Surah Muhammad - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ أَضَلَّ أَعۡمَٰلَهُمۡ
जिन लोगों ने कुफ़्र (अविश्वास) किया तथा अल्लाह की राह से रोका, (अल्लाह ने) व्यर्थ (निष्फल) कर दिया उनके कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 1
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ وَءَامَنُواْ بِمَا نُزِّلَ عَلَىٰ مُحَمَّدٖ وَهُوَ ٱلۡحَقُّ مِن رَّبِّهِمۡ كَفَّرَ عَنۡهُمۡ سَيِّـَٔاتِهِمۡ وَأَصۡلَحَ بَالَهُمۡ
तथा जो ईमान लाये और सदाचार किये तथा उस (क़ुर्आन) पर ईमान लाये, जो उतारा गया है मुह़म्मद पर और (दरअसल) वह सच है उनके पालनहार की ओर से, तो दूर कर दिया उनसे, उनके पापों को तथा सुधार दिया उनकी दशा को।
Surah Muhammad, Verse 2
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱتَّبَعُواْ ٱلۡبَٰطِلَ وَأَنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱتَّبَعُواْ ٱلۡحَقَّ مِن رَّبِّهِمۡۚ كَذَٰلِكَ يَضۡرِبُ ٱللَّهُ لِلنَّاسِ أَمۡثَٰلَهُمۡ
ये इस कारण कि उन्होंने कुफ़्र किया और चले असत्य पर तथा जो ईमान लाये, वे चले सत्य पर अपने पालनहार की ओर से (आये हुए), इसी प्रकार, अल्लाह बता देता है लोगों को, उनकी सही दशायें।
Surah Muhammad, Verse 3
فَإِذَا لَقِيتُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَضَرۡبَ ٱلرِّقَابِ حَتَّىٰٓ إِذَآ أَثۡخَنتُمُوهُمۡ فَشُدُّواْ ٱلۡوَثَاقَ فَإِمَّا مَنَّۢا بَعۡدُ وَإِمَّا فِدَآءً حَتَّىٰ تَضَعَ ٱلۡحَرۡبُ أَوۡزَارَهَاۚ ذَٰلِكَۖ وَلَوۡ يَشَآءُ ٱللَّهُ لَٱنتَصَرَ مِنۡهُمۡ وَلَٰكِن لِّيَبۡلُوَاْ بَعۡضَكُم بِبَعۡضٖۗ وَٱلَّذِينَ قُتِلُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَلَن يُضِلَّ أَعۡمَٰلَهُمۡ
तो जब (युध्द में) भिड़ जाओ काफ़िरों से, तो गर्दन उड़ाओ, यहाँ तक कि जब कुचल दो उन्हें, तो उन्हें दृढ़ता से बाँधो। फिर उसके बाद या तो उपकार करके छोड़ दो या अर्थदण्ड लेकर। यहाँ तक कि युध्द अपने हथियार रख दे।[1] ये आदेश है और यदि अल्लाह चाहता, तो स्वयं उनसे बदला ले लेता। किन्तु, (ये आदेश इसलिए दिया) ताकि तुम्हारी एक-दूसरे द्वारा परीक्षा ले और जो मार दिये गये अल्लाह की राह में, तो वह कदापि व्यर्थ नहीं करेगा उनके कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 4
سَيَهۡدِيهِمۡ وَيُصۡلِحُ بَالَهُمۡ
वह उन्हें मार्गदर्शन देगा तथा सुधार देगा उनकी दशा।
Surah Muhammad, Verse 5
وَيُدۡخِلُهُمُ ٱلۡجَنَّةَ عَرَّفَهَا لَهُمۡ
और प्रवेश करायेगा उन्हें स्वर्ग में, जिसकी पहचान दे चुका है उन्हें।
