Surah Fussilat - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi
حمٓ
हा मीम
Surah Fussilat, Verse 1
تَنزِيلٞ مِّنَ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ
(ये किताब) रहमान व रहीम ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुई है ये (वह) किताब अरबी क़ुरान है
Surah Fussilat, Verse 2
كِتَٰبٞ فُصِّلَتۡ ءَايَٰتُهُۥ قُرۡءَانًا عَرَبِيّٗا لِّقَوۡمٖ يَعۡلَمُونَ
जिसकी आयतें समझदार लोगें के वास्ते तफ़सील से बयान कर दी गयीं हैं
Surah Fussilat, Verse 3
بَشِيرٗا وَنَذِيرٗا فَأَعۡرَضَ أَكۡثَرُهُمۡ فَهُمۡ لَا يَسۡمَعُونَ
ं(नेको कारों को) ख़़ुशख़बरी देने वाली और (बदकारों को) डराने वाली है इस पर भी उनमें से अक्सर ने मुँह फेर लिया और वह सुनते ही नहीं
Surah Fussilat, Verse 4
وَقَالُواْ قُلُوبُنَا فِيٓ أَكِنَّةٖ مِّمَّا تَدۡعُونَآ إِلَيۡهِ وَفِيٓ ءَاذَانِنَا وَقۡرٞ وَمِنۢ بَيۡنِنَا وَبَيۡنِكَ حِجَابٞ فَٱعۡمَلۡ إِنَّنَا عَٰمِلُونَ
और कहने लगे जिस चीज़ की तरफ तुम हमें बुलाते हो उससे तो हमारे दिल पर्दों में हैं (कि दिल को नहीं लगती) और हमारे कानों में गिर्दानी (बहरापन है) कि कुछ सुनायी नहीं देता और हमारे तुम्हारे दरमियान एक पर्दा (हायल) है तो तुम (अपना) काम करो हम (अपना) काम करते हैं
Surah Fussilat, Verse 5
قُلۡ إِنَّمَآ أَنَا۠ بَشَرٞ مِّثۡلُكُمۡ يُوحَىٰٓ إِلَيَّ أَنَّمَآ إِلَٰهُكُمۡ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞ فَٱسۡتَقِيمُوٓاْ إِلَيۡهِ وَٱسۡتَغۡفِرُوهُۗ وَوَيۡلٞ لِّلۡمُشۡرِكِينَ
(ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी बस तुम्हारा ही सा आदमी हूँ (मगर फ़र्क ये है कि) मुझ पर 'वही' आती है कि तुम्हारा माबूद बस (वही) यकता ख़ुदा है तो सीधे उसकी तरफ मुतावज्जे रहो और उसी से बख़शिश की दुआ माँगो, और मुशरेकों पर अफसोस है
Surah Fussilat, Verse 6
ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَهُم بِٱلۡأٓخِرَةِ هُمۡ كَٰفِرُونَ
जो ज़कात नहीं देते और आखेरत के भी क़ायल नहीं
Surah Fussilat, Verse 7
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ لَهُمۡ أَجۡرٌ غَيۡرُ مَمۡنُونٖ
बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे और उनके लिए वह सवाब है जो कभी ख़त्म होने वाला नहीं
Surah Fussilat, Verse 8
۞قُلۡ أَئِنَّكُمۡ لَتَكۡفُرُونَ بِٱلَّذِي خَلَقَ ٱلۡأَرۡضَ فِي يَوۡمَيۡنِ وَتَجۡعَلُونَ لَهُۥٓ أَندَادٗاۚ ذَٰلِكَ رَبُّ ٱلۡعَٰلَمِينَ
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम उस (ख़ुदा) से इन्कार करते हो जिसने ज़मीन को दो दिन में पैदा किया और तुम (औरों को) उसका हमसर बनाते हो, यही तो सारे जहाँ का सरपरस्त है
Surah Fussilat, Verse 9
وَجَعَلَ فِيهَا رَوَٰسِيَ مِن فَوۡقِهَا وَبَٰرَكَ فِيهَا وَقَدَّرَ فِيهَآ أَقۡوَٰتَهَا فِيٓ أَرۡبَعَةِ أَيَّامٖ سَوَآءٗ لِّلسَّآئِلِينَ
