٱلۡقَوۡلَ فِي ٱلسَّمَآءِ وَٱلۡأَرۡضِۖ وَهُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
आप कह दें कि मेरा पालनहार जानता है प्रत्येक बात को, जो आकाश तथा धरती में है और वह सब सुनने-जानने वाला है।
Surah Al-Anbiya, Verse 4
بَلۡ قَالُوٓاْ أَضۡغَٰثُ أَحۡلَٰمِۭ بَلِ ٱفۡتَرَىٰهُ بَلۡ هُوَ شَاعِرٞ فَلۡيَأۡتِنَا بِـَٔايَةٖ كَمَآ أُرۡسِلَ ٱلۡأَوَّلُونَ
बल्कि उन्होंने कह दिया कि ये[1] बिखरे स्वप्न हैं। बल्कि उस (नबी) ने इसे स्वयं बना लिया है, बल्कि वह कवि है! अन्यथा उसे चाहिए कि हमारे पास कोई निशानी ले आये, जैसे पूर्व के रसूल (निशानियों के साथ) भेजे गये।
Surah Al-Anbiya, Verse 5
مَآ ءَامَنَتۡ قَبۡلَهُم مِّن قَرۡيَةٍ أَهۡلَكۡنَٰهَآۖ أَفَهُمۡ يُؤۡمِنُونَ
नहीं ईमान[1] लायी इनसे पहले कोई बस्ती, जिसका हमने विनाश किया, तो क्या ये ईमान लायेंगे
Surah Al-Anbiya, Verse 6
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ إِلَّا رِجَالٗا نُّوحِيٓ إِلَيۡهِمۡۖ فَسۡـَٔلُوٓاْ أَهۡلَ ٱلذِّكۡرِ إِن كُنتُمۡ لَا تَعۡلَمُونَ
और (हे नबी!) हमने आपसे पहले मनुष्य पुरुषों को ही रसूल बनाकर भेजा, जिनकी ओर वह़्यी भेजते रहे। फिर तुम ज्ञानियों[1] से पूछ लो, यदि तुम (स्वयं) नहीं[2] जानते हो।
Surah Al-Anbiya, Verse 7
وَمَا جَعَلۡنَٰهُمۡ جَسَدٗا لَّا يَأۡكُلُونَ ٱلطَّعَامَ وَمَا كَانُواْ خَٰلِدِينَ
तथा नहीं बनाये हमने उनके ऐसे शरीर,[1] जो भोजन न करते हों तथा न वे सदावासी थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 8
ثُمَّ صَدَقۡنَٰهُمُ ٱلۡوَعۡدَ فَأَنجَيۡنَٰهُمۡ وَمَن نَّشَآءُ وَأَهۡلَكۡنَا ٱلۡمُسۡرِفِينَ
फिर हमने पूरे कर दिये, उनसे किये हुए वचन और हमने बचा लिया उन्हें और जिसे हमने चाहा और विनाश कर दिया उल्लंघनकारियों का।
Surah Al-Anbiya, Verse 9
لَقَدۡ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكُمۡ كِتَٰبٗا فِيهِ ذِكۡرُكُمۡۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
निःसंदेह, हमने उतार दी है तुम्हारी ओर एक पुस्तक (क़ुर्आन) जिसमें तुम्हारे लिए शिक्षा है। तो क्या तुम समझते नहीं हो
Surah Al-Anbiya, Verse 10
وَكَمۡ قَصَمۡنَا مِن قَرۡيَةٖ كَانَتۡ ظَالِمَةٗ وَأَنشَأۡنَا بَعۡدَهَا قَوۡمًا ءَاخَرِينَ
और हमने तोड़कर रख दिया बहुत सी बस्तियों को, जो अत्याचारी थीं और हमने पैदा कर दिया उनके पश्चात् दूसरी जाति को।
Surah Al-Anbiya, Verse 11
فَلَمَّآ أَحَسُّواْ بَأۡسَنَآ إِذَا هُم مِّنۡهَا يَرۡكُضُونَ
फिर जब उन्हें संवेदन हो गया हमारे प्रकोप का, तो अकस्मात् वहाँ से भागने लगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 12
لَا تَرۡكُضُواْ وَٱرۡجِعُوٓاْ إِلَىٰ مَآ أُتۡرِفۡتُمۡ فِيهِ وَمَسَٰكِنِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تُسۡـَٔلُونَ
(कहा गया) भागो नहीं! तथा तुम वापस जाओ, जिस सुख-सुविधा में थे तथा अपने घरों की ओर, ताकि तुमसे पूछा[1] जाये।
Surah Al-Anbiya, Verse 13
قَالُواْ يَٰوَيۡلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَٰلِمِينَ
उन्होंने कहाःहाय हमारा विनाश! वास्वम में, हम अत्याचारी थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 14
فَمَا زَالَت تِّلۡكَ دَعۡوَىٰهُمۡ حَتَّىٰ جَعَلۡنَٰهُمۡ حَصِيدًا خَٰمِدِينَ
और फिर बराबर यही उनकी पुकार रही, यहाँतक कि हमने बना दिया उन्हें कटी खेती के समान बुझे हुए।
Surah Al-Anbiya, Verse 15
وَمَا خَلَقۡنَا ٱلسَّمَآءَ وَٱلۡأَرۡضَ وَمَا بَيۡنَهُمَا لَٰعِبِينَ
औप हमने नहीं पैदा किया है आकाश और धरती को तथा जो कुछ दोनों के बीच है, खेल के लिए।
Surah Al-Anbiya, Verse 16
لَوۡ أَرَدۡنَآ أَن نَّتَّخِذَ لَهۡوٗا لَّٱتَّخَذۡنَٰهُ مِن لَّدُنَّآ إِن كُنَّا فَٰعِلِينَ
यदि हम कोई खेल बनाना चाहते, तो उसे अपने पास ही से बना[1] लेते, यदि हमें ये करना होता।
Surah Al-Anbiya, Verse 17
بَلۡ نَقۡذِفُ بِٱلۡحَقِّ عَلَى ٱلۡبَٰطِلِ فَيَدۡمَغُهُۥ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٞۚ وَلَكُمُ ٱلۡوَيۡلُ مِمَّا تَصِفُونَ
बल्कि हम मारते हैं सत्य से असत्य पर, तो वह उसका सिर कुचल देता है और वह अकस्मात समाप्त हो जाता है और तुम्हारे लिए विनाश है, उन बातों के कारण, जो तुम बनाते हो।
