Surah Al-Fath - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
إِنَّا فَتَحۡنَا لَكَ فَتۡحٗا مُّبِينٗا
हे नबी! हमने विजय[1] प्रदान कर दी आपको खुली विजय।
Surah Al-Fath, Verse 1
لِّيَغۡفِرَ لَكَ ٱللَّهُ مَا تَقَدَّمَ مِن ذَنۢبِكَ وَمَا تَأَخَّرَ وَيُتِمَّ نِعۡمَتَهُۥ عَلَيۡكَ وَيَهۡدِيَكَ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا
ताकि क्षमा कर दे[1] अल्लाह आपके लिए, आपके अगले तथा पिछले दोषों को तथा पूरा करे अपना पुरस्कार, आपके ऊपर और दिखाये आपको सीधी राह।
Surah Al-Fath, Verse 2
وَيَنصُرَكَ ٱللَّهُ نَصۡرًا عَزِيزًا
तथा अल्लाह आपकी सहायता करे भरपूर सहायता।
Surah Al-Fath, Verse 3
هُوَ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ ٱلسَّكِينَةَ فِي قُلُوبِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ لِيَزۡدَادُوٓاْ إِيمَٰنٗا مَّعَ إِيمَٰنِهِمۡۗ وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا
वही है, जिसने उतारी शान्ति ईमान वालों के दिलों में, ताकि अधिक हो जाये उनका ईमान अपने ईमान के साथ तथा अल्लाह ही की हैं, आकाशों तथा धरती की सेनायें तथा अल्लाह सब कुछ और सब गुणों को जानने वाला है।
Surah Al-Fath, Verse 4
لِّيُدۡخِلَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَا وَيُكَفِّرَ عَنۡهُمۡ سَيِّـَٔاتِهِمۡۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عِندَ ٱللَّهِ فَوۡزًا عَظِيمٗا
ताकि वह प्रवेश कराये ईमान वाले पुरुषों तथा स्त्रियों को ऐसे स्वर्गों में, बह रही हैं जिनमें नहरें और वे सदैव रहेंगे उनमें और ताकि दूर कर दे उनसे, उनकी बुराईयों को और अल्लाह के यहाँ यही बहुत बड़ी सफलता है।
Surah Al-Fath, Verse 5
وَيُعَذِّبَ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱلۡمُنَٰفِقَٰتِ وَٱلۡمُشۡرِكِينَ وَٱلۡمُشۡرِكَٰتِ ٱلظَّآنِّينَ بِٱللَّهِ ظَنَّ ٱلسَّوۡءِۚ عَلَيۡهِمۡ دَآئِرَةُ ٱلسَّوۡءِۖ وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡ وَلَعَنَهُمۡ وَأَعَدَّ لَهُمۡ جَهَنَّمَۖ وَسَآءَتۡ مَصِيرٗا
तथा यातना दे मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा स्त्रियों को, जो बुरा विचार रखने वाले हैं अल्लाह के संबंध में। उन्हीं पर बुरी आपदा आ पड़ी तथा अल्लाह का प्रकोप हुआ उनपर और उसने धिक्कार दिया उन्हें तथा तैयार कर दी उनके लिए नरक और वह बुरा जाने का स्थान है।
Surah Al-Fath, Verse 6
وَلِلَّهِ جُنُودُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمًا
तथा अल्लाह ही की हैं आकाशों तथा धरती की सेनायें और अल्लाह प्रबल तथा सब गुणों को जानने वाला है।
Surah Al-Fath, Verse 7
إِنَّآ أَرۡسَلۡنَٰكَ شَٰهِدٗا وَمُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا
(हे नबी!) हमने भेजा है आपको गवाह बनाकर तथा शुभ सूचना देने एवं सावधान करने वाला बनाकर।
Surah Al-Fath, Verse 8
لِّتُؤۡمِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَتُعَزِّرُوهُ وَتُوَقِّرُوهُۚ وَتُسَبِّحُوهُ بُكۡرَةٗ وَأَصِيلًا