Surah Muhammad, Verse 6
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِن تَنصُرُواْ ٱللَّهَ يَنصُرۡكُمۡ وَيُثَبِّتۡ أَقۡدَامَكُمۡ
हे ईमान वालो! यदि तुम सहायता करोगे अल्लाह (के धर्म) की, तो वह सहायता करेगा तुम्हारी तथा दृढ़ (स्थिर) कर देगा तुम्हारे पैरों को।
Surah Muhammad, Verse 7
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ فَتَعۡسٗا لَّهُمۡ وَأَضَلَّ أَعۡمَٰلَهُمۡ
और जो काफ़िर हो गये, तो विनाश है उन्हीं के लिए और उसने व्यर्थ कर दिया उनके कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 8
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ كَرِهُواْ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ فَأَحۡبَطَ أَعۡمَٰلَهُمۡ
ये इसलिए कि उन्होंने बुरा माना उसे, जो अल्लाह ने उतारा और उसने उनके कर्म व्यर्थ कर[1] दिये।
Surah Muhammad, Verse 9
۞أَفَلَمۡ يَسِيرُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَيَنظُرُواْ كَيۡفَ كَانَ عَٰقِبَةُ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۖ دَمَّرَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡۖ وَلِلۡكَٰفِرِينَ أَمۡثَٰلُهَا
तो क्या वह चले-फिरे नहीं धरती में कि देखते उन लोगों का परिणाम, जो इनसे पहले गुजरे? विनाश कर दिया अल्लाह ने उनका तथा काफ़िरों के लिए इसी के समान (यातनायें) हैं।
Surah Muhammad, Verse 10
ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ مَوۡلَى ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَأَنَّ ٱلۡكَٰفِرِينَ لَا مَوۡلَىٰ لَهُمۡ
ये इसलिए कि अल्लाह संरक्षक (सहायक) है उनका, जो ईमान लाये और काफ़िरों का कोई संरक्षक (सहायक)[1] नहीं।
Surah Muhammad, Verse 11
إِنَّ ٱللَّهَ يُدۡخِلُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يَتَمَتَّعُونَ وَيَأۡكُلُونَ كَمَا تَأۡكُلُ ٱلۡأَنۡعَٰمُ وَٱلنَّارُ مَثۡوٗى لَّهُمۡ
निःसंदेह अल्लाह प्रवेश देगा उन्हें, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये, ऐसे स्वर्गों में, जिनमें नहरें बहती होंगी तथा जो काफ़िर हो गये, वे आनन्द लेते तथा खाते हैं, जैसे[1] पशु खाते हैं और अग्नि उनका आवास (स्थान) है।
Surah Muhammad, Verse 12
وَكَأَيِّن مِّن قَرۡيَةٍ هِيَ أَشَدُّ قُوَّةٗ مِّن قَرۡيَتِكَ ٱلَّتِيٓ أَخۡرَجَتۡكَ أَهۡلَكۡنَٰهُمۡ فَلَا نَاصِرَ لَهُمۡ
तथा बहुत-सी बस्तियों को, जो अधिक शक्तिशाली थीं आपकी उस बस्ती से, जिसने आपको निकाल दिया, हमने ध्वस्त कर दिया, तो कोई सहायक न हुआ उनका।
Surah Muhammad, Verse 13
