Surah Al-Mujadila - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
قَدۡ سَمِعَ ٱللَّهُ قَوۡلَ ٱلَّتِي تُجَٰدِلُكَ فِي زَوۡجِهَا وَتَشۡتَكِيٓ إِلَى ٱللَّهِ وَٱللَّهُ يَسۡمَعُ تَحَاوُرَكُمَآۚ إِنَّ ٱللَّهَ سَمِيعُۢ بَصِيرٌ
(हे नबी!) अल्लाह ने सुन ली है उस स्त्री की बात, जो आपसे झगड़ रही थी अपने पति के विषय में तथा गुहार रही थी अल्लाह को और अल्लाह सुन रहा था तुम दोनों का वार्तालाप, वास्तव में, वह सब कुछ सुनने-देखने वाला है।
Surah Al-Mujadila, Verse 1
ٱلَّذِينَ يُظَٰهِرُونَ مِنكُم مِّن نِّسَآئِهِم مَّا هُنَّ أُمَّهَٰتِهِمۡۖ إِنۡ أُمَّهَٰتُهُمۡ إِلَّا ٱلَّـٰٓـِٔي وَلَدۡنَهُمۡۚ وَإِنَّهُمۡ لَيَقُولُونَ مُنكَرٗا مِّنَ ٱلۡقَوۡلِ وَزُورٗاۚ وَإِنَّ ٱللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورٞ
जो ज़िहार[1] करते हैं तुममें से अपनी पत्नियों से, तो वे उनकी माँ नहीं हैं। उनकी माँ तो वे हैं, जिन्होंने उनहें जन्म दिया है और वह बोलते हैं अप्रिय तथा झूठी बात और वास्तव में अल्लाह माफ़ करने वाला, क्षमाशील है।
Surah Al-Mujadila, Verse 2
وَٱلَّذِينَ يُظَٰهِرُونَ مِن نِّسَآئِهِمۡ ثُمَّ يَعُودُونَ لِمَا قَالُواْ فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مِّن قَبۡلِ أَن يَتَمَآسَّاۚ ذَٰلِكُمۡ تُوعَظُونَ بِهِۦۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
और जो ज़िहार कर लेते हैं अपनी पत्नियों से, फिर वापस लेना चाहते हैं अपनी बात, तो (उसका दण्ड) एक दास मुक्त करना है, इससे पूर्व कि एक-दूसरे को हाथ लगायें।[1] इसीकी तुम्हें शिक्षा दी जा रही है और अल्लाह उससे जो तुम करते हो, भली-भाँति सूचित है।
Surah Al-Mujadila, Verse 3
فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ شَهۡرَيۡنِ مُتَتَابِعَيۡنِ مِن قَبۡلِ أَن يَتَمَآسَّاۖ فَمَن لَّمۡ يَسۡتَطِعۡ فَإِطۡعَامُ سِتِّينَ مِسۡكِينٗاۚ ذَٰلِكَ لِتُؤۡمِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦۚ وَتِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِۗ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ
फिर जो (दास) न पाये, तो दो महीने निरन्तर रोज़ा (व्रत) रखना है, इससे पूर्व की एक-दूसरे को हाथ लगाये। फिर जो सकत न रखे, तो साठ निर्धनों को भोजन कराना है। ये आदेश इसलिए है, ताकि तुम ईमान लाओ अल्लाह तथा उसके रसूल पर और ये अल्लाह की सीमायें हैं तथा काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना है।
Surah Al-Mujadila, Verse 4
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُحَآدُّونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ كُبِتُواْ كَمَا كُبِتَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِهِمۡۚ وَقَدۡ أَنزَلۡنَآ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖۚ وَلِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٞ مُّهِينٞ
वास्तव में, जो विरोध करते हैं अल्लाह तथा उसके रसूल का, वे अपमानित कर दिये जायेंगे, जैसे अपमानित कर दिये गये, जो इनसे पूर्व हुए और हमने उतार दी हैं खुली आयतें और काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना है।
Surah Al-Mujadila, Verse 5