ताकि तुम ईमान लाओ अल्लाह एवं उसके रसूल पर और सहायता करो आपकी तथा आदर करो आपका और अल्लाह की पवित्रता का वर्णन करते रहो, प्रातः तथा संध्या।
Surah Al-Fath, Verse 9
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُبَايِعُونَكَ إِنَّمَا يُبَايِعُونَ ٱللَّهَ يَدُ ٱللَّهِ فَوۡقَ أَيۡدِيهِمۡۚ فَمَن نَّكَثَ فَإِنَّمَا يَنكُثُ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦۖ وَمَنۡ أَوۡفَىٰ بِمَا عَٰهَدَ عَلَيۡهُ ٱللَّهَ فَسَيُؤۡتِيهِ أَجۡرًا عَظِيمٗا
(हे नबी!) जो बैअत कर रहे हैं आपसे, वे वास्तव[1] में बैअत कर रहे हैं अल्लाह से। अल्लाह का हाथ उनके हाथों के ऊपर है। फिर जिसने वचन तोड़ा, तो वह अपने ऊपर ही वचन तोड़ेगा तथा जिसने पूरा किया जो वचन अल्लाह से किया है, तो वह उसे बड़ा प्रतिफल (बदला) प्रदान करेगा।
Surah Al-Fath, Verse 10
سَيَقُولُ لَكَ ٱلۡمُخَلَّفُونَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ شَغَلَتۡنَآ أَمۡوَٰلُنَا وَأَهۡلُونَا فَٱسۡتَغۡفِرۡ لَنَاۚ يَقُولُونَ بِأَلۡسِنَتِهِم مَّا لَيۡسَ فِي قُلُوبِهِمۡۚ قُلۡ فَمَن يَمۡلِكُ لَكُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـًٔا إِنۡ أَرَادَ بِكُمۡ ضَرًّا أَوۡ أَرَادَ بِكُمۡ نَفۡعَۢاۚ بَلۡ كَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرَۢا
(हे नबी!) वे[1] शीघ्र ही आपसे कहेंगे, जो पीछे छोड़ दिये गये बद्दुओं में से कि हम लगे रह गये अपने धनों तथा परिवार में। अतः, आप क्षमा की प्रार्थना कर दें हमारे लिए। वे अपने मुखों से वो बात कहेंगे, जो उनके दिलों में नहीं है। आप उनसे कहिये कि कौन है, जो अधिकार रखता हो तुम्हारे लिए, अल्लाह के सामने किसी चीज़ का, यदि अल्लाह तुम्हें कोई हानि पहुँचाना चाहे या कोई लाभ पहुँचाना चाहे? बल्कि अल्लाह सूचित है उससे, जो तुम कर रहे हो।
Surah Al-Fath, Verse 11
بَلۡ ظَنَنتُمۡ أَن لَّن يَنقَلِبَ ٱلرَّسُولُ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ إِلَىٰٓ أَهۡلِيهِمۡ أَبَدٗا وَزُيِّنَ ذَٰلِكَ فِي قُلُوبِكُمۡ وَظَنَنتُمۡ ظَنَّ ٱلسَّوۡءِ وَكُنتُمۡ قَوۡمَۢا بُورٗا
बल्कि, तुमने सोचा था कि कदापि वापस नहीं आयेंगे रसूल और न ईमान वाले, अपने परिजनों की ओर, कभी भी और भली लगी ये बात तुम्हारे दिलों को और तुमने बुरी सोच सोची और थे ही तुम विनाश होने वाले लोग।
Surah Al-Fath, Verse 12
وَمَن لَّمۡ يُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ فَإِنَّآ أَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ سَعِيرٗا
और जो ईमान नहीं लाये अल्लाह तथा उसके रसूल पर, तो हमने तैयार कर रखी है काफ़िरों के लिए दहकती अग्नि।
Surah Al-Fath, Verse 13
وَلِلَّهِ مُلۡكُ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ يَغۡفِرُ لِمَن يَشَآءُ وَيُعَذِّبُ مَن يَشَآءُۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
अल्लाह के लिए है आकाशों तथा धरती का राज्य। वह क्षमा कर दे जिसे चाहे और यातना दे जिसे चाहे और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Al-Fath, Verse 14