أَفَمَن كَانَ عَلَىٰ بَيِّنَةٖ مِّن رَّبِّهِۦ كَمَن زُيِّنَ لَهُۥ سُوٓءُ عَمَلِهِۦ وَٱتَّبَعُوٓاْ أَهۡوَآءَهُم
तो क्या, जो अपने पालनहार के खुले प्रमाण पर हो, वह उसके समान हो सकता है, शोभनीय बना दिया गया हो, जिसके लिए उसका दुष्कर्म तथा चलता हो अपनी मनमानी पर
Surah Muhammad, Verse 14
مَّثَلُ ٱلۡجَنَّةِ ٱلَّتِي وُعِدَ ٱلۡمُتَّقُونَۖ فِيهَآ أَنۡهَٰرٞ مِّن مَّآءٍ غَيۡرِ ءَاسِنٖ وَأَنۡهَٰرٞ مِّن لَّبَنٖ لَّمۡ يَتَغَيَّرۡ طَعۡمُهُۥ وَأَنۡهَٰرٞ مِّنۡ خَمۡرٖ لَّذَّةٖ لِّلشَّـٰرِبِينَ وَأَنۡهَٰرٞ مِّنۡ عَسَلٖ مُّصَفّٗىۖ وَلَهُمۡ فِيهَا مِن كُلِّ ٱلثَّمَرَٰتِ وَمَغۡفِرَةٞ مِّن رَّبِّهِمۡۖ كَمَنۡ هُوَ خَٰلِدٞ فِي ٱلنَّارِ وَسُقُواْ مَآءً حَمِيمٗا فَقَطَّعَ أَمۡعَآءَهُمۡ
उस स्वर्ग की विशेषता, जिसका वचन दिया गया है आज्ञाकारियों को, उसमें नहरें हैं निर्मल जल की तथा नहरें हैं दूध की, नहीं बदलेगा जिसका स्वाद तथा नहरें हैं मदिरा की, पीने वालों के स्वाद के लिए तथा नहरें हैं मधू की स्वच्छ तथा उन्हीं के लिए उनमें प्रत्येक प्रकार के फल हैं तथा उनके पालनहार की ओर से क्षमा। (क्या ये) उसके समान होंगे, जो सदावासी होंगे नरक में तथा पिलाये जायेंग खौलता जल, जो खण्ड-खण्ड कर देगा उनकी आँतों को
Surah Muhammad, Verse 15
وَمِنۡهُم مَّن يَسۡتَمِعُ إِلَيۡكَ حَتَّىٰٓ إِذَا خَرَجُواْ مِنۡ عِندِكَ قَالُواْ لِلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ مَاذَا قَالَ ءَانِفًاۚ أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَٱتَّبَعُوٓاْ أَهۡوَآءَهُمۡ
तथा उनमें से कुछ वो हैं, जो कान धरते हैं आपकी ओर यहाँ तक कि जब निकलते हैं आपके पास से, तो कहते हैं उनसे, जिन्हें ज्ञान दिया गया है कि अभी क्या[1] कहा है? यही वो हैं कि मुहर लगा दी है अल्लाह ने उनके दिलों पर और वही चल रहे हैं अपनी मनोकांक्षाओं पर।
Surah Muhammad, Verse 16
وَٱلَّذِينَ ٱهۡتَدَوۡاْ زَادَهُمۡ هُدٗى وَءَاتَىٰهُمۡ تَقۡوَىٰهُمۡ
और जो सीधी राह पर हैं, अल्लाह ने अधिक कर दिया है उन्हें, मार्गदर्शन में और प्रदान किया है उन्हें, उनका सदाचार।
Surah Muhammad, Verse 17
فَهَلۡ يَنظُرُونَ إِلَّا ٱلسَّاعَةَ أَن تَأۡتِيَهُم بَغۡتَةٗۖ فَقَدۡ جَآءَ أَشۡرَاطُهَاۚ فَأَنَّىٰ لَهُمۡ إِذَا جَآءَتۡهُمۡ ذِكۡرَىٰهُمۡ
तो क्या वे प्रतीक्षा कर रहे हैं प्रलय ही की कि आ जाये उनके पास सहसा? तो आ चुके हैं उसके लक्षण।[1] फिर कहाँ होगा उनके शिक्षा लेने का समय, जब वह (क़्यामत) आ जायेगी उनके पास
Surah Muhammad, Verse 18
