Surah Ar-Rahman - Hindi Translation by Suhel Farooq Khan And Saifur Rahman Nadwi
ٱلرَّحۡمَٰنُ
बड़ा मेहरबान (ख़ुदा)
Surah Ar-Rahman, Verse 1
عَلَّمَ ٱلۡقُرۡءَانَ
उसी ने क़ुरान की तालीम फरमाई
Surah Ar-Rahman, Verse 2
خَلَقَ ٱلۡإِنسَٰنَ
उसी ने इन्सान को पैदा किया
Surah Ar-Rahman, Verse 3
عَلَّمَهُ ٱلۡبَيَانَ
उसी ने उनको (अपना मतलब) बयान करना सिखाया
Surah Ar-Rahman, Verse 4
ٱلشَّمۡسُ وَٱلۡقَمَرُ بِحُسۡبَانٖ
सूरज और चाँद एक मुक़र्रर हिसाब से चल रहे हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 5
وَٱلنَّجۡمُ وَٱلشَّجَرُ يَسۡجُدَانِ
और बूटियाँ बेलें, और दरख्त (उसी को) सजदा करते हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 6
وَٱلسَّمَآءَ رَفَعَهَا وَوَضَعَ ٱلۡمِيزَانَ
और उसी ने आसमान बुलन्द किया और तराजू (इन्साफ) को क़ायम किया
Surah Ar-Rahman, Verse 7
أَلَّا تَطۡغَوۡاْ فِي ٱلۡمِيزَانِ
ताकि तुम लोग तराज़ू (से तौलने) में हद से तजाउज़ न करो
Surah Ar-Rahman, Verse 8
وَأَقِيمُواْ ٱلۡوَزۡنَ بِٱلۡقِسۡطِ وَلَا تُخۡسِرُواْ ٱلۡمِيزَانَ
और ईन्साफ के साथ ठीक तौलो और तौल कम न करो
Surah Ar-Rahman, Verse 9
وَٱلۡأَرۡضَ وَضَعَهَا لِلۡأَنَامِ
और उसी ने लोगों के नफे क़े लिए ज़मीन बनायी
Surah Ar-Rahman, Verse 10
فِيهَا فَٰكِهَةٞ وَٱلنَّخۡلُ ذَاتُ ٱلۡأَكۡمَامِ
कि उसमें मेवे और खजूर के दरख्त हैं जिसके ख़ोशों में ग़िलाफ़ होते हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 11
وَٱلۡحَبُّ ذُو ٱلۡعَصۡفِ وَٱلرَّيۡحَانُ
और अनाज जिसके साथ भुस होता है और ख़ुशबूदार फूल
Surah Ar-Rahman, Verse 12
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों को न मानोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 13
خَلَقَ ٱلۡإِنسَٰنَ مِن صَلۡصَٰلٖ كَٱلۡفَخَّارِ
उसी ने इन्सान को ठीकरे की तरह खन खनाती हुई मिटटी से पैदा किया
Surah Ar-Rahman, Verse 14
وَخَلَقَ ٱلۡجَآنَّ مِن مَّارِجٖ مِّن نَّارٖ
और उसी ने जिन्नात को आग के शोले से पैदा किया
Surah Ar-Rahman, Verse 15
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो (ऐ गिरोह जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमतों से मुकरोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 16
رَبُّ ٱلۡمَشۡرِقَيۡنِ وَرَبُّ ٱلۡمَغۡرِبَيۡنِ
वही जाड़े गर्मी के दोनों मशरिकों का मालिक है और दोनों मग़रिबों का (भी) मालिक है
Surah Ar-Rahman, Verse 17
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो (ऐ जिनों) और (आदमियों) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 18
مَرَجَ ٱلۡبَحۡرَيۡنِ يَلۡتَقِيَانِ
उसी ने दरिया बहाए जो बाहम मिल जाते हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 19
بَيۡنَهُمَا بَرۡزَخٞ لَّا يَبۡغِيَانِ
दो के दरमियान एक हद्दे फ़ासिल (आड़) है जिससे तजाउज़ नहीं कर सकते
Surah Ar-Rahman, Verse 20
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो (ऐ जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 21
يَخۡرُجُ مِنۡهُمَا ٱللُّؤۡلُؤُ وَٱلۡمَرۡجَانُ
इन दोनों दरियाओं से मोती और मूँगे निकलते हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 22
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
(तो जिन व इन्स) तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत को न मानोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 23
وَلَهُ ٱلۡجَوَارِ ٱلۡمُنشَـَٔاتُ فِي ٱلۡبَحۡرِ كَٱلۡأَعۡلَٰمِ
और जहाज़ जो दरिया में पहाड़ों की तरह ऊँचे खड़े रहते हैं उसी के हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 24
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो (ऐ जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 25
كُلُّ مَنۡ عَلَيۡهَا فَانٖ
जो (मख़लूक) ज़मीन पर है सब फ़ना होने वाली है
Surah Ar-Rahman, Verse 26
وَيَبۡقَىٰ وَجۡهُ رَبِّكَ ذُو ٱلۡجَلَٰلِ وَٱلۡإِكۡرَامِ
और सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की ज़ात जो अज़मत और करामत वाली है बाक़ी रहेगी
Surah Ar-Rahman, Verse 27
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 28
يَسۡـَٔلُهُۥ مَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۚ كُلَّ يَوۡمٍ هُوَ فِي شَأۡنٖ
और जितने लोग सारे आसमान व ज़मीन में हैं (सब) उसी से माँगते हैं वह हर रोज़ (हर वक्त) मख़लूक के एक न एक काम में है
Surah Ar-Rahman, Verse 29
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की कौन कौन सी नेअमत से मुकरोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 30
سَنَفۡرُغُ لَكُمۡ أَيُّهَ ٱلثَّقَلَانِ
(ऐ दोनों गिरोहों) हम अनक़रीब ही तुम्हारी तरफ मुतावज्जे होंगे
Surah Ar-Rahman, Verse 31
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत को न मानोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 32
يَٰمَعۡشَرَ ٱلۡجِنِّ وَٱلۡإِنسِ إِنِ ٱسۡتَطَعۡتُمۡ أَن تَنفُذُواْ مِنۡ أَقۡطَارِ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ فَٱنفُذُواْۚ لَا تَنفُذُونَ إِلَّا بِسُلۡطَٰنٖ
ऐ गिरोह जिन व इन्स अगर तुममें क़ुदरत है कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से (होकर कहीं) निकल (कर मौत या अज़ाब से भाग) सको तो निकल जाओ (मगर) तुम तो बग़ैर क़ूवत और ग़लबे के निकल ही नहीं सकते (हालॉ कि तुममें न क़ूवत है और न ही ग़लबा)
Surah Ar-Rahman, Verse 33
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 34
يُرۡسَلُ عَلَيۡكُمَا شُوَاظٞ مِّن نَّارٖ وَنُحَاسٞ فَلَا تَنتَصِرَانِ
(गुनाहगार जिनों और आदमियों जहन्नुम में) तुम दोनो पर आग का सब्ज़ शोला और सियाह धुऑं छोड़ दिया जाएगा तो तुम दोनों (किस तरह) रोक नहीं सकोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 35
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 36
فَإِذَا ٱنشَقَّتِ ٱلسَّمَآءُ فَكَانَتۡ وَرۡدَةٗ كَٱلدِّهَانِ
फिर जब आसमान फट कर (क़यामत में) तेल की तरह लाल हो जाऐगा
Surah Ar-Rahman, Verse 37
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 38
فَيَوۡمَئِذٖ لَّا يُسۡـَٔلُ عَن ذَنۢبِهِۦٓ إِنسٞ وَلَا جَآنّٞ
तो उस दिन न तो किसी इन्सान से उसके गुनाह के बारे में पूछा जाएगा न किसी जिन से
Surah Ar-Rahman, Verse 39
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को न मानोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 40
يُعۡرَفُ ٱلۡمُجۡرِمُونَ بِسِيمَٰهُمۡ فَيُؤۡخَذُ بِٱلنَّوَٰصِي وَٱلۡأَقۡدَامِ
गुनाहगार लोग तो अपने चेहरों ही से पहचान लिए जाएँगे तो पेशानी के पटटे और पाँव पकड़े (जहन्नुम में डाल दिये जाएँगे)
Surah Ar-Rahman, Verse 41
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
आख़िर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 42
هَٰذِهِۦ جَهَنَّمُ ٱلَّتِي يُكَذِّبُ بِهَا ٱلۡمُجۡرِمُونَ
(फिर उनसे कहा जाएगा) यही वह जहन्नुम है जिसे गुनाहगार लोग झुठलाया करते थे
Surah Ar-Rahman, Verse 43
يَطُوفُونَ بَيۡنَهَا وَبَيۡنَ حَمِيمٍ ءَانٖ
ये लोग दोज़ख़ और हद दरजा खौलते हुए पानी के दरमियान (बेक़रार दौड़ते) चक्कर लगाते फिरेंगे
Surah Ar-Rahman, Verse 44
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को न मानोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 45
وَلِمَنۡ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِۦ جَنَّتَانِ
और जो शख्स अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता रहा उसके लिए दो दो बाग़ हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 46
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 47
ذَوَاتَآ أَفۡنَانٖ
दोनों बाग़ (दरख्तों की) टहनियों से हरे भरे (मेवों से लदे) हुए
Surah Ar-Rahman, Verse 48
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
फिर दोनों अपने सरपरस्त की किस किस नेअमतों को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 49
فِيهِمَا عَيۡنَانِ تَجۡرِيَانِ
इन दोनों में दो चश्में जारी होंगें
