Surah An-Nisa - Hindi Translation by Muhammad Farooq Khan And Muhammad Ahmed
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱتَّقُواْ رَبَّكُمُ ٱلَّذِي خَلَقَكُم مِّن نَّفۡسٖ وَٰحِدَةٖ وَخَلَقَ مِنۡهَا زَوۡجَهَا وَبَثَّ مِنۡهُمَا رِجَالٗا كَثِيرٗا وَنِسَآءٗۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ ٱلَّذِي تَسَآءَلُونَ بِهِۦ وَٱلۡأَرۡحَامَۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَيۡكُمۡ رَقِيبٗا
ऐ लोगों! अपने रब का डर रखों, जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी जाति का उसके लिए जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से पुरुष और स्त्रियाँ फैला दी। अल्लाह का डर रखो, जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे के सामने माँगें रखते हो। और नाते-रिश्तों का भी तुम्हें ख़याल रखना हैं। निश्चय ही अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा हैं
Surah An-Nisa, Verse 1
وَءَاتُواْ ٱلۡيَتَٰمَىٰٓ أَمۡوَٰلَهُمۡۖ وَلَا تَتَبَدَّلُواْ ٱلۡخَبِيثَ بِٱلطَّيِّبِۖ وَلَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَهُمۡ إِلَىٰٓ أَمۡوَٰلِكُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ حُوبٗا كَبِيرٗا
और अनाथों को उनका माल दे दो और बुरी चीज़ को अच्छी चीज़ से न बदलो, और न उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर खा जाओ। यह बहुत बड़ा गुनाह हैं
Surah An-Nisa, Verse 2
وَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا تُقۡسِطُواْ فِي ٱلۡيَتَٰمَىٰ فَٱنكِحُواْ مَا طَابَ لَكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ مَثۡنَىٰ وَثُلَٰثَ وَرُبَٰعَۖ فَإِنۡ خِفۡتُمۡ أَلَّا تَعۡدِلُواْ فَوَٰحِدَةً أَوۡ مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۚ ذَٰلِكَ أَدۡنَىٰٓ أَلَّا تَعُولُواْ
और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथों (अनाथ लड़कियों) के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पसन्द हों, दो-दो या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो। किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार न कर सकोंगे, तो फिर एक ही पर बस करो, या उस स्त्री (लौंड़ी) पर जो तुम्हारे क़ब्ज़े में आई हो, उसी पर बस करो। इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक सम्भावना है
Surah An-Nisa, Verse 3
وَءَاتُواْ ٱلنِّسَآءَ صَدُقَٰتِهِنَّ نِحۡلَةٗۚ فَإِن طِبۡنَ لَكُمۡ عَن شَيۡءٖ مِّنۡهُ نَفۡسٗا فَكُلُوهُ هَنِيٓـٔٗا مَّرِيٓـٔٗا
और स्त्रियों को उनके मह्रा ख़ुशी से अदा करो। हाँ, यदि वे अपनी ख़ुशी से उसमें से तुम्हारे लिए छोड़ दे तो उसे तुम अच्छा और पाक समझकर खाओ
Surah An-Nisa, Verse 4
وَلَا تُؤۡتُواْ ٱلسُّفَهَآءَ أَمۡوَٰلَكُمُ ٱلَّتِي جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمۡ قِيَٰمٗا وَٱرۡزُقُوهُمۡ فِيهَا وَٱكۡسُوهُمۡ وَقُولُواْ لَهُمۡ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗا
और अपने माल, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन-यापन का साधन बनाया है, बेसमझ लोगों को न दो। उन्हें उसमें से खिलाते और पहनाते रहो और उनसे भली बात कहो
Surah An-Nisa, Verse 5
وَٱبۡتَلُواْ ٱلۡيَتَٰمَىٰ حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغُواْ ٱلنِّكَاحَ فَإِنۡ ءَانَسۡتُم مِّنۡهُمۡ رُشۡدٗا فَٱدۡفَعُوٓاْ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡۖ وَلَا تَأۡكُلُوهَآ إِسۡرَافٗا وَبِدَارًا أَن يَكۡبَرُواْۚ وَمَن كَانَ غَنِيّٗا فَلۡيَسۡتَعۡفِفۡۖ وَمَن كَانَ فَقِيرٗا فَلۡيَأۡكُلۡ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ فَإِذَا دَفَعۡتُمۡ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡ فَأَشۡهِدُواْ عَلَيۡهِمۡۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبٗا
और अनाथों को जाँचते रहो, यहाँ तक कि जब वे विवाह की अवस्था को पहुँच जाएँ, तो फिर यदि तुम देखो कि उनमें सूझ-बूझ आ गई है, तो उनके माल उन्हें सौंप दो, और इस भय से कि कहीं वे बड़े न हो जाएँ तुम उनके माल अनुचित रूप से उड़ाकर और जल्दी करके न खाओ। और जो धनवान हो, उसे तो (इस माल से) से बचना ही चाहिए। हाँ, जो निर्धन हो, वह उचित रीति से कुछ खा सकता है। फिर जब उनके माल उन्हें सौंपने लगो, तो उनकी मौजूदगी में गवाह बना लो। हिसाब लेने के लिए अल्लाह काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 6
لِّلرِّجَالِ نَصِيبٞ مِّمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٞ مِّمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَ مِمَّا قَلَّ مِنۡهُ أَوۡ كَثُرَۚ نَصِيبٗا مَّفۡرُوضٗا
पुरुषों का उस माल में एक हिस्सा है जो माँ-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो; और स्त्रियों का भी उस माल में एक हिस्सा है जो माल माँ-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो - चाह वह थोड़ा हो या अधिक हो - यह हिस्सा निश्चित किया हुआ है
Surah An-Nisa, Verse 7
وَإِذَا حَضَرَ ٱلۡقِسۡمَةَ أُوْلُواْ ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينُ فَٱرۡزُقُوهُم مِّنۡهُ وَقُولُواْ لَهُمۡ قَوۡلٗا مَّعۡرُوفٗا
और जब बाँटने के समय नातेदार और अनाथ और मुहताज उपस्थित हो तो उन्हें भी उसमें से (उनका हिस्सा) दे दो और उनसे भली बात करो
Surah An-Nisa, Verse 8
وَلۡيَخۡشَ ٱلَّذِينَ لَوۡ تَرَكُواْ مِنۡ خَلۡفِهِمۡ ذُرِّيَّةٗ ضِعَٰفًا خَافُواْ عَلَيۡهِمۡ فَلۡيَتَّقُواْ ٱللَّهَ وَلۡيَقُولُواْ قَوۡلٗا سَدِيدًا
और लोगों को डरना चाहिए कि यदि वे स्वयं अपने पीछे अपने निर्बल बच्चे छोड़ते तो उन्हें उन बच्चों के विषय में कितना भय होता। तो फिर उन्हें अल्लाह से डरना चाहिए और ठीक सीधी बात कहनी चाहिए
Surah An-Nisa, Verse 9
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَأۡكُلُونَ أَمۡوَٰلَ ٱلۡيَتَٰمَىٰ ظُلۡمًا إِنَّمَا يَأۡكُلُونَ فِي بُطُونِهِمۡ نَارٗاۖ وَسَيَصۡلَوۡنَ سَعِيرٗا
जो लोग अनाथों के माल अन्याय के साथ खाते है, वास्तव में वे अपने पेट आग से भरते है, और वे अवश्य भड़कती हुई आग में पड़ेगे
Surah An-Nisa, Verse 10
يُوصِيكُمُ ٱللَّهُ فِيٓ أَوۡلَٰدِكُمۡۖ لِلذَّكَرِ مِثۡلُ حَظِّ ٱلۡأُنثَيَيۡنِۚ فَإِن كُنَّ نِسَآءٗ فَوۡقَ ٱثۡنَتَيۡنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَۖ وَإِن كَانَتۡ وَٰحِدَةٗ فَلَهَا ٱلنِّصۡفُۚ وَلِأَبَوَيۡهِ لِكُلِّ وَٰحِدٖ مِّنۡهُمَا ٱلسُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ إِن كَانَ لَهُۥ وَلَدٞۚ فَإِن لَّمۡ يَكُن لَّهُۥ وَلَدٞ وَوَرِثَهُۥٓ أَبَوَاهُ فَلِأُمِّهِ ٱلثُّلُثُۚ فَإِن كَانَ لَهُۥٓ إِخۡوَةٞ فَلِأُمِّهِ ٱلسُّدُسُۚ مِنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ يُوصِي بِهَآ أَوۡ دَيۡنٍۗ ءَابَآؤُكُمۡ وَأَبۡنَآؤُكُمۡ لَا تَدۡرُونَ أَيُّهُمۡ أَقۡرَبُ لَكُمۡ نَفۡعٗاۚ فَرِيضَةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا
अल्लाह तुम्हारी सन्तान के विषय में तुम्हें आदेश देता है कि दो बेटियों के हिस्से के बराबर एक बेटे का हिस्सा होगा; और यदि दो से अधिक बेटियाँ ही हो तो उनका हिस्सा छोड़ी हुई सम्पत्ति का दो तिहाई है। और यदि वह अकेली हो तो उसके लिए आधा है। और यदि मरनेवाले की सन्तान हो जो उसके माँ-बाप में से प्रत्येक का उसके छोड़े हुए माल का छठा हिस्सा है। और यदि वह निस्संतान हो और उसके माँ-बाप ही उसके वारिस हों, तो उसकी माँ का हिस्सा तिहाई होगा। और यदि उसके भाई भी हो, तो उसका माँ का छठा हिस्सा होगा। ये हिस्से, वसीयत जो वह कर जाए पूरी करने या ऋण चुका देने के पश्चात है। तुम्हारे बाप भी है और तुम्हारे बेटे भी। तुम नहीं जानते कि उनमें से लाभ पहुँचाने की दृष्टि से कौन तुमसे अधिक निकट है। यह हिस्सा अल्लाह का निश्चित किया हुआ है। अल्लाह सब कुछ जानता, समझता है
Surah An-Nisa, Verse 11
۞وَلَكُمۡ نِصۡفُ مَا تَرَكَ أَزۡوَٰجُكُمۡ إِن لَّمۡ يَكُن لَّهُنَّ وَلَدٞۚ فَإِن كَانَ لَهُنَّ وَلَدٞ فَلَكُمُ ٱلرُّبُعُ مِمَّا تَرَكۡنَۚ مِنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ يُوصِينَ بِهَآ أَوۡ دَيۡنٖۚ وَلَهُنَّ ٱلرُّبُعُ مِمَّا تَرَكۡتُمۡ إِن لَّمۡ يَكُن لَّكُمۡ وَلَدٞۚ فَإِن كَانَ لَكُمۡ وَلَدٞ فَلَهُنَّ ٱلثُّمُنُ مِمَّا تَرَكۡتُمۚ مِّنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ تُوصُونَ بِهَآ أَوۡ دَيۡنٖۗ وَإِن كَانَ رَجُلٞ يُورَثُ كَلَٰلَةً أَوِ ٱمۡرَأَةٞ وَلَهُۥٓ أَخٌ أَوۡ أُخۡتٞ فَلِكُلِّ وَٰحِدٖ مِّنۡهُمَا ٱلسُّدُسُۚ فَإِن كَانُوٓاْ أَكۡثَرَ مِن ذَٰلِكَ فَهُمۡ شُرَكَآءُ فِي ٱلثُّلُثِۚ مِنۢ بَعۡدِ وَصِيَّةٖ يُوصَىٰ بِهَآ أَوۡ دَيۡنٍ غَيۡرَ مُضَآرّٖۚ وَصِيَّةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَلِيمٞ
और तुम्हारी पत्नि यों ने जो कुछ छोड़ा हो, उसमें तुम्हारा आधा है, यदि उनकी सन्तान न हो। लेकिन यदि उनकी सन्तान हो तो वे छोड़े, उसमें तुम्हारा चौथाई होगा, इसके पश्चात कि जो वसीयत वे कर जाएँ वह पूरी कर दी जाए, या जो ऋण (उनपर) हो वह चुका दिया जाए। और जो कुछ तुम छोड़ जाओ, उसमें उनका (पत्ऩियों का) चौथाई हिस्सा होगा, यदि तुम्हारी कोई सन्तान न हो। लेकिन यदि तुम्हारी सन्तान है, तो जो कुछ तुम छोड़ोगे, उसमें से उनका (पत्नियों का) आठवाँ हिस्सा होगा, इसके पश्चात कि जो वसीयत तुमने की हो वह पूरी कर दी जाए, या जो ऋण हो उसे चुका दिया जाए, और यदि किसी पुरुष या स्त्री के न तो कोई सन्तान हो और न उसके माँ-बाप ही जीवित हो और उसके एक भाई या बहन हो तो उन दोनों में से प्रत्येक को छठा हिस्सा होगा। लेकिन यदि वे इससे अधिक हों तो फिर एक तिहाई में वे सब शरीक होंगे, इसके पश्चात कि जो वसीयत उसने की वह पूरी कर दी जाए या जो ऋण (उसपर) हो वह चुका दिया जाए, शर्त यह है कि वह हानिकर न हो। यह अल्लाह की ओर से ताकीदी आदेश है और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त सहनशील है
Surah An-Nisa, Verse 12
تِلۡكَ حُدُودُ ٱللَّهِۚ وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ يُدۡخِلۡهُ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَاۚ وَذَٰلِكَ ٱلۡفَوۡزُ ٱلۡعَظِيمُ
ये अल्लाह की निश्चित की हुई सीमाएँ है। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों का पालन करेगा, उसे अल्लाह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। उनमें वह सदैव रहेगा और यही बड़ी सफलता है
Surah An-Nisa, Verse 13
وَمَن يَعۡصِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ وَيَتَعَدَّ حُدُودَهُۥ يُدۡخِلۡهُ نَارًا خَٰلِدٗا فِيهَا وَلَهُۥ عَذَابٞ مُّهِينٞ
परन्तु जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा और उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा उसे अल्लाह आग में डालेगा, जिसमें वह सदैव रहेगा। और उसके लिए अपमानजनक यातना है
Surah An-Nisa, Verse 14
وَٱلَّـٰتِي يَأۡتِينَ ٱلۡفَٰحِشَةَ مِن نِّسَآئِكُمۡ فَٱسۡتَشۡهِدُواْ عَلَيۡهِنَّ أَرۡبَعَةٗ مِّنكُمۡۖ فَإِن شَهِدُواْ فَأَمۡسِكُوهُنَّ فِي ٱلۡبُيُوتِ حَتَّىٰ يَتَوَفَّىٰهُنَّ ٱلۡمَوۡتُ أَوۡ يَجۡعَلَ ٱللَّهُ لَهُنَّ سَبِيلٗا
और तुम्हारी स्त्रियों में से जो व्यभिचार कर बैठे, उनपर अपने में से चार आदमियों की गवाही लो, फिर यदि वे गवाही दे दें तो उन्हें घरों में बन्द रखो, यहाँ तक कि उनकी मृत्यु आ जाए या अल्लाह उनके लिए कोई रास्ता निकाल दे
Surah An-Nisa, Verse 15
وَٱلَّذَانِ يَأۡتِيَٰنِهَا مِنكُمۡ فَـَٔاذُوهُمَاۖ فَإِن تَابَا وَأَصۡلَحَا فَأَعۡرِضُواْ عَنۡهُمَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ تَوَّابٗا رَّحِيمًا
और तुममें से जो दो पुरुष यह कर्म करें, उन्हें प्रताड़ित करो, फिर यदि वे तौबा कर ले और अपने आपको सुधार लें, तो उन्हें छोड़ दो। अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 16
إِنَّمَا ٱلتَّوۡبَةُ عَلَى ٱللَّهِ لِلَّذِينَ يَعۡمَلُونَ ٱلسُّوٓءَ بِجَهَٰلَةٖ ثُمَّ يَتُوبُونَ مِن قَرِيبٖ فَأُوْلَـٰٓئِكَ يَتُوبُ ٱللَّهُ عَلَيۡهِمۡۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا
उन्ही लोगों की तौबा क़बूल करना अल्लाह के ज़िम्मे है जो भावनाओं में बह कर नादानी से कोई बुराई कर बैठे, फिर जल्द ही तौबा कर लें, ऐसे ही लोग है जिनकी तौबा अल्लाह क़बूल करता है। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 17
وَلَيۡسَتِ ٱلتَّوۡبَةُ لِلَّذِينَ يَعۡمَلُونَ ٱلسَّيِّـَٔاتِ حَتَّىٰٓ إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ ٱلۡمَوۡتُ قَالَ إِنِّي تُبۡتُ ٱلۡـَٰٔنَ وَلَا ٱلَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمۡ كُفَّارٌۚ أُوْلَـٰٓئِكَ أَعۡتَدۡنَا لَهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا
और ऐसे लोगों की तौबा नहीं जो बुरे काम किए चले जाते है, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु का समय आ जाता है तो कहने लगता है, "अब मैं तौबा करता हूँ।" और इसी प्रकार तौबा उनकी भी नहीं है, जो मरते दम तक इनकार करनेवाले ही रहे। ऐसे लोगों के लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है