فَٱعۡلَمۡ أَنَّهُۥ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا ٱللَّهُ وَٱسۡتَغۡفِرۡ لِذَنۢبِكَ وَلِلۡمُؤۡمِنِينَ وَٱلۡمُؤۡمِنَٰتِۗ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ مُتَقَلَّبَكُمۡ وَمَثۡوَىٰكُمۡ
तो (हे नबी!) आप विश्वास रखिये कि नहीं है कोई वंदनीय अल्लाह के सिवा तथा क्षमा[1] माँगिये अपने पाप के लिए तथा ईमान वाले पुरुषों और स्त्रियों के लिए और अल्लाह जानता है तुम्हारे फिरने तथा रहने के स्थान को।
Surah Muhammad, Verse 19
وَيَقُولُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَوۡلَا نُزِّلَتۡ سُورَةٞۖ فَإِذَآ أُنزِلَتۡ سُورَةٞ مُّحۡكَمَةٞ وَذُكِرَ فِيهَا ٱلۡقِتَالُ رَأَيۡتَ ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٞ يَنظُرُونَ إِلَيۡكَ نَظَرَ ٱلۡمَغۡشِيِّ عَلَيۡهِ مِنَ ٱلۡمَوۡتِۖ فَأَوۡلَىٰ لَهُمۡ
तथा जो ईमान लाये, उन्होंने कहा कि क्यों नहीं उतारी जाती कोई सूरह (जिसमें युध्द का आदेश हो?) तो जब एक दृढ़ सूरह उतार दी गयी तथा उसमें वर्णन कर दिया गया युध्द का, तो आपने उन्हें देख लिया, जिनके दिलों में रोग (द्विधा) है कि वे आपकी ओर उसके समान देख रहे हैं, जो मौत के समय अचेत पड़ा हुआ हो। तो उनके लिए उत्तम है।
Surah Muhammad, Verse 20
طَاعَةٞ وَقَوۡلٞ مَّعۡرُوفٞۚ فَإِذَا عَزَمَ ٱلۡأَمۡرُ فَلَوۡ صَدَقُواْ ٱللَّهَ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡ
आज्ञा पालन तथा उचित बात बोलना। तो जब (युध्द का) आदेश निर्धारित हो गया, तो यदि वे अल्लाह के साथ सच्चे रहें, तो उनके लिए उत्तम है।
Surah Muhammad, Verse 21
فَهَلۡ عَسَيۡتُمۡ إِن تَوَلَّيۡتُمۡ أَن تُفۡسِدُواْ فِي ٱلۡأَرۡضِ وَتُقَطِّعُوٓاْ أَرۡحَامَكُمۡ
फिर यदि तुम विमुख[1] हो गये, तो दूर नहीं कि तुम उपद्रव करोगे धरती में तथा तोड़ेगे अपने रिश्तों (संबंधों) को।
Surah Muhammad, Verse 22
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُ فَأَصَمَّهُمۡ وَأَعۡمَىٰٓ أَبۡصَٰرَهُمۡ
यही हैं, जिन्हें अपनी दया से दूर कर दिया है अल्लाह ने और उन्हें बहरा तथा उनकी आँखें अंधी कर दी हैं।
Surah Muhammad, Verse 23
أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ ٱلۡقُرۡءَانَ أَمۡ عَلَىٰ قُلُوبٍ أَقۡفَالُهَآ
तो क्या लोग सोच-विचार नहीं करते या उनके दिलों पर ताले लगे हुए हैं
Surah Muhammad, Verse 24
إِنَّ ٱلَّذِينَ ٱرۡتَدُّواْ عَلَىٰٓ أَدۡبَٰرِهِم مِّنۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ ٱلۡهُدَى ٱلشَّيۡطَٰنُ سَوَّلَ لَهُمۡ وَأَمۡلَىٰ لَهُمۡ