और उसी ने ज़मीन में उसके ऊपर से पहाड़ पैदा किए और उसी ने इसमें बरकत अता की और उसी ने एक मुनासिब अन्दाज़ पर इसमें सामाने माईशत का बन्दोबस्त किया (ये सब कुछ) चार दिन में और तमाम तलबगारों के लिए बराबर है
Surah Fussilat, Verse 10
ثُمَّ ٱسۡتَوَىٰٓ إِلَى ٱلسَّمَآءِ وَهِيَ دُخَانٞ فَقَالَ لَهَا وَلِلۡأَرۡضِ ٱئۡتِيَا طَوۡعًا أَوۡ كَرۡهٗا قَالَتَآ أَتَيۡنَا طَآئِعِينَ
फिर आसमान की तरफ मुतावज्जे हुआ और (उस वक्त) धुएँ (का सा) था उसने उससे और ज़मीन से फरमाया कि तुम दोनों आओ ख़़ुशी से ख्वाह कराहत से, दोनों ने अर्ज़ की हम ख़़ुशी ख़़ुशी हाज़िर हैं
Surah Fussilat, Verse 11
فَقَضَىٰهُنَّ سَبۡعَ سَمَٰوَاتٖ فِي يَوۡمَيۡنِ وَأَوۡحَىٰ فِي كُلِّ سَمَآءٍ أَمۡرَهَاۚ وَزَيَّنَّا ٱلسَّمَآءَ ٱلدُّنۡيَا بِمَصَٰبِيحَ وَحِفۡظٗاۚ ذَٰلِكَ تَقۡدِيرُ ٱلۡعَزِيزِ ٱلۡعَلِيمِ
(और हुक्म के पाबन्द हैं) फिर उसने दोनों में उस (धुएँ) के सात आसमान बनाए और हर आसमान में उसके (इन्तेज़ाम) का हुक्म (कार कुनान कज़ा व क़दर के पास) भेज दिया और हमने नीचे वाले आसमान को (सितारों के) चिराग़ों से मज़य्यन किया और (शैतानों से महफूज़) रखा ये वाक़िफ़कार ग़ालिब ख़ुदा के (मुक़र्रर किए हुए) अन्दाज़ हैं
Surah Fussilat, Verse 12
فَإِنۡ أَعۡرَضُواْ فَقُلۡ أَنذَرۡتُكُمۡ صَٰعِقَةٗ مِّثۡلَ صَٰعِقَةِ عَادٖ وَثَمُودَ
फिर अगर हम पर भी ये कुफ्फार मुँह फेरें तो कह दो कि मैं तुम को ऐसी बिजली गिरने (के अज़ाब से) डराता हूँ जैसी क़ौम आद व समूद की बिजली की कड़क
Surah Fussilat, Verse 13
إِذۡ جَآءَتۡهُمُ ٱلرُّسُلُ مِنۢ بَيۡنِ أَيۡدِيهِمۡ وَمِنۡ خَلۡفِهِمۡ أَلَّا تَعۡبُدُوٓاْ إِلَّا ٱللَّهَۖ قَالُواْ لَوۡ شَآءَ رَبُّنَا لَأَنزَلَ مَلَـٰٓئِكَةٗ فَإِنَّا بِمَآ أُرۡسِلۡتُم بِهِۦ كَٰفِرُونَ
जब उनके पास उनके आगे से और पीछे से पैग़म्बर (ये ख़बर लेकर) आए कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार चाहता तो फ़रिश्ते नाज़िल करता और जो (बातें) देकर तुम लोग भेजे गए हो हम तो उसे नहीं मानते
Surah Fussilat, Verse 14
فَأَمَّا عَادٞ فَٱسۡتَكۡبَرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ بِغَيۡرِ ٱلۡحَقِّ وَقَالُواْ مَنۡ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةًۖ أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِي خَلَقَهُمۡ هُوَ أَشَدُّ مِنۡهُمۡ قُوَّةٗۖ وَكَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَجۡحَدُونَ
तो आद नाहक़ रूए ज़मीन में ग़ुरूर करने लगे और कहने लगे कि हम से बढ़ के क़ूवत में कौन है, क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर न किया कि ख़ुदा जिसने उनको पैदा किया है वह उनसे क़ूवत में कहीं बढ़ के है, ग़रज़ वह लोग हमारी आयतों से इन्कार ही करते रहे
Surah Fussilat, Verse 15