Surah An-Nisa, Verse 18
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا يَحِلُّ لَكُمۡ أَن تَرِثُواْ ٱلنِّسَآءَ كَرۡهٗاۖ وَلَا تَعۡضُلُوهُنَّ لِتَذۡهَبُواْ بِبَعۡضِ مَآ ءَاتَيۡتُمُوهُنَّ إِلَّآ أَن يَأۡتِينَ بِفَٰحِشَةٖ مُّبَيِّنَةٖۚ وَعَاشِرُوهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ فَإِن كَرِهۡتُمُوهُنَّ فَعَسَىٰٓ أَن تَكۡرَهُواْ شَيۡـٔٗا وَيَجۡعَلَ ٱللَّهُ فِيهِ خَيۡرٗا كَثِيرٗا
ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हारे लिए वैध नहीं कि स्त्रियों के माल के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो, और न यह वैध है कि उन्हें इसलिए रोको और तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है, उसमें से कुछ ले उड़ो। परन्तु यदि वे खुले रूप में अशिष्ट कर्म कर बैठे तो दूसरी बात है। और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। फिर यदि वे तुम्हें पसन्द न हों, तो सम्भव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे
Surah An-Nisa, Verse 19
وَإِنۡ أَرَدتُّمُ ٱسۡتِبۡدَالَ زَوۡجٖ مَّكَانَ زَوۡجٖ وَءَاتَيۡتُمۡ إِحۡدَىٰهُنَّ قِنطَارٗا فَلَا تَأۡخُذُواْ مِنۡهُ شَيۡـًٔاۚ أَتَأۡخُذُونَهُۥ بُهۡتَٰنٗا وَإِثۡمٗا مُّبِينٗا
और यदि तुम एक पत्ऩी की जगह दूसरी पत्ऩी लाना चाहो तो, चाहे तुमने उनमें किसी को ढेरों माल दे दिया हो, उसमें से कुछ मत लेना। क्या तुम उसपर झूठा आरोप लगाकर और खुले रूप में हक़ मारकर उसे लोगे
Surah An-Nisa, Verse 20
وَكَيۡفَ تَأۡخُذُونَهُۥ وَقَدۡ أَفۡضَىٰ بَعۡضُكُمۡ إِلَىٰ بَعۡضٖ وَأَخَذۡنَ مِنكُم مِّيثَٰقًا غَلِيظٗا
और तुम उसे किस तरह ले सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिल चुके हो और वे तुमसे दृढ़ प्रतिज्ञा भी ले चुकी है
Surah An-Nisa, Verse 21
وَلَا تَنكِحُواْ مَا نَكَحَ ءَابَآؤُكُم مِّنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا قَدۡ سَلَفَۚ إِنَّهُۥ كَانَ فَٰحِشَةٗ وَمَقۡتٗا وَسَآءَ سَبِيلًا
और उन स्त्रियों से विवाह न करो, जिनसे तुम्हारे बाप विवाह कर चुके हों, परन्तु जो पहले हो चुका सो हो चुका। निस्संदेह यह एक अश्लील और अत्यन्त अप्रिय कर्म है, और बुरी रीति है
Surah An-Nisa, Verse 22
حُرِّمَتۡ عَلَيۡكُمۡ أُمَّهَٰتُكُمۡ وَبَنَاتُكُمۡ وَأَخَوَٰتُكُمۡ وَعَمَّـٰتُكُمۡ وَخَٰلَٰتُكُمۡ وَبَنَاتُ ٱلۡأَخِ وَبَنَاتُ ٱلۡأُخۡتِ وَأُمَّهَٰتُكُمُ ٱلَّـٰتِيٓ أَرۡضَعۡنَكُمۡ وَأَخَوَٰتُكُم مِّنَ ٱلرَّضَٰعَةِ وَأُمَّهَٰتُ نِسَآئِكُمۡ وَرَبَـٰٓئِبُكُمُ ٱلَّـٰتِي فِي حُجُورِكُم مِّن نِّسَآئِكُمُ ٱلَّـٰتِي دَخَلۡتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمۡ تَكُونُواْ دَخَلۡتُم بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ وَحَلَـٰٓئِلُ أَبۡنَآئِكُمُ ٱلَّذِينَ مِنۡ أَصۡلَٰبِكُمۡ وَأَن تَجۡمَعُواْ بَيۡنَ ٱلۡأُخۡتَيۡنِ إِلَّا مَا قَدۡ سَلَفَۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
तुम्हारे लिए हराम है तुम्हारी माएँ, बेटियाँ, बहनें, फूफियाँ, मौसियाँ, भतीतियाँ, भाँजिया, और तुम्हारी वे माएँ जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो और दूध के रिश्ते से तुम्हारी बहनें और तुम्हारी सासें और तुम्हारी पत्ऩियों की बेटियाँ जिनसे तुम सम्भोग कर चुक हो। परन्तु यदि सम्भोग नहीं किया है तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं - और तुम्हारे उन बेटों की पत्ऩियाँ जो तुमसे पैदा हों और यह भी कि तुम दो बहनों को इकट्ठा करो; जो पहले जो हो चुका सो हो चुका। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 23
۞وَٱلۡمُحۡصَنَٰتُ مِنَ ٱلنِّسَآءِ إِلَّا مَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۖ كِتَٰبَ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡۚ وَأُحِلَّ لَكُم مَّا وَرَآءَ ذَٰلِكُمۡ أَن تَبۡتَغُواْ بِأَمۡوَٰلِكُم مُّحۡصِنِينَ غَيۡرَ مُسَٰفِحِينَۚ فَمَا ٱسۡتَمۡتَعۡتُم بِهِۦ مِنۡهُنَّ فَـَٔاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ فَرِيضَةٗۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ فِيمَا تَرَٰضَيۡتُم بِهِۦ مِنۢ بَعۡدِ ٱلۡفَرِيضَةِۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمٗا
और विवाहित स्त्रियाँ भी वर्जित है, सिवाय उनके जो तुम्हारी लौंडी हों। यह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनिवार्य कर दिया है। इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है कि तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनकी पाकदामनी की सुरक्षा के लिए, न कि यह काम स्वच्छन्द काम-तृप्ति के लिए हो। फिर उनसे दाम्पत्य जीवन का आनन्द लो तो उसके बदले उनका निश्चित किया हुए हक़ (मह्रि) अदा करो और यदि हक़ निश्चित हो जाने के पश्चात तुम आपम में अपनी प्रसन्नता से कोई समझौता कर लो, तो इसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 24
وَمَن لَّمۡ يَسۡتَطِعۡ مِنكُمۡ طَوۡلًا أَن يَنكِحَ ٱلۡمُحۡصَنَٰتِ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِ فَمِن مَّا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُم مِّن فَتَيَٰتِكُمُ ٱلۡمُؤۡمِنَٰتِۚ وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِإِيمَٰنِكُمۚ بَعۡضُكُم مِّنۢ بَعۡضٖۚ فَٱنكِحُوهُنَّ بِإِذۡنِ أَهۡلِهِنَّ وَءَاتُوهُنَّ أُجُورَهُنَّ بِٱلۡمَعۡرُوفِ مُحۡصَنَٰتٍ غَيۡرَ مُسَٰفِحَٰتٖ وَلَا مُتَّخِذَٰتِ أَخۡدَانٖۚ فَإِذَآ أُحۡصِنَّ فَإِنۡ أَتَيۡنَ بِفَٰحِشَةٖ فَعَلَيۡهِنَّ نِصۡفُ مَا عَلَى ٱلۡمُحۡصَنَٰتِ مِنَ ٱلۡعَذَابِۚ ذَٰلِكَ لِمَنۡ خَشِيَ ٱلۡعَنَتَ مِنكُمۡۚ وَأَن تَصۡبِرُواْ خَيۡرٞ لَّكُمۡۗ وَٱللَّهُ غَفُورٞ رَّحِيمٞ
और तुममें से जिस किसी की इतनी सामर्थ्य न हो कि पाकदामन, स्वतंत्र, ईमानवाली स्त्रियों से विवाह कर सके, तो तुम्हारी वे ईमानवाली जवान लौडियाँ ही सही जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हो। और अल्लाह तुम्हारे ईमान को भली-भाँति जानता है। तुम सब आपस में एक ही हो, तो उनके मालिकों की अनुमति से तुम उनसे विवाह कर लो और सामान्य नियम के अनुसार उन्हें उनका हक़ भी दो। वे पाकदामनी की सुरक्षा करनेवाली हों, स्वच्छन्द काम-तृप्ति न करनेवाली हों और न वे चोरी-छिपे ग़ैरो से प्रेम करनेवाली हों। फिर जब वे विवाहिता बना ली जाएँ और उसके पश्चात कोई अश्लील कर्म कर बैठें, तो जो दंड सम्मानित स्त्रियों के लिए है, उसका आधा उनके लिए होगा। यह तुममें से उस व्यक्ति के लिए है, जिसे ख़राबी में पड़ जाने का भय हो, और यह कि तुम धैर्य से काम लो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 25
يُرِيدُ ٱللَّهُ لِيُبَيِّنَ لَكُمۡ وَيَهۡدِيَكُمۡ سُنَنَ ٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَيَتُوبَ عَلَيۡكُمۡۗ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٞ
अल्लाह चाहता है कि तुमपर स्पष्ट कर दे और तुम्हें उन लोगों के तरीक़ों पर चलाए, जो तुमसे पहले हुए है और तुमपर दयादृष्टि करे। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 26
وَٱللَّهُ يُرِيدُ أَن يَتُوبَ عَلَيۡكُمۡ وَيُرِيدُ ٱلَّذِينَ يَتَّبِعُونَ ٱلشَّهَوَٰتِ أَن تَمِيلُواْ مَيۡلًا عَظِيمٗا
और अल्लाह चाहता है कि जो तुमपर दयादृष्टि करे, किन्तु जो लोग अपनी तुच्छ इच्छाओं का पालन करते है, वे चाहते है कि तुम राह से हटकर बहुत दूर जा पड़ो
Surah An-Nisa, Verse 27
يُرِيدُ ٱللَّهُ أَن يُخَفِّفَ عَنكُمۡۚ وَخُلِقَ ٱلۡإِنسَٰنُ ضَعِيفٗا
अल्लाह चाहता है कि तुमपर से बोझ हलका कर दे, क्योंकि इनसान निर्बल पैदा किया गया है
Surah An-Nisa, Verse 28
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَأۡكُلُوٓاْ أَمۡوَٰلَكُم بَيۡنَكُم بِٱلۡبَٰطِلِ إِلَّآ أَن تَكُونَ تِجَٰرَةً عَن تَرَاضٖ مِّنكُمۡۚ وَلَا تَقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُمۡ رَحِيمٗا
ऐ ईमान लानेवालो! आपस में एक-दूसरे के माल ग़लत तरीक़े से न खाओ - यह और बात है कि तुम्हारी आपस में रज़ामन्दी से कोई सौदा हो - और न अपनों की हत्या करो। निस्संदेह अल्लाह तुमपर बहुत दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 29
وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ عُدۡوَٰنٗا وَظُلۡمٗا فَسَوۡفَ نُصۡلِيهِ نَارٗاۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرًا
और जो कोई ज़ुल्म और ज़्यादती से ऐसा करेगा, तो उसे हम जल्द ही आग में झोंक देंगे, और यह अल्लाह के लिए सरल है
Surah An-Nisa, Verse 30
إِن تَجۡتَنِبُواْ كَبَآئِرَ مَا تُنۡهَوۡنَ عَنۡهُ نُكَفِّرۡ عَنكُمۡ سَيِّـَٔاتِكُمۡ وَنُدۡخِلۡكُم مُّدۡخَلٗا كَرِيمٗا
यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहो, जिनसे तुम्हे रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारी बुराइयों को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें प्रतिष्ठित स्थान में प्रवेश कराएँगे
Surah An-Nisa, Verse 31
وَلَا تَتَمَنَّوۡاْ مَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بِهِۦ بَعۡضَكُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۚ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٞ مِّمَّا ٱكۡتَسَبُواْۖ وَلِلنِّسَآءِ نَصِيبٞ مِّمَّا ٱكۡتَسَبۡنَۚ وَسۡـَٔلُواْ ٱللَّهَ مِن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمٗا
और उसकी कामना न करो जिसमें अल्लाह ने तुमसे किसी को किसी से उच्च रखा है। पुरुषों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है और स्त्रियों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है। अल्लाह से उसका उदार दान चाहो। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है
Surah An-Nisa, Verse 32
وَلِكُلّٖ جَعَلۡنَا مَوَٰلِيَ مِمَّا تَرَكَ ٱلۡوَٰلِدَانِ وَٱلۡأَقۡرَبُونَۚ وَٱلَّذِينَ عَقَدَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡ فَـَٔاتُوهُمۡ نَصِيبَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ شَهِيدًا
और प्रत्येक माल के लिए, जो माँ-बाप और नातेदार छोड़ जाएँ, हमने वासिस ठहरा दिए है और जिन लोगों से अपनी क़समों के द्वारा तुम्हारा पक्का मामला हुआ हो, तो उन्हें भी उनका हिस्सा दो। निस्संदेह हर चीज़ अल्लाह के समक्ष है
Surah An-Nisa, Verse 33
ٱلرِّجَالُ قَوَّـٰمُونَ عَلَى ٱلنِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ ٱللَّهُ بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖ وَبِمَآ أَنفَقُواْ مِنۡ أَمۡوَٰلِهِمۡۚ فَٱلصَّـٰلِحَٰتُ قَٰنِتَٰتٌ حَٰفِظَٰتٞ لِّلۡغَيۡبِ بِمَا حَفِظَ ٱللَّهُۚ وَٱلَّـٰتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَٱهۡجُرُوهُنَّ فِي ٱلۡمَضَاجِعِ وَٱضۡرِبُوهُنَّۖ فَإِنۡ أَطَعۡنَكُمۡ فَلَا تَبۡغُواْ عَلَيۡهِنَّ سَبِيلًاۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيّٗا كَبِيرٗا
पति पत्नियों संरक्षक और निगराँ है, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ के मुक़ाबले में आगे रहा है, और इसलिए भी कि पतियों ने अपने माल ख़र्च किए है, तो नेक पत्ऩियाँ तो आज्ञापालन करनेवाली होती है और गुप्त बातों की रक्षा करती है, क्योंकि अल्लाह ने उनकी रक्षा की है। और जो पत्नियों ऐसी हो जिनकी सरकशी का तुम्हें भय हो, उन्हें समझाओ और बिस्तरों में उन्हें अकेली छोड़ दो और (अति आवश्यक हो तो) उन्हें मारो भी। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानने लगे, तो उनके विरुद्ध कोई रास्ता न ढूढ़ो। अल्लाह सबसे उच्च, सबसे बड़ा है
Surah An-Nisa, Verse 34
وَإِنۡ خِفۡتُمۡ شِقَاقَ بَيۡنِهِمَا فَٱبۡعَثُواْ حَكَمٗا مِّنۡ أَهۡلِهِۦ وَحَكَمٗا مِّنۡ أَهۡلِهَآ إِن يُرِيدَآ إِصۡلَٰحٗا يُوَفِّقِ ٱللَّهُ بَيۡنَهُمَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلِيمًا خَبِيرٗا
और यदि तुम्हें पति-पत्नी के बीच बिगाड़ का भय हो, तो एक फ़ैसला करनेवाला पुरुष के लोगों में से और एक फ़ैसला करनेवाला स्त्री के लोगों में से नियुक्त करो, यदि वे दोनों सुधार करना चाहेंगे, तो अल्लाह उनके बीच अनुकूलता पैदा कर देगा। निस्संदेह, अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है
Surah An-Nisa, Verse 35
۞وَٱعۡبُدُواْ ٱللَّهَ وَلَا تُشۡرِكُواْ بِهِۦ شَيۡـٔٗاۖ وَبِٱلۡوَٰلِدَيۡنِ إِحۡسَٰنٗا وَبِذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينِ وَٱلۡجَارِ ذِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡجَارِ ٱلۡجُنُبِ وَٱلصَّاحِبِ بِٱلۡجَنۢبِ وَٱبۡنِ ٱلسَّبِيلِ وَمَا مَلَكَتۡ أَيۡمَٰنُكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ مُخۡتَالٗا فَخُورًا
अल्लाह की बन्दगी करो और उसके साथ किसी को साझी न बनाओ और अच्छा व्यवहार करो माँ-बाप के साथ, नातेदारों, अनाथों और मुहताजों के साथ, नातेदार पड़ोसियों के साथ और अपरिचित पड़ोसियों के साथ और साथ रहनेवाले व्यक्ति के साथ और मुसाफ़िर के साथ और उनके साथ भी जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हों। अल्लाह ऐसे व्यक्ति को पसन्द नहीं करता, जो इतराता और डींगें मारता हो
