Surah Al-Isra - Hindi Translation by Muhammad Farooq Khan And Muhammad Ahmed
سُبۡحَٰنَ ٱلَّذِيٓ أَسۡرَىٰ بِعَبۡدِهِۦ لَيۡلٗا مِّنَ ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡحَرَامِ إِلَى ٱلۡمَسۡجِدِ ٱلۡأَقۡصَا ٱلَّذِي بَٰرَكۡنَا حَوۡلَهُۥ لِنُرِيَهُۥ مِنۡ ءَايَٰتِنَآۚ إِنَّهُۥ هُوَ ٱلسَّمِيعُ ٱلۡبَصِيرُ
क्या ही महिमावान है वह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से दूरवर्ती मस्जिद (अक़्सा) तक ले गया, जिसके चतुर्दिक को हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निस्संदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है
Surah Al-Isra, Verse 1
وَءَاتَيۡنَا مُوسَى ٱلۡكِتَٰبَ وَجَعَلۡنَٰهُ هُدٗى لِّبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ أَلَّا تَتَّخِذُواْ مِن دُونِي وَكِيلٗا
हमने मूसा को किताब दी थी और उसे इसराईल की सन्तान के लिए मार्गदर्शन बनाया था कि "हमारे सिवा किसी को कार्य-साधक न ठहराना।
Surah Al-Isra, Verse 2
ذُرِّيَّةَ مَنۡ حَمَلۡنَا مَعَ نُوحٍۚ إِنَّهُۥ كَانَ عَبۡدٗا شَكُورٗا
ऐ उनकी सन्तान, जिन्हें हमने नूह के साथ (नौका में) सवार किया था! निश्चय ही वह एक कृतज्ञ बन्दा था
Surah Al-Isra, Verse 3
وَقَضَيۡنَآ إِلَىٰ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ فِي ٱلۡكِتَٰبِ لَتُفۡسِدُنَّ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَرَّتَيۡنِ وَلَتَعۡلُنَّ عُلُوّٗا كَبِيرٗا
और हमने किताब में इसराईल की सन्तान को इस फ़ैसले की ख़बर दे दी थी, "तुम धरती में अवश्य दो बार बड़ा फ़साद मचाओगे और बड़ी सरकशी दिखाओगे।
Surah Al-Isra, Verse 4
فَإِذَا جَآءَ وَعۡدُ أُولَىٰهُمَا بَعَثۡنَا عَلَيۡكُمۡ عِبَادٗا لَّنَآ أُوْلِي بَأۡسٖ شَدِيدٖ فَجَاسُواْ خِلَٰلَ ٱلدِّيَارِۚ وَكَانَ وَعۡدٗا مَّفۡعُولٗا
फिर जब उन दोनों में से पहले वादे का मौक़ा आ गया तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में अपने ऐसे बन्दों को उठाया जो युद्ध में बड़े बलशाली थे। तो वे बस्तियों में घुसकर हर ओर फैल गए और यह वादा पूरा होना ही था
Surah Al-Isra, Verse 5
ثُمَّ رَدَدۡنَا لَكُمُ ٱلۡكَرَّةَ عَلَيۡهِمۡ وَأَمۡدَدۡنَٰكُم بِأَمۡوَٰلٖ وَبَنِينَ وَجَعَلۡنَٰكُمۡ أَكۡثَرَ نَفِيرًا
फिर हमने तुम्हारी बारी उनपर लौटाई कि उनपर प्रभावी हो सको। और धनों और पुत्रों से तुम्हारी सहायता की और तुम्हें बहुसंख्यक लोगों का एक जत्था बनाया
Surah Al-Isra, Verse 6
إِنۡ أَحۡسَنتُمۡ أَحۡسَنتُمۡ لِأَنفُسِكُمۡۖ وَإِنۡ أَسَأۡتُمۡ فَلَهَاۚ فَإِذَا جَآءَ وَعۡدُ ٱلۡأٓخِرَةِ لِيَسُـُٔواْ وُجُوهَكُمۡ وَلِيَدۡخُلُواْ ٱلۡمَسۡجِدَ كَمَا دَخَلُوهُ أَوَّلَ مَرَّةٖ وَلِيُتَبِّرُواْ مَا عَلَوۡاْ تَتۡبِيرًا
यदि तुमने भलाई की तो अपने ही लिए भलाई की और यदि तुमने बुराई की तो अपने ही लिए की।" फिर जब दूसरे वादे का मौक़ा आ गया (तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में ऐसे प्रबल को उठाया) कि वे तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें और मस्जिद (बैतुलमक़दिस) में घुसे थे और ताकि जिस चीज़ पर भी उनका ज़ोर चले विनष्टि कर डालें
Surah Al-Isra, Verse 7
عَسَىٰ رَبُّكُمۡ أَن يَرۡحَمَكُمۡۚ وَإِنۡ عُدتُّمۡ عُدۡنَاۚ وَجَعَلۡنَا جَهَنَّمَ لِلۡكَٰفِرِينَ حَصِيرًا
हो सकता है तुम्हारा रब तुमपर दया करे, किन्तु यदि तुम फिर उसी पूर्व नीति की ओर पलटे तो हम भी पलटेंगे, और हमने जहन्नम को इनकार करनेवालों के लिए कारागार बना रखा है
Surah Al-Isra, Verse 8
إِنَّ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانَ يَهۡدِي لِلَّتِي هِيَ أَقۡوَمُ وَيُبَشِّرُ ٱلۡمُؤۡمِنِينَ ٱلَّذِينَ يَعۡمَلُونَ ٱلصَّـٰلِحَٰتِ أَنَّ لَهُمۡ أَجۡرٗا كَبِيرٗا
वास्तव में यह क़ुरआन वह मार्ग दिखाता है जो सबसे सीधा है और उन मोमिमों को, जो अच्छे कर्म करते है, शूभ सूचना देता है कि उनके लिए बड़ा बदला है
Surah Al-Isra, Verse 9
وَأَنَّ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ أَعۡتَدۡنَا لَهُمۡ عَذَابًا أَلِيمٗا
और यह कि जो आख़िरत को नहीं मानते उनके लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है
Surah Al-Isra, Verse 10
وَيَدۡعُ ٱلۡإِنسَٰنُ بِٱلشَّرِّ دُعَآءَهُۥ بِٱلۡخَيۡرِۖ وَكَانَ ٱلۡإِنسَٰنُ عَجُولٗا
मनुष्य उस प्रकार बुराई माँगता है जिस प्रकार उसकी प्रार्थना भलाई के लिए होनी चाहिए। मनुष्य है ही बड़ा उतावला
Surah Al-Isra, Verse 11
وَجَعَلۡنَا ٱلَّيۡلَ وَٱلنَّهَارَ ءَايَتَيۡنِۖ فَمَحَوۡنَآ ءَايَةَ ٱلَّيۡلِ وَجَعَلۡنَآ ءَايَةَ ٱلنَّهَارِ مُبۡصِرَةٗ لِّتَبۡتَغُواْ فَضۡلٗا مِّن رَّبِّكُمۡ وَلِتَعۡلَمُواْ عَدَدَ ٱلسِّنِينَ وَٱلۡحِسَابَۚ وَكُلَّ شَيۡءٖ فَصَّلۡنَٰهُ تَفۡصِيلٗا
हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाई है। फिर रात की निशानी को हमने मिटी हुई (प्रकाशहीन) बनाया और दिन की निशानी को हमने प्रकाशमान बनाया, ताकि तुम अपने रब का अनुग्रह (रोज़ी) ढूँढो और ताकि तुम वर्षो की गणना और हिसाब मालूम कर सको, और हर चीज़ को हमने अलग-अलग स्पष्ट कर रखा है
Surah Al-Isra, Verse 12
وَكُلَّ إِنسَٰنٍ أَلۡزَمۡنَٰهُ طَـٰٓئِرَهُۥ فِي عُنُقِهِۦۖ وَنُخۡرِجُ لَهُۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ كِتَٰبٗا يَلۡقَىٰهُ مَنشُورًا
हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा
Surah Al-Isra, Verse 13
ٱقۡرَأۡ كِتَٰبَكَ كَفَىٰ بِنَفۡسِكَ ٱلۡيَوۡمَ عَلَيۡكَ حَسِيبٗا
पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।
Surah Al-Isra, Verse 14
مَّنِ ٱهۡتَدَىٰ فَإِنَّمَا يَهۡتَدِي لِنَفۡسِهِۦۖ وَمَن ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيۡهَاۚ وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٞ وِزۡرَ أُخۡرَىٰۗ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّىٰ نَبۡعَثَ رَسُولٗا
जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो पथभ्रष्टो हुआ, तो वह अपने ही बुरे के लिए भटका। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें
Surah Al-Isra, Verse 15
وَإِذَآ أَرَدۡنَآ أَن نُّهۡلِكَ قَرۡيَةً أَمَرۡنَا مُتۡرَفِيهَا فَفَسَقُواْ فِيهَا فَحَقَّ عَلَيۡهَا ٱلۡقَوۡلُ فَدَمَّرۡنَٰهَا تَدۡمِيرٗا
और जब हम किसी बस्ती को विनष्ट करने का इरादा कर लेते है तो उसके सुखभोगी लोगों को आदेश देते है तो (आदेश मानने के बजाए) वे वहाँ अवज्ञा करने लग जाते है, तब उनपर बात पूरी हो जाती है, फिर हम उन्हें बिलकुल उखाड़ फेकते है
Surah Al-Isra, Verse 16
وَكَمۡ أَهۡلَكۡنَا مِنَ ٱلۡقُرُونِ مِنۢ بَعۡدِ نُوحٖۗ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ بِذُنُوبِ عِبَادِهِۦ خَبِيرَۢا بَصِيرٗا
हमने नूह के पश्चात कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर दिया। तुम्हारा रब अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने, देखने के लिए काफ़ी है
Surah Al-Isra, Verse 17
مَّن كَانَ يُرِيدُ ٱلۡعَاجِلَةَ عَجَّلۡنَا لَهُۥ فِيهَا مَا نَشَآءُ لِمَن نُّرِيدُ ثُمَّ جَعَلۡنَا لَهُۥ جَهَنَّمَ يَصۡلَىٰهَا مَذۡمُومٗا مَّدۡحُورٗا
जो कोई शीघ्र प्राप्त, होनेवाली को चाहता है उसके लिए हम उसी में जो कुछ किसी के लिए चाहते है शीघ्र प्रदान कर देते है। फिर उसके लिए हमने जहन्नम तैयार कर रखा है जिसमें वह अपयशग्रस्त और ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा
Surah Al-Isra, Verse 18
وَمَنۡ أَرَادَ ٱلۡأٓخِرَةَ وَسَعَىٰ لَهَا سَعۡيَهَا وَهُوَ مُؤۡمِنٞ فَأُوْلَـٰٓئِكَ كَانَ سَعۡيُهُم مَّشۡكُورٗا
और जो आख़िरत चाहता हो और उसके लिए ऐसा प्रयास भी करे जैसा कि उसके लिए प्रयास करना चाहिए और वह हो मोमिन, तो ऐसे ही लोग है जिनके प्रयास की क़द्र की जाएगी
Surah Al-Isra, Verse 19
كُلّٗا نُّمِدُّ هَـٰٓؤُلَآءِ وَهَـٰٓؤُلَآءِ مِنۡ عَطَآءِ رَبِّكَۚ وَمَا كَانَ عَطَآءُ رَبِّكَ مَحۡظُورًا
इन्हें भी और इनको भी, प्रत्येक को हम तुम्हारे रब की देन में से सहायता पहुँचाए जा रहे है, और तुम्हारे रब की देन बन्द नहीं है
Surah Al-Isra, Verse 20
ٱنظُرۡ كَيۡفَ فَضَّلۡنَا بَعۡضَهُمۡ عَلَىٰ بَعۡضٖۚ وَلَلۡأٓخِرَةُ أَكۡبَرُ دَرَجَٰتٖ وَأَكۡبَرُ تَفۡضِيلٗا
देखो, कैसे हमने उनके कुछ लोगों को कुछ के मुक़ाबले में आगे रखा है! और आख़िरत दर्जों की दृष्टि से सबसे बढ़कर है और श्रेष्ठ़ता की दृष्टि से भी वह सबसे बढ़-चढ़कर है
Surah Al-Isra, Verse 21
لَّا تَجۡعَلۡ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ فَتَقۡعُدَ مَذۡمُومٗا مَّخۡذُولٗا
अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न बनाओ अन्यथा निन्दित और असहाय होकर बैठे रह जाओगे
Surah Al-Isra, Verse 22
۞وَقَضَىٰ رَبُّكَ أَلَّا تَعۡبُدُوٓاْ إِلَّآ إِيَّاهُ وَبِٱلۡوَٰلِدَيۡنِ إِحۡسَٰنًاۚ إِمَّا يَبۡلُغَنَّ عِندَكَ ٱلۡكِبَرَ أَحَدُهُمَآ أَوۡ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُل لَّهُمَآ أُفّٖ وَلَا تَنۡهَرۡهُمَا وَقُل لَّهُمَا قَوۡلٗا كَرِيمٗا
तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें 'उँह' तक न कहो और न उन्हें झिझको, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो
Surah Al-Isra, Verse 23
وَٱخۡفِضۡ لَهُمَا جَنَاحَ ٱلذُّلِّ مِنَ ٱلرَّحۡمَةِ وَقُل رَّبِّ ٱرۡحَمۡهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرٗا
और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, "मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।
Surah Al-Isra, Verse 24
رَّبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِمَا فِي نُفُوسِكُمۡۚ إِن تَكُونُواْ صَٰلِحِينَ فَإِنَّهُۥ كَانَ لِلۡأَوَّـٰبِينَ غَفُورٗا
जो कुछ तुम्हारे जी में है उसे तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है। यदि तुम सुयोग्य और अच्छे हुए तो निश्चय ही वह भी ऐसे रुजू करनेवालों के लिए बड़ा क्षमाशील है
Surah Al-Isra, Verse 25
وَءَاتِ ذَا ٱلۡقُرۡبَىٰ حَقَّهُۥ وَٱلۡمِسۡكِينَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرۡ تَبۡذِيرًا
और नातेदार को उसका हक़ दो मुहताज और मुसाफ़िर को भी - और फुज़ूलख़र्ची न करो
Surah Al-Isra, Verse 26
إِنَّ ٱلۡمُبَذِّرِينَ كَانُوٓاْ إِخۡوَٰنَ ٱلشَّيَٰطِينِۖ وَكَانَ ٱلشَّيۡطَٰنُ لِرَبِّهِۦ كَفُورٗا
निश्चय ही फ़ु़ज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई है और शैतान अपने रब का बड़ा ही कृतघ्न है।
Surah Al-Isra, Verse 27
وَإِمَّا تُعۡرِضَنَّ عَنۡهُمُ ٱبۡتِغَآءَ رَحۡمَةٖ مِّن رَّبِّكَ تَرۡجُوهَا فَقُل لَّهُمۡ قَوۡلٗا مَّيۡسُورٗا