فَأَرۡسَلۡنَا عَلَيۡهِمۡ رِيحٗا صَرۡصَرٗا فِيٓ أَيَّامٖ نَّحِسَاتٖ لِّنُذِيقَهُمۡ عَذَابَ ٱلۡخِزۡيِ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَاۖ وَلَعَذَابُ ٱلۡأٓخِرَةِ أَخۡزَىٰۖ وَهُمۡ لَا يُنصَرُونَ
तो हमने भी (तो उनके) नहूसत के दिनों में उन पर बड़ी ज़ोरों की ऑंधी चलाई ताकि दुनिया की ज़िन्दगी में भी उनको रूसवाई के अज़ाब का मज़ा चखा दें और आखेरत का अज़ाब तो और ज्यादा रूसवा करने वाला ही होगा और (फिर) उनको कहीं से मदद भी न मिलेगी
Surah Fussilat, Verse 16
وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيۡنَٰهُمۡ فَٱسۡتَحَبُّواْ ٱلۡعَمَىٰ عَلَى ٱلۡهُدَىٰ فَأَخَذَتۡهُمۡ صَٰعِقَةُ ٱلۡعَذَابِ ٱلۡهُونِ بِمَا كَانُواْ يَكۡسِبُونَ
और रहे समूद तो हमने उनको सीधा रास्ता दिखाया, मगर उन लोगों ने हिदायत के मुक़ाबले में गुमराही को पसन्द किया तो उन की करतूतों की बदौलत ज़िल्लत के अज़ाब की बिजली ने उनको ले डाला
Surah Fussilat, Verse 17
وَنَجَّيۡنَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَكَانُواْ يَتَّقُونَ
और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते थे उनको हमने (इस) मुसीबत से बचा लिया
Surah Fussilat, Verse 18
وَيَوۡمَ يُحۡشَرُ أَعۡدَآءُ ٱللَّهِ إِلَى ٱلنَّارِ فَهُمۡ يُوزَعُونَ
और जिस दिन ख़ुदा के दुशमन दोज़ख़ की तरफ हकाए जाएँगे तो ये लोग तरतीब वार खड़े किए जाएँगे
Surah Fussilat, Verse 19
حَتَّىٰٓ إِذَا مَا جَآءُوهَا شَهِدَ عَلَيۡهِمۡ سَمۡعُهُمۡ وَأَبۡصَٰرُهُمۡ وَجُلُودُهُم بِمَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
यहाँ तक की जब सब के सब जहन्नुम के पास जाएँगे तो उनके कान और उनकी ऑंखें और उनके (गोश्त पोस्त) उनके ख़िलाफ उनके मुक़ाबले में उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें
Surah Fussilat, Verse 20
وَقَالُواْ لِجُلُودِهِمۡ لِمَ شَهِدتُّمۡ عَلَيۡنَاۖ قَالُوٓاْ أَنطَقَنَا ٱللَّهُ ٱلَّذِيٓ أَنطَقَ كُلَّ شَيۡءٖۚ وَهُوَ خَلَقَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَإِلَيۡهِ تُرۡجَعُونَ
और ये लोग अपने आज़ा से कहेंगे कि तुमने हमारे ख़िलाफ क्यों गवाही दी तो वह जवाब देंगे कि जिस ख़ुदा ने हर चीज़ को गोया किया उसने हमको भी (अपनी क़ुदरत से) गोया किया और उसी ने तुमको पहली बार पैदा किया था और (आख़िर) उसी की तरफ लौट कर जाओगे
Surah Fussilat, Verse 21
وَمَا كُنتُمۡ تَسۡتَتِرُونَ أَن يَشۡهَدَ عَلَيۡكُمۡ سَمۡعُكُمۡ وَلَآ أَبۡصَٰرُكُمۡ وَلَا جُلُودُكُمۡ وَلَٰكِن ظَنَنتُمۡ أَنَّ ٱللَّهَ لَا يَعۡلَمُ كَثِيرٗا مِّمَّا تَعۡمَلُونَ
और (तुम्हारी तो ये हालत थी कि) तुम लोग इस ख्याल से (अपने गुनाहों की) पर्दा दारी भी तो नहीं करते थे कि तुम्हारे कान और तुम्हारी ऑंखे और तुम्हारे आज़ा तुम्हारे बरख़िलाफ गवाही देंगे बल्कि तुम इस ख्याल मे (भूले हुए) थे कि ख़ुदा को तुम्हारे बहुत से कामों की ख़बर ही नहीं
Surah Fussilat, Verse 22