Surah An-Nisa, Verse 36
ٱلَّذِينَ يَبۡخَلُونَ وَيَأۡمُرُونَ ٱلنَّاسَ بِٱلۡبُخۡلِ وَيَكۡتُمُونَ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۗ وَأَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٗا مُّهِينٗا
वे जो स्वयं कंजूसी करते है और लोगों को भी कंजूसी पर उभारते है और अल्लाह ने अपने उदार दान से जो कुछ उन्हें दे रखा होता है, उसे छिपाते है, जो हमने अकृतज्ञ लोगों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है
Surah An-Nisa, Verse 37
وَٱلَّذِينَ يُنفِقُونَ أَمۡوَٰلَهُمۡ رِئَآءَ ٱلنَّاسِ وَلَا يُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَلَا بِٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۗ وَمَن يَكُنِ ٱلشَّيۡطَٰنُ لَهُۥ قَرِينٗا فَسَآءَ قَرِينٗا
वे जो अपने माल लोगों को दिखाने के लिए ख़र्च करते है, न अल्लाह पर ईमान रखते है, न अन्तिम दिन पर, और जिस किसी का साथी शैतान हुआ, तो वह बहुत ही बुरा साथी है
Surah An-Nisa, Verse 38
وَمَاذَا عَلَيۡهِمۡ لَوۡ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَأَنفَقُواْ مِمَّا رَزَقَهُمُ ٱللَّهُۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِهِمۡ عَلِيمًا
उनका बिगड़ जाता, यदि वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाते और जो कुछ अल्लाह ने उन्हें दिया है, उसमें से ख़र्च करते है? अल्लाह उन्हें भली-भाँति जानता है
Surah An-Nisa, Verse 39
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَظۡلِمُ مِثۡقَالَ ذَرَّةٖۖ وَإِن تَكُ حَسَنَةٗ يُضَٰعِفۡهَا وَيُؤۡتِ مِن لَّدُنۡهُ أَجۡرًا عَظِيمٗا
निस्संदेह अल्लाह रत्ती-भर भी ज़ुल्म नहीं करता और यदि कोई एक नेकी हो तो वह उसे कई गुना बढ़ा देगा और अपनी ओर से बड़ा बदला देगा
Surah An-Nisa, Verse 40
فَكَيۡفَ إِذَا جِئۡنَا مِن كُلِّ أُمَّةِۭ بِشَهِيدٖ وَجِئۡنَا بِكَ عَلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ شَهِيدٗا
फिर क्या हाल होगा जब हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह लाएँगे और स्वयं तुम्हें इन लोगों के मुक़ाबले में गवाह बनाकर पेश करेंगे
Surah An-Nisa, Verse 41
يَوۡمَئِذٖ يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَعَصَوُاْ ٱلرَّسُولَ لَوۡ تُسَوَّىٰ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضُ وَلَا يَكۡتُمُونَ ٱللَّهَ حَدِيثٗا
उस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया होगा और रसूल की अवज्ञा की होगी, यही चाहेंगे कि किसी तरह धरती में समोकर उसे बराबर कर दिया जाए। वे अल्लाह से कोई बात भी न छिपा सकेंगे
Surah An-Nisa, Verse 42
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَقۡرَبُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنتُمۡ سُكَٰرَىٰ حَتَّىٰ تَعۡلَمُواْ مَا تَقُولُونَ وَلَا جُنُبًا إِلَّا عَابِرِي سَبِيلٍ حَتَّىٰ تَغۡتَسِلُواْۚ وَإِن كُنتُم مَّرۡضَىٰٓ أَوۡ عَلَىٰ سَفَرٍ أَوۡ جَآءَ أَحَدٞ مِّنكُم مِّنَ ٱلۡغَآئِطِ أَوۡ لَٰمَسۡتُمُ ٱلنِّسَآءَ فَلَمۡ تَجِدُواْ مَآءٗ فَتَيَمَّمُواْ صَعِيدٗا طَيِّبٗا فَٱمۡسَحُواْ بِوُجُوهِكُمۡ وَأَيۡدِيكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُورًا
ऐ ईमान लानेवालो! नशे की दशा में नमाज़ में व्यस्त न हो, जब तक कि तुम यह न जानने लगो कि तुम क्या कह रहे हो। और इसी प्रकार नापाकी की दशा में भी (नमाज़ में व्यस्त न हो), जब तक कि तुम स्नान न कर लो, सिवाय इसके कि तुम सफ़र में हो। और यदि तुम बीमार हो या सफ़र में हो, या तुममें से कोई शौच करके आए या तुमने स्त्रियों को हाथ लगाया हो, फिर तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से काम लो और उसपर हाथ मारकर अपने चहरे और हाथों पर मलो। निस्संदेह अल्लाह नर्मी से काम लेनेवाला, अत्यन्त क्षमाशील है
Surah An-Nisa, Verse 43
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يَشۡتَرُونَ ٱلضَّلَٰلَةَ وَيُرِيدُونَ أَن تَضِلُّواْ ٱلسَّبِيلَ
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें सौभाग्य प्रदान हुआ था अर्थात किताब दी गई थी? वे पथभ्रष्टता के खरीदार बने हुए है और चाहते है कि तुम भी रास्ते से भटक जाओ
Surah An-Nisa, Verse 44
وَٱللَّهُ أَعۡلَمُ بِأَعۡدَآئِكُمۡۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَلِيّٗا وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ نَصِيرٗا
अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं को भली-भाँति जानता है। अल्लाह एक संरक्षक के रूप में काफ़ी है और अल्लाह एक सहायक के रूप में भी काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 45
مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُواْ يُحَرِّفُونَ ٱلۡكَلِمَ عَن مَّوَاضِعِهِۦ وَيَقُولُونَ سَمِعۡنَا وَعَصَيۡنَا وَٱسۡمَعۡ غَيۡرَ مُسۡمَعٖ وَرَٰعِنَا لَيَّۢا بِأَلۡسِنَتِهِمۡ وَطَعۡنٗا فِي ٱلدِّينِۚ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ قَالُواْ سَمِعۡنَا وَأَطَعۡنَا وَٱسۡمَعۡ وَٱنظُرۡنَا لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡ وَأَقۡوَمَ وَلَٰكِن لَّعَنَهُمُ ٱللَّهُ بِكُفۡرِهِمۡ فَلَا يُؤۡمِنُونَ إِلَّا قَلِيلٗا
वे लोग जो यहूदी बन गए, वे शब्दों को उनके स्थानों से दूसरी ओर फेर देते है और कहते हैं, "समि'अना व 'असैना" (हमने सुना, लेकिन हम मानते नही); और "इसम'अ ग़ै-र मुसम'इन" (सुनो हालाँकि तुम सुनने के योग्य नहीं हो और "राइना" (हमारी ओर ध्यान दो) - यह वे अपनी ज़बानों को तोड़-मरोड़कर और दीन पर चोटें करते हुए कहते है। और यदि वे कहते, "समिअ'ना व अ-त'अना" (हमने सुना और माना) और "इसम'अ" (सुनो) और "उनज़ुरना" (हमारी ओर निगाह करो) तो यह उनके लिए अच्छा और अधिक ठीक होता। किन्तु उनपर तो उनके इनकार के कारण अल्लाह की फिटकार पड़ी हुई है। फिर वे ईमान थोड़े ही लाते है
Surah An-Nisa, Verse 46
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ ءَامِنُواْ بِمَا نَزَّلۡنَا مُصَدِّقٗا لِّمَا مَعَكُم مِّن قَبۡلِ أَن نَّطۡمِسَ وُجُوهٗا فَنَرُدَّهَا عَلَىٰٓ أَدۡبَارِهَآ أَوۡ نَلۡعَنَهُمۡ كَمَا لَعَنَّآ أَصۡحَٰبَ ٱلسَّبۡتِۚ وَكَانَ أَمۡرُ ٱللَّهِ مَفۡعُولًا
ऐ लोगों! जिन्हें किताब दी गई, उस चीज को मानो जो हमने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो स्वयं तुम्हारे पास है, इससे पहले कि हम चेहरों की रूपरेखा को मिटाकर रख दें और उन्हें उनके पीछ की ओर फेर दें या उनपर लानत करें, जिस प्रकार हमने सब्तवालों पर लानत की थी। और अल्लाह का आदेश तो लागू होकर ही रहता है
Surah An-Nisa, Verse 47
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغۡفِرُ أَن يُشۡرَكَ بِهِۦ وَيَغۡفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُۚ وَمَن يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱفۡتَرَىٰٓ إِثۡمًا عَظِيمًا
अल्लाह इसके क्षमा नहीं करेगा कि उसका साझी ठहराया जाए। किन्तु उससे नीचे दर्जे के अपराध को जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा और जिस किसी ने अल्लाह का साझी ठहराया, तो उसने एक बड़ा झूठ घड़ लिया
Surah An-Nisa, Verse 48
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يُزَكُّونَ أَنفُسَهُمۚ بَلِ ٱللَّهُ يُزَكِّي مَن يَشَآءُ وَلَا يُظۡلَمُونَ فَتِيلًا
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अपने को पूर्ण एवं शिष्ट होने का दावा करते हैं? (कोई यूँ ही शिष्ट नहीं हुआ करता) बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है, पूर्णता एवं शिष्टता प्रदान करता है। और उनके साथ तनिक भी अत्याचार नहीं किया जाता
Surah An-Nisa, Verse 49
ٱنظُرۡ كَيۡفَ يَفۡتَرُونَ عَلَى ٱللَّهِ ٱلۡكَذِبَۖ وَكَفَىٰ بِهِۦٓ إِثۡمٗا مُّبِينًا
देखो तो सही, वे अल्लाह पर कैसा झूठ मढ़ते हैं? खुले गुनाह के लिए तो यही पर्याप्त है
Surah An-Nisa, Verse 50
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡجِبۡتِ وَٱلطَّـٰغُوتِ وَيَقُولُونَ لِلَّذِينَ كَفَرُواْ هَـٰٓؤُلَآءِ أَهۡدَىٰ مِنَ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ سَبِيلًا
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें किताब का एक हिस्सा दिय् गया? वे अवास्तविक चीज़ो और ताग़ूत (बढ़ हुए सरकश) को मानते है। और अधर्मियों के विषय में कहते है, "ये ईमानवालों से बढ़कर मार्ग पर है।
Surah An-Nisa, Verse 51
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ لَعَنَهُمُ ٱللَّهُۖ وَمَن يَلۡعَنِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ نَصِيرًا
वही है जिनपर अल्लाह ने लातन की है, और जिसपर अल्लाह लानत कर दे, उसका तुम कोई सहायक कदापि न पाओगे
Surah An-Nisa, Verse 52
أَمۡ لَهُمۡ نَصِيبٞ مِّنَ ٱلۡمُلۡكِ فَإِذٗا لَّا يُؤۡتُونَ ٱلنَّاسَ نَقِيرًا
या बादशाही में इनका कोई हिस्सा है? फिर तो ये लोगों को फूटी कौड़ी तक भी न देते
Surah An-Nisa, Verse 53
أَمۡ يَحۡسُدُونَ ٱلنَّاسَ عَلَىٰ مَآ ءَاتَىٰهُمُ ٱللَّهُ مِن فَضۡلِهِۦۖ فَقَدۡ ءَاتَيۡنَآ ءَالَ إِبۡرَٰهِيمَ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَءَاتَيۡنَٰهُم مُّلۡكًا عَظِيمٗا
या ये लोगों से इसलिए ईर्ष्या करते है कि अल्लाह ने उन्हें अपने उदार दान से अनुग्रहित कर दिया? हमने तो इबराहीम के लोगों को किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) दी और उन्हें बड़ा राज्य प्रदान किया
Surah An-Nisa, Verse 54
فَمِنۡهُم مَّنۡ ءَامَنَ بِهِۦ وَمِنۡهُم مَّن صَدَّ عَنۡهُۚ وَكَفَىٰ بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا
फिर उनमें से कोई उसपर ईमान लाया और उसमें से किसी ने किनारा खीच लिया। और (ऐसे लोगों के लिए) जहन्नम की भड़कती आग ही काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 55
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِنَا سَوۡفَ نُصۡلِيهِمۡ نَارٗا كُلَّمَا نَضِجَتۡ جُلُودُهُم بَدَّلۡنَٰهُمۡ جُلُودًا غَيۡرَهَا لِيَذُوقُواْ ٱلۡعَذَابَۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَزِيزًا حَكِيمٗا
जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएँगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 56
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ سَنُدۡخِلُهُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ لَّهُمۡ فِيهَآ أَزۡوَٰجٞ مُّطَهَّرَةٞۖ وَنُدۡخِلُهُمۡ ظِلّٗا ظَلِيلًا
और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उन्हें हम ऐसे बाग़ो में दाखिल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी, जहाँ वे सदैव रहेंगे। उनके लिए वहाँ पाक जोड़े होंगे और हम उन्हें घनी छाँव में दाखिल करेंगे
Surah An-Nisa, Verse 57
۞إِنَّ ٱللَّهَ يَأۡمُرُكُمۡ أَن تُؤَدُّواْ ٱلۡأَمَٰنَٰتِ إِلَىٰٓ أَهۡلِهَا وَإِذَا حَكَمۡتُم بَيۡنَ ٱلنَّاسِ أَن تَحۡكُمُواْ بِٱلۡعَدۡلِۚ إِنَّ ٱللَّهَ نِعِمَّا يَعِظُكُم بِهِۦٓۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ سَمِيعَۢا بَصِيرٗا
अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अमानतों को उनके हक़दारों तक पहुँचा दिया करो। और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो, तो न्यायपूर्वक फ़ैसला करो। अल्लाह तुम्हें कितनी अच्छी नसीहत करता है। निस्सदेह, अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है
Surah An-Nisa, Verse 58
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُواْ ٱلرَّسُولَ وَأُوْلِي ٱلۡأَمۡرِ مِنكُمۡۖ فَإِن تَنَٰزَعۡتُمۡ فِي شَيۡءٖ فَرُدُّوهُ إِلَى ٱللَّهِ وَٱلرَّسُولِ إِن كُنتُمۡ تُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِۚ ذَٰلِكَ خَيۡرٞ وَأَحۡسَنُ تَأۡوِيلًا
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल का कहना मानो और उनका भी कहना मानो जो तुममें अधिकारी लोग है। फिर यदि तुम्हारे बीच किसी मामले में झगड़ा हो जाए, तो उसे तुम अल्लाह और रसूल की ओर लौटाओ, यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हो। यदि उत्तम है और परिणाम की स्पष्ट से भी अच्छा है
Surah An-Nisa, Verse 59
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ يَزۡعُمُونَ أَنَّهُمۡ ءَامَنُواْ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَ يُرِيدُونَ أَن يَتَحَاكَمُوٓاْ إِلَى ٱلطَّـٰغُوتِ وَقَدۡ أُمِرُوٓاْ أَن يَكۡفُرُواْ بِهِۦۖ وَيُرِيدُ ٱلشَّيۡطَٰنُ أَن يُضِلَّهُمۡ ضَلَٰلَۢا بَعِيدٗا
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जो दावा तो करते है कि वे उस चीज़ पर ईमान रखते हैं, जो तुम्हारी ओर उतारी गई है और तुमसे पहले उतारी गई है। और चाहते है कि अपना मामला ताग़ूत के पास ले जाकर फ़ैसला कराएँ, जबकि उन्हें हुक्म दिया गया है कि वे उसका इनकार करें? परन्तु शैतान तो उन्हें भटकाकर बहुत दूर डाल देना चाहता है
Surah An-Nisa, Verse 60