Surah Al-Anbiya, Verse 18
وَلَهُۥ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَمَنۡ عِندَهُۥ لَا يَسۡتَكۡبِرُونَ عَنۡ عِبَادَتِهِۦ وَلَا يَسۡتَحۡسِرُونَ
और उसी का है, जो आकाशों तथा धरती में है और जो फ़रिश्ते उसके पास हैं, वे उसकी इबादत (वंदना) से अभिमान नहीं करते और न थकते हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 19
يُسَبِّحُونَ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ لَا يَفۡتُرُونَ
वे रात और दिन उसकी पवित्रता का गान करते हैं तथा आलस्य नहीं करते।
Surah Al-Anbiya, Verse 20
أَمِ ٱتَّخَذُوٓاْ ءَالِهَةٗ مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ هُمۡ يُنشِرُونَ
क्या इनके बनाये हुए पार्थिव पूज्य ऐसे हैं, जो (निर्जीव) को जीवित कर देते हैं
Surah Al-Anbiya, Verse 21
لَوۡ كَانَ فِيهِمَآ ءَالِهَةٌ إِلَّا ٱللَّهُ لَفَسَدَتَاۚ فَسُبۡحَٰنَ ٱللَّهِ رَبِّ ٱلۡعَرۡشِ عَمَّا يَصِفُونَ
यदि होते उन दोनों[1] में अन्य पूज्य, अल्लाह के सिवा, तो निश्चय दोनों की व्यवस्था बिगड़[2] जाती। अतः पवित्र है अल्लाह, अर्श (सिंहासन) का स्वामी, उन बातों से, जो वे बता रहे हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 22
لَا يُسۡـَٔلُ عَمَّا يَفۡعَلُ وَهُمۡ يُسۡـَٔلُونَ
वह उत्तर दायी नहीं है अपने कार्य का और सभी (उसके समक्ष) उत्तर दायी हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 23
أَمِ ٱتَّخَذُواْ مِن دُونِهِۦٓ ءَالِهَةٗۖ قُلۡ هَاتُواْ بُرۡهَٰنَكُمۡۖ هَٰذَا ذِكۡرُ مَن مَّعِيَ وَذِكۡرُ مَن قَبۡلِيۚ بَلۡ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡلَمُونَ ٱلۡحَقَّۖ فَهُم مُّعۡرِضُونَ
क्या उन्होंने बना लिए हैं, उसके सिवा अनेक पूज्य? (हे नबी!) आप कहें कि अपना प्रमाण लाओ। ये (क़ुर्आन) उनके लिए शिक्षा है, जो मेरे साथ हैं और ये मुझसे पूर्व के लोगों की शिक्षा[1] है, बल्कि उनमें से अधिक्तर सत्य का ज्ञान नहीं रखते। इसी कारण, वे विमुख हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 24
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن قَبۡلِكَ مِن رَّسُولٍ إِلَّا نُوحِيٓ إِلَيۡهِ أَنَّهُۥ لَآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنَا۠ فَٱعۡبُدُونِ
और नहीं भेजा हमने आपसे पहले कोई भी रसूल, परन्तु उसकी ओर यही वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। अतः मेरी ही इबादत (वंदना) करो।
Surah Al-Anbiya, Verse 25
وَقَالُواْ ٱتَّخَذَ ٱلرَّحۡمَٰنُ وَلَدٗاۗ سُبۡحَٰنَهُۥۚ بَلۡ عِبَادٞ مُّكۡرَمُونَ
और उन (मुश्रिकों) ने कहा कि बना लिया है अत्यंत कृपाशील ने संतति। वह पवित्र है। बल्कि वे (फ़रिश्ते)[1] आदरणीय भक्त हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 26
لَا يَسۡبِقُونَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ وَهُم بِأَمۡرِهِۦ يَعۡمَلُونَ
वे उसके समक्ष बढ़कर नहीं बोलते और उसके आदेशानुसार काम करते हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 27
يَعۡلَمُ مَا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَلَا يَشۡفَعُونَ إِلَّا لِمَنِ ٱرۡتَضَىٰ وَهُم مِّنۡ خَشۡيَتِهِۦ مُشۡفِقُونَ
वह जानता है, जो उनके सामने है और जो उनसे ओझल है। वह किसी की सिफ़ारिश नहीं करेंगे, उसके सिवा जिससे वह (अल्लाह) प्रसन्न[1] हो तथा वह उसके भय से सहमे रहते हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 28
۞وَمَن يَقُلۡ مِنۡهُمۡ إِنِّيٓ إِلَٰهٞ مِّن دُونِهِۦ فَذَٰلِكَ نَجۡزِيهِ جَهَنَّمَۚ كَذَٰلِكَ نَجۡزِي ٱلظَّـٰلِمِينَ
और जो कह दे उनमें से कि मैं पूज्य हूँ अल्लाह के सिवा, तो वही है, जिसे हम दण्ड देंगे नरक का, इसी प्रकार, हम दण्ड दिया करते हैं अत्याचारियों को।
Surah Al-Anbiya, Verse 29
أَوَلَمۡ يَرَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَنَّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ كَانَتَا رَتۡقٗا فَفَتَقۡنَٰهُمَاۖ وَجَعَلۡنَا مِنَ ٱلۡمَآءِ كُلَّ شَيۡءٍ حَيٍّۚ أَفَلَا يُؤۡمِنُونَ
और क्या उन्होंने विचार नहीं किया, जो काफ़िर हो गये कि आकाश तथा धरती दोनों मिले हुए[1] थे, तो हमने दोनों को अलग-अलग किया तथा हमने बनाया पानी से प्रत्येक जीवित चीज़ को? फिर क्या वे (इस बात पर) विश्वास नहीं करते
