Surah At-Taghabun - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
يُسَبِّحُ لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۖ لَهُ ٱلۡمُلۡكُ وَلَهُ ٱلۡحَمۡدُۖ وَهُوَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٌ
अल्लाह की पवित्रता वर्णन करती है प्रत्येक चीज़, जो आकाशों में है तथा जो धरती में है। उसी का राज्य है और उसी के लिए प्रशंसा है तथा वह जो चाहे, कर सकता है।
Surah At-Taghabun, Verse 1
هُوَ ٱلَّذِي خَلَقَكُمۡ فَمِنكُمۡ كَافِرٞ وَمِنكُم مُّؤۡمِنٞۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ بَصِيرٌ
वही है, जिसने उत्पन्न किया है तुम्हें, तो तुममें से कुछ काफ़िर हैं और तुममें से कोई ईमान वाला है तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उसे देख रहा है।
Surah At-Taghabun, Verse 2
خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ بِٱلۡحَقِّ وَصَوَّرَكُمۡ فَأَحۡسَنَ صُوَرَكُمۡۖ وَإِلَيۡهِ ٱلۡمَصِيرُ
उसने उत्पन्न किया आकाशों तथा धरती को सत्य के साथ तथा रूप बनाया तुम्हारा तो सुन्दर बनाया तुम्हारा रूप और उसी की ओर फिरकर जाना है।
Surah At-Taghabun, Verse 3
يَعۡلَمُ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ وَيَعۡلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعۡلِنُونَۚ وَٱللَّهُ عَلِيمُۢ بِذَاتِ ٱلصُّدُورِ
वह जानता है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है और जानता है, जो तुम मन में रखते हो और जो बोलते हो तथा अल्लाह भली-भाँति अवगत है दिलों के भेदों से।
Surah At-Taghabun, Verse 4
أَلَمۡ يَأۡتِكُمۡ نَبَؤُاْ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ مِن قَبۡلُ فَذَاقُواْ وَبَالَ أَمۡرِهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٞ
क्या नहीं आई तुम्हारे पास उनकी सूचना, जिन्होंने कुफ़्र किया इससे पूर्व? तो उन्होंने चख लिया अपने कर्म का दुष्परिणाम और उन्हीं के लिए दुःखदायी यातना है।
Surah At-Taghabun, Verse 5
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُۥ كَانَت تَّأۡتِيهِمۡ رُسُلُهُم بِٱلۡبَيِّنَٰتِ فَقَالُوٓاْ أَبَشَرٞ يَهۡدُونَنَا فَكَفَرُواْ وَتَوَلَّواْۖ وَّٱسۡتَغۡنَى ٱللَّهُۚ وَٱللَّهُ غَنِيٌّ حَمِيدٞ
ये इसलिए कि आते रहे उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ लेकर। तो उन्होंने कहाः क्या कोई मनुष्य हमें मार्गदर्शन[1] देगा? अतः उन्होंने कुफ़्र किया तथा मुँह फेर लिया और अल्लाह (भी उनसे) निश्चिन्त हो गया तथा अल्लाह निस्पृह, प्रशंसित है।
Surah At-Taghabun, Verse 6
زَعَمَ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْ أَن لَّن يُبۡعَثُواْۚ قُلۡ بَلَىٰ وَرَبِّي لَتُبۡعَثُنَّ ثُمَّ لَتُنَبَّؤُنَّ بِمَا عَمِلۡتُمۡۚ وَذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٞ
समझ रखा है काफ़िरों ने कि वे कदापि फिर जीवित नहीं किये जायेंगे। आप कह दें कि क्यों नहीं? मेरे पालनहार की शपथ! तुम अवश्य जीवित किये जाओगे। फिर तुम्हें बताया जायेगा कि तुमने (संसार में) क्या किया है तथा ये अल्लाह पर अति सरल है।
Surah At-Taghabun, Verse 7
فَـَٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَٱلنُّورِ ٱلَّذِيٓ أَنزَلۡنَاۚ وَٱللَّهُ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٞ
अतः तुम ईमान लाओ अल्लाह तथा उसके रसूल[1] पर तथा उस नूर (ज्योति)[2] पर, जिसे हमने उतारा है तथा अल्लाह उससे, जो तुम करते हो भली-भाँति सूचित है।
Surah At-Taghabun, Verse 8
يَوۡمَ يَجۡمَعُكُمۡ لِيَوۡمِ ٱلۡجَمۡعِۖ ذَٰلِكَ يَوۡمُ ٱلتَّغَابُنِۗ وَمَن يُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ وَيَعۡمَلۡ صَٰلِحٗا يُكَفِّرۡ عَنۡهُ سَيِّـَٔاتِهِۦ وَيُدۡخِلۡهُ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۚ ذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ
जिस दिन वह तुम्हें एकत्र करेगा, एकत्र किये जाने वाले दिन। तो वह क्षति (हानि) के खुल जाने[1] का दिन होगा और जो ईमान लाया अल्लाह पर तथा सदाचार करता है, तो वह क्षमा कर देगा उसके दोषों को और प्रवेश देगा उसे ऐसे स्वर्गों में, बहती होंगी जिनमें नहरें, वे सदावासी होंगे उनमें। यही बड़ी सफलता है।
Surah At-Taghabun, Verse 9
وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَكَذَّبُواْ بِـَٔايَٰتِنَآ أُوْلَـٰٓئِكَ أَصۡحَٰبُ ٱلنَّارِ خَٰلِدِينَ فِيهَاۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और झुठलाया हमारी आयतों (निशानियों) को, तो वही नारकी हैं, जो सदावासी होंगे उस (नरक) में तथा वह बुरा ठिकाना है।
Surah At-Taghabun, Verse 10
مَآ أَصَابَ مِن مُّصِيبَةٍ إِلَّا بِإِذۡنِ ٱللَّهِۗ وَمَن يُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ يَهۡدِ قَلۡبَهُۥۚ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٞ
जो आपदा आती है, वह अल्लाह ही की अनुमति से आती है तथा जो अल्लाह पर ईमान[1] लाये, तो वह मार्गदर्शन देता[2] है उसके दिल को तथा अल्लाह प्रत्येक चीज़ को जानता है।
Surah At-Taghabun, Verse 11
وَأَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُواْ ٱلرَّسُولَۚ فَإِن تَوَلَّيۡتُمۡ فَإِنَّمَا عَلَىٰ رَسُولِنَا ٱلۡبَلَٰغُ ٱلۡمُبِينُ
तथा आज्ञा का पालन करो अल्लाह की तथा आज्ञा का पालन करो उसके रसूल की। फिर यदि तुम विमुख हुए, तो हमारे रसूल का दायित्व केवल खुले रूप से (उपदेश) पहुँचा देना है।
Surah At-Taghabun, Verse 12
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۚ وَعَلَى ٱللَّهِ فَلۡيَتَوَكَّلِ ٱلۡمُؤۡمِنُونَ
अल्लाह वह है, जिसके सिवा कोई वंदनीय ( सच्चा पूज्य) नहीं है। अतः, अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिये ईमान वालों को।
Surah At-Taghabun, Verse 13
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِنَّ مِنۡ أَزۡوَٰجِكُمۡ وَأَوۡلَٰدِكُمۡ عَدُوّٗا لَّكُمۡ فَٱحۡذَرُوهُمۡۚ وَإِن تَعۡفُواْ وَتَصۡفَحُواْ وَتَغۡفِرُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ
हे लोगो जो ईमान लाये हो! वास्तव में, तुम्हारी कुछ पत्नियाँ तथा संतान तुम्हारी शत्रु[1] हैं। अतः, उनसे सावधान रहो और यदि तुम क्षमा से काम लो तथा सुधार करो और क्षमा कर दो, तो वास्तव में अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान् है।
Surah At-Taghabun, Verse 14
إِنَّمَآ أَمۡوَٰلُكُمۡ وَأَوۡلَٰدُكُمۡ فِتۡنَةٞۚ وَٱللَّهُ عِندَهُۥٓ أَجۡرٌ عَظِيمٞ
तुम्हारे धन तथा तुम्हारी संतान तो तुम्हारे लिए एक परीक्षा हैं तथा अल्लाह के पास बड़ा प्रतिफल[1] (बदला) है।
Surah At-Taghabun, Verse 15
فَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ مَا ٱسۡتَطَعۡتُمۡ وَٱسۡمَعُواْ وَأَطِيعُواْ وَأَنفِقُواْ خَيۡرٗا لِّأَنفُسِكُمۡۗ وَمَن يُوقَ شُحَّ نَفۡسِهِۦ فَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُفۡلِحُونَ
तो अल्लाह से डरते रहो, जितना तुमसे हो सके तथा सुनो, आज्ञा पालन करो और दान करो। ये उत्तम है तुम्हारे लिए और जो बचा लिया गया अपने मन की कंजूसी से, तो वही सफल होने वाले हैं।
Surah At-Taghabun, Verse 16
إِن تُقۡرِضُواْ ٱللَّهَ قَرۡضًا حَسَنٗا يُضَٰعِفۡهُ لَكُمۡ وَيَغۡفِرۡ لَكُمۡۚ وَٱللَّهُ شَكُورٌ حَلِيمٌ
यदि तुम अल्लाह को उत्तम ऋण[1] दोगो, तो वह तुम्हें कई गुना बढ़ाकर देगा और क्षमा कर देगा तुम्हें और अल्लाह बड़ा गुणग्राही, सहनशील है।
Surah At-Taghabun, Verse 17
عَٰلِمُ ٱلۡغَيۡبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ ٱلۡعَزِيزُ ٱلۡحَكِيمُ
वह परोक्ष और ह़ाज़िर का ज्ञान रखने वाला है। वह अति प्रभावी तथा गुणी है।
Surah At-Taghabun, Verse 18