وَإِذَا قِيلَ لَهُمۡ تَعَالَوۡاْ إِلَىٰ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ وَإِلَى ٱلرَّسُولِ رَأَيۡتَ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ يَصُدُّونَ عَنكَ صُدُودٗا
और जब उनसे कहा जाता है कि आओ उस चीज़ की ओर जो अल्लाह ने उतारी है और आओ रसूल की ओरस तो तुम मुनाफ़िको (कपटाचारियों) को देखते हो कि वे तुमसे कतराकर रह जाते है
Surah An-Nisa, Verse 61
فَكَيۡفَ إِذَآ أَصَٰبَتۡهُم مُّصِيبَةُۢ بِمَا قَدَّمَتۡ أَيۡدِيهِمۡ ثُمَّ جَآءُوكَ يَحۡلِفُونَ بِٱللَّهِ إِنۡ أَرَدۡنَآ إِلَّآ إِحۡسَٰنٗا وَتَوۡفِيقًا
फिर कैसी बात होगी कि जब उनकी अपनी करतूतों के कारण उनपर बड़ी मुसीबत आ पडेगी। फिर वे तुम्हारे पास अल्लाह की क़समें खाते हुए आते है कि हम तो केवल भलाई और बनाव चाहते थे
Surah An-Nisa, Verse 62
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَعۡلَمُ ٱللَّهُ مَا فِي قُلُوبِهِمۡ فَأَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ وَعِظۡهُمۡ وَقُل لَّهُمۡ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ قَوۡلَۢا بَلِيغٗا
ये वे लोग है जिनके दिलों की बात अल्लाह भली-भाँति जानता है; तो तुम उन्हें जाने दो और उन्हें समझओ और उनसे उनके विषय में वह बात कहो जो प्रभावकारी हो
Surah An-Nisa, Verse 63
وَمَآ أَرۡسَلۡنَا مِن رَّسُولٍ إِلَّا لِيُطَاعَ بِإِذۡنِ ٱللَّهِۚ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ إِذ ظَّلَمُوٓاْ أَنفُسَهُمۡ جَآءُوكَ فَٱسۡتَغۡفَرُواْ ٱللَّهَ وَٱسۡتَغۡفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ لَوَجَدُواْ ٱللَّهَ تَوَّابٗا رَّحِيمٗا
हमने जो रसूल भी भेजा, इसलिए भेजा कि अल्लाह की अनुमति से उसकी आज्ञा का पालन किया जाए। और यदि यह उस समय, जबकि इन्होंने स्वयं अपने ऊपर ज़ुल्म किया था, तुम्हारे पास आ जाते और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करता तो निश्चय ही वे अल्लाह को अत्यन्त क्षमाशील और दयावान पाते
Surah An-Nisa, Verse 64
فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤۡمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيۡنَهُمۡ ثُمَّ لَا يَجِدُواْ فِيٓ أَنفُسِهِمۡ حَرَجٗا مِّمَّا قَضَيۡتَ وَيُسَلِّمُواْ تَسۡلِيمٗا
तो तुम्हें तुम्हारे रब की कसम! ये ईमानवाले नहीं हो सकते जब तक कि अपने आपस के झगड़ो में ये तुमसे फ़ैसला न कराएँ। फिर जो फ़ैसला तुम कर दो, उसपर ये अपने दिलों में कोई तंगी न पाएँ और पूरी तरह मान ले
Surah An-Nisa, Verse 65
وَلَوۡ أَنَّا كَتَبۡنَا عَلَيۡهِمۡ أَنِ ٱقۡتُلُوٓاْ أَنفُسَكُمۡ أَوِ ٱخۡرُجُواْ مِن دِيَٰرِكُم مَّا فَعَلُوهُ إِلَّا قَلِيلٞ مِّنۡهُمۡۖ وَلَوۡ أَنَّهُمۡ فَعَلُواْ مَا يُوعَظُونَ بِهِۦ لَكَانَ خَيۡرٗا لَّهُمۡ وَأَشَدَّ تَثۡبِيتٗا
और यदि कहीं हमने उन्हें आदेश दिया होता कि "अपनों को क़त्ल करो या अपने घरों से निकल जाओ।" तो उनमें से थोड़े ही ऐसा करते। हालाँकि जो नसीहत उन्हें दी जाती है, अगर वे उसे व्यवहार में लाते तो यह बात उनके लिए अच्छी होती और ज़्यादा ज़माव पैदा करनेवाली होती
Surah An-Nisa, Verse 66
وَإِذٗا لَّأٓتَيۡنَٰهُم مِّن لَّدُنَّآ أَجۡرًا عَظِيمٗا
और उस समय हम उन्हें अपनी ओर से निश्चय ही बड़ा बदला प्रदान करते
Surah An-Nisa, Verse 67
وَلَهَدَيۡنَٰهُمۡ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا
और उन्हें सीधे मार्ग पर लगा देते
Surah An-Nisa, Verse 68
وَمَن يُطِعِ ٱللَّهَ وَٱلرَّسُولَ فَأُوْلَـٰٓئِكَ مَعَ ٱلَّذِينَ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ وَٱلصِّدِّيقِينَ وَٱلشُّهَدَآءِ وَٱلصَّـٰلِحِينَۚ وَحَسُنَ أُوْلَـٰٓئِكَ رَفِيقٗا
जो अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन करता है, तो ऐसे ही लोग उन लोगों के साथ है जिनपर अल्लाह की कृपा स्पष्ट रही है - वे नबी, सिद्दीक़, शहीद और अच्छे लोग है। और वे कितने अच्छे साथी है
Surah An-Nisa, Verse 69
ذَٰلِكَ ٱلۡفَضۡلُ مِنَ ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ عَلِيمٗا
यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है। और काफ़ी है अल्लाह, इस हाल में कि वह भली-भाँति जानता है
Surah An-Nisa, Verse 70
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ خُذُواْ حِذۡرَكُمۡ فَٱنفِرُواْ ثُبَاتٍ أَوِ ٱنفِرُواْ جَمِيعٗا
ऐ ईमान लानेवालो! अपने बचाव की साम्रगी (हथियार आदि) सँभालो। फिर या तो अलग-अलग टुकड़ियों में निकलो या इकट्ठे होकर निकलो
Surah An-Nisa, Verse 71
وَإِنَّ مِنكُمۡ لَمَن لَّيُبَطِّئَنَّ فَإِنۡ أَصَٰبَتۡكُم مُّصِيبَةٞ قَالَ قَدۡ أَنۡعَمَ ٱللَّهُ عَلَيَّ إِذۡ لَمۡ أَكُن مَّعَهُمۡ شَهِيدٗا
तुमसे से कोई ऐसा भी है जो ढीला पड़ जाता है, फिर यदि तुमपर कोई मुसीबत आए तो कहने लगता है कि अल्लाह ने मुझपर कृपा की कि मैं इन लोगों के साथ न गया
Surah An-Nisa, Verse 72
وَلَئِنۡ أَصَٰبَكُمۡ فَضۡلٞ مِّنَ ٱللَّهِ لَيَقُولَنَّ كَأَن لَّمۡ تَكُنۢ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُۥ مَوَدَّةٞ يَٰلَيۡتَنِي كُنتُ مَعَهُمۡ فَأَفُوزَ فَوۡزًا عَظِيمٗا
परन्तु यदि अल्लाह की ओर से तुमपर कोई उदार अनुग्रह हो तो वह इस प्रकार से जैसे तुम्हारे और उनके बीच प्रेम का कोई सम्बन्ध ही नहीं, कहता है, "क्या ही अच्छा होता कि मैं भी उनके साथ होता, तो बड़ी सफलता प्राप्त करता।
Surah An-Nisa, Verse 73
۞فَلۡيُقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ ٱلَّذِينَ يَشۡرُونَ ٱلۡحَيَوٰةَ ٱلدُّنۡيَا بِٱلۡأٓخِرَةِۚ وَمَن يُقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَيُقۡتَلۡ أَوۡ يَغۡلِبۡ فَسَوۡفَ نُؤۡتِيهِ أَجۡرًا عَظِيمٗا
तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे
Surah An-Nisa, Verse 74
وَمَا لَكُمۡ لَا تُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ وَٱلۡمُسۡتَضۡعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلۡوِلۡدَٰنِ ٱلَّذِينَ يَقُولُونَ رَبَّنَآ أَخۡرِجۡنَا مِنۡ هَٰذِهِ ٱلۡقَرۡيَةِ ٱلظَّالِمِ أَهۡلُهَا وَٱجۡعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ وَلِيّٗا وَٱجۡعَل لَّنَا مِن لَّدُنكَ نَصِيرًا
तुम्हें क्या हुआ है कि अल्लाह के मार्ग में और उन कमज़ोर पुरुषों, औरतों और बच्चों के लिए युद्ध न करो, जो प्रार्थनाएँ करते है कि "हमारे रब! तू हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग अत्याचारी है। और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई समर्थक नियुक्त कर और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई सहायक नियुक्त कर।
Surah An-Nisa, Verse 75
ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ يُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۖ وَٱلَّذِينَ كَفَرُواْ يُقَٰتِلُونَ فِي سَبِيلِ ٱلطَّـٰغُوتِ فَقَٰتِلُوٓاْ أَوۡلِيَآءَ ٱلشَّيۡطَٰنِۖ إِنَّ كَيۡدَ ٱلشَّيۡطَٰنِ كَانَ ضَعِيفًا
ईमान लानेवाले तो अल्लाह के मार्ग में युद्ध करते है और अधर्मी लोग ताग़ूत (बढ़े हुए सरकश) के मार्ग में युद्ध करते है। अतः तुम शैतान के मित्रों से लड़ो। निश्चय ही, शैतान की चाल बहुत कमज़ोर होती है
Surah An-Nisa, Verse 76
أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ قِيلَ لَهُمۡ كُفُّوٓاْ أَيۡدِيَكُمۡ وَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتُواْ ٱلزَّكَوٰةَ فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيۡهِمُ ٱلۡقِتَالُ إِذَا فَرِيقٞ مِّنۡهُمۡ يَخۡشَوۡنَ ٱلنَّاسَ كَخَشۡيَةِ ٱللَّهِ أَوۡ أَشَدَّ خَشۡيَةٗۚ وَقَالُواْ رَبَّنَا لِمَ كَتَبۡتَ عَلَيۡنَا ٱلۡقِتَالَ لَوۡلَآ أَخَّرۡتَنَآ إِلَىٰٓ أَجَلٖ قَرِيبٖۗ قُلۡ مَتَٰعُ ٱلدُّنۡيَا قَلِيلٞ وَٱلۡأٓخِرَةُ خَيۡرٞ لِّمَنِ ٱتَّقَىٰ وَلَا تُظۡلَمُونَ فَتِيلًا
क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो? फिर जब उन्हें युद्ध का आदेश दिया गया तो क्या देखते है कि उनमें से कुछ लोगों का हाल यह है कि वे लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे अल्लाह का डर हो या यह डर उससे भी बढ़कर हो। कहने लगे, "हमारे रब! तूने हमपर युद्ध क्यों अनिवार्य कर दिया? क्यों न थोड़ी मुहलत हमें और दी?" कह दो, "दुनिया की पूँजी बहुत थोड़ी है, जबकि आख़िरत उस व्यक्ति के अधिक अच्छी है जो अल्लाह का डर रखता हो और तुम्हारे साथ तनिक भी अन्याय न किया जाएगा।
Surah An-Nisa, Verse 77
أَيۡنَمَا تَكُونُواْ يُدۡرِككُّمُ ٱلۡمَوۡتُ وَلَوۡ كُنتُمۡ فِي بُرُوجٖ مُّشَيَّدَةٖۗ وَإِن تُصِبۡهُمۡ حَسَنَةٞ يَقُولُواْ هَٰذِهِۦ مِنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ وَإِن تُصِبۡهُمۡ سَيِّئَةٞ يَقُولُواْ هَٰذِهِۦ مِنۡ عِندِكَۚ قُلۡ كُلّٞ مِّنۡ عِندِ ٱللَّهِۖ فَمَالِ هَـٰٓؤُلَآءِ ٱلۡقَوۡمِ لَا يَكَادُونَ يَفۡقَهُونَ حَدِيثٗا
तुम जहाँ कहीं भी होंगे, मृत्यु तो तुम्हें आकर रहेगी; चाहे तुम मज़बूत बुर्जों (क़िलों) में ही (क्यों न) हो।" यदि उन्हें कोई अच्छी हालत पेश आती है तो कहते है, "यह तो अल्लाह के पास से है।" परन्तु यदि उन्हें कोई बुरी हालत पेश आती है तो कहते है, "यह तुम्हारे कारण है।" कह दो, "हरेक चीज़ अल्लाह के पास से है।" आख़िर इन लोगों को क्या हो गया कि ये ऐसे नहीं लगते कि कोई बात समझ सकें
Surah An-Nisa, Verse 78
مَّآ أَصَابَكَ مِنۡ حَسَنَةٖ فَمِنَ ٱللَّهِۖ وَمَآ أَصَابَكَ مِن سَيِّئَةٖ فَمِن نَّفۡسِكَۚ وَأَرۡسَلۡنَٰكَ لِلنَّاسِ رَسُولٗاۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدٗا
तुम्हें जो भी भलाई प्राप्त" होती है, वह अल्लाह को ओर से है और जो बुरी हालत तुम्हें पेश आ जाती है तो वह तुम्हारे अपने ही कारण पेश आती है। हमने तुम्हें लोगों के लिए रसूल बनाकर भेजा है और (इसपर) अल्लाह का गवाह होना काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 79
مَّن يُطِعِ ٱلرَّسُولَ فَقَدۡ أَطَاعَ ٱللَّهَۖ وَمَن تَوَلَّىٰ فَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ عَلَيۡهِمۡ حَفِيظٗا
जिसने रसूल की आज्ञा का पालन किया, उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और जिसने मुँह मोड़ा तो हमने तुम्हें ऐसे लोगों पर कोई रखवाला बनाकर तो नहीं भेजा है
Surah An-Nisa, Verse 80
وَيَقُولُونَ طَاعَةٞ فَإِذَا بَرَزُواْ مِنۡ عِندِكَ بَيَّتَ طَآئِفَةٞ مِّنۡهُمۡ غَيۡرَ ٱلَّذِي تَقُولُۖ وَٱللَّهُ يَكۡتُبُ مَا يُبَيِّتُونَۖ فَأَعۡرِضۡ عَنۡهُمۡ وَتَوَكَّلۡ عَلَى ٱللَّهِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا
और वे दावा तो आज्ञापालन का करते है, परन्तु जब तुम्हारे पास से हटते है तो उनमें एक गिरोह अपने कथन के विपरीत रात में षड्यंत्र करता है । जो कुछ वे षड्यंत्र करते है, अल्लाह उसे लिख रहा है। तो तुम उनसे रुख़ फेर लो और अल्लाह पर भरोसा रखो, और अल्लाह का कार्यसाधक होना काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 81
أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ ٱلۡقُرۡءَانَۚ وَلَوۡ كَانَ مِنۡ عِندِ غَيۡرِ ٱللَّهِ لَوَجَدُواْ فِيهِ ٱخۡتِلَٰفٗا كَثِيرٗا
क्या वे क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करते? यदि यह अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर से होता, तो निश्चय ही वे इसमें बहुत-सी बेमेल बातें पाते
Surah An-Nisa, Verse 82
وَإِذَا جَآءَهُمۡ أَمۡرٞ مِّنَ ٱلۡأَمۡنِ أَوِ ٱلۡخَوۡفِ أَذَاعُواْ بِهِۦۖ وَلَوۡ رَدُّوهُ إِلَى ٱلرَّسُولِ وَإِلَىٰٓ أُوْلِي ٱلۡأَمۡرِ مِنۡهُمۡ لَعَلِمَهُ ٱلَّذِينَ يَسۡتَنۢبِطُونَهُۥ مِنۡهُمۡۗ وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكُمۡ وَرَحۡمَتُهُۥ لَٱتَّبَعۡتُمُ ٱلشَّيۡطَٰنَ إِلَّا قَلِيلٗا
जब उनके पास निश्चिन्तता या भय की कोई बात पहुचती है तो उसे फैला देते है, हालाँकि अगर वे उसे रसूल और अपने समुदाय के उतरदायी व्यक्तियों तक पहुँचाते तो उसे वे लोग जान लेते जो उनमें उसकी जाँच कर सकते है। और यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती, तो थोड़े लोगों के सिवा तुम सब शैतान के पीछे चलने लग जाते
Surah An-Nisa, Verse 83
فَقَٰتِلۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ لَا تُكَلَّفُ إِلَّا نَفۡسَكَۚ وَحَرِّضِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَكُفَّ بَأۡسَ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْۚ وَٱللَّهُ أَشَدُّ بَأۡسٗا وَأَشَدُّ تَنكِيلٗا
अतः अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो - तुमपर तो बस तुम्हारी अपनी ही ज़िम्मेदारी है - और ईमानवालों की कमज़ोरियो को दूर करो और उन्हें (युद्ध के लिए) उभारो। इसकी बहुत सम्भावना है कि अल्लाह इनकार करनेवालों के ज़ोर को रोक लगा दे। अल्लाह बड़ा ज़ोरवाला और कठोर दंड देनेवाला है
Surah An-Nisa, Verse 84
مَّن يَشۡفَعۡ شَفَٰعَةً حَسَنَةٗ يَكُن لَّهُۥ نَصِيبٞ مِّنۡهَاۖ وَمَن يَشۡفَعۡ شَفَٰعَةٗ سَيِّئَةٗ يَكُن لَّهُۥ كِفۡلٞ مِّنۡهَاۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٖ مُّقِيتٗا
जो कोई अच्छी सिफ़ारिश करेगा, उसे उसके कारण उसका प्रतिदान मिलेगा और जो बुरी सिफ़ारिश करेगा, तो उसके कारँ उसका बोझ उसपर पड़कर रहेगा। अल्लाह को तो हर चीज़ पर क़ाबू हासिल है