Surah Al-Anbiya, Verse 30
وَجَعَلۡنَا فِي ٱلۡأَرۡضِ رَوَٰسِيَ أَن تَمِيدَ بِهِمۡ وَجَعَلۡنَا فِيهَا فِجَاجٗا سُبُلٗا لَّعَلَّهُمۡ يَهۡتَدُونَ
और हमने बना दिये धरती में पर्वत, ताकि झुक न[1] जाये उनके साथ और बना दिये उन (पर्वतों) में चौड़े रास्ते, ताकि लोग राह पायें।
Surah Al-Anbiya, Verse 31
وَجَعَلۡنَا ٱلسَّمَآءَ سَقۡفٗا مَّحۡفُوظٗاۖ وَهُمۡ عَنۡ ءَايَٰتِهَا مُعۡرِضُونَ
और हमने बना दिया आकाश को सुरक्षित छत, फिर भी वे उसके प्रतीकों (निशानियों) से मुँह फेरे हुए हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 32
وَهُوَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ وَٱلشَّمۡسَ وَٱلۡقَمَرَۖ كُلّٞ فِي فَلَكٖ يَسۡبَحُونَ
तथा वही है, जिसने उत्पत्ति की है रात्रि तथा दिवस की और सूर्य तथा चाँद की, प्रत्येक एक मण्डल में तैर रहे[1] हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 33
وَمَا جَعَلۡنَا لِبَشَرٖ مِّن قَبۡلِكَ ٱلۡخُلۡدَۖ أَفَإِيْن مِّتَّ فَهُمُ ٱلۡخَٰلِدُونَ
और (हे नबी!) हमने नहीं बनायी है, किसी मनुष्य के लिए आपसे पहले नित्यता। तो यदि, आप मर[1] जायें, तो क्या वे नित्य जीवी हैं
Surah Al-Anbiya, Verse 34
كُلُّ نَفۡسٖ ذَآئِقَةُ ٱلۡمَوۡتِۗ وَنَبۡلُوكُم بِٱلشَّرِّ وَٱلۡخَيۡرِ فِتۡنَةٗۖ وَإِلَيۡنَا تُرۡجَعُونَ
प्रत्येक जीव को मरण का स्वाद चखना है और हम तुम्हारी परीक्षा कर रहे हैं, अच्छी तथा बुरी परिस्थितियों से तथा तुम्हें हमारी ही ओर फिर आना है।
Surah Al-Anbiya, Verse 35
وَإِذَا رَءَاكَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ إِن يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَٰذَا ٱلَّذِي يَذۡكُرُ ءَالِهَتَكُمۡ وَهُم بِذِكۡرِ ٱلرَّحۡمَٰنِ هُمۡ كَٰفِرُونَ
तथा जब देखते हैं आपको, जो काफ़िर हो गये, तो बना लेते हैं आपको उपहास, (वे कहते हैं:) क्या यही है, जो तुम्हारे पूज्यों की चर्चा किया करता है? जबकि वे स्वयं रह़मान (अत्यंत कृपाशील) के स्मरण के[1] निवर्ती हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 36
خُلِقَ ٱلۡإِنسَٰنُ مِنۡ عَجَلٖۚ سَأُوْرِيكُمۡ ءَايَٰتِي فَلَا تَسۡتَعۡجِلُونِ
मनुष्य जन्मजात व्यग्र (अधीर) है, मैं शीघ्र तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखा दूँगा। अतः, तुम जल्दी न करो।
Surah Al-Anbiya, Verse 37
وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هَٰذَا ٱلۡوَعۡدُ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
तथा वे कहते हैं कि कब पूरी होगी ये[1] धमकी, यदि तुम लोग सच्चे हो
Surah Al-Anbiya, Verse 38
لَوۡ يَعۡلَمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ حِينَ لَا يَكُفُّونَ عَن وُجُوهِهِمُ ٱلنَّارَ وَلَا عَن ظُهُورِهِمۡ وَلَا هُمۡ يُنصَرُونَ
यदि जान लें, जो काफ़िर हो गये हैं, उस समय को, जब वे नहीं बचा सकेंगे अपने मुखों को अग्नि से और न अपनी पीठों को और न उनकी कोई सहायता की जायेगी (तो ऐसी बातें नहीं करेंगे।)
Surah Al-Anbiya, Verse 39
بَلۡ تَأۡتِيهِم بَغۡتَةٗ فَتَبۡهَتُهُمۡ فَلَا يَسۡتَطِيعُونَ رَدَّهَا وَلَا هُمۡ يُنظَرُونَ
बल्कि वह समय उनपर आ जायेगा अचानक और उन्हें आश्चर्य चकित कर देगा, जिसे वे फेर नहीं सकेंगे और न उन्हें समय दिया जायेगा।
Surah Al-Anbiya, Verse 40
وَلَقَدِ ٱسۡتُهۡزِئَ بِرُسُلٖ مِّن قَبۡلِكَ فَحَاقَ بِٱلَّذِينَ سَخِرُواْ مِنۡهُم مَّا كَانُواْ بِهِۦ يَسۡتَهۡزِءُونَ
और उपहास किया गया बहुत-से रसूलों का, आपसे पहले, तो घेर लिया उन्हें जिन्होंने उपहास किया उनमें से, उस चीज़ ने, जिस[1] का उपहास कर रहे थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 41
قُلۡ مَن يَكۡلَؤُكُم بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ مِنَ ٱلرَّحۡمَٰنِۚ بَلۡ هُمۡ عَن ذِكۡرِ رَبِّهِم مُّعۡرِضُونَ
आप पूछिये कि कौन तुम्हारी रक्षा करेगा रात तथा दिन में अत्यंत कृपाशील[1] से? बल्कि वे अपने पालनहार की शिक्षा (क़र्आन) से विमुख हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 42
أَمۡ لَهُمۡ ءَالِهَةٞ تَمۡنَعُهُم مِّن دُونِنَاۚ لَا يَسۡتَطِيعُونَ نَصۡرَ أَنفُسِهِمۡ وَلَا هُم مِّنَّا يُصۡحَبُونَ