वास्तव में, जो फिर गये पीछे इसके पश्चात् कि उजागर हो गया उनके लिए मार्गदर्शन, तो शौतान ने सुन्दर बना दिया (पापों को) उनके लिए तथा उन्हें बड़ी आशा दिलायी है।
Surah Muhammad, Verse 25
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمۡ قَالُواْ لِلَّذِينَ كَرِهُواْ مَا نَزَّلَ ٱللَّهُ سَنُطِيعُكُمۡ فِي بَعۡضِ ٱلۡأَمۡرِۖ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ إِسۡرَارَهُمۡ
ये इस कारण हुआ कि उन्होंने कहा उनसे, जिन्होंने बुरा माना उस (क़ुर्आन) को, जिसे उतारा अल्लाह ने कि हम तुम्हारी बात मानेंगे कुछ कार्य में, जबकि अल्लाह जानता है उनकी गुप्त बातों को।
Surah Muhammad, Verse 26
فَكَيۡفَ إِذَا تَوَفَّتۡهُمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَضۡرِبُونَ وُجُوهَهُمۡ وَأَدۡبَٰرَهُمۡ
तो कैसी दुर्गत होगी उनकी जब प्राण निकाल रहे होंगे फ़रिश्ते मारते हुए उनके मुखों तथा उनकी पीठों पर।
Surah Muhammad, Verse 27
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمُ ٱتَّبَعُواْ مَآ أَسۡخَطَ ٱللَّهَ وَكَرِهُواْ رِضۡوَٰنَهُۥ فَأَحۡبَطَ أَعۡمَٰلَهُمۡ
ये इसलिए कि वे चले उस राह पर, जिसने अप्रसन्न कर दिया अल्लाह को तथा उन्होंने बुरा माना उसकी प्रसन्नता को, तो उसने व्यर्थ कर दिया उनके कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 28
أَمۡ حَسِبَ ٱلَّذِينَ فِي قُلُوبِهِم مَّرَضٌ أَن لَّن يُخۡرِجَ ٱللَّهُ أَضۡغَٰنَهُمۡ
क्या समझ रखा है उन्होंने, जिनके दिलों में रोग है कि नहीं खोलेगा अल्लाह उनके द्वेषों को
Surah Muhammad, Verse 29
وَلَوۡ نَشَآءُ لَأَرَيۡنَٰكَهُمۡ فَلَعَرَفۡتَهُم بِسِيمَٰهُمۡۚ وَلَتَعۡرِفَنَّهُمۡ فِي لَحۡنِ ٱلۡقَوۡلِۚ وَٱللَّهُ يَعۡلَمُ أَعۡمَٰلَكُمۡ
और (हे नबी!) यदि हम चाहें, तो दिखा दें आपको उन्हें, तो पहचान लेंगे आप उन्हें, उनके मुख से और आप अवश्य पहचान लेंगे उन्हें[1] (उनकी) बात के ढंग से तथा अल्लाह जानता है उनके कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 30
وَلَنَبۡلُوَنَّكُمۡ حَتَّىٰ نَعۡلَمَ ٱلۡمُجَٰهِدِينَ مِنكُمۡ وَٱلصَّـٰبِرِينَ وَنَبۡلُوَاْ أَخۡبَارَكُمۡ
और हम अवश्य परीक्षा लेंगे तुम्हारी, ताकि जाँच लें, तुममें से मुजाहिदों तथा धैर्यवानों को तथा जाँच लें तुम्हारी दशाओं को।
Surah Muhammad, Verse 31
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ وَشَآقُّواْ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ ٱلۡهُدَىٰ لَن يَضُرُّواْ ٱللَّهَ شَيۡـٔٗا وَسَيُحۡبِطُ أَعۡمَٰلَهُمۡ