Surah An-Nisa, Verse 85
وَإِذَا حُيِّيتُم بِتَحِيَّةٖ فَحَيُّواْ بِأَحۡسَنَ مِنۡهَآ أَوۡ رُدُّوهَآۗ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَلَىٰ كُلِّ شَيۡءٍ حَسِيبًا
और तुम्हें जब सलामती की कोई दुआ दी जाए, तो तुम सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो। निश्चय ही, अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है
Surah An-Nisa, Verse 86
ٱللَّهُ لَآ إِلَٰهَ إِلَّا هُوَۚ لَيَجۡمَعَنَّكُمۡ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَا رَيۡبَ فِيهِۗ وَمَنۡ أَصۡدَقُ مِنَ ٱللَّهِ حَدِيثٗا
अल्लाह के सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं। वह तुम्हें क़ियामत के दिन की ओर ले जाकर इकट्ठा करके रहेगा, जिसके आने में कोई संदेह नहीं, और अल्लाह से बढ़कर सच्ची बात और किसकी हो सकती है
Surah An-Nisa, Verse 87
۞فَمَا لَكُمۡ فِي ٱلۡمُنَٰفِقِينَ فِئَتَيۡنِ وَٱللَّهُ أَرۡكَسَهُم بِمَا كَسَبُوٓاْۚ أَتُرِيدُونَ أَن تَهۡدُواْ مَنۡ أَضَلَّ ٱللَّهُۖ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلٗا
फिर तुम्हें क्या हो गया है कि कपटाचारियों (मुनाफ़िक़ो) के विषय में तुम दो गिरोह हो रहे हो, यद्यपि अल्लाह ने तो उनकी करतूतों के कारण उन्हें उल्टा फेर दिया है? क्या तुम उसे मार्ग पर लाना चाहते हो जिसे अल्लाह ने गुमराह छोड़ दिया है? हालाँकि जिसे अल्लाह मार्ग न दिखाए, उसके लिए तुम कदापि कोई मार्ग नहीं पा सकते
Surah An-Nisa, Verse 88
وَدُّواْ لَوۡ تَكۡفُرُونَ كَمَا كَفَرُواْ فَتَكُونُونَ سَوَآءٗۖ فَلَا تَتَّخِذُواْ مِنۡهُمۡ أَوۡلِيَآءَ حَتَّىٰ يُهَاجِرُواْ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِۚ فَإِن تَوَلَّوۡاْ فَخُذُوهُمۡ وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَيۡثُ وَجَدتُّمُوهُمۡۖ وَلَا تَتَّخِذُواْ مِنۡهُمۡ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرًا
वे तो चाहते है कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी है, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घरबार न छोड़े। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कही भी उन्हें पाओ - तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक
Surah An-Nisa, Verse 89
إِلَّا ٱلَّذِينَ يَصِلُونَ إِلَىٰ قَوۡمِۭ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُم مِّيثَٰقٌ أَوۡ جَآءُوكُمۡ حَصِرَتۡ صُدُورُهُمۡ أَن يُقَٰتِلُوكُمۡ أَوۡ يُقَٰتِلُواْ قَوۡمَهُمۡۚ وَلَوۡ شَآءَ ٱللَّهُ لَسَلَّطَهُمۡ عَلَيۡكُمۡ فَلَقَٰتَلُوكُمۡۚ فَإِنِ ٱعۡتَزَلُوكُمۡ فَلَمۡ يُقَٰتِلُوكُمۡ وَأَلۡقَوۡاْ إِلَيۡكُمُ ٱلسَّلَمَ فَمَا جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمۡ عَلَيۡهِمۡ سَبِيلٗا
सिवाय उन लोगों के जो ऐसे लोगों से सम्बन्ध रखते हों, जिनसे तुम्हारे और उनकी बीच कोई समझौता हो या वे तुम्हारे पास इस दशा में आएँ कि उनके दिल इससे तंग हो रहे हों कि वे तुमसे लड़े या अपने लोगों से लड़ाई करें। यदि अल्लाह चाहता तो उन्हें तुमपर क़ाबू दे देता। फिर तो वे तुमसे अवश्य लड़ते; तो यदि वे तुमसे अलग रहें और तुमसे न लड़ें और संधि के लिए तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाएँ तो उनके विरुद्ध अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई रास्ता नहीं रखा है
Surah An-Nisa, Verse 90
سَتَجِدُونَ ءَاخَرِينَ يُرِيدُونَ أَن يَأۡمَنُوكُمۡ وَيَأۡمَنُواْ قَوۡمَهُمۡ كُلَّ مَا رُدُّوٓاْ إِلَى ٱلۡفِتۡنَةِ أُرۡكِسُواْ فِيهَاۚ فَإِن لَّمۡ يَعۡتَزِلُوكُمۡ وَيُلۡقُوٓاْ إِلَيۡكُمُ ٱلسَّلَمَ وَيَكُفُّوٓاْ أَيۡدِيَهُمۡ فَخُذُوهُمۡ وَٱقۡتُلُوهُمۡ حَيۡثُ ثَقِفۡتُمُوهُمۡۚ وَأُوْلَـٰٓئِكُمۡ جَعَلۡنَا لَكُمۡ عَلَيۡهِمۡ سُلۡطَٰنٗا مُّبِينٗا
अब तुम कुछ ऐसे लोगों को भी पाओगे, जो चाहते है कि तुम्हारी ओर से निश्चिन्त होकर रहें और अपने लोगों की ओर से भी निश्चिन्त होकर रहे। परन्तु जब भी वे फ़साद और उपद्रव की ओर फेरे गए तो वे उसी में औधे जो गिरे। तो यदि वे तुमसे अलग-थलग न रहें और तुम्हारी ओर सुलह का हाथ न बढ़ाएँ, और अपने हाथ न रोकें, तो तुम उन्हें पकड़ो और क़त्ल करो, जहाँ कहीं भी तुम उन्हें पाओ। उनके विरुद्ध हमने तुम्हें खुला अधिकार दे रखा है
Surah An-Nisa, Verse 91
وَمَا كَانَ لِمُؤۡمِنٍ أَن يَقۡتُلَ مُؤۡمِنًا إِلَّا خَطَـٔٗاۚ وَمَن قَتَلَ مُؤۡمِنًا خَطَـٔٗا فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖ وَدِيَةٞ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦٓ إِلَّآ أَن يَصَّدَّقُواْۚ فَإِن كَانَ مِن قَوۡمٍ عَدُوّٖ لَّكُمۡ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖۖ وَإِن كَانَ مِن قَوۡمِۭ بَيۡنَكُمۡ وَبَيۡنَهُم مِّيثَٰقٞ فَدِيَةٞ مُّسَلَّمَةٌ إِلَىٰٓ أَهۡلِهِۦ وَتَحۡرِيرُ رَقَبَةٖ مُّؤۡمِنَةٖۖ فَمَن لَّمۡ يَجِدۡ فَصِيَامُ شَهۡرَيۡنِ مُتَتَابِعَيۡنِ تَوۡبَةٗ مِّنَ ٱللَّهِۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا
किसी ईमानवाले का यह काम नहीं कि वह किसी ईमानवाले का हत्या करे, भूल-चूक की बात और है। और यदि कोई क्यक्ति यदि ग़लती से किसी ईमानवाले की हत्या कर दे, तो एक मोमिन ग़ुलाम को आज़ाद करना होगा और अर्थदंड उस (मारे गए क्यक्ति) के घरवालों को सौंपा जाए। यह और बात है कि वे अपनी ख़ुशी से छोड़ दें। और यदि वह उन लोगों में से हो, जो तुम्हारे शत्रु हों और वह (मारा जानेवाला) स्वयं मोमिन रहा तो एक मोमिन को ग़ुलामी से आज़ाद करना होगा। और यदि वह उन लोगों में से हो कि तुम्हारे और उनके बीच कोई संधि और समझौता हो, तो अर्थदंड उसके घरवालों को सौंपा जाए और एक मोमिन को ग़ुलामी से आज़ाद करना होगा। लेकिन जो (ग़ुलाम) न पाए तो वह निरन्तर दो मास के रोज़े रखे। यह अल्लाह की ओर से निश्चित किया हुआ उसकी तरफ़ पलट आने का तरीक़ा है। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 92
وَمَن يَقۡتُلۡ مُؤۡمِنٗا مُّتَعَمِّدٗا فَجَزَآؤُهُۥ جَهَنَّمُ خَٰلِدٗا فِيهَا وَغَضِبَ ٱللَّهُ عَلَيۡهِ وَلَعَنَهُۥ وَأَعَدَّ لَهُۥ عَذَابًا عَظِيمٗا
और जो व्यक्ति जान-बूझकर किसी मोमिन की हत्या करे, तो उसका बदला जहन्नम है, जिसमें वह सदा रहेगा; उसपर अल्लाह का प्रकोप और उसकी फिटकार है और उसके लिए अल्लाह ने बड़ी यातना तैयार कर रखी है
Surah An-Nisa, Verse 93
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ إِذَا ضَرَبۡتُمۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ فَتَبَيَّنُواْ وَلَا تَقُولُواْ لِمَنۡ أَلۡقَىٰٓ إِلَيۡكُمُ ٱلسَّلَٰمَ لَسۡتَ مُؤۡمِنٗا تَبۡتَغُونَ عَرَضَ ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا فَعِندَ ٱللَّهِ مَغَانِمُ كَثِيرَةٞۚ كَذَٰلِكَ كُنتُم مِّن قَبۡلُ فَمَنَّ ٱللَّهُ عَلَيۡكُمۡ فَتَبَيَّنُوٓاْۚ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا
ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम अल्लाह के मार्ग से निकलो तो अच्छी तरह पता लगा लो और जो तुम्हें सलाम करे, उससे यह न कहो कि तुम ईमान नहीं रखते, और इससे तुम्हारा ध्येय यह हो कि सांसारिक जीवन का माल प्राप्त करो। अल्लाह ने तुमपर उपकार किया, जो अच्छी तरह पता लगा लिया करो। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है
Surah An-Nisa, Verse 94
لَّا يَسۡتَوِي ٱلۡقَٰعِدُونَ مِنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ غَيۡرُ أُوْلِي ٱلضَّرَرِ وَٱلۡمُجَٰهِدُونَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡۚ فَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلۡمُجَٰهِدِينَ بِأَمۡوَٰلِهِمۡ وَأَنفُسِهِمۡ عَلَى ٱلۡقَٰعِدِينَ دَرَجَةٗۚ وَكُلّٗا وَعَدَ ٱللَّهُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَفَضَّلَ ٱللَّهُ ٱلۡمُجَٰهِدِينَ عَلَى ٱلۡقَٰعِدِينَ أَجۡرًا عَظِيمٗا
ईमानवालों में से वे लोग जो बिना किसी कारण के बैठे रहते है और जो अल्लाह के मार्ग में अपने धन और प्राणों के साथ जी-तोड़ कोशिश करते है, दोनों समान नहीं हो सकते। अल्लाह ने बैठे रहनेवालों की अपेक्षा अपने धन और प्राणों से जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का दर्जा बढ़ा रखा है। यद्यपि प्रत्यके के लिए अल्लाह ने अच्छे बदले का वचन दिया है। परन्तु अल्लाह ने जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का बड़ा बदला रखा है
Surah An-Nisa, Verse 95
دَرَجَٰتٖ مِّنۡهُ وَمَغۡفِرَةٗ وَرَحۡمَةٗۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمًا
उसकी ओर से दर्जे है और क्षमा और दयालुता है। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 96
إِنَّ ٱلَّذِينَ تَوَفَّىٰهُمُ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ ظَالِمِيٓ أَنفُسِهِمۡ قَالُواْ فِيمَ كُنتُمۡۖ قَالُواْ كُنَّا مُسۡتَضۡعَفِينَ فِي ٱلۡأَرۡضِۚ قَالُوٓاْ أَلَمۡ تَكُنۡ أَرۡضُ ٱللَّهِ وَٰسِعَةٗ فَتُهَاجِرُواْ فِيهَاۚ فَأُوْلَـٰٓئِكَ مَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ وَسَآءَتۡ مَصِيرًا
जो लोग अपने-आप पर अत्याचार करते है, जब फ़रिश्ते उस दशा में उनके प्राण ग्रस्त कर लेते है, तो कहते है, "तुम किस दशा में पड़े रहे?" वे कहते है, "हम धरती में निर्बल और बेबस थे।" फ़रिश्ते कहते है, "क्या अल्लाह की धरती विस्तृत न थी कि तुम उसमें घर-बार छोड़कर कहीं ओर चले जाते?" तो ये वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है। - और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है
Surah An-Nisa, Verse 97
إِلَّا ٱلۡمُسۡتَضۡعَفِينَ مِنَ ٱلرِّجَالِ وَٱلنِّسَآءِ وَٱلۡوِلۡدَٰنِ لَا يَسۡتَطِيعُونَ حِيلَةٗ وَلَا يَهۡتَدُونَ سَبِيلٗا
सिवाय उन बेबस पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के जिनके बस में कोई उपाय नहीं और न कोई राह पा रहे है
Surah An-Nisa, Verse 98
فَأُوْلَـٰٓئِكَ عَسَى ٱللَّهُ أَن يَعۡفُوَ عَنۡهُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَفُوًّا غَفُورٗا
तो सम्भव है कि अल्लाह ऐसे लोगों को छोड़ दे; क्योंकि अल्लाह छोड़ देनेवाला और बड़ा क्षमाशील है
Surah An-Nisa, Verse 99
۞وَمَن يُهَاجِرۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ يَجِدۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُرَٰغَمٗا كَثِيرٗا وَسَعَةٗۚ وَمَن يَخۡرُجۡ مِنۢ بَيۡتِهِۦ مُهَاجِرًا إِلَى ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ يُدۡرِكۡهُ ٱلۡمَوۡتُ فَقَدۡ وَقَعَ أَجۡرُهُۥ عَلَى ٱللَّهِۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
जो कोई अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़कर निकलेगा, वह धरती में शरण लेने की बहुत जगह और समाई पाएगा, और जो कोई अपने घर में सब कुछ छोड़कर अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसका प्रतिदान अल्लाह के ज़िम्मे हो गया। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 100
وَإِذَا ضَرَبۡتُمۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ فَلَيۡسَ عَلَيۡكُمۡ جُنَاحٌ أَن تَقۡصُرُواْ مِنَ ٱلصَّلَوٰةِ إِنۡ خِفۡتُمۡ أَن يَفۡتِنَكُمُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوٓاْۚ إِنَّ ٱلۡكَٰفِرِينَ كَانُواْ لَكُمۡ عَدُوّٗا مُّبِينٗا
और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएँगे और कष्ट पहुँचाएँगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु है
Surah An-Nisa, Verse 101
وَإِذَا كُنتَ فِيهِمۡ فَأَقَمۡتَ لَهُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَلۡتَقُمۡ طَآئِفَةٞ مِّنۡهُم مَّعَكَ وَلۡيَأۡخُذُوٓاْ أَسۡلِحَتَهُمۡۖ فَإِذَا سَجَدُواْ فَلۡيَكُونُواْ مِن وَرَآئِكُمۡ وَلۡتَأۡتِ طَآئِفَةٌ أُخۡرَىٰ لَمۡ يُصَلُّواْ فَلۡيُصَلُّواْ مَعَكَ وَلۡيَأۡخُذُواْ حِذۡرَهُمۡ وَأَسۡلِحَتَهُمۡۗ وَدَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ لَوۡ تَغۡفُلُونَ عَنۡ أَسۡلِحَتِكُمۡ وَأَمۡتِعَتِكُمۡ فَيَمِيلُونَ عَلَيۡكُم مَّيۡلَةٗ وَٰحِدَةٗۚ وَلَا جُنَاحَ عَلَيۡكُمۡ إِن كَانَ بِكُمۡ أَذٗى مِّن مَّطَرٍ أَوۡ كُنتُم مَّرۡضَىٰٓ أَن تَضَعُوٓاْ أَسۡلِحَتَكُمۡۖ وَخُذُواْ حِذۡرَكُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ أَعَدَّ لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٗا مُّهِينٗا
और जब तुम उनके बीच हो और (लड़ाई की दशा में) उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो, जो चाहिए कि उनमें से एक गिरोह के लोग तुम्हारे साथ खड़े हो जाएँ और अपने हथियार साथ लिए रहें, और फिर जब वे सजदा कर लें तो उन्हें चाहिए कि वे हटकर तुम्हारे पीछे हो जाएँ और दूसरे गिरोंह के लोग, जिन्होंने अभी नमाज़ नही पढ़ी, आएँ और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और उन्हें भी चाहिए कि वे भी अपने बचाव के सामान और हथियार लिए रहें। विधर्मी चाहते ही है कि वे भी अपने हथियारों और सामान से असावधान हो जाओ तो वे तुम पर एक साथ टूट पड़े। यदि वर्षा के कारण तुम्हें तकलीफ़ होती हो या तुम बीमार हो, तो तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने हथियार रख दो, फिर भी अपनी सुरक्षा का सामान लिए रहो। अल्लाह ने विधर्मियों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है