क्या उनके पूज्य हैं, जो उन्हें बचायेंगे हम से? वे स्वयं अपनी सहायता नहीं कर सकेंगे और न हमारी ओर से उनका साथ दिया जायेगा।
Surah Al-Anbiya, Verse 43
بَلۡ مَتَّعۡنَا هَـٰٓؤُلَآءِ وَءَابَآءَهُمۡ حَتَّىٰ طَالَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡعُمُرُۗ أَفَلَا يَرَوۡنَ أَنَّا نَأۡتِي ٱلۡأَرۡضَ نَنقُصُهَا مِنۡ أَطۡرَافِهَآۚ أَفَهُمُ ٱلۡغَٰلِبُونَ
बल्कि हमने जीवन का लाभ पहुँचाया है, उनको तथा उनके पूर्वजों को, यहाँतक कि (सुखों में) उनकी बड़ी आयु गुज़र[1] गयी, तो क्या वह नहीं देखते कि हम धरती को कम करते आ रहे हैं उसके किनारों से, फिर क्या वे विजय हो रहे हैं
Surah Al-Anbiya, Verse 44
قُلۡ إِنَّمَآ أُنذِرُكُم بِٱلۡوَحۡيِۚ وَلَا يَسۡمَعُ ٱلصُّمُّ ٱلدُّعَآءَ إِذَا مَا يُنذَرُونَ
(हे नबी!) आप कह दें कि मैं तो वह़्यी ही के आधार पर तुम्हें सावधान कर रहा हूँ। (परन्तु) बहरे पुकार नहीं सुनते, जब उन्हें सावधान किया जाता है।
Surah Al-Anbiya, Verse 45
وَلَئِن مَّسَّتۡهُمۡ نَفۡحَةٞ مِّنۡ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُولُنَّ يَٰوَيۡلَنَآ إِنَّا كُنَّا ظَٰلِمِينَ
और यदि छू जाये उन्हें आपके पालनहार की तनिक भी यातना, तो अवश्य पुकारेंगे कि हाय हमारा विनाश! निश्चय ही हम अत्याचारी[1] थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 46
وَنَضَعُ ٱلۡمَوَٰزِينَ ٱلۡقِسۡطَ لِيَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ فَلَا تُظۡلَمُ نَفۡسٞ شَيۡـٔٗاۖ وَإِن كَانَ مِثۡقَالَ حَبَّةٖ مِّنۡ خَرۡدَلٍ أَتَيۡنَا بِهَاۗ وَكَفَىٰ بِنَا حَٰسِبِينَ
और हम रख देंगे न्याय का तराज़ू[1] प्रलय के दिन, फिर नहीं अत्याचार किया जायेगा किसी पर कुछ भी तथा यदि होगा राय के दाने के बराबर (किसी का कर्म) तो हम उसे सामने ले आयेंगे और हम बस (काफ़ी) हैं ह़िसाब लेने वाले।
Surah Al-Anbiya, Verse 47
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَىٰ وَهَٰرُونَ ٱلۡفُرۡقَانَ وَضِيَآءٗ وَذِكۡرٗا لِّلۡمُتَّقِينَ
और हम दे चुके हैं, मूसा तथा हारून को विवेक, प्रकाश और शिक्षाप्रद पुस्तक आज्ञाकारियों के लिए।
Surah Al-Anbiya, Verse 48
ٱلَّذِينَ يَخۡشَوۡنَ رَبَّهُم بِٱلۡغَيۡبِ وَهُم مِّنَ ٱلسَّاعَةِ مُشۡفِقُونَ
जो डरते हों अपने पालनहार से बिन देखे और वे प्रलय से भयभीत हों।
Surah Al-Anbiya, Verse 49
وَهَٰذَا ذِكۡرٞ مُّبَارَكٌ أَنزَلۡنَٰهُۚ أَفَأَنتُمۡ لَهُۥ مُنكِرُونَ
और ये (क़ुर्आन) एक शुभ शिक्षा है, जिसे हमने उतारा है, तो क्या तुम इसके इन्कारी हो
Surah Al-Anbiya, Verse 50
۞وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَآ إِبۡرَٰهِيمَ رُشۡدَهُۥ مِن قَبۡلُ وَكُنَّا بِهِۦ عَٰلِمِينَ
और हमने प्रदान की थी इब्राहीम को, उसकी चेतना इससे पहले और हम उससे भली-भाँति अवगत थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 51
إِذۡ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوۡمِهِۦ مَا هَٰذِهِ ٱلتَّمَاثِيلُ ٱلَّتِيٓ أَنتُمۡ لَهَا عَٰكِفُونَ
जब उसने अपने बाप तथा अपनी जाति से कहाः ये प्रतिमाएँ (मूर्तियाँ) कैसी हैं, जिनकी पूजा में तुम लगे हुए हो
Surah Al-Anbiya, Verse 52
قَالُواْ وَجَدۡنَآ ءَابَآءَنَا لَهَا عَٰبِدِينَ
उन्होंने कहाः हमने पाया है अपने पूर्वजों को इनकी पूजा करते हुए।
Surah Al-Anbiya, Verse 53
قَالَ لَقَدۡ كُنتُمۡ أَنتُمۡ وَءَابَآؤُكُمۡ فِي ضَلَٰلٖ مُّبِينٖ
उस (इब्राहीम) ने कहाः निश्चय तुम और तुम्हारे पूर्वज खुले कुपथ में हो।
Surah Al-Anbiya, Verse 54
قَالُوٓاْ أَجِئۡتَنَا بِٱلۡحَقِّ أَمۡ أَنتَ مِنَ ٱللَّـٰعِبِينَ
उन्होंने कहाः क्या तुम लाये हो हमारे पास सत्य या तुम उपहास कर रहे हो
Surah Al-Anbiya, Verse 55
قَالَ بَل رَّبُّكُمۡ رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ ٱلَّذِي فَطَرَهُنَّ وَأَنَا۠ عَلَىٰ ذَٰلِكُم مِّنَ ٱلشَّـٰهِدِينَ
उसने कहाः बल्कि तुम्हारा पालनहार आकाशों तथा धरती का पालनहार है, जिसने उन्हें पैदा किया है और मैं तो इसीका साक्षी हूँ।
Surah Al-Anbiya, Verse 56
وَتَٱللَّهِ لَأَكِيدَنَّ أَصۡنَٰمَكُم بَعۡدَ أَن تُوَلُّواْ مُدۡبِرِينَ