किन्तु यदि तुम्हें अपने रब की दयालुता की खोज में, जिसकी तुम आशा रखते हो, उनसे कतराना भी पड़े, तो इस दशा में तुम उनसें नर्म बात करो
Surah Al-Isra, Verse 28
وَلَا تَجۡعَلۡ يَدَكَ مَغۡلُولَةً إِلَىٰ عُنُقِكَ وَلَا تَبۡسُطۡهَا كُلَّ ٱلۡبَسۡطِ فَتَقۡعُدَ مَلُومٗا مَّحۡسُورًا
और अपना हाथ न तो अपनी गरदन से बाँधे रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि निन्दित और असहाय होकर बैठ जाओ
Surah Al-Isra, Verse 29
إِنَّ رَبَّكَ يَبۡسُطُ ٱلرِّزۡقَ لِمَن يَشَآءُ وَيَقۡدِرُۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِعِبَادِهِۦ خَبِيرَۢا بَصِيرٗا
तुम्हारा रब जिसको चाहता है प्रचुर और फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है और इसी प्रकार नपी-तुली भी। निस्संदेह वह अपने बन्दों की ख़बर और उनपर नज़र रखता है
Surah Al-Isra, Verse 30
وَلَا تَقۡتُلُوٓاْ أَوۡلَٰدَكُمۡ خَشۡيَةَ إِمۡلَٰقٖۖ نَّحۡنُ نَرۡزُقُهُمۡ وَإِيَّاكُمۡۚ إِنَّ قَتۡلَهُمۡ كَانَ خِطۡـٔٗا كَبِيرٗا
और निर्धनता के भय से अपनी सन्तान की हत्या न करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। वास्तव में उनकी हत्या बहुत ही बड़ा अपराध है
Surah Al-Isra, Verse 31
وَلَا تَقۡرَبُواْ ٱلزِّنَىٰٓۖ إِنَّهُۥ كَانَ فَٰحِشَةٗ وَسَآءَ سَبِيلٗا
और व्यभिचार के निकट न जाओ। वह एक अश्लील कर्म और बुरा मार्ग है
Surah Al-Isra, Verse 32
وَلَا تَقۡتُلُواْ ٱلنَّفۡسَ ٱلَّتِي حَرَّمَ ٱللَّهُ إِلَّا بِٱلۡحَقِّۗ وَمَن قُتِلَ مَظۡلُومٗا فَقَدۡ جَعَلۡنَا لِوَلِيِّهِۦ سُلۡطَٰنٗا فَلَا يُسۡرِف فِّي ٱلۡقَتۡلِۖ إِنَّهُۥ كَانَ مَنصُورٗا
किसी जीव की हत्या न करो, जिसे (मारना) अल्लाह ने हराम ठहराया है। यह और बात है कि हक़ (न्याय) का तक़ाज़ा यही हो। और जिसकी अन्यायपूर्वक हत्या की गई हो, उसके उत्तराधिकारी को हमने अधिकार दिया है (कि वह हत्यारे से बदला ले सकता है), किन्तु वह हत्या के विषय में सीमा का उल्लंघन न करे। निश्चय ही उसकी सहायता की जाएगी
Surah Al-Isra, Verse 33
وَلَا تَقۡرَبُواْ مَالَ ٱلۡيَتِيمِ إِلَّا بِٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُ حَتَّىٰ يَبۡلُغَ أَشُدَّهُۥۚ وَأَوۡفُواْ بِٱلۡعَهۡدِۖ إِنَّ ٱلۡعَهۡدَ كَانَ مَسۡـُٔولٗا
और अनाथ के माल को हाथ में लगाओ सिवाय उत्तम रीति के, यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाए, और प्रतिज्ञा पूरी करो। प्रतिज्ञा के विषय में अवश्य पूछा जाएगा
Surah Al-Isra, Verse 34
وَأَوۡفُواْ ٱلۡكَيۡلَ إِذَا كِلۡتُمۡ وَزِنُواْ بِٱلۡقِسۡطَاسِ ٱلۡمُسۡتَقِيمِۚ ذَٰلِكَ خَيۡرٞ وَأَحۡسَنُ تَأۡوِيلٗا
और जब नापकर दो तो, नाप पूरी रखो। और ठीक तराज़ू से तौलो, यही उत्तम और परिणाम की दृष्टि से भी अधिक अच्छा है
Surah Al-Isra, Verse 35
وَلَا تَقۡفُ مَا لَيۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٌۚ إِنَّ ٱلسَّمۡعَ وَٱلۡبَصَرَ وَٱلۡفُؤَادَ كُلُّ أُوْلَـٰٓئِكَ كَانَ عَنۡهُ مَسۡـُٔولٗا
और जिस चीज़ का तुम्हें ज्ञान न हो उसके पीछे न लगो। निस्संदेह कान और आँख और दिल इनमें से प्रत्येक के विषय में पूछा जाएगा
Surah Al-Isra, Verse 36
وَلَا تَمۡشِ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَرَحًاۖ إِنَّكَ لَن تَخۡرِقَ ٱلۡأَرۡضَ وَلَن تَبۡلُغَ ٱلۡجِبَالَ طُولٗا
और धरती में अकड़कर न चलो, न तो तुम धरती को फाड़ सकते हो और न लम्बे होकर पहाड़ो को पहुँच सकते हो
Surah Al-Isra, Verse 37
كُلُّ ذَٰلِكَ كَانَ سَيِّئُهُۥ عِندَ رَبِّكَ مَكۡرُوهٗا
इनमें से प्रत्येक की बुराई तुम्हारे रब की स्पष्ट में अप्रिय ही है
Surah Al-Isra, Verse 38
ذَٰلِكَ مِمَّآ أَوۡحَىٰٓ إِلَيۡكَ رَبُّكَ مِنَ ٱلۡحِكۡمَةِۗ وَلَا تَجۡعَلۡ مَعَ ٱللَّهِ إِلَٰهًا ءَاخَرَ فَتُلۡقَىٰ فِي جَهَنَّمَ مَلُومٗا مَّدۡحُورًا
ये तत्वदर्शिता की वे बातें है, जिनकी प्रकाशना तुम्हारे रब ने तुम्हारी ओर की है। और देखो, अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न घड़ना, अन्यथा जहन्नम में डाल दिए जाओगे निन्दित, ठुकराए हुए
Surah Al-Isra, Verse 39
أَفَأَصۡفَىٰكُمۡ رَبُّكُم بِٱلۡبَنِينَ وَٱتَّخَذَ مِنَ ٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ إِنَٰثًاۚ إِنَّكُمۡ لَتَقُولُونَ قَوۡلًا عَظِيمٗا
क्या तुम्हारे रब ने तुम्हें तो बेटों के लिए ख़ास किया और स्वयं अपने लिए फ़रिश्तों को बेटियाँ बनाया? बहुत भारी बात है जो तुम कह रहे हो
Surah Al-Isra, Verse 40
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ لِيَذَّكَّرُواْ وَمَا يَزِيدُهُمۡ إِلَّا نُفُورٗا
हमने इस क़ुरआन में विभिन्न ढंग से बात का स्पष्टीकरण किया कि वे चेतें, किन्तु इसमें उनकी नफ़रत ही बढ़ती है
Surah Al-Isra, Verse 41
قُل لَّوۡ كَانَ مَعَهُۥٓ ءَالِهَةٞ كَمَا يَقُولُونَ إِذٗا لَّٱبۡتَغَوۡاْ إِلَىٰ ذِي ٱلۡعَرۡشِ سَبِيلٗا
कह दो, "यदि उसके साथ अन्य भी पूज्य-प्रभु होते, जैसा कि ये कहते हैं, तब तो वे सिंहासनवाले (के पद) तक पहुँचने का कोई मार्ग अवश्य तलाश करते
Surah Al-Isra, Verse 42
سُبۡحَٰنَهُۥ وَتَعَٰلَىٰ عَمَّا يَقُولُونَ عُلُوّٗا كَبِيرٗا
महिमावान है वह! और बहुत उच्च है उन बातों से जो वे कहते है
Surah Al-Isra, Verse 43
تُسَبِّحُ لَهُ ٱلسَّمَٰوَٰتُ ٱلسَّبۡعُ وَٱلۡأَرۡضُ وَمَن فِيهِنَّۚ وَإِن مِّن شَيۡءٍ إِلَّا يُسَبِّحُ بِحَمۡدِهِۦ وَلَٰكِن لَّا تَفۡقَهُونَ تَسۡبِيحَهُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ حَلِيمًا غَفُورٗا