Surah An-Nisa, Verse 102
فَإِذَا قَضَيۡتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَٱذۡكُرُواْ ٱللَّهَ قِيَٰمٗا وَقُعُودٗا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمۡۚ فَإِذَا ٱطۡمَأۡنَنتُمۡ فَأَقِيمُواْ ٱلصَّلَوٰةَۚ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ كَانَتۡ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ كِتَٰبٗا مَّوۡقُوتٗا
फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो खड़े, बैठे या लेटे अल्लाह को याद करते रहो। फिर जब तुम्हें इतमीनान हो जाए तो विधिवत रूप से नमाज़ पढ़ो। निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढना अनिवार्य है
Surah An-Nisa, Verse 103
وَلَا تَهِنُواْ فِي ٱبۡتِغَآءِ ٱلۡقَوۡمِۖ إِن تَكُونُواْ تَأۡلَمُونَ فَإِنَّهُمۡ يَأۡلَمُونَ كَمَا تَأۡلَمُونَۖ وَتَرۡجُونَ مِنَ ٱللَّهِ مَا لَا يَرۡجُونَۗ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًا
और उन लोगों का पीछा करने में सुस्ती न दिखाओ। यदि तुम्हें दुख पहुँचता है; तो उन्हें भी दुख पहुँचता है, जिस तरह तुमको दुख पहुँचता है। और तुम अल्लाह से उस चीज़ की आशा करते हो, जिस चीज़ की वे आशा नहीं करते। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 104
إِنَّآ أَنزَلۡنَآ إِلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّ لِتَحۡكُمَ بَيۡنَ ٱلنَّاسِ بِمَآ أَرَىٰكَ ٱللَّهُۚ وَلَا تَكُن لِّلۡخَآئِنِينَ خَصِيمٗا
निस्संदेह हमने यह किताब हक़ के साथ उतारी है, ताकि अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें दिखाया है उसके अनुसार लोगों के बीच फ़ैसला करो। और तुम विश्वासघाती लोगों को ओर से झगड़नेवाले न बनो
Surah An-Nisa, Verse 105
وَٱسۡتَغۡفِرِ ٱللَّهَۖ إِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 106
وَلَا تُجَٰدِلۡ عَنِ ٱلَّذِينَ يَخۡتَانُونَ أَنفُسَهُمۡۚ إِنَّ ٱللَّهَ لَا يُحِبُّ مَن كَانَ خَوَّانًا أَثِيمٗا
और तुम उन लोगों की ओर से न झगड़ो जो स्वयं अपनों के साथ विश्वासघात करते है। अल्लाह को ऐसा व्यक्ति प्रिय नहीं है जो विश्वासघाती, हक़ मारनेवाला हो
Surah An-Nisa, Verse 107
يَسۡتَخۡفُونَ مِنَ ٱلنَّاسِ وَلَا يَسۡتَخۡفُونَ مِنَ ٱللَّهِ وَهُوَ مَعَهُمۡ إِذۡ يُبَيِّتُونَ مَا لَا يَرۡضَىٰ مِنَ ٱلۡقَوۡلِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِمَا يَعۡمَلُونَ مُحِيطًا
वे लोगों से तो छिपते है, परन्तु अल्लाह से नहीं छिपते। वह तो (उस समय भी) उनके साथ होता है, जब वे रातों में उस बात की गुप्त-मंत्रणा करते है जो उनकी इच्छा के विरुद्ध होती है। जो कुछ वे करते है, वह अल्लाह (के ज्ञान) से आच्छदित है
Surah An-Nisa, Verse 108
هَـٰٓأَنتُمۡ هَـٰٓؤُلَآءِ جَٰدَلۡتُمۡ عَنۡهُمۡ فِي ٱلۡحَيَوٰةِ ٱلدُّنۡيَا فَمَن يُجَٰدِلُ ٱللَّهَ عَنۡهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ أَم مَّن يَكُونُ عَلَيۡهِمۡ وَكِيلٗا
हाँ, ये तुम ही हो, जिन्होंने सांसारिक जीवन में उनको ओर से झगड़ लिया, परन्तु क़ियामत के दिन उनकी ओर से अल्लाह से कौन झगड़ेगा या कौन उनका वकील होगा
Surah An-Nisa, Verse 109
وَمَن يَعۡمَلۡ سُوٓءًا أَوۡ يَظۡلِمۡ نَفۡسَهُۥ ثُمَّ يَسۡتَغۡفِرِ ٱللَّهَ يَجِدِ ٱللَّهَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
और जो कोई बुरा कर्म कर बैठे या अपने-आप पर अत्याचार करे, फिर अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करे, तो अल्लाह को बड़ा क्षमाशील, दयावान पाएगा
Surah An-Nisa, Verse 110
وَمَن يَكۡسِبۡ إِثۡمٗا فَإِنَّمَا يَكۡسِبُهُۥ عَلَىٰ نَفۡسِهِۦۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا
और जो व्यक्ति गुनाह कमाए, तो वह अपने ही लिए कमाता है। अल्लाह तो सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 111
وَمَن يَكۡسِبۡ خَطِيٓـَٔةً أَوۡ إِثۡمٗا ثُمَّ يَرۡمِ بِهِۦ بَرِيٓـٔٗا فَقَدِ ٱحۡتَمَلَ بُهۡتَٰنٗا وَإِثۡمٗا مُّبِينٗا
और जो व्यक्ति कोई ग़लती या गुनाह की कमाई करे, फिर उसे किसी निर्दोष पर थोप दे, तो उसने एक बड़े लांछन और खुले गुनाह का बोझ अपने ऊपर ले लिया
Surah An-Nisa, Verse 112
وَلَوۡلَا فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكَ وَرَحۡمَتُهُۥ لَهَمَّت طَّآئِفَةٞ مِّنۡهُمۡ أَن يُضِلُّوكَ وَمَا يُضِلُّونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡۖ وَمَا يَضُرُّونَكَ مِن شَيۡءٖۚ وَأَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَيۡكَ ٱلۡكِتَٰبَ وَٱلۡحِكۡمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمۡ تَكُن تَعۡلَمُۚ وَكَانَ فَضۡلُ ٱللَّهِ عَلَيۡكَ عَظِيمٗا
यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती तो उनमें से कुछ लोग तो यह निश्चय कर ही चुके थे कि तुम्हें राह से भटका दें, हालाँकि वे अपने आप ही को पथभ्रष्टि कर रहे है, और तुम्हें वे कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। अल्लाह ने तुमपर किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) उतारी है और उसने तुम्हें वह कुछ सिखाया है जो तुम जानते न थे। अल्लाह का तुमपर बहुत बड़ा अनुग्रह है
Surah An-Nisa, Verse 113
۞لَّا خَيۡرَ فِي كَثِيرٖ مِّن نَّجۡوَىٰهُمۡ إِلَّا مَنۡ أَمَرَ بِصَدَقَةٍ أَوۡ مَعۡرُوفٍ أَوۡ إِصۡلَٰحِۭ بَيۡنَ ٱلنَّاسِۚ وَمَن يَفۡعَلۡ ذَٰلِكَ ٱبۡتِغَآءَ مَرۡضَاتِ ٱللَّهِ فَسَوۡفَ نُؤۡتِيهِ أَجۡرًا عَظِيمٗا
उनकी अधिकतर काना-फूसियों में कोई भलाई नहीं होती। हाँ, जो व्यक्ति सदक़ा देने या भलाई करने या लोगों के बीच सुधार के लिए कुछ कहे, तो उसकी बात और है। और जो कोई यह काम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए करेगा, उसे हम निश्चय ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेंगे
Surah An-Nisa, Verse 114
وَمَن يُشَاقِقِ ٱلرَّسُولَ مِنۢ بَعۡدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُ ٱلۡهُدَىٰ وَيَتَّبِعۡ غَيۡرَ سَبِيلِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ نُوَلِّهِۦ مَا تَوَلَّىٰ وَنُصۡلِهِۦ جَهَنَّمَۖ وَسَآءَتۡ مَصِيرًا
और जो क्यक्ति, इसके पश्चात भी मार्गदर्शन खुलकर उसके सामने आ गया है, रसूल का विरोध करेगा और ईमानवालों के मार्ग के अतिरिक्त किसी और मार्ग पर चलेगा तो उसे हम उसी पर चलने देंगे, जिसको उसने अपनाया होगा और उसे जहन्नम में झोंक देंगे, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है
Surah An-Nisa, Verse 115
إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغۡفِرُ أَن يُشۡرَكَ بِهِۦ وَيَغۡفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُۚ وَمَن يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلَٰلَۢا بَعِيدًا
निस्संदेह अल्लाह इस चीज़ को क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ किसी को शामिल किया जाए। हाँ, इससे नीचे दर्जे के अपराध को, जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराता है, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा
Surah An-Nisa, Verse 116
إِن يَدۡعُونَ مِن دُونِهِۦٓ إِلَّآ إِنَٰثٗا وَإِن يَدۡعُونَ إِلَّا شَيۡطَٰنٗا مَّرِيدٗا
वे अल्लाह से हटकर बस कुछ देवियों को पुकारते है। और वे तो बस सरकश शैतान को पुकारते है
Surah An-Nisa, Verse 117
لَّعَنَهُ ٱللَّهُۘ وَقَالَ لَأَتَّخِذَنَّ مِنۡ عِبَادِكَ نَصِيبٗا مَّفۡرُوضٗا
जिसपर अल्लाह की फिटकार है। उसने कहा था, "मैं तेरे बन्दों में से एख निश्चित हिस्सा लेकर रहूँगा
Surah An-Nisa, Verse 118
وَلَأُضِلَّنَّهُمۡ وَلَأُمَنِّيَنَّهُمۡ وَلَأٓمُرَنَّهُمۡ فَلَيُبَتِّكُنَّ ءَاذَانَ ٱلۡأَنۡعَٰمِ وَلَأٓمُرَنَّهُمۡ فَلَيُغَيِّرُنَّ خَلۡقَ ٱللَّهِۚ وَمَن يَتَّخِذِ ٱلشَّيۡطَٰنَ وَلِيّٗا مِّن دُونِ ٱللَّهِ فَقَدۡ خَسِرَ خُسۡرَانٗا مُّبِينٗا
और उन्हें अवश्य ही भटकाऊँगा और उन्हें कामनाओं में उलझाऊँगा, और उन्हें हुक्म दूँगा तो वे चौपायों के कान फाड़ेगे, और उन्हें मैं सुझाव दूँगा तो वे अल्लाह की संरचना में परिवर्तन करेंगे।" और जिसने अल्लाह से हटकर शैतान को अपना संरक्षक और मित्र बनाया, वह खुले घाटे में पड़ गया
Surah An-Nisa, Verse 119
يَعِدُهُمۡ وَيُمَنِّيهِمۡۖ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ إِلَّا غُرُورًا
वह उनसे वादा करता है और उन्हें कामनाओं में उलझाए रखता है, हालाँकि शैतान उनसे जो कुछ वादा करता है वह एक धोके के सिवा कुछ भी नहीं होता
Surah An-Nisa, Verse 120
أُوْلَـٰٓئِكَ مَأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُ وَلَا يَجِدُونَ عَنۡهَا مَحِيصٗا
वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है और वे उससे अलग होने की कोई जगह न पाएँगे
Surah An-Nisa, Verse 121
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ سَنُدۡخِلُهُمۡ جَنَّـٰتٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ وَعۡدَ ٱللَّهِ حَقّٗاۚ وَمَنۡ أَصۡدَقُ مِنَ ٱللَّهِ قِيلٗا
रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उन्हें हम जल्द ही ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जहाँ वे सदैव रहेंगे। अल्लाह का वादा सच्चा है, और अल्लाह से बढ़कर बात का सच्चा कौन हो सकता है
Surah An-Nisa, Verse 122
لَّيۡسَ بِأَمَانِيِّكُمۡ وَلَآ أَمَانِيِّ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِۗ مَن يَعۡمَلۡ سُوٓءٗا يُجۡزَ بِهِۦ وَلَا يَجِدۡ لَهُۥ مِن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرٗا
बात न तुम्हारी कामनाओं की है और न किताबवालों की कामनाओं की। जो भी बुराई करेगा उसे उसका फल मिलेगा और वह अल्लाह से हटकर न तो कोई मित्र पाएगा और न ही सहायक
Surah An-Nisa, Verse 123
وَمَن يَعۡمَلۡ مِنَ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ مِن ذَكَرٍ أَوۡ أُنثَىٰ وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَأُوْلَـٰٓئِكَ يَدۡخُلُونَ ٱلۡجَنَّةَ وَلَا يُظۡلَمُونَ نَقِيرٗا
किन्तु जो अच्छे कर्म करेगा, चाहे पुरुष हो या स्त्री, यदि वह ईमानवाला है तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे। और उनका हक़ रत्ती भर भी मारा नहीं जाएगा
Surah An-Nisa, Verse 124
وَمَنۡ أَحۡسَنُ دِينٗا مِّمَّنۡ أَسۡلَمَ وَجۡهَهُۥ لِلَّهِ وَهُوَ مُحۡسِنٞ وَٱتَّبَعَ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِيمَ حَنِيفٗاۗ وَٱتَّخَذَ ٱللَّهُ إِبۡرَٰهِيمَ خَلِيلٗا
और दीन (धर्म) की स्पष्ट से उस व्यक्ति से अच्छा कौन हो सकता है, जिसने अपने आपको अल्लाह के आगे झुका दिया और इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करे, जो सबसे कटकर एक का हो गया था? अल्लाह ने इबराहीम को अपना घनिष्ठ मित्र बनाया था
Surah An-Nisa, Verse 125
وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٖ مُّحِيطٗا
जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, वह अल्लाह ही का है और अल्लाह हर चीज़ को घेरे हुए है
Surah An-Nisa, Verse 126
وَيَسۡتَفۡتُونَكَ فِي ٱلنِّسَآءِۖ قُلِ ٱللَّهُ يُفۡتِيكُمۡ فِيهِنَّ وَمَا يُتۡلَىٰ عَلَيۡكُمۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ فِي يَتَٰمَى ٱلنِّسَآءِ ٱلَّـٰتِي لَا تُؤۡتُونَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرۡغَبُونَ أَن تَنكِحُوهُنَّ وَٱلۡمُسۡتَضۡعَفِينَ مِنَ ٱلۡوِلۡدَٰنِ وَأَن تَقُومُواْ لِلۡيَتَٰمَىٰ بِٱلۡقِسۡطِۚ وَمَا تَفۡعَلُواْ مِنۡ خَيۡرٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِهِۦ عَلِيمٗا
लोग तुमसे स्त्रियों के विषय में पूछते है, कहो, "अल्लाह तुम्हें उनके विषय में हुक्म देता है और जो आयतें तुमको इस किताब में पढ़कर सुनाई जाती है, वे उन स्त्रियों के, अनाथों के विषय में भी है, जिनके हक़ तुम अदा नहीं करते। और चाहते हो कि तुम उनके साथ विवाह कर लो और कमज़ोर यतीम बच्चों के बारे में भी यही आदेश है। और इस विषय में भी कि तुम अनाथों के विषय में इनसाफ़ पर क़ायम रहो। जो भलाई भी तुम करोगे तो निश्चय ही, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता होगा।
Surah An-Nisa, Verse 127
وَإِنِ ٱمۡرَأَةٌ خَافَتۡ مِنۢ بَعۡلِهَا نُشُوزًا أَوۡ إِعۡرَاضٗا فَلَا جُنَاحَ عَلَيۡهِمَآ أَن يُصۡلِحَا بَيۡنَهُمَا صُلۡحٗاۚ وَٱلصُّلۡحُ خَيۡرٞۗ وَأُحۡضِرَتِ ٱلۡأَنفُسُ ٱلشُّحَّۚ وَإِن تُحۡسِنُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا
यदि किसी स्त्री को अपने पति की और से दुर्व्यवहार या बेरुख़ी का भय हो, तो इसमें उनके लिए कोई दोष नहीं कि वे दोनों आपस में मेल-मिलाप की कोई राह निकाल ले। और मेल-मिलाव अच्छी चीज़ है। और मन तो लोभ एवं कृपणता के लिए उद्यत रहता है। परन्तु यदि तुम अच्छा व्यवहार करो और (अल्लाह का) भय रखो, तो अल्लाह को निश्चय ही जो कुछ तुम करोगे उसकी खबर रहेगी
Surah An-Nisa, Verse 128