तथा अल्लाह की शपथ! मैं अवश्य चाल चलूँगा तुम्हारी मूर्तियों के साथ, इसके पश्चात् कि तुम चले जाओ।
Surah Al-Anbiya, Verse 57
فَجَعَلَهُمۡ جُذَٰذًا إِلَّا كَبِيرٗا لَّهُمۡ لَعَلَّهُمۡ إِلَيۡهِ يَرۡجِعُونَ
फिर उसने कर दिया उन्हें खण्ड-खण्ड, उनके बड़े के सिवा, ताकि वे उसकी ओर फिरें।
Surah Al-Anbiya, Verse 58
قَالُواْ مَن فَعَلَ هَٰذَا بِـَٔالِهَتِنَآ إِنَّهُۥ لَمِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
उन्होंने कहाः किसने ये दशा कर दी है, हमारे पूज्यों ( देवताओं) की? वास्तव में, वह कोई अत्याचारी होगा
Surah Al-Anbiya, Verse 59
قَالُواْ سَمِعۡنَا فَتٗى يَذۡكُرُهُمۡ يُقَالُ لَهُۥٓ إِبۡرَٰهِيمُ
लोगों ने कहाः हमने सुना है एक नवयुवक को उनकी चर्चा करते, जिसे इब्राहीम कहा जाता है।
Surah Al-Anbiya, Verse 60
قَالُواْ فَأۡتُواْ بِهِۦ عَلَىٰٓ أَعۡيُنِ ٱلنَّاسِ لَعَلَّهُمۡ يَشۡهَدُونَ
लोगों ने कहाः उसे लाओ लोगों के सामने, ताकि लोग देखें।
Surah Al-Anbiya, Verse 61
قَالُوٓاْ ءَأَنتَ فَعَلۡتَ هَٰذَا بِـَٔالِهَتِنَا يَـٰٓإِبۡرَٰهِيمُ
उन्होंने पूछाः क्या तूने ही ये किया है, हमारे पूज्यों के साथ, हे इब्राहीम
Surah Al-Anbiya, Verse 62
قَالَ بَلۡ فَعَلَهُۥ كَبِيرُهُمۡ هَٰذَا فَسۡـَٔلُوهُمۡ إِن كَانُواْ يَنطِقُونَ
उसने कहाः बल्कि इसे इनके इस बड़े ने किया[1] है, तो इन्हीं से पूछ लो, यदि ये बोलते हों
Surah Al-Anbiya, Verse 63
فَرَجَعُوٓاْ إِلَىٰٓ أَنفُسِهِمۡ فَقَالُوٓاْ إِنَّكُمۡ أَنتُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
फिर अपने मन में वे सोच में पड़ गये और (अपने मन में) कहाः वास्तव में, तुम्हीं अत्याचारी हो।
Surah Al-Anbiya, Verse 64
ثُمَّ نُكِسُواْ عَلَىٰ رُءُوسِهِمۡ لَقَدۡ عَلِمۡتَ مَا هَـٰٓؤُلَآءِ يَنطِقُونَ
फिर वह ओंधे कर दिये गये अपने सिरों के बल[1] ( और बोलेः) तू जानता है कि ये बोलते नहीं हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 65
قَالَ أَفَتَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ مَا لَا يَنفَعُكُمۡ شَيۡـٔٗا وَلَا يَضُرُّكُمۡ
इब्राहीम ने कहाः तो क्या तुम इबादत (वंदना) अल्लाह के सिवा उसकी करते हो, जो न तुम्हें कुछ लाभ पहुँचा सकते हैं और न तुम्हें हानि पहूँचा सकते हैं
Surah Al-Anbiya, Verse 66
أُفّٖ لَّكُمۡ وَلِمَا تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِۚ أَفَلَا تَعۡقِلُونَ
तुफ़ (थू) है तुमपर और उसपर जिसकी तुम इबादत (वंदना) करते हो अल्लाह को छोड़कर। तो क्या तुम समझ नहीं रखते हो
Surah Al-Anbiya, Verse 67
قَالُواْ حَرِّقُوهُ وَٱنصُرُوٓاْ ءَالِهَتَكُمۡ إِن كُنتُمۡ فَٰعِلِينَ
उन्होंने कहाः इसे जला दो तथा सहायता करो अपने पूज्यों की, यदि तुम्हें कुछ करना है।
Surah Al-Anbiya, Verse 68
قُلۡنَا يَٰنَارُ كُونِي بَرۡدٗا وَسَلَٰمًا عَلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ
हमने कहाः हे अग्नि! तू शीतल तथा शान्ति बन जा, इब्राहीम पर।
Surah Al-Anbiya, Verse 69
وَأَرَادُواْ بِهِۦ كَيۡدٗا فَجَعَلۡنَٰهُمُ ٱلۡأَخۡسَرِينَ
और उन्होंने उसके साथ बुराई चाही, तो हमने उन्हीं को क्षतिग्रस्त कर दिया।
Surah Al-Anbiya, Verse 70
وَنَجَّيۡنَٰهُ وَلُوطًا إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَا لِلۡعَٰلَمِينَ
और हम, उस (इब्राहीम) को बचाकर ले गये तथा लूत[1] को, उस भूमि[2] की ओर, जिसमें हमने सम्पन्नता रखी है, विश्व वासियों के लिए।
Surah Al-Anbiya, Verse 71
وَوَهَبۡنَا لَهُۥٓ إِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ نَافِلَةٗۖ وَكُلّٗا جَعَلۡنَا صَٰلِحِينَ
और हमने उसे प्रदान किया (पुत्र) इस्ह़ाक़ और (पौत्र) याक़ूब उसपर अधिक और प्रत्येक को हमने सत्कर्मी बनाया।
Surah Al-Anbiya, Verse 72
وَجَعَلۡنَٰهُمۡ أَئِمَّةٗ يَهۡدُونَ بِأَمۡرِنَا وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡهِمۡ فِعۡلَ ٱلۡخَيۡرَٰتِ وَإِقَامَ ٱلصَّلَوٰةِ وَإِيتَآءَ ٱلزَّكَوٰةِۖ وَكَانُواْ لَنَا عَٰبِدِينَ
और हमने उन्हें अग्रणी (प्रमुख) बना दिया, जो हमारे आदेशानुसार (लोगों को) सुपथ दर्शाते हैं तथा हमने वह़्यी (प्रकाशना) की, उनकी ओर सत्कर्मों के करने, नमाज़ की स्थापना करने और ज़कात देने की तथा वे हमारे ही उपासक थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 73