يَوۡمَ يَبۡعَثُهُمُ ٱللَّهُ جَمِيعٗا فَيُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُوٓاْۚ أَحۡصَىٰهُ ٱللَّهُ وَنَسُوهُۚ وَٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدٌ
जिस दिन जीवित करेगा उन सब को अल्लाह, तो उन्हें सूचित कर देगा उनके कर्मों से। गिन रखा है उसे अल्लाह ने और वह भूल गये हैं उसे और अल्लह प्रत्येक वस्तु पर गवाह है।
Surah Al-Mujadila, Verse 6
أَلَمۡ تَرَ أَنَّ ٱللَّهَ يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۖ مَا يَكُونُ مِن نَّجۡوَىٰ ثَلَٰثَةٍ إِلَّا هُوَ رَابِعُهُمۡ وَلَا خَمۡسَةٍ إِلَّا هُوَ سَادِسُهُمۡ وَلَآ أَدۡنَىٰ مِن ذَٰلِكَ وَلَآ أَكۡثَرَ إِلَّا هُوَ مَعَهُمۡ أَيۡنَ مَا كَانُواْۖ ثُمَّ يُنَبِّئُهُم بِمَا عَمِلُواْ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٌ
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह जानता है, जो (भी) आकाशों तथा धरती में है? नहीं होती किसी तीन की काना-फूसी, परन्तु वह उनका चौथा होता है और न पाँच की, परन्तु वह उनका छठा होता है और न इससे कम की और न इससे अधिक की, परन्तु वह उनके साथ होता[1] है, वे जहाँ भी हों। फिर वह उन्हें सूचित कर देगा उनके कर्मों से प्रलय के दिन। वास्तव में, अल्लाह प्रत्येक वस्तु से भली-भाँति अवगत है।
Surah Al-Mujadila, Verse 7
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ نُهُواْ عَنِ ٱلنَّجۡوَىٰ ثُمَّ يَعُودُونَ لِمَا نُهُواْ عَنۡهُ وَيَتَنَٰجَوۡنَ بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَٰنِ وَمَعۡصِيَتِ ٱلرَّسُولِۖ وَإِذَا جَآءُوكَ حَيَّوۡكَ بِمَا لَمۡ يُحَيِّكَ بِهِ ٱللَّهُ وَيَقُولُونَ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ لَوۡلَا يُعَذِّبُنَا ٱللَّهُ بِمَا نَقُولُۚ حَسۡبُهُمۡ جَهَنَّمُ يَصۡلَوۡنَهَاۖ فَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
क्या आपने नहीं देखा उन्हें, जो रोके गये हैं काना-फूसी[1] से? फिर (भी) वही करते हैं जिससे रोके गये हैं तथा काना-फूसी करते हैं पाप और अत्याचार तथा रसूल की अवज्ञा की और वे जब आपके पास आते हैं, तो आपको ऐसे (शब्द से) सलाम करते हैं, जिससे आपपर सलाम नहीं भेजा अल्लाह ने तथा कहते हैं अपने मनों में: क्यों अल्लाह हमें यातना नहीं देता उसपर जो हम कहते[1] हैं? पर्याप्त है उन्हें नरक, जिसमें वे प्रवेश करेंगे, तो बुरा है उनका ठिकाना।
Surah Al-Mujadila, Verse 8
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا تَنَٰجَيۡتُمۡ فَلَا تَتَنَٰجَوۡاْ بِٱلۡإِثۡمِ وَٱلۡعُدۡوَٰنِ وَمَعۡصِيَتِ ٱلرَّسُولِ وَتَنَٰجَوۡاْ بِٱلۡبِرِّ وَٱلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِيٓ إِلَيۡهِ تُحۡشَرُونَ
हे लोगो जो ईमान लाये हो! जब तुम काना-फूसी करो, तो काना-फूसी न करो पाप तथा अत्याचार एवं रसूल की अवज्ञा की और काना फूसी करो पुण्य तथा सदाचार की और डरते रहो अल्लाह से, जिसकी ओर ही तुम एकत्र किये जोओगे।
Surah Al-Mujadila, Verse 9
إِنَّمَا ٱلنَّجۡوَىٰ مِنَ ٱلشَّيۡطَٰنِ لِيَحۡزُنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَلَيۡسَ بِضَآرِّهِمۡ شَيۡـًٔا إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