सातों आकाश और धरती और जो कोई भी उनमें है सब उसकी तसबीह (महिमागान) करते है और ऐसी कोई चीज़ नहीं जो उसका गुणगान न करती हो। किन्तु तुम उनकी तसबीह को समझते नहीं। निश्चय ही वह अत्यन्त सहनशील, क्षमावान है
Surah Al-Isra, Verse 44
وَإِذَا قَرَأۡتَ ٱلۡقُرۡءَانَ جَعَلۡنَا بَيۡنَكَ وَبَيۡنَ ٱلَّذِينَ لَا يُؤۡمِنُونَ بِٱلۡأٓخِرَةِ حِجَابٗا مَّسۡتُورٗا
जब तुम क़ुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के बीच, जो आख़िरत को नहीं मानते एक अदृश्य पर्दे की आड़ कर देते है
Surah Al-Isra, Verse 45
وَجَعَلۡنَا عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ أَكِنَّةً أَن يَفۡقَهُوهُ وَفِيٓ ءَاذَانِهِمۡ وَقۡرٗاۚ وَإِذَا ذَكَرۡتَ رَبَّكَ فِي ٱلۡقُرۡءَانِ وَحۡدَهُۥ وَلَّوۡاْ عَلَىٰٓ أَدۡبَٰرِهِمۡ نُفُورٗا
और उनके दिलों पर भी परदे डाल देते है कि वे समझ न सकें। और उनके कानों में बोझ (कि वे सुन न सकें) । और जब तुम क़ुरआन के माध्यम से अपने रब का वर्णन उसे अकेला बताते हुए करते हो तो वे नफ़रत से अपनी पीठ फेरकर चल देते है
Surah Al-Isra, Verse 46
نَّحۡنُ أَعۡلَمُ بِمَا يَسۡتَمِعُونَ بِهِۦٓ إِذۡ يَسۡتَمِعُونَ إِلَيۡكَ وَإِذۡ هُمۡ نَجۡوَىٰٓ إِذۡ يَقُولُ ٱلظَّـٰلِمُونَ إِن تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلٗا مَّسۡحُورًا
जब वे तुम्हारी ओर कान लगाते हैं तो हम भली-भाँति जानते है कि उनके कान लगाने का प्रयोजन क्या है और उसे भी जब वे आपस में कानाफूसियाँ करते है, जब वे ज़ालिम कहते है, "तुम लोग तो बस उस आदमी के पीछे चलते हो जो पक्का जादूगर है।
Surah Al-Isra, Verse 47
ٱنظُرۡ كَيۡفَ ضَرَبُواْ لَكَ ٱلۡأَمۡثَالَ فَضَلُّواْ فَلَا يَسۡتَطِيعُونَ سَبِيلٗا
देखो, वे कैसी मिसालें तुमपर चस्पाँ करते है! वे तो भटक गए है, अब कोई मार्ग नहीं पा सकते
Surah Al-Isra, Verse 48
وَقَالُوٓاْ أَءِذَا كُنَّا عِظَٰمٗا وَرُفَٰتًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ خَلۡقٗا جَدِيدٗا
वे कहते है, "क्या जब हम हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे, तो क्या हम फिर नए बनकर उठेंगे
Surah Al-Isra, Verse 49
۞قُلۡ كُونُواْ حِجَارَةً أَوۡ حَدِيدًا
कह दो, "तुम पत्थर या लोहो हो जाओ
Surah Al-Isra, Verse 50
أَوۡ خَلۡقٗا مِّمَّا يَكۡبُرُ فِي صُدُورِكُمۡۚ فَسَيَقُولُونَ مَن يُعِيدُنَاۖ قُلِ ٱلَّذِي فَطَرَكُمۡ أَوَّلَ مَرَّةٖۚ فَسَيُنۡغِضُونَ إِلَيۡكَ رُءُوسَهُمۡ وَيَقُولُونَ مَتَىٰ هُوَۖ قُلۡ عَسَىٰٓ أَن يَكُونَ قَرِيبٗا
या कोई और चीज़ जो तुम्हारे जी में अत्यन्त विकट हो।" तब वे कहेंगे, "कौन हमें पलटाकर लाएगा?" कह दो, "वहीं जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया।" तब वे तुम्हारे आगे अपने सिरों को हिला-हिलाकर कहेंगे, "अच्छा तो वह कह होगा?" कह दो, "कदाचित कि वह निकट ही हो।
Surah Al-Isra, Verse 51
يَوۡمَ يَدۡعُوكُمۡ فَتَسۡتَجِيبُونَ بِحَمۡدِهِۦ وَتَظُنُّونَ إِن لَّبِثۡتُمۡ إِلَّا قَلِيلٗا
जिस दिन वह तुम्हें पुकारेगा, तो तुम उसकी प्रशंसा करते हुए उसकी आज्ञा को स्वीकार करोगे और समझोगे कि तुम बस थोड़ी ही देर ठहरे रहे हो
Surah Al-Isra, Verse 52
وَقُل لِّعِبَادِي يَقُولُواْ ٱلَّتِي هِيَ أَحۡسَنُۚ إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ يَنزَغُ بَيۡنَهُمۡۚ إِنَّ ٱلشَّيۡطَٰنَ كَانَ لِلۡإِنسَٰنِ عَدُوّٗا مُّبِينٗا
मेरे बन्दों से कह दो कि "बात वहीं कहें जो उत्तम हो। शैतान तो उनके बीच उकसाकर फ़साद डालता रहता है। निस्संदेह शैतान मनुष्य का प्रत्यक्ष शत्रु है।
Surah Al-Isra, Verse 53
رَّبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِكُمۡۖ إِن يَشَأۡ يَرۡحَمۡكُمۡ أَوۡ إِن يَشَأۡ يُعَذِّبۡكُمۡۚ وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ عَلَيۡهِمۡ وَكِيلٗا
तुम्हारा रब तुमसे भली-भाँति परिचित है। वह चाहे तो तुमपर दया करे या चाहे तो तुम्हें यातना दे। हमने तुम्हें उनकी ज़िम्मेदारी लेनेवाला कोई क्यक्ति बनाकर नहीं भेजा है (कि उन्हें अनिवार्यतः संमार्ग पर ला ही दो)
Surah Al-Isra, Verse 54
وَرَبُّكَ أَعۡلَمُ بِمَن فِي ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِۗ وَلَقَدۡ فَضَّلۡنَا بَعۡضَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ عَلَىٰ بَعۡضٖۖ وَءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ زَبُورٗا
तुम्हारा रब उससे भी भली-भाँति परिचित है जो कोई आकाशों और धरती में है, और हमने कुछ नबियों को कुछ की अपेक्षा श्रेष्ठता दी और हमने ही दाऊद को ज़बूर प्रदान की थी
Surah Al-Isra, Verse 55
قُلِ ٱدۡعُواْ ٱلَّذِينَ زَعَمۡتُم مِّن دُونِهِۦ فَلَا يَمۡلِكُونَ كَشۡفَ ٱلضُّرِّ عَنكُمۡ وَلَا تَحۡوِيلًا
कह दो, "तुम उससे इतर जिनको भी पूज्य-प्रभु समझते हो उन्हें पुकार कर देखो। वे न तुमसे कोई कष्ट दूर करने का अधिकार रखते है और न उसे बदलने का।
Surah Al-Isra, Verse 56
أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ يَدۡعُونَ يَبۡتَغُونَ إِلَىٰ رَبِّهِمُ ٱلۡوَسِيلَةَ أَيُّهُمۡ أَقۡرَبُ وَيَرۡجُونَ رَحۡمَتَهُۥ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُۥٓۚ إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحۡذُورٗا
जिनको ये लोग पुकारते है वे तो स्वयं अपने रब का सामीप्य ढूँढते है कि कौन उनमें से सबसे अधिक निकटता प्राप्त कर ले। और वे उसकी दयालुता की आशा रखते है और उसकी यातना से डरते रहते है। तुम्हारे रब की यातना तो है ही डरने की चीज़
Surah Al-Isra, Verse 57
وَإِن مِّن قَرۡيَةٍ إِلَّا نَحۡنُ مُهۡلِكُوهَا قَبۡلَ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ أَوۡ مُعَذِّبُوهَا عَذَابٗا شَدِيدٗاۚ كَانَ ذَٰلِكَ فِي ٱلۡكِتَٰبِ مَسۡطُورٗا
कोई भी (अवज्ञाकारी) बस्ती ऐसी नहीं जिसे हम क़ियामत के दिन से पहले विनष्टअ न कर दें या उसे कठोर यातना न दे। यह बात किताब में लिखी जा चुकी है
Surah Al-Isra, Verse 58
وَمَا مَنَعَنَآ أَن نُّرۡسِلَ بِٱلۡأٓيَٰتِ إِلَّآ أَن كَذَّبَ بِهَا ٱلۡأَوَّلُونَۚ وَءَاتَيۡنَا ثَمُودَ ٱلنَّاقَةَ مُبۡصِرَةٗ فَظَلَمُواْ بِهَاۚ وَمَا نُرۡسِلُ بِٱلۡأٓيَٰتِ إِلَّا تَخۡوِيفٗا
हमें निशानियाँ (देकर नबी को) भेजने से इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि पहले के लोग उनको झुठला चुके है। और (उदाहरणार्थ) हमने समूद को स्पष्ट प्रमाण के रूप में ऊँटनी दी, किन्तु उन्होंने ग़लत नीति अपनाकर स्वयं ही अपनी जानों पर ज़ुल्म किया। हम निशानियाँ तो डराने ही के लिए भेजते है
Surah Al-Isra, Verse 59
وَإِذۡ قُلۡنَا لَكَ إِنَّ رَبَّكَ أَحَاطَ بِٱلنَّاسِۚ وَمَا جَعَلۡنَا ٱلرُّءۡيَا ٱلَّتِيٓ أَرَيۡنَٰكَ إِلَّا فِتۡنَةٗ لِّلنَّاسِ وَٱلشَّجَرَةَ ٱلۡمَلۡعُونَةَ فِي ٱلۡقُرۡءَانِۚ وَنُخَوِّفُهُمۡ فَمَا يَزِيدُهُمۡ إِلَّا طُغۡيَٰنٗا كَبِيرٗا
जब हमने तुमसे कहा, "तुम्हारे रब ने लोगों को अपने घेरे में ले रखा है और जो अलौकिक दर्शन हमने तुम्हें कराया उसे तो हमने लोगों के लिए केवल एक आज़माइश बना दिया और उस वृक्ष को भी जिसे क़ुरआन में तिरस्कृत ठहराया गया है। हम उन्हें डराते है, किन्तु यह चीज़ उनकी बढ़ी हुई सरकशी ही को बढ़ा रही है।
Surah Al-Isra, Verse 60
وَإِذۡ قُلۡنَا لِلۡمَلَـٰٓئِكَةِ ٱسۡجُدُواْ لِأٓدَمَ فَسَجَدُوٓاْ إِلَّآ إِبۡلِيسَ قَالَ ءَأَسۡجُدُ لِمَنۡ خَلَقۡتَ طِينٗا
याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो तो इबलीस को छोड़कर सबने सजदा किया।" उसने कहा, "क्या मैं उसे सजदा करूँ, जिसे तूने मिट्टी से बनाया है
Surah Al-Isra, Verse 61
قَالَ أَرَءَيۡتَكَ هَٰذَا ٱلَّذِي كَرَّمۡتَ عَلَيَّ لَئِنۡ أَخَّرۡتَنِ إِلَىٰ يَوۡمِ ٱلۡقِيَٰمَةِ لَأَحۡتَنِكَنَّ ذُرِّيَّتَهُۥٓ إِلَّا قَلِيلٗا
कहने लगा, "देख तो सही, उसे जिसको तूने मेरे मुक़ाबले में श्रेष्ठ ता प्रदान की है, यदि तूने मुझे क़ियामत के दिन तक मुहलत दे दी, तो मैं अवश्य ही उसकी सन्तान को वश में करके उसका उन्मूलन कर डालूँगा। केवल थोड़े ही लोग बच सकेंगे।
Surah Al-Isra, Verse 62
قَالَ ٱذۡهَبۡ فَمَن تَبِعَكَ مِنۡهُمۡ فَإِنَّ جَهَنَّمَ جَزَآؤُكُمۡ جَزَآءٗ مَّوۡفُورٗا
कहा, "जा, उनमें से जो भी तेरा अनुसरण करेगा, तो तुझ सहित ऐसे सभी लोगों का भरपूर बदला जहन्नम है
Surah Al-Isra, Verse 63
وَٱسۡتَفۡزِزۡ مَنِ ٱسۡتَطَعۡتَ مِنۡهُم بِصَوۡتِكَ وَأَجۡلِبۡ عَلَيۡهِم بِخَيۡلِكَ وَرَجِلِكَ وَشَارِكۡهُمۡ فِي ٱلۡأَمۡوَٰلِ وَٱلۡأَوۡلَٰدِ وَعِدۡهُمۡۚ وَمَا يَعِدُهُمُ ٱلشَّيۡطَٰنُ إِلَّا غُرُورًا
उनमें सो जिस किसी पर तेरा बस चले उसके क़दम अपनी आवाज़ से उखाड़ दे। और उनपर अपने सवार और अपने प्यादे (पैदल सेना) चढ़ा ला। और माल और सन्तान में भी उनके साथ साझा लगा। और उनसे वादे कर!" - किन्तु शैतान उनसे जो वादे करता है वह एक धोखे के सिवा और कुछ भी नहीं होता।
Surah Al-Isra, Verse 64
إِنَّ عِبَادِي لَيۡسَ لَكَ عَلَيۡهِمۡ سُلۡطَٰنٞۚ وَكَفَىٰ بِرَبِّكَ وَكِيلٗا
निश्चय ही जो मेरे (सच्चे) बन्दे है उनपर तेरा कुछ भी ज़ोर नहीं चल सकता।" तुम्हारा रब इसके लिए काफ़ी है कि अपना मामला उसी को सौंप दिया जाए
Surah Al-Isra, Verse 65
رَّبُّكُمُ ٱلَّذِي يُزۡجِي لَكُمُ ٱلۡفُلۡكَ فِي ٱلۡبَحۡرِ لِتَبۡتَغُواْ مِن فَضۡلِهِۦٓۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِكُمۡ رَحِيمٗا
तुम्हारा रब तो वह है जो तुम्हारे लिए समुद्र में नौका चलाता है, ताकि तुम उसका अनुग्रह (आजीविका) तलाश करो। वह तुम्हारे हाल पर अत्यन्त दयावान है
Surah Al-Isra, Verse 66
وَإِذَا مَسَّكُمُ ٱلضُّرُّ فِي ٱلۡبَحۡرِ ضَلَّ مَن تَدۡعُونَ إِلَّآ إِيَّاهُۖ فَلَمَّا نَجَّىٰكُمۡ إِلَى ٱلۡبَرِّ أَعۡرَضۡتُمۡۚ وَكَانَ ٱلۡإِنسَٰنُ كَفُورًا
जब समुद्र में तुम पर कोई आपदा आती है तो उसके सिवा वे सब जिन्हें तुम पुकारते हो, गुम होकर रह जाते है, किन्तु फिर जब वह तुम्हें बचाकर थल पर पहुँचा देता है तो तुम उससे मुँह मोड़ जाते हो। मानव बड़ा ही अकृतज्ञ है
Surah Al-Isra, Verse 67
أَفَأَمِنتُمۡ أَن يَخۡسِفَ بِكُمۡ جَانِبَ ٱلۡبَرِّ أَوۡ يُرۡسِلَ عَلَيۡكُمۡ حَاصِبٗا ثُمَّ لَا تَجِدُواْ لَكُمۡ وَكِيلًا
क्या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह कभी थल की ओर ले जाकर तुम्हें धँसा दे या तुमपर पथराव करनेवाली आँधी भेज दे; फिर अपना कोई कार्यसाधक न पाओ
Surah Al-Isra, Verse 68
أَمۡ أَمِنتُمۡ أَن يُعِيدَكُمۡ فِيهِ تَارَةً أُخۡرَىٰ فَيُرۡسِلَ عَلَيۡكُمۡ قَاصِفٗا مِّنَ ٱلرِّيحِ فَيُغۡرِقَكُم بِمَا كَفَرۡتُمۡ ثُمَّ لَا تَجِدُواْ لَكُمۡ عَلَيۡنَا بِهِۦ تَبِيعٗا