وَذَٰلِكُمۡ ظَنُّكُمُ ٱلَّذِي ظَنَنتُم بِرَبِّكُمۡ أَرۡدَىٰكُمۡ فَأَصۡبَحۡتُم مِّنَ ٱلۡخَٰسِرِينَ
और तुम्हारी इस बदख्याली ने जो तुम अपने परवरदिगार के बारे में रखते थे तुम्हें तबाह कर छोड़ा आख़िर तुम घाटे में रहे
Surah Fussilat, Verse 23
فَإِن يَصۡبِرُواْ فَٱلنَّارُ مَثۡوٗى لَّهُمۡۖ وَإِن يَسۡتَعۡتِبُواْ فَمَا هُم مِّنَ ٱلۡمُعۡتَبِينَ
फिर अगर ये लोग सब्र भी करें तो भी इनका ठिकाना दोज़ख़ ही है और अगर तौबा करें तो भी इनकी तौबा क़ुबूल न की जाएगी
Surah Fussilat, Verse 24
۞وَقَيَّضۡنَا لَهُمۡ قُرَنَآءَ فَزَيَّنُواْ لَهُم مَّا بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَمَا خَلۡفَهُمۡ وَحَقَّ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقَوۡلُ فِيٓ أُمَمٖ قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلِهِم مِّنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِۖ إِنَّهُمۡ كَانُواْ خَٰسِرِينَ
और हमने (गोया ख़ुद शैतान को) उनका हमनशीन मुक़र्रर कर दिया था तो उन्होने उनके अगले पिछले तमाम उमूर उनकी नज़रों में भले कर दिखाए तो जिन्नात और इन्सानो की उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी थीं उनके शुमूल (साथ) में (अज़ाब का) वायदा उनके हक़ में भी पूरा हो कर रहा बेशक ये लोग अपने घाटे के दरपै थे
Surah Fussilat, Verse 25
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَا تَسۡمَعُواْ لِهَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ وَٱلۡغَوۡاْ فِيهِ لَعَلَّكُمۡ تَغۡلِبُونَ
और कुफ्फ़ार कहने लगे कि इस क़ुरान को सुनो ही नहीं और जब पढ़ें (तो) इसके (बीच) में ग़ुल मचा दिया करो ताकि (इस तरकीब से) तुम ग़ालिब आ जाओ
Surah Fussilat, Verse 26
فَلَنُذِيقَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ عَذَابٗا شَدِيدٗا وَلَنَجۡزِيَنَّهُمۡ أَسۡوَأَ ٱلَّذِي كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
तो हम भी काफ़िरों को सख्त अज़ाब के मज़े चखाएँगे और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा ये दोज़ख़ है
Surah Fussilat, Verse 27
ذَٰلِكَ جَزَآءُ أَعۡدَآءِ ٱللَّهِ ٱلنَّارُۖ لَهُمۡ فِيهَا دَارُ ٱلۡخُلۡدِ جَزَآءَۢ بِمَا كَانُواْ بِـَٔايَٰتِنَا يَجۡحَدُونَ
ख़ुदा के दुशमनों का बदला है कि वह जो हमरी आयतों से इन्कार करते थे उसकी सज़ा में उनके लिए उसमें हमेशा (रहने) का घर है
Surah Fussilat, Verse 28
وَقَالَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ رَبَّنَآ أَرِنَا ٱلَّذَيۡنِ أَضَلَّانَا مِنَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ نَجۡعَلۡهُمَا تَحۡتَ أَقۡدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ ٱلۡأَسۡفَلِينَ
और (क़यामत के दिन) कुफ्फ़ार कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार जिनों और इन्सानों में से जिन लोगों ने हमको गुमराह किया था (एक नज़र) उनको हमें दिखा दे कि हम उनको पाँव तले (रौन्द) डालें ताकि वह ख़ूब ज़लील हों