Surah Ar-Rahman, Verse 50
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 51
فِيهِمَا مِن كُلِّ فَٰكِهَةٖ زَوۡجَانِ
इन दोनों बाग़ों में सब मेवे दो दो किस्म के होंगे
Surah Ar-Rahman, Verse 52
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 53
مُتَّكِـِٔينَ عَلَىٰ فُرُشِۭ بَطَآئِنُهَا مِنۡ إِسۡتَبۡرَقٖۚ وَجَنَى ٱلۡجَنَّتَيۡنِ دَانٖ
यह लोग उन फ़र्शों पर जिनके असतर अतलस के होंगे तकिये लगाकर बैठे होंगे तो दोनों बाग़ों के मेवे (इस क़दर) क़रीब होंगे (कि अगर चाहे तो लगे हुए खालें)
Surah Ar-Rahman, Verse 54
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को न मानोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 55
فِيهِنَّ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرۡفِ لَمۡ يَطۡمِثۡهُنَّ إِنسٞ قَبۡلَهُمۡ وَلَا جَآنّٞ
इसमें (पाक दामन ग़ैर की तरफ ऑंख उठा कर न देखने वाली औरतें होंगी जिनको उन से पहले न किसी इन्सान ने हाथ लगाया होगा) और जिन ने
Surah Ar-Rahman, Verse 56
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 57
كَأَنَّهُنَّ ٱلۡيَاقُوتُ وَٱلۡمَرۡجَانُ
(ऐसी हसीन) गोया वह (मुजस्सिम) याक़ूत व मूँगे हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 58
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों से मुकरोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 59
هَلۡ جَزَآءُ ٱلۡإِحۡسَٰنِ إِلَّا ٱلۡإِحۡسَٰنُ
भला नेकी का बदला नेकी के सिवा कुछ और भी है
Surah Ar-Rahman, Verse 60
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 61
وَمِن دُونِهِمَا جَنَّتَانِ
उन दोनों बाग़ों के अलावा दो बाग़ और हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 62
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 63
مُدۡهَآمَّتَانِ
दोनों निहायत गहरे सब्ज़ व शादाब
Surah Ar-Rahman, Verse 64
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की किन किन नेअमतों को न मानोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 65
فِيهِمَا عَيۡنَانِ نَضَّاخَتَانِ
उन दोनों बाग़ों में दो चश्में जोश मारते होंगे
Surah Ar-Rahman, Verse 66
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 67
فِيهِمَا فَٰكِهَةٞ وَنَخۡلٞ وَرُمَّانٞ
उन दोनों में मेवें हैं खुरमें और अनार
Surah Ar-Rahman, Verse 68
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने मालिक की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 69
فِيهِنَّ خَيۡرَٰتٌ حِسَانٞ
उन बाग़ों में ख़ुश ख़ुल्क और ख़ूबसूरत औरतें होंगी
Surah Ar-Rahman, Verse 70
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
तो तुम दोनों अपने मालिक की किन किन नेअमतों को झुठलाओगे
Surah Ar-Rahman, Verse 71
حُورٞ مَّقۡصُورَٰتٞ فِي ٱلۡخِيَامِ
वह हूरें हैं जो ख़ेमों में छुपी बैठी हैं
Surah Ar-Rahman, Verse 72
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेअमत से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 73
لَمۡ يَطۡمِثۡهُنَّ إِنسٞ قَبۡلَهُمۡ وَلَا جَآنّٞ
उनसे पहले उनको किसी इन्सान ने उनको छुआ तक नहीं और न जिन ने
Surah Ar-Rahman, Verse 74
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
फिर तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत से मुकरोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 75
مُتَّكِـِٔينَ عَلَىٰ رَفۡرَفٍ خُضۡرٖ وَعَبۡقَرِيٍّ حِسَانٖ
ये लोग सब्ज़ कालीनों और नफीस व हसीन मसनदों पर तकिए लगाए (बैठे) होंगे
Surah Ar-Rahman, Verse 76
فَبِأَيِّ ءَالَآءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ
फिर तुम अपने परवरदिगार की किन किन नेअमतों से इन्कार करोगे
Surah Ar-Rahman, Verse 77
تَبَٰرَكَ ٱسۡمُ رَبِّكَ ذِي ٱلۡجَلَٰلِ وَٱلۡإِكۡرَامِ
(ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार जो साहिबे जलाल व करामत है उसी का नाम बड़ा बाबरकत है
Surah Ar-Rahman, Verse 78