Surah At-Tahrim - Hindi Translation by Maulana Azizul Haque Al Umari
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ لِمَ تُحَرِّمُ مَآ أَحَلَّ ٱللَّهُ لَكَۖ تَبۡتَغِي مَرۡضَاتَ أَزۡوَٰجِكَۚ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
हे नबी! क्यों ह़राम (अवैध) करते हैं आप उसे, जिसे ह़लाल (वैध) किया है अल्लाह ने आपके लिए? आप अपनी पत्नियों की प्रसन्नता[1] चाहते हैं? तथा अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।
Surah At-Tahrim, Verse 1
قَدۡ فَرَضَ ٱللَّهُ لَكُمۡ تَحِلَّةَ أَيۡمَٰنِكُمۡۚ وَٱللَّهُ مَوۡلَىٰكُمۡۖ وَهُوَ ٱلۡعَلِيمُ ٱلۡحَكِيمُ
नियम बना दिया है अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हारी शपथों से निकलने[1] का तथा अल्लाह संरक्षक है तुम्हारा और वही सर्वज्ञानी गुणी है।
Surah At-Tahrim, Verse 2
وَإِذۡ أَسَرَّ ٱلنَّبِيُّ إِلَىٰ بَعۡضِ أَزۡوَٰجِهِۦ حَدِيثٗا فَلَمَّا نَبَّأَتۡ بِهِۦ وَأَظۡهَرَهُ ٱللَّهُ عَلَيۡهِ عَرَّفَ بَعۡضَهُۥ وَأَعۡرَضَ عَنۢ بَعۡضٖۖ فَلَمَّا نَبَّأَهَا بِهِۦ قَالَتۡ مَنۡ أَنۢبَأَكَ هَٰذَاۖ قَالَ نَبَّأَنِيَ ٱلۡعَلِيمُ ٱلۡخَبِيرُ
और जब नबी ने अपनी कुछ पत्नियों से एक[1] बात कही, तो उसने उसे बता दिया और अल्लाह ने उसे खोल दिया नबी पर, तो नबी ने कुछ से सूचित किया और कुछ को छोड़ दिया। फिर जब सूचित किया आपने पत्नि को उससे, तो उसने कहाः किसने सूचित किया आपको इस बात से? आपने कहाः मूझे सूचित किया है सब जानने और सबसे सूचित रहने वाले ने।
Surah At-Tahrim, Verse 3
إِن تَتُوبَآ إِلَى ٱللَّهِ فَقَدۡ صَغَتۡ قُلُوبُكُمَاۖ وَإِن تَظَٰهَرَا عَلَيۡهِ فَإِنَّ ٱللَّهَ هُوَ مَوۡلَىٰهُ وَجِبۡرِيلُ وَصَٰلِحُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ بَعۡدَ ذَٰلِكَ ظَهِيرٌ
यदि तुम[1] दोनों (हे नबी की पत्नियो!) क्षमा माँग लो अल्लाह से (तो तुम्हारे लिए उत्तम है), क्योंकि तुम दोनों के दिल कुछ झुक गये हैं और यदि तुम दोनों एक-दूसरे की सहायता करोगी आपके विरूध्द, तो निःसंदेह अल्लाह आपका सहायक है तथा जिब्रील और सदाचारी ईमान वाले और फ़रिश्ते (भी) इनके अतिरिक्त सहायक हैं।
Surah At-Tahrim, Verse 4
عَسَىٰ رَبُّهُۥٓ إِن طَلَّقَكُنَّ أَن يُبۡدِلَهُۥٓ أَزۡوَٰجًا خَيۡرٗا مِّنكُنَّ مُسۡلِمَٰتٖ مُّؤۡمِنَٰتٖ قَٰنِتَٰتٖ تَـٰٓئِبَٰتٍ عَٰبِدَٰتٖ سَـٰٓئِحَٰتٖ ثَيِّبَٰتٖ وَأَبۡكَارٗا
कुछ दूर नहीं कि आपका पालनहार, यदि आप तलाक़ दे दें तुम सभी को, तो बदले में दे आपको पत्नियाँ तुमसे उत्तम, इस्लाम वालियाँ, इबादत करने वालियाँ, आज्ञा पालन करने वालियाँ, क्षमा माँगने वालियाँ, व्रत रखने वालियाँ, विधवायें तथा कुमारियाँ।
Surah At-Tahrim, Verse 5
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ قُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ وَأَهۡلِيكُمۡ نَارٗا وَقُودُهَا ٱلنَّاسُ وَٱلۡحِجَارَةُ عَلَيۡهَا مَلَـٰٓئِكَةٌ غِلَاظٞ شِدَادٞ لَّا يَعۡصُونَ ٱللَّهَ مَآ أَمَرَهُمۡ وَيَفۡعَلُونَ مَا يُؤۡمَرُونَ
हे लोगो जो ईमान लाये हो! बचाओ[1] अपने आपको तथा अपने परिजनों को उस अग्नि से, जिसका ईंधन मनुष्य तथा पत्थर होंगे। जिसपर फ़रिश्ते नियुक्त हैं कड़े दिल, कड़े स्वभाव वाले। वे अवज्ञा नहीं करते अल्लाह के आदेश की तथा वही करते हैं, जिसका आदेश उन्हें दिया जाये।
Surah At-Tahrim, Verse 6
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَا تَعۡتَذِرُواْ ٱلۡيَوۡمَۖ إِنَّمَا تُجۡزَوۡنَ مَا كُنتُمۡ تَعۡمَلُونَ