जिन लोगों ने कुफ़्र किया और रोका अल्लाह की राह (धर्म) से तथा विरोध किया रसूल का, इसके पश्चात् कि उजागर हो गया उनके लिए मार्गदर्शन, वे कदापि हानि नहीं पहुँचा सकेंगे अल्लाह को कुछ तथा वह व्यर्थ कर देगा उनके कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 32
۞يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُواْ ٱلرَّسُولَ وَلَا تُبۡطِلُوٓاْ أَعۡمَٰلَكُمۡ
हे लोगो, जो ईमान लाये हो! आज्ञा मानो अल्लाह की तथा आज्ञा मानो[1] रसूल की तथा व्यर्थ न करो अपने कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 33
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ ثُمَّ مَاتُواْ وَهُمۡ كُفَّارٞ فَلَن يَغۡفِرَ ٱللَّهُ لَهُمۡ
जिन लोगों ने कुफ़्र किया तथा रोका अल्लाह की राह से, फिर वे मर गये कुफ़्र की स्थिति में, तो कदापि क्षमा नहीं करेगा अल्लाह उनको।
Surah Muhammad, Verse 34
فَلَا تَهِنُواْ وَتَدۡعُوٓاْ إِلَى ٱلسَّلۡمِ وَأَنتُمُ ٱلۡأَعۡلَوۡنَ وَٱللَّهُ مَعَكُمۡ وَلَن يَتِرَكُمۡ أَعۡمَٰلَكُمۡ
अतः, तुम निर्बल न बनो और न (शत्रु को) संधि की ओर[1] पुकारो तथा तुम ही उच्च रहने वाले हो और अल्लाह तुम्हारे साथ है और वह कदापि व्यर्थ नहीं करेगा तुम्हारे कर्मों को।
Surah Muhammad, Verse 35
إِنَّمَا ٱلۡحَيَوٰةُ ٱلدُّنۡيَا لَعِبٞ وَلَهۡوٞۚ وَإِن تُؤۡمِنُواْ وَتَتَّقُواْ يُؤۡتِكُمۡ أُجُورَكُمۡ وَلَا يَسۡـَٔلۡكُمۡ أَمۡوَٰلَكُمۡ
ये सांसारिक जीवन तो एक खेल-कूद है और यदि तुम ईमान लाओ और अल्लाह से डरते रहो, तो वह प्रदान करेगा तुम्हें तुम्हारा प्रतिफल और नहीं माँग करेगा तुमसे तुम्हारे धनों की।
Surah Muhammad, Verse 36
إِن يَسۡـَٔلۡكُمُوهَا فَيُحۡفِكُمۡ تَبۡخَلُواْ وَيُخۡرِجۡ أَضۡغَٰنَكُمۡ
और यदि वह तुमसे माँगे और तुम्हारा पूरा धन माँगे, तो तुम कंजूसी करने लगोगे और वह खोल[1] देगा तुम्हारे द्वेषों को।
Surah Muhammad, Verse 37
هَـٰٓأَنتُمۡ هَـٰٓؤُلَآءِ تُدۡعَوۡنَ لِتُنفِقُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَمِنكُم مَّن يَبۡخَلُۖ وَمَن يَبۡخَلۡ فَإِنَّمَا يَبۡخَلُ عَن نَّفۡسِهِۦۚ وَٱللَّهُ ٱلۡغَنِيُّ وَأَنتُمُ ٱلۡفُقَرَآءُۚ وَإِن تَتَوَلَّوۡاْ يَسۡتَبۡدِلۡ قَوۡمًا غَيۡرَكُمۡ ثُمَّ لَا يَكُونُوٓاْ أَمۡثَٰلَكُم
सुनो! तुम लोग हो, जिन्हें बुलाया जा रहा है, ताकि दान करो अल्लाह की राह में, तो तुममें से कुछ कंजूसी करने लगते हैं और जो कंजूसी करता[1] है, तो वह अपने आप ही से कंजूसी करता है और अल्लाह धनी है तथा तुम निर्धन हो और यदि तुम मूँह फेरोगे, तो वह तुम्हारे स्थान पर दूसरों को ले आयेगा फिर वे नहीं होंगे तुम्हारे जैसे।
Surah Muhammad, Verse 38