Surah Al-Hujraat - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تُقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيِ ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٞ
हे लोगो जो ईमान लाये हो! आगे न बढ़ो अल्लाह और उसके रसूल[1] से और डरो अल्लाह से। वास्तव में, अल्लाह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।
Surah Al-Hujraat, Verse 1
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَرۡفَعُوٓاْ أَصۡوَٰتَكُمۡ فَوۡقَ صَوۡتِ ٱلنَّبِيِّ وَلَا تَجۡهَرُواْ لَهُۥ بِٱلۡقَوۡلِ كَجَهۡرِ بَعۡضِكُمۡ لِبَعۡضٍ أَن تَحۡبَطَ أَعۡمَٰلُكُمۡ وَأَنتُمۡ لَا تَشۡعُرُونَ
हे लोगो जो ईमान लाये हो! अपनी आवाज़, नबी की आवाज़ से ऊँची न करो और न आपसे ऊँची आवाज़ में बात करो, जैसे एक-दूसरे से ऊँची आवाज़ में बात करते हो। ऐसा न हो कि तुम्हारे कर्म व्यर्थ हो जायें और तुम्हें पता (भी) न हो।
Surah Al-Hujraat, Verse 2
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَغُضُّونَ أَصۡوَٰتَهُمۡ عِندَ رَسُولِ ٱللَّهِ أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱمۡتَحَنَ ٱللَّهُ قُلُوبَهُمۡ لِلتَّقۡوَىٰۚ لَهُم مَّغۡفِرَةٞ وَأَجۡرٌ عَظِيمٌ
निःसंदेह, जो धीमी रखते हैं अपनी आवाज़, अल्लाह के रसूल के सामने, वही लोग हैं, जाँच लिया है अल्लाह ने जिनके दिलों को, सदाचार के लिए। उन्हीं के लिए क्षमा तथा बड़ा प्रतिफल है।
Surah Al-Hujraat, Verse 3
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُنَادُونَكَ مِن وَرَآءِ ٱلۡحُجُرَٰتِ أَكۡثَرُهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ
वास्तव में जो आपको पुकारते[1] हैं कमरों के पीछे से, उनमें से अधिक्तर निर्बोध हैं।
Surah Al-Hujraat, Verse 4
وَلَوۡ أَنَّهُمۡ صَبَرُواْ حَتَّىٰ تَخۡرُجَ إِلَيۡهِمۡ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
और यदि वे सहन[1] करते, यहाँ तक कि आप निकलकर आते उनकी ओर, तो ये उत्तम होता उनके लिए तथा अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला, दयावान् है।
Surah Al-Hujraat, Verse 5
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن جَآءَكُمۡ فَاسِقُۢ بِنَبَإٖ فَتَبَيَّنُوٓاْ أَن تُصِيبُواْ قَوۡمَۢا بِجَهَٰلَةٖ فَتُصۡبِحُواْ عَلَىٰ مَا فَعَلۡتُمۡ نَٰدِمِينَ
हे ईमान वालो! यदि तुम्हारे पास कोई दुराचारी[1] कोई सूचना लाये, तो भली-भाँति उसका अनुसंधान (छान-बीन) कर लिया करो। ऐसा न हो कि तुम हानि पहुँचा दो किसी समुदाय को, अज्ञानता के कारण, फिर अपने किये पर पछताओ।
Surah Al-Hujraat, Verse 6
وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ فِيكُمۡ رَسُولَ ٱللَّهِۚ لَوۡ يُطِيعُكُمۡ فِي كَثِيرٖ مِّنَ ٱلۡأَمۡرِ لَعَنِتُّمۡ وَلَٰكِنَّ ٱللَّهَ حَبَّبَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡإِيمَٰنَ وَزَيَّنَهُۥ فِي قُلُوبِكُمۡ وَكَرَّهَ إِلَيۡكُمُ ٱلۡكُفۡرَ وَٱلۡفُسُوقَ وَٱلۡعِصۡيَانَۚ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلرَّـٰشِدُونَ
तथा जान लो कि तुम में अल्लाह के रसूल मौजूद हैं। यदि, वह तुम्हारी बात मानते रहे बहुत-से विषय में, तो तुम आपदा में पड़ जाओगे। परन्तु, अल्लाह ने प्रिय बना दिया है तुम्हारे लिए ईमान को तथा सुशोभित कर दिया है उसे तुम्हारे दिलों में और अप्रिय बना दिया है तुम्हारे लिए कुफ़्र तथा उल्लंघन और अवज्ञा को और यही लोग संमार्ग पर हैं।
Surah Al-Hujraat, Verse 7
فَضۡلٗا مِّنَ ٱللَّهِ وَنِعۡمَةٗۚ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ
अल्लाह की दया तथा उपकार से और अल्लाह सब कुछ तथा सब गुणों को जानने वाला है।
Surah Al-Hujraat, Verse 8
وَإِن طَآئِفَتَانِ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱقۡتَتَلُواْ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَاۖ فَإِنۢ بَغَتۡ إِحۡدَىٰهُمَا عَلَى ٱلۡأُخۡرَىٰ فَقَٰتِلُواْ ٱلَّتِي تَبۡغِي حَتَّىٰ تَفِيٓءَ إِلَىٰٓ أَمۡرِ ٱللَّهِۚ فَإِن فَآءَتۡ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَهُمَا بِٱلۡعَدۡلِ وَأَقۡسِطُوٓاْۖ إِنَّ ٱللَّهَ يُحِبُّ ٱلۡمُقۡسِطِينَ
और यदि ईमान वालों के दो गिरोह लड़[1] पड़ें, तो संधि करा दो उनके बीच। फिर दोनों में से एक, दूसरे पर अत्याचार करे, तो उससे लड़ो जो अत्याचार कर रहा है, यहाँ तक कि फिर जाये अल्लाह के आदेश की ओर। फिर, यदि वह फिर[1] आये, तो उनके बीच संधि करा दो न्याय के साथ तथा न्याय करो, वास्तव में अल्लाह प्रेम करता है, न्याय करने वालों से।
Surah Al-Hujraat, Verse 9
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِخۡوَةٞ فَأَصۡلِحُواْ بَيۡنَ أَخَوَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمۡ تُرۡحَمُونَ
वास्तव में, सब ईमान वाले भाई-भाई हैं। अतः संधि (मेल) करा दो अपने दो भाईयों के बीच तथा अल्लाह से डरो, ताकि तुम पर दया की जाये।
Surah Al-Hujraat, Verse 10
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَسۡخَرۡ قَوۡمٞ مِّن قَوۡمٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُونُواْ خَيۡرٗا مِّنۡهُمۡ وَلَا نِسَآءٞ مِّن نِّسَآءٍ عَسَىٰٓ أَن يَكُنَّ خَيۡرٗا مِّنۡهُنَّۖ وَلَا تَلۡمِزُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ وَلَا تَنَابَزُواْ بِٱلۡأَلۡقَٰبِۖ بِئۡسَ ٱلِٱسۡمُ ٱلۡفُسُوقُ بَعۡدَ ٱلۡإِيمَٰنِۚ وَمَن لَّمۡ يَتُبۡ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلظَّـٰلِمُونَ
हे लोगो जो ईमान लाये हो![1] हँसी न उड़ाये कोई जाति किसी अन्य जाति की। हो सकता है कि वह उनसे अच्छी हो और न नारी अन्य नारियों की। हो सकता है कि वो उनसे अच्छी हों तथा आक्षेप न लगाओ एक-दूसरे को और न किसी को बुरी उपाधि दो। बुरा नाम है अपशब्द ईमान के पश्चात् और जो क्षमा न माँगें, तो वही लोग अत्याचारी हैं।
Surah Al-Hujraat, Verse 11
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱجۡتَنِبُواْ كَثِيرٗا مِّنَ ٱلظَّنِّ إِنَّ بَعۡضَ ٱلظَّنِّ إِثۡمٞۖ وَلَا تَجَسَّسُواْ وَلَا يَغۡتَب بَّعۡضُكُم بَعۡضًاۚ أَيُحِبُّ أَحَدُكُمۡ أَن يَأۡكُلَ لَحۡمَ أَخِيهِ مَيۡتٗا فَكَرِهۡتُمُوهُۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ تَوَّابٞ رَّحِيمٞ
हे लोगो जो ईमान लाये हो! बचो अधिकांश गुमानों से। वास्व में, कुछ गुमान पाप हैं और किसी का भेद न लो और न एक-दूसरे की ग़ीबत[1] करो। क्या चाहेगा तुममें से कोई अपने मरे भाई का मांश खाना? अतः, तुम्हें इससे घृणा होगी तथा अल्लाह से डरते रहो। वास्तव में, अल्लाह अति दयावान्, क्षमावान् है।