سَيَقُولُ ٱلۡمُخَلَّفُونَ إِذَا ٱنطَلَقۡتُمۡ إِلَىٰ مَغَانِمَ لِتَأۡخُذُوهَا ذَرُونَا نَتَّبِعۡكُمۡۖ يُرِيدُونَ أَن يُبَدِّلُواْ كَلَٰمَ ٱللَّهِۚ قُل لَّن تَتَّبِعُونَا كَذَٰلِكُمۡ قَالَ ٱللَّهُ مِن قَبۡلُۖ فَسَيَقُولُونَ بَلۡ تَحۡسُدُونَنَاۚ بَلۡ كَانُواْ لَا يَفۡقَهُونَ إِلَّا قَلِيلٗا
वो लोग जो पीछे छोड़ दिये गये, कहेंगे, जब तुम चलोगे ग़नीमतों की ओर ताकि उन्हें प्राप्त करो कि हमें (भी) अपने साथ[1] चलने दो। वे चाहते हैं कि बदल दें अल्लाह के आदेश को। आप कह दें कि कदापि हमारे साथ न चल। इसी प्रकार, कहा है अल्लाह ने इससे पहले। फिर वह कहेंगे कि बल्कि तुम द्वेष (जलन) रखते हो, हम से। बल्कि, वे कम ही बात समझते हैं।
Surah Al-Fath, Verse 15
قُل لِّلۡمُخَلَّفِينَ مِنَ ٱلۡأَعۡرَابِ سَتُدۡعَوۡنَ إِلَىٰ قَوۡمٍ أُوْلِي بَأۡسٖ شَدِيدٖ تُقَٰتِلُونَهُمۡ أَوۡ يُسۡلِمُونَۖ فَإِن تُطِيعُواْ يُؤۡتِكُمُ ٱللَّهُ أَجۡرًا حَسَنٗاۖ وَإِن تَتَوَلَّوۡاْ كَمَا تَوَلَّيۡتُم مِّن قَبۡلُ يُعَذِّبۡكُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا
आप कह दें, पीछे छोड़ दिये गये बद्दुओं से कि शीघ्र तुम बुलाये जाओगे, एक अति योध्दा जाति (से युध्द) की ओर।[1] जिनसे तुम युध्द करोगे अथवा वह इस्लाम ले आयें। तो यदि तुम आज्ञा का पालन करोगे, तो प्रदान करेगा अल्लाह तुम्हें उत्तम बदला तथा यदि तुम विमुख हो गये, जैसे इससे पूर्व (मक्का जाने से) विमुख हो गये, तो तुम्हें यातना देगा दुःखदायी यातना।
Surah Al-Fath, Verse 16
لَّيۡسَ عَلَى ٱلۡأَعۡمَىٰ حَرَجٞ وَلَا عَلَى ٱلۡأَعۡرَجِ حَرَجٞ وَلَا عَلَى ٱلۡمَرِيضِ حَرَجٞۗ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ يُدۡخِلۡهُ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَمَن يَتَوَلَّ يُعَذِّبۡهُ عَذَابًا أَلِيمٗا
नहीं है अंधे पर कोई दोष,[1] न लंगड़े पर कोई दोष और न रोगी पर कोई दोष तथा जो आज्ञा का पालन करेगा अल्लाह एवं उसके रसूल की, तो वह प्रवेश देगा ऐसे स्वर्गों में, बहती हैं जिनमें नहरें तथा जो मुख फेरेगा, तो वह यातना देगा उसे, दुःखदायी यातना।
Surah Al-Fath, Verse 17
۞لَّقَدۡ رَضِيَ ٱللَّهُ عَنِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ إِذۡ يُبَايِعُونَكَ تَحۡتَ ٱلشَّجَرَةِ فَعَلِمَ مَا فِي قُلُوبِهِمۡ فَأَنزَلَ ٱلسَّكِينَةَ عَلَيۡهِمۡ وَأَثَٰبَهُمۡ فَتۡحٗا قَرِيبٗا
अल्लाह प्रसन्न हो गया ईमान वालों से, जब वे आप (नबी) से बैअत कर रहे थे, वृक्ष के नीचे। उसने जान लिया जो कुछ उनके दिलों में था, इसलिए उतार दी शान्ति उनपर तथा उन्हें बदले में दी समीप की विजय।
Surah Al-Fath, Verse 18
وَمَغَانِمَ كَثِيرَةٗ يَأۡخُذُونَهَاۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا
तथा बहुत-से ग़नीमत के धन (परिहार), जो वह प्राप्त करेंगे और अल्लाह प्रभुत्वशाली, गुणी है।
Surah Al-Fath, Verse 19
وَعَدَكُمُ ٱللَّهُ مَغَانِمَ كَثِيرَةٗ تَأۡخُذُونَهَا فَعَجَّلَ لَكُمۡ هَٰذِهِۦ وَكَفَّ أَيۡدِيَ ٱلنَّاسِ عَنكُمۡ وَلِتَكُونَ ءَايَةٗ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ وَيَهۡدِيَكُمۡ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا
अल्लाह ने वचन दिया है तुम्हें बहुत-से परिहार (ग़नीमतों) का, जिसे तुम प्राप्त करोगे। तो शीघ्र प्रदान कर दी तुम्हें ये (ख़ैबर की ग़नीमत) तथा रोक दिया लोगों के हाथों को तुमसे, ताकि[1] वह एक निशानी बन जाये ईमान वालों के लिए और तुम्हें सीधी राह चलाये।
Surah Al-Fath, Verse 20
وَأُخۡرَىٰ لَمۡ تَقۡدِرُواْ عَلَيۡهَا قَدۡ أَحَاطَ ٱللَّهُ بِهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٗا
और दूसरी ग़नीमतें भी, जो तुम प्राप्त नहीं कर सके हो, अल्लाह ने उन्हें नियंत्रण में कर रखा है तथा अल्लाह जो कुछ चाहे, कर सकता है।
Surah Al-Fath, Verse 21
وَلَوۡ قَٰتَلَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوَلَّوُاْ ٱلۡأَدۡبَٰرَ ثُمَّ لَا يَجِدُونَ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرٗا
और यदि तुमसे युध्द करते जो काफ़िर[1] हैं, तो अवश्य पीछा दिखा देते, फिर नहीं पाते कोई संरक्षक और न कोई सहायक।
Surah Al-Fath, Verse 22
سُنَّةَ ٱللَّهِ ٱلَّتِي قَدۡ خَلَتۡ مِن قَبۡلُۖ وَلَن تَجِدَ لِسُنَّةِ ٱللَّهِ تَبۡدِيلٗا
ये अल्लाह का नियम है उनमें, जो चला आ रहा है पहले से और तुम कदापि नहीं पाओगे अल्लाह के नियम में परिवर्तन।
Surah Al-Fath, Verse 23
وَهُوَ ٱلَّذِي كَفَّ أَيۡدِيَهُمۡ عَنكُمۡ وَأَيۡدِيَكُمۡ عَنۡهُم بِبَطۡنِ مَكَّةَ مِنۢ بَعۡدِ أَنۡ أَظۡفَرَكُمۡ عَلَيۡهِمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرًا
तथा वही है, जिसने रोक दिया उनके हाथों को तुमसे तथा तुम्हारे हाथों को उनसे मक्का की वादी[1] में, इसके पश्चात् कि तुम्हें विजय प्रदान कर दी, उनपर तथा अल्लाह देख रहा था, जो कुछ तुम कर रहे थे।
Surah Al-Fath, Verse 24
هُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّوكُمۡ عَنِ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ وَٱلۡهَدۡيَ مَعۡكُوفًا أَن يَبۡلُغَ مَحِلَّهُۥۚ وَلَوۡلَا رِجَالٞ مُّؤۡمِنُونَ وَنِسَآءٞ مُّؤۡمِنَٰتٞ لَّمۡ تَعۡلَمُوهُمۡ أَن تَطَـُٔوهُمۡ فَتُصِيبَكُم مِّنۡهُم مَّعَرَّةُۢ بِغَيۡرِ عِلۡمٖۖ لِّيُدۡخِلَ ٱللَّهُ فِي رَحۡمَتِهِۦ مَن يَشَآءُۚ لَوۡ تَزَيَّلُواْ لَعَذَّبۡنَا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِنۡهُمۡ عَذَابًا أَلِيمًا
ये वे लोग हैं, जिन्होंने कुफ़्र किया और रोक दिया तुम्हें मस्जिदे ह़राम से तथा बलि के पशु को, उनके स्थान तक पुहुँचने से रोक दिया और यदि ये भय न होता कि तुम कुछ मुसलमान पुरुषों तथा कुछ मुसलमान स्त्रियों को, जिन्हें तुम नहीं जानते थे, रौंद दोगे जिससे तुमपर दोष आ जायेगा[1] (तो युध्द से न रोका जाता)। ताकि प्रवेश कराये अल्लाह, जिसे चाहे, अपनी दया में। यदि वे (मुसलमान) अलग होते, तो हम अवश्य यातना देते उन्हें, जो काफ़िर हो गये उनमें से, दुःखदायी यातना।
Surah Al-Fath, Verse 25