وَلُوطًا ءَاتَيۡنَٰهُ حُكۡمٗا وَعِلۡمٗا وَنَجَّيۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡقَرۡيَةِ ٱلَّتِي كَانَت تَّعۡمَلُ ٱلۡخَبَـٰٓئِثَۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمَ سَوۡءٖ فَٰسِقِينَ
तथा लूत को हमने निर्णय शक्ति और ज्ञान दिया और बचा लिया उस बस्ती से, जो दुष्कर्म कर रही थी, वास्तव में, वे बुरे अवज्ञाकारी लोग थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 74
وَأَدۡخَلۡنَٰهُ فِي رَحۡمَتِنَآۖ إِنَّهُۥ مِنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
और हमने प्रवेश दिया उसे अपनी दया में, वास्तव में, वह सदाचारियों में से था।
Surah Al-Anbiya, Verse 75
وَنُوحًا إِذۡ نَادَىٰ مِن قَبۡلُ فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ فَنَجَّيۡنَٰهُ وَأَهۡلَهُۥ مِنَ ٱلۡكَرۡبِ ٱلۡعَظِيمِ
तथा नूह़ को (याद करो) जब उसने पुकारा इन (नबियों) से पहले। तो हमने उसकी पुकार सुन ली, फिर उसे और उसके घराने को मुक्ति दी महा पीड़ा से।
Surah Al-Anbiya, Verse 76
وَنَصَرۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلَّذِينَ كَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ قَوۡمَ سَوۡءٖ فَأَغۡرَقۡنَٰهُمۡ أَجۡمَعِينَ
और उसकी सहायता की, उस जाति के मुक़ाबले में, जिन्होंने हमारी आयतों (निशानियों) को झुठला दिया, वास्तव में, वे बुरे लोग थे। अतः हमने डुबो दिया उन सभी को।
Surah Al-Anbiya, Verse 77
وَدَاوُۥدَ وَسُلَيۡمَٰنَ إِذۡ يَحۡكُمَانِ فِي ٱلۡحَرۡثِ إِذۡ نَفَشَتۡ فِيهِ غَنَمُ ٱلۡقَوۡمِ وَكُنَّا لِحُكۡمِهِمۡ شَٰهِدِينَ
तथा दावूद और सुलैमान को (याद करो) जब वे दोनों निर्णय कर रहे थे, खेत के विषय में, जब रात्रि में चर गईं उसे दूसरों की बकरियाँ और हम उनका निर्णय देख रहे थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 78
فَفَهَّمۡنَٰهَا سُلَيۡمَٰنَۚ وَكُلًّا ءَاتَيۡنَا حُكۡمٗا وَعِلۡمٗاۚ وَسَخَّرۡنَا مَعَ دَاوُۥدَ ٱلۡجِبَالَ يُسَبِّحۡنَ وَٱلطَّيۡرَۚ وَكُنَّا فَٰعِلِينَ
तो हमने उसका उचित निर्णय समझा दिया सुलैमान[1] को और प्रत्येक को हमने प्रदान किया था निर्णय शक्ति तथा ज्ञान और हमने अधीन कर दिया था दावूद के साथ पर्वतों को, जो (अल्लाह की पवित्रता का) वर्णन करते थे तथा पक्षियों को और हम ही इसकार्य के करने वाले थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 79
وَعَلَّمۡنَٰهُ صَنۡعَةَ لَبُوسٖ لَّكُمۡ لِتُحۡصِنَكُم مِّنۢ بَأۡسِكُمۡۖ فَهَلۡ أَنتُمۡ شَٰكِرُونَ
तथा हमने उसे (दावूद को) सिखाया तुम्हारे लिए कवच बनाना, ताकि तुम्हें बचाये तुम्हारे आक्रमण से, तो क्या तुम कृतज्ञ हो
Surah Al-Anbiya, Verse 80
وَلِسُلَيۡمَٰنَ ٱلرِّيحَ عَاصِفَةٗ تَجۡرِي بِأَمۡرِهِۦٓ إِلَى ٱلۡأَرۡضِ ٱلَّتِي بَٰرَكۡنَا فِيهَاۚ وَكُنَّا بِكُلِّ شَيۡءٍ عَٰلِمِينَ
और सुलैमान के अधीन कर दिया उग्र वायु को, जो चल रही थी उसके आदेश से,[1] उस धरती की ओर जिसमें हमने सम्पन्नता (विभूतियाँ) रखी है और हम ही सर्वज्ञ हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 81
وَمِنَ ٱلشَّيَٰطِينِ مَن يَغُوصُونَ لَهُۥ وَيَعۡمَلُونَ عَمَلٗا دُونَ ذَٰلِكَۖ وَكُنَّا لَهُمۡ حَٰفِظِينَ
तथा शैतानों में से उन्हें (उसके अधीन कर दिया) जो उसके लिए डुबकी लगाते[1] तथा इसके सिवा दूसरे कार्य करते थे और हम ही उनके निरीक्षक[1] हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 82
۞وَأَيُّوبَ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥٓ أَنِّي مَسَّنِيَ ٱلضُّرُّ وَأَنتَ أَرۡحَمُ ٱلرَّـٰحِمِينَ
तथा अय्यूब (की उस स्थिति) को (याद करो), जब उसने पुकारा अपने पालनहार को कि मुझे रोग लग गया है और तू सबसे अधिक दयावान् है।
Surah Al-Anbiya, Verse 83
فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ فَكَشَفۡنَا مَا بِهِۦ مِن ضُرّٖۖ وَءَاتَيۡنَٰهُ أَهۡلَهُۥ وَمِثۡلَهُم مَّعَهُمۡ رَحۡمَةٗ مِّنۡ عِندِنَا وَذِكۡرَىٰ لِلۡعَٰبِدِينَ
तो हमने उसकी गुहार सुन ली[1] और दूर कर दिया, जो दुःख उसे था और प्रदान कर दिया उसे उसका परिवार तथा उतने ही और उनके साथ, अपनी विशेष दया से तथा शिक्षा के लिए उपासकों की।