وَلَن تَسۡتَطِيعُوٓاْ أَن تَعۡدِلُواْ بَيۡنَ ٱلنِّسَآءِ وَلَوۡ حَرَصۡتُمۡۖ فَلَا تَمِيلُواْ كُلَّ ٱلۡمَيۡلِ فَتَذَرُوهَا كَٱلۡمُعَلَّقَةِۚ وَإِن تُصۡلِحُواْ وَتَتَّقُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
और चाहे तुम कितना ही चाहो, तुममें इसकी सामर्थ्य नहीं हो सकती कि औरतों के बीच पूर्ण रूप से न्याय कर सको। तो ऐसा भी न करो कि किसी से पूर्णरूप से फिर जाओ, जिसके परिणामस्वरूप वह ऐसी हो जाए, जैसे उसका पति खो गया हो। परन्तु यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निस्संदेह अल्लाह भी बड़ा क्षमाशील, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 129
وَإِن يَتَفَرَّقَا يُغۡنِ ٱللَّهُ كُلّٗا مِّن سَعَتِهِۦۚ وَكَانَ ٱللَّهُ وَٰسِعًا حَكِيمٗا
और यदि दोनों अलग ही हो जाएँ तो अल्लाह अपनी समाई से एक को दूसरे से बेपररवाह कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 130
وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَلَقَدۡ وَصَّيۡنَا ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡكِتَٰبَ مِن قَبۡلِكُمۡ وَإِيَّاكُمۡ أَنِ ٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ وَإِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَنِيًّا حَمِيدٗا
आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। तुमसे पहले जिन्हें किताब दी गई थी, उन्हें और तुम्हें भी हमने ताकीद की है कि "अल्लाह का डर रखो।" यदि तुम इनकार करते हो, तो इससे क्या होने का? आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का रहेगा। अल्लाह तो निस्पृह, प्रशंसनीय है
Surah An-Nisa, Verse 131
وَلِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلًا
हाँ, आकाशों और धरती में जो कुछ है, अल्लाह ही का है और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 132
إِن يَشَأۡ يُذۡهِبۡكُمۡ أَيُّهَا ٱلنَّاسُ وَيَأۡتِ بِـَٔاخَرِينَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلَىٰ ذَٰلِكَ قَدِيرٗا
ऐ लोगों! यदि वह चाहे तो तुम्हें हटा दे और तुम्हारी जगह दूसरों को ले आए। अल्लाह को इसकी पूरी सामर्थ्य है
Surah An-Nisa, Verse 133
مَّن كَانَ يُرِيدُ ثَوَابَ ٱلدُّنۡيَا فَعِندَ ٱللَّهِ ثَوَابُ ٱلدُّنۡيَا وَٱلۡأٓخِرَةِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعَۢا بَصِيرٗا
जो कोई दुनिया का बदला चाहता है, तो अल्लाह के पास दुनिया का बदला भी है और आख़िरत का भी। अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है
Surah An-Nisa, Verse 134
۞يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُونُواْ قَوَّـٰمِينَ بِٱلۡقِسۡطِ شُهَدَآءَ لِلَّهِ وَلَوۡ عَلَىٰٓ أَنفُسِكُمۡ أَوِ ٱلۡوَٰلِدَيۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِينَۚ إِن يَكُنۡ غَنِيًّا أَوۡ فَقِيرٗا فَٱللَّهُ أَوۡلَىٰ بِهِمَاۖ فَلَا تَتَّبِعُواْ ٱلۡهَوَىٰٓ أَن تَعۡدِلُواْۚ وَإِن تَلۡوُۥٓاْ أَوۡ تُعۡرِضُواْ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ بِمَا تَعۡمَلُونَ خَبِيرٗا
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह के लिए गवाही देते हुए इनसाफ़ पर मज़बूती के साथ जमे रहो, चाहे वह स्वयं तुम्हारे अपने या माँ-बाप और नातेदारों के विरुद्ध ही क्यों न हो। कोई धनवान हो या निर्धन (जिसके विरुद्ध तुम्हें गवाही देनी पड़े) अल्लाह को उनसे (तुमसे कहीं बढ़कर) निकटता का सम्बन्ध है, तो तुम अपनी इच्छा के अनुपालन में न्याय से न हटो, क्योंकि यदि तुम हेर-फेर करोगे या कतराओगे, तो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी ख़बर रहेगी
Surah An-Nisa, Verse 135
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ ءَامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلَّذِي نَزَّلَ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَٱلۡكِتَٰبِ ٱلَّذِيٓ أَنزَلَ مِن قَبۡلُۚ وَمَن يَكۡفُرۡ بِٱللَّهِ وَمَلَـٰٓئِكَتِهِۦ وَكُتُبِهِۦ وَرُسُلِهِۦ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ فَقَدۡ ضَلَّ ضَلَٰلَۢا بَعِيدًا
ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी है और उस किताब पर भी, जिसको वह इसके पहले उतार चुका है। और जिस किसी ने भी अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और अन्तिम दिन का इनकार किया, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा
Surah An-Nisa, Verse 136
إِنَّ ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ ثُمَّ كَفَرُواْ ثُمَّ ءَامَنُواْ ثُمَّ كَفَرُواْ ثُمَّ ٱزۡدَادُواْ كُفۡرٗا لَّمۡ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغۡفِرَ لَهُمۡ وَلَا لِيَهۡدِيَهُمۡ سَبِيلَۢا
रहे वे लोग जो ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर इनकार की दशा में बढते चले गए तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें राह दिखाएगा
Surah An-Nisa, Verse 137
بَشِّرِ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ بِأَنَّ لَهُمۡ عَذَابًا أَلِيمًا
मुनाफ़िको (कपटाचारियों) को मंगल-सूचना दे दो कि उनके लिए दुखद यातना है
Surah An-Nisa, Verse 138
ٱلَّذِينَ يَتَّخِذُونَ ٱلۡكَٰفِرِينَ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ أَيَبۡتَغُونَ عِندَهُمُ ٱلۡعِزَّةَ فَإِنَّ ٱلۡعِزَّةَ لِلَّهِ جَمِيعٗا
जो ईमानवालों को छोड़कर इनकार करनेवालों को अपना मित्र बनाते है। क्या उन्हें उनके पास प्रतिष्ठा की तलाश है? प्रतिष्ठा तो सारी की सारी अल्लाह ही के लिए है
Surah An-Nisa, Verse 139
وَقَدۡ نَزَّلَ عَلَيۡكُمۡ فِي ٱلۡكِتَٰبِ أَنۡ إِذَا سَمِعۡتُمۡ ءَايَٰتِ ٱللَّهِ يُكۡفَرُ بِهَا وَيُسۡتَهۡزَأُ بِهَا فَلَا تَقۡعُدُواْ مَعَهُمۡ حَتَّىٰ يَخُوضُواْ فِي حَدِيثٍ غَيۡرِهِۦٓ إِنَّكُمۡ إِذٗا مِّثۡلُهُمۡۗ إِنَّ ٱللَّهَ جَامِعُ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ وَٱلۡكَٰفِرِينَ فِي جَهَنَّمَ جَمِيعًا
वह 'किताब' में तुमपर यह हुक्म उतार चुका है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों का इनकार किया जा रहा है और उसका उपहास किया जा रहा है, तो जब तब वे किसी दूसरी बात में न लगा जाएँ, उनके साथ न बैठो, अन्यथा तुम भी उन्हीं के जैसे होगे; निश्चय ही अल्लाह कपटाचारियों और इनकार करनेवालों - सबको जहन्नम में एकत्र करनेवाला है
Surah An-Nisa, Verse 140
ٱلَّذِينَ يَتَرَبَّصُونَ بِكُمۡ فَإِن كَانَ لَكُمۡ فَتۡحٞ مِّنَ ٱللَّهِ قَالُوٓاْ أَلَمۡ نَكُن مَّعَكُمۡ وَإِن كَانَ لِلۡكَٰفِرِينَ نَصِيبٞ قَالُوٓاْ أَلَمۡ نَسۡتَحۡوِذۡ عَلَيۡكُمۡ وَنَمۡنَعۡكُم مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ فَٱللَّهُ يَحۡكُمُ بَيۡنَكُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِۚ وَلَن يَجۡعَلَ ٱللَّهُ لِلۡكَٰفِرِينَ عَلَى ٱلۡمُؤۡمِنِينَ سَبِيلًا
जो तुम्हारे मामले में प्रतीक्षा करते है, यदि अल्लाह की ओर से तुम्हारी विजय़ हुई तो कहते है, "क्या हम तुम्हार साथ न थे?" और यदि विधर्मियों के हाथ कुछ लगा तो कहते है, "क्या हमने तुम्हें घेर नहीं लिया था और ईमानवालों से बचाया नहीं?" अतः अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच फ़ैसला कर देगा, और अल्लाह विधर्मियों को ईमानवालों के मुक़ाबले में कोई राह नहीं देगा
Surah An-Nisa, Verse 141
إِنَّ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَهُوَ خَٰدِعُهُمۡ وَإِذَا قَامُوٓاْ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ قَامُواْ كُسَالَىٰ يُرَآءُونَ ٱلنَّاسَ وَلَا يَذۡكُرُونَ ٱللَّهَ إِلَّا قَلِيلٗا
कपटाचारी अल्लाह के साथ धोखबाज़ी कर रहे है, हालाँकि उसी ने उन्हें धोखे में डाल रखा है। जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते है तो कसमसाते हुए, लोगों को दिखाने के लिए खड़े होते है। और अल्लाह को थोड़े ही याद करते है
Surah An-Nisa, Verse 142
مُّذَبۡذَبِينَ بَيۡنَ ذَٰلِكَ لَآ إِلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِ وَلَآ إِلَىٰ هَـٰٓؤُلَآءِۚ وَمَن يُضۡلِلِ ٱللَّهُ فَلَن تَجِدَ لَهُۥ سَبِيلٗا
इसी के बीच डाँवाडोल हो रहे है, न इन (ईमानवालों) की तरफ़ के है, न इन (इनकार करनेवालों) की तरफ़ के। जिसे अल्लाह भटका दे, उसके लिए तो तुम कोई राह नहीं पा सकते
Surah An-Nisa, Verse 143
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ لَا تَتَّخِذُواْ ٱلۡكَٰفِرِينَ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۚ أَتُرِيدُونَ أَن تَجۡعَلُواْ لِلَّهِ عَلَيۡكُمۡ سُلۡطَٰنٗا مُّبِينًا
ऐ ईमान लानेवालो! ईमानवालों से हटकर इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का स्पष्टा तर्क अपने विरुद्ध जुटाओ
Surah An-Nisa, Verse 144
إِنَّ ٱلۡمُنَٰفِقِينَ فِي ٱلدَّرۡكِ ٱلۡأَسۡفَلِ مِنَ ٱلنَّارِ وَلَن تَجِدَ لَهُمۡ نَصِيرًا
निस्संदेह कपटाचारी आग (जहन्नम) के सबसे निचले खंड में होंगे, और तुम कदापि उनका कोई सहायक न पाओगे
Surah An-Nisa, Verse 145
إِلَّا ٱلَّذِينَ تَابُواْ وَأَصۡلَحُواْ وَٱعۡتَصَمُواْ بِٱللَّهِ وَأَخۡلَصُواْ دِينَهُمۡ لِلَّهِ فَأُوْلَـٰٓئِكَ مَعَ ٱلۡمُؤۡمِنِينَۖ وَسَوۡفَ يُؤۡتِ ٱللَّهُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ أَجۡرًا عَظِيمٗا
उन लोगों की बात और है जिन्होंने तौबा कर ली और अपने को सुधार लिया और अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लिया और अपने दीन (धर्म) में अल्लाह ही के हो रहे। ऐसे लोग ईमानवालों के साथ है और अल्लाह ईमानवालों को शीघ्र ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेगा
Surah An-Nisa, Verse 146
مَّا يَفۡعَلُ ٱللَّهُ بِعَذَابِكُمۡ إِن شَكَرۡتُمۡ وَءَامَنتُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ شَاكِرًا عَلِيمٗا
अल्लाह को तुम्हें यातना देकर क्या करना है, यदि तुम कृतज्ञता दिखलाओ और ईमान लाओ? अल्लाह गुणग्राहक, सब कुछ जाननेवाला है
Surah An-Nisa, Verse 147
۞لَّا يُحِبُّ ٱللَّهُ ٱلۡجَهۡرَ بِٱلسُّوٓءِ مِنَ ٱلۡقَوۡلِ إِلَّا مَن ظُلِمَۚ وَكَانَ ٱللَّهُ سَمِيعًا عَلِيمًا
अल्लाह बुरी बात खुल्लम-खुल्ला कहने को पसन्द नहीं करता, मगर उसकी बात और है जिसपर ज़ुल्म किया गया हो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है
Surah An-Nisa, Verse 148
إِن تُبۡدُواْ خَيۡرًا أَوۡ تُخۡفُوهُ أَوۡ تَعۡفُواْ عَن سُوٓءٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوّٗا قَدِيرًا
यदि तुम खुले रूप में नेकी और भलाई करो या उसे छिपाओ या किसी बुराई को क्षमा कर दो, तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, सामर्थ्यवान है
Surah An-Nisa, Verse 149
إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡفُرُونَ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيُرِيدُونَ أَن يُفَرِّقُواْ بَيۡنَ ٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَيَقُولُونَ نُؤۡمِنُ بِبَعۡضٖ وَنَكۡفُرُ بِبَعۡضٖ وَيُرِيدُونَ أَن يَتَّخِذُواْ بَيۡنَ ذَٰلِكَ سَبِيلًا
जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों का इनकार करते है और चाहते है कि अल्लाह और उसके रसूलों के बीच विच्छेद करें, और कहते है कि "हम कुछ को मानते है और कुछ को नहीं मानते" और इस तरह वे चाहते है कि बीच की कोई राह अपनाएँ
Surah An-Nisa, Verse 150
أُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡكَٰفِرُونَ حَقّٗاۚ وَأَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ عَذَابٗا مُّهِينٗا
वही लोग पक्के इनकार करनेवाले है और हमने इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है
Surah An-Nisa, Verse 151
وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦ وَلَمۡ يُفَرِّقُواْ بَيۡنَ أَحَدٖ مِّنۡهُمۡ أُوْلَـٰٓئِكَ سَوۡفَ يُؤۡتِيهِمۡ أُجُورَهُمۡۚ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا
रहे वे लोग जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान रखते है और उनमें से किसी को उस सम्बन्ध में पृथक नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, ऐसे लोगों को अल्लाह शीघ्र ही उनके प्रतिदान प्रदान करेगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है
Surah An-Nisa, Verse 152
يَسۡـَٔلُكَ أَهۡلُ ٱلۡكِتَٰبِ أَن تُنَزِّلَ عَلَيۡهِمۡ كِتَٰبٗا مِّنَ ٱلسَّمَآءِۚ فَقَدۡ سَأَلُواْ مُوسَىٰٓ أَكۡبَرَ مِن ذَٰلِكَ فَقَالُوٓاْ أَرِنَا ٱللَّهَ جَهۡرَةٗ فَأَخَذَتۡهُمُ ٱلصَّـٰعِقَةُ بِظُلۡمِهِمۡۚ ثُمَّ ٱتَّخَذُواْ ٱلۡعِجۡلَ مِنۢ بَعۡدِ مَا جَآءَتۡهُمُ ٱلۡبَيِّنَٰتُ فَعَفَوۡنَا عَن ذَٰلِكَۚ وَءَاتَيۡنَا مُوسَىٰ سُلۡطَٰنٗا مُّبِينٗا
किताबवालों की तुमसे माँग है कि तुम उनपर आकाश से कोई किताब उतार लाओ, तो वे तो मूसा से इससे भी बड़ी माँग कर चुके है। उन्होंने कहा था, "हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष दिखा दो," तो उनके इस अपराध पर बिजली की कड़क ने उन्हें आ दबोचा। फिर वे बछड़े को अपना उपास्य बना बैठे, हालाँकि उनके पास खुली-खुली निशानियाँ आ चुकी थी। फिर हमने उसे भी क्षमा कर दिया और मूसा का स्पष्टा बल एवं प्रभाव प्रदान किया