Surah Fussilat, Verse 29
إِنَّ ٱلَّذِينَ قَالُواْ رَبُّنَا ٱللَّهُ ثُمَّ ٱسۡتَقَٰمُواْ تَتَنَزَّلُ عَلَيۡهِمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ أَلَّا تَخَافُواْ وَلَا تَحۡزَنُواْ وَأَبۡشِرُواْ بِٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِي كُنتُمۡ تُوعَدُونَ
और जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) कहा कि हमारा परवरदिगार तो (बस) ख़ुदा है, फिर वह उसी पर भी क़ायम भी रहे उन पर मौत के वक्त (रहमत के) फ़रिश्ते नाज़िल होंगे (और कहेंगे) कि कुछ ख़ौफ न करो और न ग़म खाओ और जिस बेहिश्त का तुमसे वायदा किया गया था उसकी ख़ुशियां मनाओ
Surah Fussilat, Verse 30
نَحۡنُ أَوۡلِيَآؤُكُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا وَفِي ٱلۡأٓخِرَةِۖ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَشۡتَهِيٓ أَنفُسُكُمۡ وَلَكُمۡ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ
हम दुनिया की ज़िन्दगी में तुम्हारे दोस्त थे और आखेरत में भी तुम्हारे (रफ़ीक़) हैं और जिस चीज़ का भी तुम्हार जी चाहे बेहिश्त में तुम्हारे वास्ते मौजूद है और जो चीज़ तलब करोगे वहाँ तुम्हारे लिए (हाज़िर) होगी
Surah Fussilat, Verse 31
نُزُلٗا مِّنۡ غَفُورٖ رَّحِيمٖ
(ये) बख्शने वाले मेहरबान (ख़ुदा) की तरफ़ से (तुम्हारी मेहमानी है)
Surah Fussilat, Verse 32
وَمَنۡ أَحۡسَنُ قَوۡلٗا مِّمَّن دَعَآ إِلَى ٱللَّهِ وَعَمِلَ صَٰلِحٗا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ ٱلۡمُسۡلِمِينَ
और इस से बेहतर किसकी बात हो सकती है जो (लोगों को) ख़ुदा की तरफ बुलाए और अच्छे अच्छे काम करे और कहे कि मैं भी यक़ीनन (ख़ुदा के) फरमाबरदार बन्दों में हूं
Surah Fussilat, Verse 33
وَلَا تَسۡتَوِي ٱلۡحَسَنَةُ وَلَا ٱلسَّيِّئَةُۚ ٱدۡفَعۡ بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ فَإِذَا ٱلَّذِي بَيۡنَكَ وَبَيۡنَهُۥ عَدَٰوَةٞ كَأَنَّهُۥ وَلِيٌّ حَمِيمٞ
और भलाई बुराई (कभी) बराबर नहीं हो सकती तो (सख्त कलामी का) ऐसे तरीके से जवाब दो जो निहायत अच्छा हो (ऐसा करोगे) तो (तुम देखोगे) जिस में और तुममें दुशमनी थी गोया वह तुम्हारा दिल सोज़ दोस्त है
Surah Fussilat, Verse 34
وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ٱلَّذِينَ صَبَرُواْ وَمَا يُلَقَّىٰهَآ إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٖ
ये बात बस उन्हीं लोगों को हासिल हुईहै जो सब्र करने वाले हैं और उन्हीं लोगों को हासिल होती है जो बड़े नसीबवर हैं
Surah Fussilat, Verse 35
وَإِمَّا يَنزَغَنَّكَ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ نَزۡغٞ فَٱسۡتَعِذۡ بِٱللَّهِۖ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡعَلِيمُ
और अगर तुम्हें शैतान की तरफ से वसवसा पैदा हो तो ख़ुदा की पनाह माँग लिया करो बेशक वह (सबकी) सुनता जानता है