या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह फिर तुम्हें उसमें दोबारा ले जाए और तुमपर प्रचंड तूफ़ानी हवा भेज दे और तुम्हें तुम्हारे इनकार के बदले में डूबो दे। फिर तुम किसी को ऐसा न पाओ जो तुम्हारे लिए इसपर हमारा पीछा करनेवाला हो
Surah Al-Isra, Verse 69
۞وَلَقَدۡ كَرَّمۡنَا بَنِيٓ ءَادَمَ وَحَمَلۡنَٰهُمۡ فِي ٱلۡبَرِّ وَٱلۡبَحۡرِ وَرَزَقۡنَٰهُم مِّنَ ٱلطَّيِّبَٰتِ وَفَضَّلۡنَٰهُمۡ عَلَىٰ كَثِيرٖ مِّمَّنۡ خَلَقۡنَا تَفۡضِيلٗا
हमने आदम की सन्तान को श्रेष्ठता प्रदान की और उन्हें थल औऱ जल में सवारी दी और अच्छी-पाक चीज़ों की उन्हें रोज़ी दी और अपने पैदा किए हुए बहुत-से प्राणियों की अपेक्षा उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की
Surah Al-Isra, Verse 70
يَوۡمَ نَدۡعُواْ كُلَّ أُنَاسِۭ بِإِمَٰمِهِمۡۖ فَمَنۡ أُوتِيَ كِتَٰبَهُۥ بِيَمِينِهِۦ فَأُوْلَـٰٓئِكَ يَقۡرَءُونَ كِتَٰبَهُمۡ وَلَا يُظۡلَمُونَ فَتِيلٗا
(उस दिन से डरो) जिस दिन हम मानव के प्रत्येक गिरोह को उसके अपने नायक के साथ बुलाएँगे। फिर जिसे उसका कर्मपत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया, तो ऐसे लोग अपना कर्मपत्र पढ़ेंगे और उनके साथ तनिक भी अन्याय न होगा
Surah Al-Isra, Verse 71
وَمَن كَانَ فِي هَٰذِهِۦٓ أَعۡمَىٰ فَهُوَ فِي ٱلۡأٓخِرَةِ أَعۡمَىٰ وَأَضَلُّ سَبِيلٗا
और जो यहाँ अंधा होकर रहा वह आख़िरत में भी अंधा ही रहेगा, बल्कि वह मार्ग से और भी अधिक दूर पड़ा होगा
Surah Al-Isra, Verse 72
وَإِن كَادُواْ لَيَفۡتِنُونَكَ عَنِ ٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ لِتَفۡتَرِيَ عَلَيۡنَا غَيۡرَهُۥۖ وَإِذٗا لَّٱتَّخَذُوكَ خَلِيلٗا
और वे लगते थे कि तुम्हें फ़िले में डालकर उस चीज़ से हटा देने को है जिसकी प्रकाशना हमने तुम्हारी ओर की है, ताकि तुम उससे भिन्न चीज़ घड़कर हमपर थोपो, और तब वे तुम्हें अपना घनिष्ठ मित्र बना लेते
Surah Al-Isra, Verse 73
وَلَوۡلَآ أَن ثَبَّتۡنَٰكَ لَقَدۡ كِدتَّ تَرۡكَنُ إِلَيۡهِمۡ شَيۡـٔٗا قَلِيلًا
यदि हम तुम्हें जमाव प्रदान न करते तो तुम उनकी ओर थोड़ा झुकने के निकट जा पहुँचते
Surah Al-Isra, Verse 74
إِذٗا لَّأَذَقۡنَٰكَ ضِعۡفَ ٱلۡحَيَوٰةِ وَضِعۡفَ ٱلۡمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَيۡنَا نَصِيرٗا
उस समय हम तुम्हें जीवन में भी दोहरा मज़ा चखाते और मृत्यु के पश्चात भी दोहरा मज़ा चखाते। फिर तुम हमारे मुक़ाबले में अपना कोई सहायक न पाते
Surah Al-Isra, Verse 75
وَإِن كَادُواْ لَيَسۡتَفِزُّونَكَ مِنَ ٱلۡأَرۡضِ لِيُخۡرِجُوكَ مِنۡهَاۖ وَإِذٗا لَّا يَلۡبَثُونَ خِلَٰفَكَ إِلَّا قَلِيلٗا
और निश्चय ही उन्होंने चाल चली कि इस भूभाग से तुम्हारे क़दम उखाड़ दें, ताकि तुम्हें यहाँ से निकालकर ही रहे। और ऐसा हुआ तो तुम्हारे पीछे ये भी रह थोड़े ही पाएँगे
Surah Al-Isra, Verse 76
سُنَّةَ مَن قَدۡ أَرۡسَلۡنَا قَبۡلَكَ مِن رُّسُلِنَاۖ وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحۡوِيلًا
यही कार्य-प्रणाली हमारे उन रसूलों के विषय में भी रही है, जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा था और तुम हमारी कार्य-प्रणाली में कोई अन्तर न पाओगे
Surah Al-Isra, Verse 77
أَقِمِ ٱلصَّلَوٰةَ لِدُلُوكِ ٱلشَّمۡسِ إِلَىٰ غَسَقِ ٱلَّيۡلِ وَقُرۡءَانَ ٱلۡفَجۡرِۖ إِنَّ قُرۡءَانَ ٱلۡفَجۡرِ كَانَ مَشۡهُودٗا
नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़ः के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है)
Surah Al-Isra, Verse 78
وَمِنَ ٱلَّيۡلِ فَتَهَجَّدۡ بِهِۦ نَافِلَةٗ لَّكَ عَسَىٰٓ أَن يَبۡعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامٗا مَّحۡمُودٗا
और रात के कुछ हिस्से में उस (क़ुरआन) के द्वारा जागरण किया करो, यह तुम्हारे लिए तद्अधिक (नफ़्ल) है। आशा है कि तुम्हारा रब तुम्हें उठाए ऐसा उठाना जो प्रशंसित हो
Surah Al-Isra, Verse 79
وَقُل رَّبِّ أَدۡخِلۡنِي مُدۡخَلَ صِدۡقٖ وَأَخۡرِجۡنِي مُخۡرَجَ صِدۡقٖ وَٱجۡعَل لِّي مِن لَّدُنكَ سُلۡطَٰنٗا نَّصِيرٗا
और कहो, "मेरे रब! तू मुझे ख़ूबी के साथ दाख़िल कर और ख़ूबी के साथ निकाल, और अपनी ओर से मुझे सहायक शक्ति प्रदान कर।
Surah Al-Isra, Verse 80
وَقُلۡ جَآءَ ٱلۡحَقُّ وَزَهَقَ ٱلۡبَٰطِلُۚ إِنَّ ٱلۡبَٰطِلَ كَانَ زَهُوقٗا
कह दो, "सत्य आ गया और असत्य मिट गया; असत्य तो मिट जानेवाला ही होता है।
Surah Al-Isra, Verse 81
وَنُنَزِّلُ مِنَ ٱلۡقُرۡءَانِ مَا هُوَ شِفَآءٞ وَرَحۡمَةٞ لِّلۡمُؤۡمِنِينَ وَلَا يَزِيدُ ٱلظَّـٰلِمِينَ إِلَّا خَسَارٗا
हम क़ुरआन में से जो उतारते है वह मोमिनों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) और दयालुता है, किन्तु ज़ालिमों के लिए तो वह बस घाटे ही में अभिवृद्धि करता है
Surah Al-Isra, Verse 82
وَإِذَآ أَنۡعَمۡنَا عَلَى ٱلۡإِنسَٰنِ أَعۡرَضَ وَنَـَٔا بِجَانِبِهِۦ وَإِذَا مَسَّهُ ٱلشَّرُّ كَانَ يَـُٔوسٗا
मानव पर जब हम सुखद कृपा करते है तो वह मुँह फेरता और अपना पहलू बचाता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है, तो वह निराश होने लगता है
Surah Al-Isra, Verse 83
قُلۡ كُلّٞ يَعۡمَلُ عَلَىٰ شَاكِلَتِهِۦ فَرَبُّكُمۡ أَعۡلَمُ بِمَنۡ هُوَ أَهۡدَىٰ سَبِيلٗا