Surah Al-Hujraat, Verse 12
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ إِنَّا خَلَقۡنَٰكُم مِّن ذَكَرٖ وَأُنثَىٰ وَجَعَلۡنَٰكُمۡ شُعُوبٗا وَقَبَآئِلَ لِتَعَارَفُوٓاْۚ إِنَّ أَكۡرَمَكُمۡ عِندَ ٱللَّهِ أَتۡقَىٰكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٞ
हे मनुष्यो![1] हमने तुम्हें पैदा किया एक नर तथा नारी से तथा बना दी हैं तुम्हारी जातियाँ तथा प्रजातियाँ, ताकि एक-दूसरे को पहचानो। वास्तव में, तुममें अल्लाह के समीप सबसे अधिक आदरणीय वही है, जो तुममें अल्लाह से सबसे अधिक डरता हो। वास्तव में अल्लाह सब जानने वाला है, सबसे सूचित है।
Surah Al-Hujraat, Verse 13
۞قَالَتِ ٱلۡأَعۡرَابُ ءَامَنَّاۖ قُل لَّمۡ تُؤۡمِنُواْ وَلَٰكِن قُولُوٓاْ أَسۡلَمۡنَا وَلَمَّا يَدۡخُلِ ٱلۡإِيمَٰنُ فِي قُلُوبِكُمۡۖ وَإِن تُطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ لَا يَلِتۡكُم مِّنۡ أَعۡمَٰلِكُمۡ شَيۡـًٔاۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
कहा कुछ बद्दुओं (देहातियों) ने कि हम ईमान लाये। आप कह दें कि तुम ईमान नहीं लाये। परन्तु कहो कि हम इस्लाम लाये और ईमान अभी तक तुम्हारे दिलों में प्रवेश नहीं किया है तथा यदि तुम आज्ञा का पालन करते रहे अल्लाह तथा उसके रसूल की, तो नहीं कम करेगा वह (अल्लाह) तुम्हारे कर्मों में से कुछ। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान्[1] है।
Surah Al-Hujraat, Verse 14
إِنَّمَا ٱلۡمُؤۡمِنُونَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ لَمۡ يَرۡتَابُواْ وَجَٰهَدُواْ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلصَّـٰدِقُونَ
वास्तव में, ईमान वाले वही हैं, जो ईमान लाये अल्लाह तथा उसके रसूल पर, फिर संदेह नहीं किया और जिहाद किया अपने प्राणों तथा धनों से, अल्लाह की राह में, यही सच्चे हैं।
Surah Al-Hujraat, Verse 15
قُلۡ أَتُعَلِّمُونَ ٱللَّهَ بِدِينِكُمۡ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ
आप कह दें कि क्या तुम अवगत करा रहे हो अल्लाह को अपने धर्म से? जबकि अल्लाह जानता है जो कुछ (भी) आकाशों तथा धरती में है तथा वह प्रत्येक वस्तु का अति ज्ञानी है।
Surah Al-Hujraat, Verse 16
يَمُنُّونَ عَلَيۡكَ أَنۡ أَسۡلَمُواْۖ قُل لَّا تَمُنُّواْ عَلَيَّ إِسۡلَٰمَكُمۖ بَلِ ٱللَّهُ يَمُنُّ عَلَيۡكُمۡ أَنۡ هَدَىٰكُمۡ لِلۡإِيمَٰنِ إِن كُنتُمۡ صَٰدِقِينَ
वे उपकार जता रहे हैं आपके ऊपर कि वे इस्वलाम लाये हैं। आप कह दें के उपकार न जताओ मुझपर अपने इस्लाम का। बल्कि अल्लाह का उपकार है तुमपर कि उसने राह दिखायी है तुम्हें ईमान की, यदि तुम सच्चे हो।
Surah Al-Hujraat, Verse 17
إِنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ غَيۡبَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَٱللَّهُ بَصِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ
निःसंदेह, अल्लाह ही जानता है आकाशों तथा धरती के ग़ैब (छुपी बात) को तथा अल्लाह देख रहा है जो कुछ तुम कर रहे हो।
Surah Al-Hujraat, Verse 18