Surah Fussilat, Verse 36
وَمِنۡ ءَايَٰتِهِ ٱلَّيۡلُ وَٱلنَّهَارُ وَٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُۚ لَا تَسۡجُدُواْ لِلشَّمۡسِ وَلَا لِلۡقَمَرِ وَٱسۡجُدُواْۤ لِلَّهِۤ ٱلَّذِي خَلَقَهُنَّ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ
और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और अगर तुम ख़ुदा ही की इबादत करनी मंज़ूर रहे तो बस उसी को सजदा करो जिसने इन चीज़ों को पैदा किया है
Surah Fussilat, Verse 37
فَإِنِ ٱسۡتَكۡبَرُواْ فَٱلَّذِينَ عِندَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُۥ بِٱلَّيۡلِ وَٱلنَّهَارِ وَهُمۡ لَا يَسۡـَٔمُونَ۩
पस अगर ये लोग सरकशी करें तो (ख़ुदा को भी उनकी परवाह नहीं) वो लोग (फ़रिश्ते) तुम्हारे परवरदिगार की बारगाह में हैं वह रात दिन उसकी तसबीह करते रहते हैं और वह लोग उकताते भी नहीं
Surah Fussilat, Verse 38
وَمِنۡ ءَايَٰتِهِۦٓ أَنَّكَ تَرَى ٱلۡأَرۡضَ خَٰشِعَةٗ فَإِذَآ أَنزَلۡنَا عَلَيۡهَا ٱلۡمَآءَ ٱهۡتَزَّتۡ وَرَبَتۡۚ إِنَّ ٱلَّذِيٓ أَحۡيَاهَا لَمُحۡيِ ٱلۡمَوۡتَىٰٓۚ إِنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ
उसकी क़ुदरत की निशानियों में से एक ये भी है कि तुम ज़मीन को ख़़ुश्क और बेआब ओ गयाह देखते हो फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने लगती है और फूल जाती है जिस ख़ुदा ने (मुर्दा) ज़मीन को ज़िन्दा किया वह यक़ीनन मुर्दों को भी जिलाएगा बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है
Surah Fussilat, Verse 39
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُلۡحِدُونَ فِيٓ ءَايَٰتِنَا لَا يَخۡفَوۡنَ عَلَيۡنَآۗ أَفَمَن يُلۡقَىٰ فِي ٱلنَّارِ خَيۡرٌ أَم مَّن يَأۡتِيٓ ءَامِنٗا يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ ٱعۡمَلُواْ مَا شِئۡتُمۡ إِنَّهُۥ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ
जो लोग हमारी आयतों में हेर फेर पैदा करते हैं वह हरगिज़ हमसे पोशीदा नहीं हैं भला जो शख्स दोज़ख़ में डाला जाएगा वह बेहतर है या वह शख्स जो क़यामत के दिन बेख़ौफ व ख़तर आएगा (ख़ैर) जो चाहो सो करो (मगर) जो कुछ तुम करते हो वह (ख़ुदा) उसको देख रहा है
Surah Fussilat, Verse 40
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِٱلذِّكۡرِ لَمَّا جَآءَهُمۡۖ وَإِنَّهُۥ لَكِتَٰبٌ عَزِيزٞ
जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उनके पास आयी न माना (वह अपना नतीजा देख लेंगे) और ये क़ुरान तो यक़ीनी एक आली मरतबा किताब है
Surah Fussilat, Verse 41
لَّا يَأۡتِيهِ ٱلۡبَٰطِلُ مِنۢ بَيۡنِ يَدَيۡهِ وَلَا مِنۡ خَلۡفِهِۦۖ تَنزِيلٞ مِّنۡ حَكِيمٍ حَمِيدٖ
कि झूठ न तो उसके आगे फटक सकता है और न उसके पीछे से और खूबियों वाले दाना (ख़ुदा) की बारगाह से नाज़िल हुई है
Surah Fussilat, Verse 42