Surah Al-Anbiya, Verse 84
وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِدۡرِيسَ وَذَا ٱلۡكِفۡلِۖ كُلّٞ مِّنَ ٱلصَّـٰبِرِينَ
तथा इस्माईल, इद्रीस तथा ज़ुल किफ़्ल को (याद करो), सभी सहनशीलों में से थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 85
وَأَدۡخَلۡنَٰهُمۡ فِي رَحۡمَتِنَآۖ إِنَّهُم مِّنَ ٱلصَّـٰلِحِينَ
और हमने प्रवेश दिया उनको अपनी दया में, वास्तव में, वे सदाचारी थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 86
وَذَا ٱلنُّونِ إِذ ذَّهَبَ مُغَٰضِبٗا فَظَنَّ أَن لَّن نَّقۡدِرَ عَلَيۡهِ فَنَادَىٰ فِي ٱلظُّلُمَٰتِ أَن لَّآ إِلَٰهَ إِلَّآ أَنتَ سُبۡحَٰنَكَ إِنِّي كُنتُ مِنَ ٱلظَّـٰلِمِينَ
तथा ज़ुन्नून[1] को, जब वे चला[2] गया क्रोधित होकर और सोचा कि हम उसे पकड़ेंगे नहीं, अन्ततः, उसने पुकारा अन्धेरे में कि नहीं है कोई पूज्य तेरे सिवा, तू पवित्र है, वास्तव में, मैं ही दोषी[3] हूँ।
Surah Al-Anbiya, Verse 87
فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ وَنَجَّيۡنَٰهُ مِنَ ٱلۡغَمِّۚ وَكَذَٰلِكَ نُـۨجِي ٱلۡمُؤۡمِنِينَ
तब हमने उसकी पुकार सुन ली तथा मुक्त कर दिया शोक से और इसी प्रकार, हम बचा लिया करते हैं, ईमान वालों को।
Surah Al-Anbiya, Verse 88
وَزَكَرِيَّآ إِذۡ نَادَىٰ رَبَّهُۥ رَبِّ لَا تَذَرۡنِي فَرۡدٗا وَأَنتَ خَيۡرُ ٱلۡوَٰرِثِينَ
तथा ज़करिय्या को (याद करो), जब पुकारा उसने अपने पालनहार[1] को, हे मेरे पालनहार! मुझे मत छोड़ दे अकेला और तू सबसे अच्छा उत्तराधिकारी है।
Surah Al-Anbiya, Verse 89
فَٱسۡتَجَبۡنَا لَهُۥ وَوَهَبۡنَا لَهُۥ يَحۡيَىٰ وَأَصۡلَحۡنَا لَهُۥ زَوۡجَهُۥٓۚ إِنَّهُمۡ كَانُواْ يُسَٰرِعُونَ فِي ٱلۡخَيۡرَٰتِ وَيَدۡعُونَنَا رَغَبٗا وَرَهَبٗاۖ وَكَانُواْ لَنَا خَٰشِعِينَ
तो हमने सुन ली उसकी पुकार तथा प्रदान कर दिया उसे यह़्या और सुधार दिया उसके लिए उसकी पत्नी को। वास्तव में, वे सभी दौड़-धूप करते थे सत्कर्मों में और हमसे प्रार्थना करते थे रूचि तथा भय के साथ और हमारे आगे झुके हुए थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 90
وَٱلَّتِيٓ أَحۡصَنَتۡ فَرۡجَهَا فَنَفَخۡنَا فِيهَا مِن رُّوحِنَا وَجَعَلۡنَٰهَا وَٱبۡنَهَآ ءَايَةٗ لِّلۡعَٰلَمِينَ
तथा जिसने रक्षा की अपनी सतीत्व[1] की, तो फूँक दी हमने उसके भीतर अपनी आत्मा से और उसे तथा उसके पुत्र को बना दिया एक निशानी संसार वासियों के लिए।
Surah Al-Anbiya, Verse 91
إِنَّ هَٰذِهِۦٓ أُمَّتُكُمۡ أُمَّةٗ وَٰحِدَةٗ وَأَنَا۠ رَبُّكُمۡ فَٱعۡبُدُونِ
वास्तव में, तुम्हारा धर्म एक ही धर्म[1] है और मैं ही तुम सबका पालनहार (पूज्य) हूँ। अतः, मेरी ही इबादत (वंदना) करो।
Surah Al-Anbiya, Verse 92
وَتَقَطَّعُوٓاْ أَمۡرَهُم بَيۡنَهُمۡۖ كُلٌّ إِلَيۡنَا رَٰجِعُونَ
और खण्ड-खण्ड कर दिया लोगों ने अपने धर्म को (विभेद करके) आपस में, सबको हमारी ओर ही फिर आना है।
Surah Al-Anbiya, Verse 93
فَمَن يَعۡمَلۡ مِنَ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَلَا كُفۡرَانَ لِسَعۡيِهِۦ وَإِنَّا لَهُۥ كَٰتِبُونَ
फिर जो सदाचार करेगा और वह एकेश्वरवादी हो, तो उसके प्रयास की उपेक्षा नहीं की जायेगी और हम उसे लिख रहे हैं।
Surah Al-Anbiya, Verse 94
وَحَرَٰمٌ عَلَىٰ قَرۡيَةٍ أَهۡلَكۡنَٰهَآ أَنَّهُمۡ لَا يَرۡجِعُونَ
और असंभव है किसी भी बस्ती पर, जिसका हमने विनाश कर[1] दिया कि वह फिर (संसार में) आ जाये।
Surah Al-Anbiya, Verse 95
حَتَّىٰٓ إِذَا فُتِحَتۡ يَأۡجُوجُ وَمَأۡجُوجُ وَهُم مِّن كُلِّ حَدَبٖ يَنسِلُونَ
यहाँ तक कि जब खोल दिये जायेंगे याजूज तथा माजूज[1] और वे प्रत्येक ऊँचाई से उतर रहे होंगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 96
وَٱقۡتَرَبَ ٱلۡوَعۡدُ ٱلۡحَقُّ فَإِذَا هِيَ شَٰخِصَةٌ أَبۡصَٰرُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يَٰوَيۡلَنَا قَدۡ كُنَّا فِي غَفۡلَةٖ مِّنۡ هَٰذَا بَلۡ كُنَّا ظَٰلِمِينَ
और समीप आ जायेगा सत्य[1] वचन, तो अकस्मात खुली रह जायेँगी काफ़िरों की आँखें, ( वे कहेंगेः) "हाय हमारा विनाश!" हम असावधान रह गये इससे, बल्कि हम अत्याचारी थे।
Surah Al-Anbiya, Verse 97
إِنَّكُمۡ وَمَا تَعۡبُدُونَ مِن دُونِ ٱللَّهِ حَصَبُ جَهَنَّمَ أَنتُمۡ لَهَا وَٰرِدُونَ