वास्तव में, काना-फूसी शैतानी काम हैं, ताकि वो उदासीन हों,[1] जो ईमान लाये। जबकि नहीं है वह हानिकर उन्हें कुछ, परन्तु अल्लाह की अनुमति से और अल्लाह ही पर चाहिये कि भरोसा करें ईमान वाले।
Surah Al-Mujadila, Verse 10
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا قِيلَ لَكُمۡ تَفَسَّحُواْ فِي ٱلۡمَجَٰلِسِ فَٱفۡسَحُواْ يَفۡسَحِ ٱللَّهُ لَكُمۡۖ وَإِذَا قِيلَ ٱنشُزُواْ فَٱنشُزُواْ يَرۡفَعِ ٱللَّهُ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مِنكُمۡ وَٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ دَرَجَٰتٖۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
हे ईमान वालो! जब तुमसे कहा जाये कि विस्तार कर दो अपनी सभाओं में, तो विस्तार[1] कर दो, विस्तार कर देगा अल्लाह तुम्हारे लिए तथा जब कहा जाये कि सुकड़ जाओ, तो सुकड़ जाओ। ऊँचा[2] कर देगा अल्लाह उन्हें, जो ईमान लाये हैं तुममें से तथा जिन्हें ज्ञान प्रदान किया गया है, कई श्रेणियाँ तथा अल्लाह उससे जो तुम करते हो, भली-भाँति अवगत है।
Surah Al-Mujadila, Verse 11
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا نَٰجَيۡتُمُ ٱلرَّسُولَ فَقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيۡ نَجۡوَىٰكُمۡ صَدَقَةٗۚ ذَٰلِكَ خَيۡرٞ لَّكُمۡ وَأَطۡهَرُۚ فَإِن لَّمۡ تَجِدُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
हे ईमान वालो! जब तुम अकेले बात करो रसूल से, तो बात करने से पहले कुछ दान करो।[1] ये तुम्हारे लिए उत्तम तथा अधिक पवित्र है। फिर यदि तुम (दान के लिए कुछ) न पाओ, तो अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah Al-Mujadila, Verse 12
ءَأَشۡفَقۡتُمۡ أَن تُقَدِّمُواْ بَيۡنَ يَدَيۡ نَجۡوَىٰكُمۡ صَدَقَٰتٖۚ فَإِذۡ لَمۡ تَفۡعَلُواْ وَتَابَ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمۡ فَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥۚ وَٱللَّهُ خَبِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ
क्या तुम (इस आदेश से) डर गये कि एकान्त में बात करने से पहले कुछ दान कर दो? फिर जब तुमने ऐसा नहीं किया, तो स्थापना करो नमाज़ की तथा ज़कात दो और आज्ञा पालन करो अल्लाह तथा उसके रसूल की और अल्लाह सूचित है उससे, जो कुछ तुम कर रहे हो।
Surah Al-Mujadila, Verse 13
۞أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ تَوَلَّوۡاْ قَوۡمًا غَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مَّا هُم مِّنكُمۡ وَلَا مِنۡهُمۡ وَيَحۡلِفُونَ عَلَى ٱلۡكَذِبِ وَهُمۡ يَعۡلَمُونَ
क्या आपने उन्हें देखा[1] जिन्होंने मित्र बना लिया उस समुदाय को, जिसपर क्रोधित हो गया अल्लाह? न वे तुम्हारे हैं और न उनके और वे शपथ लेते हैं झूठी बात पर, जान-बूझ कर।
Surah Al-Mujadila, Verse 14
أَعَدَّ ٱللَّهُ لَهُمۡ عَذَابٗا شَدِيدًاۖ إِنَّهُمۡ سَآءَ مَا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ
तैयार की है अल्लाह ने उनके लिए कड़ी यातना, वास्तव में, वह बुरा है, जो वे कर रहे हैं।
Surah Al-Mujadila, Verse 15
ٱتَّخَذُوٓاْ أَيۡمَٰنَهُمۡ جُنَّةٗ فَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ فَلَهُمۡ عَذَابٞ مُّهِينٞ