مَّا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدۡ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِن قَبۡلِكَۚ إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغۡفِرَةٖ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٖ
(ऐ रसूल) तुमसे से भी बस वही बातें कहीं जाती हैं जो तुमसे और रसूलों से कही जा चुकी हैं बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है
Surah Fussilat, Verse 43
وَلَوۡ جَعَلۡنَٰهُ قُرۡءَانًا أَعۡجَمِيّٗا لَّقَالُواْ لَوۡلَا فُصِّلَتۡ ءَايَٰتُهُۥٓۖ ءَا۬عۡجَمِيّٞ وَعَرَبِيّٞۗ قُلۡ هُوَ لِلَّذِينَ ءَامَنُواْ هُدٗى وَشِفَآءٞۚ وَٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ فِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٞ وَهُوَ عَلَيۡهِمۡ عَمًىۚ أُوْلَـٰٓئِكَ يُنَادَوۡنَ مِن مَّكَانِۭ بَعِيدٖ
और अगर हम इस क़ुरान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी क्या (खूब क़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कुरान अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कुरान) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है
Surah Fussilat, Verse 44
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ فَٱخۡتُلِفَ فِيهِۚ وَلَوۡلَا كَلِمَةٞ سَبَقَتۡ مِن رَّبِّكَ لَقُضِيَ بَيۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَفِي شَكّٖ مِّنۡهُ مُرِيبٖ
(और नहीं सुनते) और हम ही ने मूसा को भी किताब (तौरैत) अता की थी तो उसमें भी इसमें एख्तेलाफ किया गया और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात पहले न हो चुकी होती तो उनमें कब का फैसला कर दिया गया होता, और ये लोग ऐसे शक़ में पड़े हुए हैं जिसने उन्हें बेचैन कर दिया है
Surah Fussilat, Verse 45
مَّنۡ عَمِلَ صَٰلِحٗا فَلِنَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَسَآءَ فَعَلَيۡهَاۗ وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّـٰمٖ لِّلۡعَبِيدِ
जिसने अच्छे अच्छे काम किये तो अपने नफे क़े लिए और जो बुरा काम करे उसका वबाल भी उसी पर है और तुम्हारा परवरदिगार तो बन्दों पर (कभी) ज़ुल्म करने वाला नहीं
Surah Fussilat, Verse 46
۞إِلَيۡهِ يُرَدُّ عِلۡمُ ٱلسَّاعَةِۚ وَمَا تَخۡرُجُ مِن ثَمَرَٰتٖ مِّنۡ أَكۡمَامِهَا وَمَا تَحۡمِلُ مِنۡ أُنثَىٰ وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلۡمِهِۦۚ وَيَوۡمَ يُنَادِيهِمۡ أَيۡنَ شُرَكَآءِي قَالُوٓاْ ءَاذَنَّـٰكَ مَامِنَّا مِن شَهِيدٖ
क़यामत के इल्म का हवाला उसी की तरफ है (यानि वही जानता है) और बगैर उसके इल्म व (इरादे) के न तो फल अपने पौरों से निकलते हैं और न किसी औरत को हमल रखता है और न वह बच्चा जनती है और जिस दिन (ख़ुदा) उन (मुशरेकीन) को पुकारेगा और पूछेगा कि मेरे शरीक कहाँ हैं- वह कहेंगे हम तो तुझ से अर्ज़ कर चूके हैं कि हम में से कोई (उनसे) वाकिफ़ ही नहीं
