Surah Al-Hujraat - Hindi Translation by Muhammad Farooq Khan And Muhammad Ahmed
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيِ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
ऐ ईमानवालो! अल्लाह और उसके रसूल से आगे न बढो और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह सुनता, जानता है
Surah Al-Hujraat, Verse 1
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَرۡفَعُوٓاْ أَصۡوَٰتَكُمۡ فَوۡقَ صَوۡتِ ٱلنَّبِيِّ وَلَا تَجۡهَرُواْ لَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ كَجَهۡرِ بَعۡضِكُمۡ لِبَعۡضٍ أَن تَحۡبَطَ أَعۡمَٰلُكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम अपनी आवाज़ों को नबी की आवाज़ से ऊँची न करो। और जिस तरह तुम आपस में एक-दूसरे से ज़ोर से बोलते हो, उससे ऊँची आवाज़ में बात न करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म अकारथ हो जाएँ और तुम्हें ख़बर भी न हो
Surah Al-Hujraat, Verse 2
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَغُضُّونَ أَصۡوَٰتَهُمۡ عِندَ رَسُولِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱمۡتَحَنَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُمۡ لِلتَّقۡوَىٰۚ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٌ عَظِيمٌ
वे लोग जो अल्लाह के रसूल के समक्ष अपनी आवाज़ों को दबी रखते है, वही लोग है जिनके दिलों को अल्लाह ने परहेज़गारी के लिए जाँचकर चुन लिया है। उनके लिए क्षमा और बड़ा बदला है
Surah Al-Hujraat, Verse 3
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُنَادُونَكَ مِن وَرَآءِ ٱلۡحُجُرَٰتِ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ
जो लोग (ऐ नबी) तुम्हें कमरों के बाहर से पुकारते है उनमें से अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते
Surah Al-Hujraat, Verse 4
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ صَبَرُواْ حَتَّىٰ تَخۡرُجَ إِلَيۡهِمۡ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
यदि वे धैर्य से काम लेते यहाँ तक कि तुम स्वयं निकलकर उनके पास आ जाते तो यह उनके लिए अच्छा होता। किन्तु अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है
Surah Al-Hujraat, Verse 5
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن جَآءَكُمۡ فَاسِقُۢ بِنَبَإٖ فَتَبَيَّنُوٓاْ أَن تُصِيبُواْ قَوۡمَۢا بِجَهَٰلَةٖ فَتُصۡبِحُواْ عَلَىٰ مَا فَعَلۡتُمۡ نَٰدِمِينَ
ऐ लोगों, जो ईमान लाए हो! यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किए पर पछताओ
Surah Al-Hujraat, Verse 6
وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ فِيكُمۡ رَسُولَ ٱللَّهِۚ لَوۡ يُطِيعُكُمۡ فِي كَثِيرٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ لَعَنِتُّمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ حَبَّبَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡإِيمَٰنَ وَزَيَّنَهُۥ فِي قُلُوبِكُمۡ وَكَرَّهَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡكُفۡرَ وَٱلۡفُسُوقَ وَٱلۡعِصۡيَانَۚ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلرَّـٰشِدُونَ
जान लो कि तुम्हारे बीच अल्लाह का रसूल मौजूद है। बहुत-से मामलों में यदि वह तुम्हारी बात मान ले तो तुम कठिनाई में पड़ जाओ। किन्तु अल्लाह ने तुम्हारे लिए ईमान को प्रिय बना दिया और उसे तुम्हारे दिलों में सुन्दरता दे दी और इनकार, उल्लंघन और अवज्ञा को तुम्हारे लिए बहुत अप्रिय बना दिया।
Surah Al-Hujraat, Verse 7
فَضۡلٗا مِّنَ ٱللَّهِ وَنِعۡمَةٗۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ
ऐसे ही लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह और अनुकम्पा से सूझबूझवाले है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
Surah Al-Hujraat, Verse 8
وَإِن طَآئِفَتَانِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱقۡتَتَلُواْ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَاۖ فَإِنۢ بَغَتۡ إِحۡدَىٰهُمَا عَلَى ٱلۡأُخۡرَىٰ فَقَٰتِلُواْ ٱلَّتِي تَبۡغِي حَتَّىٰ تَفِيٓءَ إِلَىٰٓ أَمۡرِ ٱللَّهِۚ فَإِن فَآءَتۡ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَا بِٱلۡعَدۡلِ وَأَقۡسِطُوٓاْۖ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِينَ
यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़े तो उनके बीच सुलह करा दो। फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़्यादती करे, तो जो गिरोह ज़्यादती कर रहा हो उससे लड़ो, यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए। फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इनसाफ़ करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों को पसन्द करता है
Surah Al-Hujraat, Verse 9
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِخۡوَةٞ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَ أَخَوَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ
मोमिन तो भाई-भाई ही है। अतः अपने दो भाईयो के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए
Surah Al-Hujraat, Verse 10
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَسۡخَرۡ قَوۡمٞ مِّن قَوۡمٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُونُواْ خَيۡرٗا مِّنۡهُمۡ وَلَا نِسَآءٞ مِّن نِّسَآءٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُنَّ خَيۡرٗا مِّنۡهُنَّۖ وَلَا تَلۡمِزُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ وَلَا تَنَابَزُواْ بِٱلۡأَلۡقَٰبِۖ بِئۡسَ ٱلِٱسۡمُ ٱلۡفُسُوقُ بَعۡدَ ٱلۡإِيمَٰنِۚ وَمَن لَّمۡ يَتُبۡ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! न पुरुषों का कोई गिरोह दूसरे पुरुषों की हँसी उड़ाए, सम्भव है वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियाँ स्त्रियों की हँसी उड़ाए, सम्भव है वे उनसे अच्छी हों, और न अपनों पर ताने कसो और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो। ईमान के पश्चात अवज्ञाकारी का नाम जुडना बहुत ही बुरा है। और जो व्यक्ति बाज़ न आए, तो ऐसे ही व्यक्ति ज़ालिम है
Surah Al-Hujraat, Verse 11
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱجۡتَنِبُواْ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلظَّنِّ إِنَّ بَعۡضَ ٱلظَّنِّ إِثۡمٞۖ وَلَا تَجَسَّسُواْ وَلَا يَغۡتَب بَّعۡضُكُم بَعۡضًاۚ أَيُحِبُّ أَحَدُكُمۡ أَن يَأۡكُلَ لَحۡمَ أَخِيهِ مَيۡتٗا فَكَرِهۡتُمُوهُۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ تَوَّابٞ رَّحِيمٞ
ऐ ईमान लानेवालो! बहुत से गुमानों से बचो, क्योंकि कतिपय गुमान गुनाह होते है। और न टोह में पड़ो और न तुममें से कोई किसी की पीठ पीछे निन्दा करे - क्या तुममें से कोई इसको पसन्द करेगा कि वह मरे हुए भाई का मांस खाए? वह तो तुम्हें अप्रिय होगी ही। - और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है
Surah Al-Hujraat, Verse 12
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّا خَلَقۡنَٰكُم مِّن ذَكَرٖ وَأُنثَىٰ وَجَعَلۡنَٰكُمۡ شُعُوبٗا وَقَبَآئِلَ لِتَعَارَفُوٓاْۚ إِنَّ أَكۡرَمَكُمۡ عِندَ ٱللَّهِ أَتۡقَىٰكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٞ
ऐ लोगो! हमनें तुम्हें एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरियों और क़बिलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है, जो तुममे सबसे अधिक डर रखता है। निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है
Surah Al-Hujraat, Verse 13
۞قَالَتِ ٱلۡأَعۡرَابُ ءَامَنَّاۖ قُل لَّمۡ تُؤۡمِنُواْ وَلَٰكِن قُولُوٓاْ أَسۡلَمۡنَا وَلَمَّا يَدۡخُلِ ٱلۡإِيمَٰنُ فِي قُلُوبِكُمۡۖ وَإِن تُطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَا يَلِتۡكُم مِّنۡ أَعۡمَٰلِكُمۡ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
बद्दुओं ने कहा कि, "हम ईमान लाए।" कह दो, "तुम ईमान नहीं लाए। किन्तु यूँ कहो, 'हम तो आज्ञाकारी हुए' ईमान तो अभी तुम्हारे दिलों में दाख़िल ही नहीं हुआ। यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो तो वह तुम्हारे कर्मों में से तुम्हारे लिए कुछ कम न करेगा। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
Surah Al-Hujraat, Verse 14
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ لَمۡ يَرۡتَابُواْ وَجَٰهَدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلصَّـٰدِقُونَ
मोमिन तो बस वही लोग है जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए, फिर उन्होंने कोई सन्देह नहीं किया और अपने मालों और अपनी जानों से अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया। वही लोग सच्चे है
Surah Al-Hujraat, Verse 15
قُلۡ أَتُعَلِّمُونَ ٱللَّهَ بِدِينِكُمۡ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ
कहो, "क्या तुम अल्लाह को अपने धर्म की सूचना दे रहे हो। हालाँकि जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, अल्लाह सब जानता है? अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है।
Surah Al-Hujraat, Verse 16
يَمُنُّونَ عَلَيۡكَ أَنۡ أَسۡلَمُواْۖ قُل لَّا تَمُنُّواْ عَلَيَّ إِسۡلَٰمَكُمۖ بَلِ ٱللَّهُ يَمُنُّ عَلَيۡكُمۡ أَنۡ هَدَىٰكُمۡ لِلۡإِيمَٰنِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
वे तुमपर एहसान जताते है कि उन्होंने इस्लाम क़बूल कर लिया। कह दो, "मुझ पर अपने इस्लाम का एहसान न रखो, बल्कि यदि तुम सच्चे हो तो अल्लाह ही तुमपर एहसान रखता है कि उसने तुम्हें ईमान की राह दिखाई।
Surah Al-Hujraat, Verse 17
إِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ غَيۡبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ
निश्चय ही अल्लाह आकाशों और धरती के अदृष्ट को जानता है। और अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम करते हो।
Surah Al-Hujraat, Verse 18