कह दो, "हर एक अपने ढब पर काम कर रहा है, तो अब तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है कि कौन अधिक सीधे मार्ग पर है।
Surah Al-Isra, Verse 84
وَيَسۡـَٔلُونَكَ عَنِ ٱلرُّوحِۖ قُلِ ٱلرُّوحُ مِنۡ أَمۡرِ رَبِّي وَمَآ أُوتِيتُم مِّنَ ٱلۡعِلۡمِ إِلَّا قَلِيلٗا
वे तुमसे रूह के विषय में पूछते है। कह दो, "रूह का संबंध तो मेरे रब के आदेश से है, किन्तु ज्ञान तुम्हें मिला थोड़ा ही है।
Surah Al-Isra, Verse 85
وَلَئِن شِئۡنَا لَنَذۡهَبَنَّ بِٱلَّذِيٓ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ بِهِۦ عَلَيۡنَا وَكِيلًا
यदि हम चाहें तो वह सब छीन लें जो हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की है, फिर इसके लिए हमारे मुक़ाबले में अपना कोई समर्थक न पाओगे
Surah Al-Isra, Verse 86
إِلَّا رَحۡمَةٗ مِّن رَّبِّكَۚ إِنَّ فَضۡلَهُۥ كَانَ عَلَيۡكَ كَبِيرٗا
यह तो बस तुम्हारे रब की दयालुता है। वास्तविकता यह है कि उसका तुमपर बड़ा अनुग्रह है
Surah Al-Isra, Verse 87
قُل لَّئِنِ ٱجۡتَمَعَتِ ٱلۡإِنسُ وَٱلۡجِنُّ عَلَىٰٓ أَن يَأۡتُواْ بِمِثۡلِ هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ لَا يَأۡتُونَ بِمِثۡلِهِۦ وَلَوۡ كَانَ بَعۡضُهُمۡ لِبَعۡضٖ ظَهِيرٗا
कह दो, "यदि मनुष्य और जिन्न इसके लिए इकट्ठे हो जाएँ कि क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाएँ, तो वे इस जैसी कोई चीज़ न ला सकेंगे, चाहे वे आपस में एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हों।
Surah Al-Isra, Verse 88
وَلَقَدۡ صَرَّفۡنَا لِلنَّاسِ فِي هَٰذَا ٱلۡقُرۡءَانِ مِن كُلِّ مَثَلٖ فَأَبَىٰٓ أَكۡثَرُ ٱلنَّاسِ إِلَّا كُفُورٗا
हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए प्रत्येक तत्वदर्शिता की बात फेर-फेरकर बयान की, फिर भी अधिकतर लोगों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही
Surah Al-Isra, Verse 89
وَقَالُواْ لَن نُّؤۡمِنَ لَكَ حَتَّىٰ تَفۡجُرَ لَنَا مِنَ ٱلۡأَرۡضِ يَنۢبُوعًا
और उन्होंने कहा, "हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे, जब तक कि तुम हमारे लिए धरती से एक स्रोत प्रवाहित न कर दो
Surah Al-Isra, Verse 90
أَوۡ تَكُونَ لَكَ جَنَّةٞ مِّن نَّخِيلٖ وَعِنَبٖ فَتُفَجِّرَ ٱلۡأَنۡهَٰرَ خِلَٰلَهَا تَفۡجِيرًا
या फिर तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो और तुम उसके बीच बहती नहरें निकाल दो
Surah Al-Isra, Verse 91
أَوۡ تُسۡقِطَ ٱلسَّمَآءَ كَمَا زَعَمۡتَ عَلَيۡنَا كِسَفًا أَوۡ تَأۡتِيَ بِٱللَّهِ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ قَبِيلًا
या आकाश को टुकड़े-टुकड़े करके हम पर गिरा दो जैसा कि तुम्हारा दावा है, या अल्लाह और फ़रिश्तों ही को हमारे समझ ले आओ
Surah Al-Isra, Verse 92
أَوۡ يَكُونَ لَكَ بَيۡتٞ مِّن زُخۡرُفٍ أَوۡ تَرۡقَىٰ فِي ٱلسَّمَآءِ وَلَن نُّؤۡمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّىٰ تُنَزِّلَ عَلَيۡنَا كِتَٰبٗا نَّقۡرَؤُهُۥۗ قُلۡ سُبۡحَانَ رَبِّي هَلۡ كُنتُ إِلَّا بَشَرٗا رَّسُولٗا
या तुम्हारे लिए स्वर्ण-निर्मित एक घर हो जाए या तुम आकाश में चढ़ जाओ, और हम तुम्हारे चढ़ने को भी कदापि न मानेंगे, जब तक कि तुम हम पर एक किताब न उतार लाओ, जिसे हम पढ़ सकें।" कह दो, "महिमावान है मेरा रब! क्या मैं एक संदेश लानेवाला मनुष्य के सिवा कुछ और भी हूँ
Surah Al-Isra, Verse 93
وَمَا مَنَعَ ٱلنَّاسَ أَن يُؤۡمِنُوٓاْ إِذۡ جَآءَهُمُ ٱلۡهُدَىٰٓ إِلَّآ أَن قَالُوٓاْ أَبَعَثَ ٱللَّهُ بَشَرٗا رَّسُولٗا
लोगों को जबकि उनके पास मार्गदर्शन आया तो उनको ईमान लाने से केवल यही चीज़ रुकावट बनी कि वे कहने लगे, "क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को रसूल बनाकर भेज दिया
Surah Al-Isra, Verse 94
قُل لَّوۡ كَانَ فِي ٱلۡأَرۡضِ مَلَـٰٓئِكَةٞ يَمۡشُونَ مُطۡمَئِنِّينَ لَنَزَّلۡنَا عَلَيۡهِم مِّنَ ٱلسَّمَآءِ مَلَكٗا رَّسُولٗا
कह दो, "यदि धरती में फ़रिश्ते आबाद होकर चलते-फिरते होते तो हम उनके लिए अवश्य आकाश से किसी फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर भेजते।
Surah Al-Isra, Verse 95
قُلۡ كَفَىٰ بِٱللَّهِ شَهِيدَۢا بَيۡنِي وَبَيۡنَكُمۡۚ إِنَّهُۥ كَانَ بِعِبَادِهِۦ خَبِيرَۢا بَصِيرٗا
कह दो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही एक गवाह काफ़ी है। निश्चय ही वह अपने बन्दों की पूरी ख़बर रखनेवाला, देखनेवाला है।
Surah Al-Isra, Verse 96
وَمَن يَهۡدِ ٱللَّهُ فَهُوَ ٱلۡمُهۡتَدِۖ وَمَن يُضۡلِلۡ فَلَن تَجِدَ لَهُمۡ أَوۡلِيَآءَ مِن دُونِهِۦۖ وَنَحۡشُرُهُمۡ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ عَلَىٰ وُجُوهِهِمۡ عُمۡيٗا وَبُكۡمٗا وَصُمّٗاۖ مَّأۡوَىٰهُمۡ جَهَنَّمُۖ كُلَّمَا خَبَتۡ زِدۡنَٰهُمۡ سَعِيرٗا
जिसे अल्लाह ही मार्ग दिखाए वही मार्ग पानेवाला है और वह जिसे पथभ्रष्ट होने दे, तो ऐसे लोगों के लिए उससे इतर तुम सहायक न पाओगे। क़ियामत के दिन हम उन्हें औंधे मुँह इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि वे अंधे गूँगे और बहरे होंगे। उनका ठिकाना जहन्नम है। जब भी उसकी आग धीमी पड़ने लगेगी तो हम उसे उनके लिए भड़का देंगे
Surah Al-Isra, Verse 97
ذَٰلِكَ جَزَآؤُهُم بِأَنَّهُمۡ كَفَرُواْ بِـَٔايَٰتِنَا وَقَالُوٓاْ أَءِذَا كُنَّا عِظَٰمٗا وَرُفَٰتًا أَءِنَّا لَمَبۡعُوثُونَ خَلۡقٗا جَدِيدًا