Surah Fussilat, Verse 47
وَضَلَّ عَنۡهُم مَّا كَانُواْ يَدۡعُونَ مِن قَبۡلُۖ وَظَنُّواْ مَا لَهُم مِّن مَّحِيصٖ
और इससे पहले जिन माबूदों की परसतिश करते थे वह ग़ायब हो गये और ये लोग समझ जाएगें कि उनके लिए अब मुख़लिसी नहीं
Surah Fussilat, Verse 48
لَّا يَسۡـَٔمُ ٱلۡإِنسَٰنُ مِن دُعَآءِ ٱلۡخَيۡرِ وَإِن مَّسَّهُ ٱلشَّرُّ فَيَـُٔوسٞ قَنُوطٞ
इन्सान भलाई की दुआए मांगने से तो कभी उकताता नहीं और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाए तो (फौरन) न उम्मीद और बेआस हो जाता है
Surah Fussilat, Verse 49
وَلَئِنۡ أَذَقۡنَٰهُ رَحۡمَةٗ مِّنَّا مِنۢ بَعۡدِ ضَرَّآءَ مَسَّتۡهُ لَيَقُولَنَّ هَٰذَا لِي وَمَآ أَظُنُّ ٱلسَّاعَةَ قَآئِمَةٗ وَلَئِن رُّجِعۡتُ إِلَىٰ رَبِّيٓ إِنَّ لِي عِندَهُۥ لَلۡحُسۡنَىٰۚ فَلَنُنَبِّئَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِمَا عَمِلُواْ وَلَنُذِيقَنَّهُم مِّنۡ عَذَابٍ غَلِيظٖ
और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें
Surah Fussilat, Verse 50
وَإِذَآ أَنۡعَمۡنَا عَلَى ٱلۡإِنسَٰنِ أَعۡرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ فَذُو دُعَآءٍ عَرِيضٖ
(वह अलग) और जब हम इन्सान पर एहसान करते हैं तो (हमारी तरफ से) मुँह फेर लेता है और मुँह बदलकर चल देता है और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चौड़ी दुआएँ करने लगता है
Surah Fussilat, Verse 51
قُلۡ أَرَءَيۡتُمۡ إِن كَانَ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِ ثُمَّ كَفَرۡتُم بِهِۦ مَنۡ أَضَلُّ مِمَّنۡ هُوَ فِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ
(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि अगर ये (क़ुरान) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो और फिर तुम उससे इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दर्जे की मुख़ालेफत में (पड़ा) हो उससे बढ़कर और कौन गुमराह हो सकता है
Surah Fussilat, Verse 52
سَنُرِيهِمۡ ءَايَٰتِنَا فِي ٱلۡأٓفَاقِ وَفِيٓ أَنفُسِهِمۡ حَتَّىٰ يَتَبَيَّنَ لَهُمۡ أَنَّهُ ٱلۡحَقُّۗ أَوَلَمۡ يَكۡفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُۥ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ
हम अनक़रीब ही अपनी (क़ुदरत) की निशानियाँ अतराफ (आलम) में और ख़़ुद उनमें भी दिखा देगें यहाँ तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है क्या तुम्हारा परवरदिगार इसके लिए काफी नहीं कि वह हर चीज़ पर क़ाबू रखता है
Surah Fussilat, Verse 53
أَلَآ إِنَّهُمۡ فِي مِرۡيَةٖ مِّن لِّقَآءِ رَبِّهِمۡۗ أَلَآ إِنَّهُۥ بِكُلِّ شَيۡءٖ مُّحِيطُۢ
देखो ये लोग अपने परवरदिगार के रूबरू हाज़िर होने से शक़ में (पड़े) हैं सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है
Surah Fussilat, Verse 54