निश्चय तुमसब तथा तुम जिन (मूर्तियों) को पूज रहे हो अल्लाह के अतिरिक्त, नरक के ईंधन हैं, तुमसब वहाँ पहुँचने वाले हो।
Surah Al-Anbiya, Verse 98
لَوۡ كَانَ هَـٰٓؤُلَآءِ ءَالِهَةٗ مَّا وَرَدُوهَاۖ وَكُلّٞ فِيهَا خَٰلِدُونَ
यदि वे वास्तव में पूज्य होते, तो नरक में प्रवेश नहीं करते और प्रत्येक उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 99
لَهُمۡ فِيهَا زَفِيرٞ وَهُمۡ فِيهَا لَا يَسۡمَعُونَ
उनकी उसमें चीखें होंगी तथा वे उसमें (कुछ) सुन नहीं सकेंगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 100
إِنَّ ٱلَّذِينَ سَبَقَتۡ لَهُم مِّنَّا ٱلۡحُسۡنَىٰٓ أُوْلَـٰٓئِكَ عَنۡهَا مُبۡعَدُونَ
(परन्तु) जिनके लिए पहले ही से हमारी ओर से भलाई का निर्णय हो चुका है, वही उससे दूर रखे जायेंगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 101
لَا يَسۡمَعُونَ حَسِيسَهَاۖ وَهُمۡ فِي مَا ٱشۡتَهَتۡ أَنفُسُهُمۡ خَٰلِدُونَ
वे उस (नरक) की सरसर भी नहीं सुनेंगे और अपनी मनचाही चीज़ों में सदा (मगन) रहेंगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 102
لَا يَحۡزُنُهُمُ ٱلۡفَزَعُ ٱلۡأَكۡبَرُ وَتَتَلَقَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ هَٰذَا يَوۡمُكُمُ ٱلَّذِي كُنتُمۡ تُوعَدُونَ
उन्हें उदासीन नहीं करेगी (प्रलय के दिन की) बड़ी व्यग्रता तथा फ़रिश्ते उन्हें हाथों-हाथ ले लेंगे, (तथा कहेंगेः) यही तुम्हारा वह दिन है, जिसका तुम्हें वचन दिया जा रहा था।
Surah Al-Anbiya, Verse 103
يَوۡمَ نَطۡوِي ٱلسَّمَآءَ كَطَيِّ ٱلسِّجِلِّ لِلۡكُتُبِۚ كَمَا بَدَأۡنَآ أَوَّلَ خَلۡقٖ نُّعِيدُهُۥۚ وَعۡدًا عَلَيۡنَآۚ إِنَّا كُنَّا فَٰعِلِينَ
जिस दिन हम लपेट[1] देंगे आकाश को, पंजिका के पन्नों को लपेट देने के समान, जैसे हमने आरंभ किया था प्रथम उत्पत्ति का, उसी प्रकार, उसे[2] दुहरायेंगे, इस (वचन) को पूरा करना हमपर है और हम पूरा करके रहेंगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 104
وَلَقَدۡ كَتَبۡنَا فِي ٱلزَّبُورِ مِنۢ بَعۡدِ ٱلذِّكۡرِ أَنَّ ٱلۡأَرۡضَ يَرِثُهَا عِبَادِيَ ٱلصَّـٰلِحُونَ
तथा हमने लिख दिया है ज़बूर[1] में शिक्षा के पश्चात् कि धरती के उत्तराधिकारी मेरे सदाचारी भक्त होंगे।
Surah Al-Anbiya, Verse 105
إِنَّ فِي هَٰذَا لَبَلَٰغٗا لِّقَوۡمٍ عَٰبِدِينَ
वस्तुतः, इस (बात) में एक बड़ा उपदेश है उपासकों के लिए।
Surah Al-Anbiya, Verse 106
وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ إِلَّا رَحۡمَةٗ لِّلۡعَٰلَمِينَ
और (हे नबी!) हमने आपको नहीं भेजा है, किन्तु समस्त संसार के लिए दया बना[1] कर।
Surah Al-Anbiya, Verse 107
قُلۡ إِنَّمَا يُوحَىٰٓ إِلَيَّ أَنَّمَآ إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۖ فَهَلۡ أَنتُم مُّسۡلِمُونَ
आप कह दें कि मेरी ओर तो बस यही वह़्यी की जा रही है कि तुम सबका पूज्य बस एक ही पूज्य है, फिर क्या तुम उसके आज्ञाकारी[1] हो
Surah Al-Anbiya, Verse 108
فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَقُلۡ ءَاذَنتُكُمۡ عَلَىٰ سَوَآءٖۖ وَإِنۡ أَدۡرِيٓ أَقَرِيبٌ أَم بَعِيدٞ مَّا تُوعَدُونَ
फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि मैंने तुम्हें समान रूप से सावधान कर दिया[1] और मैं नहीं जानता कि समीप है अथवा दूर जिसका वचन तुम्हें दिया जा रहा है।
Surah Al-Anbiya, Verse 109
إِنَّهُۥ يَعۡلَمُ ٱلۡجَهۡرَ مِنَ ٱلۡقَوۡلِ وَيَعۡلَمُ مَا تَكۡتُمُونَ
वास्तव में, वही जानता है खुली बात को तथा जानता है जो कुछ तुम छुपाते हो।
Surah Al-Anbiya, Verse 110
وَإِنۡ أَدۡرِي لَعَلَّهُۥ فِتۡنَةٞ لَّكُمۡ وَمَتَٰعٌ إِلَىٰ حِينٖ
तथा मुझे ये ज्ञान (भी) नहीं, संभव है ये[1] तुम्हारे लिए कोई परीक्षा हो तथा लाभ हो एक निर्धारित समय तक
Surah Al-Anbiya, Verse 111
قَٰلَ رَبِّ ٱحۡكُم بِٱلۡحَقِّۗ وَرَبُّنَا ٱلرَّحۡمَٰنُ ٱلۡمُسۡتَعَانُ عَلَىٰ مَا تَصِفُونَ
उस (नबी) ने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! सत्य के साथ निर्णय कर दे और हमारा पालनहार अत्यंत कृपाशील है, जिससे सहायता माँगी जाये उन बातों पर, जो तुम लोग बना रहे हो।
Surah Al-Anbiya, Verse 112