إِذۡ جَعَلَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلۡحَمِيَّةَ حَمِيَّةَ ٱلۡجَٰهِلِيَّةِ فَأَنزَلَ ٱللَّهُ سَكِينَتَهُۥ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَعَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ وَأَلۡزَمَهُمۡ كَلِمَةَ ٱلتَّقۡوَىٰ وَكَانُوٓاْ أَحَقَّ بِهَا وَأَهۡلَهَاۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا
जब काफ़िरों ने अपने दिलों में पक्षपात को स्थान दे दिया, जो वास्तव में जाहिलाना पक्षपात है, तो अल्लाह ने अपने रसूल पर तथा ईमान वालों पर शान्ति उतार दी तथा उन्हें पाबन्द रखा सदाचार की बात का तथा वे[1] उसके अधिक योग्य और पात्र थे तथा अल्लाह प्रत्येक वस्तु को भली-भाँति जानने वाला है।
Surah Al-Fath, Verse 26
لَّقَدۡ صَدَقَ ٱللَّهُ رَسُولَهُ ٱلرُّءۡيَا بِٱلۡحَقِّۖ لَتَدۡخُلُنَّ ٱلۡمَسۡجِدَ ٱلۡحَرَامَ إِن شَآءَ ٱللَّهُ ءَامِنِينَ مُحَلِّقِينَ رُءُوسَكُمۡ وَمُقَصِّرِينَ لَا تَخَافُونَۖ فَعَلِمَ مَا لَمۡ تَعۡلَمُواْ فَجَعَلَ مِن دُونِ ذَٰلِكَ فَتۡحٗا قَرِيبًا
निश्चय अल्लाह ने अपने रसूल को सच्चा सपना दिखाया, सच के अनुसार। तुम अवश्य प्रवेश करोगे मस्जिदे ह़राम में, यदि अल्लाह ने चाहा, निर्भय होकर, अपने सिर मुंडाते तथा बाल कतरवाते हुए, तुम्हें किसी प्रकार का भय नहीं होगा,[1] वह जानता है जिसे तुम नहीं जानते। इसिलए प्रदान कर दी तुम्हें इस (मस्जिदे ह़राम में प्रवेश) से पहले, एक समीप (जल्दी) की[2] विजय।
Surah Al-Fath, Verse 27
هُوَ ٱلَّذِيٓ أَرۡسَلَ رَسُولَهُۥ بِٱلۡهُدَىٰ وَدِينِ ٱلۡحَقِّ لِيُظۡهِرَهُۥ عَلَى ٱلدِّينِ كُلِّهِۦۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدٗا
वही है, जिसने भेजा अपने रसूल को मार्गदर्शन एवं सत्धर्म के साथ, ताकि उसे प्रभुत्व प्रदान कर दे प्रत्येक धर्म पर तथा प्रयाप्त है (इसपर) अल्लाह का गवाह होना।
Surah Al-Fath, Verse 28
مُّحَمَّدٞ رَّسُولُ ٱللَّهِۚ وَٱلَّذِينَ مَعَهُۥٓ أَشِدَّآءُ عَلَى ٱلۡكُفَّارِ رُحَمَآءُ بَيۡنَهُمۡۖ تَرَىٰهُمۡ رُكَّعٗا سُجَّدٗا يَبۡتَغُونَ فَضۡلٗا مِّنَ ٱللَّهِ وَرِضۡوَٰنٗاۖ سِيمَاهُمۡ فِي وُجُوهِهِم مِّنۡ أَثَرِ ٱلسُّجُودِۚ ذَٰلِكَ مَثَلُهُمۡ فِي ٱلتَّوۡرَىٰةِۚ وَمَثَلُهُمۡ فِي ٱلۡإِنجِيلِ كَزَرۡعٍ أَخۡرَجَ شَطۡـَٔهُۥ فَـَٔازَرَهُۥ فَٱسۡتَغۡلَظَ فَٱسۡتَوَىٰ عَلَىٰ سُوقِهِۦ يُعۡجِبُ ٱلزُّرَّاعَ لِيَغِيظَ بِهِمُ ٱلۡكُفَّارَۗ وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ مِنۡهُم مَّغۡفِرَةٗ وَأَجۡرًا عَظِيمَۢا
मुह़म्मद[1] अल्लाह के रसूल हैं तथा जो लोग आपके साथ हैं, वे काफ़िरों के लिए कड़े और आपस में दयालु हैं। तुम देखोगे उन्हें, रुकूअ-सज्दा करते हुए, वे खोज कर रहे होंगे अल्लाह की दया तथा प्रसन्नता की। उनके लक्षण, उनके चेहरों पर सज्दों के चिन्ह होंगे। ये उनकी विशेषता, तौरात में है तथा उनके गुण, इंजील में उस खेती के समान बताये गये हैं, जिसने निकाला अपना अंकुर, फिर उसे बल दिया, फिर वह कड़ा हो गया, फिर वह (खेती) खड़ी हो गयी अपने तने पर। प्रसन्न करने लगी किसानों को, ताकि काफ़िर उनसे जलें। वचन दे रखा है अल्लाह ने उन लोगों को, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, उनमें से क्षमा तथा बड़े प्रतिफल का।
Surah Al-Fath, Verse 29