Surah An-Nisa, Verse 153
وَرَفَعۡنَا فَوۡقَهُمُ ٱلطُّورَ بِمِيثَٰقِهِمۡ وَقُلۡنَا لَهُمُ ٱدۡخُلُواْ ٱلۡبَابَ سُجَّدٗا وَقُلۡنَا لَهُمۡ لَا تَعۡدُواْ فِي ٱلسَّبۡتِ وَأَخَذۡنَا مِنۡهُم مِّيثَٰقًا غَلِيظٗا
और उन लोगों से वचन लेने के साथ (तूर) पहाड़ को उनपर उठा दिया और उनसे कहा, "दरवाज़े में सजदा करते हुए प्रवेश करो।" और उनसे कहा, "सब्त (सामूहिक इबादत का दिन) के विषय में ज़्यादती न करना।" और हमने उनसे बहुत-ही दृढ़ वचन लिया था
Surah An-Nisa, Verse 154
فَبِمَا نَقۡضِهِم مِّيثَٰقَهُمۡ وَكُفۡرِهِم بِـَٔايَٰتِ ٱللَّهِ وَقَتۡلِهِمُ ٱلۡأَنۢبِيَآءَ بِغَيۡرِ حَقّٖ وَقَوۡلِهِمۡ قُلُوبُنَا غُلۡفُۢۚ بَلۡ طَبَعَ ٱللَّهُ عَلَيۡهَا بِكُفۡرِهِمۡ فَلَا يُؤۡمِنُونَ إِلَّا قَلِيلٗا
फिर उनके अपने वचन भंग करने और अल्लाह की आयतों का इनकार करने के कारण और नबियों को नाहक़ क़त्ल करने और उनके यह कहने के कारण कि "हमारे हृदय आवरणों में सुरक्षित है" - नहीं, बल्कि वास्तव में उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनके दिलों पर ठप्पा लगा दिया है। तो ये ईमान थोड़े ही लाते है
Surah An-Nisa, Verse 155
وَبِكُفۡرِهِمۡ وَقَوۡلِهِمۡ عَلَىٰ مَرۡيَمَ بُهۡتَٰنًا عَظِيمٗا
और उनके इनकार के कारण और मरयम के ख़िलाफ ऐसी बात करने पर जो एक बड़ा लांछन था
Surah An-Nisa, Verse 156
وَقَوۡلِهِمۡ إِنَّا قَتَلۡنَا ٱلۡمَسِيحَ عِيسَى ٱبۡنَ مَرۡيَمَ رَسُولَ ٱللَّهِ وَمَا قَتَلُوهُ وَمَا صَلَبُوهُ وَلَٰكِن شُبِّهَ لَهُمۡۚ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخۡتَلَفُواْ فِيهِ لَفِي شَكّٖ مِّنۡهُۚ مَا لَهُم بِهِۦ مِنۡ عِلۡمٍ إِلَّا ٱتِّبَاعَ ٱلظَّنِّۚ وَمَا قَتَلُوهُ يَقِينَۢا
और उनके इस कथन के कारण कि हमने मरयम के बेटे ईसा मसीह, अल्लाह के रसूल, को क़त्ल कर डाला - हालाँकि न तो इन्होंने उसे क़त्ल किया और न उसे सूली पर चढाया, बल्कि मामला उनके लिए संदिग्ध हो गया। और जो लोग इसमें विभेद कर रहे है, निश्चय ही वे इस मामले में सन्देह में थे। अटकल पर चलने के अतिरिक्त उनके पास कोई ज्ञान न था। निश्चय ही उन्होंने उसे (ईसा को) क़त्ल नहीं किया
Surah An-Nisa, Verse 157
بَل رَّفَعَهُ ٱللَّهُ إِلَيۡهِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا
बल्कि उसे अल्लाह ने अपनी ओर उठा लिया। और अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 158
وَإِن مِّنۡ أَهۡلِ ٱلۡكِتَٰبِ إِلَّا لَيُؤۡمِنَنَّ بِهِۦ قَبۡلَ مَوۡتِهِۦۖ وَيَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ يَكُونُ عَلَيۡهِمۡ شَهِيدٗا
किताबवालों में से कोई ऐसा न होगा, जो उसकी मृत्यु से पहले उसपर ईमान न ले आए। वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होगा
Surah An-Nisa, Verse 159
فَبِظُلۡمٖ مِّنَ ٱلَّذِينَ هَادُواْ حَرَّمۡنَا عَلَيۡهِمۡ طَيِّبَٰتٍ أُحِلَّتۡ لَهُمۡ وَبِصَدِّهِمۡ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ كَثِيرٗا
सारांश यह कि यहूदियों के अत्याचार के कारण हमने बहुत-सी अच्छी पाक चीज़े उनपर हराम कर दी, जो उनके लिए हलाल थी और उनके प्रायः अल्लाह के मार्ग से रोकने के कारण
Surah An-Nisa, Verse 160
وَأَخۡذِهِمُ ٱلرِّبَوٰاْ وَقَدۡ نُهُواْ عَنۡهُ وَأَكۡلِهِمۡ أَمۡوَٰلَ ٱلنَّاسِ بِٱلۡبَٰطِلِۚ وَأَعۡتَدۡنَا لِلۡكَٰفِرِينَ مِنۡهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا
और उनके ब्याज लेने के कारण, जबकि उन्हें इससे रोका गया था। और उनके अवैध रूप से लोगों के माल खाने के कारण ऐसा किया गया और हमने उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिए दुखद यातना तैयार कर रखी है
Surah An-Nisa, Verse 161
لَّـٰكِنِ ٱلرَّـٰسِخُونَ فِي ٱلۡعِلۡمِ مِنۡهُمۡ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ يُؤۡمِنُونَ بِمَآ أُنزِلَ إِلَيۡكَ وَمَآ أُنزِلَ مِن قَبۡلِكَۚ وَٱلۡمُقِيمِينَ ٱلصَّلَوٰةَۚ وَٱلۡمُؤۡتُونَ ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُؤۡمِنُونَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ أُوْلَـٰٓئِكَ سَنُؤۡتِيهِمۡ أَجۡرًا عَظِيمًا
परन्तु उनमें से जो लोग ज्ञान में पक्के है और ईमानवाले हैं, वे उस पर ईमान रखते है जो तुम्हारी ओर उतारा गया है और जो तुमसे पहले उतारा गया था, और जो विशेष रूप से नमाज़ क़ायम करते है, ज़कात देते और अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते है। यही लोग है जिन्हें हम शीघ्र ही बड़ी प्रतिदान प्रदान करेंगे
Surah An-Nisa, Verse 162
۞إِنَّآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ كَمَآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ نُوحٖ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ مِنۢ بَعۡدِهِۦۚ وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَٰرُونَ وَسُلَيۡمَٰنَۚ وَءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ زَبُورٗا
हमने तुम्हारी ओर उसी प्रकार वह्यड की है जिस प्रकार नूह और उसके बाद के नबियों की ओर वह्यु की। और हमने इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याक़ूब और उसकी सन्तान और ईसा और अय्यूब और यूनुस और हारून और सुलैमान की ओर भी वह्यक की। और हमने दाउद को ज़बूर प्रदान किया
Surah An-Nisa, Verse 163
وَرُسُلٗا قَدۡ قَصَصۡنَٰهُمۡ عَلَيۡكَ مِن قَبۡلُ وَرُسُلٗا لَّمۡ نَقۡصُصۡهُمۡ عَلَيۡكَۚ وَكَلَّمَ ٱللَّهُ مُوسَىٰ تَكۡلِيمٗا
और कितने ही रसूल हुए जिनका वृतान्त पहले हम तुमसे बयान कर चुके है और कितने ही ऐसे रसूल हुए जिनका वृतान्त हमने तुमसे बयान नहीं किया। और मूसा से अल्लाह ने बातचीत की, जिस प्रकार बातचीत की जाती है
Surah An-Nisa, Verse 164
رُّسُلٗا مُّبَشِّرِينَ وَمُنذِرِينَ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَى ٱللَّهِ حُجَّةُۢ بَعۡدَ ٱلرُّسُلِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَزِيزًا حَكِيمٗا
रसूल शुभ समाचार देनेवाले और सचेत करनेवाले बनाकर भेजे गए है, ताकि रसूलों के पश्चात लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में (अपने निर्दोष होने का) कोई तर्क न रहे। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 165
لَّـٰكِنِ ٱللَّهُ يَشۡهَدُ بِمَآ أَنزَلَ إِلَيۡكَۖ أَنزَلَهُۥ بِعِلۡمِهِۦۖ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ يَشۡهَدُونَۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدًا
परन्तु अल्लाह गवाही देता है कि उसके द्वारा जो उसने तुम्हारी ओर उतारा है कि उसे उसने अपने ज्ञान के साथ उतारा है और फ़रिश्ते भी गवाही देते है, यद्यपि अल्लाह का गवाह होना ही काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 166
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَصَدُّواْ عَن سَبِيلِ ٱللَّهِ قَدۡ ضَلُّواْ ضَلَٰلَۢا بَعِيدًا
निश्चय ही, जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका, वे भटककर बहुत दूर जा पड़े
Surah An-Nisa, Verse 167
إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَظَلَمُواْ لَمۡ يَكُنِ ٱللَّهُ لِيَغۡفِرَ لَهُمۡ وَلَا لِيَهۡدِيَهُمۡ طَرِيقًا
जिन लोगों ने इनकार किया और ज़ुल्म पर उतर आए, उन्हें अल्लाह कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें कोई मार्ग दिखाएगा
Surah An-Nisa, Verse 168
إِلَّا طَرِيقَ جَهَنَّمَ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۚ وَكَانَ ذَٰلِكَ عَلَى ٱللَّهِ يَسِيرٗا
सिवाय जहन्नम के मार्ग के, जिसमें वे सदैव पड़े रहेंगे। और यह अल्लाह के लिए बहुत-ही सहज बात है
Surah An-Nisa, Verse 169
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدۡ جَآءَكُمُ ٱلرَّسُولُ بِٱلۡحَقِّ مِن رَّبِّكُمۡ فَـَٔامِنُواْ خَيۡرٗا لَّكُمۡۚ وَإِن تَكۡفُرُواْ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمٗا
ऐ लोगों! रसूल तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से सत्य लेकर आ गया है। अतः तुम उस भलाई को मानो जो तुम्हारे लिए जुटाई गई। और यदि तुम इनकार करते हो तो आकाशों और धरती में जो कुछ है, वह अल्लाह ही का है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है
Surah An-Nisa, Verse 170
يَـٰٓأَهۡلَ ٱلۡكِتَٰبِ لَا تَغۡلُواْ فِي دِينِكُمۡ وَلَا تَقُولُواْ عَلَى ٱللَّهِ إِلَّا ٱلۡحَقَّۚ إِنَّمَا ٱلۡمَسِيحُ عِيسَى ٱبۡنُ مَرۡيَمَ رَسُولُ ٱللَّهِ وَكَلِمَتُهُۥٓ أَلۡقَىٰهَآ إِلَىٰ مَرۡيَمَ وَرُوحٞ مِّنۡهُۖ فَـَٔامِنُواْ بِٱللَّهِ وَرُسُلِهِۦۖ وَلَا تَقُولُواْ ثَلَٰثَةٌۚ ٱنتَهُواْ خَيۡرٗا لَّكُمۡۚ إِنَّمَا ٱللَّهُ إِلَٰهٞ وَٰحِدٞۖ سُبۡحَٰنَهُۥٓ أَن يَكُونَ لَهُۥ وَلَدٞۘ لَّهُۥ مَا فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَمَا فِي ٱلۡأَرۡضِۗ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ وَكِيلٗا
ऐ किताबवालों! अपने धर्म में हद से आगे न बढ़ो और अल्लाह से जोड़कर सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहो। मरयम का बेटा मसीह-ईसा इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कि अल्लाह का रसूल है और उसका एक 'कलिमा' है, जिसे उसने मरमय की ओर भेजा था। और उसकी ओर से एक रूह है। तो तुम अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और "तीन" न कहो - बाज़ आ जाओ! यह तुम्हारे लिए अच्छा है - अल्लाह तो केवल अकेला पूज्य है। यह उसकी महानता के प्रतिकूल है कि उसका कोई बेटा हो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है
Surah An-Nisa, Verse 171
لَّن يَسۡتَنكِفَ ٱلۡمَسِيحُ أَن يَكُونَ عَبۡدٗا لِّلَّهِ وَلَا ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةُ ٱلۡمُقَرَّبُونَۚ وَمَن يَسۡتَنكِفۡ عَنۡ عِبَادَتِهِۦ وَيَسۡتَكۡبِرۡ فَسَيَحۡشُرُهُمۡ إِلَيۡهِ جَمِيعٗا
मसीह ने कदापि अपने लिए बुरा नहीं समझा कि वह अल्लाह का बन्दा हो और न निकटवर्ती फ़रिश्तों ने ही (इसे बुरा समझा) । और जो कोई अल्लाह की बन्दगी को अपने लिए बुरा समझेगा और घमंड करेगा, तो वह (अल्लाह) उन सभी लोगों को अपने पास इकट्ठा करके रहेगा
Surah An-Nisa, Verse 172
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَعَمِلُواْ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ فَيُوَفِّيهِمۡ أُجُورَهُمۡ وَيَزِيدُهُم مِّن فَضۡلِهِۦۖ وَأَمَّا ٱلَّذِينَ ٱسۡتَنكَفُواْ وَٱسۡتَكۡبَرُواْ فَيُعَذِّبُهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا وَلَا يَجِدُونَ لَهُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ وَلِيّٗا وَلَا نَصِيرٗا
अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, जो अल्लाह उन्हें उनका पूरा-पूरा बदला देगा और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करेगा। और जिन लोगों ने बन्दगी को बुरा समझा और घमंड किया, तो उन्हें वह दुखद यातना देगा। और वे अल्लाह से बच सकने के लिए न अपना कोई निकट का समर्थक पाएँगे और न ही कोई सहायक
Surah An-Nisa, Verse 173
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدۡ جَآءَكُم بُرۡهَٰنٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَأَنزَلۡنَآ إِلَيۡكُمۡ نُورٗا مُّبِينٗا
ऐ लोगों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से खुला प्रमाण आ चुका है और हमने तुम्हारी ओर एक स्पष्ट प्रकाश उतारा है
Surah An-Nisa, Verse 174
فَأَمَّا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ بِٱللَّهِ وَٱعۡتَصَمُواْ بِهِۦ فَسَيُدۡخِلُهُمۡ فِي رَحۡمَةٖ مِّنۡهُ وَفَضۡلٖ وَيَهۡدِيهِمۡ إِلَيۡهِ صِرَٰطٗا مُّسۡتَقِيمٗا
तो रहे वे लोग जो अल्लाह पर ईमान लाए और उसे मज़बूती के साथ पकड़े रहे, उन्हें तो शीघ्र ही अपनी दयालुता और अपने उदार अनुग्रह के क्षेत्र में दाख़िल करेगा और उन्हें अपनी ओर का सीधा मार्ग दिया देगा
Surah An-Nisa, Verse 175
يَسۡتَفۡتُونَكَ قُلِ ٱللَّهُ يُفۡتِيكُمۡ فِي ٱلۡكَلَٰلَةِۚ إِنِ ٱمۡرُؤٌاْ هَلَكَ لَيۡسَ لَهُۥ وَلَدٞ وَلَهُۥٓ أُخۡتٞ فَلَهَا نِصۡفُ مَا تَرَكَۚ وَهُوَ يَرِثُهَآ إِن لَّمۡ يَكُن لَّهَا وَلَدٞۚ فَإِن كَانَتَا ٱثۡنَتَيۡنِ فَلَهُمَا ٱلثُّلُثَانِ مِمَّا تَرَكَۚ وَإِن كَانُوٓاْ إِخۡوَةٗ رِّجَالٗا وَنِسَآءٗ فَلِلذَّكَرِ مِثۡلُ حَظِّ ٱلۡأُنثَيَيۡنِۗ يُبَيِّنُ ٱللَّهُ لَكُمۡ أَن تَضِلُّواْۗ وَٱللَّهُ بِكُلِّ شَيۡءٍ عَلِيمُۢ
वे तुमसे आदेश मालूम करना चाहते है। कह दो, "अल्लाह तुम्हें ऐसे व्यक्ति के विषय में, जिसका कोई वारिस न हो, आदेश देता है - यदि किसी पुरुष की मृत्यु हो जाए जिसकी कोई सन्तान न हो, परन्तु उसकी एक बहन हो, तो जो कुछ उसने छोड़ा है उसका आधा हिस्सा उस बहन का होगा। और भाई बहन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) की कोई सन्तान न हो। और यदि (वारिस) दो बहनें हो, तो जो कुछ उसने छोड़ा है, उसमें से उनके लिए दो-तिहाई होगा। और यदि कई भाई-बहन (वारिस) हो तो एक पुरुष को हिस्सा दो स्त्रियों के बराबर होगा।" अल्लाह तुम्हारे लिए आदेशों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम न भटको। और अल्लाह को हर चीज का पूरा ज्ञान है
Surah An-Nisa, Verse 176