यही उनका बदला है, इसलिए कि उन्होंने हमारी आयतों का इनकार किया और कहा, "क्या जब हम केवल हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे, तो क्या हमें नए सिरे से पैदा करके उठा खड़ा किया जाएगा
Surah Al-Isra, Verse 98
۞أَوَلَمۡ يَرَوۡاْ أَنَّ ٱللَّهَ ٱلَّذِي خَلَقَ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضَ قَادِرٌ عَلَىٰٓ أَن يَخۡلُقَ مِثۡلَهُمۡ وَجَعَلَ لَهُمۡ أَجَلٗا لَّا رَيۡبَ فِيهِ فَأَبَى ٱلظَّـٰلِمُونَ إِلَّا كُفُورٗا
क्या उन्हें यह न सूझा कि जिस अल्लाह ने आकाशों और धरती को पैदा किया है उसे उन जैसों को भी पैदा करने की सामर्थ्य प्राप्त है? उसने तो उनके लिए एक समय निर्धारित कर रखा है, जिसमें कोई सन्देह नहीं है। फिर भी ज़ालिमों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही
Surah Al-Isra, Verse 99
قُل لَّوۡ أَنتُمۡ تَمۡلِكُونَ خَزَآئِنَ رَحۡمَةِ رَبِّيٓ إِذٗا لَّأَمۡسَكۡتُمۡ خَشۡيَةَ ٱلۡإِنفَاقِۚ وَكَانَ ٱلۡإِنسَٰنُ قَتُورٗا
कहो, "यदि कहीं मेरे रब की दयालुता के ख़ज़ाने तुम्हारे अधिकार में होते हो ख़र्च हो जाने के भय से तुम रोके ही रखते। वास्तव में इनसान तो दिल का बड़ा ही तंग है
Surah Al-Isra, Verse 100
وَلَقَدۡ ءَاتَيۡنَا مُوسَىٰ تِسۡعَ ءَايَٰتِۭ بَيِّنَٰتٖۖ فَسۡـَٔلۡ بَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ إِذۡ جَآءَهُمۡ فَقَالَ لَهُۥ فِرۡعَوۡنُ إِنِّي لَأَظُنُّكَ يَٰمُوسَىٰ مَسۡحُورٗا
हमने मूसा को नौ खुली निशानियाँ प्रदान की थी। अब इसराईल की सन्तान से पूछ लो कि जब वह उनके पास आया और फ़िरऔन ने उससे कहा, "ऐ मूसा! मैं तो तुम्हें बड़ा जादूगर समझता हूँ।
Surah Al-Isra, Verse 101
قَالَ لَقَدۡ عَلِمۡتَ مَآ أَنزَلَ هَـٰٓؤُلَآءِ إِلَّا رَبُّ ٱلسَّمَٰوَٰتِ وَٱلۡأَرۡضِ بَصَآئِرَ وَإِنِّي لَأَظُنُّكَ يَٰفِرۡعَوۡنُ مَثۡبُورٗا
उसने कहा, "तू भली-भाँति जानता हैं कि आकाशों और धऱती के रब के सिवा किसी और ने इन (निशानियों) को स्पष्ट प्रमाण बनाकर नहीं उतारा है। और ऐ फ़िरऔन! मैं तो समझता हूँ कि तू विनष्ट होने को है।
Surah Al-Isra, Verse 102
فَأَرَادَ أَن يَسۡتَفِزَّهُم مِّنَ ٱلۡأَرۡضِ فَأَغۡرَقۡنَٰهُ وَمَن مَّعَهُۥ جَمِيعٗا
अन्ततः उसने चाहा कि उनको उस भूभाग से उखाड़ फेंके, किन्तु हमने उसे और जो उसके साथ थे सभी को डूबो दिया
Surah Al-Isra, Verse 103
وَقُلۡنَا مِنۢ بَعۡدِهِۦ لِبَنِيٓ إِسۡرَـٰٓءِيلَ ٱسۡكُنُواْ ٱلۡأَرۡضَ فَإِذَا جَآءَ وَعۡدُ ٱلۡأٓخِرَةِ جِئۡنَا بِكُمۡ لَفِيفٗا
और हमने उसके बाद इसराईल की सन्तान से कहा, "तुम इस भूभाग में बसो। फिर जब आख़िरत का वादा आ पूरा होगा, तो हम तुम सबको इकट्ठा ला उपस्थित करेंगे।
Surah Al-Isra, Verse 104
وَبِٱلۡحَقِّ أَنزَلۡنَٰهُ وَبِٱلۡحَقِّ نَزَلَۗ وَمَآ أَرۡسَلۡنَٰكَ إِلَّا مُبَشِّرٗا وَنَذِيرٗا
सत्य के साथ हमने उसे अवतरित किया और सत्य के साथ वह अवतरित भी हुआ। और तुम्हें तो हमने केवल शुभ सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा है
Surah Al-Isra, Verse 105
وَقُرۡءَانٗا فَرَقۡنَٰهُ لِتَقۡرَأَهُۥ عَلَى ٱلنَّاسِ عَلَىٰ مُكۡثٖ وَنَزَّلۡنَٰهُ تَنزِيلٗا
और क़ुरआन को हमने थोड़ा-थोड़ा करके इसलिए अवतरित किया, ताकि तुम ठहर-ठहरकर उसे लोगो को सुनाओ, और हमने उसे उत्तम रीति से क्रमशः उतारा है
Surah Al-Isra, Verse 106
قُلۡ ءَامِنُواْ بِهِۦٓ أَوۡ لَا تُؤۡمِنُوٓاْۚ إِنَّ ٱلَّذِينَ أُوتُواْ ٱلۡعِلۡمَ مِن قَبۡلِهِۦٓ إِذَا يُتۡلَىٰ عَلَيۡهِمۡ يَخِرُّونَۤ لِلۡأَذۡقَانِۤ سُجَّدٗاۤ
कह दो, "तुम उसे मानो या न मानो, जिन लोगों को इससे पहले ज्ञान दिया गया है, उन्हें जब वह पढ़कर सुनाया जाता है, तो वे ठोड़ियों के बल सजदे में गिर पड़ते है
Surah Al-Isra, Verse 107
وَيَقُولُونَ سُبۡحَٰنَ رَبِّنَآ إِن كَانَ وَعۡدُ رَبِّنَا لَمَفۡعُولٗا
और कहते है, "महान और उच्च है हमारा रब! हमारे रब का वादा तो पूरा होकर ही रहता है।
Surah Al-Isra, Verse 108
وَيَخِرُّونَ لِلۡأَذۡقَانِ يَبۡكُونَ وَيَزِيدُهُمۡ خُشُوعٗا۩
और वे रोते हुए ठोड़ियों के बल गिर जाते है और वह (क़ुरआन) उनकी विनम्रता को और बढ़ा देता है
Surah Al-Isra, Verse 109
قُلِ ٱدۡعُواْ ٱللَّهَ أَوِ ٱدۡعُواْ ٱلرَّحۡمَٰنَۖ أَيّٗا مَّا تَدۡعُواْ فَلَهُ ٱلۡأَسۡمَآءُ ٱلۡحُسۡنَىٰۚ وَلَا تَجۡهَرۡ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتۡ بِهَا وَٱبۡتَغِ بَيۡنَ ذَٰلِكَ سَبِيلٗا
कह दो, "तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो या जिस नाम से भी पुकारो, उसके लिए सब अच्छे ही नाम है।" और अपनी नमाज़ न बहुत ऊँची आवाज़ से पढ़ो और न उसे बहुत चुपके से पढ़ो, बल्कि इन दोनों के बीच मध्य मार्ग अपनाओ
Surah Al-Isra, Verse 110
وَقُلِ ٱلۡحَمۡدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي لَمۡ يَتَّخِذۡ وَلَدٗا وَلَمۡ يَكُن لَّهُۥ شَرِيكٞ فِي ٱلۡمُلۡكِ وَلَمۡ يَكُن لَّهُۥ وَلِيّٞ مِّنَ ٱلذُّلِّۖ وَكَبِّرۡهُ تَكۡبِيرَۢا
और कहो, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने न तो अपना कोई बेटा बनाया और न बादशाही में उसका कोई सहभागी है और न ऐसा ही है कि वह दीन-हीन हो जिसके कारण बचाव के लिए उसका कोई सहायक मित्र हो।" और बड़ाई बयान करो उसकी, पूर्ण बड़ाई
Surah Al-Isra, Verse 111