उन्होंने बना लिया अपनी शपथों को एक ढाल। फिर रोक दिया (लोगों को) अल्लाह की रोह से, तो उन्हीं के लिए अपमानकारी यातना है।
Surah Al-Mujadila, Verse 16
لَّن تُغۡنِيَ عَنۡهُمۡ أَمۡوَٰلُهُمۡ وَلَآ أَوۡلَٰدُهُم مِّنَ ٱللَّهِ شَيۡـًٔاۚ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِۖ هُمۡ فِيهَا خَٰلِدُونَ
कदापि नहीं काम आयेंगे उनके धन और न उनकी संतान अल्लाह के समक्ष कुछ। वही नारकी हैं, वे उसमें सदावासी होंगे।
Surah Al-Mujadila, Verse 17
يَوۡمَ يَبۡعَثُهُمُ ٱللَّهُ جَمِيعٗا فَيَحۡلِفُونَ لَهُۥ كَمَا يَحۡلِفُونَ لَكُمۡ وَيَحۡسَبُونَ أَنَّهُمۡ عَلَىٰ شَيۡءٍۚ أَلَآ إِنَّهُمۡ هُمُ ٱلۡكَٰذِبُونَ
जिस दिन खड़ा करेगा उन्हें अल्लाह, तो वे शपथ लेंगे अल्लाह के समक्ष, जैसे वे शपथ ले रहे हैं तुम्हारे समक्ष और वे समझ रहे हैं कि वे कुछ (तर्क)[1] पर हैं। सुन लो! वास्तव में वही झूठे हैं।
Surah Al-Mujadila, Verse 18
ٱسۡتَحۡوَذَ عَلَيۡهِمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ فَأَنسَىٰهُمۡ ذِكۡرَ ٱللَّهِۚ أُوْلَـٰٓئِكَ حِزۡبُ ٱلشَّيۡطَٰنِۚ أَلَآ إِنَّ حِزۡبَ ٱلشَّيۡطَٰنِ هُمُ ٱلۡخَٰسِرُونَ
छा[1] गया है उनपर शैतान और भुला दी है उन्हें अल्लाह की याद। यही शैतान की सेना है। सुन लो! शैतान की सेना ही क्षतिग्रस्त होने वाली है।
Surah Al-Mujadila, Verse 19
إِنَّ ٱلَّذِينَ يُحَآدُّونَ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥٓ أُوْلَـٰٓئِكَ فِي ٱلۡأَذَلِّينَ
वास्तव में, जो विरोध करते हैं अल्लाह तथा उसके रसूल का, वही अपमानितों में से हैं।
Surah Al-Mujadila, Verse 20
كَتَبَ ٱللَّهُ لَأَغۡلِبَنَّ أَنَا۠ وَرُسُلِيٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٞ
लिख रखा है अल्लाह ने कि अवश्य मैं प्रभावशाली (विजयी) रहूँगा[1] तथा मेरे रसूल। वास्तव में, अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभावशाली है।
Surah Al-Mujadila, Verse 21
لَّا تَجِدُ قَوۡمٗا يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ يُوَآدُّونَ مَنۡ حَآدَّ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَلَوۡ كَانُوٓاْ ءَابَآءَهُمۡ أَوۡ أَبۡنَآءَهُمۡ أَوۡ إِخۡوَٰنَهُمۡ أَوۡ عَشِيرَتَهُمۡۚ أُوْلَـٰٓئِكَ كَتَبَ فِي قُلُوبِهِمُ ٱلۡإِيمَٰنَ وَأَيَّدَهُم بِرُوحٖ مِّنۡهُۖ وَيُدۡخِلُهُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ رَضِيَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ وَرَضُواْ عَنۡهُۚ أُوْلَـٰٓئِكَ حِزۡبُ ٱللَّهِۚ أَلَآ إِنَّ حِزۡبَ ٱللَّهِ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ
आप नहीं पायेंगे उन्हें, जो ईमान रखते हों अल्लाह तथा अन्त-दिवस (प्रलय) पर कि वे मैत्री करते हों उनसे, जिन्होंने विरोध किया अल्लाह और उसके रसूल का, चाहे वे उनके पिता हों, उनके पुत्र, उनके भाई अथवा उनके परिजन[1] हों। वही हैं, लिख दिया है (अल्लाह ने) जिनके दिलों में ईमान और समर्थन दिया है जिन्हें अपनी ओर से रूह़ (आत्मा) द्वारा तथा प्रवेश देगा उन्हें ऐसे स्वर्गों में, बहती हैं जिनमें नहरें, वे सदावासी होंगे जिनमें। प्रसन्न हो गया अल्लाह उनसे तथा वे प्रसन्न हो गये उससे। वह अल्लाह का समूह है। सुन लो, अल्लाह का समूह ही सफल होने वाला है।
Surah Al-Mujadila, Verse 22