हे काफ़िरो! बहाना न बनाओ आज, तुम्हें उसी का बदला दिया जा रहा है, जो तुम करते रहे।
Surah At-Tahrim, Verse 7
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ تُوبُوٓاْ إِلَى ٱللَّهِ تَوۡبَةٗ نَّصُوحًا عَسَىٰ رَبُّكُمۡ أَن يُكَفِّرَ عَنكُمۡ سَيِّـَٔاتِكُمۡ وَيُدۡخِلَكُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ يَوۡمَ لَا يُخۡزِي ٱللَّهُ ٱلنَّبِيَّ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ مَعَهُۥۖ نُورُهُمۡ يَسۡعَىٰ بَيۡنَ أَيۡدِيهِمۡ وَبِأَيۡمَٰنِهِمۡ يَقُولُونَ رَبَّنَآ أَتۡمِمۡ لَنَا نُورَنَا وَٱغۡفِرۡ لَنَآۖ إِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ قَدِيرٞ
हे ईमान वालो! अल्लाह के आगे सच्ची[1] तौबा करो। संभव है कि तुम्हारा पालनहार दूर कर दे तुम्हारी बुराईयाँ तुमसे तथा प्रवेश करा दे तुम्हें ऐसे स्वर्गों में, बहती हैं जिनमें नहरें। जिस दिन वह अपमानित नहीं करेगा नबी को और न उन्हें, जो ईमान लाये हैं उनके साथ। उनका प्रकाश[2] दौड़ रहा होगा, उनके आगे तथा उनके दायें, वे प्रार्थना कर रहे होंगेः हे हमारे पालनहार! पूर्ण कर दे हमारे लिए हमारा प्रकाश तथा क्षमा कर दे हमें। वास्तव में, तू जो चाहे, कर सकता है।
Surah At-Tahrim, Verse 8
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّبِيُّ جَٰهِدِ ٱلۡكُفَّارَ وَٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱغۡلُظۡ عَلَيۡهِمۡۚ وَمَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَبِئۡسَ ٱلۡمَصِيرُ
हे नबी! आप जिहाद करें काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से और उनपर कड़ाई करें।[1] उनका स्थान नरक है और वह बुरा स्थान है।
Surah At-Tahrim, Verse 9
ضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا لِّلَّذِينَ كَفَرُواْ ٱمۡرَأَتَ نُوحٖ وَٱمۡرَأَتَ لُوطٖۖ كَانَتَا تَحۡتَ عَبۡدَيۡنِ مِنۡ عِبَادِنَا صَٰلِحَيۡنِ فَخَانَتَاهُمَا فَلَمۡ يُغۡنِيَا عَنۡهُمَا مِنَ ٱللَّهِ شَيۡـٔٗا وَقِيلَ ٱدۡخُلَا ٱلنَّارَ مَعَ ٱلدَّـٰخِلِينَ
अल्लाह ने उदाहरण दिया है उनके लिए, जो काफ़िर हो गये नूह़ की पत्नी तथा लूत की पत्नी का। जो दोनों विवाह में थीं दो भक्तों के, हमारे सदाचारी भक्तों में से। फिर दोनों ने विश्वासघात[1] किया उनसे। तो दोनों उनके, अल्लाह के यहाँ कुछ काम नहीं आये तथा (दोनों स्त्रियों से) कहा गया कि प्रवेश कर जाओ नरक में प्रवेश करने वालों के साथ।
Surah At-Tahrim, Verse 10
وَضَرَبَ ٱللَّهُ مَثَلٗا لِّلَّذِينَ ءَامَنُواْ ٱمۡرَأَتَ فِرۡعَوۡنَ إِذۡ قَالَتۡ رَبِّ ٱبۡنِ لِي عِندَكَ بَيۡتٗا فِي ٱلۡجَنَّةِ وَنَجِّنِي مِن فِرۡعَوۡنَ وَعَمَلِهِۦ وَنَجِّنِي مِنَ ٱلۡقَوۡمِ ٱلظَّـٰلِمِينَ
तथा उदाहरण[1] दिया है अल्लाह ने उनके लिए, जो ईमान लाये, फ़िरऔन की पत्नी का। जब उसने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! बना दे मेरे लिए अपने पास एक घर स्वर्ग में तथा मुझे मुक्त कर दे फ़िरऔन तथा उसके कर्म से और मुझे मुक्त कर दे अत्याचारी जाति से।
Surah At-Tahrim, Verse 11
وَمَرۡيَمَ ٱبۡنَتَ عِمۡرَٰنَ ٱلَّتِيٓ أَحۡصَنَتۡ فَرۡجَهَا فَنَفَخۡنَا فِيهِ مِن رُّوحِنَا وَصَدَّقَتۡ بِكَلِمَٰتِ رَبِّهَا وَكُتُبِهِۦ وَكَانَتۡ مِنَ ٱلۡقَٰنِتِينَ
तथा मर्यम, इमरान की पुत्री का, जिसने रक्षा की अपने सतीत्व की, तो फूँक दी हमने उसमें अपनी ओर से रूह़ (आत्मा) तथा उस (मर्यम) ने सच माना अपने पालनहार की बातों और उसकी पुस्तकों को और वह इबादत करने वालों में से थी।
Surah At-Tahrim, Verse 12